Hanuman Ashtak Sankat Mochan Lyrics – संकटमोचन हनुमान अष्टक
संकटमोचन हनुमानाष्टक के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास ने की थी। इस रचना में हनुमान जी के शोर्य और संकटों को दूर करने वाले कार्यों का वर्णन आठ पदों में किया गया है, इसलिए इसे हनुमानाष्टक कहा जाता है।
संकटमोचन हनुमान अष्टक का पाठ हनुमान जी के भक्तों में अत्यंत लोकप्रिय होने के साथ-साथ बहुत ही प्रभावशाली और शुभ फल देने वाला है। हनुमान चालीसा के साथ हनुमानाष्टक का पाठ करने से मंगल दोष दूर होते हैं तथा भय और संकट दूर होते हैं।
इसलिए हर रोज हनुमान चालीसा और हनुमान अष्टक का पाठ का पाठ करना चाहिए। यदि समयाभाव के कारण ऐसा करना संभव ना हो तो मंगलवार और शनिवार के दिन तो हनुमान चालीसा और हनुमानष्टक का पाठ अवश्य करें।
हनुमानष्टक का पाठ करते समय हनुमान जी से प्रार्थना करे, “जिस तरह आपने सुग्रीव, श्री राम, माता सीता, लक्ष्मण जी, वानर सेना और सारे जगत को संकटों से मुक्त करवाया उसी तरह आप मेरे सभी कष्टों तथा संकटों को भी दूर कीजिए।”
तो चलिए हनुमान जी से अपने कष्टों के निवारण के लिए संकटमोचन हनुमान अष्टक का पाठ करते है: –
संकटमोचन हनुमान अष्टक
बाल समय रवि भक्षी लियो तब,
तीनहूँ लोक भयो अंधियारों ।
ताहि सों त्रास भयो जग को,
यह संकट काहु सों जात न टारो ।
देवन आनि करी बिनती तब,
छाड़ी दियो रवि कष्ट निवारो ।
को नहीं जानत है जग में कपि,
संकटमोचन नाम तिहारो ॥ १ ॥
बालि की त्रास कपीस बसैं गिरि,
जात महाप्रभु पंथ निहारो ।
चौंकि महामुनि साप दियो तब,
चाहिए कौन बिचार बिचारो ।
कै द्विज रूप लिवाय महाप्रभु,
सो तुम दास के सोक निवारो ॥ को० – २ ॥
अंगद के संग लेन गए सिय,
खोज कपीस यह बैन उचारो ।
जीवत ना बचिहौ हम सो जु,
बिना सुधि लाये इहाँ पगु धारो ।
हेरी थके तट सिन्धु सबै तब,
लाए सिया-सुधि प्राण उबारो ॥ को० – ३ ॥
रावण त्रास दई सिय को सब,
राक्षसी सों कही सोक निवारो ।
ताहि समय हनुमान महाप्रभु,
जाय महा रजनीचर मारो ।
चाहत सीय असोक सों आगि सु,
दै प्रभुमुद्रिका सोक निवारो ॥ को० – ४ ॥
बान लग्यो उर लछिमन के तब,
प्राण तजे सुत रावन मारो ।
लै गृह बैद्य सुषेन समेत,
तबै गिरि द्रोण सु बीर उपारो ।
आनि सजीवन हाथ दई तब,
लछिमन के तुम प्रान उबारो ॥ को० – ५ ॥
रावन युद्ध अजान कियो तब,
नाग कि फाँस सबै सिर डारो ।
श्रीरघुनाथ समेत सबै दल,
मोह भयो यह संकट भारो I
आनि खगेस तबै हनुमान जु,
बंधन काटि सुत्रास निवारो ॥ को० – ६ ॥
बंधु समेत जबै अहिरावन,
लै रघुनाथ पताल सिधारो ।
देबिहिं पूजि भलि विधि सों बलि,
देउ सबै मिलि मन्त्र विचारो ।
जाय सहाय भयो तब ही,
अहिरावन सैन्य समेत संहारो ॥ को० – ७ ॥
काज किये बड़ देवन के तुम,
बीर महाप्रभु देखि बिचारो ।
कौन सो संकट मोर गरीब को,
जो तुमसे नहिं जात है टारो ।
बेगि हरो हनुमान महाप्रभु,
जो कछु संकट होय हमारो ॥ को० – ८ ॥
॥ दोहा ॥
लाल देह लाली लसे, अरु धरि लाल लंगूर ।
वज्र देह दानव दलन, जय जय जय कपि सूर ॥
