बातूनी कछुआ – Baatuni Kachua
पंचतंत्र की कहानियाँ – पहला तंत्र – मित्रभेद – बातूनी कछुआ – Baatuni Kachua – The Talkative Tortoise
पंचतंत्र की इस कहानी में एक बातूनी कछुए के माध्यम से बताया गया है कि ज्यादा बोलना और खुद पर नियंत्रण ना रखने वाले को उसकी कीमत चुकानी पढ़ती है। तो पढ़ते है – बातूनी कछुआ
कछुए और हंसों की दोस्ती
कुमुद वन में एक तालाब था उसमे कम्बुग्रीव नाम का एक बातूनी कछुआ रहता था। उसी तालाब में बहुत सारी मछलियाँ भी थी। एक बार संकट और विकट नाम के दो हंस भी उस तालाब के ऊपर से जा रहे थे।
उन्हें वह तालाब बहुत सुन्दर लगा और वे उसमे तैरने के लिए वहां उतर गए। दोनों हंस संकट और विकट बहुत ही हंसमुख और मिलनसार स्वभाव के थे। उन्होंने कछुए कम्बुग्रीव से खूब बातें की। उन्हें वहां बहुत अच्छा लगा और उनके लिए वहां खाने पीने की भी कोई कमी नहीं थी.
वे वहीं रहने लगे, वे कम्बुग्रीव कछुए से बहुत सारी बाते करते। वे उसे बाहर की दुनियां के बारें में कई बाते बताते और कम्बुग्रीव अपनी आदत के अनुसार उन्हें बीच बीच में टोकता। लेकिन वे उसका बिल्कुल भी बुरा नहीं, मानते। धीरे-धीरे उनमे दोस्ती हो गई और वे तीनों गहरे मित्र बन गए। ऐसे ही कई दिन बीत गए।
जंगल में अकाल
एक बार उस जंगल में बहुत भयंकर अकाल पड़ा तीन सालों तक एक बूंद भी पानी नहीं बरसा। नदी-नाले, पेड़ पौधे सभी सूखने लगे। सभी जानवरों के लिए खाने पीने के सामान की कमी हो गयी | जानवर भूख और प्यास से मरने लगे।
तब जंगल के अधिकतर जानवर कुमुद वन छोड़ कर दुसरे वनों की ओर पलायन करने लगे। जिस तालाब में कम्बुग्रीव रहता था, वह तालाब भी लगभग सूख गया था, केवल कीचड़ ही बचा था। पानी की कमी के कारण तालाब की सारी मछलियाँ मर गयी।
दोस्त पर संकट
इसलिए संकट और विकट भी इस जगह को छोड़कर दूसरी जगह जाना चाहते थे। लेकिन वे अपने मित्र कम्बुग्रीव को छोड़कर कैसे जा सकते थे। दोनों हंसों को अपने मित्र कछुए की बहुत चिंता थी। इसलिए वे दूर-दूर उड़कर जाते और अपने व अपने मित्र कम्बुग्रीव कछुए के लिए रहने के स्थान की खोज करते।
एक दिन वे बड़े खुश-खुश कम्बुग्रीव के पास आये और बोले, “मित्र कम्बुग्रीव, हमें तुम्हारी समस्या का निदान मिल गया है। यहाँ से पचास कोस दूर एक मीठे पानी की झील है। उसमे बहुत सारा पानी और मछलियाँ है, हम तीनों वहां आराम से रह सकते है। तुम अभी हमारे साथ वहां चलने के लिए तैयार हो जाओ।”
कछुआ खुश होने के स्थान पर उदास होता हुआ बोला, “पचास कोस! तुम लोगों को तो पता है कि मैं कितना धीरे चलता हूँ। पचास कोस जाने में तो मुझे कई दिन लग जायेंगे और तब तक तो मैं मर जाऊँगा।”
कछुए की बात सुनकर हंस भी विचार में पढ़ गए। तब कछुए ने कहा, “मित्रों, तुम मेरी चिंता छोड़ दो, और तुम दोनों यहाँ से चले जाओ। कम से कम तुम्हारी जान तो बच जायेगी | मैं यहीं अपने आखरी दिन गुजार लूँगा।”
