सकट चौथ व्रत हर साल माघ मास
सकट चौथ व्रत हर साल माघ मास की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन महिलाएं भगवान गणेश से अपने बेटे की लंबी उम्र और सुखी जीवन की प्रार्थना करती हैं।
इस व्रत को निर्जल रखा जाता है यानी इसमें जल और भोजन नहीं किया जाता है। वैसे तो साल में 12 संकष्टी चतुर्थी व्रत होते हैं, लेकिन कुल मिलाकर माघ मास के कृष्ण पक्ष में आने वाली चतुर्थी का विशेष महत्व माना जाता है
सकट चौथ की कहानी – पौराणिक कथा के अनुसार सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र के शासनकाल में कुम्हार था। वह मिट्टी के बर्तन बनाने का कार्य करता था एक बार तमाम कोशिशों के बावजूद उससे बर्तन नहीं रहे थे और बर्तन कच्चे रह रहे थे। उसने यह बात जाकर तांत्रिक को बताई। तांत्रिक ने कहा कि तुम्हारे बर्तन तब ही बनेंगे जब तुम एक छोटे बच्चे की बलि दोगे।
तांत्रिक के बताए अनुसार कुम्हार ने एक छोटे बच्चे को पकड़ कर भट्ठी में डाल दिया। जिस दिन कुम्हार ने बच्चे की बलि दी वह संकट चौथ का दिन था। उस बच्चे की मां गणेश जी की भक्त थी। जब उसको उसका बालक नहीं मिला तो उसने गणेश जी के समक्ष जाकर सच्चे मन से प्रार्थना की ,कि मेरा लड़का वापस आ जाए।
उधर जब कुमार ने सुबह उठकर देखा तो भट्टी में बर्तन तो पक गए थे लेकिन साथ में वह बच्चा भी सुरक्षित बैठा था। इस घटना से कुम्हार बहुत डर गया और उसने जाकर राजा को सारी बात बताई। इसके बाद राजा ने उस बच्चे और उसकी मां को बुलवाया। तब मां संकटों को दूर करने वाले संकट चौथ के व्रत की महिमा का वर्णन किया और कहां की विघ्न विनायक श्री गणेश जी की कृपा से ही मेरा लड़का वापस आया है। तभी से महिलाएं अपने संतान और परिवार के सुख सौभाग्य और लंबी आयु के लिए संकट चौथ का व्रत करती है।
हे गणेश जी महाराज आपने जैसे लड़के की मां पर कृपा की वैसी सब पर करना संकट चौथ की कहानी कहने, सुनने और हुंकार भरने वाले सब पर करना।
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गणेश जी की खीर वाली कहानी
विनायक जी की कहानी – एक बार गणेश जी छोटे बालक के रूप में चिमटी में चावल और चमचें में दूध लेकर निकले। वो हर किसी से कह रहे थे कि कोई मेरी खीर बना दो, कोई मेरी खीर बना दो। वहाँ पर एक बुढ़िया माई बैठी थी, उसने कहा ला मैं बना देती हूं । वह छोटा सा बर्तन चढ़ाने लगी तो गणेश जी ने कहा कि दादी मां छोटी सी भगोनी मत चढ़ाओ तुम्हारे घर में जो सबसे बड़ा बर्तन हो वही चढ़ाओ। बुढ़िया माई ने गणेश जी का मन रखने के लिए बड़ा बर्तन चढ़ा दिया।
वह देखती रह गई कि वह जो थोड़े से चावल उस बड़े बर्तन में डाले थे वह तो पूरा भर गया है। गणेश जी ने कहा “दादी मां में नहा-धोकर आता हूं। जब खीर तैयार हो गई तो बुढिया माई के पोते-पोती खीर खाने के लिए रोने लगे। बुढ़िया ने कहा गणेश जी महाराज तेरे भोग लगना कहकर चूल्हे में थोड़ी सी खीर डाली और कटोरी भर भरकर बच्चों को दे दी। बुढ़िया की पड़ोसन ऊपर छतपर से देख रही थी तो बुढ़िया ने सोचा यह चुगली कर देगी, इसलिये एक कटोरा भर कर उसे भी पकड़ा दिया।
