शेर और ऊंट – Sher Aur Unt
पंचतंत्र की कहानियाँ – पहला तंत्र – मित्रभेद – शेर और ऊंट – Sher Aur Unt – The Lion and The Camel
चापलूस और कपटी लोगों के साथ रहना हमेशा हानिकारक होता है। पंचतंत्र में शेर और ऊंट की इस कहानी से इसी बात को समझाया गया है।
चापलूसों से घिरा शेर
मंदानन वन में मदोत्कट नामक एक शेर रहता था। उसके तीन मंत्री थे, उल्लाघ बाघ, जम्बुक सियार और काणुक कौआ। तीनों ही मंत्री शेर की चाटुकारिता करकर अपना मतलब निकाल लेते थे। शेर शिकार करता और तीनों बड़े मजे से खाते।
शेर जब अपने लिए शिकार करने निकलता तो वे उसे फुसला कर किसी बड़े जानवर का शिकार करने के लिए मना लेते या एक से अधिक जानवरों का शिकार करवा लेते। जिससे उनका जीवन भी बड़े आराम से बीत रहा था।
जंगल में एक अनोखा जानवर
एक दिन वे शेर कि गुफा के बाहर बैठे आपस में बाते कर रहे थे। तभी उन्होंने एक ऊंट को जंगल में इधर से उधर व्याकुलता से भटकते हुए देखा। शेर ने पहले कभी ऊंट नहीं देखा था, उसने अपने मंत्रियों से कहा, “देखो ये कैसा विचित्र लम्बा-चौड़ा जीव आज जंगल में आ गया है। जाओ पता लगाओ यह कौन है ?”
काणुक कौआ बोला, “स्वामी, मैं जगह-जगह घूमता रहता हूँ। मैंने ऐसे कई जानवरों को पास के गांवों में देखा है, इसे ऊंट कहते है।” जम्बुक सियार अपनी जीभ लपलपाते हुए बोला, “सरकार, क्यों ना आज इसी का शिकार करके अपनी भूख शांत कर ली जाए।”
बाघ ने भी सर हिलाकर अपनी सहमती प्रदान की। लेकिन शेर ने कहा,”नहीं , यह शायद भटक कर जंगल में आ गया है और अपनी शरण मैं आये हुए प्राणी का शिकार नहीं करता। तुम लोग उसके पास जाओं और उसे समझकर मेरे पास ले आओ, जिससे मैं इसके बारे मैं जान सकूँ।”
मेरे छत्र के नीचे आजा
शेर के आदेशानुसार तीनों ऊंट के पास गए और उसको समझाकर आदरपूर्वक शेर के पास ले आये। ऊंट ने शेर को प्रणाम किया और उसके सामने बैठ गया। तब शेर ने ऊंट से पूछा, “तुम कौन हो और इस जंगल में क्यों भटक रहे हो?”
तब ऊंट ने चिंतित स्वर में कहा, “मेरा नाम कथनक है। मैं अपने मालिक के काफिले में अपने साथियों के साथ जा रहा था। उनसे बिछुड़ कर रास्ता भटक गया और इस जंगल में आ गया।” तब शेर ने कहा, “कथनक, तुम्हें चिंता करने कि कोई आवश्यकता नहीं। अब तुम मेरी शरण में हो, निर्भय होकर इस जंगल में विचरण करों।”
चापलूसों की आँखों की किरकिरी
शेर के कहने पर कथनक वहीँ रुक गया। कथनक बहुत ही भोला था। वह शेर की भलमनसाहत के बदले वह उसकी बहुत सेवा करता और शेर को सदा उचित सलाह देता। थोड़े ही दिनों में वह शेर का सबसे प्रिय और विश्वासपात्र हो गया।
शेर हर मामले में उसकी सलाह लेने लगा। लेकिन ये बात उसके तीनों चापलूस मंत्रियों की आँखों में खटकने लगी। वे ऊंट को अपने रास्ते से हटाने का मौका ढूँढने लगे। लेकिन उन्हें कोई मौका ही नहीं मिल रहा था।
शेर के प्रभुत्व पर खतरा
एक बार उस जंगल में बड़े-बड़े दांतों वाला एक बहुत ही शक्तिशाली जंगली हाथी आया। तीनो मंत्रियों ने सोचा, यदि शेर इसका शिकार कर ले तो बहुत दिनों के लिए खाने की समस्या नहीं होगी। उन्होंने शेर को उसका शिकार करने के लिए उकसाना शुरू कर दिया।
