Animals Name in English & Hindi | जानवरों के नाम अंग्रेजी और हिन्दी में
आज अपनी इस पोस्ट “Animals Name: List of Animals Name in English & Hindi – with Pictures (जानवरों के नाम अंग्रेजी और हिन्दी में)” मैं में आपके लिए जानवरों के नाम अंग्रेजी और हिन्दी में चित्रों (Animals Name in English and Hindi with Picturs) के साथ बताने के साथ ही साथ उनसे जुड़ी कुछ जानकारी भी लेकर आई हूँ।
अपनी इस खूबसूरत धरती पर अलग-अलग तरह के जीव-जन्तु रहते है। कुछ रंग-बिरंगे तो कुछ चुलबुले, कुछ बिल्कुल नन्हें तो कुछ विशालकाय, कुछ मासूम से तो कुछ खूंखार। कुछ भी हो इन्हीं के कारण हमारी पृथ्वी और भी खूबसूरत दिखाई देती है।
छोटे बच्चों को तो अपनी पढ़ाई के दौरान “Animals Name in English and Hindi (जानवरों के नाम अंग्रेजी व हिन्दी में) याद करने ही होते है, लेकिन कई बड़े लोगों को भी अधिकतर जानवरों के नाम अंग्रेजी व हिन्दी में पता नहीं होते है।
और फिर वे जाते है हमारे “Google Baba” के पास और उनसे पूछते है। वहाँ उन्हें उनका जवाब मिल भी जाता है। मुझे भी अपने बेटे को पढ़ाने के दौरान कुछ जानना होता था तो मैंने भी “Google Baba” का ही सहारा लिया था।
लेकिन मुझे जानवरों के बारे में जो जानकारी चाहिए थी उसके लिए मुझे बहुत सारी websites देखनी पड़ी। कुछ लेखों में जानवरों के नाम तो बता रखे थे तो कुछ में उनके बारे में थोड़ी बहुत जानकारी।
एक ही जगह पर सारी जानकारी मुझे नहीं मिली। इसलिए जब मैंने अपना ब्लॉग शुरू किया तो मैंने सोचा कि जैसे मुझे परेशानी उठानी पड़ी वैसा ही आपके साथ भी होता होगा।
इसलिए मैं अपनी इस पोस्ट “Animals Name: List of Animals Name in English & Hindi – with Pictures (जानवरों के नाम अंग्रेजी और हिन्दी में)” में अलग-अलग तरह के जानवरों के बारे में बता रही हूँ।
एक अनुमान के अनुसार पृथ्वी पर लगभग सात मिलियन (Seven Million) से भी ज्यादा जानवरों प्रजातियाँ पाई जाती है। मैं सभी के नाम तो नहीं बता सकती लेकिन कोशिश करूंगी कि ज्यादा से ज्यादा जानवरों के नाम अंग्रेजी और हिन्दी दोनों भाषाओं में आपको बता सकूँ।
कार्ल लिनिअस ने इन जानवरों को केवल दो समूहों में विभाजित किया, इंसेक्टा और अब अप्रचलित वर्म्स (कृमि)। जीन-बैप्टिस्ट लैमार्क, जिन्हें 1793 में म्यूजियम नेशनल डी’हिस्टोयर नेचरल में “कीट और वर्म्स के क्यूरेटर” के पद पर नियुक्त किया गया था, दोनों ने ऐसे जानवरों का वर्णन करने के लिए “अकशेरुकी” शब्द गढ़ा और मूल दो समूहों को दस में विभाजित किया, लिनियन इंसेक्टा से अरचिन्डा और क्रस्टेशिया को विभाजित करके, और लिनियन वर्म्स से मोलस्का, एनेलिडा, सिरिपेडिया, रेडियाटा, सीलेंटरेटा और इन्फ्यूसोरिया को विभाजित करके। अब उन्हें 30 से अधिक फ़ाइला में वर्गीकृत किया गया है, साधारण जीवों जैसे कि समुद्री स्पंज और फ्लैटवर्म से लेकर आर्थ्रोपोड्स और मोलस्क जैसे जटिल जानवरों तक।
अकशेरूकीय
जानवरों के प्रकार
पशु जगत को वैज्ञानिकों ने उनके आकार-प्रकार के अनुसार 10 समूहों / संघों में विभाजित किया गया है। जो निम्नानुसार है।
संघ पोरिफेरा (Phyllum Porifera)
इस संघ में स्पंजी जंतु आते हैं। ये बहुकोशिकीय जलीय (Multicellular Aquatic) जन्तु होते हैं, जो मुख्यत: समुद्र में किसी चट्टान या किसी ठोस पदार्थ पर पाए जाते हैं। इनकी आकृति अनियमित, शाखीय, बेलनाकार, या अंडाकार होती है।
इनका बाह्य शरीर पर अनेक छोटी-छोटी काँटे के समान नुकीली बनावट होती हैं जिन्हें कंटक (Spicules) कहते हैं। इन्हीं के कारण इनका शरीर कठोर या कड़ा होता है। इस कारण इन्हें स्पंज के नाम से जाना जाता है।
इनके शरीर भित्ति (Body wan) पर अनेक छोटे छोटे छिद्र (Pores) होते हैं, जिन्हें ऑस्टिया (Ostia) कहते हैं। शरीर के अग्र सिरे पर एक बड़ा छिद्र होता है, जिसे ओस्कुलम (Osculum) कहा जाता हैं। इस कारण इन्हें छिद्रिण के नाम से भी जाना जाता है।
ये बहुकोशिकीय होते है और इनकी कोशिकाएँ ऊतकों से बनी होती हैं लेकिन ये नए ऊतक नहीं बनती है। इन जतुओं में मुख, हृदय, मांसपेशियाँ व मस्तिष्क नहीं होता है। ये अपने शरीर के छिद्रों से पानी सोखते है और इसी पानी से अपना भोजन व ऑक्सीजन ग्रहण करते है।
इनमें नाल तंत्र (Canal system) पाया जाता है, जिसके कारण छिद्रों द्वारा सोखा गया पानी शरीर के सभी भागों तक पँहुचता है।
ये द्विलिंगी (Bisexual) होते हैं। इनमें पुनर्जनन (Regeneration) की क्षमता होती है। इनमें प्रजनन लैंगिक (Sexual) तथा अलैंगिक (Asexual) दोनों ही प्रकार से हो सकता है।
उदाहरण– स्पंजिला (Spongilla), साइकोन (Sycon), यूस्पंजिया (Euspongia), युप्लेक्टेला (Euplectella), हायलोनेमा (Hyalonemma) आदि।
ये पशु जगत के सबसे पुराने और बहुरंगी जीव है।
संघ सिलेंटरेटा नाइडेरिया (Phyllum Coelenterata/Cnidaria)
सीलेन्ट्रेटा भी बहुकोशिकीय जलीय (Multicellular Aquatic) जन्तु होते हैं जो मुख्यत: अलवणीय जल में पाए जाते हैं।
ये बहुकोशिकीय (Multicellular) होते हैं। इनकी कोशिकाओं में स्थायी श्रम विभाजन (Division of labour) पाया जाता है। अर्थात् अलग-अलग कार्यों क करने के लिए अलग-अलग कोशिकाएँ होती हैं।
ये अरीय सममित (Radial Symmetry) प्राणी होते हैं क्योंकि इनकी कोशिकाएँ ऊतक स्तर पर केंद्रीय अक्ष (सर) के चारों ओर समान रूप से व्यवस्थित होती है।
ये द्विस्तरीय (Diploblastic) होते है क्योंकि इनमें बहिर्जन-स्तर/बाहरी झिल्ली (Ectoderm) तथा अन्तर्जनस्तर/जठरचर्म (Endoderm/Gastrodermis) दोनों होते है। इन दोनों स्तरों के मध्य में अकोशिकीय मेसोग्लीया (Mesoglea) होता है।
प्रोटोस्टोमिया (Protostomia) वे प्राणी होते है जिनका भ्रूण विकसित होते समय पहले मुँह बनाता है। संघ सिलेंटरेटा की सभी जातियों में केवल मुँह ही होता है गुदा नहीं होती, इसलिए ये प्रोटोस्टोमिया (Protostomia) प्रजाति के अंतर्गत भी आते है।
भोजन और मल त्याग दोनों गतिविधियाँ मुख के द्वारा ही की जाती है।
इनके मुख के चारों और लम्बे-लम्बे संस्पर्शक (Tentacles) होते हैं, जो इनके भोजन व मल त्याग तथा शिकार पकड़ने में सहायक होते है।
मुख को छोड़कर इनके पूरे शरीर पर दंश कोशिकाएँ (Nematocycst) होती है, जिन्हें निमेटोब्लास्ट (Nematoblast) या नाइडोब्लास्ट (Cnidoblast) कहा जाता है। इन दंश कोशिकाओं में जहर होता है। ये दंश कोशिकाएँ इनकी किसी आधार को पकड़ने, आत्मरक्षा करने तथा भोजन पकड़ने में सहायता करती हैं।
इन जंतुओं में मस्तिष्क, श्वसन तंत्र, उत्सर्जन तंत्र एवं परिसंचरण तंत्र नहीं होता है। श्वसन एवं उत्सर्जन की क्रिया शरीर की बाहरी सतह (बहिर्जन-स्तर/बाहरी झिल्ली – Ectoderm) से होती है।
इनके अंदर केवल एक ही गुहा (Cavity) पायी जाती है, जिसे अंतरगुहा/जठर वाहिनी गुहा (Coelenteron/Gastro Vascular Cavity) कहा जाता है।
ये उभयलिंगी अर्थात एकलिंगी (Monogamous) और द्विलिंगी (Bisexual) दोनों होते है।
इनमें अलैंगिक प्रजनन (Asaxual Reproduction) कोशिकाभाजन/मुकुलन (Celldivision/Budding) द्वारा तथा लैंगिक प्रजनन (Saxual Reproduction) युग्मकों के संलयन (Fusion of Gametes) द्वारा होता है।
