Hanuman our Bali Ka Yuddh
आपने हनुमान चालीसा की यह चौपाई तो जरूर सुनी और पढ़ी होगी, “आपन तेज सम्हारो आपै। तीनों लोक हांक तें कांपै ॥” इस चौपाई में तुलसीदास जी ने हनुमान जी के अतुलित बाल का वर्णन करते हुए बताया है कि आपके बल के तेज को केवल आप स्वयं ही सम्हाल सकते है। दुनियाँ में ऐसा कोई नहीं है जो आपके तेज के अंश मात्र को भी वहन कर सके।
आज मैं इससे जुड़ी एक बहुत ही रोचक कहानी आपको बताने जा रहीं हूँ।
यदि आपने रामायण पढ़ी, सुनी या देखी होगी तो आप इसके एक पात्र बाली और उसकी शक्ति के बारे में जरूर जानते होंगे, हो इतना शक्तिशाली था कि उसने लंकापति रावण को भी 6 महीने तक अपनी कांख () में दबाकर रखा था।
यहाँ तक की श्रीराम ने भी बालि को छुपकर ही मारा था। उसकी गति इतनी तीव्र थी कि वह एक दिन में पूरी पृथ्वी की परिक्रमा कर लेता था। इतना बलशाली बालि भी हनुमान जी की शक्ति का थोड़ा सा अंश भी नहीं सम्हाल पाया।
अब आपकी उत्सुकता भी इसके बारे में जानने के लिए बढ़ गई होगी कि ऐसा क्या हुआ था, तो अब आपकी इस Curiosity को विराम देते हैं और हनुमान और बालि के युद्ध की कहानी की तरफ चलते हैं और देखते है, “दंगल-दंगल”: –
कौन था बालि?
रामायण के अनुसार बालि देवराज इंद्र के और सुग्रीव भगवान सूर्य के धर्मपुत्र थे। लेकिन उनकी माता एक ही थी, जो कि एक नर से नारी में परिवर्तित हो गई थी। दोनों ही भाई रंग रूप और बल में एक समान थे।
बाली का विवाह समुद्र मंथन के समय निकली एक अप्सरा तारा के साथ हुआ था और उनके पुत्र का नाम अंगद था।
क्या था बालि की शक्ति का राज!
बालि के पास देवराज इंद्र का दिया हुआ एक स्वर्ण हार था, जिसे ब्रह्मा ने मंत्रयुक्त करके यह वरदान दिया था कि “जब भी बालि इस हार को पहनकर युद्ध करेगा, तो उसके सामने जो भी योद्धा होगा उसकी आधी शक्ति क्षीण होकर बालि को प्राप्त हो जाएगी।”
इसलिए बालि सदैव उस हार को पहने रहता था और जब भी वह किसी से युद्ध करता तो सामने वाले की आधी शक्ति कम होकर उसके अंदर समाहित हो जाती, जिससे शत्रु कमजोर हो जाता तथा बालि और अधिक बलशाली।
अजेय बालि!
इसी स्वर्ण हार की सिद्धि के कारण बालि ने कई शक्तिशाली योद्धाओं को युद्ध में परास्त किया था। उसने हजार हाथियों का बल रखने वाले असुर दुंदुभि का भी वध कर दिया।
रावण भी तीन लोक में सबसे शक्तिशाली कहलाना चाहता था। जब उसने आबली की प्रसिद्धि के बारे में सुना तो उसने बालि को मारने की ठानी लेकिन बालि ने उसे भी अपनी कांख में दबाकर 6 महीने तक रखा और अंतत: रावण ने बालि से मित्रता कर ली।
बालि की ललकार – “आ देखें जरा किसमें कितना है दम”
हार के कारण वह अजेय हो गया था कोई भी उसे युद्ध में पराजित नहीं कर सकता था। इस कारण उसे घमंड आ गया, वह कभी भी कहीं भी किसी को भी यद्ध के लिए चुनौती दे देता और उसको परास्त करके बहुत खुश होता।
लेकिन सेर को सवासेर तो मिलता ही है,
एक दिन बाली वन विहार के लिए एक वन में गया और अपनी ताकत के मद में चूर होकर उस वन के पेड़-पौधों को तिनके के समान उखाड़-उखाड़ कर इधर-उधर फेंक रहा था और वहाँ रहने वाले जीवों को धमका रहा था।
वह जोर-जोर से चिल्ला कर स्वयं से युद्ध करने की चुनौती दे रहा था, “क्या यहाँ पर कोई ऐसा है, जो बालि से युद्ध करने और उसे हराने की ताकत रखता है, है कोई ऐसा माई का लाल जो मुझे युद्ध में हरा सके।”
उसी वन में हनुमान जी राम सुमिरन में लीन थे। बालि के चिल्लाने से उनके जप में विघ्न हो रहा था।
उन्होंने बड़ी विनम्रता से बालि से कहा, हे वानरश्रेष्ठ बालि, माना आप बहुत शक्तिशाली हैं और कोई भी आपको युद्ध में नहीं हरा सकता। लेकिन इस तरह चिल्लाना आपको शोभा नहीं देता। आप अपने बल पर घमंड करने की बजाय अपना समय मेरे प्रभु श्री राम के नाम का जाप करने में लगाए जिससे आपका जीवन सँवर जाएगा।”
हनुमान जी की बात सुनकर शांत होने की जगह बालि और भड़क गया। उसने हनुमान जी को चुनौती देते हुए कहा, “हे तुच्छ वानर, कौन राम! मैं किसी राम को नहीं जानता। तुम उसे मेरे सामने बुलाओ, मैं तुझे तो क्या तेरे उस राम को भी चुटकियों में हरा सकता हूँ।”
अपने स्वामी श्रीराम के बारे में अपशब्द सुनकर हनुमान जी को क्रोध आ गया और उन्होंने बालि से कहा, “तुमने अपने घमंड में मेरे प्रभु श्रीराम का अपमान किया है, अब तो तुम्हें सबक सिखाना ही पड़ेगा। मैं तुम्हारी चुनौती स्वीकार करता हूँ। बताओ कब और कहाँ युद्ध करना चाहते हो?”
