बड़े नाम की महिमा – Bade Nam Ki Mahima
पंचतंत्र की कहानियाँ – तीसरा तंत्र – कोकोलूकीयम – बड़े नाम की महिमा – Bade Nam Ki Mahima – The Glory of Big Name
अरण्य वन में बहुत सारे हाथियों का एक दल रहता था। चतुर्दन्त नामक महाकाय और बलशाली हाथी उस दल का मुखिया था। एक बार अरण्य वन में कई वर्षों तक बारिश नहीं हुई। अरण्य वन के सारे ताल, तलैया, झीलें आदि सभी पानी के स्त्रोत सूख गए। पानी की कमी से अरण्य वन के सारे वृक्ष भी सूखने लगे। जंगल में रहने वाले सभी जीवों के भूखों मरने की नौबत या गई।
हमें बचाइये महाराज
चतुर्दन्त के दल के भी कई हाथी भूख प्यास से मरने लगे। तब सभी हाथियों ने मिलकर चतुर्दन्त से कहा,
🐘 गज्जु हाथी – मुखिया जी, वन में बहुत भयंकर सूखा पड़ा है। बहुत ढूँढने पर भी खाने को वृक्ष व पीने को पानी नहीं मिल पाता। हमारे बहुत सारे साथी और बच्चे भूख-प्यास से मर गए है। यहीं हालत रही तो हम सब जो बाकी बचे है, वे भी जल्द ही मर जाएंगे।
🐘 सज्जु हाथी- हाँ, मुखिया जी हमें हमारे प्राण बचाने के लिए जल्द ही कोई उपाय सोचना पड़ेगा।
🐘 गाजी हाथी – हमें जल्द ही यह वन छोड़कर ऐसे वन में चले जाना चाहिए जहां पर प्रचुर मात्रा में पानी हो । जिससे हम सब का जीवन बच सके।
चतुर्दन्त ने बहुत देर तक सोचने के बाद कहा,
🐘 चतुर्दन्त – यहाँ से बहुत दूर सुंदरवन है, वहाँ का एक तालाब पाताल गंगा के जल से सदा भरा रहता है। हमें वहीं चलना चाहिए।
सभी हाथी चतुर्दन्त की अगुवानी में सुन्दरवन की तरफ चल दिये। लगातार पाँच दिन और पाँच रात की लंबी यात्रा करने के बाद छठे दिन दोपहर को वे सुंदरवन के तालाब तक पँहुच गए। तालाब पानी से लबालब भरा हुआ था। इतने दिनों बाद इतना सारा पानी देख कर सबकी खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा।
ये क्या कर डाला?
सभी भाग कर तालाब में घुस गए और पानी में मस्ती करने लगे। कभी सूंड में पानी भरकर अपने शरीर पर डालते तो कभी एक-दूसरे पर पानी फैंकते। दिनभर पानी में खेलने के बाद सभी पानी से बाहर निकले। उस तालाब के किनारे ही खरगोशों की बस्ती थी। इस बस्ती में लंबकर्ण नामक खरगोश अपने साथियों के साथ रहता था। उन्होंने तालाब के किनारे जमीन में अपने रहने के लिए बिल बना रखे थे।
इतने सारे बिलों के कारण वहाँ की जमीन पोली हो गई थी। हाथी उसी बस्ती के ऊपर से जाने लगे। पोली जमीन पर चलने में उन्हें बड़ा मजा आ रहा था। कुछ खरगोशों ने चिल्लाकर हाथियों का ध्यान उस तरफ लाने का प्रयास भी किया, लेकिन उन्होंने अपनी मस्ती में उन पर कोई ध्यान नहीं दिया। हाथी अपने पाँवों से खरगोशों के बिलों और खरगोशों को रोंदते हुए वहाँ से चले गये ।
हाथियों के दल के जाने के पश्चात् बचे हुए घायल और लहूलुहान खरगोशों ने एक जगह एकत्रित होकर सभा की। उन्होंने अपने साथी खरगोशों की मृत्यु पर शोक व्यक्त किया।
लंबकर्ण – आज हाथियों के दल के कारण हमारे कई साथी मारे गए। हमें उस सबकी मृत्यु का बहुत दु:ख है। लेकिन हाथियों का यहाँ आना हमारे लिए चिंता का विषय है।
🐇 चीकू खरगोश – हाँ, तुम बिल्कुल सही कह रहे हो। अकाल पड़ने के कारण आस-पास के कई जंगलों के तालाब लगभग सुख चुके है। बस यही तालाब पातालगंगा के जल के कारण लबालब भरा हुआ है। अब तो हाथियों के दल को इस तालाब के बारे में पता चल गया है। अब वे यहीं रहेंगे और रोज इस तालाब पर आया करेंगे।
छोड़ दें ये गलियाँ?
