बगुला भगत और केकड़ा – Bagula Bhagat Aur Kekda
पंचतंत्र की कहानियाँ – पहला तंत्र – मित्रभेद – बगुला भगत और केकड़ा – Bagula Bhagat Aur Kekda – The Heron and The Crab
दोस्तों आपके लिए एक और प्यारी सी कहानी हिंदी में, एक केकड़े और एक धूर्त बगुले की, जो अंत में हमे एक सीख दे जाती हे।
एक जंगल में एक बहुत बड़ा तालाब था। उसमे कई प्रकार के जीव-जंतु जैसे मछलियाँ, कछुए, केकड़े, मेंढक, बत्तख, सारस आदि बहुतायत में रहते थे, क्योंकि वहां सभी प्रकार के जीवों चाहे वह मांसाहारी हो या शाकाहारी, नभचर हो या जलचर के लिए प्रचुर मात्रा में भोजन उपलब्ध था।
कई प्रकार के पक्षी भी पानी में अठखेलियाँ करने और भोजन की तलाश में वहां आते रहते थे। उस तालाब के पास में ही एक बहुत ही धूर्त बुढा बगुला रहता था।
बेचारा बगुला क्या करे?
बुढ़ापे के कारण उसकी नजरें भी कमजोर हो गयी थी। वह भी उस तालाब में रहने वाली मछलियों व जीवों से अपना पेट भरता था, लेकिन इसके लिए उसे बहुत मेहनत करनी पड़ती थी, जो उसे बिलकुल पसंद नहीं थी।
दुसरे आँखों से कम दिखाई देने के कारण मछलियाँ उसके हाथों से निकल जाती थी। इस कारण उसे कई दिनों तक भूखा भी रहना पड़ता था।
इस कारण वह बहुत कमजोर भी ओ गया था। वह हेमशा यही सोचता रहता था कि ऐसा क्या किया जाए कि मुझे ज्यादा मेहनत भी नहीं करनी पड़े और मुझे रोज पेट भर भोजन भी मिल जाया करें।
मैं तो एक वैरागी
एक दिन उसे एक उपाय सूझ गया। वह एक माला हाथ में लेकर तालाब में एक टांग पर खड़ा हो गया और उसने शिकार करना भी बंद कर दिया।
उसे ऐसा करते हुए तीन दिन बीत गए उसने किसी भी जानवर का शिकार नहीं किया। वह माला फेरते हुए आंसू बहाने लगा।
उसी तालाब में रहने वाला केकड़ा बगुले को तीन दिन से वहीं खड़ा देख रहा था बगुले के पास गया और बोला, “मामा, क्या बात है, आप तीन दिन से ये माला हाथ में लिए खड़े हो और किसी भी जीव का शिकार भी नहीं कर रहे हो।” और तो और आज तो आप रो भी रहे हो।”
बस भजन करूँगा
बगुले मगरमच्छी आंसू बहते हुए कहा, “भांजे, अपने इस जीवन में मैंने मछलियों व जीवों का शिकार करके बहुत पाप कर्म किया है, लेकिन अब मैंने ये निश्चय कर लिया है कि अब से मैं किसी भी जानवर का शिकार नहीं करूँगा।”
बस भगवान् का भजन किया करूँगा। मैंने भक्ति और त्याग का जीवन अपना लिया है। अब तो बस मैं अपना जीवन भगवान् की भक्ति और दूसरों की सहायता करने ही व्यतीत करूँगा।
जिससे मुझे मेरे पापों से मुक्ति मिल जाए।” केकड़े ने आश्चर्य से कहा, “लेकिन मामा, मछलियाँ तो तुम्हारा भोजन है। तुम यदि उनका शिकार नहीं करोगे तो भूखे मर जाओगे। आखिर इस वैराग्य का क्या कारण है?”
मेरे साथियों का क्या होगा?
बगुले ने थोडा चिंतित होते हुए और आह भरते हुए कहा, “मरना तो एक दिन सभी को है, लेकिन मैंने सुन है, कुछ ही दिनों में यहाँ भयंकर अकाल पड़ने वाला है। अगले बारह वर्षों तक यहाँ वर्षा नहीं होगी।”
केकड़े ने आश्चर्य से पूछा, “ये बात आपने किससे सुनी?”
