महेश दास का दरबार मे प्रवेश – Maheshdaas Ka Darbaar Me Pravesh
अकबर बीरबल के किस्से – महेश दास का दरबार मे प्रवेश – Maheshdaas Ka Darbaar Me Pravesh – Maheshdaas’s Entry Into Akbar’s Court
नमस्कार दोस्तों, अपने वादे के मुताबिक मैं फिर आपके सामने हाजिर हूँ अकबर-बीरबल के मजेदार किस्सों की लड़ियों में से एक और प्यारा-सा किस्सा लेकर। उम्मीद करती हूँ कि ये किस्सा भी आपको पसंद आएगा। पिछले दोनों ही किस्सों में अकबर महेश दास से मिलते है और उसको अपनी अंगूठी देकर दरबार में आमंत्रित करता है। अब आगे चलते है…..
महेश दास और द्वारपाल
महेश दास अकबर की अंगूठी लेकर अकबर के महल के पास पंहुच जाता है। वहां पहुँच कर वह देखता है कि महल के दरवाजे पर दो द्वारपाल खड़े है और बाहर बादशाह अकबर से मिलने वालों की क़तार लगी हुई है। वह भी जाकर क़तार में खड़ा हो जाता है। वह देखता है कि दोनों द्वारपाल क़तार में खड़े लोगों से कुछ न कुछ लेकर ही उन्हें अन्दर जाने दे रहे थे। वह सारा मामला समझ जाता है।
जब उसकी बारी आती है तो द्वारपाल उसे भी अन्दर जाने से रोकते है। महेश दास उनसे कहता है, “मुझे बादशाह सलामत ने खुद अपने दरबार में आमंत्रित किया है।” महेश दास की हालत देख कर द्वारपाल उसका मजाक उड़ाते है, “देखो ये मुँह और मसूर की दाल, कहता है बादशाह सलामत ने, इसे अपने दरबार में आमंत्रित किया है। इसकी फटेहाल हालत तो देखों बादशाह सलामत को यहीं मिला अपने दरबार में आमंत्रित के लिए। हमसे मसखरी करता है, अभी दो डंडे पड़ेंगे तो दिमाग ठिकाने आ जायेगा।”
तब महेश दास अपनी कमर से बादशाह अकबर की दी हुई अंगूठी निकलकर उन्हें दिखाता है और कहता है, “मैं सच कह रहा हूँ,। देखों ये अंगूठी उन्होनें ही मुझे दी है जिससे मैं बिना रोक-टोक के दरबार में प्रवेश कर सकूँ।” बादशाह अकबर की अंगूठी देखकर द्वारपाल कहता है, “लेकिन हम तुम्हे तब ही अन्दर जाने देंगे, जब तुम हमें बादशाह से मिलने का कर अदा करोगे।”
महेश दास आश्चर्य से, “कर! बादशाह से मिलने का कर ?” द्वारपाल, “हाँ, बादशाह कोई छोटी-मोटी हस्ती थोड़े ही है, वे बादशाह है बादशाह। हर कोई उनसे ऐसे ही तो नहीं मिल सकता। तुम्हे हमें कर तो देना पड़ेगा।” महेश दास कहता है, “लेकिन मेरे पास तो कुछ भी नहीं है।” द्वारपाल, “कुछ भी नहीं है तो फिर तुम अन्दर प्रवेश नहीं कर सकते इसलिए यहाँ से चले जाओ।”
महेश दास थोडा गुस्सा दिखाते हुए कहता है, “यदि बादशाह सलामत को पता चला कि तुमने उनकी अंगूठी देख कर भी मुझे महल में प्रवेश नहीं करने दिया, तो तुम दोनों को कड़ी सजा मिलेगी।”
द्वारपाल, “हमें सजा तो तब मिलेगी जब उन्हें इस बारे में पता चलेगा। और उन्हें पता तब चलेगा, जब तुम उनसे मिलोगे। बिना कुछ दिए हम तुम्हे उनसे मिलने देंगे नहीं। और यदि तुमने उनसे मिलकर हमारी शिकायत कर भी दी तो तुम इसे साबित नहीं कर पाओगे।”
महेश दास ने उन्हें लालच देते हुए कहा, “बादशाह सलामत ने मुझे यहाँ मुँहमाँगा ईनाम देने के लिए बुलाया है यदि तुम मुझे अन्दर जाने दोगे तो मैं तुमसे वादा करता हूँ ईनाम का कुछ हिस्सा में तुम्हे भी दे दूंगा।”
ईनाम में हिस्से की बात सुनकर द्वारपाल आपस में कनापुसी करते है. “बादशाह अकबर ने खुद अपनी अंगूठी देकर इसे मुंहमांगा ईनाम देने के लिए बुलाया है तो यह ईनाम में जरूर बहुत सारा धन मांगेगा। ईनाम के हिस्से से तो हमारी किस्मत खुल जाएगी। इसलिए इसे जाने देते है। द्वारपाल कहता है, “कुछ हिस्सा नहीं तुम्हे हम दोनों को ईनाम का बीस-बीस प्रतिशत हिस्सा देना होगा।”
