संगत का असर – Sangat Ka Asar
सुनी-अनसुनी कहानियाँ – संगत का असर – Sangat Ka Asar
एक बार एक बंजारा रामभरोसे अपनी बंजारन निमकी के साथ ऊँट पर बैठ कर व्यापार के लिए किसी नगर में जा रहे थे। रास्ते में एक जंगल पड़ा। वे जंगल से गुजर रहे थे कि अचानक बंजारे रामभरोसे की नजर एक भेड़-बकरियाँ चराने वाले एक गड़रिये पर पड़ी, जो जंगल में बह रहे नाले में मुँह डूबा कर ऐसे पानी पी रहा था, जैसे जानवर पीते है।
ये तो संगत का असर है!
उसे इस तरह पानी पीते देख बंजारे ने अपनी बंजारन से कहा,
रामभरोसे – ये देखो! ये मूर्ख आदमी तो जन्म से ही जानवर है।
निमकी – जन्म से कोई इंसान जानवर नहीं होता। यह तो इसकी संगत का असर है। यह बेचारा सारे दिन भेड़ बकरियों व जानवरों के साथ रहता है। उनकी देखा-देखी यह भी उन्हीं की तरह पानी पीना सीख गया। इसकी यह आदत भी जानवरों की संगत के कारण पड़ी है। यदि यह इंसानों की संगत में रहेगा तो इसमें भी समझ आ सकती है।
रामभरोसे – मैं तुमसे सहमत नहीं हूँ। यह जानवर ही है, जानवरों के साथ रहते हुए इसकी बुद्धि भी जानवरों जैसी हो गयी है। अब इसे कोई कितना भी क्यों ना समझाए, यह उम्र भर जानवर ही रहेगा।
इस बात पर दोनों में तगड़ी बहस शुरू हो गयी। दोनों ही एक-दूसरे की बात मानने को राजी नहीं थे।
निमकी – इन्सान के गर्भ से पैदा हुआ कोई भी हमेशा जानवर नहीं रह सकता। यदि कोई इसे पढाये-लिखाये, सिखाये-समझाए और इसे होशियार बनाने की कोशिश करे तो यह भी वे सभी कार्य कर सकता है, जो आप कर रहे है। यहाँ तक कि यह आपकी तरह व्यापार भी कर सकता है।
रामभरोसे – व्यापार और ये गंवार! ये व्यापार तो क्या किसी से ढंग से बात भी नहीं कर सकता।
निमकी – यदि इसे अच्छी संगत में रखकर थोडा पढ़ाया-लिखाया जाये तो यह व्यापार तो क्या, आप पर हुकूमत भी कर सकता है।
साबित करके ही मुँह दिखाना
यह सुनकर रामभरोसे को निमकी पर गुस्सा आ गया। उसने उसी समय उसे अपने ऊँट पर से उतार दिया और बोला,
रामभरोसे – तो ठीक है, अब तू इस जानवर के साथ ही रह। इसके साथ रह कर इसे काबिल बना कर दिखा। मैं भी देखूं, तेरी संगत का असर इस गंवार गडरिये पर! यदि ऐसा नहीं कर सकी तो कभी मुझे अपना मुँह मत दिखाना।
यह कहकर रामभरोसे निमकी को वहीं जंगल में छोड़कर चला गया। निमकी भी कोई कच्ची खिलाड़ी नहीं थी, बड़ी हिम्मत वाली थी। वह बिल्कुल नहीं घबराई, उसने निश्चय कर लिया कि वो गडरिये के साथ रहकर उसे शिक्षित करेगी और रामभरोसे के सामने अपनी बात साबित करके रहेगी। वह गडरिये के पास गयी और उससे बड़े प्यार से बोली,
निमकी – बेटा, मैं अपने रिश्तेदारों के साथ इस जंगल से जा रही थी। लेकिन मैं अपने काफिले से बिछुड़ गई क्या कुछ दिनों के लिए तुम मुझे अपने साथ रख लोगे? जब मेरा काफिला यहाँ से दुबारा निकलेगा तो मैं वापस चली जाऊँगी।
गड़रिया उसे अपने साथ झोंपड़ी में ले आया। निमकी ने सोने के बहुत सारे गहने पहन रखे थे। उसने अपने सारे गहने उतार के एक गठरी में रख लिए और उनमे से कुछ गहने बेच दिये। फिर उसने उस धन से खाने-पीने, कपड़े व जरुरत का सामान ख़रीदा और अच्छा खाना बनाकर खिलाया। गड़रिये को तो मानों एक माँ मिल गई थी।
परीक्षा की घड़ी
धीरे-धीरे वह उसकी हर बात मानने लगा। निमकी उसे उठने-बैठने, खाने-पीने और बोल-चाल के तरीके समझाने लगी। वह गडरिये की अच्छी बातों की तारीफ़ करती और गलत बात के लिए समझाती। वह उसे देश-विदेश और महापुरुषों की कहानियाँ सुनाकर उसका ज्ञानवर्धन करती। उसने उसे अक्षर ज्ञान देना भी शुरू कर दिया।
गड़रिया भी बड़े मनोयोग से उसकी बातें सुनता और सीखता। गड़रिये की बुद्धि बहुत तेज थी। वह निमकी की सिखाई हर बात आसानी से सीखता चला गया। थोड़े दिनों में ही गडरिया पढना-लिखना, ढंग से उठना-बैठना, बोलना-चालना सब सीख गया।
वह उसे लेकर पास के नगर में आ गई और वहीं एक घर में रहने लगी। वहाँ पर निमकी ने उसे घुडसवारी और थोड़ी तलवारबाजी भी सिखा दी। फिर निमकी ने गडरिये को राजदरबार में भेजना शुरू कर दिया और उसे समझा दिया कि वह वहाँ पर हो रही सारी कार्यवाहियों को गौर से देखे और वापस आकर एक-एक बात मुझे बताये।
गड़रिया ऐसा ही करता। जब वह वापस आता तब वह उसे राजदरबार की सारी बातें बताता। निमकी उसे हर बात का मतलब समझाती। जल्द ही गडरिया राजनीती व प्रशासन की बातें समझने लगा। जब उसे लगा कि गडरिया अब पूरी तरह से शिक्षित हो गया है, तब उसने किसी तरह उसे राजदरबार में सेवक लगवा दिया।
बुद्धि का निशाना!