॥ इति संकटमोचन हनुमान अष्टक समाप्त ॥
Sankatmochan Hanuman Ashtak In English
Bal Samay Ravi Bhaksh Liyo Tab,
Tinhu Lok Bhayo Andhiyaro।
Tahi So Tras Bhayo Jag Ko,
Yah Sankat Kahu So Jaat Na Taro।
Devan Ani Kari Vinti Tab,
Chhadi Diyo Ravi kasht Niwaro ।
Ko Nahi Janat Hai Jag Me Kapi,
Sankatmochan Nam Tiharo ॥ 1 ॥
Bali Ki Tras Kapis Base Giri,
Jat Mahaprabhu Panth Niharo।
Chonki Mahamuni Sap Diyo Tab,
Chahiye Koun Vichar Bicharo ।
Kai Dwij Roop Liway Mahaprabhu,
So Tum Das ke Sok Niwaro ॥ Ko. – 2 ॥
Angad Ke Sang Len Gae Siy,
Khoj Kapis Yah Bain Ucharo ।
Jivit Na Bachihou Hm So Ju,
Bina Sudhi Laaye Iha Pagu Dharo।
Heri Thake Tat Sindhu Sabai Tab,
Laae Siya Sudhi Pran Ubaaro ॥ Ko. – 3 ॥
Ravan Tras Dai Siy Ko Sab,
Rakshasi So Kahi Sok Niwaro ।
Tahi Samay Hanuman Mahaprabhu,
Taay Maha Rajnichar Maro ।
Chahat Siy Asok So Aagi Su,
Dai Prabhu Mudrika Sok Niwaro ॥ Ko. – 4 ॥
Baan Lagyo Ur Lakshiman Ke Tab,
Pran Taje Sut Ravan Maro ।
Lai Gruh Baidhy Sushen Samet,
Tabai Giri Dron Su Bir Upaaro ।
Aani Sajivan Hath Dai Tab,
Lakshiman Ke Tum Pran Ubaro ॥ Ko. – 5 ॥
Ravan Yuddh Ajaan Kiyo Tab,
Naag Ki Fans Sabai Sir Daro ।
Shriraghunath Samet Sabai Dal,
Moh Bhayo Yah Sankat Bharo I
Aani Khages Tabai Hanuman Ju,
Bandhan Kati Sutras Niwaro ॥ Ko. – 6 ॥
Bandhu Samet Jabai Ahiravan,
Lai Raghunaath Pataal Sidhaaro ।
Debihi Puji Bhali Vidhi So Bali,
Deu Sabai Mili Mantra Vicharo ।
Jaau Sahay Bhayo Tab Hi,
Ahiravan Sainy Samnet Sanharo ॥ Ko. – 7 ॥
Kaj Kiye Bad Devan Ke Tum,
Beer Mahaprabhu Dekhi Bicharo।
Kaoun So Sankat Mor Garib Ko,
Jo Tumso Nahi Jaat Hai Raro ।
Begi Haro Hanuman Mahaprabhu,
Jo Kachu Sankat Hiy Hmaaro ॥ Ko. – 8 ॥
॥ Doha ॥
Lal Deh Lali Lase, Aru Dhari Lal Langur ।
Vajra Deh Danav Dalan, Jai Jai Jai Kapi Sur॥
॥ Iti Sankatmochan Hanuman Ashtak Ends ॥
संकटमोचन हनुमान अष्टक हिन्दी अर्थ सहित
कई बार भक्त संकटमोचन हनुमान अष्टक का पाठ करते हुए उसके अर्थ को भी जानना चाहते है। वैसे तो तुलसीदास जी ने इसकी भाषा बहुत ही सरल लिखी है। इसका गायन या पठन करने मात्र से ही इसका पूरा अर्थ समझ में आ जाता है।
लेकिन फिर भी यदि आपको हनुमान अष्टक के दोहों का अर्थ समझने में कठिनाई होती है तो मैंने आपके लिए यहाँ पर दोहों के साथ -साथ उनका अर्थ समझाने का भी एक छोटा सा प्रयास किया है: –
बाल समय रबि भक्षि लियो तब, तीनहूँ लोक भयो अँधियारो |
ताहि सों त्रास भयो जग को, यह संकट काहु सों जात न टारो ||
देवन आनि करी बिनती तब, छाँड़ि दियो रबि कष्ट निवारो ।
को नहिं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो ॥ 1॥
