Vedik Maths –
कैसे हैं आप? आशा करती हूँ बहुत अच्छे होंगे। आज से मैं आपके लिए भारत की एक बहुत ही प्राचीन गणितीय गणना विधि के बारे में पूरी जानकारी लेकर आई हूँ, जिसका वर्णन वेदों में मिलता हैं।
हमारे वेदों में ज्ञान का अथाह भंडार है। वैदिक गणित पद्धति तो केवल उसका अंश मात्र है। हमारे प्राचीन शास्त्रों में अथाह ज्ञान छुपा हुआ है लेकिन यह हमारा दुर्भाग्य है कि हम उसे सीखना ही नहीं चाहते।
प्राचीन समय से ही भारत गणितीय ज्ञान के मामले में अग्रणी रहा है। शून्य की खोज भी भारत के ही देन हैं। हमारे देश में पाणिनी, अक्षपाद गौतम, पिंगल, भरत मुनि, आर्यभट्ट, भास्कर, गंगेश उपाध्याय, श्रीनिवास रामानुजन जैसे कई विद्वान गणितज्ञ हुए हैं।
प्राचीन समय में वेदिक गणित के सूत्रों के द्वारा ही सभी गणितीय गणनाएं की जाती थी। इसकी सहायता से बड़ी से बड़ी गणनाएं कुछ ही क्षणों में मौखिक रूप में ही कर ली जाती थी। इनकी सहायता से मानसिक शक्ति का भी तेजी से विकास होता था।
वैदिक गणित के सूत्रों द्वारा गणितीय गणना करना इतना आसान हो जाता है कि कमजोर से कमजोर छात्र भी गणित के जटिल से जटिल सवालों को आसानी से हल कर सकता हैं।
लेकिन इसे दुर्भाग्य ही कहा जा सकता है कि हममें से 80% लोग इस विधि के बारे में जानते ही नहीं हैं।
आज से कुछ दिनों तक मुझे भी इस विधि का कोई ज्ञान नहीं था। हाँ इसके बारे में कुछ पढ़ा-सुना जरूर था और काफी समय से इसे सीखना भी चाहती थी। लेकिन वही दुनियाँ की भागदौड़ में समय ही नहीं निकाल पाई।
लेकिन शायद यह भगवान की ही इच्छा थी कि मैं इसे सीख पाऊँ इसलिए परिस्थितियाँ कुछ इस तरह की बनी कि मुझे इसे सीखना पढ़ा। (यदि इस लेख में इस बारे में बताने लगी तो हम अपने उद्देश्य से भटक जाएंगे, इसलिए सीधे अपने विषय पर आते हैं।)
जब मैंने इस पद्धति को सीखना शुरू किया तो मुझे खुद को ही विश्वास नहीं हुआ कि गणित के जटिल सवालों की गणना इतनी सरलता से और शीघ्रता से भी की जा सकती है! केवल एक या दो सूत्रों को सीखने मात्र से मैं केवल कुछ सेकंड में बड़े-बड़े सवाल हल करने लग गई।
क्यों विश्वास नहीं होता ना! जब आप इस पद्धति के बारे में जानेंगे तो आप भी मेरी बात पर यकीन कर लेंगे।
आज की नई चिकित्सा पद्धति ने हमारे प्राचीन ज्ञान को लगभग खत्म सा ही कर दिया हैं। लेकिन इस पद्धति के बारे में जानने के बाद मुझे लगा कि हमारा भारतीय ज्ञान कितना समृद्ध था। तब मुझे अपने प्राचीन भारतीय ज्ञान पर बहुत ही गर्व महसूस हुआ।
मुझे लगा कि मुझे भी अपनी इस धरोहर को आगे बढ़ाने के लिए एक कदम बढ़ाना चाहिए। इसलिए आज से मैं वैदिक गणित की एक Series शुरू कर रही हूँ, जिसमें हम “वैदिक गणित क्या है? (What is Vedic Math?)”, “वैदिक गणित के लाभ (Profit of Vedik Math)” तथा वैदिक गणित के सभी 16 सूत्रों और 13 उपसूत्रों के अर्थ तथा प्रयोग को उदाहरणों के साथ विस्तार से समझेंगे।
ॐ श्री गणेशाय नम:
- गणेश = गण (Gan) + ईश (Ish)
- गणित = गण (Gan) + इत् (It)
