भाई दूज की कहानी – Bhai Dooj Ki Kahani – bhaiya dooj ki kahani
सुखी जीवन की प्रार्थना करती हैं. आज के दिन यमराज की भी पूजा की जाती है. कार्तिक शुक्ल द्वितीया के दिन यमराज पहली बार अपनी बहन यमुना के घर गए थे, तब से ही इस तिथि को यम द्वितीया या भाई दूज का त्योहार मनाया जाता है.
भारत एक पारिवारिक देश है, तथा यहाँ पर आपसी रिश्तों को भूत अहमियत दी जाती है। इसलिए यहाँ पर कई ऐसे त्योहार भी मनाए जाते हैं, जिनके द्वारा अपने परिजनों की लंबी उम्र, अच्छे स्वास्थ्य व उन्नति की कामना की जाती है।
ऐसे ही त्योहारों में से एक है “भाई दूज”! भाई दूज के त्योहार में भी बहनें अपने भाई की लंबी आयु और स्वस्थ जीवन की प्रार्थना करती हैं।
कहा जाता है कि, भाई दूज के दिन ही यम ने अपनी बहन यमुना को यह वरदान दिया था कि आज के दिन जो भी भाई अपनी बहन के घर जाकर टीका लगवाएगा वह यम के प्रकोप से बचा रहेगा। इसलिए इस दिन को यम द्वितीया के रूप में भी मनाया जाता है।
यह त्योहार को पूरे भारत वर्ष में अलग-अलग नामों से मनाया जाता है। जहाँ संस्कृत में भाई दूज को “भगिनी हस्ता भोजना” कहते हैं अर्थात बहन के हाथ का भोजन।
मिथिला “यम द्वितीया”, कर्नाटक में “सौदरा बिदिगे” तो बंगाल में “भाई फोटा”, गुजरात में “भौ-बीज या भै-बीज” तो महाराष्ट्र में “भाऊ बीज” के नाम से मनाया जाता है। भारत के बाहर नेपाल में भी यह त्योहार “भाई टीका” के नाम से मनाते है।
तो है ना बड़ा ही प्यारा त्योहार! तो आपके मन में भी इसके बारे में जानने की उत्सुकता बढ़ गई होगी तो चलिए मेरे साथ अपने भाई-बहन के रिश्ते में मिश्री सी मिठास लाने के लिए: –
भाई दूज का महत्त्व
हिन्दू धर्म में भाई दूज का बड़ा ही महत्व है। इस दिन बहने अपने भाई को टीका लगाकर और आरती उतार कर उसके स्वस्थ जीवन तथा दीर्घायु होने की प्रार्थना करती है। बहन-भाई का प्यार होता ही ऐसा है कि दोनों ही एक दूसरे की विपत्ति में एक-दूसरे के साथ खड़े रहते है।
आज के जमाने में समयाभाव के कारण जब सभी रिश्ते दूर होते जा रहे है, ये त्योहार ही है जो आपसी रिश्तों में मजबूती व प्रेम लाते है। भाई दूज का त्योहार भी बहन और भाई के रिश्ते को और प्रगाढ़ करने में भूत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
भाई दूज कब मनाई जाती है? –
भैया दूज का पर्व दीपावली के दो दिन बाद कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वितीया को मनाया जाता है। लेकिन कई लोग होली के दूसरे दिन अर्थात चेत्र मास की कृष्ण पक्ष की द्वितीया को भी भाई दूज का त्यौहार मनाते हैं।
भैया दूज पाँच दिन के दीपोत्सव का आखरी त्योहार होता है। दीपोत्सव में सबसे पहले धनतेरस, फिर नरक/रूप चतुर्दशी, दीपावली, गोवर्धन पूजा और सबसे अंत में यम द्वितीया या भाई दूज मनाई जाती है।
भाई दूज – 2023
दिनांक | दिन | तिथि | मुहूर्त समय |
---|---|---|---|
9 मार्च 2023 | गुरुवार | चेत्र मास की कृष्ण पक्ष की द्वितीया | |
15 नवंबर 2023 | बुधवार | कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वितीया या दूज | 13:10 से लेकर 15:22 तक |
भाई दूज क्यों मनाई जाती है? –
ऐसी मान्यता है कि भाई दूज के दिन ही मृत्यु के देवता यम अपनी बहन यमुना के घर गए थे, और यमुना में ने उनका बहुत आदर-सत्कार किया और विविध प्रकार के व्यंजन बनाकर उन्हें भोजन कराया। उसके बाद उनके मस्तक पर मंगल तिलक किया। तब खुश होकर उन्होंने यमुना को मुँहमाँगा वरदान दिया कि “आज के दिन जो भी भाई अपनी बहन के घर जाकर टीका लगवाएगा वह यम के प्रकोप से बचा रहेगा।”
एक और कहानी भगवान कृष्ण और सुभद्रा की है कहते है, भगवान कृष्ण राक्षस नरकासुर को हराने के बाद अपनी बहन सुभद्रा के पास इसी दिन गए थे। सुभद्रा ने पुष्पों की माला से उनका स्वागत-सत्कार किया, उन्हें पुष्पों की माल पहनाई, उनके मस्तक पर कुमकुम का टीका लगाया और आरती की। माना जाता है कि उसी दिन से भाई दूज का त्यौहार शुरू हुआ।
एक दूसरी कहानी के अनुसार एक बहन अपने भाई पर आने वाली सारी विपत्तियों को अपने ऊपर लेकर अपने भाई की रक्षा करती है।
खैर कारण चाहे जो हो, भैया दूज का प्रमुख उद्देश्य भाई-बहन के पवित्र रिश्ते को और भी प्रगाढ़ करना है। भाई दूज के दिन जहाँ बहनें यम से अपने भाई की लंबी उम्र के लिए कामना करती है, वहीं भाई भी अपनी बहन के हर सुख-दुख में उसका साथ निभाने का वादा करते हैं।
माना जाता है कि जो भी पुरुष यम द्वितीया या भाई दूज के दिन अपनी बहन के हाथ से बना खाना खाता है, उसे धर्म, अर्थ, धन, आयुष्य और संसार के सभी प्रकार के सुख प्राप्त होते हैं।
भाई दूज की पूजा करते समय सही विधि और पूजन सामग्री के बारे में जानकारी होना बेहद जरूरी है।
पूजन सामग्री
ये जरूरी नहीं है कि आपके पास सभी छीजे होनी चाहिए क्योंकि यह दिखावे का नहीं प्रेम का त्योहार है, आप सीधे सादे ढंग से अपने भाई को सादा खाना खिला करके सिर्फ कुमकुम का तिलक करके भी उसकी लंबी आयु, स्वस्थ एवं सुखी जीवन की कामना कर सकती हैं
