Bolne Wali Gudiya | बोलने वाली गुड़िया
सुनी-अनसुनी कहानियाँ – बोलने वाली गुड़िया – Bolne Wali Gudiya – The Talking Doll
मेरी गुड़िया
बहुत समय पहले की बात है स्वर्णनगरी में एक राजा वृषभानु राज्य करता था। उसके एक बेटी थी जिसका नाम स्वर्णलता था। वह अपनी बेटी को बहुत प्यार करता था।
उसके मुंह से निकलने वाली हर फरमाइश को राजा वृषभानु जरूर पूरी करता था। एक बार वृषभानु को किसी काम से दूसरे देश में जाना पड़ा।
स्वर्णलता ने वृषभानु के साथ जाने की जिद पकड़ ली, वृषभानु ने उसे कहा, “इस बार तो वे किसी काम से जा रहे है लेकिन आने के बाद वे दोनों साथ में घूमने जरूर जाएंगे।”
वृषभानु के समझाने पर स्वर्णलता इस वादे के साथ मान गई कि वे आते वक्त उसके के लिये बोलने वाली गुड़िया लाएंगे।
स्वर्णलता से वादा करके राजा वृषभानु चले जाते है। आते वक्त वह स्वर्णलता के लिये बोलने वाली गुड़िया लेकर आते है। स्वर्णलता गुड़िया पाकर बहुत प्रसन्न होती है। अब तो स्वर्णलता बस हर समय उस गुड़िया को अपने साथ रखती और उससे बहुत सारी बाते करती।
वह गुड़िया उसकी सबसे अच्छी सहेली बन गई। वह गुड़िया के साथ बहुत खुश थी।
क्या हुआ तेरा वादा?
ऐसे ही कुछ महीने बीत गए तो स्वर्णलता को अपने पिता का वादा याद आया। वह अपने पिताजी के पास गई और बोली कि “पिताजी आपने मुझे घूमाने का वादा किया था, लेकिन अभी तक आपने अपना वादा पूरा नहीं किया।”
राजा वृषभानु ने कहा, “शीघ्र ही हम दोनों घूमने चलेंगे मैं इसकी तैयारियां करवाता हूँ।” कुछ दिनों बाद राजा और स्वर्णलता दुनिया की सैर करने के लिए निकल गए। स्वर्णलता ने अपने साथ बोलने वाली गुड़िया को भी ले लिया।
दोनों ने कई देशों की सैर की और एक दिन वो दोनों अजबनगर में पंहुचे। अजबनगर एक बहुत ही सुंदर शहर हुआ करता था लेकिन जब वृषभानु और स्वर्णलता वहां पंहुचे तो वह बिल्कुल उजड़ा हुआ था।
वृषभानु ने किसी अनहोनी की आशंका से स्वर्णलता को वहां से वापस चलने के लिए कहा लेकिन उसने कहा, “पिताजी अब हम यहाँ आ गए है तो हम इसे अंदर से भी देख कर जायेंगे।” ऐसा कहकर स्वर्णलता दौड़ कर नगर में घुस गई।
स्वर्णलता जैसे ही नगर के द्वार के अन्दर पँहुची द्वारा बंद हो गया। वृषभानु और स्वर्णलता यह देखकर बहुत घबरा गए। स्वर्णलता अंदर से चिल्लाई पिताजी दरवाजा बंद हो गया। वृषभानु ने दरवाजा खोलने की बहुत कोशिश की लेकिन दरवाजा नहीं खुला।
किले की दीवारें भी बहुत ऊंची थी, वृषभानु ने स्वर्णलता को निकालने की बहुत कोशिश की लेकिन नाकाम रहा।