एक बार गड़रिये ने निमकी को बताया कि राजा अपने सैनिकों के साथ शिकार पर जा रहे है तो निमकी ने गड़रिये से राजा के पीछे जाने को कहा। उसने गड़रिये के साथ चूरमे के लड्डू और पानी रख दिया। जब राजा शिकार के लिए निकल तो गडरिया भी अपना घोड़ा ले कर राजा के दल के पीछे चल पड़ा।
जंगल में शिकार का पीछा करते-करते राजा अपने सैनिकों से काफी आगे निकल गया। बस एक गड़रिया ही उसके पीछे-पीछे आ रहा था। रात होते ही जंगल में घना अँधेरा छा गया। राजा को अब आगे का रास्ता भी दिखाई नहीं दे रहा था। उसने पीछे मुड़ कर देखा तो उसे अपने दल के सैनिक भी नहीं दिखे। बस उसे सिर्फ गडरिया अपने घोड़े पर सवार आता दिखाई दिया।
राजा को अपने सिपाहियों पर बहुत गुस्सा आया। लेकिन अब क्या हो सकता था। गड़रिया जल्दी से राजा के पास पँहुचा और उन्हें प्रणाम किया और कहा,
गड़रिया – महाराज, बहुत रात हो चुकी है, रास्ता भी साफ दिखाई नहीं दे रहा है। जंगल में खतरनाक जंगली जानवरों का डर भी है। इसलिए मेरी तो यही सलाह है कि आप यही रुक जाईये।
राजा – कौन हो तुम और मेरा पीछा क्यों कर रहे हो?
गड़रिया – महाराज मैं तो आपके नगर में रहने वाला एक साधारण सा आदमी हूँ। मैं तो अपने किसी काम से दूसरे नगर में जा रहा था। आपको अकेले जाते देखा तो आपकी सुरक्षा के लिए आपके पीछे हो लिया।
राजा – तुम्हें मेरी सुरक्षा की चिंता करने की कोई आवश्यकता नहीं हैं। अभी थोड़ी देर में हमारे सैनिक यहाँ आ जाएंगे।
गड़रिया – ठीक है महाराज, जब तक आप के सैनिक यहाँ नहीं आते तब तक आप मुझे अपने साथ रहने दीजिए।
राजा – ठीक है।
गडरिये ने राजा को घोड़े से उतार एक जगह बैठाकर पानी पिलाया। फिर निमकी द्वारा अपने साथ बांधे चूरमे के लड्डू राजा को खिलाकर सुला दिया। फिर खुद नंगी तलवार हाथ में ले कर पूरी रात पहरा देता रहा। दिन उगने पर राजा व गडरिया अपने-अपने घोड़ों पर सवार हो कर राजमहल की तरफ रवाना हो गए। रास्ते में राजा के सैनिक भी मिल गए।
लगा तीर निशाने पर!
