चौथ की कथा – Chouth ki Katha
चौथ माता की कथाएं – चौथ की कथा – Chouth Ki Katha
यह कहानी भादुडी चौथ और बैसाख चौथ दोनों में सुन सकते है।
भादुडी चौथ की कथा
एक बार एक साहूकार होता है। उसका एक बेटा और एक बेटी होती है। सेठ ने बचपन में ही अपने बेटे और बेटी की शादी करवा दी। बहु का लाड़ करने के लिए वह रोज उसको खाना खाने के लिए बुलाता था। उसकी बहु रोज खाना खाने के बाद बर्तन माँजने के लिए बाहर जाती और साहूकार बाहर कुर्सी पर बैठता।
बर्तन माँजते वक्त उसकी पड़ोसन पूछती, “बी बिंदणी, आज क्या जिमण खाया?” उसकी बहु कहती, “खाने को क्या वही बासी-कुसी।” साहूकार सुन लेता वह मन ही मन सोचता कि “घर में तो खाना रोज बनता है, फिर यह बासी-कुसी क्यों कहती है?” ऐसा करते-करते बहुत दिन हो गए, तो साहूकार ने सोचा कि यह तो रोज यहाँ के खाने को बासी-कुसी बताती है। कहीं सेठानी इसको सच में तो बासी-कुसी नहीं खिलाती?”
अगले दिन उसने साहूकारनी से कह कर खीर-खाँड का भोजन बनवाया और सेठानी से कहा, “जब बहु की थाली लगाए, तब मुझे भी बुलवा लेना।” साहूकारनी ने बढ़िया खीर खाँड का भोजन बनाया और बहु की थाली लगाते वक्त साहूकार को बुला लिया। साहूकार ने अपने हाथों से अपनी बहु की थाली लगाई। बहु खाना खाकर बर्तन माँजने गई। सेठ भी आँगन में आकर बैठ गया।
रोज की तरह पड़ोसन ने पूछा, तो बहु ने वहीं जवाब दिया, “खाने को क्या वहीं बासी-कुसी।” साहूकार ने जब यह सुना तो उसे बहुत गुस्सा आया कि बहु तो बदनामी करने वाली आ गई है। उसने अपने बेटे से कहा, “तेरी बहु रोज अपनी पड़ोसन को कहती है कि उसने बासी-कुसी खाया है। आज तो मैंने अपने हाथों से उसको खीर-खाँड का भोजन करवाया है। फिर भी वह कहती है बासी-कुसी। उससे पूछ कि वह हमारी बदनामी क्यों कर रही है।”
अपने पिता की बात सुनकर बेटे को भी बहुत गुस्सा आया। वह गुस्से से अपनी पत्नी के पास गया और बोल, “घर में रोज अच्छेअच्छे पकवान बनते है और तुम भी वही खाती हो। फिर तुम रोज पड़ोसन को बासी-कुसी क्यों बताती हो?
बहु ने कहा, “बासी-कुसी नहीं तो क्या है? ना आप कमाते हो और ना आपके पिताजी कमाते है। आपके दादा-परदादाओं की कमाई है और आप बैठे-बैठे खा रहे हो। ताजा तो तभी होगी जब आप भी कमाओ और आपके पिताजी भी कमाए।”
साहूकार के बेटे को यह बात चुभ गई उसने उसी वक्त परदेश जाने का निश्चय कर लिया। उसने अपने पिता को सारी बात बताकर परदेश जाने की आज्ञा माँगी। उसने अपने पिता से कहा, “पिताजी, मैं तो परदेश में जाकर काम करूँगा, आप यहाँ पंसेरी की दुकान कर लो, माँ सूत कातने का काम कर लेगी, मेरी पत्नी को रोज गेंहू में से जौ चुनने का काम दे देना।”
पुत्र ने माँ से आज्ञा लेते हुए कहा, “माँ, जब तक मैं परदेश से ना आऊँ जब तक अपनी बहु को बाहर मत निकालने देना।” इतना कहकर वह परदेश चला गया। साहूकारनी ने अपनी बहु से कहा, “बहु दिए की बुझावे तो चूल्हे की मत बुझाना और चूल्हे की बुझ जावे तो दिए की मत बुझने देना।” बहु ने हाँ कह दी।