महेश दास ईनाम का बीस-बीस प्रतिशत हिस्सा देने का वादा करके महल में प्रवेश करता है। महेश दास दरबार तक पंहुच जाता है। दरबार के द्वार पर खड़े दो द्वारपाल भी उसे अन्दर जाने से रोकते है और महेश दास उन्हें भी ईनाम का बीस-बीस प्रतिशत हिस्सा देने का वादा करके दरबार में प्रवेश करता है।
महेश दास का अकबर के दरबार में प्रवेश
बादशाह अकबर के दरबार की भव्यता भी देखते ही बनती थी। महेश दास अचंभित सा दरबार की भव्यता को निहारने लगता है। अकबर महेश दास को पहचान लेते है और कहते है, “आओ महेश दास, हमारे दरबार में तुम्हारा स्वागत है। मैं अभी दरबार मैं तुम्हारी बुद्धिमानी के बारें में ही बता रहा था।”
बादशाह अकबर की बात सुनकर महेश दास कहता है, “सलाम हुजूर, मैं आपके दरबार की भव्यता में खो गया था।” बादशाह अकबर हँसते हुए पूछते है , “तो तुमने क्या देखा महेश दास।” महेश दास, “देखा भी और नहीं भी।” बादशाह अकबर, “इसका मतलब” ! महेश दास, “जहाँपनाह, इसका मतलब मैं आपको बाद में बताऊंगा। लेकिन पहले आप मुझे मेरा मुंहमांगा ईनाम दे दीजिये।”
अकबर, “हाँ-हाँ क्यों नहीं, मांगों क्या मांगते हो।” महेश दास, “ऐसे नहीं जहाँपनाह, पहले आप वादा कीजिये कि मैं जो भी मांगूंगा आप मुझे अवश्य देंगे।” अकबर, “हाँ-हाँ महेश दास, हम वादा करते है, मांगों जो मांगना चाहते हो।” महेश दास, “जहाँपनाह मुझे ईनाम में पचास कौड़े मारे जाए।” महेश दास की बात सुनकर बादशाह अकबर अचंभित होकर कहते है, “महेश दास तुम्हे पता भी है तुम क्या मांग रहे हो, हम तुम्हे ईनाम में कौड़े कैसे मार सकते है ?” महेश दास, “लेकिन जहाँपनाह, मुझे ईनाम में पचास कौड़े ही चाहिए।”
महेश दास की मांग सुनकर सारे दरबार में फुसफुसाहट होने लगती है। एक दरबारी, “बादशाह सलामत तो कह रहे थे कि ये बहुत ही बुद्धिमान और कुशाग्र बुद्धि वाला है, लेकिन मुझे तो ये निरा मुर्ख लग रहा है।” दूसरा दरबारी, “हाँ, तुम ठीक कह रहे हो, ये मुर्ख ही है, बादशाह सलामत इसे मुंहमांगा ईनाम दे रहे थे। ये चाहता तो कोई जागीर मांग लेता।” तीसर दरबारी, “लगता है, इस बार हमारे बादशाह की पारखी नज़रों से भी इसे परखने में गलती हो गई है।”
महेश दास का ईनाम
तभी अकबर कहता है, “एक बार और सोच लो महेश दास।” महेश दास, “मैंने सोच समझ कर ही ईनाम माँगा है, मुझे इनाम में पचास कौड़े ही मारे जाए। आपने मुझसे वादा किया है जहाँपनाह, यदि आप मुझे मेरा मुंहमांगा ईनाम नहीं दे सकते तो मैं जाता हूँ।” इतना कहकर महेश दास जाने लगता है।
उसे रोकते हुए अकबर, “रुको महेश दास, जैसी तुम्हे इच्छा।” इतना कहकर अकबर जल्लाद को बुलवाने का इशारा करते है। थोड़ी देर में एक जल्लाद हाथ में लम्बा सा कौड़ा लिए वहां आ जाता है। जल्लाद को देखकर महेश दास की कंपकपी छूट जाती है। अकबर यह देखकर कहते है, “महेश दास, हम तुम्हे एक मौका और देते है, तुम अब भी अपना इरादा बदल सकते हो।” महेश दास, “नहीं जहाँपनाह, मैं कौड़े खाने के लिए तैयार हूँ।”
अकबर जल्लाद को कौड़े मारने का इशारा करते है। जल्लाद महेश दास को कौड़े मारना शुरू कर देता है। दस कौड़े होने के बाद महेश दास चिल्लाता है, “रोकिये जहाँपनाह रोकिये।” अकबर जल्लाद को रुकने का इशारा करते है और हँसते हुए कहते है, “क्या हुआ महेश दास, अभी तो दस कौड़े ही हुए है। अपना पूरा ईनाम नहीं लोगे ?”
