अकबर-बीरबल का मिलन – Akbar-Birbal Ka Milan
अकबर बीरबल के किस्से – अकबर-बीरबल का मिलन – Akbar-Birbal Ka Milan – The First Encounter of Akbar and Birbal
तो सबसे पहले हम चलते है कि बीरबल बादशाह अकबर को कैसे मिले? अकबर और बीरबल की पहली मुलाकात के बारे में कई कहानियाँ मशहूर है। उनमें से दो किस्से जो मुझे प्रभावित करते है वे आपके सामने प्रस्तुत है।
अकबर-बीरबल का मिलन – किस्सा 1
बादशाह अकबर अपनी प्रजा के बारे में जाननें के लिए कई बार भेष बदलकर प्रजा के बीच में जाया करते थे। ऐसे ही एक बार बादशाह अकबर भेष बदल प्रजा का हाल जानने निकले और चलते-चलते वे घोघरा गांव में पहुँच गए।
रात हो चुकी थी, इसलिए उन्होंने वहीँ रुकने का निश्चय किया। उन्होंने कई घरों का दरवाजा खटखटाया लेकिन किसी ने भी दरवाजा नहीं खोला। तभी उन्हें एक झोपडी दिखाई दी, जिसमे एक छोटा सा दीपक जल रहा था।
वे उसी झोपडी में चले गए और आवाज लगाई, “कोई है, मैं एक व्यापारी हूँ। मुझे आगरा जाना है, लेकिन रात हो गई है, इसलिए मुझे रात को ठहरने की जगह चाहिए। क्या मुझे रात गुज़ारने की जगह मिलेगी।”
अन्दर से एक बालक आता है और कहता है, “आइये-आइये मेरी कुटिया में आपका स्वागत है।”
अन्दर आकर अकबर ने कहा, “मैंने कई लोगों के दरवाजे खटखटाए, लेकिन किसी ने भी दरवाजा नहीं खोला।” लड़के ने कहा, “रात होने पर यहाँ लुटेरों का डर होता है इसलिए डर के कारण सब रात होने से पहले ही अपने-अपने घरों में बंद हो जाते है।”
अकबर लडके से पूछता है, “लेकिन तुम्हारा दरवाजा तो खुला ही था, क्या तुम्हे डर नहीं लगता ? ” लड़का हंस कर कहता है. “मुझ गरीब के पास क्या है जो, कोई लुटेरा लुट के ले जायेगा और शायद आपने देखा ही नहीं मेरी झोंपड़ी में तो दरवाजा ही नहीं है।”
“मेरे पास तो इतने पैसे भी नहीं है कि मैं अपनी झोंपड़ी में दरवाजा लगवा सकूँ। खैर ये सब छोड़िये, लगता है आप बहुत दूर से आए है। थक गए होंगे और भूख भी लगी होगी। पहले मैं आपके खाने और सोने का इंतजाम करता हूँ।”तब तक आप हाथ मुँह धो लीजिये।”
अकबर ने कहा, “पहले तुम अपना नाम तो बता दो।” लड़का जवाब देता है, “मेरा नाम महेश दास है और आपका?” अकबर, “मेरा नाम सोहना राम है और मैं हीरे जवाहरात का व्यापारी हूँ।”
अकबर हाथ मुँह धोकर आता है जब तक महेश दास उनके लिए खाने की थाली लगा देता है। अकबर खाना खाने लगता है। खाना खाते-खाते ही अकबर महेश दास से पूछता है, “तुम कह रहे थे कि यहाँ लुटेरों का आतंक है, तो क्या यहाँ के सिपाही, कोतवाल और अधिकारी प्रजा की लुटेरों से रक्षा नहीं करते।”
महेश दास व्यंग्य से कहता है, “जो खुद ही जनता को लुटने में लगे हो, वे क्या प्रजा की लुटेरों से रक्षा करेंगे।”
तभी अकबर के खाने में कंकर आ जाते है, “अरे ये क्या, खाने में इतने कंकर ?”। महेश दास हँसते हुए, “ये तो हमारे महाजन का कमाल है। एक सेर चावल में आधा सेर तो कंकड़ ही मिला देता है।”
अकबर, “तो लोग महाजन की शिकायत कोतवाल या न्यायाधीश से क्यों नहीं करते। ”महेश दास, “किससे और किसकी शिकायत करें। जिसको भी मौका मिलता है, वहीँ प्रजा को लुटने में लगा हुआ है। सब एक-दुसरें से मिले हुए है, जहाँपनाह।”
अकबर सकपकाते हुए कहते है, जहाँपनाह! कौन जहाँपनाह? महेश दास कहता है, “सरकार, आप और कौन।” अकबर अपनी पहचान छुपाने की कोशिश करते हुए, “मैं! मैं तो एक व्यापारी हूँ।”
महेश दास पूरे विश्वास के साथ कहता है, “मैंने आपको तभी पहचान लिया था जहाँपनाह, जब आप मेरी झोपड़ी में आए थे।”
अकबर आश्चर्य से, “वो कैसे ?” महेश दास, “आपकी दाढ़ी का रंग आपकी मुछों के रंग से अलग है, इसका मतलब आपकी दाढ़ी नकली है। ” अकबर, “लेकिन दाढ़ी नकली होने से तो ये सिद्ध नहीं होता कि मैं बादशाह अकबर हूँ!”