गणेश जी बुद्धि के देवता है। इनके नाम में गण अर्थात अंक होने से इन्हें अंकों का देवता भी माना जाता हैं इसलिए वैदिक गणित के बारें में Post लिखना शुरू करने से पहले मैं गणेश जी की वंदना करके उनसे प्रार्थना करती हूँ कि मुझ पर उनका आशीर्वाद सदैव बना रहे और मैं अपने कार्य में सफलता प्राप्त कर सकूँ।
गणित के लिए यह श्लोक कहा गया है कि
यथा शिखा मयूराणां, नागानां मणयो यथा । तद् वेदांगशास्त्राणां , गणितं मूर्ध्नि वर्तते ॥
अर्थात जिस प्रकार मोरों में शिखा और नागों में मणि का स्थान सबसे ऊपर होता है, वैसे ही सभी वेदांगों तथा शास्त्रों मे गणित का स्थान सबसे ऊपर होता है। इसलिए गणित का ज्ञान परम आवश्यक है। तो चलिए वैदिक गणित के माध्यम से गणित का ज्ञान प्राप्त करते हैं।
वैदिक गणित क्या हैं? वैदिक गणित का इतिहास
वैदिक गणित जैसा की नाम से ही स्पष्ट होता है कि इसका संबंध वेदों तथा प्राचीनकाल से है।
वैदिक गणित हमारे वेदों में वर्णित एक प्राचीन गणितीय गणना विधि है, जिसमें 16 मूल सूत्र तथा 13 उपसूत्र बताए गए हैं। इन सूत्रों के माध्यम से बड़ी से बड़ी गणितीय गणना चुटकियों में हल की जा सकती है।
वेदिक गणित में इन सूत्रों तथा उपसूत्रों की सहायता से ऐसी विधियाँ बताई गई है जो गणित को बहुत ही आसान बना देती हैं।
पुराने समय में ना तो Calculator था और ना ही Computer, लेकिन फिर भी गणितीय गणनाओं के द्वारा ज्योतिषीय गणनाएं, ग्रहों-नक्षत्रों की गणनाएं, वास्तू की गणनाएं की जाती थी। इसके अलावा कई खगोलीय यंत्रों का भी आविष्कार किया गया था।
बिना Calculator बिना Computer के यह कैसे संभव हुआ। यह सब वेदिक गणित का ही कमाल था। वेदों के इस ज्ञान को हमारे ऋषि-मुनि अपने शिष्यों को गणित का ज्ञान प्रदान करते थे। यह ज्ञान आगे से आगे नई पीढ़ियों में स्थानांतरित होता रहता था।
वैदिक गणित के सूत्रों द्वारा गणितीय गणना इतनी सरलता और शीघ्रता से की जा सकती हैं कि बड़े से बड़े गुणा या भाग को चंद सेकंडों में हल किया जा सकता हैं।
इन सूत्रों की सहायता से गणितीय गणना करना इतना आसान हो जाता है कि एक मंदबुद्धि छात्र भी गणित के जटिल से जटिल सवालों को आसानी से हल कर सकता हैं।
लेकिन क्या यह तर्क मान्य है? यह लंबे समय से ज्ञात है कि भारतीय गणित की समृद्धि शून्य की खोज से भी आगे तक फैली हुई है। कृष्ण तीर्थ को 16 गणितीय सूत्रों की खोज का श्रेय दिया जाता है जो चार वेदों में से एक अथर्ववेद के परिशिष्ट (परिशिष्ट) का हिस्सा थे (बॉक्स देखें)। तीर्थ के सरल सूत्र जटिल गणितीय गणनाओं को संभव बनाते हैं। कई गणितीय प्रक्रियाओं को गति देने के अलावा, तीर्थ के सूत्र गुणनखंडन को कवर करते हैं; उच्चतम सामान्य कारक; एक साथ, द्विघात, घन और द्विघात समीकरण; आंशिक अंश, प्रारंभिक ज्यामिति, और अंतर और अभिन्न कलन (बॉक्स देखें)। लेकिन तीर्थ उनके आलोचकों के बिना नहीं है, यहां तक कि उन लोगों के अलावा जो वैदिक गणित को “अवैज्ञानिक” मानते हैं।
वैदिक गणित का इतिहास
वैदिक गणित के सभी सूत्र वेदों से लिए गए हैं और ये सभी संस्कृत भाषा में लिखे हुए हैं। जिन्हें बिना संस्कृत भाषा के पूर्ण ज्ञान के पूर्णतया समझना बहुत ही कठिन हैं, लेकिन कई विद्वानों ने इसे अन्य भाषाओं में भी अनुवाद किया है, जिससे इसे कुछ हद तक समझा व सीखा जा सकता है।