लेकिन यदि आप पूरी विधि से भाई दूज की पूजा करना चाहती हैं तो आपको पजा के लिए निम्नलिखित सामग्री की आवश्यकता होगी: –
सबसे पहले एक सादे कागज पर या घर के आँगन में चावल के आटे से चौक बनाए। चौक में सात भाई, एक बहन, चाँद, सूरज, मोर, सांप, बिच्छू, यम चित्रगुप्त आदि बनाए।
- पान के पत्ते (3-4)
- सुपारी (2)
- मुसल
- पुष्प
- पुष्पमाला
- चाँदी का सिक्का (1)
- दूब
- केला (5-6)
- घी का दीपक – 2 (मिट्टी, तांबे या चाँदी का दीपक, रुई की बाती, घी) (1 दीपक पूजा में रखने के लिए और एक दीपक पूजा/आरती की थाली में रखने के लिए।)
- नारियल या मावे की मिठाई या माखन-मिश्री
- पूजा/आरती की थाली
- पानी से भरा तांबे का कलश या रामझरा
- कुमकुम
- केसर
- हल्दी
- सिंदूर
- अक्षत (चावल के साबूत दाने)
- गुड़
- मोली या कलावा
- सूखा नारियल
- नारियल या मावे की मिठाई या माखन-मिश्री (1-2 टुकड़े)
- घी का दीपक
- धूप
- रुमाल
- पान
भाई दूज कैसे मनाई जाती है? –
इस दिन कुंवारी बहनें अपने पीहर में ही तथा शादीशुदा बहनें अपने ससुराल में भाई को आमंत्रित करके उसका तिलक करती हैं और उसके उज्ज्वल भविष्य के लिए आशीष देती हैं। यदि व्यस्तता के कारण भाई ना सा सके तो बहन भाई के घर जाकर भी तिलक कर सकती हैं।
- भाई दूज से पहले बहन अपने भाई को पूरे परिवार सहित घर पर आमंत्रित करती है, जिसे उसके भाई स्वीकार करते हैं।
- भाई दूज वाले दिन बहनें सुबह-सुबह जल्दी स्नान कर के स्वच्छ वस्त्र पहनती हैं तथा विविध प्रकार के व्यंजन बनाती है। (माना जाता है कि इस दिन अपने भाई को चावल से बना कोई एक मीठा व्यंजन जैसे खीर, खीरांद, पीले चावल या जाफरानी पुलाव आदि जरूर खिलाना चाहिए।)
- भाई दूज पूजन विधि
- भाई दूज के दिन सुबह स्नान आदि करने के बाद घर के मंदिर की सफाई करें।
- फिर आँगन में या दीवार पर चावल के आते से भाई दूज का चौक बनाए।
- इसके बाद सर्वप्रथम सुपारी पर मोली बांध कर एक पान के पत्ते पर गणेश जी की स्थापना करें। भगवान विष्णु व यम की मूर्ति या तस्वीर भी रख सकती है।
- इसके बाद गणेश जी, भगवान विष्णु, तथा और यम का पूजन करें। (दूब से पानी का छींटा देकर स्नान करवाएं, हल्दी, केसर व रोली-अक्षत से तिलक करें, वस्त्र (मोली) चढ़ाए, गुड़, फल व मिठाई का भोग लगाए।
- मूसल पर भी तिलक करे और कलावा या मोली बाँधे। उसके बाद वहां घी का दीपक तथा धूप जलाएं। इसके बाद भाई की लंबी उम्र व स्वस्थ जीवन की कामना करते हुए पूजा का मंत्र बोले। (मंत्र आगे दिया गया है।)
- चौक में बनाए गए सांप, बिच्छु आदि अपने भाई पर आने वाली विपत्ति मानते हुए उन्हें मुसल से मार के अपने भाई की उन विपत्तियों से रक्षा करती है। बहन मन ही मन ये भगवान से प्रार्थना करती है कि भगवान ना करें कि मेरे भाई पर कभी विपत्ति आए और यदि आए भी तो मुझे इतनी शक्ति मिले कि मैं अपने भाई की उनसे रक्षा कर सकूँ।
- इसके बाद भाई दूज की कहानी, यम-यमुना की कहानी, गणेश जी की कहानी, लपसी-तपसी की कहानी तथा असाबाड़ी की कहानी कहे व सुनें।
- इसके बाद में अपने भाई को उसके परिवार सहित श्रद्धा व प्यार से भोजन खिलाएं। (कई जगह भाई को तिलक लगाने के बाद खाना खिलाया जाता है तो कहीं पर खाना खाने से पहले तो अपने घर के रिवाज के अनुसार करें।)
- अपना सिर चुन्नी, ओढनी या साड़ी से ढंके तथा भाई के सिर पर भी रुमाल रखें। रुमाल ना हो तो मोली भी रखी जा सकती है।
- फिर अपने भाई के हाथ पर सिंदूर तथा पिसे चावल का लेप लगाये तथा पान का पत्ता, सुपारी और चांदी का सिक्का इत्यादि रखें।
- इसके बाद तांबे के लोटे या रामझरे से उसके हाथ पर धीरे-धीरे पानी डाले तथा भाई की दीर्घायु तथा सुखी जीवन की कामना करते हुए मंत्र पढ़ें। (मंत्र आगे दिया गया है।)
- इसके बाद अपने भाई वउसके पूरे परिवार के मस्तक पर कुमकुम और केसर को मिलाकर तिलक करें, हाथ पर कलावा बांधे, गुड़ व मिठाई से भाई का मुंह मीठा कराए तथा हाथ में सूखा नारियल दें। तत्पश्चात आरती करें।
- उम्र के अनुसार, अपने से बड़े के चरण छूकर आशीर्वाद लें।
- अपने भाई को खाना खिलाने के बाद ही बहन खाना खाती है।
- मान्यता है कि भोजन के बाद भाई को भाई को पान खिलाने या भेंट करने से बहनों का सौभाग्य अखण्ड रहता है।
- बहन से विदा लेते समय जिस तरह यम ने अपनी बहन को वरदान दिया था, उसी तरह भाई भी अपनी बहन को उपहारस्वरूप कुछ दे सकते है।
- यम द्वितीया के दिन शाम को घर में दिया-बत्ती के समय घर के प्रवेश द्वार पर चार बत्तियों से युक्त दीपक जलाकर रखना चाहिए।
कोई भी व्रत कथा हो ये तीन कहानियाँ जरूर कहनी व सुननी चाहिए।
गणेश जी की कहानी
लपसी-तपसी की कहानी
आसाबाड़ी की कहानी
इस दिन भाई-बहन यमुना नदी में स्नान कर यमराज की पूजा करते हैं, माना जाता है कि इस दिन जो भी भाई यमुना नदी में स्नान करके पूरी श्रद्धा से बहनों के आतिथ्य को स्वीकार करते हैं, उन्हें उस दिन मृत्यु का भागी नहीं बनना पड़ता, उसके सारे संकट टल जाते हैं, अगर उसे सांप भी काट ले, तो उसका कोई असर नहीं होता।