अर्थ – हे हनुमान जी आपने अपने बाल्यावस्था में सूर्य को एक लाल फल समझकर निगल लिया था, जिससे तीनों लोक में अंधकार फ़ैल गया। किसी अनिष्ट की आशंका के कारण सारे संसार में भय व्याप्त हो गया और लोग त्राहि-त्राहि करने लगे। इस संकट को दूर करने का किसी के पास भी कोई समाधान नहीं था।
तब सभी देवताओं ने आपके सम्मुख आकर आपसे सूर्य को छोड़ने की प्रार्थना की तब आपने सूर्य को छोड़ दिया और सभी का भय और कष्ट दूर हुआ। पूरे संसार में ऐसा कौन-सा प्राणी है, जो यह नहीं जानता कि आपका नाम संकटमोचन अर्थात “सभी संकटों का नाश करने वाला” है।
बालि की त्रास कपीस बसै गिरि, जात महाप्रभु पंथ निहारो ।
चौंकि महा मुनि साप दियो तब, चाहिय कौन बिचार बिचारो ॥
कै द्विज रूप लिवाय महाप्रभु, सो तुम दास के सोक निवारो ।
को नहिं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो ॥ 2॥
अर्थ – जब बालि अपने छोटे भाई सुग्रीव को मारना चाहते थे तो उनसे बचने के कारण सुग्रीव इधर-उधर छुप रहे थे लेकिन बालि से छुपना संभव नहीं था। तब हनुमान जी ने उन्हें सलाह दी कि वे ऋष्यमूक पर्वत पर जाकर रहे। इसमें किसी भी तरह का विचार करने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि वहाँ पर ऋषि मतंग का आश्रम था और उन्होंने बालि को श्राप दिया था कि बालि उस पर्वत के एक योजन तक नहीं आ सकता, यदि वह ऐसा करता है तो उसकी मृत्यु हो जाएगी।
एक दिन सुग्रीव ने जब राम और लक्ष्मण को ऋष्यमूक पर्वत की तरफ आते हुए देखा तो वे यह सोचकर भय से ग्रस्त हो गए कि कहीं इन दोनों योद्धाओं को उनके बड़े भाई बालि ने उन्हें मारने के लिए तो नहीं भेजा है। तब उन्होंने हनुमान जी को उनके पास जाकर पता लगाने के लिए कहा।
तब हे हनुमान जी आप ब्राह्मण का वेश धरकर प्रभु श्रीराम के पास गए और उनका भेद जाना। फिर उन्हें अपने साथ ऋष्यमूक पर्वत पर ले गए और सुग्रीव से उनकी मित्रता करवाई। इसके बाद श्रीराम ने बालि को मार कर सुग्रीव के सभी दुखों का निवारण किया। यह सब आपके कारण ही संभव हुआ।
संसार में ऐसा कोई प्राणी नहीं है, जो यह नहीं जानता कि आपका नाम संकटमोचन अर्थात “सभी संकटों का नाश करने वाला” है।
अंगद के सँग लेन गए सिय, खोज कपीस यह बैन उचारो ।
जीवत ना बचिहौ हम सो जु, बिना सुधि लाए इहाँ पगु धारो ॥
हेरी थके तट सिंधु सबै तब, लाय सिया-सुधि प्राण उबारो ।
को नहिं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो ॥ 3॥
अर्थ – जब महाराज सुग्रीव ने चारों दिशाओं में अपनी वानर सेना को भेजा था, तब उन्होंने उन सब से कहा था कि जो कोई भी माता सीता का पता लगाए बिना वापस यहाँ आएगा, उसे मैं मृत्युदंड दे दूँगा।
आप भी अंगद, जामवंत व अन्य वानरों के साथ माता सीता की खोज में गए। वानर सेना के समस्त वानरों ने माता सीता को चारों दिशाओं में बहुत ढूंढा लेकिन माता सीता कहीं नहीं मिली। तब सब वानर सेना सिंधु के तट पर पँहुच गई।
लेकिन 100 योजन के समुद्र को पार करके वापस आना किसी के लिए भी संभव नहीं था (अंगद और जामवंत ऐसा कर सकते थे, लेकिन उनका लंका में न जा सकने के भी कुछ कारण थे, जो अभी यहाँ नहीं बताए जा सकते।)।