संकट हंस ने कहा, “नहीं मित्र, हम तुम्हे ऐसे संकट में छोड़कर नहीं जा सकते। ठहरों हम कुछ उपाय करते है।” तभी कम्बुग्रीव ने कहा, “काश मैं भी तुम दोनों कि तरह उड़कर वहां जा सकता, लेकिन मैं उड़ नहीं सकता।”
मिल गया उपाय
उसकी बात सुनकर दोनों हंस ख़ुशी से उछल पड़े और बोले, “तुमने ठीक कहा मित्र, तुम भी हमारे साथ उड़ कर उस झील तक चलोगे।” कछुए ने आश्चर्य से पूछा, “वो कैसे, मैं कैसे उड़ सकता हूँ।” दोनों हंस उड़कर गए और अपनी चोंच में एक सुखी पतली लकड़ी लेकर वहां आये।
उन्होंने कम्बुग्रीव से कहा, “मित्र, हम इस लकड़ी के दोनों सिरे पकड़ लेगे और तुम बीच में से इस लकड़ी को अपने मुंह से कस कर पकड़ लेना। फिर हम तुम्हे अपने साथ उड़कर उस झील तक ले चलेंगे।”
उनकी बात सुनकर कम्बुग्रीव भी ख़ुशी से उछल पड़ा, “अरे वाह मित्रों, तुमने तो बहुत अच्छा उपाय सोच लिया है। अब तो मेरी जान बच जायेगी।” तब विकट ने कहा, “लेकिन मित्र, तुम्हे एक बात का ध्यान रखना पड़ेगा। जब तक हम उस झील तक नहीं पंहुच जाते तुम्हें अपना मुँह बंद रखना होगा।तब तक तुम कुछ मत बोलना।”
कम्बुग्रीव इस बात पर सहमत हो गया। दोनों हंसों ने लकड़ी के दोनों किनारे पकड़ लिए और कछुए ने लकड़ी को अपने दांतों से बीच में से पकड़ लिया और तीनो झील की ओर उड़ चले।
निराला तमाशा
झील के रास्ते में एक नगर पड़ता था, जब वे तीनों उस नगर के ऊपर उड़ते हुए जा रहे तो नीचे मैदान में खेलते हुए एक बच्चे की नज़र उन पर पड़ी और वह जोर से चिल्लाया, “अरे, देखो-देखो ऊपर कितन अद्भुत नज़ारा है। दो हंस एक कछुए को उडाये लिए जा रहे है।”
सब बच्चों ने उन्हें देखा तो उन्हें बड़ा मजा आया और वे ख़ुशी से तालियाँ बजाते व चिल्लाते हुए उनके पीछे-पीछे दौड़ पड़े। उनके देखा-देखी नगर के अन्य लोग भी कौतुहलवश इस नज़ारे को देखने के लिए उनके साथ हो गए।
कछुए की मूर्खता
जब ऊपर से कछुए ने इतने सारे लोगो को अपने पीछे भागते हुए देखा तो वह अपने मित्र हंसों की हिदायत भूल गया और अपना मुँह खोलकर जोर से बोला, “देखो मित्रो, नीचे नगर के लोग हमें देख कर कैसे कौतुहल से चिल्ला रहे है।”
कछुए का बस इतना बोलना था कि उसके मुंह से लकड़ी छुट गई और वह जमीन पर गिर गया और उसके प्राण पंखेरू उड़ गए। अपने मित्र कि मृत्यु पर दोनों हंसों को बहुत दुःख हुआ, लेकिन वे क्या कर सकते थे उनके मित्र ने उनकी सलाह जो नहीं मानी थी।
बातूनी कछुआ कहानी का वीडियो – Baatuni Kachua
सीख
बिना मौके बोलने का परिणाम बुरा होता है । जो अपनी इन्द्रियों पर नियंत्रण नहीं कर सकते उन्हें बाद में पछताना पड़ता है ।
पिछली कहानी – टिटिहरी का जोड़ा और समुद्र
तो दोस्तों, कैसी लगी पंचतंत्र की कहानियों के रोचक संसार में डुबकी। मजा आया ना, तो हो जाइए तैयार लगाने अगली डुबकी, .. .. .. ..
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