महेश दास, “आपने अपने पैरों में सोने का कड़ा पहन रखा है, जो केवल राजपरिवार के लोगों की ही निशानी है।”
अकबर महेश दास के तर्कों से बहुत प्रभावित होता है और कहता है, “इतनी छोटी सी आयु में ही तुम्हारी इतनी तीक्ष्ण और पारखी नजरों ने मुझे प्रभावित किया है। लेकिन मैं एक बात तुमसे पूछना चाहता हूँ, तुमने मुझे कंकरों वाला खाना क्यों खिलाया? तुम कंकर निकाल भी तो सकते थे।” महेश दास हाथ जोड़ कर कहता है, “यदि मैं ऐसा नहीं करता, तो मैं आपके राज्य की अव्य्वस्था को आपके सामने कैसे लाता?”
अकबर गुस्से से, “महेश दास, तुम हमारे राज पर ऊँगली उठा रहे हो। मेरे राज्य में ऐसा नहीं हो सकता। ” महेश दास, “मैं ये साबित कर सकता हूँ, जहाँपनाह। ” अकबर, “ठीक है मैं तुम्हे कल दोपहर तक का समय देता हूँ। यदि तुम यह साबित नहीं कर सके तो मैं तुम्हे बहुत बड़ा दण्ड दूंगा।” महेश दास, “ठीक है महाराज, लेकिन आपको मेरा साथ देना होगा।”
अकबर के सहमत होने पर महेश दास अकबर को अपनी योजना बताता है। अगले दिन वह एक-एक करके महाजन, न्यायाधीश, सिपाही और कोतवाल के पास जाता है और उनसे कहता है कि कल रात से एक लुटेरा मेरे घर में छुपा हुआ है।
उसके पास लूट के बहुत सारे स्वर्णाभूषण और हीरे-मोती है। वह उनको बेचना चाहता है, यदि आप ये सब खरीदना चाहते हो तो दोपहर को मेरे घर पर आ जाना। दोपहर को सबसे पहले महाजन महेश दास के घर पहुँच जाता है।
अकबर वहां लुटेरे के भेष में बैठा होता है। महाजन कहता है, “कहाँ हैं आभूषण ? मैं पहले उनकी जांच करूँगा। ” अकबर महाजन के सामने आभूषणों की पोटली खोल देता है। महाजन एक-एक कर सभी आभूषणों की जांच करता है और कहता है, “इनमे से तो आधे आभूषण तो नकली है। मैं तो इनके लिए दस स्वर्णमुद्राए ही दे सकता हूँ।” अकबर मान जाता है।
महाजन मन ही मन सोचता है कि कितना मुर्ख लुटेरा है। लेकिन मुझे क्या मैं किसी को पता चलने से पहले ही ये आभूषण लेकर अपनी तिजोरी में रख देता हूँ नहीं तो मुझे इसके हिस्से करने पड़ेंगे।
महाजन उसे दस स्वर्णमुद्राएँ देकर पोटली उठाने ही वाला होता है कि सिपाही वहां आ जाता है। उसे देखकर महाजन कहता है, “अच्छा हुआ तुम यहीं आ गए मैं तुम्हारे पास ही आने वाला था, चलों हम दोनों इसके दो हिस्से कर लेते है।”
तभी वहां कोतवाल का आगमन होता है और वह कहता है, “हिस्से दो नहीं तीन होंगे तुम लोग मुझे भूल रहे थे।” वे तीन हिस्से करने ही वाले होते है तभी न्यायाधीश भी वहां आ जाता है और कहता है, “लूट के माल में मेरा भी हिस्सा होता है। तुम लोग मुझे कैसे भूल गए ? हिस्से तीन नहीं चार होंगे!”