बगुले ने उत्तर दिया, “मुझे एक बहुत ही पंहुचे हुए त्रिकालदर्शी सन्यासी से पता चला है कि अगले बारह वर्षों तक नक्षत्रों का ऐसा योग होने वाला है, जिससे अगले बारह वर्षों तक बरसात नहीं होगी। जलाशय और पेड़-पौधे सूख जायेंगे, जंगल में खाने के लाले पड़ जायेंगे और इस जंगल के सभी जीव मारे जायेंगे।”
“मैंने इसी तालाब में जन्म लिया, यहीं मेरा बचपन बीता और जवान हुआ। इसलिए मैं यह रहने वाले सभी जीवों से बहुत प्रेम करता हूँ। मैं तो उड़कर कहीं भी जा सकता हूँ। लेकिन मुझे तो इस तालाब में रहने वाले जीवों की चिंता हो रही है।”
“अकाल के कारण ये तालाब भी सूख जाएगा और मेरे बचपन के ये सभी साथी मर जायेंगे। जिनके वियोग की कल्पना मात्र से ही मेरी आँखों से आँसू निकल रहे है।”
“दूसरे छोटे-छोटे जलाशयों के जानवर तो अपना-अपना स्थान छोड़कर बड़े-बड़े तालाबों के और जा रहे है। लेकिन इस जलाशय के जानवर तो ऐसे निश्चिंत बैठे है, जैसे कुछ होने वाला ही ना हो। इसलिए मैंने अनशन लिया है जिससे इनकी रक्षा का कुछ उपाय हो सके।”
मामा हमें बचा लो
बगुले की बात सुनकर केकड़ा बहुत चिंतित हुआ। उसने जल्दी से वह बात तालाब के सभी जानवरों को बताई।
यह सुकर सभी जानवर घबरा गए और दौड़े-दौड़े बगुले के पास आये और बोले, “भगत मामा, आप तो हम सबसे बुजुर्ग और अनुभवी है। आपने तो पहले भी इस तरह की परिस्थितियों का सामना किया होगा।
इसलिए आप ही हमें इस संकट से छुटकारा पाने का कोई उपाय बता सकते हो। आप ही हमारा जीवन बचा सकते हो।”
छोड़ के सब कुछ जाना पड़ेगा
बगुले ने सहमति में अपनी गर्दन हिलाते हुए कहा, “हाँ, तुम सही कह रहे हो, जब भी कभी ऐसी परिस्थिति आती थी तो हम सभी पशु-पक्षी यह जगह छोड़ कर दूसरी जगह चले जाते थे। मैं तो अब भी उड़कर कहीं भी जा सकता हूँ लेकिन मुझे तो तुम लोगो की चिंता है। तुम लोग क्या करोगे?”
केकड़े ने कहा, “मामा, अब तो तुम्ही बताओ हम क्या कर सकते है ?”
बगुले ने कुछ सोचने का नाटक करते हुए कहा, “मैं यहाँ से कुछ कोस की दूरी पर ही एक बहुत बड़ा जलाशय के बारे में जानता हूँ जिसमे पास ही की पहाड़ी से झरने का पानी लगातार गिरता रहता है।”
“वह जलाशय कभी नहीं सूखता। मेरी राय में तो तुम सभी को अपनी जान बचाने के लिए उस जलाशय में चले जाना चाहिए।” उसकी बात सुनकर सभी जलचर चिंता में पड़ गए कि अब हम इतनी दूर जलाशय में कैसे जायेंगे?”
मैं तो सेवा करूँगा राम
उनको चिंतित देख कर बगुले ने बड़ी आत्मीयता से कहा, “तुम सबकी ये हालत देख कर मेरा कलेजा मुंह को आ रहा है। मैंने तो पहले से ही ये तय कर लिया है कि अब से मैं अपना जीवन दूसरों की सेवा में ही व्यतीत करूँगा।
अभी तो अकाल आने में बहुत समय है, यदि आप लोगों को मुझ पर विश्वास हो तो मैं रोज सुबह शाम एक-एक जीव को अपनी पीठ पर बैठाकर वहां ले जाऊँगा और अकाल के आने तक सभी जीवों को उस बड़े जलाशय तक पंहुचा दूंगा।”
सभी जानवर अकाल की बात से बहुत डरे हुए थे। वे आसानी से बगुले की मीठी-मीठी बातों में आ गए और उसकी बात से सहमत हो गए।
अपनी तो हो गई बल्ले-बल्ले
अब बगुला रोज एक-एक जीव को अपनी पीठ पर बैठकर ले जाता और कुछ ही दूर पहाड़ी पर ले जाकर उसे पटक कर मार देता और खा जाता।
वापस आकर वह उन बचे हुए जीवों से दुसरे जलाशय में ले जाने वाले जीवों के बारे में अच्छी-अच्छी बातें बताता कि वे वहां कितने मजे से रह रहे और बहुत खुश है।
यह सुनकर बचे हुए जीव भी उससे उन्हें भी जल्दी ही उस जलाशय में ले जाने के लिए कहते, इसलिए कभी-कभी वह तीन-चार फेरे भी लगा लेता। धीरे-धीरे उस जलाशय में जीवों की संख्या कम होने लगी और उस पहाड़ी के पास हड्डियों का ढेर लगने लगा।
