बच्चों का न्याय – Bachcho Ka Nyaay
सुनी-अनसुनी कहानियाँ – बच्चों का न्याय – Bachcho Ka Nyaay
त्रिपुर देश में राजा कमलाकर राज्य करते थे। उनकी पत्नि का नाम लीलावती था। शादी के कई वर्ष होने के बाद भी जब रानी के कोई संतान नहीं हुई, तब राजा कमलाकर ने पद्मावती मानक राजकुमारी से दूसरी शादी कर ली। दूसरी शादी होने के बाद भी कई वर्ष बीत गए, लेकिन राजा को संतान की प्राप्ति नहीं हुई।
बड़ी रानी लीलावती बहुत ही दुष्ट स्वभाव की थी। लेकिन छोटी रानी पद्मावती उसके ठीक विपरीत मृदुल स्वभाव की और भगवान शिव की बहुत बड़ी भक्त थी। उसने संतान प्राप्ति के लिए भगवान शिव का व्रत किया और उनसे संतान प्राप्ति के लिए प्रार्थना की। भगवान शिव की कृपा से थोड़े समय बाद ही रानी पद्मावती गर्भवती हो गई। राजा बहुत खुश हुआ, लेकिन बड़ी रानी लीलावती जल-भून गई।
अच्छाई का मुखौटा
अब राजा रानी पद्मावती का बहुत ख्याल रखने लगे। यह देख कर रानी लीलावती के तन-बदन में आग लग जाती। वह ऊपर से तो छोटी रानी पद्मावती से बहुत अच्छा व्यवहार करती थी, लेकिन अंदर ही अंदर उससे घृणा करती।
रानीपद्मावती के प्रसव का समय नजदीक था। तभी पड़ोसी राज्य ने त्रिपुर देश पर आक्रमण कर दिया। राजा कमलाकर को युद्ध के लिए रणभूमि में जाना पड़ा। जाने से पहले राजा कमलाकर ने रानी पद्मावती की पूरी जिम्मेदारी रानी लीलावती को सौंपते हुए कहा,
राजा कमलाकर – प्रिये, मुझे अपने देश की सुरक्षा करने के लिए मुझे युद्धक्षेत्र में जाना पड़ेगा। रानी पद्मावती के प्रसव का समय निकट ही है। तुम उसका पूरा ध्यान रखना।
रानी लीलावती – आप किसी बात की चिंता ना करें महाराज, आप निश्चिंत होकर युद्ध के लिए जाइए मैं पद्मावती का अपनी छोटी बहन के समान ख्याल रखूँगी।
रानी लीलावती से आश्वासन पाकर राजा कमलाकर युद्ध पर चले गए। राजा के जाने के बाद रानी लीलावती ने रानी पद्मावती का पूरा ख्याल रखा। पद्मावती के प्रसव का समय आ गया था और रानी को राजा का संदेश भी मिल गया था कि उन्होनें यद्ध जीत लिया है और जल्द ही वे वहाँ पँहुचने वाले है।
काली करतूत
रानी लीलावती ने मन ही मन सोचा कि राजा कमलाकर के आने से पहले प्रसव हो जाना चाहिए। तभी दाई ने रानी को बताया,
दाई – बधाई हो रानी साहिबा, रानी पद्मावती ने दो जुड़वा बच्चों को जन्म दिया है, एक लड़का और एक लड़की।
रानी लीलावती ने दाई की बहुत सारा धन देते हुए कहा,
रानी लीलावती – खबरदार इन बच्चों के बारे में किसी को कुछ मत बताना। दोनों बच्चों को लाकर मुझे दे दो और यह नगर छोड़ कर कहीं दूर चली जाओ।
दाई ने दोनों बच्चों को लाकर रानी लीलावती को दे दिया। रानी लीलावती ने दोनों बच्चों को मार कर नगर के बाहर स्थित एक जंगल में गाड़ दिया और रानी पद्मावत के पास एक ईंट और एक पत्थर रख दिया। तभी राजा कमलाकर राजमहल लौट आए। रानी लीलावती ने आरती उतार कर राजा का स्वागत किया।
राजा कमलाकर ने आते ही रानी पद्मावती और उसके बच्चे के बारे में पूछा। रानी लीलावती ने उदास होते हुए कहा,
रानी लीलावती – मुझे तो यह छोटी रानी कोई जादूगरनी लगती है। उसने एक ईंट और एक पत्थर को जन्म दिया है।
राजा तुरंत रानीके कक्ष में गया। रानी पद्मावती को अभी होश नहीं आया था। उसने देखा कि उसके पास में एक ईंट और एक पत्थर रखे हुए थे। यह देख कर राजा को बहुत गुस्सा आया। उसने रानी पद्मावती को देश निकाला दे दिया। रानी पद्मावती को होश आने पर रानी लीलावती ने उससे कह दिया कि उसने ईंट-पत्थर को जन्म दिया है। इसलिए राजा ने उसे देश निकाला दे दिया है।
ये तो अन्याय है!