साहूकार ने पंसेरी की दुकान कर ली, लेकिन तोल में गड़बड़ करने लगा। घटती पंसेरी से समान देता और बढ़ती पंसेरी से लेता। कोई उलाहना देता तो अपने बेटे की सौगंध खा लेता। लोग सोचते कि इतना बड़ा साहूकार अपने इकलौते बेटे की झुठी कसम थोड़ी खाएगा, इसलिए विश्वास कर लेते।
साहूकारनी भी बढ़ती पंसेरी से तो रुई ले लेती और सूत घटती पंसेरी से देती। कोई कुछ कहता तो अपने बेटे की कसम खा लेती। साहूकार की बेटी सहेलियों के साथ खेलने जाती तो उनकी गुड़िया उठा लाती और कोई शिकायत करता तो अपने दादा भाई की कसम खा लेती। ऐसा करते-करते छह बरस बीत गए।
एक दिन बहु ने जल्दी-जल्दी अपना काम खत्म करके चूल्हे की भी बुझा दी और दिए की भी बुझा दी। बहु ने सास से कहा, “माँ आज तो दिए की भी बुझ गई और चूल्हे की भी, मैं पड़ोस से ले आती हूँ। उसकी सास बोली, “रुक जा, मेरा थोड़ा स ही सूत बाकी बचा है, इसे कातकर मैं ले आऊँगी। बहु ने कहा, “माँ, आपका तो काम अभी बचा है, मेरा तो खत्म हो गया है, मैं अभी जाकर ले आती हूँ।”
इतना कहकर बहु पड़ोस में अग्नि लेने के लिए चली गई। वहाँ उसने देखा कुछ औरते पूजा कर रही थी। उसने उनसे अग्नि मांगी तो उन्होनें कहा, “अभी हम चौथ माता की पूजा कर रही है। तुम भी बैठ कर कहानी सुन लो और यदि ज्यादा जल्दी हो तो रसोई में जाकर चूल्हे से खुद ही ले लो। साहूकार की बहू वहीं बैठ गई।
पूजा के बाद उसने पूछा, “आप सब यह किसकी पूजा कर रही थी और इससे क्या होता है? औरतों ने कहा, “हम चौथ माता की पूजा कर रही थी। चौथ माता का व्रत और पूजा करने से निपुत्री को पुत्र की प्राप्ति होती है, अमर सुहाग मिलता है, बिछड़े का मिलन होता मिलता है।”
साहूकार की बहु ने कहा, “मेरे पति को भी परदेश गए हुए छह वर्ष हो गए है। मैं भी यह व्रत करूंगी। यह व्रत कैसे करते है?
औरतों ने कहा, “कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को पूरे दिन निराहार रहकर व्रत करते है और चौथ माता की पूजा करकर कहानी कहते है। रात को चाँद को अर्ध्य देकर व्रत खोलते है।”
साहूकार की बहु ने कहा, “लेकिन मेरी सास तो मुझे बाहर निकलने नहीं देती, मुझे कैसे पता चलेगा कि आज चौथ है।
औरतों ने कहा, “एक डिबिया में गेहूं के तीस दाने डालकर रख लो। रोज एक दाना निकालती जाना जिस दिन सारे दाने निकल जाए, उस दिन व्रत कर लेना।”
साहूकार की पत्नी उनसे तीस आखे लेकर चली गई और औरतों के कहे अनुसार व्रत करने लगी। उसकी सास उसको दिन में चार बार खाने को देती थी। चौथ वाले दिन सुबह की रोटी वह जमादारनी को दे देती, दोपहर की रोटी बछड़े को खिला देती, शाम की रोटी ओटियाना में गाढ़ देती और शाम की रोटी से व्रत खोल लेती। उसे इस तरह व्रत करते-करते छह वर्ष और बीत गए।
चौथ माता ने सोचा, “इसकी पूजा का फल नहीं दिया तो कोई भी मुझको नहीं पूजेगा। इसलिए चौथ माता ने साहूकार के बेटे के सपने में जाकर कहा, “साहूकार के बेटे, जाग रहा है या सो रहा है।“
साहूकार के बेटे ने जवाब दिया, “ना तो सो रहा हूँ और ना ही जाग रहा हूँ। चिंता में हूँ, सौ मण सूत उलझा हुआ पड़ा है।”
चौथ माता ने कहा, “अब चिंता मत कर। कल सुबह नहा-धोकर चौथ माता और बिंदायकजी का नाम लेकर घी का दीपक जलाकर दुकान पर बैठ जाना, तेरा सारा काम सुलझ जाएगा।”