वे चारों लूट के आभूषणों को चार हिस्सों में बाँट कर जाने को होते है, तभी अकबर अपनी नकली वेशभूषा हटाता है और चिल्लाता है, “सिपाहियों, गिरफ्तार कर लो इन चारों को।” बादशाह अकबर को अपने सामने देखकर चारों के होश उड़ जाते है।
चारों बादशाह अकबर के चरणों में गिर जाते है और क्षमा मांगने लग जाते है, लेकिन बादशाह उन्हें गिरफ्तार करवाकर कारागृह में भिजवा देते है।
बादशाह अकबर महेश दास की चतुराई और निर्भीकता से बहुत प्रसन्न होते है और उसे अपनी अंगूठी देते हुए कहते है कि तुम इसे लेकर मेरे दरबार में आ जाना। मैं तुम्हे ईनाम देना चाहता हूँ। इस अंगूठी को दिखाने पर तुम्हें दरबार में आने से कोई नहीं रोकेगा।” महेश दास को अंगूठी देकर अकबर वहां से चले जाते है।
आशा है मेरी तरह आपको भी ये किस्सा अच्छा लगा होगा। तो फिर मिलेंगे अगले किस्से के साथ, तब तक के लिए “अलविदा”।
अकबर-बीरबल का मिलन – किस्सा 2
बादशाह अकबर को खाना खाने के बाद पान खाने का बड़ा शौक था। इसलिए उन्होंने अपना पान का बीड़ा बनाने के लिए एक पनवाड़ी मुरली को नियुक्त किया हुआ था। मुरली रोज बादशाह अकबर को खाना खाने के बाद पान पेश करता था।
एक बार ऐसे ही मुरली ने पान का बीड़ा बनाकर बादशाह के सामने पेश किया और अपने घर की तरफ निकल पड़ा। अभी मुरली थोड़ी दूर ही पंहुचा होगा कि बादशाह के सिपाही दौड़ते हुए आये और मुरली से कहा कि “बादशाह सलामत ने आपको याद किया है।”
मुरली उनकी बात सुनकर वापस महल की तरफ रवाना तो हो गया, लेकिन मन-मन घबरा रहा था कि पता नहीं बादशाह सलामत ने मुझे क्यों बुलाया है? क्या अनजाने में मुझसे कोई खता तो नहीं हो गई?
खैर, घबराते हुए वह बादशाह अकबर के सामने पंहुचा तो अकबर ने सहजता से कहा, “मुरली कल सुबह महल में आते वक्त एक किलो चूना ले के आना।” मुरली ने अचंभित होते हुए कहा, “ठीक है हुजूर, कल सुबह आते वक्त मैं एक किलो चूना ले आऊंगा।”
घर जाते हुए मुरली सोच रहा था कि ये बादशाह लोग भी बड़े सनकी होते है अब एक किलो चूने का बादशाह क्या करेंगे ? क्या अब खुद ही पान का बीड़ा बनायेगे ? खैर मुझे क्या ?
दुसरे दिन मुरली ने एक किलो चूना ख़रीदा और महल की तरफ चलने लगा। रास्ते में मुरली का दोस्त महेश दास मिल गया। उसने मुरली के हाथ में चूने की पोटली देख कर मसखरी करते हुए बोला, “क्या बात है मुरली, इतनी बड़ी पोटली! लगता है, बादशाह सलामत ने कोई बड़ा ईनाम दे दिया है। भाई अपने दोस्तों को मत भूल जाना।”
मुरली ने कहा, “क्यों मसखरी कर रहे हो महेश भाई, एसी कोई बात नहीं है। वो तो बादशाह सलामत ने मुझसे एक किलो चूना मंगवाया है। पोटली में एक किलो चूना ही है।” महेश दास, “क्यों भाई मुरली, महल में कोई दावत है क्या ?”
मुरली ने कहा, “नहीं, मेरी जानकारी में तो नहीं है महेश भाई और यदि कल दावत होती तो आज महल में तैयारियां हो रही होती। मुझे तो महल में किसी दावत की तैयारी होते हुए नहीं देखी ।”
महेश दास ने पूछा, “क्या बादशाह ने साथ में सुपारी और कत्था भी मंगवाया है।” मुरली, “नहीं, सुपारी और कत्था तो नहीं, केवल चूना ही मंगवाया है।” बीरबल ने पूछा, “क्या बादशाह सलामत ने यह आदेश पान खाने के तुरंत बाद दिया था।” मुरली आश्चर्य से, “हाँ! महेश, पान खाने के कुछ देर बाद ही बादशाह सलामत ने मुझे ये हुक्म दिया था।”
बीरबल ने संजीदा होते हुए कहा, “मुरली, मेरी मानो तो तुम वापस घर जाकर एक किलो घी पी लो, मुझे लगता है कि ये चूना तुम्हे ही खाना पड़ेगा। घी के जहर को चूने का जहर और चूने के जहर को घी का जहर खत्म कर देगा।” यह कहकर महेश दास चला गया।
मुरली ने सोचा मेरा दोस्त महेश दास बड़ा ही बुद्धिमान है। वह कोई भी बात ऐसे ही नहीं कहता। मुझे उसकी सलाह पर अमल करना चाहिए। इतना सोच कर वह घर गया और एक किलो घी पी लिया।
एक किलो घी पीने में उसे समय लगा इसलिए वह देर से महल पहुंचा। उसने बादशाह अकबर के सामने एक किलो चूना रख दिया। उसकी देरी ने बादशाह अकबर की त्यौरियां चढ़ी हुई थी।
जैसे ही मुरली ने चूने की पोटली बादशाह के सामने रखी, अकबर ने कहा, “कल तुमने मेरे पान में चूना ज्यादा लगा दिया था इस कारण मेरा होंठ फट गया। तुम्हारे इस गुनाह की ये सजा है कि ये पोटली उठाओ और ये पूरा चूना अभी के अभी खा जाओ।”
फिर बादशाह अकबर ने एक सिपाही को आदेश दिया कि “जब तक मुरली पूरा चूना खा न ले तब तक इसे जाने मत देना और यदि यह चूना ना खाए तो तलवार से इसकी गर्दन काट देना।”
इतना कहकर बादशाह अकबर दरबार में चले गए।
शाम को बादशाह अकबर खाना खा कर उठे तो मुरली पान का बीड़ा लेकर उनके सामने हाजिर था। मुरली को अपने सामने खड़ा देख कर अकबर आश्चर्यचकित हो गए कि एक किलो चूना खाने के बाद भी कोई इंसान जिन्दा कैसे रह सकता है।
उन्होंने मुरली से कहा, “एक किलों चूना खाने के बाद भी तुम्हे कुछ नहीं हुआ। ऐसा कैसे हो सकता है।” तो मुरली ने कहा, “हुजुर चूना खाने से पहले मैं घर से एक किलो घी पी कर आया था। घी के जहर को चूने के जहर ने और चूने के जहर ने घी के जहर को खत्म कर दिया और मुझे कुछ नहीं हुआ।”
अकबर ने आश्चर्य से कहा, “क्या तुम्हे पहले से पता था कि मैं ये एक किलो चूना तुम्हें खिलाने वाला हूँ।” मुरली ने कहा, “नहीं जहाँपनाह, मुझमे इतनी समझ कहाँ, ये तो मेरे एक दोस्त महेश दास ने मेरे हाथ में एक किलो चूने की पोटली देख कर मुझे सलाह दी थी ।”
अकबर ने सोचा कि ये शख्स महेश दास तो बड़ा जहीन लगता है इससे तो मिलना चाहिए। उन्होंने मुरली से कहा, “मुरली हम तुम्हारे दोस्त महेश दास से मिलना चाहते है। तुम उसे अभी बुला कर ले आओ।”
मुरली महेश दास को लेकर आ जाता है तो अकबर उससे पूछता है, “तुम्हे ये कैसे पता चला कि मैं ये चूना मुरली को खिलाने वाला हूँ।” महेश दास ने कहा’ “मैंने मुरली से पता किया कि न तो आपके महल में कोई दावत थी और न ही आपने चूने के साथ कत्था और सुपारी मंगवाई थी।
और-तो-और आपने चूना लाने का आदेश पान खाने के तुरंत बाद सुनाया था, जिससे मैंने ये अंदाजा लगा लिया कि शायद मुरली ने गलती से पान में चूना ज्यादा दिया होगा और उससे आपका मुँह और होंठ फट गए होंगे इसलिए सजा के तौर पर आप ये चूना मुरली को ही खिलाएंगे। इसलिए चूने के जहर को काटने के लिए मैंने इसे एक किलो घी पीने की सलाह दी ।”
महेश दास का तर्क सुनकर अकबर ने प्रसन्नता से कहा, “वाह-वाह महेश दास, हमें तुम्हारी पारखी नज़रों तथा तुरंत निर्णय लेने की क्षमता ने बहुत प्रभावित किया। हम तुमसे बहुत प्रसन्न हुए। हम तुम्हे कुछ ईनाम देना चाहते है।” महेश दास ने अपना सर झुकाकर सजदा करते हुए कहा, “ये तो आपकी जर्रानवाजी है जहाँपनाह, नहीं तो नाचिज़ की क्या हैसियत है।
जान की खैरियत हो तो एक बात कहना चाहता हूँ, हुजूर।” अकबर, “हाँ-हाँ कहो।” महेश दास ने नज़रें नीची करते हुए कहा, “माफ करना जहाँपनाह, छोटे मुँह बड़ी बात है, लेकिन मेरा मानना है कि आप जैसी महान शख्शियत को ऐसे अपने खिदमतगारों की छोटी-छोटी गलतियों पर उत्तेजित होकर इस तरह सजा नहीं देनी चाहिए।
बल्कि उन्हें हिदायत देकर क्षमा कर देना चाहिए। इससे आपकी महान शख्शियत में चार चाँद लग जायेगें और आपका कद अन्य बादशाहों की तुलना में और बढ़ जायेगा। यदि आपको नाचिज़ की बात बुरी लगी हो तो आपकी तलवार और मेरा सर ।”
महेश दास की बात सुनकर मुरली को लगता है अब तो महेश भाई की खैर नहीं। लेकिन इसके उलट बादशाह महेश दास की पीठ थपथपाते हुए कहते है, “वाह-वाह महेश दास, तुम तो शब्दों के भी जादूगर निकले।
तुमने कैसे शब्दों की मीठी चाशनी में लपेटकर मझे मेरी गलती का अहसास करवा दिया।” बादशाह अकबर महेश दास को अपनी अंगूठी देते हुए कहते है, “हम तुम्हारी बुद्धिमानी का ईनाम दरबार में सबके सामने देना चाहते है। इसलिए तुम कल दरबार आना।
इस अंगूठी को दिखाने पर तुम्हे दरबार में आसानी से प्रवेश मिल जायेगा।” महेश दास अंगूठी लेकर घर चला जाता है।
तो दोस्तों ये किस्सा आपको कैसा लगा, मुझे जरूर बताना। मुझे पता है आप सब ये सोच रहे होंगे कि किस्सा तो अकबर और बीरबल के मिलन का था। लेकिन दोनों ही किस्सों में बीरबल तो कहीं दिखाई ही नहीं दिया।
तो जरा इन्तजार कीजिये दोस्तों, इन्तजार का भी अपना अलग ही मजा होता है। तो अब विदा लेती हूँ दोस्तों इस वादे के साथ “जल्द ही फिर मिलेंगे”।