Ram Nam Ki Mahima
राम की महिमा अपरम्पार है। राम खुद कह गए राम से बड़ा राम का नाम। तो जो बात स्वयं राम कह गए वो कैसे गलत हो सकती है। दरअसल, जीवन का आधार ही राम नाम है। हर जगह राम नाम की महिमा का गुणगान है। राम सिर्फ एक नाम नहीं है। राम नाम तो सबसे बड़ा मन्त्र है। राम नाम की महिमा तो ये है की सदाशिव भोले शंकर भी राम नाम जपते रहते हैं। इसी नाम का वो हर प्रहर जाप करते रहते है। संसार चल ही राम नाम से रहा है। सूर्य, चन्द्रमा, अग्नि, वायु सभी में जो शक्ति है वो सब राम नाम की है।
राम नाम तो अविनाशी है। दुनिया इधर से उधर हो जाए, सब कुछ बदल जाए पर यह राम नाम ज्यों का त्यों यूं ही सदा बना रहेगा। इस राम नाम की महिमा कभी भी कम नहीं होगी बल्कि दिन-प्रतिदिन इसकी महिमा बढ़ते ही जाएगी।
राम नाम तो मणिदीप की तरह है जो कभी बुझता ही नहीं है। जैसे दीपक को चौखट पर रख देने से घर के अंदर और बाहर दोनों हिस्से प्रकाशित हो जाते हैं, वैसे ही राम नाम को जपने से अंतःकरण और बाहरी आचरण दोनों प्रकाशित हो जाते हैं। जीवन मैं आनंद ही आनंद हो जाता है।
राम नाम भक्ति की महिमा का गुणगान करता है। सबसे बड़े भक्त बलशाली हनुमान जी भी इसी नाम का हर पल गुणगान किया करते हैं। इसी नाम की ध्वनि से वो खुश होते हैं। ये केवल एक नाम नहीं है भक्त की भक्ति है राम नाम, वीर की शक्ति है राम नाम, हनुमान जी का बल है राम नाम।
सभी पापो का काटनहार है ये राम नाम। राम के दोनों अक्षर मधुर और सुन्दर हैं। राम राम कहने से मुंह में मिठास पैदा होती है। दोनों अक्षर वर्णमाल की दो आंखें हैं। राम के बिना वर्णमाला भी अधूरी है। जगत् मैं सूर्य उजाला करता है। चन्द्रमा चांदनी बिखेरता है परन्तु इन दोनों में भी ग्रहण लगता है, लेकिन राम नाम इन सबसे अलग है उसमे कभी कोई ग्रहण नहीं लगता है, ना ही वो चन्द्रमा की तरह घटता है, राम नाम लगातार बढ़ता ही रहता है। कहा भी गया है राम नाम एक ऐसी पूंजी जो जितनी खर्च होती है उतनी ही बढ़ती चली जाती है।
राम नाम तो अमृत के समान है। कहा गया है कि सिर्फ राम नाम जपने से ही बड़े-बड़े शास्त्रों का ज्ञान हो जाता है, जिसने पढ़ाई नहीं की, शास्त्र नहीं पढ़े उन्हें भी वेदों का ज्ञान हो जाता है। राम नाम तो वास्तविक ज्ञान करवाने वाला चतुर दुभाषिया है।
राम नाम जाप से रोम रोम पवित्र हो जाता है। साधक पवित्र हो जाता है। साधक के दर्शन ,स्पर्श मात्र से असर पड़ता है। अनिश्चिता दूर होती है शोक-चिंता दूर होते हैं। पापों का नाश होता है। साधक जहां कहीं भी रहते हैं वह धाम बन जाता है वे जहां चलते हैं वहां का वातावरण पवित्र हो जाता है।
राम नाम की सबसे बड़ी महिमा ये है की इसे कही पर भी कभी भी लिया जा सकता है। राम नाम ही मुक्ति का मार्ग है राम नाम की महिमा ही अपरम्पार है।