थक हार कर वृषभानु किले के दरवाजे पर बैठ गया। इसी तरह दो दिन बीत गए। अंदर स्वर्णलता का और बाहर राजा वृषभानु का रो रोकर बुरा हाल था। तब स्वर्णलता ने वृषभानु से कहा पिताजी आप वापस चले जाओ।
वृषभानु ने कहा नहीं मैं तुम्हे छोड़कर कहीं नहीं जाऊंगा। तब स्वर्णलता ने कहा पिताजी यहाँ पर रहे तो हम दोनों ही मर जायेंगे। अपने राज्य की प्रजा भी आपकी संतान के समान है उनकी रक्षा एवं देखभाल करना भी आपकी जिम्मेदारी है। इसलिए आप वापस चले जाओ।
फिर स्वर्णलता ने बड़ी मुश्किल से अपनी गुड़िया को किले के दूसरी तरफ फेंका और वृषभानु से कहा, “पिताजी आप इस गुड़िया को मेरी निशानी समझ कर लें जाओं।” स्वर्णलता के बहुत समझाने पर वृषभानु उसे छोडकर वापस अपने राज्य लौट गया।
उजड़ा नगर
वृषभानु के जाने के बाद स्वर्णलता नगर के अंदर की ओर चलने लगी। सारा नगर अस्तव्यस्त था। लेकिन नगर को देखकर लगता था कि यह कभी बहुत ही संपन्न रहा होगा। पूरे नगर में स्वर्णलता को कोई भी इन्सान नहीं दिखा। बस चारों तरफ इंसानों के पुतले ही पुतले दिखाई दे रहे थे।
चलते-चलते वह एक महल के सामने पहुँच गई। वह महल के अंदर चली गई। महल में कई कमरे थे। हर कमरे में सोने-चांदी हीरे-मोतियों से बना समान इधर-उधर बिखरा पड़ा था।
कुछ कमरों में ताले लगे हुए थे, पास ही एक दीवार पर चाबियों का गुच्छा लटका हुआ था। उसने उस गुच्छे को उठाया और एक-एक कमरे को खोल कर देखा।
एक बड़े से कमरे में खाने पीने का बहुत-सा समान पड़ा था, तो एक कमरे में पहनने के लिए राजसी वस्त्रों व गहनों का भंडार भरा हुआ था और एक कमरे में बड़े-बड़े कलशों हीरे मोती, सोना-चांदी तथा सोने की अशर्फियां भरी हुई थी।
एक कमरे का दरवाजा बंद था लेकिन बहुत कोशिश करने पर भी वह उस दरवाजे को नहीं खोल पाई। उस चाभी के गुच्छे में किले के दरवाजों की भी चाभियाँ थी, लेकिन साधन के अभाव में अब राजकुमारी वापस अपने नगर नहीं जा सकती थी। इसलिए उसने वहीं रहने का निश्चय कर लिया।
स्वर्णलता ने वस्त्रों वाले कमरे में से अपने लिए वस्त्र निकाले और महल में बने एक कुंड में नहाने चली गई। इसके बाद उसने अपने लिए खाना बनाया और खाया। खाना खाने के बाद उसने एक कमरे को जमाना चालु किया। अब उसका रोजाना यही नियम हो गया था। अब स्वर्णलता के पास सभी दरवाजों की चाबियां थी।
इसी तरह एक दिन वह उस बंद कमरें के सामने सफाई कर रही थी तो उसने वहां पड़ी एक मूर्ति को उठाने की कोशिश की तो वह मूर्ति घूम गई और उस कमरें का दरवाजा खुल गया।
क्या है युवक का रहस्य?
