कुँए का पानी किसका ? – Kuve Ka Paani Kiska?
अकबर बीरबल के किस्से – कुँए का पानी किसका ? – Kuve Ka Paani Kiska? – Who’ll Get The Well’s Water?
नमस्कार दोस्तों, आप सब जानते ही है कि बीरबल अकबर के राजकीय सलाहकार थे। अकबर के दरबार में कई पेचीदे मामले आते थे जिनका हल निकालना हर किसी के बस की बात नहीं थी। लेकिन बीरबल अपने बुद्धिकौशल, वाकपटुता और चतुराई से उन मसलों ऐसा हल निकाल लेते थे कि धोखा करने वाला अपने ही जाल में फँस जाता और माफी मांगने पर मजबूर हो जाता। तो प्रस्तुत है एक ऐसा ही किस्सा
किसान की फरियाद
एक बार बादशाह अकबर अपने दरबार में आने वाले किसी विषय पर गहन चर्चा में व्यस्त थे। तभी फरियादी घंटा बज उठा, अकबर ने फरियादी को तुरन्त अपने सामने प्रस्तुत करने का आदेश दिया। सिपाहियों ने तुरंत ही उसे बादशाह के समक्ष प्रस्तुत कर दिया, वह एक किसान था। अकबर ने उससे पूछा, “तुमने फरियादी घंटा क्यों बजाया था?”
किसान ने कहा, “बादशाह सलामत, मैंने अपने खेत के पास वाले खेत के मालिक, एक साहूकार से अपने खेतों की सिंचाई के लिए कुआँ खरीदा था और तय कीमत सौ स्वर्ण मुद्राएँ भी अदा कर दी थी। लेकिन फिर भी वह मुझे उस कुँए का पानी नहीं निकालने दे रहा है। मुझे न्याय चाहिए जहाँपनाह।”
साहूकार की चाल
किसान की फरियाद सुनकर बादशाह अकबर ने सिपाही को भेजकर साहूकार को तुरंत दरबार में उपस्थित होने का आदेश दिया। अकबर के आदेशानुसार साहूकार दरबार में आ गया और उसने अकबर को सलाम करते हुए कहा, “सलाम बादशाह सलामत, मुझसे ऐसी क्या ख़ता हो गई कि मुझे दरबार में बुलाया गया है।”
अकबर ने कहा, “इस किसान ने तुम पर आरोप लगाया है कि इसने तुमसे एक कुआँ खरीदा था और अब तुम इसे इसके ख़रीदे हुए कुँए से पानी नहीं लेने दे रहे हो।” साहूकार ने कहा, “ये आरोप बिलकुल निराधार है, जहाँपनाह।”
अकबर ने साहूकार से पूछा, “तो क्या तुमने इस किसान को अपना कुआँ नहीं बेचा था।” साहूकार ने सहजता से जवाब दिया, “बेचा था जहाँपनाह।” अकबर ने गुस्से से पूछा, “तब तुम इसे उस कुँए का पानी क्यों नहीं लेने दे रहें हो?”
साहूकार ने बड़ी चालाकी से जवाब दिया, “गुस्ताखी माफ हो जिल्लेइलाही, मैंने इसे अपना कुआँ बेचा था, पानी नहीं। मेरे पास इस बात के गवाह भी मौजूद है। आप स्वयं किसान से पूछ सकते है कि मैंने इससे कुआँ बेचने की ही बात कही थी, पानी का मैंने कोई जिक्र नहीं किया था।”
किसान की लाचारी
तब अकबर ने किसान से पूछा, “क्या साहूकार सही कह रहा है?”
किसान ने लाचारी से जवाब दिया, “ये सही है कि बादशाह सलामत, साहूकार ने पानी के बारे में कोई जिक्र नहीं किया था। लेकिन आप ही बताएं जहाँपनाह कि कुआं भी कभी बिना पानी के ख़रीदा और बेचा जाता है, मैं बिना पानी के इस कुएँ का क्या करूँगा। मैंने इस कुएँ को खरीदने में अपनी सारी जमा पूंजी लगा दी, यहाँ तक कि अपने दोस्तों व रिश्तेदारों से कर्ज भी ले लिया।”
“मैंने सोचा था कि इसके पानी से मुझे अच्छी फसल प्राप्त होगी जिससे मैं अपना कर्ज भी चूका दूंगा और अपना गुजर-बसर भी आसानी से कर लूँगा। लेकिन अब मैं क्या करूँगा जहाँपनाह, कृपया मेरी मदद कीजिये।”
अकबर जानते थे कि साहूकार किसान के साथ चालाकी कर रहा है और वह सभी को अपने शब्दों के जाल में फंसा रहा है लेकिन साहूकार की बात को भी पूरी तरह से नकारा भी नहीं जा सकता था, जब स्वयं किसान भी उसके शब्दों को सही बता रहा है।
तब अकबर ने बीरबल को इस मसले को सुलझाने के लिए कहा। क्योंकि एक वही थे जो साहूकार के शब्दों के जाल को काट सकते थे। बीरबल ने दोनों की बाते सुन ली थी, वे भी साहूकार की चालाकी को समझ गए थे।
बीरबल ने साहूकार से फिर से पूछा, “क्या तुमने सच मैं किसान को केवल कुआं ही बेचा था, पानी नहीं।” साहूकार ने कहा, “हाँ, मैंने सिर्फ कुआं ही बेचा था, इसलिए सिर्फ कुआं ही किसान का है और कुएँ का पानी सिर्फ मेरा है।”