इस दिन जो भाई-बहन यमुनाजी में स्नान करके परे रीति-रिवाज से मृत्यु के देवता यमराज और उनकी बहन यमुनाकी पूजा करते हैं, उनको यमराज जी द्वारा यमलोक में यातनाएं नहीं दी जाती।
चचेरी, ममेरी, मौसेरी, या धर्म की बहनें भी अपने भाइयों को भाई दूज पर निमंत्रण दे सकती है। यदि कोई बहन न हो तो गाय, किसी नदी जैसे गंगा या यमुना का ध्यान करके या इसके समीप बैठ कर भोजन करना भी शुभफलकारी माना जाता है।
कई जगहों पर भाई दूज के दिन गोधन को कूटने की प्रथा भी निभाई जाती है। गोबर से मानव की मूर्ति बना कर उसकी कहती पर छाती पर ईंट रखकर उसे मूसल से तोड़ा जाता हैं। बहन अपनी जीभ को सुच्चा/भटकैया के कांटे से भी दागती हैं।
राहूकाल के दौरान तिलक ना करें।
भाई दूज के दिन बहन को देने वाले उपहार
भाई दूज की पूजा के मंत्र
भाई दूज की पूजा दे समय निम्नलिखित मंत्र बोले जा सकते है: –
पूजा के समय बोलने वाला मंत्र
गंगा पूजे यमुना को, यमी पूजे यमराज को, सुभद्रा पूजे कृष्ण को,
गंगा यमुना नीर बहे, मेरे भाई की उम्र बढ़े।
कलेवा या रक्षासूत्र बांधते समय बोलने वाला मंत्र
‘येन बद्धो बलि राजा, दानवेन्द्रो महाबल: तेन त्वाम् प्रतिबद्धनामि रक्षे माचल माचल:।
भाई की आरती करते हुए बोलने वाला मंत्र
केशवानन्न्त गोविन्द बाराह पुरुषोत्तम।
पुण्यं यशस्यमायुष्यं तिलकं मे प्रसीदतु।।
कान्ति लक्ष्मीं धृतिं सौख्यं सौभाग्यमतुलं बलम्।
ददातु चन्दनं नित्यं सततं धारयाम्यहम्।।
भाई दूज शुरू होने की कहानी : –
यमराज व यमुना दोनों सूर्य देव और संज्ञा की जुड़वा संताने हैं। उन दोनों में बहुत प्रेम था। संज्ञा सूर्य का तेज सहन न कर पाने के कारण अपनी छायामूर्ति का निर्माण कर उन्हें ही अपने पुत्र-पुत्री को सौंपकर वहाँ से चली गई। छाया को यम और यमुना से अत्यधिक लगाव तो नहीं था, किंतु यमुना अपने भाई यमराज से बड़ा स्नेह करती थीं।
बड़े होने पर यम को प्राणियों के प्राण हरने और उनके पापों के लिए उन्हें दंड देने का कार्य मिला और वे यमपुरी में बस गए। यमुना यमलोक में जीवों को कष्ट पाते नहीं देख सकीं इसलिए वे गोलोक में वास करने लगी। लेकिन उनका आपसी प्रेम कभी कम नहीं हुआ।
कालांतर में वहीं पर यमुना का विवाह श्री कृष्ण से हुआ। यमुना जब भी यमलोक आती तो हमेशा अपने भाई यमराज को अपने घर पर आने के लिए आमंत्रित करतीं रहती थी, लेकिन अत्यधिक व्यस्तता व अपने दायित्व के कारण यमराज उसके घर नहीं जा पाते थे।
एक बार कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितिया तिथि को यमुना ने अपने भाई यमराज को अपने घर आने का निमंत्रण भेजा। जिसे यम ने स्वीकार कर लिया। जब यम अपनी बहन यमुना के घर जाने लगे तो उनके मन में विचार आया कि मैं तो जीवों के प्राणों कर हरता हूँ और उनके पापों का दंड उन्हें देता हूँ। मुझे तो कोई भी अपने घर में नहीं बुलाना चाहता।
लेकिन मेरी बहन ने बड़े प्यार और श्रद्धा से मुझे अपने घर पर बुलाया है, जिसके लिए मेरा धर्म है की मैं उसके यहाँ पर जाऊँ। इसलिए आज के दिन मैं किसी के प्राणों को नहीं हरूँगा और ना ही किसी को कोई कष्ट दूँगा।
यह सोचकर उन्होंने नरक में निवास करने वाले सभी जीवों को मुक्त कर दिया। इसके बाद वे यमुना के घर पँहुच गए।
यमराज को अपने घर आया देखकर यमुना बहुत प्रसन्न हुई। उन्होंने बड़े प्रेम से उनका स्वागत किया और उन्हें विविध प्रकार के व्यंजन बनाकर खिलाए। उसके बाद उन्होंने उन्हें विदा करते हुए उनके मस्तक पर तिलक लगाया और आरती उतारी।
अपनी बहन का प्यार और आदर-सत्कार देख के यम बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने अपनी बहन यमुना से कोई वरदान मांगने के लिए कहा। तब यमुना ने यमराज से वर मांगा कि “आप प्रत्येक वर्ष आज के दिन मेरे घर पर जरूर आएं और आज के दिन जो भी बहन मेरी तरह अपने भाई को अपने घर बुलाकर उसका आदर-सत्कार और तिलक-आरती करें, उसको आपका भय ना रहे।”
यमराज ने यमुना को उनका मुँहमाँगा वर दे दिया और इसके साथ ही एक वरदान और दिया कि यदि आज के दिन कोई भाई-बहन साथ में यमुना में डुबकी लगाएंगे तो भी उन पर मेरा प्रकोप नहीं रहेगा। इसके बाद यम ने यमुना को ढेर सारा आशीर्वाद और वरस्त्राभूषण भेट किये और फिर अपनी यमपुरी चले गए।
कहते है तभी से भाई दूज का त्योहार मनाया जाता है और इस यम और यमुना की पूजा की जाती है। इस दिन कई भाई-बहन यमुना नदी में नहाने के लिए जाते हैं।
भाई दूज की कथा (1) : –
भाई दूज पर सात भाइयों की एक बहन की कथा भी कही जाती है, जो अपने भाई पर आने वाली सभी विपत्तियों को पहले अपने ऊपर ले लेती हैं, और अपने भाई के प्राणों की रक्षा करती है।
एक बूढी औरत के सात बेटे और एक बेटी थी। उसकी बेटी की शादी हो चुकी थी। अब बुढ़िया के बेटों की शादी की बारी थी। बुढ़िया के बेटो पर एक सांपों के राजा की कुदृष्टि थी। जब उसके पहले बेटे की शादी करवाई तो एक साँप ने उसका सातवाँ फेर पूरा होते ही उसे ड़्स लिया, जिससे उसकी मृत्यु हो गई।
