गणेश जी और देवरानी-जेठानी – Ganesh Ji Aur Devrani-Jethani
गणेश जी की कथाएँ – गणेश जी और देवरानी-जेठानी – Ganesh Ji Aur Devrani-Jethani
एक शहर में दो देवरानी-जेठानी रहती थी। जेठानी बहुत अमीर थी, लेकिन देवरानी बहुत गरीब थी। देवरानी गणेश जी की भक्त थी। देवरानी का पति जंगल से लकड़ी काट कर बेचता और अपने परिवार का भरण-पोषण करता था। एक बार देवरानी का पति बहुत बीमार हो गया। कई दिनों तक वह ठीक नहीं हुआ, भूखों मरने की नौबत आ गई। देवरानी जेठानी के पास सहायता माँगने गई।
जेठानी की दुष्टता
जेठानी स्वभाव से ही बहुत दुष्ट स्वभाव की थी। जेठानी एक शर्त पर उसकी मदद करने के लिए तैयार हो गई कि देवरानी उसके घर का सारा काम करेगी, लेकिन इसके बदले में वह केवल तुम्हें ही खाना मिलेगा देवरानी इसके लिए तैयार ही गई। अब देवरानी रोज जेठानी के घर काम पर जाने लगी।
वह सारा दिन बड़ी मेहनत से जेठानी के घर का सारा काम करती। बदले में उसकी जेठानी उसे बचा हुआ खाना खाने के लिए दे देती। देवरानी अपने पति के लिए वह कपड़ा घर ले आती, जिससे वह आटा छानती थी। उस कपड़े को पानी से धोकर उसका पानी अपने पति को पिला देती।एक दिन जेठानी के बच्चे ने उसे ऐसा करते हुए देख लिया। उसने अपनी माँ से उसकी शिकायत कर दी।
जेठानी ने देवरानी से कहा, “आज से आटा छानने वाला कपड़ा अपने यहाँ मत ले जाना, यहीं रख कर जाना।” देवरानी ने भी वहाँ खाना नहीं खाया और खाली हाथ घर पर आ गई। जब उसके पति ने उससे खाने के लिए माँगा तो उसने कहा, “जेठानी जी ने आज आटा छानने का कपड़ा भी रखवा लिया, आज मेरे पास आपको खिलाने के लिए कुछ नहीं है। भूख के मारे उसके पति को गुस्सा आ गया।
उसने उससे कहा, “सारा दिन काम करके भी दो रोटी नहीं ला सकती तो काम क्यों करती हो? पति ने गुस्से में आकर अपनी पत्नी को कपड़े धोने के धोवने से खूब मारा। जब धोवना हाथ से छूट गया तो लकड़ी के पाटे से बहुत मारा। वह बेचारी गणेश जी को याद करती हुई, रोते-रोते भूखी-प्यासी ही सो गयी।
गणेश जी की कृपा
उस दिन माही चौथ (संकट चौथ) थी। आधी रात को गणेश जी एक बालक का रूप धर कर उसके पास आए और बोलें,
गणेश जी बोले, “धोवने मारी, पाटे मारी” सो रही है या जाग रही है।”
देवरानी बिना देखे ही बोली, “कुछ सो रही हूँ और कुछ जाग रही हूँ।”
गणेश जी बोले, “माँ आज तो इतना चूरमा और तिलकुट्टा खाया है कि पेट फट रहा है। मुझे निमटने जाना है। कहाँ निमटू।”
देवरानी तो गुस्से में थी ही बोली, “ये पड़ा घर, जहाँ इच्छा हो वहाँ जाकर निमट लें।”
गणेश जी पूरे घर में जगह-जगह पर निमट लेते है। उसके बाद देवरानी के पास जाकर पूछते है, “अब पोंछू कहाँ?”
देवरानी पहले से ही परेशान थी और गणेश जी उसे बार-बार परेशान कर रहे थे। उसे बहुत तेज गुस्सा आ गया। वह गुस्से से बोली, “कब से तंग करे जा रहा हैं, आ मेरे सर से पोंछ ले!”
गणेशजी उसके सिर से पोंछ कर चलें जाते है।
सुबह जब देवरानी उठती है तो यह देखकर हैरान हो जाती है कि पूरा घर हीरे-मोती से जगमगा रहा है। उसके सिर पर सोने और हीरे के टीके व बिंदी जगमगा रहे थे। उसे समझ में आ गया कि रात को गणेश जी महाराज ने ही उस पर कृपा की है। उसने गणेश जी महाराज का जयकारा लगाते हुए उन्हें धन्यवाद दिया।
ये कैसे हो गया?
