बीरबल की खिचड़ी – Birbal Ki Khichdi
अकबर बीरबल के किस्से – बीरबल की खिचड़ी – Birbal Ki Khichdi – Birbal’s Stew
नमस्कार दोस्तों, आज में फिर आपके लिए लाई हूँ, अकबर-बीरबल के किस्सों की लड़ियों में से एक और मजेदार किस्सा। बीरबल ने कई बार अकबर द्वारा दी गई चुनौतियों को स्वीकार करके उनका ऐसा हल निकाला जिसे अकबर ने हँसते-हँसते स्वीकार भी किया।
अकबर बीरबल के कई किस्से है जो हमें हंसाते-गुदगुदाते हुए एक सीख भी दे जाते है। तो पेश ए खिदमत है उनमें से ही एक किस्सा “बीरबल की खिचड़ी”
अकबर बीरबल की सैर
सर्दी के दिन थे। दोपहर का समय था, बादशाह अकबर और बीरबल घोड़े पर तफ़रीह करते-करते नगर के पास बने एक जलाशय के पास पंहुचे। जलाशय को देख अकबर ने बीरबल से कहा, “बीरबल हमें चलते-चलते बहुत देर हो गई है।
हमारे घोड़े भी थक गए है। क्यों न हम इस जलाशय के समीप थोडा विश्राम कर ले जिससे घोड़ों को भी आराम मिल जायेगा।” बीरबल ने कहा, “जैसी आपकी आज्ञा हुज़ूर।”
दोनों वहा रूक गए। बीरबल ने घोड़ों को पानी पिलाया और एक पेड़ से बांध दिया। उन्होंने अकबर से कहा, “जहाँपनाह, विश्राम करने से पहले जलाशय में हाथ मुँह धो लीजिये, जिससे यात्रा की थकान मिट जाएगी और तरावट आ जाएगी।”
अकबर को बीरबल की सलाह उचित लगी। दोनों हाथ पैर धोने के लिए जलाशय के पास चले गए। अकबर ने पानी लेने के लिए जैसे ही जलाशय में हाथ डाला, एक झटके से बाहर निकाल लिया और बोले, “पानी तो बर्फ के सामान ठंडा है।”
बीरबल ने कहा, “ठंडे पानी से थोड़ी ठण्ड लगेगी जहाँपनाह, लेकिन सफ़र की सारी थकावट उतर जाएगी।” बीरबल के कहने पर अकबर ने अपने हाथ-पैर धो लिए, लेकिन ठंडे पानी से उसके हाथ-पैर सुन्न हो गए।
अकबर-बीरबल में ठना-ठनी
थोड़ी देर विश्राम करके दोनों राजमहल की तरफ चल दिए । रास्ते में अकबर ने कहाँ, “इस जलाशय के ठंडे पानी में कोई एक घंटे भी खड़ा नहीं रह सकता।” बीरबल ने कहा, “जरूरत और पेट की आग इंसान से कुछ भी करवा सकती है जहाँपनाह, यदि इस ठंडे पानी में खड़े रहने से किसी की ज़रूरत पूरी होती हो, तो वो पूरी रात भी इस जलाशय में खड़ा रह सकता है।”
बीरबल द्वारा अपनी बात काटना अकबर को अच्छा नहीं लगा।उन्होंने उस वक्त तो कुछ नहीं कहा और चुपचाप राजमहल लौट आये ।
अकबर की मुनादी
लेकिन वे बीरबल को गलत सिद्ध करना चाहते थे, इसलिए अगले दिन उन्होंने यह घोषणा करवा दी कि जो कोई भी शख्स नगर के बाहर वाले जलाशय में पूरी रात कमर तक पानी में खड़ा रहेगा, उसे वे एक हज़ार सोने की मुद्राएँ ईनाम में देंगे।
उसी दिन पूरे नगर में यह मुनादी करवा दी गई कि जलाशय के पानी में रातभर खड़े रहने वाले व्यक्ति को बादशाह सलामत एक हज़ार सोने की मुद्राएँ ईनाम में देंगे।
अकबर ने दो सैनिकों की नियुक्ति उस जलाशय के पास कर दी जिन्हें हिदायत दी गयी कि वे बारी-बारी से एक-एक कर रात भर जाग कर प्रतिभागियों पर नज़र रखेंगे।
