अमराइयाँ – Amraaiyan
शिक्षाप्रद लघु कहानियाँ – अमराइयाँ – Amraaiyan
अमराइयाँ
एक गाँव में सखाराम नामक किसान रहता था। वह बहुत ही दयालु था। वह रोज सवेरे अपनी झोंपड़ी के सामने अनाज के दाने डालता और कटोरे में पानी भर कर रखता था। बहुत सारे पक्षी वहाँ दाना चुगने आते थे। सखाराम की उन सबसे अच्छी दोस्ती हो गई थी। वह उन्हे अपने हाथों से दाना खिलाता। पक्षी भी कभी उसके सिर पर बैठते तो कभी उसके कंधे पर। सखाराम उन्हें देख कर बहुत खुश होता।
मेरा प्यारा मिट्ठू
उन्ही पक्षियों में एक तोता भी रोज दाना खाने के लिए वहाँ आता था। सखाराम अपने हाथों से उसे कभी हरी मिर्च तो कभी अमरूद खिलाता। तोता भी सखाराम को बहुत प्यार करता, वह हमेशा उसके कंधे पर बैठ रहता और यदि कोई दूसरा पक्षी उसके कंधे पर बैठना चाहता तो उसे भगा देता। कई बार तो वह उसे चिढ़ाने के लिए किसी दूसरे पक्षी को प्यार से अपने कंधे पर बिठा लेता तो तोता बहुत हंगामा करता। वह उससे रूठ जाता। यह देख कर सखाराम को बड़ा मजा आता।
जब सखाराम खाट पर सोता तो तोता उसके सिरहाने बैठ जाता और अपनी चोंच से उसके बालों को उठाता और गिराता रहता। सखाराम को उसका ऐसा करना बहुत अच्छा लगता। उसने प्यार से उसका नाम मिट्ठू रख दिया। मिट्ठू जहाँ कहीं भी होता सखाराम की एक आवाज पर झट से उड़कर उसके पास पँहुच जाता। पक्षियों के साथ समय बिताने के बाद वह पूरे खुशी मन से खेतों में काम करता। इस तरह उसके दिन बड़े मजे से गुजर रहे थे।
आ गई पक्षियों की शामत!
कुछ दिनों बाद सखाराम की शादी सोनी नामक एक लड़की से हो गई। सखारम की पत्नी सोनू को उसका पक्षियों को दाना डालना बिल्कुल पसंद नहीं था। एक तो अनाज का नुकसान और दूसरा पक्षी सारा दिन आँगन गंदा कर देते थे। वह रोज इस बात पर सखाराम से कलेश करती। लेकिन सखाराम ने पक्षियों को दाना डालना बंद नहीं किया।
एक बार उसे कुछ दिनों के लिए बाहर जाना पड़ा। उसने सोनी को कहा, “मेरे पीछे से पक्षियों को दाना-पानी डालते रहना। उनका पूरा ध्यान रखना। इतना कहकर सखाराम चला गया। पीछे से सोनी ने पक्षियों को दाना-पानी डालना बंद कर दिया और पक्षी आते तो उन्हें झाड़ू से मार कर भगा देती। धीरे-धीरे पक्षियों का आना कम होते-होते बिल्कुल बंद हो गया।
कुछ दिनों में सखाराम वापस आ गया। अगले दिन उसने पक्षियों को दाना डाला तो एक भी पक्षी नहीं आया। सखाराम रोज पक्षियों को दाना डालता पर सोनी के डर से उन्होनें आना बंद कर दिया था। लेकिन एक दो दिन बाद मिट्ठू ने फिर से आना शुरू कर दिया। वह अब भी रोज सखाराम के पास आता रहता। लेकिन उसका आना भी सोनी को बिल्कुल भी नहीं सुहाता। उसने मिट्ठू बहुत कोशिश की कि मिट्ठू भी वहाँ आना बंद कर दे, लेकिन मिट्ठू ने आना बंद नहीं किया।
बल्कि वह तो किसी ना किसी तरह सोनी को परेशान करता रहता। कभी उसके सुखाए अनाज को बिखेर देता, तो कभी जब वह झाड़ू लगाती तो फिर से आँगन गंदा कर देता, कभी जब वह खाना खाने बैठती तो उसका पानी का गिलास फैला देता। सोनी उसकी करतूतों पर बहुत गुस्सा होती। जितना सोनी उस पर गुस्सा होती और चिल्लाती, मिट्ठू उसको उतना ही ज्यादा परेशान करता।
अब तेरी खैर नहीं
एक बार सखारम को रात में ही किसी काम से गाँव के बाहर जाना पड़ा। सुबह जब मिट्ठू सखाराम से मिलने आया तो सखाराम वहाँ नहीं था और सोनी ने उसके लिए दाना-पनी नहीं रखा था। सोनी ने अनाज धोकर सुखाने के लिए आँगन में डाल रखे थे। मिट्ठू एक तरफ बैठ कर अनाज खाने लगा। यह देख कर सोनी को बहुत गुस्सा आया। वह झाड़ू लेकर मिट्ठू के पीछे भागी। मिट्ठू जी भाग कर झोंपड़ी में घुस गए।
सोनी जोर से चिल्लाते हुए उसके पीछे भागी, “रूक, भागता कहाँ है, आज तो मैं तुझे अच्छा मजा चखाऊँगी।”