रानी पद्मावती ने राजा के पास जाकर विनती की, लेकिन राजा तो उसका मुख भी नहीं देखना चाहते थे। निराश होकर रानी जरूरत का थोड़ा-सा सामान लेकर राजमहल से निकल गई। भाग्यवश वह उसी जंगल में उसी जगह पहुँच गई, जहाँ रानी लीलावती ने उसके बच्चों को गाड़ दिया था।
वह वहीं पर कुटिया बनाकर रहने लगी। कुछ दिनों बाद उस जगह पर दो पौधे निकल आए। रानी पद्मावती उन पौधों में पानी देने लगी। एक ही साल में वह पौधे बहुत बड़े हो गये और उनमें फल लग गए। रानी पद्मावती जब उन पौधों में पानी देती तो उसकी शाखाये नीचे झुक कर रानी से लिपट जाती। रानी भी बड़े प्यार से उन्हें सहलाती।
एक बार राजा कमलाकर शिकार खेलने उसी वन में आए। हिरण का शिकार करते-करते वे अपने सिपाहियों से आगे निकल गए और रास्ता भटक कर उसी जगह पँहुच गए जहाँ रानी पद्मावती रहती थी। रानी उस समय अपनी कुटिया में नहीं थी। राजा को बहुत भूख और प्यास लगी थी। उसने फलों से लड़े हुए पेड़ों को देखा तो उसने खाने के फल तोड़ने के लिए अपना हाथ बढ़ाया।
बच्चों का न्याय
लेकिन यह क्या पेड़ों की शाखाये ऊपर की तरफ हो गई। राजा जितना ऊपर होकर फल तोड़ने के लिए हाथ बढ़ाता शाखाये उतना ही ऊपर हो जाती। आखिर थक हार कर राजा वहीं बैठ गया। थोड़ी देर में राजा के सिपाही उसे ढूंढते हुए वहीं आ गए। राजा उनके साथ वापस राजमहल आ गए। लेकिन उसके मन से उन पेड़ों का विचार निकल ही नहीं रहा था।
वह यह सोच-सोच कर परेशान हो रहा था कि उसके हाथ बढ़ाने पर उन पेड़ों की शाखाएं ऊपर क्यों उठ जाती थी। आखिर उसने अपने मंत्रियों और राजपुरोहित से उन पेड़ों के बारे में चर्चा की और पूछा,
राजा कमलाकर – जंगल में फलों से लड़े दो पेड़ थे लेकिन मेरे हाथ बढ़ाने पर उन पेड़ों की शाखाएं ऊपर उठ जाती थी। ऐसा कैसे हो सकता है? ऐसा मेरे साथ ही हुआ या सभी के साथ ऐसा ही होता है।
सबने कहा कि एक बार फिर से उसी जगह पर जाकर इस बात की जांच करनी चाहिए कि ऐसा सभी के साथ होता है या केवल राजा के साथ ही ऐसा हुआ।
राजा कमलाकर ने रानी लीलावती से भी उन पेड़ों के बारे में चर्चा की और अपने मंत्रियों की सलाह के बारें में बताया। जब राजा ने रानी को उस जंगल और जगह के बारे में बताया तो रानी को याद आ गया कि उसी जंगल उसी जगह के आस-पास ही तो उसने राजा के बच्चों को मार कर गाढ़ दिया था।
एक और कपट!