मुनादी सुनकर कई लोग उस जलाशय में खड़े रहने के लिए आये। लेकिन कोई भी उस जलाशय के ठंडे पानी में दो या तीन घंटे से ज्यादा खड़ा नही हो सका।
इसी तरह एक सप्ताह बीत गया लेकिन कोई भी इस चुनौती को पूरा नहीं कर पाया। अकबर ने बीरबल से कहा, “देखा बीरबल, तुम गलत थे। कितने लोगों ने कोशिश कि लेकिन कोई भी व्यक्ति इस जलाशय में दो या तीन घंटे से ज्यादा खड़ा नही हो सका।”
बीरबल ने कहा, “गुस्ताखी माफ हो हुज़ूर, लेकिन मेरा अब भी यही मानना है, अब तक जो लोग आये थे शायद उनकी जरूरत उतनी बड़ी नहीं थी, जितनी इस जलाशय में रात भर खड़े रहने की शक्ति दे सके।”
अकबर ने कहा, “हम एक सप्ताह और इंतज़ार करेंगे यदि फिर भी कोई ये कारनामा नहीं कर पाया तो तुम्हें मानना पड़ेगा कि तुम गलत हो।” बीरबल ने सर झुकाकर आदाब करते हुए कहा, “जी जहाँपनाह”।
बूढ़े की लाचारी
इसी तरह छ: दिन और निकल गए, लेकिन इस बार तो किसी ने जलाशय में उतरने की भी हिम्मत नहीं दिखाई । आखरी दिन भी आ गया। अकबर बहुत प्रसन्न थे, आज की रात निकलने के बाद उनकी जीत पक्की होने वाली थी।
उसी नगर में एक वृद्ध व्यक्ति अपनी बेटी के साथ रहता था। उसकी बेटी विवाह योग्य हो चुकी थी। लेकिन उसके पास कुछ नहीं था कि वह अपनी बेटी के हाथ पीले कर सकें। यहाँ तक कि उसके ऊपर महाजन का भी बहुत कर्जा हो गया था।
महाजन ने उसे एक महीने की मोहलत दी थी और कहा था कि यदि उसने एक महीने में कर्ज अदा नहीं किया तो वह उसकी बेटी को ले जायेगा और उसे दासी बनाकर बेच देगा और अपनी रक़म की भरपाई करेगा।
जबसे उसने जलाशय में खड़े रहने की मुनादी सुनी थी तब से ही वह सोच रहा था कि यदि वह रात भर उस जलाशय में खड़ा रह ले तो ईनाम की राशि से उसका सार कर्ज भी चुक जायेगा और वह अपनी बेटी की शादी भी बड़ी धूमधाम से कर सकेगा।
लेकिन वह जानता था कि उसका बुढा शरीर उसका साथ नहीं दे पायेगा। जब अच्छे-अच्छे हट्टे-कट्टे नौजवान भी चुनौती को पूरी नहीं कर पाए तो वह कैसे कर पायेगा, जिसको दो समय की रोटी भी नसीब नहीं होती ।
महिना पूरा होने में केवल तीन दिन ही बचे थे, लेकिन उसके पास महाजन का कर्ज चुकाने के लिए कुछ नहीं था। वह अपनी बेटी को दासी बनते हुए नहीं देख सकता था। इसलिए उसने निश्चय कर लिया कि आज रात वह जलाशय में ज़रूर खड़ा रहेगा चाहे उसके प्राण ही क्यों ना चलें जाए।
कम से कम उसकी बेटी उसकी आँखों के सामने तो दासी नहीं बनेगी और उसे ये मलाल तो नहीं रहेगा कि उसने अपनी बेटी को महाजन से बचाने के लिए कुछ नहीं किया।
बूढ़े की हिम्मत
यह सोच कर वह दरबार में जाता है और बादशाह अकबर से कहता है कि वह चुनौती पूरी करने के लिए तैयार है। बादशाह उसे जलाशय पर भेज देते है और सिपाहियों को आदेश देते है कि उस पर कड़ी नज़र रखी जाए। वृद्ध व्यक्ति जलाशय में जाकर खड़ा हो जाता है, पानी में घुसते ही उसके हाथ-पैर सुन्न हो जाते है ।
थोडी ही देर में उसके दांत कटकटाने लगते ठण्ड के मारे पूरे शरीर में कपकपीं होनें लग जाती है, लेकिन वह हिम्मत नहीं हारता और पानी में खड़ा रहता है।
