Hanuman Ji Ki Kahaniyan
हनुमान जी कैसे बन गए संकट मोचन, Facts से जानिए पूरी कहानी
वाराणसी. गोस्वामी तुलसीदास की रचनाओं में से एक हनुमान अष्टक है, जिसमें लिखा है, ‘को नहीं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो’। dainikbhaskar.com आपको इसी संकट मोचन मंदिर के बारे में बता रहा है, जहां स्वंय हनुमान विराजमान हैं। Facts से जानिए पूरी कहानी…
- मंदिर के महंत विश्वम्भर नाथ मिश्र ने बताया कि कथानक के अनुसार, 1560 के आसपास यहां के जंगलों में गोस्वामी तुलसीदास भक्तों के बीच राम की स्तुती करते थे। उनको सुनने के लिए एक कुष्ट रोगी भी रोज आता था और सबसे पीछे बैठ जाता था।
- एक बार तुलसीदास ने उस रोगी के पास जाने की कोशिश की, लेकिन वह वहां से निकल गया। पीछा करते हुए तुलसीदास वन में पहुंचे और उसके पैर पड़क बोल पड़े- प्रभु दर्शन दीजिए। उन्होंने जिस स्थान पर प्रभु का पैर पकड़ा उस स्थान पर आज भी हनुमान जी मूर्ति स्थापित है। तुलसीदास ने अपने इसी हनुमान का नाम संकटमोचन रखा।
- संकटमोचन हनुमान को अपने इष्टदेव मान, उन्होंने यहीं कई रचनाओं के साथ हनुमान अष्टक की रचना की। इन्हीं हनुमान जी के लिए मान्यता है कि ‘आपन तेज सम्भहरो आपे, तिंनहु लोक हांकते कांपे’।
- इसी जगह पर हनुमान जी के दर्शन तुलसीदास को हुए थे। उन्हीं के कहने पर वह मिट्टी की मूर्ती के रूप में परिवर्तित होकर भक्तों के लिए स्थापित हो गए।
- तुलसीदास ने हाथ में पीड़ा के निवारण के लिए ‘हनुमान बाहुक’ भी लिखा, संकट मोचन तभी से दुखों और संकट को हरने वाले संकट मोचन हनुमान के रूप में भक्तों के साथ हैं।
आज भी मौजूद है तुलसीदास के समय का वन
- 8 एकड़ भूमि में फैला तुलसीदास के समय का वन आज भी मौजूद है। यहां वन कदम और वन फूल जैसे दुर्लभ वृक्ष हैं। हर साल कदम पेड़ की डाल विश्व प्रसिद्द नाग नथैया के लिए तुलसी घाट जाती है।
- वह पंपसार तालाब आज भी मौजूद हैं, जहां तुलसीदास के समय से चली आ रही राम और हनुमान के मिलन और सुग्रीव- बाली के युद्ध की लीला होती है।
- अमिताभ बच्चन ने अभिषेक की शादी की मन्नत यहीं मानी थी और पहला शादी का कार्ड संकट मोचन को चढ़ाया था।
- पंडित जसराज 43 सालों से होटल के बजाए संकट मोचन स्थित एक साधारण से कमरे में ही रुकते हैं।
- मंदिर सांप्रदायिक सौहार्द की मिशाल है, जहां पाकिस्तान से आए गजल सम्राट गुलाम अली भी प्रस्तुति देते हैं।
- संगीत और संकटमोचन के मंदिर का रिश्ता सोलहवीं शताब्दी में गोस्वामी जी ने शुरू किया।
- संकटमोचन जी को असंभव को संभव करने की शक्ति की मान्यता है। 94 सालों से वृहद् आयोजन संकट मोचन संगीत समारोह में तमाम कलाकार भगवान से प्रार्थना कर दुआ मांगते हैं।
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हनुमान अष्टक: जब व्यक्ति सभी तरफ से संकटों और परेशानियों से घिरा होता है तो उनसे निकलने के लिए संकटमोचन हनुमान जी की साधना सबसे सहायक सिद्ध होती है।
क्या आपको मालूम है कि हनुमान चालीसा किसने लिखी. तकरीबन हर हिंदू घर में हनुमान चालीसा रहती ही रहती है. बड़ी संख्या में हिंदू इसका रोज पाठ भी करते हैं. इसको लिखने वाले के बारे में कितने लोग जानते हैं. किंवदंती है कि इसे लिखने वाले को सम्राट अकबर ने जेल में डाल दिया था, उसके बाद बंदरों के उत्पात के बाद उन्हें रिहा करना पड़ा था.