महेश दास कराहते हुए, “लूँगा जहाँपनाह, लेकिन मैंने महल व दरबार के चारों द्वारपालों को अपने ईनाम का बीस-बीस प्रतिशत हिस्सा देने का वादा किया था। अत: बाकी के चालीस कौड़ो में से दस-दस कौड़े उन्हें मारे जाए।”अकबर, “महेश दास, तुमने फिर हमारी व्यवस्था पर प्रहार किया है। तुम्हारे कथनानुसार हमारी नाक के नीचे भ्रष्टाचार हो रहा है और हमें इसका इल्म भी नहीं है ? यदि तुम्हारा कथन सही नहीं हुआ तो तुम्हे इसका कड़ा दंड मिलेगा।” महेश दास, “जी जनाब, मैं इसे साबित कर दूंगा, लेकिन आपको मेरी योजना में मेरा साथ देना पड़ेगा।” अकबर, “ठीक है।”
द्वारपालों को सजा
महेश दास अकबर के कान में अपनी योजना बताता है। अकबर अपने मंत्री को चारों द्वारपालों को बुलाने का हुक्म देते है। चारों द्वारपाल आकर अकबर को सलाम करते है। अकबर उनकी तारीफ़ करते हुए कहते है, “ये मेरे मित्र है महेश दास, यह कह रहे है कि इन्होनें द्वार पर तुम्हारी कर्तव्य निष्ठा और ईमानदारी से प्रसन्न होकर अपने ईनाम का बीस-बीस प्रतिशत हिस्सा देने का वादा किया है। क्या ये बात सही है ?
चारों द्वारपाल एक दूसरे को देख कर मुस्कुराते है और कहते है, “हाँ जहाँपनाह, ये सही है इन्होनें हम चारों को अपने ईनाम का बीस-बीस प्रतिशत हिस्सा देने का वादा किया था।” अकबर, “हम भी तुम लोगों की कर्तव्य निष्ठा और ईमानदारी के बारे में जानकार बहुत प्रसन्न हुए इसलिए हम तुम्हे चौगुना ईनाम देंगे।” चारों द्वारपाल मन ही मन खुश होते हुए, “बहुत-बहुत शुक्रिया जहाँपनाह।”
अकबर गुस्से से अपने सिपाहियों को हुक्म देते है कि चारों को बाहर ले जाकर चालीस-चालीस कौड़े लगाये जाए और बंदी बना कर कारागृह में डाल दिया जाये। चारों द्वारपाल अपने घुटनों पर गिर जाते है और अकबर से अपने अपराध के लिए क्षमा मांगते है।
बादशाह अकबर कहते है, “तुम लोगों ने प्रजा के साथ अन्याय ही नहीं, हमसे और अपने काम से भी धोखा किया है। तुम्हारे अपराध की कोई माफी नहीं है। सिपाहियों ले जाओ इन चारों को।” सिपाही चारों को लेकर चले जाते है। अकबर के दरबारी भी महेश दास की अक्ल की प्रसंशा करे बगैर नहीं रह पाते। सभी एक ही स्वर में कहते है, “वाह-वाह महेश दास, बहुत खूब।”
देखा भी और नहीं भी देखा
अकबर महेश दास को सौ सोने की अशर्फिया इनाम में देते है और उससे पूछते है, “महेश दास, अब तो तुम्हारे उस कथन का मतलब बता दो “देखा भी और नहीं भी देखा।” महेश दास कहता है “जहाँपनाह, मैंने आपके महल की भव्यता और आपके न्याय के बारें में लोगो से बहुत तारीफ सुनी थी। दरबार में प्रवेश करके मैं आपके महल और दरबार की भव्यता तो देख चुका था, लेकिन मैंने आपका न्याय नहीं देखा था। इसलिए मैंने कहा “देखा भी और नहीं भी देखा।”
अकबर ने हँसते हुए कहा, “तो अब तुम्हारी क्या राय है महेश दास ?” महेश दास सर झुककर सजदा करते हुए कहता है, “जहाँपनाह, इस नाचिज़ की इतनी जुर्रत कि आपके बारे में अपनी राय बना सके। लेकिन जहाँपनाह, मैं यह कहने की गुस्ताखी जरूर करूँगा कि मैंने आपके बारें में जो सुना था उससे कहीं अधिक ही पाया है।”
अकबर महेश दास की बातों से बहुत खुश होते है और सौ मोहरों के ईनाम के साथ-साथ उसे अपने दरबार में नियुक्त करने की भी घोषणा करते है |
आप भी सोच रहे होंगे दोस्तों कि हमारे हीरों बीरबल के दर्शन तो इस किस्से में भी नहीं हुए। तो जरा सब्र रखिये दोस्तों सब्र का फल हमेशा मीठा होता है। अगले किस्से में हम अपने हीरों बीरबल से जरूर मिलेंगे। तब तक के लिए “आदाब” |