परिवर्धन की प्रक्रिया पाई जाती है, अर्थात इनमें लार्वा अवस्था भी पाई जाती है। इनके लार्वा को प्लेनुला (Planula) कहा जाता हैं।
इनके जीवन चक्र में पीढ़ी का प्रत्यावर्तन/पीढ़ी एकान्तरण (Alteration of Generation / Metagenesis) पाया जाता है। अर्थात एक पीढ़ी एक रूप की तथा दूसरी दूसरे रूप की होती है; कुछ विशेष प्रजातियों में बहुरूपता भी मिलती है। लेकिन मुख्यत: ये दो रूपों में पाए जाते हैं-
- पॉलिप (Polyp): इनकी आकृति बेलनाकार और पुष्पनुमा होती है। ये उपनिवेशी (Colonial) तथा स्थानबद्ध/गतिहीन (Space bound/Sedentary) होते है।उपनिवेशी (Colonial) अर्थात कॉलोनी बनानेवाली जातियों में मुख की विपरीत दिशावाले भाग से पालिप एकदूसरे से जुड़े रहते हैं। इनकी आंतरगुहाएँ एक दूसरे से शाखाओं द्वारा संबंधित रहती हैं। इनमें समरूप गुणसूत्रों के दो से अधिक सेट होते हैं। ये सामान्यत: कोशिकाभाजन/मुकुलन (Celldivision/Budding) से प्रजनन करते है।
- मेड्यूसॉएड (Medusoid): जिनका शरीर बेल- या छतरी के आकार का और बहुत ही नरम होता है। इसलिए इन्हें छत्रक या गिजगिजिया भी कहते है। ये एकाकी (Solitary) व स्वतंत्र (Free Swimming) होते है। केंद्र से नीचे की ओर लटकती हुई एक डंठल नुमा संरचना होती है जिसके सिरे पर मुंह होता है। लैंगिक प्रजनन (Saxual Reproduction) करते है।
सन् 1847 में जीव वैज्ञानिक लूकर्ट (Leuckart) ने इन जीवों के लिए सीलेन्ट्रेटा (Cnidaria) शब्द का प्रयोग किया था। सन् 1878 में वैज्ञानिक हेरचेक ने इन्हें नाइडेरिया (Cnidaria) नाम दिया।
उदाहरण: हाइड्रा (Hydra), फाइसेलिया (Physalia), ओबीलिया (Obelia), ऑरलिया/जेलीफिश (Aurelia/Jelly fish), मेट्रोडियम/सी-एनिमोन (Metridium/Sea Anemone), फंजिया (Fungia), मीण्ड्रा (Meandra), पेनाटुला/समुद्री कलम (Pennatula/Sea Pen), गोर्गोनिया/समुद्री पंखा (Gorgonia/Sea-Fan) आदि।
संघ प्लैटिहेल्मेंथीज (पृथुकृमि, फीताकृमि) (Phyllum Platyhelminthes)
सन् 1858 में जीव वैज्ञानिक गेगेनबार (Gagenbaur) ने इन जंतुओं के लिए अलग संघ संघ प्लैटिहेल्मेंथीज (Phyllum Platyhelminthes) बनाया था। इस संघ की लगभग 10,000 ज्ञात प्रजातियाँ है।
प्लैटिहेल्मेंथीज परजीवी (Parasite) जन्तु होते है, जिनका आकार चपटा होता है। इनका शरीर लंबा तथा अनेक खंडों में विभाजित होता है।
इनमें कंकाल तंत्र, श्वसन तंत्र तथा परिसंचरण तंत्र अनुपस्थित रहता है। लेकिन उत्सर्जन तंत्र उपस्थित होता है। उत्सर्जन ज्वाला कोशिकाओं (Flame Cells) के द्वारा होता है।
ये भी उभयलिंगी अर्थात एकलिंगी (Monogamous) और द्विलिंगी (Bisexual) दोनों होते है और प्रजनन भी अलैंगिक (Asaxual) तथा लैंगिक (Saxual) दोनों तरह से होता है। इनमें जनन तंत्र पूर्ण विकसित होता है।
इनका कुछ प्रजातियों को छोड़कर अन्य प्रजातियों में शरीर खंडों में बँटा रहता है और इनके मुख पर चूषक (Suckers) या हुक (Hook) पाए जाते है जिनकी सहायता से ये मनुष्यों व पशुओं के ऊपरी या आंतरिक सतह पर चिपक जाते है।
इनमें आहार नाल नहीं होती है, ये अपने मुख से या पूरे शरीर द्वारा परपोषी के शरीर से खाद्य पदार्थ का अवशोषण करके अपना पोषण करते है।
ये त्रिस्तरीय प्राणी होते है, क्योंकि इनकी अधिकांश प्रजातियों में ऊतक अंग व तवचा तीन स्तरों से बही होती है।
इनके आकार प्रकार, जीवन विधि तथा शरीर में पाचन तंत्र की उपस्थिति तथा अनुपस्थिति के हिसाब से इन्हें तीन वर्गों में विभाजित किया गया है।
वर्ग टर्बीलेरिया (Class Turbellaria)
इस वर्ग की कुछ प्रजातियों को छोड़कर अधिकांश प्रजातियाँ पानी में पाई जाती है। ये स्वतंत्र जीवी होते है। इनके शरीर पर रोमाभ या कशाभिक कोशिकाएं होती है जो इन्हें रेंगने तथा तैरने में सहायता करती हैं।
इनका मुख सिर से दूर अधर तल पर होता है तथा इनका शरीर अखंडीय होता है। अग्र सिरे पर चूषक के स्थान पर संवेदांग होते है। शरीर पर छड़ों के आकार की रचनाएं होती है।
अधिकांश प्रजातियाँ द्विलिंगी (Bisexual) होती है और लेकिन प्रजनन अलैंगिक (Asaxual) तथा लैंगिक (Saxual) दोनों ही तरीकों से होता है। इनमें पुनरुत्थान (Regeneration) की क्षमता बहुत अभिक होती है।
उदाहरण : मोजोस्टोमा (Mesostema), नोटोप्लाना (Notoplana), प्लैनैरिया (Palnaria), डुगेसिया (Dugesia)
वर्ग ट्रिमेटोड़ा (Class Trematoda)
इस वर्ग की सभी प्रजातियाँ परजीवी होती है, जिनमें से कुछ प्रजातियों (जो कि बाह्य परजीवी होती है) को छोड़कर अन्य प्रजातियाँ अन्त: परजीवी होती है।
इनका शरीर चपटा पत्तीनुमा और अखंडीय होता है। इनके शरीर पर एक मोटा तथा प्रतिरोधक आवरण होता है, जिसे टेगयूमेंट (Tegument) कहते है।
इनका मुख शरीर के अग्र भाग पर होता है जिस पर चूषक (Suckers) या हुक (Hook) होते है। आहार नाल द्विशाखित होती है लेकिन गुदा द्वार नहीं होता।
उदाहरण: सिस्टोसोमा (Schistoma), फेशियोला हेपेटिका (Fasciola Hepetica), पॉलीस्टोमम (Polystomum)
वर्ग सिस्टोडा (Class Cestoda)
इस वर्ग की सभी प्रजातियाँ अन्त: परजीवी होती है जो कि अधिकतर कशेरुकियों के आहार नाल में रहती है। इनका शरीर फीते के समान लंबा तथा कई खंडों में विभाजित होता है। इसके प्रत्येक खंड में द्विलिंगी जनन तंत्र उपस्थित होता है।
मुख द्वार तथा पाचन तंत्र अनुपस्थित लेकिन उत्सर्जक तंत्र उपस्थित होता है। इनके अग्र भाग पर चूषक (Suckers) या हुक (Hook) होते है।
जिनकी सहायता से ये कशेरुकियों के आहार नाल में चिपक जाते है तथा अपने शरीर की सहायता से पोषद/परपोषी (Host) के शरीर से पचा पचाया तरल अवशोषित कर लेते है।
उदाहरण: टीनिया सोलियम/पोर्क फीताकृमि (Taenia Solium/Pork Tapeworm), टीनिया सेजिनेटा/गोमाँसकृमि (Taenia Saginata/Beefworm, इकाइनोकोकस/कुत्ताकृमि (Echinococcus/Dogworm), हाइमिनॉलेपिस (Hyminolepis) ।
इनमें से कई कृमि तो ऐसे होते है जिनके कारण मनुष्य या पशु की मृत्यु भी हो जाती है।
संघ एस्केलमिन्थीज (नेमाटेड़ा) (Phyllum Aschelhelminthes (Nimatoda)
संघ एस्केलमिन्थीज (नेमाटेड़ा) (Phyllum Aschelhelminthes (Nimatode) के अंतर्गत भी परजीवी कृमि ही आते है, लेकिन ये आकृति में गोल तथा धागे के समान लंबे होते है। इनका शरीर अखंडित होता है।
इनकी गोल आकृति के कारण इन्हें गोलकृमि (Roundworm) तथा धागे के समान लंबाई के कारण सूत्रकृमि (Nimatode) भी कहा जाता है।
सन् 1958 में सूक्ष्मदर्शी के आविष्कार के बाद जीव वैज्ञानिक लिनीयस (Linnacus) ने अति सूक्ष्म एस्केलमिन्थीज की खोज की। सन् 1819 में जीव वैज्ञानिक रुडोल्फी (Rudolphi) ने इन्हें सूत्रकृमि (Nimatode) नाम दिया और सन् 1959 में जीव वैज्ञानिक गेगेनबार (Gagenbaur) ने इन जंतुओं के लिए संघ एस्केलमिन्थीज (Phyllum Aschelhelminthes) बनाया।
इस संघ की लगभग 12,000 ज्ञात प्रजातियाँ है।
इनमें सबसे पहले देहगुहा का निर्माण होता है जो आहार नली और देह भित्ति के मध्य में पाई जाती है। इसलिए इनका नामकरण Aschelhelminthes; (Askos अर्थात गुहा (Cavity) और helminthes अर्थात कृमि (Worm); किया गया।