उसके बाद तो उसके जिस भी बेटे की शादी होती, उसका सातवाँ फेरा पूरा होते ही साँप उस बेटे को डस लेता, जिससे उसकी मृत्यु हो जाती और उसकी नवविवाहिता उसी दिन विधवा हो जाती।
एक-एक करके बुढ़िया के छ: बेटे उस सर्प का ग्रास बन गए। समय आने पर बुढ़िया ने सातवें बेटे की शादी भी तय हो गई। लेकिन वह इस डर से बुढ़िया अपने सातवें बेटे की शादी करवाने से कतराने लगी कि कहीं उसकी भी मृत्यु ना हो जाये।
जब बहन ने यह देखा तो वह बहुत दुखी हुई और उसने इस समस्या का निवारण करने का सोचा।वह एक पँहुचे हुए ज्योतिषी के पास गई और उन्हें अपनी समस्या बतायाकर उससे इससे बचने का उपाय पूछा।
तब उस ज्योतिषी ने कहा, “तेरे सभी भाइयों पर एक सर्प की कुदृष्टि थी, तेरे छह भाइयों को तो वह अपना शिकार बना चुका है और तुम्हारे सातवें भाई के भी विवाह के सातवें फेरे में वह उसे भी डस लेगा। वह उसकी कुदृष्टि से तभी बच सकता है जब तू उसकी सारी बलाएं अपने ऊपर ले लें।”
बहन ने मन ही मन अपने भाई को बचाने का निर्णय ले लिया। वह अपने मायके आ गई और रोद्र रूप ले लिया। अब तो उसने जिद सी ही पकड़ ली थी कि जो भी काम उसका भाई करता, उसके पहले वो काम उसे करना होता।
यदि उसका कहना नहीं माना जाता, तो वो जोर-जोर से लड़ने लगती, अपने भाई को गालियाँ देती। ऐसे में घर में शांति बनाए रखने के लिए सब उसकी बात मान लेते। सब जगह उसकी बुराई और जग हँसाई होने लगी।
लेकिन उसे इसकी कोई प्रवाह नहीं थी, उसे तो हर हाल मने सिर्फ अपने भाई को काल से बचाना था। इसी तरह दिन बीतते हुए उसके भाई की शादी का दिन भी आ गया।
शादी के दिन जब बहन का पति अपने साले को सेहरा बांधने लगा तो बहन चिल्लाने लगी, “पहले मेरा मान करो, भाई से पहले सेहरा मैं पहनूँगी।” उसने वह सेहरा बहन को दे दिया। सेहरे के अंदर एक सांप था, जिसे बहन चुपके से निकाल कर बाहर फेंक दिया।
घुड़चढ़ी के समय उसने फिर से जिद पकड़ ली कि भाई से पहले मैं घोड़ी पर बैठूँगी। सब ने उए समझाने की कोशिश की लेकिन वो टस से मस नहीं हुई। आखिरकार पहले उसे घोड़ी पर बैठाया। घोड़ी की जीन में भी एक साँप बैठा हुआ था। बहन ने उसे भी पकड़ कर फेंक दिया।
फिर भाई को घोड़ी पर बैठाया और बारात दुल्हन के दरवाजे पर पँहुच गई। वहाँ दुल्हन के घरवाले दूल्हे के स्वागत के लिए उसे माला पहनाने लगे तो बहन ने फिर जिद पकड़ ली कि पहले मुझे माला पहनाओ। इस बार भी उसके आगे किसी की नहीं चली।
पुष्पों की माला में भी एक साँप था उसे भी बहन ने पकड़ कर फेंक दिया। इसके बाद फेरे शुरू हुए। जब बहन के कारण कोई भी सांप भाई को डस नहीं सका तो साँपों के राजा खुद फेरो के समय भाई को डसने के लिए आ गया।
जब बहन ने यह देखा तो उसे पकड़ कर एक टोकनी से ढक दिया। फेरे पूरे होने लगे साँप की पत्नी बहन के पास आई और बोली, “मेरे पति का दम घुट रहा है, मेरे पति को छोड़ दो।” तब बहन ने कहा, “पहले मेरे भाई से अपनी कुदृष्टि हटाओ, तब मैं तेरे पति को छोडूंगी।”
नागिन ने ऐसा ही किया और उसके भाई को ना डसने का वचन दिया। तब बहन ने सांपों के राज्य को मुक्त कर दिया। इस प्रकार बहन ने दुनियाँ के सामने अपने आप को बुरा बनाकर भी अपने भाई के प्राणों की रक्षा की।
भाई दूज की कथा (2)
एक बूढी औरत के सात बेटे और एक बेटी थी। उसने अपनी बेटी की शादी कर दी थी। अब बुढ़िया के बेटों की शादी की बारी थी। बुढ़िया के बेटो पर एक सर्प की कुदृष्टि थी। जब उसके पहले बेटे की शादी करवाई तो उस सर्प ने उसका सातवाँ फेर पूरा होते ही उसे ड़्स लिया, जिससे उसकी मृत्यु हो गई।
उसके बाद तो उसके जिस भी बेटे की शादी होती, उसका सातवाँ फेरा पूरा होते ही वह सर्प उस बेटे को डस लेता जिससे उसकी मृत्यु हो जाती और उसकी नवविवाहिता उसी दिन विधवा हो जाती।
एक-एक करके बुढ़िया के छ: बेटे उस सर्प का ग्रास बन गए। छ: बेटों के मरने के दुख में बूढ़ी औरत अंधी हो गयी। समय आने पर बुढ़िया ने सातवें बेटे की शादी भी तय हो गई। लेकिन वह इस डर से बुढ़िया अपने सातवें बेटे की शादी करने के लिए मना कर दिया कि कहीं उसकी भी मृत्यु ना हो जाये।
उधर बहन हर बार अपने ससुराल में भाई दूज के दिन सभी अड़ोस-पड़ोस वाली महिलायें अपने भाई का तिलक व आरती करटे हुए देखती। एक दिन जब उसने उनसे इसका कारण पूछा तो उन्होंने कहा, “आज के दिन भाई को अपने हाथों से बना खाना खिलाए, उसका तिलक व आरती करें तो भाई की उम्र लंबी होती है और उसके सारे संकट दूर हो जाते है।
बहन ने सोचा कि मैं भी अपने भाई को सांप से बचाने के लिए, उसे अपने घर पर आमंत्रित करूंगी और उसे अपने हाथों से भोजन खिला कर उसका तिलक व आरती करके उसकी लंबी आयु की प्रार्थना करूंगी।
अगली भाई दूज पर उसने अपने भाई को अपने घर आने का निमंत्रण दिया जिसे भाई ने स्वीकार कर लिया। भाई के आने की खबर सुनकर बहन की खुशी का ठिकाना ही नहीं रहा। उसे यह पता नहीं था कि भाई दूज को भाई के लिए क्या पकवान बनाते हैं?