वह भी उसके पीछे-पीछे झोंपड़ी में घुस गई और झोपड़ी का दरवाजा बंद कर दिया। वह झाड़ू लेकर मिट्ठू को मारने लगी। मिट्ठू मियां बचने के लिए कभी इधर तो कभी उधर भागने लगे। उनकी इस भाग दौड़ी में झोंपड़ी का सारा समान अस्त-व्यस्त हो गया। यह देख कर तो सोनी का पारा सातवें आसमान पर पँहुच गया। वह चिल्लाई, “आज तो मैं तुझे मार कर ही दम लूँगी।”
वह बेतहाशा मिट्ठू पर प्रहार कर रही थी। मिट्ठू जी झोपड़ी में इधर से उधर भागते हुए निढाल हो चले थे। उन्हें बचने का कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा था। तभी मिट्ठू को झोपड़ी की छत में एक छोटा-सा छेद नजर आया। वह जल्दी से उसमें घुस गया और झोंपड़ी से बाहर निकल गया। सोनी गुस्से में सर पकड़ कर बैठ गई। अगले दिन सखाराम वापस आ गया, लेकिन मिट्ठू वहाँ नहीं आया।
सखाराम ने मिट्ठू को बहुत आवाज लगाई। लेकिन जो मिट्ठू सखाराम की एक आवाज पर भागता हुआ आ जाता था, उसके इतना पुकारने पर भी नहीं आया। वह समझ गया कि उसके पीछे से सोनी ने उसके मिट्ठू के साथ कुछ कर दिया है, नहीं तो मिट्ठू तो उसकी एक आवाज में दौड़ा चला आता। अब सखाराम खुश नहीं रहता था। उसके दोस्त उससे दूर हो गए थे। उसका किसी काम में मन नहीं लगता था। वह दुखी और चुपचाप रहने लगा।
मिट्ठू तो परिवार वाला हो गया!
अब वह चुपचाप सोनी जो भी कहती वह काम कर देता। सोनी उसके इस बदले हुए स्वभाव से हतप्रभ थी, लेकिन अब वह खुश थी। उसे परेशान करने वाला मिट्ठू जा चुका था। इसी तरह कई दिन निकल गए। गर्मियों के दिन आ गए। सोनी ने सखाराम से अमराइयों में से आम तोड़कर लाने के लिए कहा। सखाराम ने चुपचाप अपना झोला उठाया और अमराइयों की तरफ निकल पड़ा।
वह अभी अमराइयों में घुसा ही था कि उसे अपने मिट्ठू की चिरपरिचित आवाज सुनाई दी, “मिट्ठू-मिट्ठू”! उसने खुशी से आवाज की दिशा में देखा। इतने में मिट्ठू उसके कंधे पर आकर बैठ गया। अपने मिट्ठू को जीवित देख कर सखाराम की खुशी की कोई सीमा ही नहीं रही।
वह उसे प्यार से सहलाते हुए बोला, “मेरे प्यारे मिट्ठू, तुम मुझे छोड़कर क्यों चले गए। मेरा तुम्हारे बिना बिल्कुल भी मन नहीं लगता था। मुझे तो लगा तुम्हें कुछ हो गया है। तुम सोच भी नहीं सकते तुम्हें अपने सामने देख कर मैं कितना खुश हूँ। मेरे मन से कितना बड़ा बोझ उतर गया है। मैंने सोचा था कि सोनी ने तुम्हें मार दिया है। अब मैं तुम्हें अपने साथ ही लेकर चलूँगा।”
तभी मिट्ठू उसक कंधे से हटकर चहचहाते हुए एक तरफ उड़ने लगा। सखाराम ने कहा, “अच्छा तो तुम मुझे अपने साथ कहीं ले जाना चाहते हो।” और सखाराम उसके पीछे-पीछे चलने लगा। एक पेड़ के पास जाकर मिट्ठू रूक गया और उस पेड़ पर बने एक कोटर में घुस गया। थोड़ी देर बाद उस कोटर में से एक तोती और तीन छोटे-छोटे तोते बाहर आए। मिट्ठू कभी सखाराम के पास जाता तो कभी उन सब के पास।
तब सखाराम ने कहा, “अच्छा, तो मेरे मिट्ठू ने यहाँ पर अपना पूरा परिवार बसा लिया है। मैं तुम्हारे परिवार को देखकर बहुत खुश हूँ, अब मैं तुम्हें अपने साथ चलने के लिए नहीं कहूँगा। तुम यहाँ अपने परिवार के साथ खुशी से रहो मैं कभी-कभी तुमसे मिलने आता रहूँगा।” इतना कहकर सखाराम जाने के लिये हुआ तो मिट्टू उसके कपड़ों को पकड़कर एक तरफ ले जाने लगा। सखाराम उसके साथ गया।
दोस्त की प्यारी भेंट
घनी अमराइयों के बीच एक पेड़ के नीचे दो सन्दूक रखे हुए थे, एक बहुत बड़ा और दूसरा छोटा सा। मिट्ठू ने सखाराम का हाथ पकड़कर सन्दूक को उठाने का इशारा किया। सखाराम ने कहा, “तो मेरा मिट्ठू मुझे कुछ भेंट भी देना चाहता है।” इतना कहकर उसने छोटा वाला सन्दूक उठा लिया और घर आ गया।
उसने खुशी से चहकते हुए सोनी को बताया, “सोनी आज पता है मैं किससे मिल कर आ रहाआ हूँ?