इनमें स्वतंत्र जीवी तथा अन्त: परजीवी दोनों तरह की प्रजातियाँ पाई जाती है जो कि नमी वाले स्थानों जैसे जल, स्थल (गीली मिट्टी), पौधों और कशेरुकियों के आंतरिक शरीर आदि सभी जगहों पर मिल जाती है।
स्थल पर भी ये जीव गीली मिट्टी में ज्यादा पाए जाते है। इस संघ की अधिकतर प्रजातियाँ आती सूक्ष्म होती है लेकिन बड़ी प्रजातियाँ 25 सेमी या इससे भी अधिक लंबी हो सकती है।
अधिकांश प्रजातियों का शरीर बीच में मोटा व सिरों से संकडा होता है। मुख व गुदा दोनों होते है जो लंबी और पूर्ण विकसित आहार नाल के दोनों सिरों से जुड़े होते है।
श्वसन तंत्र तथा परिवहन तंत्र अनुपस्थित होता है। उत्सर्जन तंत्र अत्यधिक सरल और प्रोटोनेफ्रीडिया का बना होता है।
इनके शरीर की देहभित्ति में बाहरी उपचर्म मोटा व चमकीला होता है। जिसके नीचे एपीडर्मिस (Epidermis) के स्थान पर बहुकेंद्रीय हाइपोडर्मिस (Syncytial Hypodermis) होता है। उसके नीचे चार भागों में विभाजित अनुलंब पेशीय कोशिकाओं का पेशी स्तर होता है।
इनमें विकसित जनन तंत्र पाया जाता है तथा इनमें नर और मादा दोनों होते है। मादा नर से बड़ी होती है।
इनके आकार प्रकार, जीवन विधि तथा शरीर में पाचन तंत्र की उपस्थिति तथा अनुपस्थिति के हिसाब से इन्हें दो वर्गों में विभाजित किया गया है।
वर्ग एफैस्मिमिडीया या एडीनोफोरिया (Class Aphasmidia or Adenophorea)
इस वर्ग की जीवों में फैस्मिड (Phasmid) अनुपस्थित रहता है। उत्सर्जी नलिकाएं अनुपस्थित या कम विकसित होती है। पश्च भाग में पुच्छीय/आसंजक ग्रन्थियाँ उपस्थित होती है।
उदाहरण: ट्राईकिनेला (Trichinella), हिस्ट्रीकस (Histericus), ट्राईलॉबियस (Trilobius), कैपिलैरिया (Capillaria)
वर्ग फैस्मिमिडीया या सेसरनेटिया (Class Phasmidia or Secernentea)
इनके अग्रभाग पर रंध्र के समान एक जोड़ी एम्फीड्स (Amphids) पाए जाते है तथा पश्च भाग में पुच्छीय/आसंजक ग्रन्थियाँ अनुपस्थित लेकिन एक जोड़ी एक कोशिकीय फैस्मिड़्स (Phasmids) संवेदांग उपस्थित रहता है। उत्सर्जी तंत्र में एक जोड़ी पाशर्वनलिकाएं होती हैं।
उदाहरण: ट्राईक्यूरिस/चाबुककृमि (Trichuriasis/Whipworm), एस्केरिसस/गोलकृमि (Ascariasis/Roundworm), वूचीरेरिया (Wuchereria), एन्टीरोबीयस (Enterobius), एन्काइलोस्टोमा (Ancylostoma)
संघ ऐनेलिडा (Phyllum Annelida)
सन् 1978 में जीव वैज्ञानिक लिनीयस (Linnaeus) ने कोमल शरीर वाले सभी कृमियों को एक ही संघ में रखा था, लेकिन सन् 1801 में जीव वैज्ञानिक लैमाक (Lamarck) ने वलय (Ring) जैसे खंडों वाले इन कृमियों के लिए नया संघ ऐनेलिडा बनाया।
इस संघ की लगभग 9 से 10 हजार ज्ञात प्रजातियाँ है। इस संघ के जन्तुओं में मुख्यत: निम्नलिखित लक्षण पाये जाते हैं: –
इस संघ में आने वाले जन्तु जल, गीली मिट्टी, नमी वाले स्थानों पर पाए जाते है। इनकी अधिकतर प्रजातियाँ स्वतंत्र जीवी होते है, लेकिन कुछ परजीवी भी होती हैं।
ये बहुकोशकीय (Multicellular)होते है। इनका शरीर खण्डित, लम्बा एवं कृमि के आकार का, कोमल व लचीला तथा त्रिस्तरीय (Triploblastic) होता है।
ये द्विपाशिर्वक सममित (Bilaterally Symmetrical) तथा सीलोममुक्त (Coelomate) होते हैं।
इनके शरीर में वलयनुमा (Ring) अनेक खण्ड (Segments) होते हैं जो कि बाहर से भी दिखाई पड़ते है।
इनकी देहभित्ति (Body wall) माँसल और संकुचनशील होती है जिस पर उपचर्म (Cuticule) का बहुत ही पतला आवरण होता है। इनमें वृत्ताकार (Circular) तथा अनुलंब (Longitudinal) दोनों तरह के पेशी स्तर होते है।
इनके शरीर में छोटे-छोटे काँटेनुमा शूक (Setae) और पाशर्वपाद (Parapodia) पाए जाते हैं जो इनके गमन में सहायक होते है।
इनकी अधिकांश प्रजातियों में श्वसन शरीर की नम त्वचा तथा कुछ में क्लोमों (Gills) के द्वारा होता है।
आहारनाल नली के समान पूरे शरीर में फैली होती है जो इस प्रकार लगती है जैसे “नली के भीतर नली”।
प्राणियों के विकासक्रम में वास्तविक देहगुहा (Coelom) का निर्माण सर्वप्रथम इसी संघ की प्रजातियों में ही हुआ था। देहभित्ति और आहारनाल के बीच की जगह पर देहगुहा (Coelom) होती है जो समान आकार की अंतराखंडीय पट्टियों (Intersagmental Septa) में बँटी होती है। इसके चारों ओर भ्रूण के मीसोडर्म (Mesoderm) से बनी एक परत होती है।
इनमें रक्त परिसंचरण तंत्र होता है जो बंद रुधिर वाहिनियों (Closed Blood Vessels) के द्वारा होता है। इनके रुधिर का रंग लाल तो होता है लेकिन हीमोग्लोबिन रुधिर कणिकाओं (Blood Corpuscles) में न होकर प्लाज्मा में घुला रहता है क्योंकि इनके रक्त में रुधिर कणिकाएं (Blood Corpuscles) नहीं होती।
इनमें उत्सर्जन तंत्र पाया जाता है जो भ्रूण के (Ektodarm) से निर्मित कुंडलिनुमा सूक्ष्म नलिकाओं (Nephridia) के द्वारा होता है।
इनमें तंत्रिका तंत्र पाया जाता है जिसके अग्र भाग में में एक जोड़ी पृष्ठीय सेरिब्रल गुच्छिका (Cerebral Ganglia) अर्थात मस्तिष्क (Brain) और इसी से जुड़ी हुई तथा पूरे शरीर में फैली हुई एक दोहरी तथा ठोस अधर तंत्रिका रज्जु (Double Ventral Nerve Cord) होती है।
इस संघ की कुछ प्रजातियाँ एकलिंगी तो कुछ उभयलिंगी होती हैं। इनमें जननांग देहगुहीय आवरण से बनते है। अधिकांश प्रजातियों के जीवन वृत्त में लार्वा अवस्था नहीं होती लेकिन कुछ प्रजातियों जैसे ट्रोकोफोर (Trochophore) लार्वा अवस्था पाई जाती हैं।
उदाहरण: पालीगोर्डियस (Polygordius), नेरीस (Nereis), एफ्रोडाइट (Aphrodite), केंचुआ (Pheretima posthuma), जोंक (Hirudinaria granulosa) आदि।
इनके आकार प्रकार, जीवन विधि तथा शरीर में संवेदांगों की उपस्थिति तथा अनुपस्थिति व अन्य लक्षणों के हिसाब से इन्हें चार वर्गों में विभाजित किया गया है।
वर्ग पोलीकीटा (Class Polycheata)
इस वर्ग की सभी प्रजातियाँ जलीय होती है और मुख्यत: समुद्र में पाई जाती है।
इनके शरीर के अग्र भाग पर स्पष्ट स्पर्शकों (Tentacles) और पैल्स (Palps) युक्त एक सिर होता है, जिससे इन्हें स्पर्श व गंध का ज्ञान होता है। मस्तिष्क पर नेत्र भी होते है।
इनमें क्लाइटेलम (Clitellum) अनुपस्थित रहता है।
इनमें जननांगों का विकास जनन के समय ही होता है तथा लार्वा अवस्था पाई जाती है।
गमन के लिए शरीर पर बहुत सारे शूक (Setae) और पाशर्वपाद (Parapodia) होते है।
उदाहरण: एरेनीकोला (Arenicola), नैरीस/निएन्थीस (Neries/Neanthes), कीटोप्टेरस (Chaetopterus)
वर्ग ओलाइगोकीटा (Class Oligocheata)
इस वर्ग की प्रजातियाँ जलीय तथा स्थलीय दोनों ही होती है और मुख्यत: झीलों, तालाबों तथा गीली मिट्टी में पाई जाती है।
शरीर पर शूक (Setae) बहुत ही कम मात्रा में होते है और पाशर्वपाद (Parapodia) अनुपस्थित होते है। गमन के लिए S आकार के सोटो पाए जाते है।
शरीर में खंडों की एक निश्चित संख्या 120 होती है। इनका शीश अस्पष्ट होता है तथा स्पर्शक व नेत्र अनुपस्थित होते है।