तब वह अपनी पड़ोसन के यहाँ गई और उससे पूछा, “दीदी, इस भाई दूज पर मेरा भाई आ रहा है, आप बताओ मैं क्या करूँ और उसे क्या बना के खिलाऊँ ?
पड़ोसन उससे चिढ़ती थी। उसने उससे कहा, “जब तुम्हारा भाई आ जाए तो रसोई को दूध से लीपना, और घी से चावल पकाना।” बहन ने ऐसा ही करने का विचार किया।
उधर भाई दूज के दिन बुढ़िया के सातवें बेटे ने अपनी माँ से कहा, “माँ, आज भाई दूज है। मैं दीदी के यहाँ जा रहा हूँ। बुढ़िया ने कहा, “हाँ, ठीक है, लेकिन ध्यान से जाना।”
माँ से आज्ञा लेकर भाई बहन के गाँव की तरफ चल पड़ा। रास्ते में उसे एक सांप मिला जो तेजी से उसकी तरफ ही आ रहा था। सांप ने उसके निकट आने के बाद उसे काटने के लिए जैसे ही अपना फन उठाया भाई ने उससे कहा, “भाई, मैंने आपका क्या बिगाड़ा है जो आप मुझे काटना चाहते हो?
साँप ने कहा, “मै तुम्हारा काल हूँ, और तुम्हें यमराज के पास पहुँचाने के लिए आया हूँ।”
भाई ने साँप से विनती करते हुए कहा, “भैया, आप मुझे मत काटो। मेरी बहन अपने घर पर मेरा बेसब्री से इंतजार कर रही है। मेरे अलावा उसका और कोई भी भाई जीवित नहीं बचा है। अगर उसे पता चला कि मेरी भी मृत्यु हो गई है, तो वो भी मर जाएगी। इसलिए आप मुझे जाने दो। वापस लौटते समय तुम मुझे काट लेना। “
तब साँप ने कहा, “तुम्हें क्या लगता है कि मैं तुम्हारी बातों में आ जाऊंगा और तू मुझे बेवकूफ बना के चला जाएगा। तुम मरने के लिए वापस मेरे पास थोड़े ही आओगे। मैं तुम पर विश्वास नहीं कर सकता।”
तब भाई ने कहा, “यदि तुम्हें मुझ पर विश्वास नहीं है, तो तुम मेरे झोले में बैठ जाओ। जब मेरी बहन भैया दूज की पूजा करके मेरा तिलक कर ले तो उसके बाद तुम मुझे डस लेना।”
सांप ने उसकी यह बात माँ ली और वह उसके झोले में जाकर बैठ गया। भाई बहन के घर पहुंचा। भाई को देखकर बहन की आँखों से खुशी के आँसू निकल आए। वह जल्दी से पड़ोसन के बताए अनुसार रसोई को दूध से लीपने लगी और घी में चावल पकाने लगी।
यह देखकर भाई ने कहा, “दीदी, यह क्या कर रही हो, रसोई को भी कभी दूध से लीपते है और चावल भी कभी घी में पकते है क्या?”
तब बहन ने कहा, “भैया, मेरी पड़ोसन ने मुझसे ऐसा करने के लिए कहा था।”
तब भाई ने कहा, “दीदी, गोबर से रसोई को लीपों और चावलों को दूध में पकाओ।”
तब बहन ने ऐसा ही किया और चावलों से बनी खीर भाई को खिलाई फिर उसका तिलक करके आरती उतारी। इतने में बहन के बच्चे आ गए। उन्होंने उसके पास आकर कहा, “मामा-मामा आप हमारे लिए क्या लाए?” और उसके मना करते-करते भी उसका झोला उठा लिया, जिसमें साँप था और उसे खोल कर देखने लगे।
इसी बीच वह साँप ऊखल में जाकर छुप गया। झोली में से साँप नहीं होरे का हार निकला। उस हार को देखकर बहन ने कहा, “भैया, ये इतना सुंदर हार तुम मेरे लिए लाए हो?”
भाई ने कहा, “तुम्हें अच्छा लगा तो तुम रख लो।”
इसके बाद बहन ने अपने भाई के साथ भेजने के लिए लड्डू बनाने के लिए ऊसल में धान कुटा और उससे लड्डू बनाए।
थोड़ी देर बाद भाई ने अपनी बहन से विदा माँगी। बहन ने उसके साथ कुछ लड्डू बांध दिए। भाई विदा लेकर अपने घर की तरफ रवाना हो गया। थोड़ी दूर जाने पर उसे नींद आने लगी. तब वह एक पेड़ के नीचे सो गया।
उधर भाई के जाने के बाद बहन के बच्चों ने अपनी माँ से खाना माँगा। तब उसने कहा, “अभी खाना बनने में देर लगेगी।”
तब बच्चों ने कहा, “हमें तो वो लड्डू खाने है जो तुमने मामा को दिए थे।”
बहन ने कहा, “कुछ लड्डू ऊसल के पास पड़े है, जाकर ले लो।”
बच्चे जब ऊसल के पास गए तो वहाँ पर साँप की हड्डियाँ पड़ी थी। उन्होंने जल्दी से आकर अपनी माँ को बताया।
अनिष्ट की आशंका से बहन घबरा गई और जल्दी से बाहर भागी। लोगों से पूछने पर पता चला कि उसका भाई थोड़ी ही दूरी पर एक पेड़ के नीचे सो रहा है। वह दर गई और भागते हुए उस पेड़ के पास गई। वहाँ उसका भाई सो रहा था। उसने हड़बड़ी में उसे उठाया और पूछा, “भैया, तुमने मेरे दिए हुए लड्डू तो नहीं खाये हैं ना।”
भाई ने कहा, “नहीं दीदी, ये रहे तुम्हारे लड्डू, लेकिन दीदी ऐसा क्या हो गया, जो तुम भागते हुए मेरे पास आइ हो?”
तब बहन ने भाई को यारी बात बताई। तब भाई ने भी साँप वाली घटना अपनी बहन को बताई। बहन को लगा कि कुछ अच्छा नही हो रहा है, तब उसने अपने भाई से कहा, “अब मैं भी तेरे साथ घर चलूँगी, अब मैं तेरी शादी तक तुझे एक पल के लिए भी अकेले नहीं छोड़ूँगी।”
भाई ने कहा, “जैसी तुम्हारी मर्जी दीदी।”
चलते-चलते बहन को प्यास लगी, उसने अपने भाई से कहा, “भैया, मुझे प्यास लगी है, पानी पीना है।”
भाई ने चारों तरफ नजर दौड़ाई। उसने देखा एक तरफ चील उड़ रही थी उसने कहा, “दीदी, उस तरफ चील उड़ रही है, वहाँ पानी जरूर होगा। मैं आपके लिए पानी ले आता हूँ।”
बहन ने कहाँ, “नहीं, तू यहीं रुक, मै अभी पानी पीकर आती हूँ।”
इतना कहकर वह पानी पीने चली गई। जब वह पानी पी कर लौट रही थी तो उसने देखा कि एक जगह जमीन में 6 शिलाएँ गड़ी हैं और उनके पास ही एक बिना गड़ी हुई रखी है। वहाँ पर एक बुढ़िया बैठी हुई थी। बहन ने उससे पूछा, “ये सब क्या है?”