जगद्गुरू श्री भारती कृष्ण तीर्थ जी ने सन् 1911 से 1918 के मध्य में वेदों मुख्य रूप से अथर्ववेद के माध्यम से 16 सूत्रों व 13 उपसूत्रों का एक स्थान पर संकलन व रूपांतरण किया था। जिससे इन सूत्रों की मदद से अंकगणित, बीजगणित, तथा ज्यामितीय गणनाएं बहुत ही कम समय में बड़ी सरलता व सुगमता से हल की जा सके।
इन सूत्रों में कुछ नियम व चरण है जिनकी सहायता से जटिल से जटिल प्रश्नों को भी बड़ी सुगमता से हल किया जा सकता है।
स्वामी श्री भारती कृष्ण तीर्थ जी ने इन सभी सूत्रों को विस्तृत व्याख्या करते हुए सोलह कृतियों की एक श्रृंखला का सृजन भी किया।
उन्होंने अंग्रेजी में एक panch hajar pejon ki the wonder of
जगद्गुरू श्री भारती कृष्ण तीर्थजी द्वारा संग्रहित किये गये इन्हीं सुत्रो के आधार पर ‘वैदिक मैथमेटिक्स’ नाम की एक पुस्तक सन् 1965 में प्रकाशित की गई थी। आजकल तो इस संग्रहित जानकारी के विषय पर हिन्दी, अंग्रेजी के अलावा अन्य कई भाषाओं में भी पुस्तकें उपलब्ध हैं।
inki mrityu videh men ho gai our modi ji ke prayason se unki asthiyan sn 2003 men bhaart laai gai (prichy men likhna hain)
वैदिक गणित के सूत्र
जैसा कि मैंने पहले बताया कि वैदिक गणित ऐसे 16 सूत्रों व 13 उपसूत्रों का संग्रह है जिसमे जटिल से जटिल गणितीय गणनाओं को सरलता से हम करने के नियम बताए गए हैं।
ये सूत्र हैं तो छोटे-छोटे से लेकिन इनकी गणना इतनी सटीक, सरल, और विस्तृत है कि बड़ी से बड़ी गणनाओं को कोई साधारण बुद्धि वाला व्यक्ति भी चुटकियों में हल कर सकता हैं।
इन सूत्रों से अंकगणित, बीजगणित या ज्यामितीय किसी भी तरह की गणना आसानी से और बहुत ही तीव्र गति से की जा सकती हैं।
आइए जानते हैं इन सूत्रों तथा उपसूत्रों के नाम
वैदिक गणित के 16 सूत्र
- एकाधिकेन पूर्वेण
- निखिलं नवतश्चरमं दशतः
- ऊर्ध्वतिर्यग्भ्याम्
- परावर्त्य योजयेत्
- शून्यं साम्यसमुच्चये
- (आनुरूप्ये) शून्यमन्यत्
- संकलनव्यवकलनाभ्याम्
- पूरणापूरणाभ्याम्
- चलनकलनाभ्याम्
- यावदूनम्
- व्यष्टिसमष्टिः
- शेषाण्यंकेन चरमेण
- सोपान्त्यद्वयमन्त्च्यम्
- एकन्यूनेन पूर्वेण
- गुणितसमुच्चयः
- गुणकसमुच्चयः
वैदिक गणित के 13 उपसूत्र
- आनुरूप्येण
- शिष्यते शेषसंज्ञः
- आधमाधेनान्त्यमन्त्येन
- केवलैः सप्तकं गुण्यात्
- वेष्टनम्
- यावदूनं तावदूनं
- यावदूनं तावदूनीकृत्य वर्गं च योजयेत्
- अन्त्ययोर्द्दशकेऽपि
- अन्त्ययोरेव
- समुच्चयगुणितः
- लोपनस्थापनाभ्यां
- विलोकनं
- गुणितसमुच्चयः समुच्चयगुणितः
- ध्वजांक
वैदिक गणित के लाभ
वैदिक गणित गणितीय गणनाओं को हल करने की ऐसी पद्धति है, जिसके सूत्रों व उपसूत्रों के द्वारा जटिल से जटिल गणितीय गणनाएं अत्यंत ही सरल, सुगम व त्वरित गति से संभव हो जाती हैं।
वैसे तो इसके द्वारा गणित की अंकगणितीय, बीजगणितीय, व त्रिकोणमितीय सभी तरह तीव्र गति से की जा सकती है लेकिन अंकगणितीय गणनाओं को हल करने की Speed लगभग 10 गुणा तक बढ़ जाती है। बस जरूरत है इसके सूत्रों व अपसूत्रों के नियमों को समझने तथा लगातार अभ्यास करने की।