तभी उसे बादशाह के महल का बड़ा दिया दिखाई देता है वह भगवान का नाम लेते हुए अपना पूरा ध्यान उस दिए पर लगा देता है और पूरी रात उस जलाशय में खड़ा रहता है ।
सुबह वह बादशाह से जाकर कहता है, “मैंने आपकी चुनौती पूरी कर ली है, अब आप मुझे मेरा पारितोषिक दे देवें।” अकबर अपने सिपाहियों से पूछता है, “क्या ये बुढा व्यक्ति सही कह रहा है ?” सिपाही कहता है, “हाँ जहाँपनाह, हमने पूरी रात इसकी निगरानी की है, इसने पूरी रात जलाशय में कमर तक के पानी तक खड़े होकर गुजारी है।”
अकबर आश्चर्यचकित हो जाता है और वृद्ध व्यक्ति से पूछता है, “तुम पूरी रात इतनी ठण्ड में इतने ठंडे पाने में कैसे खड़े रहे, तुम्हें ठण्ड नहीं लगी?” वृद्ध व्यक्ति कहता है, “लगी जहाँपनाह, लेकिन मैं रात भर भगवान का नाम लेते हुए दूर आपके महल में जल रहे दीपक को देखता रहा जिससे मेरा ठण्ड की और ध्यान ही नहीं गया।”
अकबर का बीरबल के साथ छल
वृद्ध व्यक्ति की बात सुनकर एक दरबारी ने कहा, “इस व्यक्ति ने छल किया है हुज़ूर, यह रात भर आपके महल के दिए से गर्मी लेता रहा। ये ईनाम का नहीं सज़ा का हक़दार है।” बाकी सभी दरबारी भी उसकी हाँ में हाँ मिलाने लगे।
बादशाह यह समझते थे कि इतनी दूर जल रहे दिए से कोई गर्मी नहीं ले सकता, लेकिन वे किसी भी कीमत पर बीरबल से हारना नहीं चाहते थे और अब तो दरबारी भी वृद्ध व्यक्ति को गलत साबित कर रहे थे।
उन्होंने वृद्ध व्यक्ति से कहा, “तुमने हमारे महल के दिए से गर्मी लेकर चुनौती को पूरा किया है। इसलिए तुम ईनाम के हकदार नहीं हो। तुमने हमारे साथ छल किया है लेकिन फिर भी हम तुम्हे कोई सजा नहीं देते है। तुम अपने घर जा सकते हो।”
वृद्ध व्यक्ति रूआंसा होकर दरबार से चला जाता है। बीरबल ये सब देख रहे होते है लेकिन वह चुप रहते है। दरबार बर्खास्त होने पर जब बीरबल घर जा रहे होते है, तो वह वृद्ध व्यक्ति रास्ते में ही खड़ा होता है।
वह बीरबल को अपनी पूरी व्यथा सुनाते हुए उनसे न्याय दिलवाने की गुजारिश करता है। बीरबल उससे कहते है कि “यदि वह उनसे गुज़ारिश नहीं भी करता तो भी वह उसके साथ अन्याय नहीं होने देते।” बीरबल वृद्ध व्यक्ति को तसल्ली देकर अपने घर चले जाते है।
अकबर को दावत
रातभर वे इस बारे में सोचते है और सुबह वे बादशाह अकबर के पास शाम को अपने घर दावत का निमत्रण देते हुए संदेशा भिजवाते है कि वे आज राज दरबार में उपस्थित नहीं होंगे उन्हें दावत की तैयारियां करनी है ।
शाम को बादशाह अकबर बीरबल के घर पंहुच जाते है। बीरबल उनका स्वागत करते है और उन्हें आदर सहित मेहमानखाने में बैठा कर चले जाते है।
बीरबल थोड़ी-थोड़ी देर में आकर उनसे कहते है, “जहाँपनाह, बस खाना थोड़ी देर में बनने ही वाला है, जैसे ही तैयार होता है मैं आपकी ख़िदमत में पेश करता हूँ।”
काफी देर हो जाती है, लेकिन बीरबल खाना लेकर नहीं आते, अकबर से रहा नहीं जाता। वे ये सोचते हुए रसोईघर में जाते कि देखूं तो सही बीरबल ऐसा क्या ख़ास बना रहे है, जो इतनी देर लग रही है।