वह उस कमरें के अंदर गई तो इसने देखा एक रत्नजड़ित स्वर्ण के पलंग पर एक नौजवान युवक सो रहा था, लेकिन उसके पूरे शरीर पर कांटे चुभे हुए थे। उसने पास जाकर देखा कि उस नवयुवक का पूरा शरीर नीला पड़ गया था लेकिन उसकी साँसे चल रही थी।
एक बार तो वह डर गई लेकिन फिर उसने हिम्मत करके उसके हाथों में से कुछ काँटे निकले। जहाँ-जहाँ से उसने काँटे निकले वहाँ-वहाँ से नीलापन साफ हो गया।
उसने उस नौजवान के काँटे निकालने शुरू कर दिए और अँधेरा होने तक वो उसके कांटे निकालती रही।
अब तो उसका रोज का ये नियम बन गया था वह अपने नित्यकर्म करके अँधेरा होने तक उसके काँटे निकलती रहती। ऐसा करते करते 7-8 साल बीत गए। स्वर्णलता अब एक सुंदर नवयुवती में बदल गई थी और वह नवयुवक के आधे से ज्यादा शरीर के काँटे चुकी थी।
एक दिन स्वर्णलता काँटे निकल रही थी तो उसने बाहर आवाज सुनी “दासी ले लो – दासी ले लो।” स्वर्णलता ने सोचा कि दासी खरीद लुंगी तो वो घर के सारे काम कर लेगी और मुझे काँटे निकालने का ज्यादा समय मिल जाएगा। यह सोच कर वह बाहर आई और उसने एक दासी खरीद ली।
अब स्वर्णलता को काँटे निकालने का ज्यादा समय मिलने लगा। दासी का नाम श्यामला था। स्वर्णलता ने श्यामला को उस कमरे की तरफ जाने से मना कर दिया।
ऐसे ही कुछ दिन और बीत गए। श्यामला रोज सोचती कि न जाने उस कमरे में क्या है, राजकुमारी स्वर्णलता मुझे उसमे क्यों नही जाने देती? उसकी उत्सुकता उस कमरे के राज को जानने के लिए बढ़ती जा रही थी।
कुटिल श्यामला
एक दिन श्यामला ने जल्दी जल्दी अपना काम पूरा कर लिया और उस कमरे की तरफ चली गई। उसने देखा कि कमरे का दरवाजा अंदर से बंद था। उसने अंदर देखने की बहुत कोशिश की लेकिन सफल नहीं हुई। तभी अंदर से दरवाजा खोलने की आवाज आई।
श्यामला पास ही एक खम्बे के पीछे छुप गई। स्वर्णलता कमरे से बाहर आकर मूर्ति घूमा कर दरवाजा बंद कर रही थी, उसी दरम्यान श्यामला ने कमरे के अन्दर देखा, अंदर एक नवयुवक सो रहा था और उसके पूरे चहरे पर काँटे लगे हुए थे तथा पास ही एक थाल में बहुत सारे कांटे रखे हुए थे।
स्वर्णलता के जाने के बाद श्यामला भी चुपके से रसोई की तरफ चली गई।
ऐसे ही कुछ दिन और निकल गए। श्यामला ने उस कमरे में जाने की कोशिश की लेकिन सफल नहीं हुई। एक दिन स्वर्णलता रोज की तरह उस कमरे के अंदर गई, उसने नवयुवक के चेहरे पर से काँटे निकलने शुरू किये। अब नवयुवक की आँखों पर ही काँटे बचे थे।
स्वर्णलता ने सोचा अब तो थोड़े ही काँटे बचे है हो सकता है आँखो के काँटे निकलते ही नवयुवक को होश आ जाए। वह उसके सामने सज संवर के आना चाहती थी क्योंकि इतने समय से उसके साथ रहते हुए वह उससे चाहने लगी थी।
इसलिए स्वर्णलता कमरे को बंद करके वस्त्रों व गहनों वाले कमरे में गई। उसने वहां से सुंदर-सुंदर वस्त्र और गहने लिए और कुंड पर नहाने चली गई।
आज श्यामला को अच्छा मौका मिल गया। वह जल्दी से कमरे का दरवाजा खोल कर अंदर चली गई। फिर श्यामला ने नवयुवक की आँखों पर से बाकी बचे काँटे निकाल दिए। आखरी कांटा निकलते ही नवयुवक को होश आ गया।
