चुहिया का स्वयंवर – Chuhiya Ka Swayamver
पंचतंत्र की कहानियाँ – तीसरा तंत्र – काकोलूकीयम – चुहिया का स्वयंवर – Chuhiya Ka Swayamvar – Mouse’s Groom Selection
दोस्तों, हम कितनी ही प्रगति करके आगे क्यों ना निकल जाए हमें अपनी जड़े अपनी और खींचती है। आजकी कहानी चुहिया का स्वयंवर में हमें यह बताती है कि दूसरी सभ्यता अपनाने के बाद भी हमारे मन हमे हमारी अपनी सभ्यता की और ही ले जाता है। मन के किसी कोने में हमें हमारी अपनी सभ्यता से जुड़ी चीजे ही पसंद आती है।
जान बची और लाखों पाए
एक बार एक ऋषि गंगा तट पर स्नान करने से पहले आचमन कर रहे थे, तभी एक चुहिया बाज के पंजों से छूटकर उनकी हथेली में आ गिरी। चुहिया बाज के पंजों से घायल हो गई थी। उससे चला भी नहीं जा रहा था, और बाज अभी भी आसमान में उसे पकड़ने के लिए चक्कर लगाए जा रहा था।
उन्होंने उस चुहिया को अपनी शरण में ले लिया। बाज के जाने के बाद उसे एक पत्ते पर रख दिया और स्नान करने के बाद उसे अपने आश्रम में ले आये। आश्रम में लाने के बाद ऋषि ने चुहिया के घावों पर औषधि लगा कर उसका उपचार किया। ऋषि के उपचार से चुहिया शीघ्र ही ठीक हो गई।
चुहिया दिन भर सारे कभी आश्रम में इधर से उधर कूदती फांदती तो कभी टुकर-टुकर बड़ी मासूमियत से ऋषि को देखती तो कभी किसी दाने को कुतर-कुतर कर खाती। उसकी चुहलबाजियां ऋषि को बहुत अच्छी लगती और उनको उससे लगाव सा हो गया।
एक बार ऐसे ही वे चुहियाँ को मस्ती करते हुए देख रहे थे तभी उनकी नजर ऊपर आसमान में पड़ी। उन्होंने देखा कि आश्रम के ऊपर एक बाज चुहिया को पकड़ने की फिराक में उड़ रहा था। वे जल्दी से चुहिया उठाकर को आश्रम के अन्दर ले गए।
लेकिन इस घटना के बाद वे बहुत डर गए कि कभी उनकी अनुपस्तिथि में बाज उसे अपना ग्रास ना बना ले। इसलिए उन्होंने अपनी मंत्रों की शक्ति से उस चुहियाँ को एक लड़की में बदल दिया और उन्होंने उसका नाम लक्ष्मी रखा। वे उसका लालन-पालन अपनी बेटी के सामान ही करने लगे।
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समय बीतने पर वह कन्या विवाह योग्य हो गई तो ऋषि को उसके विवाह की चिंता सताने लगी। उन्होंने अपनी पुत्री से कहा, “बेटी लक्ष्मी, अब तुम विवाह योग्य हो गई हो और मैं शीघ्र ही तुम्हारा कन्यादान करके अपने पितृ ऋण से मुक्त होना चाहता हूँ।”
“मैं संसार के सबसे योग्य पुरुष से तुम्हारा विवाह करवाना चाहता हूँ। यदि तुम्हारी भी अपने वर के बारे में कोई इच्छा हो तो मुझे बता दो।” तब लक्ष्मी ने कहा, “पिताजी, मैं संसार के सबसे ताकतवर पुरुष से विवाह करना चाहती हूँ।”
ऋषि ने मन में सोचा कि संसार में सूर्यदेव से जयादा ताकतवर कौन हो सकता है। उन्होंने लक्ष्मी से सूर्य के साथ विवाह करने का प्रस्ताव रख तो लक्ष्मी ने कहाँ, “नहीं पिताजी, सूर्य तो बहुत गरम है मैं उसका ताप सहन नहीं कर सकती। आप मेरे लिए कोई दूसरा वर ढूंढे जो सूर्य से भी शक्तिशाली हो लेकिन उसमे ताप न हो।”