राम के नाम की महिमा क्या है ये तो हम सभी को पता है। आज जागरण अध्यात्म के इस लेख में हम आपको राम नाम की महिमा के बारे में ही बताने जा रहे हैं। यह कथा कबीर के पुत्र कमाल की है। एक बार राम नाम का प्रभाव कुछ ऐसा हुआ कि कमाल द्वारा एक कोढ़ी का कोढ़ दूर हो गया। इससे कमाल को यह लगने लगा कि रामनाम की महिमा को वो पूरी तरह जान गए हैं। हालांकि, इससे कबीर जी को कोई प्रसन्नता नहीं हुई। कबीर जी ने कमाल को तुलसीदास जी के पास भेजा।
तुलसीदास जी ने तुलसी के पत्र पर रामनाम लिखा और उसे एक जल में डाल दिया। इस जल को पीकर 500 कोढ़ी ठीक हो गए। फिर कमाल को लगने लगा कि राम नाम का तुलसी पत्र पर लिखकर जल में डालने और उसे पीने से 500 कोढ़ियों को ठीक किया जा सकता है, रामनाम की इतनी महिमा है। लेकिन इससे भी कबीर जी प्रसन्न नहीं हुए। उन्होंने कमाल को सूरदास के पास भेजा।
सूरदास जी ने गंगा में बह रहे एक शव के कान में राम नाम लिया। उन्होंने इतना कहने से ही शव जीवित हो उठा।
संत सूरदास जी ने गंगा में बहते हुए एक शव के कान में केवल र कहा और शव जीवित हो गया। तब कमाल को लगा कि राम नाम के केवल र अक्षर से ही मुर्दा जीवित हो उठा। राम नाम की महिमा बहुत ज्यादा है। इस पर कबीर जी ने कमाल से कहा कि सिर्फ इतनी ही महिमा नहीं है राम नाम की। उन्होंने कहा- भृकुटि विलास सृष्टि लय होई।
अर्थात् इसके भृकुटि विलास मात्र से प्रलय हो सकता है। राम के नाम की महिमा का वर्णन तुम क्या करोगे?
राम नाम महिमा में एक अन्य कथा भी प्रचलित है। इस कथा के अनुसार, एक बार एक व्यक्ति समुद्रतट पर चिंता में बैठा था। इतने में ही वहां से विभीषण गुजरे। उन्होंने व्यक्ति से पूछा कि तुम किस बात को लेकर चिंतित हो। तब व्यक्ति ने कहा कि उसे समुद्र पार जाना है लेकिन कोई साधन नहीं है। तब विभीषण ने कहा कि इस पर इतना उदास होने की क्या जरुरत है। विभीषण ने एक पत्ता लिया और उस पर राम का नाम लिख दिया। विभीषण ने व्यक्ति से कहा कि उन्होंने उसकी धोती में इसमें मैंने तारक मंत्र बांधा है। बिना घबराए ईश्वर पर भरोसा करते हुए पानी में चलते जाना। समुद्र पार पहुंच जाओगे।
विभीषण के वचनों पर विश्वास कर वह व्यक्ति समुद्र की तरफ बढ़ने लगा। वह व्यक्ति बजडी ही आसानी से पानी पर चलने लगा। जब समुद्र के बीचों बीच ऐया तब उसे लगा कि ऐसा क्या मंत्र विभीषण ने बांधा है कि वो पानी पर चल पा रहा है। उसने अपने पल्लू में बंधा हुआ पत्ता खोला और पढ़ा तो उस पर राम का नाम लिखा था। उसे पढ़ते ही उसकी श्रद्धा तुरंत ही अश्रद्धा में बदल गयी। उसे लगा कि यह कोई तारक मंत्र नहीं है। यह तो सबसे सीधा सादा राम नाम है। उसके मन में आई अश्रद्धा के चलते ही वह डूबकर मर गया।
तुलसीदास जी कहते हैं-
राम ब्रह्म परमारथ रूपा।
अर्थात्- ब्रह्म ने ही परमार्थ के लिए राम रूप धारण किया था।