ये द्विलिंगी होते है। जनन काल के दौरान इनके शरीर से एक पदार्थ स्त्रावित होता है जिससे इसके चारों और कोकून बंता है जिसमें निषेचन और भ्रूणीय परिवर्धन होता है। इसके बाद ये इस कोकून को जमीन पर छोड़ देते है। इनमें लार्वा अवस्था नहीं पाई जाती।
उदाहरण: यूटाइफियस (Eutyphaeus), ट्यूबीफेक्स (Tubifex), लूम्ब्रीकस (Lumbricus), फेरेटिमा (Pheretma), डीरो (Dero)
वर्ग हीरुडिनिया (Class Hirudinea)
हिरुडिनेरिया (Hirudinaria) की सभी प्रजातियों को सामान्यतः जोंक कहते हैं ये मुख्यत: जलीय जन्तु होते है, जो अधिकांशतः मीठे व स्वच्छ पानी वाले गड्ढों, तालाबों या पोखरों और में पाया जाते है।
ये बाह्य परजीवी तथा रुधिर पीने वाले होते है। इनका शरीर निश्चित 33 खंडों में विभाजित होता है
इनके शरीर पर इनके शरीर के दोनों छोरों पर चूषक (Suckers) पाए जाते है, जिससे ये पोषद (Host) के शरीर से चिपक जाते है। पोषद के शरीर पर घाव बनाने के लिए दांत व रक्तपान करने के लिए ग्रसनी (Pharynx) होती है।
ये किसी जीव-जन्तु या मनुष्य के शरीर से चिपक जाते है और उसका खून चूषते है। खून चूसते समय ये एक प्रकार का प्रतिस्कन्दक (Anticoagulation) निकालते है, जो खून को जमने से रोकता है।
ये द्विलिंगी होते है। बाह्य निषेचन पाया जाता है। लार्वा अवस्था नहीं होती।
उदाहरण: जोंक (Leech) जैसे हीरुडिनेरिया ग्रानुलोसा (Hirudinaria Granulosa), हीमैडिप्सा (Heamadipsa), ब्रेंकेलियोन (Branchellion)
वर्ग आर्कीएनेलिडा (Class Archiannelida)
ये छोटे आकार के जन्तु होते है जो मुख्यत: लवणीय पानी में पाए जाते है।
शूक (Setae) और पाशर्वपाद (Parapodia) अनुपस्थित होते है। मुख्यत: एकलिंगी होते है। परिवर्धन अप्रत्यक्ष होता है तथा लार्वा अवस्था पाई जाती है।
उदाहरण: – डाइनोफाइल्स (Dinophilus), प्रोटोड्रीलस (Protodrillus), पॉलीगॉर्डियस (polygordius)
संघ ऑर्थ्रोपोडा (Phyllum Orthropoda)
यह संघ जन्तु जगत का सबसे बड़ा संघ है। इस अकेले संघ में ही लगभग 9 लाख जीवित प्रजातियाँ पाई जाती हैं। इस संघ के जन्तु हवा, पानी, जमीन सभी जगहों पर पाए जाते हैं।
ऑर्थ्रोपोडा का अर्थ है, Orthros अर्थात जोड़युक्त (With Joint) और Podas अर्थात पैर/पाद (Foot); जोड़युक्त पाद। इस संघ में आने वाले जंतुओं में जोड़युक्त पाद/पैर पाए जाते हैं।
जीव वैज्ञानिक लिनीयस (Linnaeus) ने इन जंतुओं को इनसैक्टा (Insecta) समूह में रखा तो जीव वैज्ञानिक लैमाक (Lamarck) ने इन्हें तीन वर्गों क्रस्टेशिया, हेक्सापोडा, और ऐरैक्नाइडा में वर्गीकृत किया। सन् 1845 में जीव वैज्ञानिक वॉन सीबोल्ड (Von Seibold) ने इनके लिए “ऑर्थ्रोपोडा” संघ की स्थापना की।
इस संघ की प्रजातियों का शरीर त्रिस्तरीय तथा द्विपार्श्वीय और खंडों में अर्थात सिर, उदर तथा वक्ष में बँटा होता हैं। जो एक क्यूटिकल (Cuticle) युक्त कठोर आवरण अर्थात बाह्य कंकाल से ढका होता हैं।
इनमें वास्तविक देहगुहा पाई जाती है जिसे हीमोसील (Haemosile) कहते हैं, क्योंकि इसमें हीमोलिम्फ़ (Haemolymph) भरा हुआ होता है।
इनमें श्वसन जलीय प्रजातियों में गलफडों/जल-क्लोम (Gills) तथा स्थलीय प्रजातियों में वायु नलिकाओं (Trechea) या बुक लंग्स (Book Lungs) द्वारा होता है।
इनमें रक्त परिसंचरण खुला तथा रंगविहीन होता है। अधिकतर प्रजातियों के सिर पर संयुक्त नेत्र (Compound Eyes) पाये जाते हैं।
विकसित पेशी तंत्र (Muscular System) पाया जाता है, जिसमें पेशियाँ रेखीय (Striped) होती है।
उत्सर्जन मेलपीघी नलिकाओं (Malpighian Tubes), हरित ग्रंथियों (Green Glands), अथवा कक्षीय ग्रंथियों/सीलोमोडक्ट्स (Coxal Glands/Coelomoducts) के द्वारा होता है।
इसकी अधिकतर प्रजातियाँ एकलिंगी होती है। निषेचन मादा के शरीर में होता है, जो कि आंतरिक या बाह्य दोनों तरह से हो सकता है। ये अण्डयुज अर्थात अंडा देने वाले होते है। इनके जीवन चक्र में लार्वा अवस्था पाई जाती है। अंडों की संख्या एक या अधिक हो सकती है।
स्टोरर तथा यूसिंजर ने शरीर के आकर, विखंडन की प्रकृति तथा जबड़ों (Mandibles) के आधार पर ऑर्थ्रोपोडा संघ को 6 उपसंघों व अनेक वर्गों तथा उपवर्गों में विभक्त किया गया है।
उपसंघ ट्राइलोबाइटा (Subphyllum Trilobita)
इस उपसंघ की सभी प्रजातियाँ समुद्री थी जो अब विलुप्त हो चुकी है। कैम्ब्रियन (Cambrian) से परमियन (Permian) के कल्पों की समुद्री चट्टानों से इनके जीवाश्म मिले हैं। जिनके अनुसार इनकी शारीरिक संरचना कुछ इस प्रकार थी: –
इनका अंडाकार शरीर दो लम्बवत खाँचो से युक्त लगभग 10 से 675 मिमी जितना लंबा था, जो कि तीन लंबे पिंडों में बँटा हुआ था।
इनके सर की संरचना अस्पष्ट थी।
उदर वाला भाग 2 से 29 खंडों में विभाजित था और पिछले सिरे पर एक पुच्छ प्लेट (Caudal Plate) उपस्थित थी।
इनके शरीर के अंतिम खंड के अलावा सभी खंडों पर एक-एक जोड़ी द्विशाखीय (Biramous) संधि उपांग अर्थात भुजा या पैर होते थे।
उदाहरण: – ट्राइआथ्रस (Triarthrus)
उपसंघ कैलीसिरेटा (Subphyllum Chelicerata)
इस उपसंघ की कुछ प्रजातियों को छोड़कर अधिकांश प्रजातियाँ स्थलीय होती है।
इनका शरीर शिरोवक्ष (Cephalothorax) तथा उदर (Abdomen/Opisthosoma) में विभक्त रहता है।
ओपिस्थोसोमा Opisthosoma का अग्र भाग मीसोसोम (Mesosoma) और पश्च भाग मेटासोमा (Metasoma) में विभक्त रहता है। पश्च भाग मेटासोमा (Metasoma) पर नोंकदार पुच्छखण्ड (Telson) होता है।
शिरोवक्ष पर एक जोड़ी नेत्र तथा छः जोड़ी संधि उपांग, जिनमें एक जोड़ी केलीसरी (Chelicerae), एक जोड़ी पैड़ीपल्पस (Pedipalps) और चार जोड़ी टाँगे होती है। एंटिनी अनुपस्थित होती है।
इनमें श्वसन जलीय प्रजातियों में गलफडों/जल-क्लोम (Gills) तथा स्थलीय प्रजातियों में वायु नलिकाओं (Trechea) या बुक लंग्स (Book Lungs) द्वारा होता है।
उत्सर्जन मेलपीघी नलिकाओं (Malpighian Tubes), अथवा कक्षीय ग्रंथियों/सीलोमोडक्ट्स (Coxal Glands/Coelomoducts) के द्वारा होता है।
अधिकांश प्रजातियाँ एकलिंगी होती है और मादा अंडे देती है।
श्वसन अंगों के aadhaar पर इन्हें निम्न तीन वर्गों में बांटा गया है: –
वर्ग मीरोस्टोमैटा (Class Merostomata)
इन वर्ग की सभी प्रजातियाँ समुद्री होती है, अत: श्वसन गलफडों/जल-क्लोम (Gills) द्वारा होता है।
उदर वाले भाग में छः जोड़ि संधि उपांग होते है। तथा उदर के अन्तिम भाग पर नोंकदार पुच्छखण्ड (Telson) होता है।
उदाहरण: लिम्यूलस/किंग क्रैब, (Limulus/King Crab), यूरीप्टेरस (Eurypterus)।
वर्ग ऐरेक्निडा (Class Arachnida)
इन वर्ग की अधिकांश प्रजातियाँ स्थलीय होती है, अत: श्वसन वायु नलिकाओं (Trechea) या बुक लंग्स (Book Lungs) द्वारा होता है।
इनका शरीर छोटा होता है जो प्रोसोमा (Prosoma) तथा उदर (Abdomen/Opisthosoma) में विभक्त रहता है।
प्रोसोमा (Prosoma) पर सामान्य एक जोड़ी नेत्र तथा छः जोड़ी सन्धियुक्त उपांग होते हैं। उदर (Abdomen/Opisthosoma) वाला भाग उपांग रहित होता है।
एकलिंगी होते हैं। ये अण्डज या अण्डजरायुज (oviviviparpus) होते हैं। उदाहरण-बिच्छू (Palamnaeus), मकड़ियाँ (Spiders), चिंचड़ियाँ (Mites), तथा किलनियाँ (Ticks)|