उसने आँखे खोलते ही श्यामला को अपने सामने देखा। उसने सोचा कि मेरे सारे कांटे इसने ही निकाले हैं।
उसने श्यामला से पूछा कि तुम कौन हो? क्या तुमने ही मेरे सारे कांटे निकाले हैं तो श्यामला ने कहा “मेरा नाम श्यामला है और मैंने ही आपके सारे कांटे निकाले हैं।
जादू से आजादी
कृपया आप मुझे आपके बारे में बताएं कि आप कौन हैं और आपके शरीर में कांटे कैसे चुभे हुए थे?” तब उस नवयुवक ने कहा, “मैं इस अजबनगर का राजकुमार सुशर्मा हूं। बहुत सालों पहले मुझसे एक जादूगरनी विवाह करना चाहती थी, लेकिन मैंने उससे विवाह करने से मना कर दिया।
इस कारण उसने मेरे माता पिता को मार डाला और मेरे सारे राज्य को को नष्ट कर दिया। नागरिकों को पत्थर का बना दिया और मेरे शरीर पर कांटे चुभा कर मेरे ऊपर जादू करके मुझे अचेत कर दिया।
तुमने मेरे शरीर से सारे काटे निकाल कर मुझे उस जादूगरनी के जादू से आजाद कर दिया इसके लिए तुम्हारा बहुत-बहुत धन्यवाद।” श्यामला ने कहा, “आपको मुझे धन्यवाद देने की कोई आवश्यकता नहीं है यह तो मेरा फर्ज था।”
तभी राजकुमारी स्वर्णलता तैयार होकर उधर आ गई और श्यामला को वहां देख कर वह श्यामला पर चिल्लाई, “मैंने तुमसे यहां आने के लिए मना किया था फिर भी तुम यहां कैसे आ गई?” तभी उसकी नजर राजकुमार सुशर्मा पर पड़ी उसने देखा की उसे होश आ गया है, वह बहुत खुश हुई।
उसने सुशर्मा से कहा “अरे आप को होश आ गया, मेरी वर्षोँ की मेहनत सफल हो गई| मैं कितने वर्षों से आपके शारीर से कांटे निकल रही थी।” तभी श्यामला ने कहा “नहीं-नहीं यह झूठ बोल रही है आपके शारीर से सारे कांटे मैंने निकाले हैं।
आपने खुद इसके गवाह है। यह तो मेरी खरीदी हुई दासी है मैं इससे कोई बात नहीं छुपाती। आज जब इससे पता चला कि सारे कांटे निकलने वाले हैं तो यह सज संवर कर आ गई है। यदि इसने आपके कांटे निकले होते तो आज जब आपके होश आया तो ये आपके सामने होती।”
सुशर्मा ने श्यामला को पहले देखा था इसलिए उसने श्यामला की बात पर ही विश्वास किया और स्वर्णलता को डांट कर कहा, “श्यामला ने तुम पर विश्वास किया और तुम उसको धोखा दे रही हो यह अच्छी बात नहीं है, तुम दासी हो और दासी की तरह ही रहो।”
उसने फिर उसने श्यामला से कहा, “मुझे तुम पर पूरा विश्वास है कि तुमने ही मुझे जादूगरनी के जादू से आजाद किया है, इसलिए मैं तुमसे विवाह करना चाहता हूं।
क्या तुम मुझसे विवाह करोगी?” श्यामला ने शरमा कर हां कह दिया। कमरे से बाहर निकलने पर उन्होंने देखा कि जादूगरनी का जादू खत्म होने के कारण नगर के सभी लोग पत्थर से जीवित मनुष्य में बदल गए थे। अब वह नगर एक समृद्ध नगर में बदल गया था।
तब सुशर्मा ने राज्य के कुलगुरू से अपने व श्यामला के विवाह तथा अपने राज्याभिषेक के लिए शुभ मुहूर्त निकालने के लिए कहा तब कुलगुरू ने 3 माह के बाद का समय बताया। सुशर्मा ने अपने मंत्रियों से कहा, “विवाह की तैयारियां शुरू की जाए, 3 महीने बाद हमारा विवाह होगा।
विवाह की तैयारियां शुरू हो गई और श्यामला महल में रानी और राजकुमारी स्वर्णलता दासी के समान रहने लगी।
तोहफा क्या लोगी?
