लपसी और तपसी – Lapsi Aur Tapsi
कथा संग्रह – व्रत की कहानियाँ – लपसी और तपसी – Lapsi Aur Tapsi
लपसी और तपसी की कहानी – 1
दो सूरज भगवान के भक्त थे, लपसी और तपसी। तपसी तो हमेशा भगवान सूर्य की तपस्या करता रहता था और लपसी रोजाना सवा सेर लापसी बनाता और सूरज भगवान को भोग लगाकर खा लेता। एक दिन दोनों आपस में लड़ने लगे। लपसी कहता, “मैं सूरज भगवान का सबसे बड़ा भक्त हूँ।“ तापसी कहता, “नहीं, मैं सूरज भगवान का सबसे बड़ा भक्त हूँ।“
उसी समय वहाँ से नारद जी गुजर रहे थे। उन्होनें दोनों को लड़ते देखा तो उनसे कहा, “अरे भई, तुम लोग क्यों झगड़ रहे हो?” दोनों ने अपनी-अपनी भक्ति का तरीका बताते हुए अपने आपको सूरज भगवान का सबसे बड़ा भक्त बताया।
नारद जी ने कहा, “””मैं कल आप दोनों के झगड़े का फैसला कर दूँगा।“
अगले दिन जैसे ही वे दोनों नहा-धोकर अपने-अपने स्थान पर बैठे, नारद जी ने एक सवा लाख की एक-एक अंगूठी उनके सामने डाल दी। लपसी ने तो अंगूठी की तरफ देखा तक नहीं लेकिन तपसी ने अंगूठी को उठाकर अपने गोड़े के नीचे दबा ली।
नारद जी ने तपसी से कहा, “तपसी, लपसी ही सूरज भगवान का सबसे बड़ा भक्त है।“
तपसी ने कहा, वह कैसे महाराज?”
नारद जी ने कहा, “अपना पैर उठाओ।“
तपसी ने पैर उठाया तो उसके नीचे सवा लाख की मुँदड़ी (अंगूठी) निकली। यह देख कर तपसी ने कहा, “हे नारद जी महाराज, मुझसे बहुत बड़ा पाप हो गया। अब यह कलंक मेरे माथे से कैसे हटेगा?
नाराद जी ने कहा, “ब्राह्मण जीमा कर दक्षिणा दे तो खिलाने वाले को फल नहीं तो तुझे फल, साड़ी के साथ ब्लाउज दे तो देने वाले को फल नहीं तो तुझे फल, रोटिया बनने के बाद एक बाटिया (छोटी रोटी या कुत्ते की रोटी) बाएगी तो बनाने वाली को फल नहीं तो तुझे फल, कंडे बनाकर थेपला (एक छोटा कंडा) बनाएगी तो बनाने वाली को फल नहीं तो तुझे फल। कोई दिए से दिया जलाएगा तो तुझे फल। कहानी कथा कह कर दो नाम तेरे ले लेंगे तो कहानी कहने वाले को फल नहीं तो तुझे फल।”
तब से हर व्रत-उपवास की कथा-कहानी कहने के बाद लपसी-तपसी की कहानी कही और सुनी जाती है।
लपसी और तपसी की कहानी – 2
दो सुरज जी के भक्त थे, लपसी और तपसी। तापसी तो हमेशा भगवान सूर्य की तपस्या करता रहता था और लपसी रोजाना सव सेर लापसी बनाकर सूरज भगवान को भोग लगाकर खा लेता। एक दिन दोनों आपस में लड़ने लगे। लपसी कहता, “मैं सूरज भगवान का सबसे बड़ा भक्त हूँ।“ तापसी कहता, “नहीं, मैं सूरज भगवान का सबसे बड़ा भक्त हूँ।“
दोनों को लड़ते देख सूरज भगवान ने दोनों की भक्ति की परीक्षा लेने की सोची। अगले दिन जैसे ही वे नहा-धोकर अपने-अपने स्थान पर बैठे, सूरज भगवाल ने सवा लाख की एक-एक मुँदड़ी (अंगूठी) उनके सामने डाल दी। लपसी ने तो अंगूठी की तरफ देखा तक नहीं, लेकिन तपसी ने अंगूठी को उठाकर अपने गोड़े के नीचे दबा लिया।
सूरज भगवान ने तपसी से कहा, “तपसी-तपसी तेरी तपस्या में भंग पड़ गया।“
तपसी ने कहा, “वो कैसे, सूरज भगवान?
सूरज भगवान ने कहा, “अपना पैर उठा।“
तपसी ने पैर उठाया तो उसके नीचे सवा लाख की मुँदड़ी निकली।
यह देख कर तपसी ने कहा, “हे सूरज भगवान, मुझसे बहुत बड़ा पाप हो गया। अब यह कलंक मेरे माथे से कैसे हटेगा?
सूरज भगवान ने कहा, “ब्राह्मण जीमा कर दक्षिणा दे तो खिलाने वाले को फल नहीं तो तुझे फल, साड़ी के साथ ब्लाउज दे तो देने वाले को फल नहीं तो तुझे फल, रोटिया बनने के बाद एक बाटिया (छोटी रोटी या कुत्ते की रोटी) बाएगी तो बनाने वाली को फल नहीं तो तुझे फल, कंडे बनाकर थेपला (एक छोटा कंडा) बनाएगी तो बनाने वाली को फल नहीं तो तुझे फल। कोई दिए से दिया जलाएगा तो तुझे फल। कहानी कथा कह कर दो नाम तेरे ले लेंगे तो कहानी कहने वाले को फल नहीं तो तुझे फल।”
तब से हर व्रत-उपवास की कथा-कहानी कहने के बाद लपसी-तपसी की कहानी कही और सुनी जाती है। इसलिए हर व्रत-उपवास की कथा-कहानी कहने के बाद लपसी-तपसी की कहानी कहनी और सुननी चाहिए।
हे सूरज भगवान जैसे तपसी पर कृपा करी उनका कलंक दूर किया वैसे सभी के पाप काटना। सभी की मनोकामना पूरी करना। कहानी कहने, सुनने और हुंकारा भरने वाले सब पर अपनी कृपा करना और उनकी मनोकामना पूरी करना।
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