उल्लाघ बाघ ने कहा, “स्वामी, एक जंगल में दो शक्तिशाली प्राणी नहीं रह सकते यदि आपने उसका शिकार नहीं किया तो हो सकता है, वह आपका अधिकार छीन लें।” जम्बुक सियार ने भी हाँ में हाँ मिलाते हुए कहा, “हां-हाँ महाराज, आपको अपनी प्रभुता कायम रखने के लिए इस हाथी को जल्द ही मार देना चाहिए।”
चलो शिकार पर चले हम
काणुक कौए ने भी अपनी सहमती प्रदान की। शेर ने कथनक कि तरफ देखा तो उसने कहा, “सरकार, मैं आपका सच्चा हितैषी होने के नाते यह सलाह देता हूँ कि किसी भी शक्तिशाली जीव पर हमला करने से पहले पूरी तैयारी कर लेनी चाहिए।” शेर ने सर हिलाते हुए उसकी बात को अपनी सहमती दे दी।
जम्बुक सियार ने कहा, “स्वामी, लगता है, अब आप हमें पसंद नहीं करते। आप हर बात में कथनक की ही सलाह मानते है। हमें लगता है हमें यहाँ से चले जाना चाहिए।” तब शेर ने कहा, “नहीं-नहीं ऐसी कोई बात नहीं है। चलो मैं अभी तुम्हारे साथ हाथी के शिकार पर चलता हूँ।” और वह अपने तीनों मंत्रियों के साथ हाथी के शिकार के लिए निकल पड़ा।
शेर का निकला कचूमर
काणुक कौआ जल्दी से उड़कर गया और हाथी का पता लगाकर आ गया। चारों शीघ्र ही हाथी के पास पँहुच गए और शेर ने एक दहाड़ लगाईं और ने हाथी पर हमला कर दिया। लेकिन हाथी शेर के अनुमान से जयादा शक्तिशाली था।
दोनों में घमासान युद्ध हुआ और हाथी ने अपने बड़े-बड़े तीखे दांतों से मार-मार कर शेर की हड्डी-पसली तोड़ दी और उसको अधमरा कर दिया। शेर के तीनों मंत्री एक पेड़ के पीछे छुप गए और शेर को मार खाते हुए देखते रहे, लेकिन कोई भी शेर को बचाने नहीं आया।
जब शेर अधमरा-सा हो गया तो हाथी चिंघाड़ता हुआ वहां से चला गया। तब तीनों शेर के पास पंहुचे और उसे सहारा देते हुए किसी तरह गुफा तक ले आये। कथनक अपने स्वामी की ऐसी हालत देख कर बहुत दुखी हुआ और वह पुरे मन से शेर की सेवा करने लगा।
अब क्या खाएं
हाथी के साथ युद्ध के बाद शेर जीवित तो बच गया था, लेकिन वह चलने-फिरने में भी असमर्थ हो गया, शिकार पर जाना तो दूर की बात थी। इस कारण वह और उसके तीनों मंत्री भूखे रहने लगे। क्योंकि पहले शेर ही अपने व उनके लिए शिकार करता था।
वे उसे ही खाकर अपना पेट भर लेते थे। इसलिए उनकी शिकार करने कि आदत भी छुट चुकी थी। बड़ी मुश्किलों से वे कभी कभार किसी छोटे-मोटे जानवर का शिकार करके खा लेते, लेकिन इससे उनका पेट नहीं भर पाता था।
उन सबके भूखों मरने की नौबत आ गई थी। तब शेर ने उनसे कहा कि तुम लोग किसी तरह से किसी जानवर को घेर कर मेरे पास ले आओ। मैं यहीं किसी तरह उसका शिकार कर लूँगा। शेर की आज्ञानुसार तीनों जंगल में गए।
शिकार तो सामने है
लेकिन वे किसी भी जानवर को घेर कर शेर के पास लाने में नाकामयाब रहे। तब तीनों ने आपस में विचार-विमर्श किया कि इस तरह से तो वे लोग भूखे ही मर जायेंगे। यदि हम किसी तरह शेर को कथनक का शिकार करने के लिए मना लें, तो कुछ दिनों के भोजन का प्रबंध तो हो ही जायेगा।
तीनों शेर के पास पंहुचे और जम्बुक सियार ने बड़ी लाचारी से कहा, “स्वामी, हमने सारा जंगल छान मारा लेकिन हमें कोई भी जानवर नहीं मिला, जिसको हम आपके समीप ला पाते। अब तो इतने दिनों तक भूखे रहने के कारण इतनी कमजोरी आ गई है कि एक पग चलना भी मुश्किल हो रहा है।”
तभी उल्लाघ बाघ ने बड़ी चाटुकारिता से कहा, “स्वामी जंगल में भी कोई जानवर नहीं मिल पा रहा है। क्यों न इस कथनक को मारकर आपके लिए भोजन का प्रबंध कर दें।” शेर ने उन्हें मना करते हुए कहा, “नहीं, कथनक मेरा शरणागत है, मैं उसे नहीं मार सकता।” शेर की बात सुनकर तीनों मायूस हो कर चले गए।