तब सारी वानर सेना थक हार कर सिंधु के तट पर बैठ गई। उन्हें अपनी मृत्यु का भय सताने लगा। तब जामवंत ने आपको आपकी शक्तियों का स्मरण करवाया क्योंकि हनुमान जी बचपन में मिले ऋषियों से मुले श्राप के कारण अपनी शक्तियों को भूल चुके थे।
अपनी शक्ति का स्मरण होने पर आप 100 योजन के समुद्र को पार करके लंका में गए और माता सीता का पता लगाकर वापस आए और सभी वानरों के प्राणों की रक्षा की।
संसार में ऐसा कोई प्राणी नहीं है, जो यह नहीं जानता कि आपका नाम संकटमोचन अर्थात “सभी संकटों का नाश करने वाला” है।
रावण त्रास दई सिय को सब, राक्षसी सों कही सोक निवारो ।
ताहि समय हनुमान महाप्रभु, जाए महा रजनीचर मारो ।
चाहत सीय असोक सों आगि सु, दै प्रभु मुद्रिका सोक निवारो
को नहिं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो॥ ४ ॥
अर्थ – माता सीता के अपहरण के बाद रावण ने उन्हें अशोक वाटिका में रखा और अपने से विवाह करने का प्रस्ताव रखा। जब सीता ने इसे अस्वीकार कर दिया तो उसने माता सीता को नाना प्रकार से भय दिखाया और कष्ट दिए, ताकि माता सीता उसकी बात मान लें।
उसने माता सीता के पास कई राक्षसियों को भी भेजा कि वे डरा-धमकाकर माता सीता को मना लें। उस समय हनुमान जी ने वहाँ जाकर कई बड़े-बड़े और शक्तिशाली राक्षसों का वध किया।
रावण के कष्टों से परेशान होकर माता सीता ने अपने प्राण देने का मन बना लिया और अशोक के वृक्ष से खुद को जलाकर भस्म करने के लिए अग्नि देने की प्रार्थना की। उसी समय आपने अशोक वृक्ष पर बैठ कर भगवान श्रीराम की अंगूठी उनकी गोद मे डाल दी और उन्हें प्रभु श्रीराम का संदेश दिया कि प्रभु श्रीराम शीघ्र ही उन्हें रावण की कैद से मुक्त करवाने लंका आएंगे। यह सुनकर माता सीता शोक से मुक्त हुईं।
संसार में ऐसा कोई प्राणी नहीं है, जो यह नहीं जानता कि आपका नाम संकटमोचन अर्थात “सभी संकटों का नाश करने वाला” है।
बान लग्यो उर लछिमन के तब, प्राण तजे सुत रावन मारो ।
लै गृह बैद्य सुषेन समेत, तबै गिरि द्रोण सु बीर उपारो ।
आनि सजीवन हाथ दई तब, लछिमन के तुम प्रान उबारो
को नहिं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो ॥ ५ ॥
अर्थ – जब रावण के पुत्र मेघनाद ने लक्ष्मण जी पर शक्ति का प्रहार किया और लक्ष्मण जी मूर्छित होकर भूमि पर गिर गए। उनके प्राणों पर संकट आ गया। तब विभीषण जी ने बताया कि लंका के राज्य वैद्य सुषेण जी ही लक्ष्मण जी का उपचार कर सकते हैं।
तब हे हनुमान जी! आप लंका से सुवैद्य षेण को घर सहित उठा कर ले आए। उन्होंने लक्ष्मण के प्राणों की रक्षा के लिए सूर्योदय से पहले द्रोणागिरी पर्वत से संजीवनी बूटी लाने को कहा ।
तब आप प्रभु श्रीराम से आज्ञा लेकर द्रोणागिरी पर्वत से संजीवनी बूटी लाने चले गए। वहाँ पर आपको संजीवनी बूटी का पता नहीं चला तो समय पर पँहुचने के लिए आप द्रोणागिरी पर्वत का एक बहुत बड़ा टुकड़ा उखाड़कर लंका ले आए। जिससे लक्ष्मण के प्राण बच सके।