बेटे की बहू ने भी चुपके से एक कटोरी खीर ले जाकर खाई और कटोरा चक्की के नीचे छुपा दिया। अभी भी गणेश जी नहाकर नहीं आए थे और बुड़िया को भी भूख लग रही थी। तो वह भी एक कटोरी मे खीर डालकर के कीवाड़ के पीछे बैठकर एक बार फिर कहा कि गणेश जी महाराज आपके भोग लगे, यह कहकर खाना शुरु कर दिया तभी गणेश जी आ गए।
बुढिया माई ने कहा – आजा रे गणेश खीर खा ले में तो तेरा ही इंतजार कर रही थी। तब गणेश जी ने कहा- दादी मां मैंने तो खीर पहले ही खा ली। बुढ़िया ने कहा – कब खाई। गणेश जी ने कहा – जब तेरे पोते पोती ने खाई तब खाई थी, जब तेरी पड़ोसन ने खाई तब खाई थी ,और जब तेरी बहू ने खाई तब भी खाई थी और अब तूने खाई तो मेरा पेट पूरा ही भर गया।
बुढ़िया ने कहा – बेटा तेरी सारी बात सच है। लेकिन बहू बिचारी तो सुबह से काम में लग रही है तो फिर उसने खीर कब खाई।
गणेश जी महाराज ने कहा चक्की के नीचे देख झूठा कटोरा पड़ा है। तूने तो मेरे भोग तो लगाया वह तो बिना भोग के ही खा गई। बुढ़िया ने कहा बेटा घर की बात है घर में ही रहने दो। अब बताओ बची हुई खीर का क्या करूं गणेश जी ने कहा नगरी को जीमा दो। बुढ़िया माई ने पूरी नगरी जीमा दी फिर भी बर्तन खाली नही हुआ।
जब राजा को यह बात पता चली तो राजा ने बुड़िया को बुलाया और कहा क्यों री बुढ़िया ऐसा बर्तन तेरे घर पर कहां से आया ऐसा बर्तन तो राज महल में होना चाहिए। बुढ़िया ने कहा राजा जी इस बर्तन को आप ले लो। राजा जी ने खीर का बर्तन महल में मंगा लिया लाते ही खीर में कीड़े, मकोड़े, बिच्छू, कंछले, हो गए और दुर्गंध आने लगी। यह देखकर राजा ने बुढ़िया से कहा, बुढ़िया बर्तन वापस ले जा,जा तुझे हमने दिया।
बुढ़िया ने कहा – राजा जी आप देते तो पहले ही कभी दे देते यह बर्तन तो मुझे मेरे गणेश जी ने दिया है। बुढ़िया ने बर्तन वापस लिया लेते ही सुगंधित खीर हो गई। घर आकर बुढ़िया ने गणेश जी से कहा – बची हुई खीर का क्या करें। गणेश जी ने कहा बची हुई खीर को झोपड़ी के कोने में खड़ा खोदकर गाड़ दो। उसी जगह सुबह उठकर वापस खोदेगी तो धन के दो चरे मिलेंगे ऐसा कहकर गणेश जी अंतर्ध्यान हो गए जाते समय झोपड़ी के लात मारते हुए गये तो झोपड़ी की जगह पर महल हो गया।
सुबह बहू ने फावड़ा लेकर पूरे घर को खोद दिया तो कुछ भी नहीं मिला बहू ने कहा – सासूजी थारो गणेश जी तो झूठों है।
सास ने कहा बहू मारो गणेश झूटों तो नहीं है। ला मैं देखूं । वह सुई लेकर खोजने लगी तो टन टन करते दो धन के चरे निकल आए। बहू ने कहा “सासू जी गणेश जी तो साचों ही हैं। सास ने कहा “गणेश जी तो भावनाओं का भूखा है।