तब उस बुढ़िया ने बताया, “किसी एक औरत के सात बेटे है, जिनमे छ: की शादी के समय साँप काटने से मृत्यु हो गयी थी। अब जब भी उसके सातवें बेटे की शादी होगी तब उसे भी साँप डस लेगा और ये आखिरी शीला भी बाकियों की तरह जमीन में गड़ जाएगी।”
बहन ने जब ये सुना तो उसके होश उड़ गए क्योंकि वह समझ गयी थी कि यह सब बातें उसके भाइयों के बारे में ही है। उसने उस बूढ़ी औरत को पूरी बात बताई और कहा, “ये सब मेरे भाई ही थे, अब मैं अपने सातवें भाई को बचाने के लिए क्या करूँ?”
तब उस बूढ़ी औरत ने उसे बताया, “यदि तुम अपने भाई की विपत्ति अपने ऊपर ले लो तो तुम्हारे भाई की जान बच सकती है।” तो उसने पूछा, “वह कैसे?” तब उस बुढ़िया ने उसे अपने भाई को बचाने का तरीका बता दिया।
अपने भाई की जान बचाने के लिए बहन सब करने को तैयार हो गयी। बूढ़ी औरत के कहे अनुसार बहन ने अपने बालों को खोल लिया और अपने भाई के पास गयी। उसके पास जाकर वह जोर-जोर से बोलने लगी “तू तो जलेगा, कटेगा, मरेगा।”
भाई ने बहन की ये हालत देख कर सोचा कि दीदी को ये क्या हो गया है? दीदी तो पानी पीने गयी थी। लगता है दीदी पर कोई चुड़ैल आ गयी है। बड़ी मुश्किल से वह अपनी बहन को लेकर अपने घर पँहुचा और सारी बात अपनी माँ को बताई।
कुछ दिन बाद भाई की शादी का समय आ गया। जब भाई को जब सेहरा पहनने की बारी आई तो बहन ने कहा, “नहीं सेहरा में पहनुंगी, ये तो जलेगा मरेगा, कुटेगा।”
तो भाई ने सेहरा अपनी बहन को दे दिया। सेहरे की कलंगी की जगह एक साँप था, जिसे बहन ने निकाल कर फेंक दिया।
अब जब बारात घर से निकलने लगी तब बहिन बोली, “ये क्यूँ आगे के दरवाजे से निकलेगा, ये तो पीछे के रास्ते से जाएगा। आगे के दरवाजे से तो मैं निकलूंगी। जैसे ही वह दरवाजे के नीचे से निकली दरवाजा अचानक गिरने लगा उसने जल्दी से एक ईंट उठा कर अपनी चुनरी में रख ली, दरवाजा वही की वही रुक गया।
इसके बाद एक साँप घोड़ी की जीन में जाकर छुप गया। जब भाई के घोड़ी पर बैठने के बारी आई दिया तब भी बहन ने घोड़ी पर पहले बैठने की जिद पकड़ ली और उसमें से भी साँप को निकाल कर फेंक दिया।
रास्ते में एक जगह बारात रुकी तो लोग भाई को पीपल के पेड़ के नीचे छाँव में खड़ा करने लगे। तब बहिन ने जिद पकड़ ली, “ये क्यूँ छाँव में खड़ा होगा, ये तो धूप में खड़ा ही रहेगा। छाँव में तो मैं खड़ी रहूँगी।” भाई धूप में ही खड़ा रहा और बहन पेड़ के नीचे छाँव में चली गई।
जैसे ही वह पेड़ के नीचे खड़ी हुई, पेड़ गिरने लगा। बहिन ने एक पत्ता तोड़ कर अपनी चुनरी में रख लिया, पेड़ वहीं के वहीं रुक गया।
इसके बाद एक साँप दूल्हे के स्वागत के लिए रखी गई माला में जाकर छुप गया। जब भाई के ससुराल वाले उसे माला पहनाने लगे तो बहन ने फिर माला पहले पहनने की जिद पकड़ ली। और माला में से साँप को निकाल कर फेंक दिया।
इस प्रकार साँपों ने बहुत कोशीश की लेकिन हर बार बहन ने अपने भाई की रक्षा की। अंत में साँपों का राजा खुद उसके भाई को डसने के लिए आया और मंडप में गद्दे के नीचे छुप गया।
तब बहन ने दुल्हन के कान में कहा, “अब तक तो मैने तेरे पति को बचा लिया है, लेकिन अब आगे का काम तुझे करना है। अब तुम ही अपने पति को बचा सकती हो और साथ ही अपने मरे हुए जेठों को भी वापस ला सकती हो।
फेरों के समय एक नाग आया, वो जैसे ही दूल्हे को डसने को हुआ, दुल्हन ने उसे एक लोटे में भर के उपर से प्लेट से बंद कर दिया। थोड़ी देर बाद नाग की पत्नी नागिन लहराती हुई वहाँ आई और दुल्हन से बोली, “मेरे पति का दम घुट रहा है। तू मेरे पति को छोड़ दे।”
दुल्हन ने कहा, “पहले तू मेरा पति छोड़ तब मैं तुम्हारे पति को छोड़ूँगी।”
नागिन ने कहा, “ठीक है, मैने तेरा पति छोड़ा।”
दुल्हन ने कहा, “ऐसे नहीं, पहले तीन बार बोल कर वचन लो।”
नागिन ने 3 बार बोलकर वचन दिया और फिर दुल्हन से अपने पति को छोड़ने के लिए कहा। तब दुल्हन बोली, “एक मेरे पति से क्या होगा, घर में हुक्म चलाने के लिए कोई तो बड़ा होना चाहिये। पहले तुम मेरे एक जेठ को छोड़ दोगी तब मैं तुम्हारे पति को छोड़ूँगी।”
नागिन ने उसके एक जेठ को छोड़ दिया और फिर अपने पति को छोड़ने के लिए कहा। तब दुल्हन ने कहा, “केवल हुक्म चलाने वाले से क्या होता है, घर में हँसने-बोलने के लिए भी तो कोई चाहिए, इसलिए मेरे एक जेठ को और छोड़।”
नागिन ने उसके एक जेठ को और छोड़ दिया और फिर अपने पति को छोड़ने के लिए कहा। तब दुल्हन ने कहा, “केवल हुक्म चलाने वाले और हँसने-बोलने वाले से क्या होता है कोई लड़ने वाला भी तो चाहिए, इसलिए मेरे एक जेठ को और छोड़।”
नागिन ने उसके एक जेठ को और छोड़ दिया और फिर अपने पति को छोड़ने के लिए कहा। तब दुल्हन ने कहा, “यदि इनमें से कोई परदेश चला गया तो फिर मैं क्या करूंगी इसलिए मेरे एक और जेठ को छोड़, तभी मई तुम्हारे पति को छोड़ूँगी।”