उस दिन देवरानी जेठानी के काम करने नहीं गई। बहुत देर तक राह देखने के बाद भी जब वह नहीं आई, तो जेठानी ने सोचा, “कल देवरानी को कपड़ा नहीं ले जाने दिया, शायद इसीलिए वह बुरा मान गई है। जेठानी ने अपने बच्चों को देवरानी को बुलाने लिए उसके घर भेजा।
बच्चे बुलाने गए और बोले, “चाची, चलो माँ ने बुलाया है। घर का सारा काम बाकी पड़ा हैं।
दुनियां में चाहे कोई मौका चूक जाए पर देवरानी-जेठानी आपस में ताना देने का मौका कभी नहीं छोड़ती। आज पहली बार देवरानी को मौका मिला था, इसलिए उसने कहा, “बेटा, मैंने तो बहुत दिनों तक तेरी माँ के यहाँ काम कर लिया, अब तो तेरी माँ की बारी है। जा अपनी माँ को ही मेरे घर पर काम करने के लिए भेज दें।“
बच्चो ने घर जाकर माँ को बताया कि “चाची का तो पूरा घर हीरे मोतियों से जगमगा रहा और उन्होनें तो आपकों अपने यहाँ काम करने के लिए बुलाया है।” यह सुनकर जेठानी दौड़ती हुई देवरानी के पास आई और पूछा कि, “ये सब कैसे हुआ?” तो देवरानी ने उसे पूरी बात बता दी।
घर लौटकर जेठानी ने ढ़ेर सारा घी और मेवे डालकर चूरमा बनाया और उसे छीकें में दिया। फिर अपने पति को सारी बात बताते हुए कहा, “आप भी मुझे धोवने और पाटे से मारो।”
उसका पति बोला, “अरी भाग्यवान, मैंने तो आज तक तुमसे ऊँची आवाज में भी बात नहीं की। मैं तुम्हे धोवने और पाटे से कैसे मार सकता हूँ? और अपने पास कौन से धन की कमी है, जो तुम फालतू में मार खा रही हो।
गणेश जी ने दिया दंड
पर वह नहीं मानी और जिद करने लगी। अखिरकार उसकी बात मानकर उसके पति को उसे धोवने और पाटे से मारना पड़ा। जेठानी भी रोते-रोते सो गई। रात को गणेश जी भी बालक का रूप धर कर उसके यहाँ आकर बोले,
“धोवने मारी, पाटे मारी, फालतू में मार खाने वाली” सो रही है या जाग रही है।”
जेठानी बोली, “सो नहीं रही, जाग रही हूँ।”
गणेश जी बोले, “बहुत भूख लगी हैं, क्या खाऊँ?”
जेठानी बोली, “हे गणेश जी महाराज, मैने आपके लिए खूब सारा घी और मेवा डालकर चूरमा बनाकर छींके में रखा हैं। इसके अलावा घर में बहुत सारे फल और मेवे भी रखे है, आप की जो इच्छा हो वो खा लीजिये।”
चूरमा खाने के बाद गणेश जी बोले – “बहुत जोर से निमटाई लगी है, कहाँ निमटू।”
देवरानी बोली, “मेरी देवरानी की तो टूटी-फूटी छोटी सी झोंपड़ी थी, लेकिन यहाँ तो बहुत बड़ा महल है, जहाँ चाहो वहाँ निमट लों।”
गणेश जी उसके भी पूरे घर में जगह-जगह पर निमट लेते है। उसके बाद जेठानी के पास जाकर पूछते है, “अब पोंछू कहाँ?”
जेठानी बोली, “मेरे ललाट पर बड़ी सी बिंदी लगाकर पोंछ लों।”
गणेश जी उसके ललाट पर पोंछ कर चले जाते है।
बहुत सारे हीरे जवाहारत के बारें में सोच-सोच कर उसे सारी रात नींद ही नहीं आई। वह सुबह बहुत जल्दी उठ गयी। लेकिन यह क्या पूरे घर में गन्दगी फैली हुई थी, बहुत तेज बदबू आ रही थी और घर में गंदगी फैली हुई थी। उसके सिर पर भी बहुत सी गंदगी लगी हुई थी।
जेठानी ने घर की सफाई करने की बहुत ही कोशिश की, लेकिन गंदगी कम होने की जगह ज्यादा फैलती गई। जब जेठानी के पति ने यह सब देखा तो वह उस पर बहुत गुस्सा हुआ और बोला, “तेरे पास इतना सब कुछ था, फिर भी लालच मैं तूने अपनी देवरानी की बराबरी करनी चाही। यह सब उसी का फल है।
गणेश जी की माया
जब बहुत साफ करने पर भी गंदगी साफ नहीं हुए तो जेठानी ने गणेश जी से विनती करने करते हुए कहा, “हे गणेश जी महाराज, आपने यह क्या किया? देवरानी पर टूटे और मुझसे रूठे! अब यह गंदगी कैसे साफ होगी?”
उसकी विनती से गणेश जी प्रकट हो गए और कहा, “तुम्हारी देवरानी तो मेरी भक्त थी और परेशान थी। लेकिन तुमने तो अपनी देवरानी से ज्यादा धनवान बनने के लालच में यह सब किया था। अब तो तेरा घर तभी साफ होगा, जब तू अपने धन का आधा उसे देगी।“
जेठानी ने पूरे धन का आधा भाग देवरानी को दे दिया, लेकिन ताक् में रखा एक सूई-धागा छूट गया।
इसके बाद उसने गणेश जी से विनती की, “हे गणेश जी महाराज, मैंने अपने पूरे धन का आधा भाग अपनी देवरानी को दे दिया है। अब मेरे घर से अपनी माया समेट लो। गणेश जी ने कहा, “अभी ताक में रखे हुए सुई-धागे की भी बराबर पांती करनी है।
जेठानी ने सुई-धागा देवरानी को दे दिया। इस प्रकार गणेश जी ने एक छोटी सी सुई का भी बंटवारा करवाकर देवरानी को दिलवाया और अपनी माया समेटी।
हे गणेश जी महाराज, जैसे आपने देवरानी पर कृपा करके उसके घर अन्न धन के भंडार भरे, वैसे सबके भरना, किन्तु जेठानी को जैसी सजा दी, वैसी किसी को भी मत देना। कहानी कहने, सुनने और हुंकारा भरने वाले सब पर अपनी कृपा करना और उनकी मनोकामना पूरी करना।
“बोलों गणेश जी महाराज की जय! पार्वती के लाल की जय! चौथ माता की जय!”
हर व्रत-उपवास की कथा-कहानी कहने के बाद लपसी-तपसी की कहानी कहनी और सुननी चाहिए।
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पिछली कहानी – गणेश जी और तिल के दाने
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