तब ऋषि ने सूर्य से ही पूछा कि संसार में उनसे शक्तिशाली कौन है तो सूर्य ने कहा, “ऋषिवर, बादल मुझसे अधिक शक्तिशाली है जो मुझे ढक कर मेरे ताप को भी रोक लेते है।”
तब ऋषि ने लक्ष्मी से बादल को वर रूप में स्वीकार करने को कहा तो उसने कहा, “नहीं पिताजी, बादल तो बहुत काला है। मुझे तो किसी ऐसे सुदर्शन पुरुष से विवाह करना है जो बादल से भी शक्तिशाली हो।”
तब ऋषि ने बादल से ही पूछा कि संसार में उससे शक्तिशाली कौन है तो बादल ने कहा, “ऋषिवर, पवनदेव मुझसे जयादा शक्तिशाली है जो मुझे कहीं भी उड़ा कर ले जाते है।”
तब ऋषि ने लक्ष्मी से पवन से विवाह करने को कहा तो उसने कहा, “नहीं पिताजी, पवन तो बड़े चंचल है यहाँ से वहाँ डोलते रहते है मैं उनके साथ कैसे रहूंगी? आप मेरे लिए पवन से भी जयादा शक्तिशाली और एक ही जगह रहने वाला वर ढूंढे।”
तब ऋषि ने पवन से ही पूछा कि संसार में उससे शक्तिशाली और सदा स्थिर रहने वाला कौन है तो पवन ने कहा, “ऋषिवर, पर्वतराज मुझसे ज्यादा शक्तिशाली है जो सदा एक ही जगह स्थिर रहते है और मेरी तेज-से तेज आंधी को भी रोक लेते है।”
तब ऋषि ने अपनी पुत्री से पर्वतराज से विवाह से विवाह करने के लिए कहा तो वह बोली, “पिताजी, पर्वतराज तो बहुत ही कठोर है और मैं इतनी नाजुक मैं इतने कठोर एपुरुष के साथ नहीं रह सकती। कृपया आप ऐसा वर देखिये जो नाजुक भी हो और पर्वतराज से शक्तिशाली भी।”
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तब ऋषि ने पपर्वतराज से पूछा कि संसार में ऐसा कौन है जो उनसे शक्तिशाली ही और नाजुक भी।पर्वतराज ने कहा, “ऋषिवर, मूषकराज मुझसे अधिक शक्तिशाली भी है और नाजुक भी। जो अपने तीखे दांतों से मुझे तोड़कर अपना बिल बना लेता है।”
तब ऋषि ने मूषकराज को बुलाया और लक्ष्मी से उसे अपना पति स्वीकार करने के लिए पूछा। मूषकराज को देखते ही लक्ष्मी ने कहा, “हाँ पिताजी, मैं अपने लिए जैसा पति चाहती थी वे सब खूबियाँ मूषकराज में है। आप मेरा विवाह इनसे ही करवा दीजिये।”
ऋषि ने मन में सोचा कि मैंने चाहे इस चुहियाँ को लड़की का रूप देकर मनुष्य बना दिया था, लेकिन मन से तो यह चुहिया ही थी। इसलिए इसने अपने पति के रूप मैं एक चूहे को ही पसंद किया है। इसलिए ऋषि ने लक्ष्मी को फिर से चुहिया बना कर उसका विवाह मूषकराज से करवा दिया।
सीख
जाति का मोह सरलता से नहीं जाता।
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पिछली कहानी – रथकार और उसकी पत्नि की कहानी “रथकार की स्त्री और उसका प्रेमी”
तो दोस्तों, कैसी लगी पंचतंत्र की कहानियों के रोचक संसार में डुबकी। मजा आया ना, तो हो जाइए तैयार लगाने अगली डुबकी, .. .. .. ..
अगली कहानी – सोने को विष्ठा करने वाले पक्षी की कहानी “मूर्ख-मंडली”
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