हसने बोलने क लिए जेठ भी तो होना चाहिए, एक जेठ भी छोड़| नागिन ने जेठ के भी प्राण दे दिए| फिर दुल्हन ने कहा- एक जेठ से लड़ाई हो गयी तो एक और जेठ छोड़| वो विदेश चला गया तो तीसरा जेठ भी छोड़| इस तरह एक एक करके दुल्हन ने अपने 6 जेठ जीवित करा लिए|
इस तरह ऐसे ही बहाने बना-बना कर नयी दुल्हन ने अपने सभी छ: जेठों को छुड़ा लिया।
उधर घर में बुढ़िया का रो-रो कर बुरा हाल था क्योंकि उसे लग रहा था कि आज उसके सातवें बेटे की भी मृत्यु हो जाएगी। तभी उसे किसी ने आकर बताया कि उसके सभी बेटे नई वधू के साथ आ रहे है। बुढ़िया को उसकी बात पर विश्वास नहीं हुआ।
वह भगवान के मंदिर में गई और प्रार्थना की, “हे भगवान! यदि यह बात सच है तो मेरी आँखें ठीक हो जाए और मेरे सीने से दूध की धार बहने लगे।”
तभी बुढ़िया को सब दिखाई देने लगा और उसके सीने से दूध की धार बहने लगी। उसने अपनी सभी बहुओं को सोलह शशृंगार करने को कहा और सभी ने मिलकर नए वर-वधू तथा बुढ़िया के सभी बेटों की आरती उतार कर घर में प्रवेश करवाया।
अपनेसभी बेटों को जीवित देख कर बुढ़िया बहुत खुश हुई। जब उसे पता चला कि यह सब उसकी बेटी के अपने भाई के प्रति प्रेम के कारण हुआ है तो वह अपनी बेटी से मिलने को आतुर हो गई। लेकिन वहाँ पर उसकी बेटी नहीं थी।
अब अभी भाई अपनी बहन को सभी अपनी बहन को ढूँढने लगे। उन्होंने देखा कि उनकी बहन तो भूसे की कोठरी में सो रही थी। उठने के बाद वह विदा लेकर अपने घर को जाने लगी तो माँ लक्ष्मी भी उसके पीछे-पीछे जाने लगी।
तब बुढ़िया माँ ने कहा, “बेटी, पीछे मुड़ कर देख, क्या सारी लक्ष्मी भी अपने साथ ही ले जाएगी? फिर तेरे भाइयों व भाभियों के लिए क्या रहेगा?”
तब बहन ने पीछे मुड़कर माँ लक्ष्मी से हाथ जोड़कर कहा, “हे माँ लक्ष्मी, जो भी कुछ मेरी माँ और मेरे भाइयों ने अपने हाथों से मुझे दिया है, वह मेरे साथ चले और बाकी का सब मेरे भाई-भाभी के पास ही रह जाए।”
तब माँ लक्ष्मी वहीं रुक गई और उस घर को धन-धान्य से भर दिया। इस तरह बहन ने अपने भाई को जीवनदान ही नहीं दिया बल्कि उनके घर पर माँ लक्ष्मी का आशीर्वाद भी दिलवाया।
भाई दूज की कथा (3)
सात भाई की एक बहिन के थी। बहन बहुत ही गुणवान व चतुर थी। सातों भाई अपनी बहन से बहुत प्यार करते थे। बहन की शादी बचपन में ही हो गई थी। लेकिन बड़े हो जाने के बाद भी ससुराल से उसका गौना नहीं करवाया गया था।
उसका पति अपने माता-पिता का इकलौता बेटा था, जो कि देवता की मनौती मांगने पर पैदा हुआ था। लेकिन बेटा होने के बाद उसके माँ-बाप देवता की मनौती पूरी करना भूल गए। जिसके कारण देवता अप्रसन्न हो गए।
देवताओं ने क्रुद्ध होकर उनके पुत्र तथा पुत्रवधु दोनों को मार डालने का निर्णय कर लिया। यह बात उनकी पुत्रवधु सात भाइयों की बहन को किसी पता चल गई। तब उसने अपनी व अपने पति की रक्षा करने का निशक्य किया और अपने भाइयों से अपने ससुराल जाने की आज्ञा मांगी।
लेकिन उसके सातों भाई इसके लिए सहमत नहीं थे। वे ससुराल से बुलावा आए बिना अपनी बहन को ससुराल नहीं भेजना चाहते थे। उन्होनें अपनी बहन से कहा, “बिण बुलाए तुम्हें ससुराल भेजना तुम्हारा ही नहीं हमारा भी अपमान है।”
लेकिन जब बहन ने जिद पकड़ ली तो अपनी बहन के प्रेम के कारण वे उसकी बात इस शर्त पर मान गए कि अपना कार्य पूरा करके वह वापस आ उनके पास आ जाएगी और ससुराल से विधिवत बुलावा आने पर ही ससुराल जाएगी।
बहन ने भी अपने भाइयों की यह शर्त स्वीकार कर ली। तब उसके भाइयों ने बहन को डोली में बैठा कर विदा कर दिया। बहन ने अपने साथ एक कटोरे में थोड़ा सा दूध, माँस के कुछ टुकड़े और एक ओढ़नी ले ली।
थोड़ी दूर जाने पर देवताओं के प्रकोप के कारण एक साँप ने डोली का रास्ता रोक लिया। बहिन तुरंत दूध का कटोरा साँप के सामने रख दिया। साँप दूध पीने में व्यस्त हो गया और बहन जल्दी से आगे बढ़ गई।
थोड़ी दूर और आगे जाने सामने से एक शेर आ गया और बहन को मारने के लिए वह उस पर झपटा। तब उसने अपने साथ लाए हुए माँस के टुकड़े उसके सामने बिखेर दिए। शेर उसे छोड़कर माँस के टुकड़े खाने में वेस्ट हो गया और उसकी डोली आगे बढ़ गई।
आगे के रास्ते में उसे यमुना जी को पार करके जाना था। ज्योंही कहारों ने डोली को यमुना से पार कराने लगे, यमुना में ऊँची-ऊँची लहरें उठने लगी और डोली यमुना में डूबने लगी। तब बहन ने यमुना जी को ओढ़नी समर्पित की जिससे प्रसन्न होकर यमुना जी ने अपनी लहरों को शांत कर लिया।
यमुना पार करके वह अपने ससुराल पँहुच गई। नववधू को बिना बुलाए घर में आया देखकर उसके ससुराल वाले आश्चर्य में पड़ गए। लेकिन फिर वे नववधू के गृह प्रवेश के लिए तैयारी करने लगे, तभी बहन ने उनको कहा, “मैं घर के पीछे से गृह प्रवेश करूंगी, मेरे लिए घर के पिछवाड़े में फूलों का दरवाजा बनवाया जाये।”
