मुनि रुरु की कहानी – Muni Ruru Ki Kahani
पौराणिक कहानियाँ – मुनि रुरु की कहानी – Muni Ruru Ki Kahani – The Story of Muni Ruru
पतिव्रता नारियों जैसे माता अनुसूया, माता अहिल्या, माता सावित्री, माता अरुंधती, माता सुमति, माता सीता, द्रोपदी आदि कई नारियों के पतिव्रत धर्म के बारे में तो हमने बहुत सुना है लेकिन संसार में कुछ ऐसे पुरुष भी हुए है जिन्होंने पत्नीव्रत धर्म का पूरी निष्ठा से पालन किया।
जिनमे से एक तो हमारे भोले बाबा भगवान शिव शंकर ही है। लेकिन मैं आज आपको उनकी कथा नहीं सुना रही। आज में आपको एक ऐसे ही पुरुष की कथा सुना रही हूँ जिसने अपनी पत्नी के लिए अद्भुत त्याग का उदाहरण संसार के समक्ष प्रस्तुत किया।
भृगु ऋषि के पडपौत्र मुनि रुरु एक पेड़ के नीचे एक शिवलिंग के सामने अपनी तपस्या कर रहे थे। वहीं पास में ही एक कुटिया में विश्ववसु व मेनका की पुत्री प्रभाद्वरा रहती थी।
वे हर रोज प्रात: काल शिवलिंग पर जल चढाने और शिवजी की पूजा व स्तुति करने आया करती थी। वे रोज मुनि रुरु को तपस्या करते हुए देखा करती थी। मुनि रुरु बिना भूख-प्यास, सर्दी, गर्मी, बरसात की परवाह किये अपनी तपस्या में लीन रहते थे।
वे मुनि रुरु की तपस्या और व्यक्तित्व के तेज से बहुत प्रभावित थी। इसी तरह कई वर्ष बीत गए। प्रभाद्वरा निरंतर शिवजी की आराधना करती रही और मुनि रुरु भी अपनी तपस्या में लीन थे।
एक दिन बहुत जोर का बवंडर आया, लेकिन मुनि रुरु बिना विचलित हुए अपनी तपस्या में लगे रहे और प्रभाद्वरा भी नियमानुसार शिवजी पर जल चढाने के लिए वहां आई।
बवंडर शांत होने पर उन्होंने देखा कि मुनि रुरु के कंधे में पेड़ की एक डाल चुभ गई है और उससे उनके कंधे पर गहरा जख्म भी हो गया है।
उन्होंने मुनि रुरु की सहायता करनी चाही लेकिन यह सोच कर रुक गई कि कहीं इससे मुनि रुरु की तपस्या ना भंग हो जाए और वे उन पर क्रोधित ना हो जाए।
इसी तरह कुछ दिन और बीत गए। मुनि रुरु का घाव बढ़ता जा रहा था और उससे उन्हें बहुत पीड़ा भी हो रही थी लेकिन फिर भी वे अपनी तपस्या में रत रहे।
प्रभाद्वरा से मुनि रुरु का दर्द देखा नहीं गया और उन्होंने मुनि रुरु के जख्म का उपचार करने का निश्चय कर लिया। उन्होंने जंगल से कुछ पत्ते तोड़ कर उन्हें पीस कर लेप बनाया और मुनि रुरु के पास चल दी।
लेकिन जैसे ही वे उनके निकट पंहुची मुनि रुरु का तेज उन्हें जलाने लगा लेकिन प्रभाद्वरा बिना इसकी प्रवाह किये मुनि रुरु के निकट पंहुच गई और उनके कंधे से धीरे से पेड़ की डाल को निकाला और अपने अंचल से घाव को साफ करके उस पर लेप लगा दिया।
प्रभाद्वरा रोज शिवजी की पूजा के बाद मुनि रुरु के घाव पर लेप लगाती रही और मुनि रुरु का तेज उन्हें जलाता रहा। यहाँ तक कि उनके खुद के शरीर पर भी मुनि के तेज से जगह-जगह से जल गया था। लेकिन उन्होंने मुनि रुरु के घाव पर लेप लगन नहीं छोड़ा।
प्रभाद्वरा की सेवा से मुनि रुरु का जख्म काफी ठीक हो गया था। एक दिन वे इसी तरह मुनि रुरु के जख्म पर लेप लगाकर जा रही थी तो मुनि रुरु ने उन्हें आवाज दी, “रुकिए देवी, आप कौन है ? अपना परिचय दीजिये।”
प्रभाद्वरा के उत्तर दिया, “ मैं विश्ववसु व मेनका की पुत्री प्रभाद्वरा हूँ और यहाँ पास में ही मेरी कुटिया है।” मुनि रुरु ने पूछा, “मैं सदैव आपके द्वारा मधुर स्वर में की जाने वाली शिव स्तुति सुनता हूँ जिसे सुनकर मेरे मन भी भक्ति के भाव जाग्रत हो जाते है और आपने मेरी सेवा भी बड़े ही तन-मन और श्रद्धा से की है।