वर्ग पिक्नोगोनिडा (Class Pycnogonida)
इस वर्ग में छोटी-छोटी समुद्री मकड़ियों को रखा गया है।
इनका शरीर छोटा होता है जो शिरोवक्ष (Cephalothorax) तथा उदर (Abdomen/Opisthosoma) में विभक्त रहता है।
शिरोवक्ष (Cephalothorax) वाला भाग बड़ा तथा उदर (Abdomen/Opisthosoma) वाला भाग छोटा होता है।
इनके शिरोवक्ष पर तीन जोड़ी उपांग, आठ जोड़ी चलन पाद, एवं 4 नेत्र होते हैं। श्वसन तथा उत्सर्जी अंग अनुपस्थित रहते है।
अधिकांश प्रजातियाँ एकलिंगी होती है और मादा अंडे देती है जिनका पालन-पोषण नर करता है।
उदाहरण: निम्फोन (Nymphon), पिक्नोगोनम (Pycnogonum)
उपसंघ मैंडिबुलेटा/एन्टीनैटा (Subphyllum Mandibulata/Antennata)
इस संघ की प्रजातियाँ प्राय: जल, स्थल व वायु सभी जगहों पर पाई जाती है।
इनका शरीर सिर, वक्ष तथा उदर में बँटा हुआ होता है। उदर में लगभग सात खण्डों में विभक्त रहता है।
इनमें श्वसन जलीय प्रजातियों में गलफडों/जल-क्लोम (Gills) तथा उत्सर्जन मेलपीघी नलिकाओं (Malpighian Tubes) के द्वारा होता है।
वक्ष तथा उदर में विभेदिता संयुक्त नेत्र पाए जाते हैं। इस प्रजाति के जंतुओं में एक जोड़ी जबड़े (Mandibles) पाए जाते है।
इस उपसंघ को निम्न छ: वर्गों में बांटा गया है।
वर्ग क्रस्टेशिया (Class Crustacea)
इस वर्ग की अधिकांश प्रजातियाँ जलीय होती है।
इनका शरीर शिरोवक्ष (Cephalothorax) तथा उदर (Abdomen/Opisthosoma) दो भागों में विभक्त रहता है।
शरीर पर काइटिन (Chitin) अथवा क्यूटिकल (Cuticle) का मोटा आवरण या बाह्यककालीय पृष्ठ कैरोपस (Carapace) होता है।
इनका शरीर 5 खंडीय होता है, जिस पर दो जोड़ी एंटिनी, एक जोड़ी जबड़े (Mandibles) तथा दो जोड़ी मैक्सिली (Maxillae) होती है। सिर पर एक जोड़ी संयुक्त नेत्र होते है।
उपांग द्विशाखित (Biramous) होते है।
इनमें श्वसन गलफडों/जल-क्लोमों (Gills) द्वारा तथा उत्सर्जन कॉक्सल ग्रंथियों (Coxal Glands) द्वारा होता है।
इस वर्ग की लभभग सभी प्रजातियाँ एकलिंगी होती है। जननवाहिनियाँ व जनन छिद्र जोड़ी में होते है। मादाएं अंडे देती है।
इनके जीवन-वृत्त में शिशु अवस्था पाई जाती है जिन्हें नोप्लियस, मेटनोप्लियस या जोइयाँ कहते है।
उदाहरण: क्रेफिश या कूटक मछली (Crayfish), झींगा या पैलिमोन (Prawn/Paleamon), केकड़ा (Crab) आदि।
इस वर्ग की आठ प्रजातियाँ या उपवर्ग हैं: –
- उपवर्ग ब्रेन्किओपोडा (Subclass Branchiopoda)
- उपवर्ग सिफेलोकेरिडा (Subclass Cephalocarida)
- उपवर्ग ओस्ट्रेकोड़ा (Subclass Ostracoda)
- उपवर्ग मेलाकोस्ट्रेका (Subclass Malacostraca)
- उपवर्ग माएसटेकोकेरिडा (Subclass Mystacocarida)
- उपवर्ग कोपीपोडा (Subclass Copepoda)
- उपवर्ग ब्रेंकियूरा (Subclass Branchiura)
- उपवर्ग सिरीपीडिया (Subclass Cirripedia)
वर्ग डिप्लोपोडा (Class Diplopoda)
इस वर्ग की अधिकांश प्रजातियाँ स्थलीय होती है।
इनका शरीर लंबा, बेलनाकार तथा कृमि के जैसा होता है। सिर पर एक-एक जोड़ी एंटिनी, जबड़े (Mandibles), मैक्सिली (Maxillae) तथा संयुक्त नेत्र होते है।
उदर 9 से लेकर 100 खण्डों ने बँटा हुआ होता है और प्रत्येक खंड पर दो जोड़ी सन्धि पाद पाए जाते हैं।
इनमें श्वसन वायु नलिकाओं (Trechea) द्वारा तथा उत्सर्जन मेलपीघी नलिकाओं (Malpighian Tubes) के द्वारा होता है।
इस वर्ग की लभभग सभी प्रजातियाँ एकलिंगी होती है तथा मादाएं अंडे देती है।
उदाहरण: सहस्त्रपाद (Millipede), जूलस (Julus), थायरोग्लूटस (Thyroglutus)
वर्ग काइलोपोडा (Class Chilopoda)
इस वर्ग की अधिकांश प्रजातियाँ स्थलीय होती है।
शरीर शरीर लंबा, कृमि के समान लेकिन कुछ चपटा तथा सिर और धड में बँटा हुआ होता है। सिर पर एक-एक जोड़ी एंटिनी व जबड़े (Mandibles) तथा दो जोड़ी मैक्सिली (Maxillae) होती है।
धड़ 15 से लेकर 173 खंडों में बँटा होता है और प्रत्येक खण्ड पर एक जोडी सन्धि पाद पाए जाते हैं। प्रथम पाद पंजे के समान नखयुक्त व नुकीला होता है जो विषैली ग्रंथियाँ से जुड़ा होता है।
इनमें श्वसन वायु नलिकाओं (Trechea) द्वारा तथा उत्सर्जन मेलपीघी नलिकाओं (Malpighian Tubes) के द्वारा होता है।
इस वर्ग की लभभग सभी प्रजातियाँ एकलिंगी होती है तथा मादाएं अंडे अथवा बच्चे देती है। जनन छिद्र अंतिम खंड से पहले वाले खंड के मध्य में होता है।
उदाहरण: स्कोलोपेन्ड्रा (Scolopendra), कनखजूरा या शतपाद (Scutigera/Centipede)
वर्ग पॉरोपोडा (Class Pauropoda)
इस वर्ग की अधिकांश भी प्रजातियाँ स्थलीय होती है।
इनका शरीर सूक्ष्म, कोमल, नलिकाकार या बेलनाकार तथा कृमिरूपी होता है जो सिर और धड में बँटा हुआ होता है। धड़ में 12 खण्ड होते हैं।
इनके सिर पर एक-एक जोड़ी शाखान्वित एंटिनी तथा अशाखित जबड़े (Mandibles) व मैक्सिली (Maxillae) उपस्थित लेकिन नेत्र अनुपस्थित रहते है। पैरों की संख्या 9 से 10 जोड़ी होती है।
उदाहरण: पॉरोपस (Pauropus) |
वर्ग सिम्फाइला (Class Symphyla)
इस वर्ग की अधिकांश भी प्रजातियाँ स्थलीय होती है।
इनका शरीर छोटा लगभग 6 सेमी लंबा तथा सिर और धड़ में बँटा हुआ होता है। धड़ 15 से 22 खंडों में बँटा हुआ होता है जिन पर 10 से 12 जोड़ी चलन उपांग अर्थात पैर होते है। नेत्र अनुपस्थित रहते है।
उदाहरण: स्कूटीजेरेला (Scutigerella)
वर्ग इन्सेक्टा (Class Insecta)
इस वर्ग की प्रजातियाँ स्थलीय, जलीय तथा वायुवीय होती है अर्थात जल, थल और वायु सभी जगहों पर पाई जाती है। इस वर्ग में कीटों को शामिल किया गया है।
इनका शरीर सिर, वक्ष तथा उदर में बँटा हुआ होता है। इनका सिर छः, वक्ष तीन और उदर लगभग सात से ग्यारह खण्डों में विभक्त रहता है।
इनके सिर पर एक जोड़ी नेत्र, एक जोड़ी एंटिनी तथा मुख उपांग उपस्थित रहते है। सभी प्रजातियों में तीन जोड़ी पैर तथा वायुवीय प्रजातियों में तीन जोड़ी पंख पाए जाते हैं।
तीन जोड़ी पैर यानि छ: पाद होने के कारण इन्हें हेक्सापोडा (Hexapoda) भी कहते है।
इनमें श्वसन वायु नलिकाओं (Trechea) द्वारा तथा उत्सर्जन मेलपीघी नलिकाओं (Malpighian Tubes) के द्वारा होता है।
ये एकलिंगी होते है तथा जीवन-वृत्त सामान्य या जटिल होता है जिसमें पूर्ण या अंपूर्ण कायान्तरण होता है।
वर्ग इन्सेक्टा को भी दो उपवर्गों में बांटा गया है।
उपवर्ग एप्टेरिगोटा (Subclass Apterygota)
इस वर्ग की प्रजातियों में शरीर पर पंख अनुपस्थित रहते हैं। इनकों एन्टोग्नेथा (Entognatha) भी कहा जाता है।
उदाहरण: रजत मछली (Silver Fish/Lepisma), एसेरेंटुलस (Acerentulus), एकोर्यूट्स (Achorutes)
उपवर्ग टेरिगोटा (Subclass Pterygota)
इस वर्ग की प्रजातियों में किसी ना किसी रूप में पंख शरीर पर उपस्थित रहते हैं।
उदाहरण: मच्छर (Mosquito) घरेलू मक्खी (Musca Nebulo), टिड्डी/झींगुर (Grasshopper/Gryllus/Locust), कॉकरोच (Cockroach/Periplaneta), मधुमक्खी (Apis Indica), पतंगा (Moth), ड्रैगन मक्खी (Dragon Fly), Bombyx mori (रेशम किट) आदि।
उपसंघ पेन्टोस्टोमिडा (Subphyllum Pontostomida) –