मान्यता है कि हनुमान चालीसा के रचयिता तुलसीदास हैं. उन्होंने ही रामचरित मानस भी लिखा था. उनके नाम से तो हर कोई परिचित है. उन्होंने किन हालात में इसे लिखा, इसे लेकर कई किंवदंतियां प्रचलित हैं.
कहा जाता है कि गोस्वामी तुलसीदास जी को हनुमान चालीसा लिखने की प्रेरणा मुगल सम्राट अकबर की कैद से मिली. किंवदंती है कि एक बार मुगल सम्राट अकबर ने गोस्वामी तुलसीदास जी को शाही दरबार में बुलाया.
तब तुलसीदास की मुलाकात अब्दुल रहीम ख़ान-ए-ख़ाना और टोडर मल से हुई. उन्होंने काफी देर तक उनसे बातचीत की. वह अकबर की तारीफ में कुछ ग्रंथ लिखवाना चाहते थे. तुलसीदास जी ने मना कर दिया. तब अकबर ने उन्हें कैद कर लिया.
रिहाई भी अजब तरीके से हुई
किंवदंती कहती है कि तुलसीदास की रिहाई भी फिर अजीब तरीके से हुई. ये किंवदंती फतेहपुर सीकरी में भी प्रचलित है. बनारस के पंडित भी इससे मिलती-जुलती एक और कहानी सुनाते हैं. बकौल इसके, एक बार बादशाह अकबर ने तुलसीदास जी को दरबार में बुलाया. उनसे कहा कि मुझे भगवान श्रीराम से मिलवाओ. तब तुलसीदास जी ने कहा कि भगवान श्री राम सिर्फ भक्तों को ही दर्शन देते हैं. यह सुनते ही अकबर ने तुलसीदास जी को कारागार डलवा दिया.
किंवदंती है कि जब पहली बार तुलसीदास ने इसका वाचन किया तो खुद हनुमान जी एक बुजुर्ग व्यक्ति का रूप रखकर इसे सुनने आए
बंदरों के नुकसान के बाद रिहा के किए गए
किंवदंती के अनुसार, कारावास में ही तुलसीदास जी ने अवधी भाषा में हनुमान चालीसा लिखी. उसी दौरान फतेहपुर सीकरी के कारागार के आसपास ढे़र सारे बंदर आ गए. उन्होंने बड़ा नुकसान किया. तब मंत्रियों की सलाह मानकर बादशाह अकबर ने तुलसीदास जी को कारागार से मुक्त कर दिया. भारत की सबसे प्रमाणिक हिन्दी आनलाइन एनक्लोपीडिया भारत कोषभी तुलसीदास को हनुमान चालीसा का लेखक मानती है. हालांकि हिंदी के कुछ अन्य विद्वानों का कहना है कि हनुमान चालीसा किसी और तुलसीदास की कृति है.
दुनियाभर में सबसे ज्यादा बार पढ़ी जा चुकी है
हनुमान चालीसा को दुनिया में सबसे ज्यादा बार पढ़ी जाने वाली पुस्तिका माना जाता है. इसमें हनुमान के गुणों एवं कामों का अवधी में बखान है. इस चालीसा में चालीस चौपाइयों में ये वर्णन है, इसीलिए इसे चालीसा कहा गया. इसमें 40 छंद भी हैं.
कहा जाता है कि जब पहली बार तुलसीदास ने इसका वाचन किया तो हनुमान जी ने खुद इसे सुना. एनडीटीवी डॉट कॉम की एक रिपोर्ट के अनुसार , हनुमान चालीसा को सबसे पहले खुद भगवान हनुमान ने सुना. प्रसिद्ध कथा के अनुसार जब तुलसीदास ने रामचरितमानस बोलना समाप्त किया तब तक सभी व्यक्ति वहां से जा चुके थे लेकिन एक बूढ़ा आदमी वहीं बैठा रहा. वो आदमी और कोई नहीं बल्कि खुद भगवान हनुमान थे.
हनुमान चालीसा के बारे में कुछ और बातें
.- हनुमान चालीसा की शुरुआत दो दोहे से होती जिनका पहला शब्द है ‘श्रीगुरु’, इसमें श्री का संदर्भ सीता माता है जिन्हें हनुमान जी अपना गुरु मानते थे.