आप चाहे छोटी कक्षाओं में पढ़ने वाले छात्र हो या बड़ी, प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हो या स्वयं ही एक अध्यापक हो या अध्ययनरत बच्चों के माता-पिता, वैदिक गणित मे निपुण होने से आपको बहुत ही लाभ मिलेगा।
आइए जानते हैं वैदिक गणित को सीखने से होने वाले लाभों के बारे में: –
वैदिक गणित गणितीय गणनाओं को कई गुणा तेजी से हल करने में सहायक है। सरल हो या जटिल सभी प्रकार की गणनाओं को तीव्र गति से कम समय में हल किया जा सकता है और आप तो जानते ही हैं कि प्रतियोगी परीक्षाओं में समय कितना कीमती होता हैं।
वैदिक गणित से गणितीय गणनाएं इतनी सरल ही जाती हैं की उसमें त्रुटि की संभावना बहुत कम होती है। बहुत ही कम समय में एकदम सटीक हल प्राप्त हो जाता है।
वर्तमान गणित पद्धति में गणनाएं दाईं से बाईं तरफ हल की जाती हैं लेकिन वैदिक गणित में हम दोनों तरफ से गणनाओं को हल कर सकते हैं। दोनों ही तरफ गणना करने पर हमें एकदम सही हल प्राप्त हो जाता है।
वैदिक गणित के सूत्र इतने सरल है कि ये सहजता से समझ में आ जाते हैं और शीघ्र ही याद भी हो जाते हैं। इनके द्वारा जटिल से जटिल गणनाएं भी मौखिक रूप से की जा सकती हैं जिससे मानसिक स्तर बौद्धिक क्षमता बढ़ती है।
वादिक गणित के सूत्रों से गणित के सभी विभागों जैसे अंकगणित, बीजगणित, रेखागणित, समतल तथा घन ज्यामिति, समतल तथा गोलीय त्रिकोणमितीय, ज्योतिर्विज्ञान, समाकल तथा अवकल कलन की प्रश्नों को बड़ी ही सुगमता व तीव्रता से हल किया जा सकत है।
(2) ये सूत्र गणित की सभी शाखाओं के सभी अध्यायों में सभी विभागों पर लागू होते हैं। शुद्ध अथवा प्रयुक्त गणित में ऐसा कोई भाग नहीं जिसमें उनका प्रयोग न हो। अंकगणित, बीजगणित, रेखागणित समतल तथा गोलीय त्रिकोणमितीय, समतल तथा घन ज्यामिति (वैश्लेषिक), ज्योतिर्विज्ञान, समाकल तथा अवकल कलन आदि सभी क्षेत्रों में वैदिक सूत्रों का अनुप्रयोग समान रूप से किया जा सकता है।
(3) कई पैड़ियों की प्रक्रियावाले जटिल गणितीय प्रश्नों को हल करने में प्रचलित विधियों की तुलना में वैदिक गणित विधियाँ काफी कम समय लेती हैं।
(4) छोटी उम्र के बच्चे भी सूत्रों की सहायता से प्रश्नों को मौखिक हल कर उत्तर बता सकते हैं।
(5) वैदिक गणित का संपूर्ण पाठ्यक्रम प्रचलित गणितीय पाठ्यक्रम की तुलना में काफी कम समय में पूर्ण किया जा सकता है।
वैदिक गणित से तर्कशक्ति बढ़ती है, गणित रुचिकर लगने लग जाती है और आत्मविश्वास भी बढ़ता है।
यह कठिन अवधारणाओं को याद रखने के बोझ (burden) को कम करता है।
स्वामीजी ने इसका प्रणयन बीसवीं सदी के आरम्भिक दिनों में किया। स्वामीजी के कथन के अनुसार वे सूत्र, जिन पर ‘वैदिक गणित’ नामक उनकी कृति आधारित है, अथर्ववेद के परिशिष्ट में आते हैं। परन्तु विद्वानों का कथन है कि ये सूत्र अभी तक के ज्ञात अथर्ववेद के किसी परिशिष्ट में नहीं मिलते। हो सकता है कि स्वामीजी ने ये सूत्र जिस परिशिष्ट में देखे हों वह दुर्लभ हो तथा केवल स्वामीजी के ही संंज्ञान में हो। वस्तुतः आज की स्थिति में स्वामीजी की ‘वैदिक गणित’ नामक कृति स्वयं में एक नवीन वैदिक परिशिष्ट बन गई है।
1)
वैदिक गणित क्या है?