फिर वे सब राजमहल आ गए। राजा ने गडरिया की सेवा से खुश होकर कहा,
राजा – मैं तुम्हारी सेवा से बहुत खुश हूँ, और तुम्हें इनाम देना चाहता हूँ। तुम मुझसे जो चाहिए वह मांग लो।
गडरिया – महाराज! मैं अपने घर जाकर अपनी माँ से पूछकर बताऊँगा।
राजा – ठीक है, तुम अपनी माँ से पूछ कर आ जाओ।
घर आ कर गडरिये ने निमकी को सारी कहानी सुनाई और उससे सलाह लेकर राजा के पास गया और बोला,
गड़रिया – महाराज! यदि आप मुझसे प्रसन्न है तो आप मुझे अपने राज्य का कर व चुंगी संग्रहण अधिकारी बना दीजिये।
राजा ने उसे कर व चुंगी संग्रहण अधिकारी बना दिया। अब गडरिया नगर द्वार पर राज्य में व्यापार करने आने वाले सभी छोटे बड़े व्यापारियों से कर वसूली करने लगा। वह अपना काम पूरी तन्मयता और ईमानदारी से करता था। इसलिए वहाँ आने-वाले सभी व्यापारी उसके आगे-पीछे खुशामद करटे घूमते रहते कि कहीं वह कर ज्यादा ना लगादे। गडरिये की तो तगड़ी पूछ हो गयी।
अब समय आ गया?
एक दिन निमकी ने उसे समझाया कि जब भी रामभरोसे नाम का बंजारा या व्यापारी इस नगर में आये तो उसका कर आसानी से जमा मत करना और घर आकर मुझे भी बताना। इसी तरह कुछ वर्ष गुजर गए। एक दिन वही बंजारा अपना सामान ले कर उस शहर में बेचने आया। नगर के प्रवेश द्वार पर उसने कर अदा करने के लिए गड़रिये को अपना नाम रामभरोसे बताया तो गड़रिये को निमकी का कहा याद आ गया।
उसने रामभरोसे को इंतजार के लिए कह दिया। रामभरोसे कई बार गड़रिये के पास गया लेकिन गड़रिये ने हर बार उसे इंतजार करने के लिए कह दिया। रामभरोसे परेशान होकर सोचने लगा, “कर जमा नहीं हुआ तो मैं मेरा सामान नगर में नहीं ला पाऊँगा। यहाँ पड़े-पड़े तो मेरा माल ख़राब हो जायेगा। इतना महंगा माल है। खाने-पीने की वस्तुएं व फल आदि तो ख़राब ही हो जायेंगे। कब तो अपना माल बेचूंगा और कब इस शहर से नया माल खरीदूंगा?
गड़रिये द्वारा कर नहीं लेने से रामभरोसे दुखी और परेशान हो रहा था। अब तो वह हाथ जोड़ कर गड़रिये की मिन्नत करने लगा। उसने खूब मिन्नतें की लेकिन गडरिये ने शाम होने तक उसका कर जमा नहीं किया और शाम होते ही छुट्टी कर अपने घर चलता बना। घर आकर गड़रिये ने निमकी को सारी बात बता दी।
देखा संगत का असर!
रामभरोसे भी उसके पीछे-पीछे उसके घर पहुँच गया। उसने सोचा, “अधिकारी के घर पर शायद कुछ ले दे कर मामला सुलझ जाएगा।“
निमकी ने अपने पति रामभरोसे को पहचान लिया। उसने गड़रिये से कहा कि वह मेहमान खाने में जाकर रामभरोसे से बात करे। मेहमान खाने में गडरिया तो ऊँचे आसन पर बैठा था और रामभरोसे उसके सामने हाथ जोड़े खड़ा कर जमा कर समान नगर में लाने की अनुमति देने की मिन्नते कर रहा था।
निमकी खिड़की से यह सब देख रही थी। उसने सेवक को भेज कर उसने गडरिये को अन्दर बुलाया। घर के अन्दर जाने के लिए गडरिया जैसे ही उठा, रामभरोसे ने चापलूसी करने के लिए उसकी जूतियाँ उठाकर उसके आगे कर दिए। रामभरोसे के हाथ में गडरिये की जूतियाँ देखते ही निमकी झट से बाहर आ गयी और रामभरोसे के हाथ से जूतियाँ लेकर बोली,
निमकी – बस बहुत हो गया।
रामभरोसे अपनी पत्नी निमकी को अपने सामने देख कर आवाक रह गया और बोला,
रामभरोसे – अरे निमकी! तूम यहाँ?
निमकी – हाँ! अब देख लिया संगत का असर! ये वही गडरिया है, जिसे आप जानवर कह रहे थे। यह मेरी संगत का ही असर है कि आप जैसा बड़ा व्यापारी आज इसकी जूतियाँ लेकर इसके आगे खड़ा हुआ है।
रामभरोसे अपने किए पर बहुत शर्मिंदा हुआ, लेकिन उसे अपनी पत्नि निमकी की बुद्धिमता पर बहुत गर्व हुआ। निमकी रामभरोसे के साथ जाने लगी तो गड़रिये नए उन्हें रोक लिया और पुत्र के समान उनके साथ रहने लगा।
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तो दोस्तों, कैसी लगी कहानी संगत का असर! मजा आया ना, आशा करती हूँ आप लोगों ने खूब enjoy किया होगा। फिर मिलेंगे कुछ सुनी और कुछ अनसुनी कहानियों के साथ। तब तक के लिए इजाजत दीजिए।
पिछली कहानी – यमराज जी की धरती की सैर की कहानी – यमराज की शादी
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