हे गजानंद गणेश जी महाराज जैसा आपने बुढ़िया को दिया वैसा सबको देना, विनायक जी की कहानी कहने वाले, हुंकार भरने वाले और आसपास के सभी सुनने वाले सब को देना।
कब है संकष्टी चतुर्थी जानें शुभ मुहूर्त और पूजा विधि…
माघ मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को संकष्टी चतुर्थी कहा जाता है। इस तिथि को तिल चतुर्थी या माघी चतुर्थी भी कहा जाता है। इस दिन भगवान गणेश की और चन्द्रदेव की उपासना करने का विधान है। कहा जाता है कि जो भी इस दिन प्रथम पूजनीय श्री गणेश जी की उपासना करता है उसके जीवन के सारे संकट टल जाते हैं। साथ ही संतान संबंधी समस्याएं भी दूर हो जाती हैं। इस बार संकष्टी चतुर्थी का व्रत 9 अप्रैल 2023 को रखा जाएगा। कहते हैं कि इस दिन जो भी भक्त विधि-विधान के साथ गणेश जी की पूजा करता है तो भगवान गणेश उसके सारे विघ्न हर लेते हैं। बप्पा की पूजा करने से भक्तों के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं। तो आइए जानते हैं संकष्टी चतुर्थी व्रत की पूजा विधि, शुभ मुहूर्त और चंद्रोदय का समय…
संकष्टी चतुर्थी पूजा मुहूर्त
09 अप्रैल 2023 को पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह 09 बजकर 13 मिनट से लेकर सुबह 10 बजकर 48 मिनट तक है। इस दिन अमृत सर्वोत्तम मुहूर्त सुबह 10 बजकर 48 मिनट से लेकर दोपहर 12 बजकर 23 मिनट तक रहेगा। इन दोनों मुहूर्त में आप भगवान गणेश की पूजा कर सकते हैं।
संकष्टी चतुर्थी का महत्व
संकष्टी चतुर्थी के दिन भगवान गणेश का पूजन किया जाता है और हिंदू धर्म में गणेश जी को प्रथम पूजनीय देवता माना गया है। संकष्टी चतुर्थी के दिन व्रत रखा जाता है और इस दिन व्रत रखने से जातक की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। कहते हैं कि जिस व्यक्ति पर गणपति की कृपा होती है उसके जीवन में आ रहे सभी विघ्न दूर हो जाते हैं।
संकष्टी चतुर्थी पूजन विधि
संकष्टी चतुर्थी के दिन भगवान गणेश का पूजन किया जाता है। इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करें और स्वच्छ वस्त्र पहनें। इसके बाद मंदिर स्वच्छ करें और हाथ में जल, अक्षत और पुष्प इत्यादि लेकर व्रत का संकल्प करें। फिर भगवान गणेश को हल्दी का तिलक लगाएं और दूर्वा, फूल, माला व फल आदि अर्पित करें। फिर घी का दीपक जलाएं। गणपित को लड्डू अतिप्रिय हैं इसलिए पूजा में लड्डू का भोग अवश्य लगाना चाहिए। फिर व्रत कथा पढ़ें व आरती करें। दिनभर व्रत रखने के बाद रात में चंद्रोदय होने पर चंद्रमा को जल देकर व्रत का पारण करें।
विकट संकष्टी चतुर्थी पर भगवान गणेश और चौथ माता की पूजा करने से संतान पर आने वाले सारे संकट दूर हो जाते हैं। वैवाहिक जीवन में तनाव खत्म होता है। कमजोर बुद्धि वालों के आत्मविश्वास में वृद्धि होती है। घर कारोबार में आ रही समस्याओं से मुक्ति मिलती है, साथ ही रुके हुए मांगलिक कार्य संपन्न होते हैं। कहते हैं कि चतुर्थी पर चंद्रमा को अर्घ्य देने पर मानसिक कष्ट खत्म होते हैं और परिवार में खुशहाली आती है।
संकट चतुर्थी कथा
एक समय की बात है कि विष्णु भगवान का विवाह लक्ष्मी जी के साथ निश्चित हो गया। विवाह की तैयारी होने लगी। सभी देवताओं को निमंत्रण भेजे गए, परंतु गणेशजी को निमंत्रण नहीं दिया, कारण जो भी रहा हो।
अब भगवान विष्णु की बारात जाने का समय आ गया। सभी देवता अपनी पत्नियों के साथ विवाह समारोह में आए। उन सबने देखा कि गणेशजी कहीं दिखाई नहीं दे रहे हैं। तब वे आपस में चर्चा करने लगे कि क्या गणेशजी को नहीं न्योता है? या स्वयं गणेशजी ही नहीं आए हैं? सभी को इस बात पर आश्चर्य होने लगा। तभी सबने विचार किया कि विष्णु भगवान से ही इसका कारण पूछा जाए।
विष्णु भगवान से पूछने पर उन्होंने कहा कि हमने गणेशजी के पिता भोलेनाथ महादेव को न्योता भेजा है। यदि गणेशजी अपने पिता के साथ आना चाहते तो आ जाते, अलग से न्योता देने की कोई आवश्यकता भी नहीं थीं। दूसरी बात यह है कि उनको सवा मन मूंग, सवा मन चावल, सवा मन घी और सवा मन लड्डू का भोजन दिनभर में चाहिए। यदि गणेशजी नहीं आएंगे तो कोई बात नहीं। दूसरे के घर जाकर इतना सारा खाना-पीना अच्छा भी नहीं लगता।
इतनी वार्ता कर ही रहे थे कि किसी एक ने सुझाव दिया- यदि गणेशजी आ भी जाएं तो उनको द्वारपाल बनाकर बैठा देंगे कि आप घर की याद रखना। आप तो चूहे पर बैठकर धीरे-धीरे चलोगे तो बारात से बहुत पीछे रह जाओगे। यह सुझाव भी सबको पसंद आ गया, तो विष्णु भगवान ने भी अपनी सहमति दे दी।
होना क्या था कि इतने में गणेशजी वहां आ पहुंचे और उन्हें समझा-बुझाकर घर की रखवाली करने बैठा दिया। बारात चल दी, तब नारदजी ने देखा कि गणेशजी तो दरवाजे पर ही बैठे हुए हैं, तो वे गणेशजी के पास गए और रुकने का कारण पूछा। गणेशजी कहने लगे कि विष्णु भगवान ने मेरा बहुत अपमान किया है। नारदजी ने कहा कि आप अपनी मूषक सेना को आगे भेज दें, तो वह रास्ता खोद देगी जिससे उनके वाहन धरती में धंस जाएंगे, तब आपको सम्मानपूर्वक बुलाना पड़ेगा।
अब तो गणेशजी ने अपनी मूषक सेना जल्दी से आगे भेज दी और सेना ने जमीन पोली कर दी। जब बारात वहां से निकली तो रथों के पहिए धरती में धंस गए। लाख कोशिश करें, परंतु पहिए नहीं निकले। सभी ने अपने-अपने उपाय किए, परंतु पहिए तो नहीं निकले, बल्कि जगह-जगह से टूट गए। किसी की समझ में नहीं आ रहा था कि अब क्या किया जाए।
तब तो नारदजी ने कहा- आप लोगों ने गणेशजी का अपमान करके अच्छा नहीं किया। यदि उन्हें मनाकर लाया जाए तो आपका कार्य सिद्ध हो सकता है और यह संकट टल सकता है। शंकर भगवान ने अपने दूत नंदी को भेजा और वे गणेशजी को लेकर आए। गणेशजी का आदर-सम्मान के साथ पूजन किया, तब कहीं रथ के पहिए निकले। अब रथ के पहिए निकल को गए, परंतु वे टूट-फूट गए, तो उन्हें सुधारे कौन?