इ वर्ग के जीव स्तनधारियों के अन्तःपरजीवी होते है। ये मुख्यत: स्तनधारियों केस्वर यंत्र (गले) में पाए जाते है और खाँसी को नियंत्रित करते है।
इनका शरीर कोमल, अखण्डित तथा कृमिरूपी होता है। शृंगीकाएँ तथा चलन उपांग (पैर/पाद) अनुपस्थित रहते है।
उदाहरण: लिम्गुएटुला (Linguatula)
उपसंघ टार्डीग्रेडा (Subphyllum Tardigrada)-
इस संघ की प्रजातियाँ जल तथा स्थल दोनों ही जगहों पर मुख्यत: पर्वतों की चोटियों, गहरे समुद्र तथा उष्णकटिबंधीय वर्षावनों में पाई जाती है। सामान्य भाषा में इन्हें “जल भालू” कहा जाता है। इनकी लगभग 1300 ज्ञात प्रजातियाँ हैं।
इनका शरीर एक मिमी लंबा, बेलनाकार या नालाकार तथा खण्डविहीन होता है। इनके चार जोड़ी चलन पाद होते है।
ये किसी भी वातावरण तथा परिस्थिति में जीवित रहने में सक्षम होते है।
ये मुख्यत: एकलिंगी होते हैं।
उदाहरण: ऐकाइनिस्कस (Echiniscuse)
उपसंघ ओनाइकोफोरा (Subphyllum Onychophora)-
इस संघ के जन्तु प्राय: स्थलीय होते है।
ये आकार में पतले तथा कृमि के समान होते है। सिर तीन खंडों, एक मुखपूर्व (Pre-oral) और दो मुखपश्च (Post-oral) का बना होता है, जो शरीर से अलग नहीं दिखता।
मुखपूर्ववाले खंड में एक जोड़ा शृंगिका और मुखपश्चवाले खंडों में एक-एक जोड़ा हनु और मुखांकुरक होता है। नेत्र उपस्थित होते हैं।
इनके शरीर पर 44 जोड़ी चलन पाद पाए जाते हैं जिनमें मुड़े हुए नखर होते हैं।
इनमें श्वसन ट्रेकिया (Trechea) द्वारा और उत्सर्जन नेफ्रीडिया (Nephridia) द्वारा होता है।
ये एकलिंगी तथा जरायुज होते हैं।
नखी समूह दो कुलों, (१) और (२) , में विभाजित है।
इन्हें दो वर्गों व 9 वर्गों में विभाजित किया गया है
वर्ग पेरिपैटिडी (Class Peripatidae)
ये मुख्यत: भूमध्यरेखीय प्राणी है। इनमें 22 से लेकर 43 जोड़े पाद होते है। इनके चार उनवर्ग हैं।
उपवर्ग पेरिपेटस (Subclass Peripatus)
उपवर्ग ओवोपेरिपेटस (Subclass Ovoperipatus)
उपवर्ग टिफ्लोपेरिपेटस (Subclass Typhloperipatus)
उपवर्ग मेसोपेरिपेटस (Subclass Mesoperipatus)
वर्ग पेरिपटॉप्सिडी (Class Peripatopsidae)
ये मुख्यत: ऑस्ट्रलेशियन (Australasian) प्राणी हैं, इनमें 14 से लेकर 25 जोडी पाद पाये जाते हैं। इस वर्ग के पाँच उपवर्ग हैं।
उपवर्ग पेरिपैटॉप्सिस (Subclass Peripatopsis)
उपवर्ग पेरिपैटॉयड्स (Subclass Peripatoids)
उपवर्ग ओओपेरिपेटस (Subclass Ooperipatus)
उपवर्ग ऑपिस्थोपेटस (Subclass Opisthopatus)
उपवर्ग पैरापेरिपैटस (Subclass Paraperipatus)
उदाहरण: पेरिपेटस (Peripatus/Walking Worm)
उपरोक्त सभी वर्गों तथा उपवर्गों में इतनी अधिक समानताऐं है इसलिए इनमें अंतर कर पाना अत्यधिक जाती होता है इसलिए सभी वर्गों तथा उपवर्गों के लिए पेरिपेटस (Peripatus) शब्द का ही प्रयोग किया जाता है।
इस प्रजाति के जंतुओं में एनेलिड़ा तथा आर्थोपोड़ा दोनों ही संघों की प्रजातियों की मिली-जुली संचना पाई जाती है इसलिए इन्हें एनेलिड़ा तथा आर्थोपोड़ा के मध्य संयोजक कड़ी भी कहा जाता है।
संघ मोलस्का (Phyllum Mollusca)
अरस्तू (Aristotle) ने इस संघ की कई प्रजातियों का वर्णन किया था। सन् 1650 में जॉनस्टन (Johnston) ने इस संघ के प्राणियों के लिए सर्वप्रथम मोलस्का शब्द का प्रयोग किया था।
मोलस्का अकशेरुकी प्रजातियों का दूसरा सबसे बड़ा संघ है। इसकी लगभग 80,000 जीवित तथा लगभग 35,000 विलुप्त ज्ञात प्रजातियाँ है। ये विलुप्त प्रजातियाँ जीवाश्म (Fossil) के रूप में विभिन्न स्थानों से मिली है।
इस संघ की अधिकांश प्रजातियाँ समुद्र तथा लवणीय जल में पाई जाती हैं। कुछ प्रजातियाँ अलवणीय अर्थात मीठे पानी में तो कुछ नम मिट्टी में भी मिलती हैं। इनकी कुछ प्रजातियाँ स्वतंत्र रेंगने व तैरने वाली, कुछ चट्टानों से चिपकी हुई तो कुछ सुरंगों में रहती हैं।
इनका शरीर कोमल (Soft), त्रिस्तरीय (Tripoblastic), खंडविहीन (Non-Segmentes) होता है। इसके चारों ओर एक पतली झिल्ली/देहभित्ति के वलन से बना लिफाफेनुमा मैन्टल होता है, जो एक कैल्शियम युक्त पदार्थ का स्त्राव करता है जो इनके बाह्य कठोर खोल या कवच (Shell) का निर्माण करता है।
इनका शरीर सिर (Head), पेशीय पाद (Foot), प्रावार (Mentle) और अंतरांग पिंडक/कुकुद (Visceral Mass) में विभाजित होता है। सिर पर मुख, नेत्र, स्पर्शक (Tentacles) तथा संवेदांग (Sensory Organs) होते है।
पाद पेशीय होते है जो रेंगने, तैरने, बिल बनाने आदि में सहायक होते हैं।
इनका शरीर द्विपार्श्विक (Bilateral) होता है लेकिन कुछ प्रजातियों में ऐंठन या मरोड़ (Twitch/Torsion) के कारण कुण्डलित (Coiled) या असममित (Asymmetrical) भी होता है।
इस संघ के जंतुओं में विकसित पाचन, उत्सर्जी, परिसंचरण तथा तंत्रिका तंत्र पाए जाते हैं।
इनके अंत:मुख में रैडुला (redula) नामक एक अंग पाया जाता है, जो भोजन को पीसने में सहायक होता है। इनकी आहारनाल पूर्ण तथा U के आकार की होती है। पाचन तंत्र में पाचनग्रन्थियाँ (Digestive Glands), एक यकृत (Liver) होता है।
इनके तंत्रिका तंत्र में तीन जोड़ी गुच्छिकाएँ (Ganglia) होती है जो तंत्रिकाओं (Nerves) और द्वारा जुड़ी हुई होती है।
इनमें श्वसन जल-क्लोम या फुफ्फुस (Gills/Lungs) द्वारा होती है जिन्हें टिनिडिया (Ctenidia) भी कहा जाता है।
इनमें उत्सर्जन अधिउत्सर्गिकाओं (Metanephridia) द्वारा होता है, जिन्हें बोजनस के अंग (Parts of the Bojans) अथवा कैबर की ग्रन्थि (Caber’s Gland) भी कहते है।
इनमें खुला रक्त परिसंचरण तंत्र (Open Circulatory System) पाया जाता है जिसमें हीमोसायनिन (Haemocynin) नामक श्वसन वर्णक होता है। इनका रक्त रंगहीन होता है, लेकिन हीमोसायनिन (Haemocynin) के कारण नीले या हरे रंग का दिखाई देता है।
हृदय पेशीजन्य (Myogenic) होता है।
इस संघ की अधिकांश प्रजातियाँ एकलिंगी होती है लेकिन कुछ प्रजातियाँ द्विलिंगी भी होती है। प्रजनन बाह्य निषेचन तथा लैंगिक विधि के द्वारा होता है। ये मुख्यत: अण्डज होते है। इनके जीवन-वृत्त में शिशु/लार्वा अवस्था पाई जाती है।
शरीर की आकृति, पादो की संख्या, मैन्टल व कवच, श्वसन अंगों, तथा तंत्रिका तंत्र के आधार पर इस संघ के जंतुओं को सात वर्गों में विभाजित किया गया है।
वर्ग मोनोप्लैकोफोरा (Class Monoplacophora)
वर्ग ऐप्लैकोफोरा (Class Aplacophora)
वर्ग पोलीप्लैकोफोरा (Class Polyplacophora)
वर्ग गैस्ट्रोपोडा (Class Gastropoda)
वर्ग स्कैफोपोडा (Class Scaphopoda)
वर्ग पेलीसिपोडा/बाइवाल्वीया/लैमेलीब्रेकिएटा (Class Plecypoda/Bivalvia/lamellibrechiata)
वर्ग सिफैलोपोडा (Class Cephalopoda)
पाइला (Pila) – घोंघा
साइप्रिया (Cypraea) – कौड़ी
पेटेला (Patella) – लिम्पेट
सीपिया (Sepia) – कटलफिश
यूनियो (Unio) – सीपी
ऑक्टोपस (Octopus) – डेविलफिश (बेताल मछली)
डेन्टेलियम (रद कवचर)
एप्लाइसिया (Aplysia) – समुद्री खरगोश
पिंकटाडा (Pinctada) – पर्ल आयस्टर (मुक्ता शुक्ति), बहुमूल्य मोती बनाने वाला जन्तु
लोलिगो (Loligo) – दैत्य स्क्विड
कीटोप्लयूरा (काइटन) आदि
सामान्य तौर पर धरती पर दो तरह के प्राणी पाए जाते है 1) अकशेरुकी 2) कशेरुकी