आपमें भक्ति, दया भावना व सेवा का अद्भुत संगम है। मैं आपसे बहुत प्रभावित हूँ यदि आपकी स्वीकृति हो तो मैं आपसे विवाह करना चाहता हूँ।” प्रभाद्वरा ने विवाह की स्वीकृति देते हुए कहा, “हे देव, आप जैसे महान तपस्वी की अर्धांगिनी बनाना तो मेरे सौभाग्य होगा।”
मुनि रुरु और प्रभाद्वरा ने उसी दिन गन्धर्व विवाह करने का निश्चय कर लिया। दोनों ने एक दुसरे को पति व पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया था बस विवाह द्वारा उसे मान्यता प्रदान करना ही शेष था। शुभ समय पर दोनों गन्धर्व विवाह के लिए शिवलिंग के समक्ष वरमाला लेकर उपस्थित हो गए।
लेकिन शायद होनी को कुछ और ही मंजूर था, वरमाला डालने से पहले ही एक जरिले बिच्छू ने प्रभाद्वरा को काट लिया और वे जमीन पर गिर पड़ी। मुनि रुरु ने उन्हें अपनी गोद में लिटा लिया। प्रभाद्वरा ने कहा, “स्वामी मुझे लगता है मेरे अंतिम समय आ गया है।
शायद मेरे भाग्य में इतनी ही आयु लिखी थी। मुझे क्षमा कर दीजिये मैं आपकी इच्छा नहीं पूर्ण कर पायी। हमारा विवाह नहीं हो पाया।” मुनि रुरु ने कहा, “विवाह तो बस एक परम्परा है, मैं तो तुम्हे अपनी पत्नी के रूप मैं स्वीकार कर चूका हूँ और अब मैं तुम्हे अपने से दूर नहीं जाने दूंगा।”
प्रभाद्वरा की आयु पूर्ण हो चुकी थी, अत: यमराज के दूत प्रभाद्वरा की आत्मा को लेने वहां आ गए। मुनि रुरु ने कहा, “मैं अपने तप की शक्ति से तुम्हारी इस अकाल मृत्यु को तुम्हारे भाग्य से मिटा दूंगा। मैं अपनी प्रभाद्वरा की आत्मा को किसी को भी नहीं ले जाने दूंगा।”
यह कहकर उन्होंने प्रभाद्वरा का हाथ कस कर पकड़ लिया। तभी यमदूतों ने प्रभाद्वरा को ले जाने के लिए अपना पाश फेंका लेकिन वे प्रभाद्वरा की आत्मा को उसके शरीर से नहीं निकाल पाए।
मुनि रुरु ने त्रिदेवों से प्रार्थना करते हुए कहा, “है त्रिदेव, यदि मैंने पूर्ण निष्ठा और भक्ति से तप किया है तो मुझे इतनी शक्ति दे कि स्वयं यमराज भी मेरी प्रभाद्वरा की आत्मा को मुझसे दूर ना ले जा पाए।” तत्पश्चात उन्होंने अपने तपोबल की शक्ति से अपने चारों ओर सुरक्षा घेरा उत्पन्न कर दिया और वे प्रभाद्वरा।
यमराज ने एक-एक करके कई यदूत भेजे लेकिन सभी उस घेरे को पार नहीं कर सके और घेरे से टकराकर पाषाण के सामान स्तंभित हो गए।
कई दिन बीत गए यहाँ तक की मुनि रुरु के तपोबल का तेज से धरती पर ताप बढ़ने लगा जगह-जगह आग लगने लगी यहाँ तक की उनका तेज उन्हें स्वयं को भी जलाने लगा। कई ऋषि-मुनि उन्हें समझाने गए लेकिन मुनि रुरु ने अपना हट नहीं छोड़ा।
तब सभी ऋषि मुनि रुरु के दादा ऋषि भृगु के पास गए और उन्हें समझाने के लिए कहा।
तब ऋषि भृगु मुनि रुरु के पास गए और उन्हें समझाते हुए कहा, “जिस तप से जगत का कल्याण होना चाहिए उसी तप को तुम एक नारी के लिए व्यर्थ कर रहे हो और इसके कारण जगत को नुकसान पंहुच रहा है। तुम्हारा तो इससे विवाह भी नहीं हुआ था।
तुम तो सभी मर्यादाओं को भुलाकर विधि के नियमो को भंग कर रहे हो। मेरा कहा मानकर अपना यह अनुचित हट त्याग दो|” मुनि रुरु ने कहा, “यह केवल एक नारी नहीं है पड़पितामह, मैं अपने मन और आत्मा से इन्हें अपनी पत्नी मान चुका हूँ, बस विवाह की एक औपचारिकता ही बाकी रह गई थी।