पास के खेत में खाती काम कर रहा था, उसे बुलाया गया। खाती अपना कार्य करने के पहले ‘श्री गणेशाय नम:’ कहकर गणेशजी की वंदना मन ही मन करने लगा। देखते ही देखते खाती ने सभी पहियों को ठीक कर दिया।
तब खाती कहने लगा कि हे देवताओं! आपने सर्वप्रथम गणेशजी को नहीं मनाया होगा और न ही उनकी पूजन की होगी इसीलिए तो आपके साथ यह संकट आया है। हम तो मूरख अज्ञानी हैं, फिर भी पहले गणेशजी को पूजते हैं, उनका ध्यान करते हैं। आप लोग तो देवतागण हैं, फिर भी आप गणेशजी को कैसे भूल गए? अब आप लोग भगवान श्री गणेशजी की जय बोलकर जाएं, तो आपके सब काम बन जाएंगे और कोई संकट भी नहीं आएगा।
ऐसा कहते हुए बारात वहां से चल दी और विष्णु भगवान का लक्ष्मीजी के साथ विवाह संपन्न कराके सभी सकुशल घर लौट आए। हे गणेशजी महाराज! आपने विष्णु को जैसो कारज सारियो, ऐसो कारज सबको सिद्ध करजो। बोलो गजानन भगवान की जय।
एक राजकुमारी की अनोखी शर्त
एक राजा की लड़की की शादी होनी थी, लड़की की शर्त ये थी कि जो भी 20 तक कि गिनती सुनाएगा उसको राजकुमारी अपना पति चुनेगी!गिनती ऐसी हो जिसमें सारा संसार समा जाए,यदी नहीं सुना सकेगा तो उसको 20 कोड़े खाने पड़ेंगे! और ये शर्त केवल राजाओं के लिए ही है! अब एक तरफ
राजकुमारी का वरणऔर दूसरी तरफ कोड़े!एक-एक करके राजा महाराजा आए राजा ने दावत भी रखी मिठाई और सब पकवान तैयार कराए गए!पहले सब दावत का मजा ले रहे होते हैं,फिर सभा में राजकुमारी का स्वयंवर शुरू होता है!
एक से बढ़ कर एक राजा महाराजा आते हैं!सभी गिनती सुनाते हैं जो उन्होंने पढ़ी हुई थी,लेकिन कोई भी वह गिनती नहीं सुना सका जिससे राजकुमारी संतुष्ट हो सके!अब जो भी आता कोड़े खा कर चला जाता,कुछ राजा तो आगे ही नहीं आए उनका कहना था!कि गिनती तो गिनती होती है राजकुमारी पागल हो गई है,ये केवल हम सबको पिटवा कर मजे लूट रही है!
ये सब नजारा देख कर एक हलवाई हंसने लगता है!वह कहता है अरे डूब मरो राजाओं, आप सबको 20 तक गिनती नहीं आती!
ये सब सुनकर सब राजा उसको दण्ड देने के लिए बोलते हैं!राजा उनसे पूछता है कि तुम क्या गिनती जानते हो यदी जानते हो तो सुनाओ!
हलवाई कहता है, हे राजन यदी मैने गिनती सुनाई तो क्या राजकुमारी मुझसे शादी करेगीं!क्योंकि मैं आपके बराबर नहिं हूं,और ये स्वयंवर भी केवल राजाओं के लिए है!तो गिनती सुनाने से मुझे कोइ फायदा नहीं, और मैं नहीं सुना सका तो सजा भी नहीं मिलनी चाहिए!
राजकुमारी बोलती है, ठीक है यदी तुम गिनती सुना सके तो मैं तुमसे शादी करूंगी!और यदि नहीं सुना सके तो तुम्हें मृत्युदंड दिया जायेगा!, सब देख रहे थे कि आज तो हलवाई की मौत तय है!
हलवाई को गिनती बोलने के लिए कहा जाता है,राजा की आज्ञा लेकर हलवाई गिनती शुरू करता है!
एक भगवान
दो पक्ष
तीन लोक
चार युग
पांच पांडव
छह शास्त्र
सात वार
आठ खंड
नौ ग्रह
दश दिशा
ग्यारह रुद्र
बारह महिनें
तेरह रत्न
चौदह विद्या
पन्द्रह तिथि
सोलह श्राद्ध
सत्रह वनस्पति
अठारह पुराण
उन्नीसवीं तुम
बीसवा मैं
सब हके बक्के रह जाते हैं, राजकुमारी हलवाई से शादी कर लेती है!इस गिनती में संसार के सारी वस्तु मौजूद हैं, यहां शिक्षित से बड़ा तजुर्बा है!