सुशर्मा बहुत दयालु था। वह स्वर्णलता से भी अच्छा व्यवहार करता था। लेकिन यह बात श्यामला को अच्छी नहीं लगती थी। वह कोशिश करती थी कि राजकुमार सुशर्मा और राजकुमारी स्वर्णलता आपस में ज्यादा मिल ना पाए। उसे पान भेद खुलने का डर हमेशा सताता रहता था।
इसलिए वह उनको हमेशा अलग-अलग रखने की कोशिश करती थी।
ऐसे ही एक माह और बीत गया। एक दिन सुशर्मा ने सोचा कि जादूगरनी के जादू के कारण आसपास के राजा अजबनगर के बारे में नही जानते और मुझे भी आसपास के राजाओं के बारे में कोई जानकारी नहीं है।
अब जब मेरे राज्य से जादूगरनी का जादू उतर चुका है और मेरा विवाह भी होने वाला है इसलिए मुझे आसपास के राजाओं से मिलना चाहिए, उन्हें अपने और अजबनगर के बारे में बताना चाहिए। उन्हें अपने विवाह तथा राज्याभिषेक में आने का निमंत्रण देना चाहिए, जिससे मेरी उनसे मित्रता बढ़े।
यह सोचकर उसने अपने जाने की तैयारी कर ली। सुशर्मा ने भ्रमण पर जाते वक्त श्यामला से पूछा, “मैं भ्रमण के लिए जा रहा हूँ, तुम बताओं वहाँ से तुम्हारे लिए क्या लाऊं?” तो श्यामला ने बहुत सारी चीजें लाने के लिए कहा।
सुशर्मा ने स्वर्णलता से भी पूछा, “तुम भी मुझे बता दो तुम्हारे लिए क्या लाऊं?“ श्यामला ने मुंह बनाते हुए कहा, “इसके लिए कुछ लाने की क्या जरूरत है, यह तो दासी है। लेकिन सुशर्मा ने कहा “दासी है तो क्या हुआ इसको भी किसी चीज की जरूरत होगी जब में तुम्हारे लिए इतनी चीजे ला रहा हूँ, तो इसके लिए भी कुछ ले आऊंगा।” श्यामला मन मसोज का रह गई।
बोलने वाली गुड़िया
स्वर्णलता ने कहा, “मुझे ज्यादा कुछ नहीं चाहिए यदि हो सके तो मेरे लिए बोलने वाली गुड़िया लेकर आना। सुशर्मा ने पूछा, “यह बोलने वाली गुड़िया कहां मिलेगी।” स्वर्णलता ने कहा, “यहां से बहुत दूर पर ही स्वर्णनगरी नाम का एक नगर है वहां के राजा के पास आपको बोलने वाली गुड़िया मिल जाएगी।”
सुशर्मा भ्रमण पर निकल गया। घूमते घूमते वह स्वर्णनगरी के सामने से गुजरा, तभी उसे याद आया कि दासी ने स्वर्णनगरी के राजा से बोलने वाली गुड़िया लाने के लिए कहा था। वह उस नगर में गया और राजा वृषभानु से मिला।
सुशर्मा ने वृषभानु से कहा, “मेरी दासी ने आपके पास से बोलने वाली गुड़िया है लाने को कहा है, क्या आप वह गुड़िया मुझे अपनी दासी के लिए देंगे?
तो राजा ने कहा, “वह गुड़िया मेरी बेटी गुड़िया मेरी बेटी की आखिरी निशानी है, मैं यह आपके कैसे दे सकता हूँ?”