यह देखकर ससुराल वाले आश्चर्य करने लगे कि यह कैसी बहु है, जो आते ही नखरे करने लगी। लेकिन फिर भी उन्होनें उसके लिए घर के पिछवाड़े में फूलों का दरवाजा बना दिया। नववधू जैसे ही उसे पार करके घर के अंदर जाने लगी, वह फूलों का द्वार उस पर गिर पड़ा, लेकिन फूलों का द्वार होने के कारण उसे चोट नहीं लगी।
घर में प्रवेश करते ही उसने कहा, “मुझे बहुत भूख लागि है, मैं सबसे खाना खाऊँगी।” ससुराल वालों ने उसे खाना परोस दिया। जब वह खाना खाने लगी तो खाने में उसे सुच्चा काँटा मिला, जिसे उसने एक डिबिया में सहेज कर रख लिया।
शाम को जब घूमने का समय आया तो उसने भागकर सबसे पहले जूता पहना। जूते में काला बिच्छू था। उसने उस बिच्छू को मारकर उसे भी अपनी उसी डिबिया में सहेज कर रख लिया। रात हुई तो उसने फिर से जिद्द पकड़ ली कि कमरे में पहले मैं ही सोऊंगी।
हालांकि नववधू का हर काम के लिए पहल व जिद करना उसके ससुराल में किसी को भी अच्छा नहीं लग रहा था लेकिन परिस्थिति वश सब चुपचाप उसकी बात मान रहे थे।
जब वह सोने के कमरे में गई तो वहाँ पर सेज पर एक काला नाग बैठा हुआ था। उसने उसे भी मार कर अपनी डिबिया में सहेज लिया। इसके बाद उसने अपने पति को उस शय्या पर सुलाया।
पति के सोने के बाद वह अपनी सास के पास गई और उन्हें अपनी डिबिया को खोल कर सुच्चा काँटा, बिच्छू और साँप दिखाते हुए कहा, “आपके द्वरा देवताओं की मनौती पूर्ण नहीं करने के कारण आपके पुत्र व मुझ संकट था लेकिन मैंने सभी संकट मेरे ऊपर लेकर आपके पुत्र व मेरे पति की रक्षा की है। अब सबसे पहले आप अपने देवताओं को बोली गई मनौती पूरी कीजिए और भविष्य में कभी मनौती मांग कर उसे पूरा करना न भूलना। मैं बिन बुलाए यहाँ अपने सुहाग की रक्षा करने के लिए आई थी और अब मैं वापस जा रही हूँ। ”
इतना कहकर सात भाईयों की परम प्यारी बहिन वापस अपने भाईयों के पास पीहर लौट गई। तब उसकी सास ने सभी रीति-रिवाजों से अपनी बहू को गृह प्रवेश करवाया और देवताओं की मनौती पूरी की।
सास ने देवी देवताओं का पूजन करके अपनी बहू के भाईयों के बहन के प्रति प्रेम की प्रशंसा की तथा उनके सुखी होने का आशीष दिया।
आप ऊपर दी गई इन तीन कथाओं में से कोई सी भी एक कथा कह-सुन सकते हैं।
भाई दूज व रक्षाबंधन के बीच अंतर
भाई दूज एवं रक्षाबंधन दोनो ही भाई व बहन के बीच मनाया जाने वाले त्योहार है। दोनों में ही भाई-बहन एक-दूसरे की रक्षा करने तथा हर सुख दुख में साथ देने का संकल्प लेते है। लेकिन फिर भी इनमें थोड़ा सा अंतर होता है।
- भाई दूज पर भाई अपनी बहन के घर जाते है जहाँ पर बहन अपने भाई के माथे पर तिलक लगाकर आरती करती हैं, जबकि रक्षाबंधन के दिन बहनें अपने भाई के घर जाकर उसकी कलाई पर राखी/रक्षासूत्र बांधती हैं।
- रक्षाबंधन में बहनें अपने भाई की कलाई पर राखी/रक्षासूत्र बांधती है और भाई अपनी बहन की रक्षा करने का वचन देता हैं, जबकि भाई दूज के दिन बहन अपने भाई के माथे पर तिलक लगा कर उसकी रक्षा की कामना करती हैं।
निष्कर्ष
भाई दूज का पावन त्योहार भाई-बहन के परस्पर प्रेम तथा स्नेह का प्रतीक है जो पूरे भारत देश में मनाया जाता है। इस दिन बहनें अपने भाईयों के मस्तक पर तिलक लगाकर और उनकी आरती उतार कर उनके उज्ज्वल भविष्य और लम्बी उम्र की कामना करती हैं।
इस दिन यम व यमुना की पूजा करके उनसे उनके जैसा भाई-बहन का प्रेम और अपने भाई की लंबी उम्र, स्वस्थ जीवन व सुख के लिए प्रार्थना की जाती है। भैया दूज का प्रमुख उद्देश्य भाई-बहन के मध्य सद्भावना तथा एक-दूसरे के प्रति निष्कपट प्रेम को प्रगाढ़ करना है।
भैया दूज के दिन ही पाँच दिनों तक चलने वाला दीपावली उत्सव भी समाप्त हो जाता है।
मैंने आपको अपनी इस Post में भाई दूज से जुड़ी कई जानकारियाँ दी है, भाई दूज का महत्व, इसे क्यों और कैसे मनाया जाता है। वैसे तो हर प्रदेश के रीति रिवाज अलग होते हैं लेकिन फिर भी मैंने अपनी तरफ से पूरी भाई दूज से जुड़ी अधिकतर जानकारी आप तक पँहुचाने की चेष्टा की है।
आशा करती हूँ कि आप सभी को मेरी याह Post पसंद आई होगी। यदि हाँ, तो इसे Like व Share करना ना भूले और यदि मुझसे कोई त्रुटि हो गई हो तो उसे अवश्य बताएं जिससे में उसमें सुधार कर सकूँ।
बाय-बाय!
आपकी सुविधा के लिए में भाई दूज का चौक बनाने के कुछ वीडियो के लिंक दे रही हूँ, इन्हे देखकर आपको भाई दूज का चौक बनाने में आसानी होगी।
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माँ लक्ष्मी जी की आरती – ॐ जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता
श्री गणेश जी की – जय देव जय देव, जय मंगल मूर्ति
श्री गणेश जी का भजन – महाराज गजानंद आवो नी
श्री गणेश जी का भजन – गाइये गणपति जगवंदन
श्री शंकराची आरती – जय देव जय देव जय श्रीशंकरा
माँ दुर्गा की आरती – जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी