वफादार नेवला – Wafadaar Nevla
पंचतंत्र की कहानियाँ – पाँचवा तंत्र – अपरीक्षितकारकम – वफादार नेवला – Wafadaar Nevla – The Faithful Mongoose
घर में आया एक नन्हा मेहमान
सोनपुर गाँव में रमाकांत नाम का एक ब्राह्मण अपनी पत्नी उर्मिला के साथ रहता था। उसके कोई संतान नहीं थी। रमाकांत पूजा-पाठ करके अपना व अपने परिवार का जीवन यापन करता था।
एक दिन ब्राह्मण किसी यजमान के यहाँ पूजा करवाकर लौट रहा था। रास्ते में उसने देखा कि कुछ कुत्ते एक गड्ढे के चारों तरफ खड़े होकर भोंक रहे थे।
उसने वहां जाकर देखा कि एक नेवले का बच्चा गड्ढे में गिरा हुआ था और कुत्ते उसे अपना भोजन बनाना चाहते थे। रमाकांत को उस पर दया आ गई और उसने कुत्तों को वहां से भगाया और उस नेवले के बच्चे को लेकर घर आ गया।
उसने अपनी पत्नी उर्मिला को सारी बात बताई और उससे कहा ,”हम अब इसे अपने पास ही रखेंगे। वैसे भी हमारे कोई बच्चा नहीं है। इससे हमारा मन भी लगा रहेगा।”
उर्मिला ने भी अपनी सहमती प्रदान कर दी। थोड़े ही समय में नेवले के बच्चे की मासूमियत भरी शरारतों से वह दोनों की ही आँखों का तारा बन गया। दोनों पति पत्नी उस नेवले को अपनी संतान की तरह ही प्यार करने लगे।
मेरा प्यारा छोटा भाई
कुछ समय बीतने पर उर्मिला ने एक पुत्र को जन्म दिया। दोनों अब भी नेवले को पुत्र के सामान ही प्यार करते थे। नेवला भी उनके पुत्र को अपने भाई कि तरह ही प्यार करता, वह सारा दिन बस उसके चारों और ही घूमता रहता।
जब रमाकांत और उर्मिला दोनों बाहर जाते तो वह साए की तरह उस बच्चे के पास बैठा रहता और किसी को भी उसके पास फटकने ही नहीं देता। हमेशा उसके साथ खेलता रहता।
और पड़ गए शंका के बीज
एक दिन पड़ोस कि कुछ औरते उर्मिला के पास आई। उन्होंने नेवले को बच्चे के साथ खेलते हुए देखा तो उर्मिला से कहा, “यह नेवला सारा दिन तुम्हारे बच्चे के साथ खेलता रहता है। आखिर है तो यह जानवर ही। यह तुम्हारे बच्चे को नुकसान पंहुचा सकता है।”
लेकिन उर्मिला ने उनकी बात को हंस कर टाल दिया और कहा, “नहीं, मेरे बच्चे को इससे कोई खतरा नहीं है, बल्कि यह तो मेरे बच्चे को हमसे भी ज्यादा प्यार करता है।”
लेकिन उसके बाद जब भी वे औरते उर्मिला से मिलती वे उसे नेवले से अपने बच्चे को दूर रखने की सलाह देती। लेकिन उर्मिला हर बार हंस कर टाल देती। लेकिन बार-बार उनकी बातें सुनकर उसके मन के किसी कोने में शंका ने जन्म ले लिया था।
अब वह थोडा सतर्क रहती थी और कोशिश करती थी कि रमाकांत या वह दोनों में से कोई न कोई एक घर में ही रहे बच्चे को अकेला नेवले के पास न छोड़े।
मैं तेरा रक्षक
एक बार कि बात है घर में पानी बिल्कुल खत्म हो गया। उर्मिला ने सोचा में जल्दी से जाकर पानी ले आती हूँ और वह बच्चे को पालने में लेटा कर, जाते-जाते रमाकांत को बोल गई कि “मैं पानी भरने पनघट पर जा रही हूँ। तुम पीछे से बच्चे का ध्यान रखना, कहीं नेवला उसे काट ना खा ले।” यह कहकर वह खाली घड़ा लेकर पानी भरने पनघट पर चली गई।