– हनुमान चालीसा के पहले 10 चौपाई उनके शक्ति और ज्ञान का बखान करते हैं. 11 से 20 तक के चौपाई में उनके भगवान राम के बारे में कहा गया, जिसमें 11 से 15 तक चौपाई भगवान राम के भाई लक्ष्मण पर आधारित है. आखिर की चौपाई में तुलसीदास ने हनुमान जी की कृपा के बारे में कहा है.
– अंग्रेजी के अलावा भारत की सभी भाषाओं में इसका अनुवाद हो चुका है. ये गीता प्रेस द्वारा सबसे ज्यादा छापी जाने वाली पुस्तिका है.
हनुमान जी के दोनों पैरों पर लगा सिंदूर बहुत ही प्रभावशाली होता हैं. ऐसा माना जाता हैं कि इस सिंदूर का तिलक जब कोई भी व्यक्ति अपने मस्तिष्क पर लगता हैं. तो हनुमान जी उस व्यक्ति को सद्बुद्धि प्रदान करते हैं.
भगवान हनुमान को संकटमोचन भी कहा जाता है और मान्यता है कि अगर विधि-विधान के साथ हनुमान जी का पूजन किया जाए तो वह अपने भक्तों के सभी संकट हर लेते हैं. मंगलवार व शनिवार का दिन हनुमान जी को समर्पित है और इस दिन उनको यदि सिंदूर चढ़ाया जाए तो वह अति प्रसन्न होते हैं. आपने हनुमान मंदिर में देखा होगा कि हनुमान जी की मूर्ति सिंदूर से रंगी होती है और उनकी पूजा करते वक्त सिंदूर से उनका श्रृंगार किया जाता है. जबकि आमतौर पर सभी भगवानों को रोली व सिंदूर का तिलक किया जाता है. आइए जानते हैं आखिर क्यों हनुमान के पूरे शरीर पर सिंदूर लगाया जाता है?
हनुमान जी होते हैं प्रसन्न
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार यदि कोई भक्त किसी संकट से जूझ रहा है तो हनुमान जी को सिंदूर का चोला चढ़ाने से उसके सभी संकट दूर होते हैं. इससे हनुमान जी प्रसन्न होकर अपने भक्तों पर कृपा बरसाते हैं. इसके अलावा यह भी कहा जाता है कि सिंदूर चढ़ाने से हनुमान जी अपने भक्त के जीवन में आ रही सभी बाधाओं को दूर करते हैं और सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं. हनुमान के शरीर पर लगे सिंदूर को एक पौराणिक कथा काफी प्रचलित है.
इसलिए लगाते हैं हनुमान जी को सिंदूर
पौराणिक कथा के अनुसार त्रेता युग में माता सीता अपनी मांग में सिंदूर लगाया करती थीं. एक बार माता सीता मांग में सिंदूर लगा रही थी तभी हनुमान वहां पहुंच गए और उनको सिंदूर लगाते वक्त जिज्ञासापूर्वक पूछा कि माता आप अपनी मांग में सिंदूर क्यों लगाती हैं? इस प्रश्न के जवाब में माता सीता ने कहा कि वे अपने स्वामी, अपने पति श्रीराम की लंबी आयु और अच्छे स्वास्थ्य के लिए मांग में सिंदूर लगाती हैं. हिंदू धर्म शास्त्रों में प्राचीन काल से सुहागिने अपनी मांग में सिंदूर लगाती आ रही है. इससे पति की आयु लंबी होती है.
यह सुनकर हनुमान जी ने सोचा कि वो भी तो अपने आराध्य भगवान श्रीराम से बहुत प्रेम करते हैं और उनकी लंबी उम्र की कामना करते हैं. अगर मांग भरने से उनकी उम्र लंबी होती है तो मैं अपने पूरे शरीर में सिंदूर लगा लेता हूं इससे मेरे प्रभु अमर हो जाएंगे. यही सोचकर हनुमान जी ने अपने पूरे शरीर में सिंदूर लगा लिया. बस तभी से हनुमान जी को सिंदूर चढ़ाने की परंपरा चली आ रही है.
डिस्क्लेमर: यहां दी गई सभी जानकारियां सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं. India.Com इसकी पुष्टि नहीं करता. इसके लिए किसी एक्सपर्ट की सलाह अवश्य लें.