सुबह उठ कर उसने सबको अपने सपने के बारे में बताया। कोई बोला, “सपने भी कभी सच होते है!” तो कोई बोला, “चिंता में था, इसलिए ऐसा सपना आ गया।” सब अपनी-अपनी बात कहते। वहीं एक बूढ़ा आदमी भी खड़ा था। उसने उससे कहा, “चौथ माता और बिंदायक जी का नाम लेकर घी का दीपक जलाने में क्या जाता है। यदि सपना सच हुआ तो तेरा काम बन जाएगा।”
उसकी बात सुनकर साहूकार का लड़का नहा-धोकर चौथ माता बिंदायकजी का नाम लेकर घी का दीपक जलाकर दुकान पर बैठ गया। थोड़ी देर में जिनको देना था, वो दे गए और जिनको लेना था, वो ले गए। शाम होने से पहले ही उसका सारा हिसाब-किताब हो गया। वह घर जाने के लिए निकल पड़ा।
रास्ते में उसने देखा, बांस के पेड़ों में आग लग रही थी और एक साँप उस ओर ही जा रहा था। उसने मन में सोचा, “ये नासमझ जानवर अभी जल कर मर जाएगा।” सो उसने उसे सिसकार कर वहाँ से हटा दिया। साँप ने गुस्से से कहा, “हे पापी हत्यारे, आज मेरी सौ बरस की उम्र पूरी होकर मेरी मुक्ति होने वाली थी, तूने सिसकार मुझे दूर हटा दिया। अब मुझे फिर से सौ बरस तक पेट पालते घूमना पड़ेगा, नहीं तो तुझे डसूँगा तो मुझे मुक्ति मिलेगी।”
साहूकार के बेटे ने कहा, “मैं बारह बरस बाद आज अपने घर वालों से मिलने जा रहा हूँ। मुझे एक बार उनसे मिलने दो फिर तुम मुझे डस लेना।”
साँप ने कहा, “तू तो अपने घर जाकर पलंग पर सो जाएगा, मैं पलंग पर नहीं चढ़ सकता।”
साहूकार के बेटे ने कहा, “या तो मैं पलंग पर सोऊँगा नहीं और यदि सोऊँगा भी तो अपनी पत्नी की चोटी नीचे लटका दूँगा। तुम उसके सहारे से पलंग पर चढ़ जाना।”
साँप ने कहा, “ठीक है, मैं आज रात बारह बजे तुझे डसने के लिए आऊँगा।”
साहूकार का बेटा घर पँहुच गया। उसे देख कर सब बहुत खुश हुए, लेकिन वह बहुत उदास था। वह मन में सोच रहा था, मैं परदेश में था तो इनको मेरे आने की आस तो थी। लेकिन कल जब मुझे मरा हुआ देखेंगे तो इनकी सारी खुशियों पर पानी फिर जाएगा। रात को उसने अपनी पत्नी से कहा, “हम छत पर सोएंगे, तुम सारी सीढ़ियाँ संवार देना।”
उसकी पत्नी ने एक सीढ़ी पर दूध की कटोरी रख दी, दूसरी पर बालू रेत बिछा दी, तीसरी पर इत्र छिड़क दिया, चौथी पर पुष्प बिछा दिए,इस तरह सातों सीढ़ियों पर सात अलग-अलग चीजे रख दी। दोनों छत पर जाकर सो गए। उसकी पत्नी उससे बात कर रही थी लेकिन वह तो मन में सोच रहा था कि अभी मेरा बैरी दुश्मन आएगा और मुझे डस लेगा।
आधी रात को साँप फुफकारता हुआ आया। वह पहली सीढ़ी पर चढ़ा और कटोरी में से दूध पीया और बोला, “हे रखने वाली, तेरा सुहाग-भाग अमर रहिजे, पर रहेगा कैसे वचनों से बँधा आया हूँ, डसूँगा तो सही।” दूसरी सीढ़ी पर चढ़ा और ठंडी-ठंडी रेत पर लोटा और बोला, “इतनी अच्छी रेत पर आज से पहले पता नहीं कब लोटा था। हे रखने वाली, तेरा सुहाग-भाग अमर रहिजे, पर रहेगा कैसे वचनों से बँधा आया हूँ, डसूँगा तो सही।”
तीसरी सीढ़ी पर चढ़ा और इत्र की खुशबू लेते हुए बोला, “आहा, इतनी अच्छी खुशबू आज से पहले कभी नहीं सूंघी। हे रखने वाली, तेरा सुहाग-भाग अमर रहिजे, पर रहेगा कैसे वचनों से बँधा आया हूँ, डसूँगा तो सही। इस तरह वह एक-एक सीढ़ी चढ़ता जाता और आशीष देता जाता। इस तरह वह छटी सीढ़ी पर पँहुच गया।
