बार-बार जब कहे ब्राह्मणी, हुए सुदामा त्यार
कृष्ण-सुदामा का भजन
(तर्ज – बार-बार तोहे क्या समझाए पायल की झनकार ……… )
बार-बार जब कहे ब्राह्मणी, हुए सुदामा त्यार,
चावल की पोटली ले, आए हैं मोहन के द्वार ।। टेर ।।
पूछे द्वारिका आय, कन्हैयों कहाँ बसे,
जाण बावलो लोग नगर का, सारा हँसे,
इतने में एक मिलयो दयालु, दिनो महल बताय ।। 1 ।।
चावल की पोटली……….
द्वारपाल जा कयो आदमी, एक आयो,
फाटया कपड़ा नाम सुदामा, बतलायो,
सुनते ही प्रभु नंगे पैरों, दौड़े कृष्ण मुरार ।। 2 ।।
चावल की पोटली……….
मिलिया भुजा पसार, सिंहासन बैठायो,
देख दशा बेहाल, जीवडो घबरायो,
अंसुवन जल से पैर धो रहे, जग के पालनहार ।। 3 ।।
चावल की पोटली……….
करी खातिरी खूब सुदामा शरमावे,
चावल की पोट कांख में छुपकावे,
नजर पड़ी जब कृष्ण चंद्र की, लिन्ही भुजा पसार ।। 4 ।।
चावल की पोटली……….
दोय मुट्ठी गए खाय, तीसरी भरने लगे,
रुक्मण पकड़यो हाथ, प्रभु क्या करने लगे,
तीन लोक दे दिए इन्हीं को, हो गए बेघर बार ।। 5 ।।
चावल की पोटली……….
राख्यो दो दिन चार, कियो जब विदा कियो,
मुख से मांग्यो नाय, नाय प्रभु दीन दियो,
चले सोच के पूछे ब्राह्मणी, देस्यूँ काईं रे जवाब ।। 6 ।।
चावल की पोटली……….
पहुंचे नगरी माय झोपड़ी, मिली नहीं
महला ऊपर खड़ी ब्राह्मणी, बुला रही,
दासी आकर कयो आपने, बुला रही घर नार ।। 7 ।।
चावल की पोटली……….
चकित भये यूं देख कन्हैयों, खूब करी,
महिमा अपरंपार, दास यूं गावे हरि,
भक्त मंडल सब हिलमिल गावे, कान्हा के दरबार ।। 8 ।।
चावल की पोटली……….
बार-बार जब कहे ब्राह्मणी, हुए सुदामा त्यार,
चावल की पोटली ले, आए हैं मोहन के द्वार ।।