क्या से क्या हो गया
रोज भरपेट भोजन मिलने की वजह से बगुले भगत जी की तो काया ही पलट गयी, वह खूब मोटा-ताजा हो गया और उसके चेहरे पर चमक आ गयी।
उसकी सेहत देख कर कभी कोई आश्चर्य करके कुछ कहता तो बगुला भगत कहता, “भगवान् दूसरों की सहायता करने के लिए उसे शक्ति प्रदान कर रहे है।”
सभी जानवर भी उसकी इस बात से सहमत हो जाते और बगुला भगत मन ही मन उनके भोलेपन पर हँसता और सोचता कि दुनियां भी कैसे-कैसे मूर्खों से भरी है, जो कितनी सरलता से किसी की भी बात का विश्वास कर लेते है।
बस थोड़ी ही चालाकी से अपना उल्लू सीधा किया जा सकता है।
मेरी बारी कब आएगी
यह क्रम कई दिनों तक चलता रहा। एक दिन केकड़े ने बगुला भगत से कहा, “मामा, तुमने अब तक कई जीवों को उस जलाशय में पंहुचा दिया है।
आपने अभी तक मुझे ले जाने के बारे में नहीं सोचा। जबकि सबसे पहले मेरी ही आपसे बात हुई थी। कृपया मुझे भी अकाल के आने से पहले उस जलाशय तक पंहुचा दें।
“ बगुले ने यह सोच कर कि केकड़े का मांस तो बहुत ही स्वादिष्ट होता है क्यों ना आज केकड़े की दावत का मजा लिया जाए, केकड़े से बड़े ही प्यार से कहा, “क्यों नहीं बेटा, आज मैं तुम्हे ही वहां ले चलता हूँ। आओ मेरी पीठ पर सवार हो जाओ।”
कुछ तो गड़बड़ है
केकड़ा उछलकर बगुले की पीठ पर सवार हो गया। बगुला उसे भी उस पहाड़ी की तरफ ले गया। केकड़े ने जब वहां पर मछलियों, मेंढकों व कछुओं आदि कि हड्डियों का ढेर देखा तो उसका माथा ठनका और वह दुष्ट बगुले कि सारी चालाकी समझ गया।
उसने अनजान बनते हुए बगुले से पूछा, “मामा, वह जलाशय अब कितना दूर है और ये पहाड़ी के पास हड्डियों का ढेर कैसा है ?” बगुला भगत जोर से ठहाका लगा कर हंसा और बोला, “मुर्ख, कहीं कोई जलाशय नहीं है, मैं तो एक-एक जीव को अपनी पीठ पर बैठाकर यहाँ लाता हूँ और मार कर खा लेता हूँ। आज तुम्हारी बारी है।”
उसकी बात सुनते ही सारी हकीकत केकड़े के सामने आ गयी। उसके सामने उसकी मौत खड़ी थी लेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी।
उल्टी पड़ गई चाल
उसने उछल कर बगुले की नर्म और मुलायम गर्दन अपने नुकीले और तीखे पंजो से पकड़ ली और बोला मुझे जल्दी से वापस तालाब की ओर ले चलों नहीं तो मैं तुम्हारी गर्दन दबा दूंगा।”
बगुले ने गर्दन झटक कर केकड़े को गिराने की कोशिश की लेकिन नाकामयाब रहा, बल्कि केकड़े ने उसकी गर्दन को और जोर से पकड़ किया। बगुला दर्द से कराह उठा।
मरता क्या न करता बगुला केकड़े को लेकर वापस तालाब की ओर उड़ चला।
मार डाला रे मार डाला
जैसे ही वह तालाब के पास पंहुचा केकड़े ने अपने पैने पंजों से उसकी गर्दन काट दी और जल्दी से तालाब में कूद गया। बगुले का अंत हो गया था।
जब केकड़ा तालाब में पहुंचा तो तालाब के उसके भाई-बंधुओं ने उसे घेर लिया और पूछा, “अरे तुम वापस कैसे आ गए? और मामा दिखाई नही दे रहे, वे कहाँ है?” तब केकड़े ने सभी को बगुले की कटी हुई गर्दन दिखाकर पूरी सच्चाई बताई कि कैसे बगुले ने उन भोले-भाले जीवों को धोखा दिया और कैसे उसने उस दुष्ट बगुले का अंत किया।
सभी जीवों ने दुष्ट बगुले से उनकी जान बचाने के लिए केकड़े का आभार प्रकट किया।
बगुला भगत और केकड़ा कहानी का वीडियो – Bagula Bhagat Aur Kekda
सीख
- हमें किसी की भी बातों पर आँखे मूंद कर विश्वास नहीं करना चाहिए।
- मुसीबत और कठिनाई के समय में धेर्य और बुद्धि से काम करना चाहिए।
- बुरे का अंत बुरा ही होता है।
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