कपटी योजना
तीनो ने हार नहीं मानी और एक योजना बनाई। इस बार जम्बुक सियार अकेला शेर के पास गया और उसने अपने शब्दों में चाशनी उड़ेलते हुए कहा, “स्वामी, आप इतने बीमार है और कई दिनों से आपको पेट भर कर भोजन भी नहीं मिल पाया है। इस तरह से तो आप मर जायेंगे।”
“स्वामी, अपने स्वामी की जान बचाने के लिए अपनी जान दे देना तो सेवक का कर्तव्य होता है। यदि कोई स्वेच्छा से आपके लिए अपने प्राण देने के लिए तैयार हो जाए तब तो आप उसका मांस खा लेंगे?” शेर ने उसकी बात स्वीकार कर ली।
अपनी योजना को सफलता की और जाता देख, जम्बुक सियार दौड़ता हुआ बाहर गया और उल्लाघ बाघ, कथनक ऊंट और काणुक कौए को बुलाकर ले आया। तीनों ने अपनी योजना पर काम करना शुरू कर दिया।
नहीं बलिदान मैं करूंगा
उल्लाघ बाघ आगे आया और बोला, “स्वामी, आपके कहे अनुसार हमने सारा जंगल छान मारा, लेकिन हमें कोई भी शिकार नहीं मिला, मैं आपको इस तरह से भूखा मरते हुए नहीं देख सकता, कृपया आप मुझे खाकर अपनी भूख शांत कर लें। मुझे आपके लिए अपनी जान देने में बहुत ख़ुशी होगी, इसलिए आप मेरी जान लेने में. तनिक भी संकोच ना करे।”
शेर उसको मारने के लिए आगे बड़ा ही था कि काणुक कौए ने कहा, “नहीं-नहीं, स्वामी आप बाघ को ना खाए। आपकी सेवा करने का पहला अवसर मुझे प्रदान करे। वैसे भी बाघ के नाख़ून बड़े तीखे है उस्सको खाने से आपके घावों में दर्द हो सकता है। कृपया आप मुझे खाकर अपनी भूख मिटा लीजिये।”
तभी जम्बुक सियार काणुक कौए को सहानुभूति दिखाते हुए बोला, “ काणुक, तुम्हारी भावनाएं तो बहुत अच्छी है लेकिन तुम बहुत ही छोटे हो तुम्हारा मांस तो स्वामी के लिए पर्याप्त नहीं होगा। उनकी भूख शांत होने के बजाए और बढ़ जायेगी। स्वामी आप ऐसा करे मुझे खाकर अपनी भूख शांत करें।”
शेर जैसे ही सियार को मारने के लिए आगे बढ़ा, उल्लाघ बाघ बोल उठा, ‘अरे नहीं-नहीं, देखो तुम्हारे बाल कितने बड़े है, स्वामी जब तुम्हें खायेंगे तो तुम्हारे बाल स्वामी के गले में फँस जायेंगे। उनके लिए कुछ भी खाना असंभव हो जायेगा।” इस तरह से तीनों ने एक दूसरे में कुछ न कुछ कमी निकाल दी।
कपट का जाल सफल
ऊंट भी यह सब देख रहा था, वह उन तीनों की चालाकी नहीं समझ पाया। उसने सोचा कि देखो ये तीनों कितने महान है जो अपने स्वामी के लिए अपने प्राण देने के लिए भी तैयार है। मुझे भी अपने स्वामी के लिए कुछ करना चाहिए।
वह बड़ी मासूमियत से बोला, “स्वामी, आपके तीनों सेवक आपके लिए जान देने के लिए तैयार है लेकिन उन तीनों में ही कुछ न कुछ कमी है। कोई छोटा है तो किसी के नाख़ून बड़े है तो किसी के शरीर पर घने बाल है। मेरा आकार भी बड़ा है, मेरे तीखे नाख़ून भी नहीं है और मेरे शरीर पर बड़े बाल भी नहीं है, कृपया आप मुझे खाकर अपनी भूख शांत कर लेवें।”
उसके इतना बोलते ही जम्बुक सियार और उल्लाघ बाघ उस पर झपट पड़े और देखते ही देखते उसे मार दिया। बस फिर क्या था, भूख से पीड़ित शेर भी उस पर टूट पड़ा और सबने मिलकर पेट भरकर ऊंट का मांस खाया।
शेर और ऊंट कहानी का वीडियो – Sher Aur Unt
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