संसार में ऐसा कौन है, जो आपके संकटमोचन “संकटों से रक्षा करने वाला” नाम को नहीं जानता।
रावन युद्ध अजान कियो तब, नाग कि फाँस सबै सिर डारो ।
श्रीरघुनाथ समेत सबै दल, मोह भयो यह संकट भारो ॥
आनि खगेस तबै हनुमान जु, बंधन काटि सुत्रास निवारो
को नहिं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो ॥ ६ ॥
अर्थ – रावण ने राम-लक्ष्मण से भीषण युद्ध करते हुए नागपाश बाण का प्रयोग किया और राम-लक्ष्मण को नागपाश में बांध दिया। तब श्रीराम-लक्ष्मण और उनकी सारी वानर सेना पर घोर संकट आ गया।
तब हे संकटमोचन हनुमान जी, आप विष्णु लोक जाकर गरुड़ जी को बुलाकर लाए और गरुड़ जी ने नागपाश को काट कर श्रीराम-लक्ष्मण को मुक्त करके श्रीराम-लक्ष्मण जी और उनकी वानर सेना पर आए संकट को दूर किया।
संसार में ऐसा कोई प्राणी नहीं है, जो यह नहीं जानता कि आपका नाम संकटमोचन अर्थात “सभी संकटों का नाश करने वाला” है।
बंधु समेत जबै अहिरावन, लै रघुनाथ पताल सिधारो ।
देबिहिं पूजि भलि विधि सों बलि, देउ सबै मिलि मन्त्र विचारो ॥
जाय सहाय भयो तब ही, अहिरावन सैन्य समेत संहारो ।
को नहिं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो ॥ ७ ॥
अर्थ – लंका युद्ध के समय रावण के कहने पर रावण का भाई अहिरावण छल से श्रीराम और लक्ष्मण जी का छल से सोते समय अपहरण करके पाताल लोक ले गया और देवी की पूजा कर उनके सामने उन दोनों की बलि देने की तैयारी कर रहा था।
उसी समय हे संकटमोचन हनुमान जी आप वहाँ पँहुच गए और आपने अहिरावण-महिरावण का उनकी सेना सहित संहार कर श्रीराम और लक्ष्मण जी को मुक्त करवाया।
संसार में ऐसा कौन है, जो यह नहीं जानता कि आपका नाम संकटमोचन अर्थात “सभी संकटों का नाश करने वाला” है।
काज किये बड़ देवन के तुम, बीर महाप्रभु देखि बिचारो ।
कौन सो संकट मोर गरीब को, जो तुमसे नहिं जात है टारो ।
बेगि हरो हनुमान महाप्रभु, जो कछु संकट होय हमारो ॥
को नहिं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो ॥ ८ ॥
अर्थ – हे वीरों के वीर महाप्रभु हनुमान जी, आपने तो देवताओं के बड़े-बड़े काज पूरे किये हैं। अब आप मेरी तरफ भी देखकर कर विचार कीजिए कि मुझ गरीब का ऐसा कौन-सा संकट है, जिसका आप निवारण नहीं कर पा रहे हैं।
हे हनुमान जी महाराज मेरा जो को भी संकट है उसे जल्दी से जल्दी दूर कर दीजिए। संसार में ऐसा कौन है, जो यह नहीं जानता कि आपका नाम संकटमोचन अर्थात “सभी संकटों का नाश करने वाला” है।
॥ दोहा ॥
लाल देह लाली लसे, अरु धरि लाल लंगूर ।
वज्र देह दानव दलन, जय जय जय कपि सूर ॥
अर्थ – हे हनुमान जी, आपने अपने लाल शरीर पर सिंदूर लगाकर लाल लंगूर के समान रूप धारण किया हुआ है। आपका शरीर वज्र के समान कठोर व बलशाली है जिससे आप दानवों का नाश करते हैं। हे देव हनुमान जी, आपकी जय हो, जय हो, जय हो।
बोलो श्रीराम भक्त हनुमान, पवनपुत्र हनुमान की जय, बजरंग बली की, माता अंजनी के लाल की जय, केसरी नंदन की जय