द्रोणागिरी पर्वत:उत्तराखंड का एक गांव, जहां नहीं होती है हनुमानजी की पूजा, यहां के लोग द्रोणागिरी पर्वत को मानते हैं देवता
मान्यता – श्रीराम-रावण युद्ध के समय हनुमान नीति गांव से संजीवनी बूटी के लिए उखाड़ ले गए पर्वत का एक हिस्सा
उत्तराखंड के चामोली जिले में जोशीमठ से करीब 50 किलोमीटर दूर स्थित है नीति गांव। इस गांव में द्रोणागिरी पर्वत है। इस पर्वत का इतिहास रामायण काल से जुड़ा है। मान्यता है कि श्रीराम-रावण युद्ध में मेघनाद के दिव्यास्त्र से लक्ष्मण मुर्छित हो गए थे। तब हनुमानजी द्रोणागिरी पर्वत संजीवनी बूटी लेने के लिए आए थे। यहां के लोग इस पर्वत को देवता मानते हैं। हनुमानजी इस पर्वत का एक हिस्सा ले गए थे, इस कारण गांव के लोग हनुमानजी की पूजा नहीं करते हैं।
हनुमानजी संजीवनी बूटी को पहचान नहीं पा रहे थे। तब उन्होंने द्रोणागिरी पर्वत का एक हिस्सा उखाड़ लिया था और इस हिस्से को लंका ले गए थे। ये पर्वत बद्रीनाथ धाम से करीब 45 किमी दूर स्थित है। बद्रीनाथ धाम के धर्माधिकारी भुवनचंद्र उनियाल बताते हैं कि आज भी द्रोणागिरी पर्वत का ऊपरी हिस्सा कटा हुआ लगता है। इस हिस्से को हम आसानी से देख सकते हैं।
शीतकाल में खाली हो जाता है गांव
द्रोणागिरी पर्वत की ऊंचाई 7,066 मीटर है। यहां शीतकाल में भारी बर्फबारी होती है। इस वजह गांव के लोग यहां से दूसरी जगह रहने के लिए चले जाते हैं। गर्मी के समय जब यहां का मौसम रहने योग्य होता है तो गांव के लोग वापस यहां रहने के लिए आ जाते हैं।
ट्रैकिंग करने के लिए काफी लोग पहुंचते हैं द्रोणागिरी पर्वत
उत्तराखंड के चमोली जिले में जोशीमठ से मलारी की तरफ लगभग 50 किलोमीटर आगे बढ़ने पर जुम्मा नाम की एक जगह आती है। यहीं से द्रोणागिरी गांव के लिए पैदल मार्ग शुरू हो जाता है। यहां धौली गंगा नदी पर बने पुल के दूसरी तरफ सीधे खड़े पहाड़ों की जो श्रृंखला दिखाई देती है, उसे पार करने के बाद द्रोणागिरी पर्वत पहुंच सकते हैं। संकरी पहाड़ी पगडंडियों वाला तकरीबन दस किलोमीटर का यह पैदल रास्ता बहुत कठिन है। ट्रैकिंग पसंद करने वाले काफी लोग यहां पहुंचते हैं।
जून में होता है द्रोणागिरी पर्वत की पूजा का उत्सव
हर साल जून में गांव के लोग द्रोणागिरी पर्वत की विशेष पूजा करते हैं। इस पूजा में गांव के लोगों के साथ ही यहां से अन्य राज्यों में रहने गए लोग भी शामिल होने आते हैं।
रामायण में संजीवनी बूटी द्वारा लक्ष्मण जी के प्राण लौटा लाने और हनुमान जी के द्रोणागिरी पर्वत के एक भाग को पूर्ण उठा लाने वाला प्रसंग सभी को ज्ञात हैं,वैध सुषेण जी ने संजीवनी को चमकीली आभा और विचित्र गंध वाली बूटी बताया था।
माना जाता है कि ये पर्वतखण्ड आज भी श्रीलंका में उपस्थित है इस प्रकरण की समाप्ति पर हनुमान जी द्वारा लाए गए द्रोणागिरी पर्वत के खंड को पुनः उसी स्थान पर रख देने का सुझाव दिया गया।
परन्तु युद्ध अभी चरम सीमा पर था, इस कारण से हनुमान उस संजीवनी बूटी वाले पर्वत के टुकड़े को पुनः हिमालय में नहीं रखकर आए।