अंतत: दोनों के बीच यह तय हुआ कि अगले दिन नगर के बीचों-बीच सूर्योदय होते ही दोनों के बीच युद्ध शुरू होगा। इसके बाद बाली अपने नगर लौट गया।
ब्रह्माजी की विनती
अगले दिन तय समयानुसार हनुमान जी युद्ध के लिए रवाना हुए तो ब्रह्माजी उनके समक्ष प्रकट हो गए और उनसे बालि से युद्ध न करने की विनती की।
तब हनुमान जी ने कहा, “प्रभु मैं आपकी अवमानना नहीं करना चाहता, लेकिन बालि ने केवल मेरा अपमान किया होता तो मैं आपकी विनती स्वीकार कर लेता। लेकिन उसने मरे प्रभु श्रीराम का अपमान किया है उनके बल को भी चुनौती दी है। इसे में सहन नहीं कर सकता। अब ए युद्ध होकर रहेगा।”
जब बहुत समझाने पर भी हनुमान जी नहीं माने तो ब्रह्मा जी ने उनसे कहा, “ठीक है आप सहर राम की प्रतिष्ठा के लिए बालि से युद्ध करना चाहते है तो अब मैं आपको नहीं रोकूँगा, लेकिन मेरी आपसे एक विनती हैं कि जब आप बालि से युद्ध करने जाएं तो अपना पूरा बल ना ले जाकर केवल दसवाँ हिस्सा ही लेकर जाएं, शेष हिस्सा यहीं अपने प्रभु श्रीराम जी के चरणों में अर्पित कर जाएं।”
तब हनुमान जी ने कहा, “आप बालि को मुझसे बचाना चाहते है, इसलिए आप मुझसे इस तरह की विनती के रहे हैं?”
ब्रह्मा जी बोले, “नहीं यह बात नहीं है, बालि को वरदान प्राप्त है कि जो भी उसके सामने युद्ध करने की मंशा से आएगा, उसकी आधी शक्ति बालि में चली जाएगी।”
हनुमान जी ने कहा, “मैं अपनी आधी शक्ति से भी बालि को आसानी से हरा सकता हूँ।”
ब्रह्मा जी बोले, “मुझे पता है आप बहुत बलशाली हैं। आप अपनी शक्ति के केवल एक अंश मात्र से ही बालि को परास्त कर सकते हैं।
हनुमान जी, “तो फिर?”
ब्रह्मा जी, “अपने वरदान के कारण जैसे ही आप बालि के समक्ष युद्ध करने जाएंगे आपकी आधी शक्ति बालि में चली जाएगी तो उसका शरीर आपके बाल के तेज से फट जाएगा और उसकी मृत्यु हो जाएगी क्योंकि आपकी आधी शक्ति तो क्या बालि आपकी शक्ति का एक अंश भी अपने अंदर समाहित नहीं कर सकता।”
हनुमान जी, “तो यह तो और भी अच्छा है, जिसके मुख से मेरे प्रभु श्रीराम के लिए अपशब्द निकले उसको इस धरती पर जिंदा रहना भी नहीं चाहिए।”
ब्रह्मा जी, “बालि का वध श्री राम जी के हाथों ही होना नियति है। जब प्रभु श्रीराम माता सीता की खोज करते हुए यहाँ आएंगे तब सुग्रीव से मित्रता होगी और वे बाली का वध करके रावण का वध करने में वानर सेना की सहायता लेंगे। यदि आज ही बालि की मृत्यु हो जाएगी तो प्रभु श्री राम के अवतार का उद्देश्य अधूरा रह जाएगा। इसलिए आप मेरी इस विनती को स्वीकार कीजिए।”
यह सुनकर हनुमान माँ गए और उन्होंने अपने बल का नब्बेवाँ हिस्सा वहीं अपने प्रभु श्रीराम के चरणों में अर्पित कर दिया और केवल अपने बल के दसवें हिस्से के साथ युद्ध के मैदान की तरफ चल पड़े।
बाली और हनुमान का आमना-सामना
युद्ध के मैदान में बाली हनुमान जी की प्रतीक्षा कर रहा था। अपने बल के दसवें हिस्से के साथ हनुमान जी ने जैसे ही युद्ध के मैदान पर कदम रखा ब्रह्मा जी के वरदान स्वरूप हनुमान जी की आधी शक्ति बालि के शरीर में समाने लागि।