मैंने अपनी समझ के अनुसार हनुमान अष्टक के सभी पदों का हिन्दी अर्थ लिखा है, लेकिन मैं भी एक तुच्छ इंसान हूँ जो प्रभु की अपार महिमा का पूर्णत: वर्णन करने में असमर्थ है। इसलिए यदि इसमें कुछ त्रुटि हो तो मुझे क्षमा कीजिएगा
मेरे पाठकों में कई पाठक ऐसे भी होंगे जो बहुत ज्यादा ज्ञानी होंगे। उन पाठकों से मेरा विनम्र निवेदन है कि कृपया मुझे मेरी त्रुटियों को दूर करने के लिए मार्गदर्शन प्रदान करें।
Hanuman Ashtak Sankat Mochan Vidio – संकटमोचन हनुमान अष्टक वीडियो
यहाँ मैं आपके लिए संकटमोचन हनुमान अष्टक पाठ के वीडियो का लिंक दे रही हूँ, जिससे आप लय के साथ हनुमान अष्टक का पाठ कर सकें।
संकटमोचन हनुमान अष्टक क्यों पढ़ना चाहिए?
मान्यता है कि जब कोई चारों तरफ से संकटों और समस्याओं से घिरा हुआ हो तो संकटमोचन श्री हनुमान जी की साधना करने से उसके सभी संकटों व समस्याओं का निवारण हो जाता है। का सहायक सिद्ध होती है।
कितना भी बुरा समय हो, कितनी भी कठिनाई हो संकटमोचक हनुमान अष्टक का पाठ रामबाण की तरह अचूक है। तो आपके मन में ऐसा क्यों है?
तो इसके पीछे भी एक मजेदार कहानी है। आपको संक्षेप में बताती हूँ। तो बही हमारे प्रिय हनुमान जी जो बहुत ही बलवान और अष्ट सिद्धियों व नव निधियों के ज्ञाता और दाता है अपनी बालीवास्था में बहुत ही शरारती थे।
भगवान शिवजी का अंशावतार होने के कारण उनके पास अत्यंत बलशाली और दैवीय शक्तियों के स्वामी थे। लेकिन अपनी बालसुलभ चंचलता के कारण वे अपनी शक्तियों का प्रयोग लोगों व ऋषि-मुनियों को परेशान करने में करते थे।
एक दिन इसी बचपने में उन्होंने ऋषि अंगिरा और भृंगवंश की तपस्या भंग कर दी तब ऋषि अंगिरा और भृगुवंश के ऋषियों ने उन्हें श्राप दिया कि वे अपनी सारी शक्तियों को भूल जाएंगे।
तब उनकी माता अंजना ने उनसे श्राप वापस लेने की विनती की। तब उन्होंने कहा दिया हुआ श्राप वापस नहीं हो सकता लेकिन जब कोई उन्हें उसनकी शक्तियों को याद दिलवाएगा तब उन्हें अपना वास्तविक स्वरूप और अपनी सारी शक्तियां याद आ जाएंगी। जिससे वे कठिन से कठिन कार्य को भी सिद्ध कर लेंगे।
संकटमोचन हनुमान अष्टक में हनुमान जी के सभी शोर्यपूर्ण कार्यों का वर्णन किया गया है। ऐसा माना जाता है कि हनुमान अष्टक के माध्यम से भक्त हनुमान जी को उनकी शक्तियों का स्मरण करवाते हैं और उनसे अपने कष्टों का निवारण करने के लिए प्रार्थना करते हैं।
संकटमोचन हनुमान अष्टक का पाठ सुनकर हनुमान जी प्रसन्न होकर अपने भक्तों की प्रत्येक संकट से रक्षा करते हैं।
डिस्क्लेमर: –
इस लेख में दी गई सभी जानकारियाँ सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं तथा मान्यताओं पर आधारित हैं। Lookinhindi.Com इसकी पुष्टि नहीं करता है। यदि आप इन लेखों में दी गई जाकारियों से भ्रमित या असहमत है तो इसके लिए किसी विशेषज्ञ से सलाह अवश्य लें।
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