सोनी ने उसे इतना खुश देखकर आश्चर्य से पूछा, “किससे?”
सखाराम ने कहा, “अपने मिट्ठू से, तुम्हें पता है, उसने अमराइयों मे अपना पूरा परिवार बसा लिया है। और तो और उसने मुझे भेंट भी दी। वहाँ पर दो सन्दूक रखे हुए थे, एक बहुत बड़ा और दूसरा छोटा सा। मैं तो छोटा वाला सन्दूक लेकर आ गया।”
इतना कहकर उसने सन्दूक को खोला, तो उसमें हीरे-मोती जगमगा रहे थे। सखाराम ने खुश होते हुए कहा, “देखो हमारे मिट्ठू ने हमें कितनी अच्छी भेंट दी है।
लेकिन सोनी चिल्लाते हुए बोली, “तुम तो निरे मूर्ख हो। तुम्हें बड़ा वाला सन्दूक लाना चाहिए था। मैं अभी जाकर बड़ा वाला सन्दूक लेकर आती हूँ।”
इतना कहाकर वह अमराइयों की तरफ दौड़ पड़ी। सखाराम उसे रोकने के लिए आवाज लगाता रहा, लेकिन वह नहीं रुकी। वह हाँपते हुए सखाराम की बताई हुई जगह पर पहुँची और वहाँ रखा बड़ा वाला सन्दूक उठा लिया। सन्दूक बहुत भारी था। सोनी से चला भी नहीं जा रहा था लेकिन अपने लोभ के कारण वह बदहवास उस सन्दूक को अपने सर पर उठाए चली जा रही थी।
तभी एक पत्थर उसे उसका पैर टकराया और वह गिर पड़ी। उसके गिरते ही सन्दूक भी नीचे गिर गया और खुल गया। सन्दूक में हीरे-मोतियों की जगह पत्थर भरे हुए थे। एक पत्थर उछल कर सोनी के सर से आ लगा। उसके सर से खून की धार फूट पड़ी। वह वहीं बेहोश हो गई। जब उसे होश आया तो वह अपनी झोंपड़ी में थी। सखाराम और मिट्ठू उसके पास बैठे हुए थे।
सखाराम ने कहा, “मिट्ठू ही मुझे तुम्हारे पास लेकर गया था। जिससे मैं तुम्हें यहाँ ला सका। सही समय पर इलाज मिलने से तुम्हारी जान बच गई।”
सोनी अपने कृत्य पर बहुत शर्मिंदा थी। जिस मिट्ठू को उसने जान से मारने की कोशिश की थी, आज उसकी वजह से ही उसकी जान बची थी। उसने सखाराम और मिट्ठू से अपने किए की माफी मांगी। उस दिन के बाद से सोनी भी सखाराम के साथ पक्षियों को दाना डालने लगी। मिट्ठू का तो वह विशेष ध्यान रखती। उसके लिए ताजा हरी मिर्च और अमरूद लाकर रखती और उसे खिलाती।
अब सखाराम भी बहुत खुश रहने लगा और पहले के समान ही जोश से काम करने लगा।
सीख
- जानवर भी प्यार और नफरत की भाषा समझते है। इसलिए हमें जानवरों के प्रति संवेदनशील होना चाहिए।
- लालच बुरी बला है। ज़्यादा का लालच हमें मुसीबत में भी डाल सकता है।
~~~~~~~~~~~~~~~~ ****************~~~~~~~~~~~~~~~~~~
पिछली कहानी – अपने हाथ के स्पर्श से सोना बनाने वाले राजा की कहानी – लालची राजा
तो दोस्तों, “कैसी लगी ये रीत, कहानी के साथ-साथ मिली सीख”? आशा करती हूँ आप लोगों ने खूब enjoy किया होगा।
अगली कहानी –
अब एक छोटा सा काम आपके लिए भी, अगर यह कहानी आपको अच्छी लगी हो, तो इस पेज को Bookmark कर लीजिये और सोशल मीडिया जैसे Facebook, Twitter, LinkedIn, WhatsApp (फेसबुक टि्वटर लिंकडइन इंस्टाग्राम व्हाट्सएप) आदि पर अपने दोस्तों को शेयर कीजिए।
अपनी राय और सुझाव Comments Box में जरूर दीजिए। आपकी राय और सुझावों का मुझे इंतजार रहेगा, जिससे मैं अपनी कहानियों में और सुधार कर सकूँ।