बालि को अपने शरीर में अपार शक्ति आने का अहसास होने लगा। उसे लगा कि जैसे उसके अंदर शक्ति का सागर हिलोरे मार रहा है। हनुमान जी की शक्ति के वेग से उसकी नसें फूलने लगी। ऐसा लगने लगा कि बस चंद पलों में ही उसकी नसें फट जाएंगी।
यह देखकर बालि घबरा गया उसे कुछ समझ में नहीं आया कि उसके साथ क्या हो रहा है। तभी ब्रह्मा जीवहाँ पर प्रकट हो गए और उससे बोले, “यदि खुद को जिंदा रखना चाहते हो तो जितना जल्दी हो सके यहाँ से कोसों दूर चले जाओ अन्यथा हनुमान जी के बाल के तेज से तुम्हारा शरीर फट जाएगा।”
ब्रह्मा जी की बात सुनकर बालि को कुछ समझ में तो नहीं आया लेकिन अपनी स्थिति को देखते हुए उसे ब्रह्मा जी की बात मानना ही श्रेयस्कर लगा। और वह वहाँ से नौ दो ग्यारह हो गया।
ये सब क्या था?
बहुत दूर जाने पर उसे उसके शरीर में कुछ हलकापन महसूस होने लगा। तब वह विश्राम के लिए रुका। तभी ब्रह्मा जी फिर से उसके समक्ष प्रकट हो गए। उसने ब्रह्मा जी से पूछा, “हे परमपिता ब्रह्मा जी, ये सब क्या था?”
तब ब्रह्मा जी ने कहा, “तुम अपने आप को बहुत शक्तिशाली समझते हो, लेकिन हनुमान जी की शक्ति का एक छोटा सा अंश भी तुम संभाल नहीं पाए। वह तो मेरे कहने पर हनुमान जी अपनी शक्ति का केवल दसवाँ हिस्सा लेकर ही तुमसे युद्ध करने के लिए आए थे। यदि वे अपने पूरे बाल के साथ आते तो उनके युद्ध के मैदान में कदम रखने से पहले ही तुम्हारा शरीर फट जाता।”
बालि को अपनी भूल समझ में आ गई। वह हनुमान जी के पास गया और बोला, “मुझे क्षमा कीजिए हनुमान जी! मैंने घमंड और अज्ञानतावश आपका और प्रभु श्री राम का अपमान किया। मुझे अपनी गलती समझ में आ गई हैं। आपके पास इतना बल होते हुए भी आप इतने शांत और प्रभु भक्ति में लीन रहते हैं और मैं अज्ञानी जो आपके एक बाल के बराबर भी नहीं हूँ, अपनी शक्ति के घमंड में आपको ललकार रहा था।”
हनुमान जी ने बालि को क्षमा कर दिया। इसके बाद बालि ने हनुमान जी के साथ कभी पंगा नहीं लिया।
हनुमान जी और बाली के युद्ध का वीडियो
यहाँ पर मैंने एक वीडियो का लिंक भी दिया है जिसमें बालि और हनुमान जी के युद्ध की कहानी को दिखाया गया है।
अंतिम शब्द
पौराणिक कहानियों से भी हमें कुछ ज्ञान और कोई न कोई सीख जरूर मिलती है। आज की हमारी इस कथा से भी हमें यह सीख मिलती है कि हमें कभी भी अपनी उपलब्धियों और शक्तियों (बालि की तरह) पर घमंड नहीं करना चाहिए और हमारे पास कितनी भी उपलब्धियाँ या शक्तियाँ हो सदा विनम्र (हनुमान जी की तरह) रहना चाहिए।
जब भी कोई पौराणिक कहानी बताई जाती है तो उससे जुड़ी कोई न कोई कहानी अवश्य होती है। लेकिन यदि सभी कहानियों को एक ही जगह बताने की कोशिश की जाएगी तो जो मूल कथा है वो कहीं खो जाएगी।
इस कथा में भी ऐसे कई स्थान जी जिनके पीछे एक और कथा है, लेकिन मैं अपनी मूलकथा से ना भटक जाऊँ इसलिए मैंने उन कथाओं के बारे में ज्यादा वर्णन नहीं किया है, जैसे श्री राम द्वरा बालि का वध, बालि द्वारा रावण को काँख में दबाना, समुद्र मंथन से तारा की उत्पत्ति और बालि से विवाह आदि।
यदि आप इन कथाओं के बारे में भी जानना चाहते है तो मुझे अवश्य लिखिए। मैं इन कथाओं को भी आपके समक्ष प्रस्तुत करने का पूरा प्रयास करूंगी।