जिस निष्ठा और भक्ति से मैंने भगवान का तप किया है उसी निष्ठा और भक्ति से अपने प्रेम के लिए मैं अपना सर्वश्व त्याग सकता हूँ। अब तो स्वयं यमराज भी मेरी पत्नी के प्राण मुझसे दूर नहीं ले जा सकते।” जब बहुत समझाने पर भी मुनि रुरु ने अपना हट नहीं छोड़ा तो ऋषि भृगु भी वहां से चले गए।
जब कई यमदूत भी प्रभाद्वरा के प्राण नहीं ला पाए तो स्वयं यमराज प्रभादवाराके प्राण लेने के लिए वहां पर आ गए लेकिन वे भी मुनि रुरु के बनाये सुरक्षा घेरे को पार नहीं कर पाए।
तब यमराज ने उन्हें समझाते हुए कहा, “मुनिवर आप तो ज्ञानी है, आप तो जानते है मृत्यु अटल है, जिसने भी जन्म लिया है उसकी मृत्यु भी निश्चित है। ईश्वर द्वारा सभी को अपने कर्मों के अनुसार आयु प्रदान की जाती है और प्रभाद्वरा की आयु पूर्ण हो चुकी है। अत: आप विधि के विधान में अड़चन ना डालकर मुझे प्रभाद्वरा के प्राण ले जाने दीजिये।”
मुनि रुरु ने कहा, “यदि आयु व्यक्ति के कर्मों से ही निर्धारित होती है तो प्रभाद्वरा ने तो बहुत ही अच्छे कर्म किये है। वे बाल्यकाल से ही भगवन शिव की पूजा करती आ रही है, उन्होंने निश्वार्थ भाव से मेरे तप का तेज सहते हुए मेरी इतनी सेवा की है और अपने सारे सुखों को छोड़कर वे मेरे जैसे तपस्वी के साथ इतना कठिन जीवन जीने के लिए भी सहर्ष तैयार हो गई थी।
तो एसी साध्वी की आयु इतनी अल्प कैसे हो सकती है।” यमराज ने कहा, “ये तो आप भी जानते है की आयु का निर्धारण केवल एक जन्म से नहीं पूर्व के कई जन्मों के कर्मों के द्वारा होता है। यह तो सर्व विदित है कि शरीर नश्वर है केवल शरीर मरता है आत्मा तो अमर रहती है।
इसलिए केवल एक शरीर के लिए आप इतना शोक क्यों कर रहे है ?”
मुनि रुरु ने कहा, “यदि शरीर नश्वर है और आत्मा अमर है तो आप प्रभाद्वरा के साथ-साथ मेरी आत्मा को भी मेरे शरीर से निकाल लीजिये। मैं प्रभाद्वरा की आत्मा के साथ उस लोक में रह लूँगा।” यमराज ने कहा, “मैं यह भी नहीं कर सकता, अभी आपकी आयु पूरी नहीं हुई है और निश्चित समय से पहले मैं किसी के प्राण नहीं ले सकता।”
मुनि रुरु ने कहा, “पत्नी पति की अर्धांगिनी होती है, पति की हर वस्तु पर उसका बराबर का अधिकार होता है। इसलिए मैं अपनी आयु और तप का आधा भाग प्रभाद्वरा को देने के लिए तैयार हूँ। आप इसे मेरी आधी आयु तो प्रदान कर सकते है।”
यमराज ने कहा, “जीवन का प्रेम किसी भी प्रेम से सर्वोपरि होता है कोई किसी से कितना भी प्रेम करे उसके लिए अपना जीवन देने के लिए सहर्ष तैयार नहीं होता।
लेकिन आपने अपनी आधी आयु देकर विवाह सम्बन्ध को एक नई परिभाषा रच दी है।
प्रेम और त्याग से ही विवाह सम्बन्ध सुदृढ़ होता है। आपके इस प्रेम को देखकर मैं बहुत प्रसन्न हूँ और मैं प्रभाद्वरा को आपकी आधी आयु प्रदान कर उन्हें जीवन प्रदान करता हूँ।” इतना कहकर यमराज ने प्रभाद्वरा को पुनर्जीवित कर दिया।
इस तरह मुनि रुरु ने अपनी पत्नी प्रेम के लिए अपनी आधी आयु और आधा तप प्रदान करके संसार के सामने सिद्ध कर दिया कि जो कुछ भी पति का है उसमे आधा भाग पत्नी का भी है।
फिर चाहे वह उसके कर्तव्य हो या उसके द्वारा किये गए पुण्यों का फल सभी में पत्नी की पूरी सहभागिता होती है।
किसी पुरुष का अपनी पत्नी के प्रति प्रेम और त्याग का ऐसा अद्भुत उदाहरण विरले ही देखने को मिलता है।
तो दोस्तों, कैसी लगी पत्नि के प्रति पति के असीम प्रेम की कहानी, बताना जरूर।
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