चौथ बिनायकजी ने सोचा, “आज यदि यह मर गया तो कलियुग में हमें कौन पूजेगा।” इसलिए चौथ माता तो बनी तलवार और बिनायक जी बने ढाल। चौथ माता ने साँप के टुकड़े-टुकड़े कर दिए और बिंदायक जी ने सारे टुकड़े ढाल के नीचे छुपा लिए।
आधी रात तक साहूकार का बेटा साँप का इंतजार करता रहा जब साँप नहीं आया तो वह अपनी पत्नी के साथ चौपड़-पासा खेलने लगा। इस कारण दोनों देर से सोये। इसलिए सुबह नींद नहीं खुली।
सुबह उसकी बहन खुशी से दौड़ती हुई आई और अपनी माँ से बोली, “माँ-माँ, दादा भाई कहाँ है? मुझे उनसे मिलना है।”
माँ ने कहा, “अभी वह छत पर सो रहा है उसे सोने दे, जब वह नीचे आ जाए तब मिल लेना।”
लेकिन उसकी बहन से इंतजार नहीं हुआ, “नहीं माँ मैं तो अभी अपने दादा भाई से मिलूँगी।”
इतना कहकर वह सीढ़ियों की तरफ दौड़ पड़ी। जैसे ही वह वहाँ पँहुची उसने देखा सारी सीढ़ियाँ खून से भरी हुई थी। वह जोर से चिल्लाई, “माँ-माँ, जल्दी आओं दादा भाई और भाभी को तो किसी ने मार दिया है।”
उसकी चीख सुनकर सभी दौड़कर वहाँ आए। सीढ़ियों पर खून देखकर वहाँ पर हंगामा मच गया। शोर-शराबा सुनकर साहूकार के बेटे और बहु जाग गए। साहूकार का बेटा बोला, “माँ मुझे नहीं मारा है। मेरे बैरी-दुश्मन की मृत्यु हुई है। अब इन सीढ़ियों को धुलवाओं और गाजे-बाजे के साथ हमें बंधाओ।”
साहूकार ने बैंड-बाजे के साथ उन दोनों का स्वागत किया। तब साहूकार के बेटे ने सबसे पूछा, “मेरे जाने के बाद किसने ऐसा पुण्य किया, जिससे मेरी जान बची है। साहूकार ने कहा, “मैंने तो कुछ नहीं किया, मैं तो घटती पंसेरी से सामान देता था और बढ़ती से लेता था। कोई बोलने आता था, तो तेरी सोगन्ध खा लेता था।”
माँ ने कहा, “मैं भी ऐसा ही करती थी।” बहन ने कहा, “मैं भी सहेलियों की गुड़िया उठा लाती थी और कोई झगड़ने आता था तो दादाभाई की सोगन्ध खा लेती थी।”
पत्नी ने कहा, “मैंने छह बरस तो कुछ नहीं किया, लेकिन छह बरस से हर महीने चौथ माता का व्रत किया है।”
उसकी सास बोली, “झूठ क्यों बोल रही हो? मैं तो तुम्हें रोज चार समय खाना देती थी।”
बहु ने कहा, “सुबह का खाना जमादारनी को देती थी, दोपहर का बछड़े को, शाम का ओटियाने में गाढ़ देती थी और रात के खाने से अपना व्रत खोलती थी। हर महीने बनिए से एक पैसे का पूजा का सामान मँगवाती थी। सो उसका भी हिसाब कर दो।”
जमदारनी से पूछा तो उसका छाबड़ा सोने का हो गया, बछड़े से पूछा तो उसके मुँह से फेफ के फूल झरने लगे, ओटियाना खोदा तो उसमें से सोने के चक्कर निकले। यह देख कर सासु बहु के पैर पड़ने लगी। तब बहु ने कहा, “माँजी ये उलटी गंगा मत बहाओ। मैं तो पैर पड़ूँ आपके और आप पड़ो चौथ माता के।”
हे चौथ माता, जैसा साहूकार की बहु को सुहाग दिया वैसा सबको देना। बढ़ती को बढ़ाना और घटती को पूरी करना। कहानी कहने वाले, सुनने वाले और हुंकारा भरने वाले सब पर अपनी कृपा करना और उनकी मनोकामना पूरी करना।
“बोलों गणेश जी महाराज की जय, चौथ माता की जय”
चौथ माता की कहानी सुनने के बाद गणेश जी और लपसी-तपसी की कहानी भी सुननी चाहिए।
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