माना जाता है कि हनुमानजी ने इस पहाड़ को टुकड़े करके इस क्षेत्र विशेष में डाल दिया था।
द्रोणगिरि पर्वतखण्ड की श्रीलंका में स्थिति
श्रीलंका के सुदूर इलाके में मौजूद ‘श्रीपद’ नाम की जगह पर स्थित पहाड़ ही, वह स्थल है जो द्रोणागिरी का एक टुकड़ा था और जिसे उठाकर हनुमानजी ले गए थे।
इस स्थान को स्थानीय व्यक्ति ‘एडम्स पीक’ भी कहते हैं।
श्रीलंका के दक्षिणी तट गाले में स्थित पर्वत को को श्रीलंकाई निवासी रहुमाशाला कांडा कहते हैं।
स्थानीय निवासियों का कहना हैं कि वह द्रोणागिरी का पहाड़ था, द्रोणागिरी हिमालय में स्थित था।
हनुमानजी जब संजीवनी का पर्वतखण्ड उठाकर श्रीलंका पहुंचे तो उसका एक टुकड़ा रीतिगाला में गिरा।
श्रीलंका के नुवारा एलिया शहर से करीब 10 किलोमीटर दूर हाकागाला गार्डन में हनुमान जी के लाए पर्वत का दूसरा बड़ा भाग गिरा।
श्रीलंका की पर्यटक स्थलों में से एक उनावटाना समुद्रतट इसी पर्वत के पास है।
श्रीलंका के अन्य मुख्य स्थलों के नाम
जहां भगवान राम और रावण का युद्ध हुआ था, उस स्थान पर अन्वेषण किया गया है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान राम ने रावण का वध जिस स्थान पर किया था उस युद्ध स्थल को युद्धघगवाना के नाम से जाना जाता है,
ऐसा माना जाता है कि रावण माता सीता का हरण करके जब लंका लाया था तब माता को अशोक वाटिका में रखा था, इस स्थल को सेता एलीया के नाम से जाना जाता है,
सेता एलिया नुवारा एलिया के समीप है।
अंततः
दक्षिण समुद्री किनारे पर कई ऐसे स्थान हैं, जिनके विषय में मान्यता है कि वहां हनुमानजी के लाए पहाड़ के गिरे टुकड़े हैं।
इस स्थलो के विषय मे प्रमुख तथ्य ये कि जहां-जहां ये टुकड़े गिरे, वहां-वहां की जलवायु और मिट्टी बदल गई।
इन स्थलों पर मिलने वाले पेड़-पौधे श्रीलंका के शेष भागो में मिलने वाले पेड़-पौधों से बहुत भिन्न हैं।
धन्यवाद
चित्रस्त्रोत साभार [1] इन चित्रों के स्वामित्व के सभी अधिकार इनके स्वामी के पास सुरक्षित है
मूलस्त्रोत [2]
राम भी बाली के सामने नहीं आए-
एक भ्रम के कारण बाली के मन में सुग्रीव के प्रति नफरत हो गई थी। इसी के चलते बाली ने अपने भाई सुग्रीव की पत्नी को हड़पकर उसको बलपुर्वक अपने राज्य से बाहर निकाल दिया था। हनुमानजी ने सुग्रीव को प्रभु श्रीराम से मिलाया। सुग्रीव ने अपनी पीड़ा बताई और यह भी बताया कि बाली किस तरह दूसरों की शक्ति को अपने भीतर खींच लेता है। फिर प्रभु श्रीराम ने बाली को छुपकर तब तीर से वार कर दिया जबकि बाली और सुग्रीव में मल्ल युद्ध चल रहा था।
चूंकि प्रभु श्रीराम ने कोई अपराध नहीं किया था लेकिन फिर भी बाली के मन में यह दंश था कि उन्होंने मुझे छुपकर मारा। तब प्रभु श्रीराम ने उसे वचन दिया कि तेरी यह पीड़ा दूर की जाएगी। जब प्रभु श्रीराम ने कृष्ण अवतार लिया तब इसी बाली ने जरा नामक बहेलिया के रूप में नया जन्म लेकर प्रभाव क्षेत्र में विषयुक्त तीर से श्रीकृष्ण को हिरण समझकर तब मारा जब वे एक पेड़ के नीचे योगनिद्रा में विश्राम कर रहे थे। इस तरह बाली का दंश या बदला पुरा हुआ।