🐇 चीची खरगोश – हाँ, और रोज हम उनके पैरों तले कुचल कर मारे जाएंगे। इस तरह तो कुछ ही दिनों में हमारे समूल वंश का नाश हो जाएगा। ये तो हमारे समक्ष बहुत बड़ा संकट उत्पन्न हो गया है। इसका क्या उपाय किया जाए?
🐇 चीकू खरगोश – इसका तो बस एक ही उपाय है हमें शीघ्र अति शीघ्र इस स्थान को छोड़कर दूसरे किसी सुरक्षित स्थान पर चले जाना चाहिए। नीति भी यही कहती है, किसी एक का त्याग करने से अधिक पर आया संकट दूर होता हो तो एक का त्याग के देना चाहिए।
जिस तरह परिवार की रक्षा के लिए किसी एक का, एक गाँव की रक्षा के लिए एक परिवार का, एक शहर की रक्षा के लिए लिए एक गाँव का, एक देश की रक्षा के लिए एक शहर का और सम्पूर्ण पृथ्वी की रक्षा के लिए एक देश का त्याग करना पड़े तो कर देना चाहिए। उसी तरह यदि खुद के प्राणों पर आए संकट की रक्षा के लिए सम्पूर्ण पृथ्वी का त्याग कर देना चाहिए।
कुछ खरगोश तो उसकी बात से सहमत हो गए, लेकिन लंबकर्ण और कुछ खरगोशों को यह मंजूर नहीं था।
🐰 लंबकर्ण – ये हमारे पूर्वजों की जमीन है। हम तो अपने बाप दादाओं की भूमि को छोड़कर कहीं नहीं जाएंगे। हमें कोई दूसरा उपाय ढूँढना चाहिए, जिससे सांप भी मर जाए और लाठी भी ना टूटे, अर्थात हमें हाथियों से छुटकारा भी मिल जाए और इस जगह को छोड़कर भी नहीं जाना पड़े।
🐇 सासा खरगोश – लेकिन ऐसा कैसे हो सकता हम हाथियों को यहाँ से जाने के लिए कैसे बोल सकते है? वे बहुत शक्तिशाली है, वे हमारा कहा क्यों मानेंगे।
🐰 लंबकर्ण – हाथियों को यहाँ से भगाने की लिए हमें चतुराई से काम करना होगा।
बड़े नाम की महिमा
सब बैठ कर विचार करने लगे कि क्या किया जाए। उन्हें विचार करते-करते रात हो गई, लेकिन उन्हें समझ में ही नहीं आ रहा था कि क्या किया जाए? तभी लंबकर्ण को तालाब में चाँद की परछाई दिखाई दी, तालाब में चाँद को देखकर वह खुशी से उछल पड़ा।
🐰 लंबकर्ण – मुझे हाथियों से छुटकारा पाने का उपाय मिल गया है।
🐇 सासा खरगोश – क्या?
🐰 लंबकर्ण – तालाब में चाँद की परछाई को देख रहे हो?
🐇 सासा खरगोश – हाँ, लेकिन इसमें क्या नया है? चाँद की परछाई तो रोज रात को तालाब में दिखाई देती है।
🐰 लंबकर्ण – हम चंद्रदेव के नाम से हाथियों को डरा सकते है।
🐇 सासा खरगोश – (आश्चय से ) वो कैसे?
🐰 लंबकर्ण – हम किसी एक खरगोश को हाथियों के मुखिया के पास भेजते है। वह जाकर उन्हें चंद्रदेव का आदेश सुनाएगा कि यह तालाब चंद्रदेव का है और वे चाहते है कि वे लोग इस तालाब पर ना आया करे। नहीं तो वे तो वे चंद्रदेव के कोप का शिकार हो जाएंगे।
🐇 चीची खरगोश – लेकिन यदि वे नहीं माने तो?
🐰 लंबकर्ण – इसके लिए हमें किसी चतुर खरगोश को हाथियों के मुखिया के पास भेजना पड़ेगा, जो हाथियों के मुखिया को अपनी बातों के जाल में फंसा सके।
कुर्बानी कौन देगा?
🐇 सासा खरगोश – लेकिन इसमें तो प्राण जाने का भी खतरा है। अपने प्राणों का संकट कौन मोल लेगा?
🐰 लंबकर्ण – यदि मेरे प्राणों पर संकट होने से पूरे समुदाय की जान बच सकती है, तो मैं अपने प्राणदान करने के लिए सहर्ष तैयार हूँ।
सबको अपनी योजना के बारे में विस्तार से समझा कर लंबकर्ण वहाँ से उसी वक्त निकल गया। शीघ्र ही वह हाथियों के दल के पास पँहुच गया और बोला,
🐰 लंबकर्ण – आपका मुखिया कौन है?
🐘 गज्जु हाथी – तुम्हें हमारे मुखिया से क्या काम है?