सूत्र 1 – एक न्यूनेन पूर्वेण (गुणनफल)
इस विधि में हम बड़ी से बड़ी संख्याओं को आसनी से कुछ ही क्षणों में कर
वैदिक गणित के लिए यह
यथा शिखा मयूराणां, नागानां मणयो यथा । तद् वेदांगशास्त्राणां , गणितं मूर्ध्नि वर्तते ॥
जैसे मोरों में शिखा और नागों में मणि का स्थान सबसे उपर है, वैसे ही सभी वेदांग और शास्त्रों मे गणित का स्थान सबसे उपर है।
चाहे आप प्रतियोगीता परीक्षा मे सफलता हेतू प्रयासरत छात्र हो, या फिर शिक्षा क्षेत्र से अध्यापक/प्राध्यापक के तौर पर जुडे हो इन सभी स्थिती मे वैदिक गणित मे कुशल बनना आपके लिये फायदेमंद साबित होगा। अगर आप माता-पिता हो और अपने बच्चो को घर पर सिखाते है, तो भी वैदिक सूत्र से गणित के प्रश्न को हल करना आपके बच्चो को भविष्य मे काफी लाभकारी सिद्ध होगा। इस खास लेख मे हम आपको वैदिक गणित से संबंधित संपूर्ण जानकारी देंगे, जिससे इस विषय को समझने मे आपको काफी सहायता मिल जायेगी।
वैदिक गणित के माध्यम से आप अंकगणित (Arithmetic),बीजगणित (Algebra) और यहां तक कि त्रिकोणमिति (Trigonometry) में गणना कर सकते हैं और गणना को सरल और तेज कर सकते हैं।परिणाम आपके देखने के लिए हैं और दुनिया भर में लोग हमें उनके और उनके बच्चों के लिए मूल्य जोड़ने के लिए प्यार करते हैं।
वैदिक गणित तेज और सटीक मानसिक गणना में मदद करता है।इसके द्वारा 16 सूत्र और 13 उप सूत्र।कोई भी योग (addition),भाग (division),गुणा (multiplication),बीजगणित (algebra),त्रिकोणमिति (trigonometry),वर्ग (square),वर्गमूल (square root),घन (cube),घनमूल (cube root) के किसी भी कठिन समीकरण को मानसिक गणना से ही हल किया जा सकता है।आज का युग सबसे तेजी से बढ़ने वाला और कभी बदलने वाला युग है।
वैदिक गणित क्यों सीखना चाहिए
दिमाग का एक हिस्सा दूसरे से ज्यादा सक्रिय होता है। विश्लेषणात्मक कौशल (analytical skills) वाले लोगों को वाम-दिमाग (left-brained) वाला कहा जाता है और रचनात्मक कौशल (creative skills) वाले लोग दाएं-दिमाग (right-brained) वाले होते हैं।वैदिक गणित न केवल बच्चे को एकाग्रता बनाने में मदद करेगा बल्कि उसकी रचनात्मक (creative) और तार्किक (logical instincts) दोनों प्रवृत्तियों को विकसित करने में भी मदद करेगा।
दिक गणित में महारत हासिल करने से बच्चों को तेजी से गणना करने में मदद मिल सकती है,जो दैनिक जीवन के साथ-साथ तनावपूर्ण परीक्षाओं में भी उपयोगी हो सकता है।वैदिक गणित प्रणाली बच्चों के लिए जोड़,घटाव, गुणा और भाग जैसी सरल संख्यात्मक समस्याओं को हल करना आसान बनाती है।
वैदिक गणित की सरलता का अर्थ है कि गणना मानसिक रूप से की जा सकती है।वैदिक गणित के कई फायदे हैं: यह बड़ी मात्रा में जानकारी को याद रखने के भार को कम करता है क्योंकि इसके लिए आपको केवल 9 तक की टेबल सीखने की आवश्यकता होती है।पारंपरिक पद्धति की तुलना में,यह तेजी से गणना करने में सक्षम बनाता है।