बीरबल ने पलटा पासा
तब बीरबल ने कहा, “क्या तुम मेरे कुछ प्रश्नों का उत्तर दोगे।” साहूकार ने कहा, “हाँ-हाँ क्यों नहीं, आप प्रश्न पूछिये।” बीरबल ने पूछा, “तुम एक साहूकार हो तुम्हारे पास कई मकान या गोदाम भी होंगे।” साहूकार ने कहा, “हाँ, मेरे पास चार गोदाम है।”
बीरबल ने हैरान होते हुए पूछा, “चार गोदाम, तो क्या तुम्हारे खेतों में इतना अनाज होता है कि तुम्हे चार गोदाम बनाने पड़े।” साहूकार ने कहा, “नहीं मेरी फसल के लिए तो एक गोदाम ही काफी है, दुसरे गोदामों को तो मैं अन्य किसानों को उनकी उपज या सामान रखने के लिए देता हूँ।”
बीरबल ने कुछ अनजान और नासमझ बनते हुए कहा, “अच्छा तो तुम अन्य किसानों की उपज या उनका सामान रखकर उनकी मदद करते हो।” साहूकार ने कहा, “नहीं, मैंने गोदाम किसानों की मदद करने के लिए नहीं बनवाये है, मैं उनकी उपज या सामान अपने गोदामों में रखने के लिए उनसे किराया लेता हूँ।”
बीरबल ने कुछ इस तरह से सर हिलाया जैसे उसकी बात समझ गए हो और फिर उन्होंने साहूकार से कहा, “अच्छा तो किसी दूसरे के घर या गोदाम में अपना सामान रखने के लिए किराया देना पड़ता है।” साहूकार ने कहा, “हाँ, यहीं नियम है।”
कुँए का पानी किसका
बादशाह अकबर बीरबल की चतुराई को समझ गए थे और वे मंद-मंद मुस्कुराने लगे। तब बीरबल ने साहूकार से कहा, “तो फिर जो तुमने अपना पानी किसान के कुएँ में रख रखा है तो नियमानुसार तुम्हे उसका भी किराया देना पड़ेगा? अब या तो तुम तुरन्त अपना सारा पानी किसान के कुएँ से बाहर निकालकर उसे खाली करो, या फिर जब तक तुम किसान के कुएँ में से अपना पानी नहीं निकालते तुम्हें दस स्वर्ण मुद्राएँ प्रतिदिन के हिसाब से किसान को किराया देना होगा।”
अब साहूकार को काटो तो खून नहीं, वह अपने ही शब्दों के जाल में फँस चुका था। कुएँ के पानी को निकाल कर कुएँ को खाली करना तो असंभव था और उसका किराया देते-देते तो वह कंगाल हो जाएगा।
वह तुरंत अपने हाथ जोड़ कर बादशाह अकबर के सामने गिर पड़ा और अपनी चालाकी के लिए क्षमा याचना करने लगा, “जहाँपनाह, मुझे क्षमा कर दीजिए। मुझे लालच आ गया था। कुएं के पानी पर किसान का ही हक है।”
राजदरबार के सभी दरबारी बीरबल की इस चतुराई और वाक् चातुर्य से अभिभूत हुए बिना नहीं रह सके और सभी ने एक स्वर में उनकी इस बुद्धिमता की प्रशंसा की।
अकबर का न्याय
बादशाह अकबर ने साहूकार को दंड सुनाते हुए कहा, “उसकी चालाकी के कारण किसान को मानसिक कष्ट उठाना पड़ा और दरबार का भी कीमती समय नष्ट हुआ है, इसलिए दंड स्वरूप उसे पचास स्वर्ण मुद्राएँ किसान को देनी होगी और पचास स्वर्ण मुद्राएँ राजकोष में जमा करनी पड़ेगी।
साहूकार को अपनी चालाकी का दंड मिल चुका था और किसान सही न्याय पाकर बादशाह अकबर और बीरबल की जय बोलता हुआ दरबार से चला गया।
कहानी से सीख
किसान और कुएं की कहानी से पता चलता है कि अपने आपको दूसरे से अधिक चालाक नहीं समझ कर किसी को धोखा नहीं देना चाहिए, क्योंकि कोई ऐसा भी हो सकता है, जो आपसे भी अधिक बुद्धि का इस्तेमाल करना जानता हो। ऐसे में आपका धोखा पकड़ा जाएगा और आपको अपने किए का भुगतान करना होगा, जैसे इस कहानी के अंत में कुआं बेचने वाले साहूकार को करना पड़ा।
तो देखा आपने कैसे बीरबल ने अपनी वाकपटुता से साहूकार को उसके ही बुने शब्दों के जाल में फंसा कर किसान को उचित न्याय दिलवाने में मदद की।
इसलिए कभी भी अपनी चतुराई या बुद्धि का इस्तेमाल किसी को नुकसान पंहुचाने के लिए नहीं करना चाहिए क्योंकि कहावत है ना “जो लोग दूसरों के लिए गड्ढा खोदते है वे खुद उसी में गिर जाते है” और “सेर को सवासेर” मिल ही जाता है।
“खुदाहाफिज” दोस्तों फिर मिलेंगे एक नए और मजेदार किस्से के साथ ।
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