🐰 लंबकर्ण – मैं उनके लिए चंद्रदेव का संदेश लाया हूँ।
वह लंबकर्ण को अपने मुखिया चतुर्दन्त के पास लेकर गया और कहा,
🐘 गज्जु हाथी – मुखिया जी यह खरगोश आपके लिए चंद्रदेव का संदेश लेकर आया है.
🐘 चतुर्दन्त – तुम कौन हो?
🐰 लंबकर्ण – मैं उस तालाब के पास रहने वाला एक खरगोश हूँ। मेरा नाम लंबकर्ण है।
🐘 चतुर्दन्त – चंद्र देव का क्या संदेश है?
🐰 लंबकर्ण – आज आपने तथा आपके दल ने तालाब के किनारे रहने वाले खरगोशों के बिल तोड़ दिये और कई खरगोशों के प्राण ले लिए। इसलिए हमने चंद्रदेव से अपने प्राणों की रक्षा करने के लिए प्रार्थना की, तो वे यहाँ धरती पर आ गए है। उन्होंने आपके लिए यह संदेश भिजवाया है कि आप इस वन को छोड़कर कहीं और चले जाए तथा उस तालाब की तरफ कभी भी ना जाए, नहीं तो आपको उनके क्रोध का सामना करना पड़ेगा।
🐘 चतुर्दन्त – लेकिन चंद्र देवता तो आकाश में रहते है वे धरती पर कैसे या सकते है? मुझे तुम्हारी बातों पर विश्वास नहीं है।
🐰 लंबकर्ण – मुखिया जी, “हाथ कंगन को आरसी क्या और पढे लिखे ओ फारसी क्या” आप स्वयं मेरे साथ तालाब पर चलकर देख सकते है।
जो चाहा, मिल गया
चतुर्दन्त लंबकर्ण के साथ तालाब के पास जाता है। वहाँ उसे तालाब में चाँद की परछाई दिखाई देती है। वह थोड़ा झुककर और अपनी सुंड को उठाकर चंद्रदेव को प्रणाम करता है। तभी उसे एक आवाज सुनाई देती है,
🌛 चंद्रदेव – चतुर्दन्त, मैं चंद्रदेव हूँ। मैं इन खरगोशों की रक्षा के लिए ही यहाँ आया हूँ। तुमने आज इन खरगोशों को बहुत सताया है। आगे से ऐसा ना हो, इसलिए मेरा आदेश है कि आज के बाद तुम कभी इस तालाब पर मत आना।
🐘 चतुर्दन्त – लेकिन हमें बहुत दिनों के बाद पानी मिला है। बिना पानी के तो मेरे और मेरे साथियों के प्राण संकट में पड़ जाएंगे।
🌛 चंद्रदेव – तो तुम इस तालाब के दूसरे किनारे पर चले जाओ।
🐘 चतुर्दन्त – चंद्रदेव, ये खरगोश भी तो ये जगह छोड़कर जा सकते है।
तभी लंबकर्ण ने चुपके से पास में रखा हुआ एक पत्थर उठा कर पानी में फेंक दिया। पत्थर पानी में गिरने से पानी में तरंगे में चलने लगी, जिससे चाँद की परछाई हिलने लगी। तब लंबकर्ण बोला,
🐰 लंबकर्ण – देखो तुम्हारे मना करने से चंद्रदेव को गुस्सा आ रहा है। कहीं वे तुम्हें अभी ही मौत के घाट ना उतार दे। इसलिए मेरी तो आपको यही सलाह है। आप अपने साथियों के साथ इस तालाब के दूसरे किनारे वाले वन में चले जाओं। जिससे आपकी और हमारी सभी के प्राणों की रक्षा हो जाएगी।
चाँद की परछाई को हिलते देख चतुर्दन्त डर गया और हाथ जोड़ कर बोला,
🐘 चतुर्दन्त – क्षमा के दीजिए चंद्रदेव, मैं कल सुबह ही अपने साथियों के साथ दूसरे किनारे पर चला जाऊंगा।
🌛 चंद्रदेव – लेकिन ध्यान रखना अब से मैं इन खरगोशों की रक्षा के लिए यहीं रहूँगा। अब कभी इन्हें सताने का प्रयास मत करना।
🐘 चतुर्दन्त – जो आज्ञा , चंद्रदेव!
इतना कहकर वह वहाँ से चला गया। अगले दिन ही हाथियों के दल ने वहाँ से प्रस्थान कर दिया। उसके बाद वे कभी उस तरफ नहीं आए।
सीख
संकट के समय धैर्य और चतुराई से काम लेना चाहिए। अपनी बुद्धिमानी से दुर्बल भी सबल को हरा सकता है।
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तो दोस्तों, कैसी लगी पंचतंत्र की कहानियों के रोचक संसार में डुबकी। मजा आया ना, तो हो जाइए तैयार लगाने अगली डुबकी, .. .. .. ..
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