Vertebrates – कशेरुकी
जिन प्रजातियों के सदस्यों में रीढ़ की हड्डियाँ (Backbones) या पृष्ठवंश (Spinal Comumns) विद्यमान रहते हैं, सभी कशेरुकी समुदाय में आते है। पृथ्वी पर इस समुदाय की लगभग 58,000 से अधिक ज्ञात प्रजातियाँ हैं।
ऐसा माना जाता है कि सबसे पहले कशेरुक माइलोकुनमिंगिया थे, जिनका विकास लगभग 525 मिलियन वर्ष पहले हुआ था। लेकिन वैज्ञानिकों को कुछ अन्य सबूत भी मिले है, जो सबसे पहले कशेरुकी और आधुनिक कशेरुकियों के पूर्वज के रूप में पिकाया ग्रेसिलेंस के होने की पुष्टि करते हैं।
यह भी माना गया है कि लाखों सालों पहले कशेरुकी और अकशेरूकीय एक ही पूर्वज से विकसित हुए है। पहले अकशेरूकीय अस्तित्व में आए और बाद में कशेरुकी।
कशेरुकियों में मुख्य रूप से निम्नांकित लक्षण पाए जाते है: –
कशेरुक एक ऐसा जानवर है जिसके जीवन में किसी बिंदु पर निम्नलिखित सभी विशिष्ट विशेषताएं होती हैं:
जानवर की लंबाई के माध्यम से चलने वाली एक कड़ी छड़ी (यह या तो कशेरुक स्तंभ और / या पृष्ठरज्जु हो सकती है)
मनुष्य और अन्य सभी कशेरुकियों में भ्रूण के रूप में नोटोकॉर्ड होता है और यह अंततः कशेरुक स्तंभ में विकसित होता है।
नसों का एक बंडल वर्टिब्रल कॉलम (रीढ़ की हड्डी) के ऊपर चलता है और इसके नीचे आहारनाल मौजूद होता है।
मुंह जानवरों के अग्र भाग में या उसके ठीक नीचे मौजूद होता है।
आहारनाल गुदा में समाप्त होती है, जो बाहर की ओर खुलती है। पूंछ गुदा के बाद फैली हुई है।
कशेरुकी समुदाय के प्राणियों को पाँच वर्गों में विभाजित किया गया है; 1) पक्षी (Birds); 2) सरीसृप – (Reptiles); 3) मछलियाँ (Fishes); 4) उभयचर – Amphibians 5) स्तनधारी (Mammals)
लेकिन कुछ वैज्ञानिक मछलियों संरचनात्मक और शारीरिक विशेषताओं के आधार पर उन्हें तीन वर्गों में वर्गीकृत करते है। इस आधार से कशेरुकी समुदाय के प्राणियों के सात वर्ग होते है।
- पक्षी (एवेस) – Birds (Aves)
- सरीसृप – (Reptiles)
- बिना जबड़े वाली मछलियाँ (अग्नाथा) – Jawless Fishes (Agnatha)
- हड्डियों वाली मछलियाँ (ओस्टिचथिस) – Bony Fishes (Osteichthyes)
- नरम हड्डियों वाली मछलियाँ या उपास्थिदार मछलियाँ – Cartilaginous fishes (Class Chondrichthyes)
- उभयचर – Amphibians
- स्तनधारी/स्तनीयजन्तु – Mammals/Mammalia
लेकिन हम अभी कशेरुकी समुदाय के मुख्य पाँच प्रकारों पर ही थोड़ी सी चर्चा करेंगे।
पक्षी (Birds)
पंखों वाले या उड़ने वाले जन्तुओं को पक्षी कहते है। जीव विज्ञान में इन्हें एविस् (Aves) श्रेणी में रखा गया है। ये इस अण्डा देने वाले रीढ़धारी प्राणी की लगभग १०,००० प्रजातियाँ इस समय इस धरती पर निवास करती हैं। इनका आकार २ इंच से ८ फीट तक हो सकता है तथा ये आर्कटिक से अन्टार्कटिक तक सर्वत्र पाई जाती हैं। ये अपने पंखों से आकाश में उड़कर एक-जगह से दूसरी जगह पर आसानी से जा सकते है।
सरीसृप – (Reptiles)
मछलियाँ (Fishes)
उभयचर – Amphibians
स्तनधारी (Mammals)
चूंकि इन सात वर्गों में – , , , पक्षी (Birds) और ।
जानवरों को पाँच अलग-अलग समूहों में विभाजित किया जा सकता है: मछली, पक्षी, सरीसृप और उभयचर।
Animals can be divided into five distinct groups: mammals, fish, birds, reptiles, and amphibians.
चार तरह के जीव-जन्तु पाए जाते है। 1) थलचर/स्थलचर 2) जलचर 3) नभचर 4) उभयचर
कशेरुकी
जलचर
जलचर वे जीव-जन्तु होते है जो पानी के अंदर ही रहते है। इनका रहना, चलना-फिरना, खाना-पीना सब पानी में ही होता है, जैसे: मछली, शार्क, घोंघा आदि। । एक तरह से यह भी कहा जा सकता है कि पानी ही इनका जीवन है। पानी से बाहर निकलते ही ये मर जाते है।
ये पानी में विचरण करते है इसलिए इन्हें जलचर कहा जाता है।
वैज्ञानिकों के एक शोध के अनुसार पानी की एक बूँद में ही लगभग 36,450 जीव होते हैं, लेकिन वे आती सूक्ष्म होते है जिन्हें हम अपनी आँखों से नहीं देख सकते। इन्हें देखने के लिए सूक्ष्मदर्शी की आवश्यकता पड़ती है।
जल में भी असंख्य तरह की प्रजातियों के जीव-जन्तु पाए जाते आइए जानते है कुछ जलचरों के नाम
थलचर/स्थलचर
ये वो जीव-जन्तु है जो धरती के थल भाग पर रहते है। इनका रहना, चलना-फिरना, खाना-पीना सब थल पर ही होता है। ये जीव-जन्तु पानी में नहीं रह सकते। ज्यादा देर तक पानी में रहने पर इनकी मृत्यु हो जाती है।
ये जीव-जन्तु धरती के थल भाग पर विचरण करते है इसलिए इन्हें थलचर या स्थलचर कहा जाता है। जैसे: शेर, कुत्ता, बिल्ली आदि।
नभचर
ये वो जीव-जन्तु है जो रहते तो धरती पर ही है इनकों अपना भोजन-पानी भी धरती पर ही मिलता है। लेकिन ये आकाश (नभ) में उड़ सकते है। ये अपने पंखों से आकाश में उड़कर एक-जगह से दूसरी जगह पर आसानी से जा सकते है।
ये नभ में विचरण करते है इसलिए इन्हें नभचर कहा जाता है।
उभयचर
ये वो जीव-जन्तु है जो स्थल और पानी दोनों ही जगहों पर रह सकते है। पानी से स्थल पर आने से या स्थल से पानी में जाने से इनकी मृत्यु नहीं होती।
ये स्थल और जल दोनों में विचरण कर सकते है इसलिए इन्हें उभयचर कहा जाता है। जैसे: – साँप, मगरमच्छ, मेंढक आदि।
तो पहले क्या पढ़े, जानवरों के नाम, जानवरों के प्रकार या जानवरों का वर्गीकरण? चलिए जानवरों के प्रकार से ही आगे बढ़ते है: –
हमारी धरती पर इतने सारे जानवर है और उनके रहन-सहन, खान-पान, रहने की जगह आदि के हिसाब से उनका वर्गीकरण कई प्रकार से किया जा सकता है।
इस पोस्ट में मैं सबसे पहले आपको पहले उनका उनके रहने और विचरण करने के आधार पर उनका वर्गीकरण बताती हूँ
चलिए जब ये पोस्ट जानवरों के नामों के बारे में है तो पहले जानवर कितने तरह के होते है यह जान लेते है और उसके बाद हम केवल
छोटे बच्चों को तो अपनी पढ़ाई के दौरान “Colours Name in English and Hindi (रंगों के नाम अंग्रेजी व हिन्दी में) याद करने ही होते है, लेकिन कई बड़े लोगों को भी अधिकतर रंगों के नाम अंग्रेजी व हिन्दी में पता नहीं होते है।
और फिर वे जाते है अपने “Google Baba” के पास और वहाँ उन्हें उनका जवाब मिल जाता है। मैं भी अपने बेटे को पढ़ाने के दौरान “Google Baba” के पास ही गई थी मुझे अपने सवालों का जवाब तो मिला। लेकिन मुझे रंगों के बारे में जो जानकारी लेनी थी उसके लिए मुझे बहुत सारी Posts देखनी पड़ी। कुछ लेखों में रंगों के नाम तो बता रखे थे तो कुछ में उनके बारे में थोड़ी बहुत जानकारी।
मैंने मेरे इस लेख में आपको जानवरों के नाम अंग्रेजी और हिन्दी में (Animals Name in English & Hindi) में बताने के साथ ही साथ उनके अलग-अलग तरह के वर्गीकरण भी बताए है।
आशा करती हूँ मेरे नन्हें-मुन्ने दोस्तों, उनके बड़े भाई-बहनों और उनके प्यारे-प्यारे मम्मी-पापा को मेरे यह जानकारी जरूर अच्छी लगी होगी। तो बस अब देर मत कीजिए अपनी उंगलियों को थोड़ा कष्ट दीजिए और मेरी इस Post की Like व Share कीजिए।
इसके अलावा आपको मेरे इस लेख में कोई त्रुटि दिखे तो मुझे Comments Box में जरूर बताइए। मैं अपनी गलती को सुधारने का पूरा प्रयत्न करूंगी।
हिंदी में जानवरों को क्या कहते हैं?
