तिल चौथ की कहानी – Til Chouth Ki Kahani
चौथ माता की कथाएं – तिल चौथ की कहानी – Til Chouth Ki Kahani
तिल चौथ की कहानी
एक बार एक गाँव में एक सेठ-सेठानी रहते थे। उनके कोई संतान नहीं थी। उन्होंने खूब पूजा-पाठ दान-धर्म किया, लेकिन उन्हें संतान की प्राप्ति नहीं हुई। एक बार सेठानी ने पड़ोस की स्त्रियों को तिल चौथ के व्रत की पूजा करते देखा।
उसने उनसे पूछा, “यह आप क्या कर रही है?”
तो पड़ोस की औरतें बोली, “आज तिल चौथ है। आज के दिन तिलकुट्टा चढ़ाकर चौथ माता की पूजा करते है। पूरे दिन निराहार रहकर व्रत करते है और रात को चाँद को अर्ध्य देकर ही भोजन करते है।“
तब सेठानी ने पूछा, “इस व्रत को करने से क्या फल मिलता है?”
पड़ोसनें बोली, “इस व्रत को करने अन्न-धन, रिद्धि-सिद्धि, पुत्र और अमर सुहाग की प्राप्ति होती है। घर में सुख तथा शांति रहती है।”
सेठानी ने उनसे सारी विधि जानने के बाद चौथ माता से प्रार्थना की, “हे, चौथ माता, यदि मेरे पुत्र हो जावे तो मैं आपको सवा किलो तिल का तिलकुट्टा चढ़ाऊँगी।“
चौथ माता ने उसकी प्रार्थना स्वीकार कर ली। चौथ माता की कृपा से नवें महीने सेठानी को पुत्र रत्न की प्राप्ति हो गई। पुत्र होने की खुशी में वह चौथ माता का तिलकुट्टा चढ़ाना भूल गई। बाद में जब उसे याद आया तो वह बोली, “हे चौथ माता, भूल-चूक माफ करना, जब मेरा बेटा एक साल का हो जाएगा, तब मैं आपको सवा सेर का तिलकुट्टा चढ़ा दूँगी।”
बेटा जब एक साल का हो गया तो उसने कहा, “अभी तो यह बहुत छोटा है, जब मेरा पुत्र पाँच साल का हो जाएगा, तो मैं आपको दो सेर का तिलकुट्टा चढ़ाऊँगी। जब उसका पुत्र पाँच वर्ष का हो गया तब सेठानी ने और तिलकुट्टा बोल दिया। इस तरह से वह आगे से आगे तिलकुट्टे का भोग बोलती जाती। इस तरह करते-करते सेठानी का पुत्र जवान हो गया।
सेठानी ने कहा, “हे चौथ माता, जब मेरे पुत्र का विवाह तय हो जाएगा, तब मैं आपको पाँच सेर का तिलकुट्टा चढ़ाऊँगी।” चौथ माता की कृपा से सेठानी के लड़के की सगाई, एक अच्छे घर की सुशील कन्या के साथ तय हो गई। लग्न का दिन भी आ गया और फेरे होने लगे, लेकिन सेठानी चौथ माता को तिलकुट्टा चढ़ाने की बात बिल्कुल भूल गई।
इससे चौथ माता कुपित हो गई। उन्होंने सोचा, “इस तरह तो मुझे कोई भी नहीं पूजेगा।” अभी लड़के के तीन फेरे ही पड़े थे कि चौथ माता ने लड़के को लग्न-मंडप से गायब कर दिया और मंदिर में पीपल के पेड़ की कोटर में छिपा दिया। दूल्हे को बीच मण्डप में से गायब हो जाने से बारात बिना दूल्हा और दुल्हन के ही वापस लौट गई।
वह लड़की रोज मंदिर में तुलसा जी में जल सींचने के लिए जाती थी। अगले दिन जब वह तुलसा जी में जल सींच रही थी, तब पीपल के पेड़ में से आवाज आई, “आ ये म्हारी अधपरणी, अधकुंवारी”। आवाज सुनकर लड़की डर गई और घर आ गई।
अब तो यह रोज का क्रम हो बन गया। लड़की तुलसा जी में जल सींचती और पीपल में से आवाज आती, “आ ये म्हारी अधपरणी, अधकुंवारी”। डर के मारे लड़की दिनों-दिन दुबली और पीली पड़ने लग गई। सबने सोचा कि फेरों के बीच में से दूल्हे के गायब होने के कारण ऐसा ही रहा है। एक दिन वह कन्या तुलसा जी को सींचने मंदिर नहीं गई।
तब उसकी माँ ने इसका कारण पूछा, तब उसने बताया, “माँ, मैं जब भी तुलसा जी में जल सींचती हूँ तो पीपल के पेड़ में से आवाज आती है, “आ ये म्हारी अधपरणी, अधकुंवारी”। मुझे बहुत डर लगता है, इसलिए मैं अब तुलसा जी में जल सींचने नहीं जाऊँगी।“
यह सुनकर उसकी माँ अपनी पति और रिश्तेदारों के पास पीपल के पेड़ के पास गई और पूछा, “आप कौन हो? और ऐसा क्यों कहते हो?
तब उस पेड़ के कोटर में छिपे दूल्हे ने कहा, “मैं आपका जमाई हूँ। मेरी माँ ने चौथ माता को तिलकुट्टे की बोलवा करी थी। वह चौथ माता को तिलकुट्टे का भोग लगाना भूल गई। इसलिए चौथ माता ने कुपित होकर चौथ माता ने मुझे यहाँ छिपा रखा है। आप लोग मेरी माँ से जाकर कहो कि उन्होनें मेरे जन्म से लेकर आज तक जीतने भी तिलकुट्टे बोले है, उतने तिलकुट्टे का भोग चौथ माता के लगाकर उनसे अपने अपराध की क्षमा माँगे। जिससे मुझे इस कैद से छुटकारा मिले।“
तब लड़की के घरवालों ने सेठानी को जाकर पूरी बात बाताई। तब सेठानी ने सवा मण तिलकुट्टे का भोग चौथ माता को लगाकर उनसे अपने अपराध की उसने क्षमा मांगी और कहा, “हे चौथ माता, मेरी भूल को क्षमा कर दीजिए और मेरे पुत्र को मुझे वापस लौटा दीजिए।”
तब चौथ माता ने दूल्हे को वापस लौटा दिया। शुभ मुहर्त पर उन दोनों के सात फेरे पूरे करवाए गए। उसके बाद सेठानी चौथ माता को धन्यवाद देते हुए अपने पुत्र और पुत्रवधू को लेकर अपने घर आ गई।
हे चौथ माता, जैसा सेठानी के साथ हुआ किसी के साथ ना हो और कोई भी आपको बोला हुआ प्रसाद चढ़ाना ना भूलें। कहानी कहने वाले, सुनने वाले और हुंकारा भरने वाले सब पर अपनी कृपा करना।
“बोलों गणेश जी महाराज की जय, चौथ माता की जय”
चौथ माता की कहानी सुनने के बाद गणेश जी और लपसी-तपसी की कहानी भी सुननी चाहिए।
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