रानी को शंका हुई कि कहीं राजा उस जगह की जांच करवाने का आदेश दे दें तो उसका भांडा ना फूट जाए। इसलिए उसने बड़े ही प्यार से मीठे स्वरों में कहा,
रानी लीलावती – महारज, ऐसे पेड़ों को तो कटवा देना चाहिए जो किसी भूखे को फल देने की जगह ऊपर उठ जाए। मुझे तो वे पेड़ कोई जादुई पेड़ लगते है। जादू के पेड़ पर लगने वाले फल भी जादुई या विषैले होंगे।
राजा को भी रानी की बात सही लगी। उसने रानी से कहा,
राजा कलाकार – तुम सही कह रही हो। ठीक है, जैसा तुम्हें सही लगे, वैसा ही कर लो।
तब रानी लीलावती ने अपने सेवकों को उन पेड़ों को काटने का आदेश दे दिया।
लेकिन राजा कमलाकर को उस रात राजा को नींद नहीं आई। वह रातभर उन पेड़ों के बारे में ही सोचता रहा। अगले दिन सूरज उगने से पहले ही वह अपना घोडा लेकर जंगल की तरफ निकल गया और उसी जगह पँहुच कर थोड़ी दूरी पर छुप गया। तभी उसने देखा कि कुटिया से रानी पद्मावती निकली और उन पेड़ों के पास आई।
उन पेड़ों की शाखाएं रानी से लिपट गई और रानी भी बड़े प्यार से उन्हें सहलाने लगी। यह देखकर राजा आश्चर्य में पड़ गया। उसे विश्वास हो गया कि सच में ये पेड़ जादुई है। उसने इसे काटने का आदेश देकर सही किया। उसे रानी पद्मावती पर बहुत गुस्सा आया। वह तुरंत उसके पास गया।
साँच को आंच नहीं
राजा कमलाकर को अपने सामने देखकर रानी पद्मावती बहुत खुश हुई। वह खुशी से दौड़ती हुई राजा की तरफ बढ़ी, लेकिन राजा ने उसे रोकते हुए गुस्से से कहा,
राजा कमलाकर – तुम अब भी अपने जादू से बाज नहीं आ रही हो।
रानी पद्मावती – मैं तो कोई जादू नहीं जानती!
राजा कमलाकर – यदि जादू नहीं जानती तो तुम्हारे गर्भ से ईंट-पत्थर पैदा नहीं होते और यह पेड़ तुम्हारे सामने तो इतना झुक रहे है, लेकिन जब मैंने फल तोड़ने के लिए हाथ बढ़ाया तो इन्होंने अपनी शखाएं ऊपर कर ली। यह जादू नहीं तो क्या है?
रानी पद्मावती – मैं खुद नहीं जानती कि ऐसा क्यों होता है? लेकिन जब से मैं यहाँ आई हूँ, मुझे इन दोनों पेड़ों से बहुत प्यार मिला है।
तभी बड़ी रानी लीलावती के सेवक उन पेड़ों को काटने के लिए वहाँ पहुँच गए और उन्हें काटने लगे उन पेड़ों में से आवाज आने लगी, माँ बचाओ, माँ बचाओ”
यह सुन राजा कमलाकर और रानी पद्मावती दोनों पेड़ों की तरफ दौड़ पड़े। राजा ने सैनिकों को पेड़ काटने से रोक दिया। राजा और रानी दोनों पेड़ों को बोलते देख कर आश्चर्यचकित थे। रानी पद्मावती ने उन पेड़ों से पूछा,
रानी पद्मावती – तुमने मुझे माँ कहकर क्यों पुकारा?
तब उन पेड़ों ने राजा और रानी पद्मावती को रानी लीलावती की सारी करतूत बता दी और राजा कमलाकर से कहा, “आपने हमारी माँ को बिना किसी अपराध के देश निकाला दे दिया। आपने एक बार उनसे मिलकर सच्चाई जानने का भी प्रयत्न भी नहीं किया। बस जैसा आपकी बड़ी रानी ने कहा आपने उस बात पर विश्वाश कर लिया।”
सारी बात जानकर राजा कमलाकर को रानी लीलावती पर बहुत गुस्सा आया। वह रानी पद्मावती को अपने साथ राजमहल ले गया और रानी लीलावती से कठोरता से सब पूछा। रानी लीलावती ने अपना अपराध कबूल कर लिया। ताजा कमलाकर ने रानी लीलावती को कारावास में डलवा दिया। अब राजा कमलाकर और रानी पद्मावती साथ रहने लगे।
वे दोनों रोज उन पेड़ों में पानी देने जंगल में जाते और थोड़ी देर उन के साथ व्यतीत करते। कुछ दिनों बाद रानी फिर गर्भवती हुई और रानी ने फिर से दो जुड़वां बच्चों एक लड़का और एक लड़की को जन्म दिया। जैसे ही उन बच्चों का जन्म हुआ वे दोनों पेड़ गिर गए। इसके बाद राजा और रानी अपने दोनों बच्चों के साथ खुशी से रहने लगे।
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तो दोस्तों, कैसी लगी यमराज जी की शादी! मजा आया ना, आशा करती हूँ आप लोगों ने खूब enjoy किया होगा। फिर मिलेंगे कुछ सुनी और कुछ अनसुनी कहानियों के साथ। तब तक के लिए इजाजत दीजिए।
पिछली कहानी – एक बंजारन द्वारा एक गंवार गड़रिये को शिक्षित करने की कहानी – संगत का असर
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