लेकिन रसोई में उन्हें कुछ भी पकता हुआ नज़र नहीं आता। बीरबल की पत्नी उन्हें बताती है कि बीरबल खाना बाहर बगीचे में पका रहे है।
बीरबल की खिचड़ी
अकबर बगीचे में जाते है, तो वहां क्या देखते है, कि बीरबल ने एक पेड़ के नीचे आग लगा रखी है और पेड़ की डाल पर एक मटकी बांध रखी है। बीरबल अकबर को देखकर कहते है, “माफ कीजियेगा जहाँपनाह, देखिये न मैंने सुबह से ही खिचड़ी बनाने को चढ़ा दी थी और नीचे आग भी जलाता जा रहा हूँ, लेकिन खिचड़ी है कि पकने का नाम ही नहीं ले रही।”
अकबर ने हँसते हुए कहा, “क्या बेवकुफों वाली बात करते हो बीरबल, इतनी नीचे आग लगाओगे तो खिचड़ी को ताप कैसे लगेगा, यह कैसे पकेगी?” बादशाह के इतना कहते ही बीरबल ने तपाक से कहा, “वैसे ही जिल्लेइलाही, जैसे दूर आपके महल में जल रहे दिए से वृद्ध व्यक्ति को गर्मी मिल थी।”
बूढ़े को मिला न्याय
बादशाह अकबर सारा माज़रा समझ गये। जोर से ठहाका लगाते हुए उन्होंने बीरबल से कहा, “कल उस वृद्ध व्यक्ति को दरबार में बुलवा लेना बीरबल, उसे उसका ईनाम मिल जायेगा।” बीरबल ने कहा, “माफ कीजिये जहाँपनाह, मुझे पता है कि आपको भी पता था कि इतनी दूर जल रहे दिए की रौशनी से किसी को गर्मी नहीं मिल सकती।
लेकिन मुझे हराने के लिए आपने उस वृद्ध व्यक्ति के साथ नाइंसाफी कर दी। मैं नहीं चाहता था कि मेरे कारण आपके चरित्र पर किसी भी तरह का दाग लगे और किसी के साथ अन्याय हों। इसलिए मैंने ये सब किया । अपनी गुस्ताखी के लिए एक बार फिर से माफी चाहता हूँ हुजूर।”
अकबर, “माफी किस बात की बीरबल, तुमने तो हमारे हाथों अन्याय होने से बचा लिया।” फिर अपने पेट पर हाथ फेरते हुए कहा, “अब कुछ खिलाने का भी इरादा है या आज हमें भूखे ही सोना पड़ेगा, पेट में चूहे कबड्डी खेल रहे है और अब तो घर जाने पर बेगम भी हमें कुछ खाने को नहीं देगी।”
बीरबल ने कान पकड़ते हुए कहा, “नहीं-नहीं जहाँपनाह, ऐसा कैसे हो सकता है, मेहमानखाने में चलियें, वहां आपकी दावत का पूरा-पूरा इंतजाम किया हुआ है। अब चलकर भोजन कर ही लिया जाए।” और दोनों हंसते हुए मेहमानखाने में चले जाते है।
अगले दिन बादशाह अकबर उस वृद्ध व्यक्ति को एक हजार स्वर्ण मुद्राएं दे देते है। वृद्ध व्यक्ति खुश होकर बादशाह अकबर और बीरबल की सलामती के लिए दुआ करता हुआ दरबार से चला जाता है ।
तो ऐसे थे हमारे हीरों बीरबल, किसी को न्याय दिलाने के लिए अकबर से भी पंगा ले लेते थे। आज की कहानी आपको कैसे लगी बताना मत भूलना। फिर मिलते है अकबर-बीरबल का एक और मजेदार किस्सा लेकर तब तक के लिए मुझे इजाजत दीजिये “सलाम”।
तो दोस्तों कैसी लगी कहानी, यदि अच्छी लगी तो देर किस बात की जल्दी से मेरी वेबसाइट को बुकमार्क कर लीजिये और सोशल मीडिया जैसे Facebook, Twitter, LinkedIn, WhatsApp (फेसबुक टि्वटर लिंकडइन इंस्टाग्राम व्हाट्सएप) आदि पर अपने दोस्तों को शेयर कीजिए।
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