वैदिक मैथ्स फोरम इंडिया (The Vedic Maths Forum India) लाइव इंटरेक्टिव ऑनलाइन क्लासेस (Live interactive Online Classes) के माध्यम से 8 से 25 वर्ष के आयु वर्ग के छात्रों के लिए 10 गुना तेजी से गणित सीखने का स्थान है।
बॉम्बे में टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च में गणित के प्रोफेसर एसजी दानी ने वैदिक गणित की आलोचना को एक शक्तिशाली आवाज दी। उन्होंने हाल ही में द टाइम्स ऑफ इंडिया में लिखा: “पुस्तक (तीर्थ का वैदिक गणित) ने स्पष्ट रूप से तत्कालीन मानव संसाधन मंत्री द्वारा संसद में एक बयान के बाद 1980 के दशक के मध्य में व्यापक सम्मान प्राप्त किया। वैदिक जैसी नकली सामग्री का समावेश न केवल बौद्धिक को भ्रष्ट करता है। इतिहास के उचित अध्ययन की प्रक्रिया, लेकिन विभिन्न तरीकों से उनके दुरुपयोग के लिए समाज के लिए भी अस्वास्थ्यकर है। गौरव को जगाने के लिए इतिहास के झूठे ढांचे का निर्माण करना बेतुका और अपमानजनक है। हमारी गणितीय विरासत हमें बहुत कुछ देती है। इस तरह के नौटंकी का सहारा लिए बिना गर्व करें।”
वैदिक गणित पर विवाद का एक हिस्सा इस पुस्तक की वास्तविक रूप से वैदिक के रूप में व्यापक स्वीकृति से उपजा है और क्योंकि राजनेता इसके रथ पर सवार हो गए हैं। लेकिन समीकरण के दूसरी तरफ दानी जैसे गणितज्ञ हैं। दानी चेतावनी देते हैं, “पुस्तक की पुरातनता और सुपर-क्षमताओं के बारे में आधारहीन मिथकों को बेहतर तरीके से साफ़ किया गया था,” ऐसा न हो कि हम इतिहास और गणित दोनों के लिए गलत दृष्टिकोण के साथ बच्चों की एक पूरी पीढ़ी को बिगाड़ दें।
भ्रामक विशेषताएं
वैदिक गणित की ताकत और कमजोरियों का आकलन करने में, आर्यभट्ट प्रथम (475 ई.) और बाद में ब्रह्मगुप्त (622), भास्कर II (1150) और शायद संगम ग्राम माधव और नारायण पंडित (14वीं शताब्दी) के कार्यों को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए। इसका मतलब यह है कि शायद वैदिक गणित के बजाय भारतीय को संदर्भित करना अधिक उपयुक्त होगा।
वास्तव में, तीर्थ का अधिकांश कार्य हाई-स्कूल किस्म का प्रतीत होता है, लेकिन दिखावे भ्रामक हैं। गणित की भारतीय परंपरा अनिवार्य रूप से आगमनात्मक और इतनी कठोर है, प्रमाण शायद ही कभी स्पष्ट रूप से कहा गया हो। यह आगमनात्मक-सह-सहज ज्ञान युक्त दृष्टिकोण (एक निगमनात्मक के विपरीत) श्रीनिवास रामानुजन के कुछ कार्यों में भी स्पष्ट है। जब आईएस भानु मूर्ति ने तीर्थ के कुछ सूत्रों को सिद्ध करने का प्रयास किया, तो उन्होंने पाया कि संख्या सिद्धांत के कुछ गहन प्रमेय शामिल थे।