जानवरों को ओर भी कई नाम से जाना जाता हैं जैसे कि जीव, जंतु, पशु इत्यादि।
डोमेस्टिक एनिमल कौन कौन से होते हैं?
डोमेस्टिक एनिमल कई सारे हैं लेकिन हम आपको कुछ डोमेस्टिक एनिमल मतलब पालतू जानवरों के नाम बताएंगे जैसे
कुत्ता, बिल्ली, मुर्गी, भेड़, घोड़ा, खरगोश, गधा, भैस इत्यादि।
अफ्रीका के जंगल में कौन से जानवर पाए जाते हैं?
अफ्रीका के जंगल में 1 मिलियन से ज्यादा जानवरो की प्रजातियां मौजूद हैं जिसमें से कुछ जमीनी, कुछ पानी, में रहने वाले होते हैं। अफ्रीका के जंगल में पाँच सबसे बड़े जानवर
हाथी, शेर, चिता, गेंडा और अफ्रीकी भैस।
जंगली जानवर कितने होते हैं?
जंगली जानवरों कई सारे हैं लेकिन हम आपको 10 जंगली जानवरों के नाम बतलायेंगे जो आपको शायद पता हो जैसे शेर, बाग, चिता, हाथी, भालू, हिरण, जिर्राफ,
गिलहरी इत्यादि।
पालतू जानवर को क्या कहते हैं इंग्लिश में?
पालतू जानवर को इंग्लिश में domestic animal or pet कहते हैं।
जंगल में रहने वाले को क्या कहते हैं?
जंगल में रहने वाले किसी भी चीज़ को जंगली कहते हैं जैसे कि जंगल में रहने वाले जानवर को जंगली जानवर कहते हैं।
जंगली जानवर कितने खतरनाक होते हैं?
जंगली जानवर जैसे कि शेर, बाग, चिता, साँप, बिछु, मगरमच्छ, गेंडा सभी के सभी बहुत ही खतरनाक जानवर हैं।
कौन से जानवर के कान नहीं होते?
चीटियां के कान नहीं होते इसलिए वो सुन। नही सकती हैं।
साउथ अफ्रीका का सबसे बड़ा जंगल कौन सा हैं?
Cango अफ्रीका का सबसे बड़ा जंगल और दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा जंगल हैं।
सबसे खतरनाक पक्षी कौन हैं?
दुनिया का सबसे खतरनाक पक्षी कैसोवारी हैं।यह दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा पक्षी हैं।
यह सर्वभक्षी होते है।
कौन से जानवर के कान सिर के ऊपर होते हैं?
खरगोश के कान सिर के ऊपर होते हैं।
दुनिया का सबसे खतरनाक जंगल कौन सा हैं?
होया बस्यु दुनिया का सबसे खतरनाक जंगल हैं।यहाँ कई अजीबो गरीब घटनाएं देखने को मिलती हैं।ट्रांसवेनिया में स्तिथ होने के कारण इसे ट्रांसवेनिया का बरमूडा ट्रायंगल कहा जाता हैं।
बिना हड्डी का जानवर कौन सा है?
स्विजरलैंड में। जवाब. शार्क मछली के शरीर में एक भी हड्डी नहीं होती। शार्क के कंकाल आम हड्डियों के नहीं बने होते।
इस दुनिया में कुल कितने जानवर हैं?
दुनिया में कितने जानवर हैं, इसका पता तो आजतक भी नहीं चल पाया है। क्योंकि जानवरों पर शोध करने वाले वैज्ञानिकों को नित नई जानवरों की प्रजातियाँ मिलती रहती है। लेकिन वैज्ञानिकों के अनुमानके अनुसार पृथ्वी पर जानवरों की लगभग 8.7 मिलियन प्रजातियां हैं। इन प्रजातियों में से लगभग 1.5 से 2 मिलियन पशु (1.05 मिलियन कीट; 11,000 से अधिक पक्षी; 11,000 से अधिक सरीसृप; और 6,000 से अधिक स्तनधारी) है।
जानवरों का राजा कौन है?
जंगल का राजा शेर को कहा जाता है, लेकिन ‘पब्लिसिटी’ तो बाघ को ही ज्यादा मिलती है। शायद इसकी एक वजह बाघ का कुछ ज्यादा ही ‘फोटोजेनिक’ होना है।
0 पैर वाला जानवर कौन सा है?
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10 पैर और 10 आंखों वाला होर्शु क्रैब एक विचित्र जानवर है जो धीरे-धीरे अब विलुप्त होता जा रहा है। लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि इस जंतु ने अपने रक्त से अनगिनत मानव जीवन को बचाया है और आपके जीवन को भी बचा सकता है।
कौन सा जानवर मुंह से जन्म देता है?
प्लैटिपस मेंढक के रूप में भी जाना जाता है, मादा उभयचर, नर द्वारा बाहरी निषेचन के बाद, उसके अंडे निगल लेती है, उसके पेट में उसके बच्चों को पालती है और उसके मुंह से जन्म देती है।
कशेरुक कब अस्तित्व में आए?
ऐसा माना जाता है कि सबसे पहले कशेरुक माइलोकुनमिंगिया थे, जिनका विकास लगभग 525 मिलियन वर्ष पहले हुआ था। लेकिन वैज्ञानिकों को कुछ अन्य सबूत भी मिले है, जो सबसे पहले कशेरुकी और आधुनिक कशेरुकियों के पूर्वज के रूप में पिकाया ग्रेसिलेंस के होने की पुष्टि करते हैं।
जानवर और पशु में क्या अंतर है?
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अर्थ न्यूनाधिक एक ही है, मूल भाषा में अन्तर है. ‘जानवर’ फ़ारसीमूलक अतः उर्दू शब्द है जिस का शाब्दिकार्थ है ‘जानदार’ वा ‘प्राण वाला’. उर्दू, और फ़ारसी में इस का पर्याय एक अरबीमूलक शब्द ‘हैवान’ (हयात, अर्थात् ‘जीवन वाला’) भी होता है. पशु संस्कृतमूलक हिन्दी शब्द है.
जानवर क्यों नहीं बोलते हैं?
क्योंकि वो कोई भाषा नही बोलते हैं जो हम समझते हैं या जानते हैं। बस उन जैसे जानवरों को समझ आती है। जैसे कोई जानवर जब अपने बच्चे को पुकारती है तो वो कैसे दौड़े चली आती है। इसका मतलब वो बोलते हैं बस हमें समझ नही आती है।
आज, विज्ञान हमें सिखाता है कि न तो मानव जानवर और न ही गैर-मानव जानवर को “यहां रखा गया” और यह कि हम सभी प्राकृतिक चयन और यादृच्छिक उत्परिवर्तन की शक्तियों के माध्यम से बहुत लंबी अवधि में विकसित हुए हैं। हालाँकि, जैसा कि हम विकास के आधुनिक सिद्धांत को समझते हैं, जिसे 200 साल से भी कम समय पहले विकसित किया गया था, हम जानवरों के सदियों पुराने शोषण को सही ठहराने के लिए डार्विन को बुलाते हैं। हम कहते हैं “यह योग्यतम की उत्तरजीविता है” और विकासवादी सिद्धांत और विकासवादी नैतिकता की जटिलताओं में आगे नहीं देखना चुनते हैं। हम अपने आप से नहीं पूछते: सिर्फ इसलिए कि हम जानवरों को मार सकते हैं और खा सकते हैं, क्या इसका मतलब यह है कि हमें ऐसा करना चाहिए?
जानवर हमारी दुनिया के लिए क्यों महत्वपूर्ण हैं?
आधुनिक मानव जानवरों से – और साथ – साथ विकसित हुआ है। हम यह भी पूछ सकते हैं कि मनुष्य संसार के लिए क्यों महत्वपूर्ण हैं!
पारिस्थितिकी के संदर्भ में, सभी जानवरों का इसमें अपना स्थान है, और एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। एक प्रजाति को हटा दें, और एक नॉक-ऑन प्रभाव होता है, यही कारण है कि विलुप्त होने और निवास स्थान के विनाश का एक ही प्रजाति या वुडलैंड के नुकसान की तुलना में बहुत व्यापक और अधिक विनाशकारी प्रभाव हो सकता है।
प्रत्येक जानवर एक भूमिका निभाता है जो उन्हें अमूल्य बनाता है। परागण करने वाले जानवर हैं जो यह सुनिश्चित करते हैं कि हम खाते हैं; अन्य जो बीजों को तितर-बितर करते हैं और जंगली पौधों को फलने-फूलने में मदद करते हैं; कुछ मिट्टी को तोड़ देते हैं जो पौधों को जड़ जमाने और फलने-फूलने में मदद करती है; कुछ कीड़े खाते हैं जो हमारे खाद्य पदार्थों के लिए हानिकारक हैं; और ऐसे लोग हैं जो जीवन की गंदगी को साफ करने में मदद करते हैं – मक्खियाँ, भृंग और कशेरुक जो मर चुके लोगों के शरीर को तोड़ देते हैं और पोषक तत्वों को वापस पृथ्वी पर भेज देते हैं।
लेकिन, निश्चित रूप से, जानवर अपने आप में महत्वपूर्ण हैं, और सिर्फ इसलिए नहीं कि वे हमारे लिए क्या करते हैं। यह सिर्फ हमारी दुनिया नहीं है। यह उनकी दुनिया भी है।