सुशर्मा ने कहा, “माना कि वह गुड़िया आपकी बेटी की आखिरी निशानी है लेकिन यदि आप वह गुड़िया मुझे देंगे तो मेरी दासी बहुत खुश होगी और किसी को खुश देखकर आपकी बेटी जहां पर भी है वह भी जरूर खुश होगी।”
बहुत समझाने के बाद राजा वृषभानु गुड़िया को देने के लिए तैयार हो गया।
सुन गुड़िया मेरी कहानी
सुशर्मा गुड़िया को लेकर वापस अपने नगर को लौट आया। उसने श्यामला को उसके सारे सामान दिए। उसके बाद वह दासी के पास गया और उसे वह बोलने वाली गुड़िया दे दी। स्वर्णलता गुड़िया पाकर बड़ी प्रसन्न हुई।
अब वह दिन भर महल का काम करती और रात को अपनी गुड़िया से बातें करती। गुड़िया उसके दुख-दुख के बारे में पूछती और वह अपने बारे में सारी बातें बताती। गुड़िया उसको तसल्ली देती कि “बुरे के साथ बुरा ही होगा, तुम चिंता ना करो।”
ऐसे करते-करते कुछ दिन और बीत गए।
एक बार रात को सुशर्मा किसी काम से स्वर्णलता के कक्ष की तरफ से निकला, उस वक्त स्वर्णलता गुड़िया को अपनी कहानी सुना रही थी तो उत्सुकतावश सुशर्मा वही रूककर उनकी बाते सुनाने लगा।
उनकी बाते सुनने के बाद सुशर्मा स्वर्णलता के कक्ष में गया और स्वर्णलता से पूछा, “तुमने जो कहानी गुड़िया को सुनाई है, वह सच है?” तो स्वर्णलता ने कहा “हाँ, यह बिल्कुल सच है।” तब सुशर्मा ने कहा, “मैं तुम पर कैसे विश्वास करूं” स्वर्णलता ने कहा, “आप जिस राजा से यह गुड़िया लेकर आए हैं वह मेरे पिताजी हैं। आप चाहें तो अपने गुप्तचरों से पता करवा सकते हैं।“
साँच को आंच नहीं
तब सुशर्मा ने अपने गुप्तचरो से पूरी जानकारी मंगवाई तो उसके सामने सारा सच आ गया। सारा सच जानने के बाद सुशर्मा को श्यामला पर बहुत गुस्सा आया और उसने तुरंत श्यामला को बुलाया और कहा की तुमने मुझसे झूठ बोला था तुम्हे इसकी सजा मिलेगी।
श्यामला ने कहा, “इस दासी ने आपको मेरे खिलाफ भड़का दिया है, मैनें आपसे कोई झूठ नहीं बोला है।” सुशर्मा ने कहा मैंने अपने गुप्तचरों से सारा सच पता करवा लिया है, तुमने मुझे और स्वर्णलता दोनों को धोखा दिया है और तुम्हें इसकी सजा मिलेगी।
सुशर्मा ने अपने सैनिकों को दासी को पकड़कर कारागृह में डालने का आदेश दिया। उसके बाद उसने स्वर्णलता से क्षमा मांगी, तो स्वर्णलता ने कहा, “आपको मुझसे क्षमा मांगने की कोई आवश्यकता नहीं है इसमें आपका कोई दोष नहीं है आपको तो दासी ने अपनी बातों में फंसा लिया था”|
तब सुशर्मा ने उससे कहा, “मैं तुमसे विवाह करना चाहता हूं क्या इतना सब कुछ होने के बाद भी तुम मुझसे विवाह करना चाहोगी?” स्वर्णलता ने सर हिलाकर अपनी स्वीकृति दे दी।
शीघ्र ही उन दोनों का विवाह और राजकुमार सुशर्मा का राज्याभिषेक संपन्न हो गया। विवाह होने के पश्चात वे दोनों स्वर्णनगरी गए और राजा वृषभानु से मिले। राजा वृषभानु अपनी बेटी को अपने सामने जीवित देख कर बहुत प्रसन्न हुआ।
उसने सुशर्मा को बहुत-बहुत धन्यवाद दिया। कुछ दिन स्वर्णनगरी में रहने के बाद दोनों ने राजा वृषभानु से अपने नगर में जाने की आज्ञा मांगी। तब राजा वृषभानु ने उन दोनों को बहुत सारे सामान के साथ विदा कर दिया। सुशर्मा और स्वर्णलता अपने राज्य में पहुंचकर खुशी खुशी से रहने लगे |
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तो दोस्तों, कैसी लगी बोलती गुड़िया की कहानी। मजा आया ना, फिर मिलेंगे कुछ सुनी और कुछ अनसुनी कहानियों के साथ। तब तक के लिए इजाजत दीजिए।
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