उसके जाने के बाद रमाकांत ने सोचा, “बच्चे और नेवले में तो बहुत गहरी मित्रता है। उर्मिला तो नाहक ही चिंता करती है। नेवला तो बच्चे को बहुत प्यार करता है, वह उसे कोई हानि नहीं पँहुचाएगा। यदि मुझे देर हो गई तो मुझे भिक्षा नहीं मिलेगी। इसलिए मुझे भिक्षा के लिए निकल जाना चाहिए।” यह सोचकर वह अपने सोये हुए बच्चे और नेवले को वहीं छोड़कर चला गया।
उर्मिला के घर से जाते ही नेवला बच्चे के पालने के पास बैठ गया। तभी वहां एक काला जहरीला नाग आ गया और वह बच्चे की तरफ बढ़ने लगा।
नेवले जब उसे देखा तो उसने सांप पर हमला कर दिया। दोनों में बहुत जोर से युद्ध हुआ लेकिन आखिरकार नेवले ने साप के टुकड़े-टुकड़े कर दिए।
सांप के साथ लड़ाई करने से नेवला भी घायल हो गया था और उसके शरीर पर जगह-जगह घाव हो गए थे, जिन से खून टपक रहा था। सांप को मारने से उसका खून भी उसके मुंह पर लग गया था। लेकिन फिर भी वह बहुत खुश था। आखिर उसने अपने भाई को सांप से बचा लिया था।
वफादारी का ये कैसा ईनाम
साँप को मारने के बाद नेवला वहीं दरवाजे पर बैठ गया। जब उसने दूर से उर्मिला को आते हुए देखा तो वह दौड़ कर उसके पास गया और प्यार से उसके पैरों में लौटने लगा।
उर्मिला ने जब देखा कि उसके शरीर और मुंह पर खून लगा हुआ है, उसे उन महिलाओं कि बात याद आ गयी और उसे लगा कि नेवले ने उसके बच्चे को मार दिया है। उसने बिना कुछ सोचे-विचारे पानी का भरा हुआ घड़ा नेवले के सर पर दे मारा।
नेवला वही गिर पड़ा।
फिर वह भागी-भागी घर के अन्दर गई तो उसने देखा कि उसका बच्चा तो पालने में खेल रहा है और पास ही एक साप मारा पड़ा है। तब उसे अपनी गलती का अहसास हुआ और वह दौड़ी-दौड़ी बाहर नेवले के पास गयी और उसे उठाने लगी। लेकिन अब क्या हो सकता था, नेवला तो मर चुका था।
उर्मिला बहुत पछताई लेकिन “अब पछताए होत क्या, जब चिड़िया चुग गई खेत” नेवला तो मर चुका था।
उर्मिला अपनी करनी पछताते हुए वापस घर आ गई। इसी बीच रमाकांत भिक्षा लेकर वापस आया तो उसने उर्मिला को रोते-कलपते पाया तो उसका मन बुरी आशंका से घिर गया। वह दौड़ कर घर के अंदर गया, उसका पुत्र पालने में सुरक्षित सो रहा था। उसने उर्मिला से उसके रोने का कारण पूछा तो उसने रोते-रोते नेवले की मृत्यु का सारा वृतांत उसे सुनाया।
रमाकांत भी अपने लोभ के कारण पछताने लगा।
सीख
- हमें कोई भी कदम उठाने से पहले उसके सकारात्मक और नकारात्मक पहलु के बारें में सोच लेना चाहिए जिससे कि बाद में पछताना ना पड़ें।
- आवेश में आकर कभी कुछ नहीं करना चाहिए। कभी-कभी हमारी नजरों से देखा हुआ भी सच नहीं होता।
- इसलिए ये कहावत भी है “बिना विचारे जो करे, वो पाछे पछताए। ”
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तो दोस्तों, कैसी लगी पंचतंत्र की कहानियों के रोचक संसार में डुबकी। मजा आया ना, तो हो जाइए तैयार लगाने अगली डुबकी, .. .. .. ..
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