इसलिए, तीर्थ के सभी कार्यों को प्राथमिक मानकर खारिज नहीं किया जा सकता है। इसमें से अधिकांश प्रकृति में अंकगणितीय है और कम्प्यूटेशनल कौशल को बढ़ाता है जिसका काफी शैक्षणिक मूल्य है।
तीर्थ के काम में शिकायतों को कम करने के लिए पर्याप्त उदाहरण हैं कि यह केवल कम्प्यूटेशनल ट्रिक्स का एक थैला है, लेकिन यह सच है कि अथर्ववेद के तथाकथित परिशिष्ट किसी भी मौजूदा पाठ में नहीं पाए जाते हैं। दुर्भाग्य से, तीर्थ ने कभी भी उन 16 सूत्रों को पूर्ण रूप से निर्धारित नहीं किया, जिन्हें इस्तेमाल की जाने वाली कम्प्यूटेशनल विधियों से परे माना जाता था। संक्षिप्त रूपों के लिए केवल संदर्भ हैं। यह भी सच है कि तीर्थ की किताब में विभाजन और आवर्ती दशमलव से संबंधित तकनीकें प्रारंभिक भारतीय गणितज्ञों के काम में नहीं पाई जाती हैं। हालांकि, वर्ग, वर्गमूल, घन और घनमूल से संबंधित तीर्थ की तकनीक आर्यभट्ट I, श्रीधर (750) और भास्कर II के परिचित कार्य का अनुसरण करती है।
इस सब से दो संभावनाएँ उत्पन्न होती हैं: या तो तीर्थ ने अथर्ववेद के खोए हुए हिस्सों की खोज की या उन्होंने स्वयं सूत्र विकसित किए होंगे, जो उन्हें उनके दावे से बड़ा गणितज्ञ बना देगा। किसी भी मामले में, यह बहस करना अप्रासंगिक है कि क्या सूत्र अथर्ववेद के परिशिष्ट का हिस्सा हैं; महत्वपूर्ण यह है कि क्या सूत्र उपयोगी हैं — और इस बिंदु पर कोई विवाद नहीं हो सकता।
समृद्ध परंपरा
यहां तक कि तीर्थ के काम से परे, प्राचीन भारतीय गणित की बारीकी से जांच के लिए एक मामला बनाया जा रहा है। चूँकि आर्यभट्ट प्रथम की वर्ग और घनमूल ज्ञात करने की विधि और श्रीधर और भास्कर द्वितीय की घन ज्ञात करने की विधि सामान्य विधियों की तुलना में बहुत तेज है, तो उनका उपयोग क्यों नहीं किया जाना चाहिए? छात्रों को भास्कर II और ब्रह्मगुप्त के समीकरण हल करने के तरीके क्यों नहीं सिखाए जाने चाहिए?
ज्यामिति के कई पहलुओं पर प्राचीन भारतीय गणितज्ञों द्वारा चर्चा की गई थी और पाई इसका एक उदाहरण है। लीलावती के सन्निकटन 22/7 और 3927/1250 के साथ पाई के अनुमान के रूप में कई श्रृंखलाएं निर्धारित की गई थीं।
प्राचीन भारतीय गणित उस सब का प्रतिनिधित्व नहीं करता जो इस विषय में अद्भुत है। वास्तव में, आधुनिक गणित के कई पहलू पुराने गणितज्ञों की समझ से परे थे। लेकिन इन शुरुआती कार्यों से उन लोगों को निकालने के लिए एक तर्कसंगत और वैज्ञानिक दृष्टिकोण की आवश्यकता है जो आज की जरूरतों के लिए उपयोगी और प्रासंगिक हैं। वैदिक गणित को कट्टरपंथी और दकियानूसी कहकर खारिज करना वैज्ञानिक भावना का उल्लंघन करता है और केवल एक हठधर्मिता को दर्शाता है, जो कट्टरवाद जितना ही विज्ञान का दुश्मन है।
वैदिक गणित एक ऐतिहासिक विरासत है जो पूरी मानव जाति से संबंधित है, क्योंकि हिंदू राष्ट्रों में विश्वास किए बिना इसे स्वीकार करना संभव है।