बीरबल का ख़िताब – Birbal Ka Khitaab
अकबर बीरबल के किस्से – बीरबल का ख़िताब – Birbal Ka Khitaab – How Birbal Got His Title
नमस्कार दोस्तों, अपने वादे के मुताबिक मैं फिर आपके सामने हाजिर हूँ आपको हमारे हीरों बीरबल से मिलाने के लिए। उम्मीद है कि आप लोगो को पिछले किस्सों में मेरा अंदाजे बयां पसंद आया होगा। यदि हाँ तो फिर देर किस बात की दोस्तों फटाफट इन्हें शेयर करिए और मेरी वेबसाइट को बुकमार्क कर लीजिये।
यदि नहीं तो आपके सुझावों का स्वागत है। मैं आपके वाजिब सुझावों के आधार पर सुधार करने की पूरी कोशिश करुँगी। पिछले किस्से में अकबर ने महेश दास को अपने दरबार में नियुक्त करने की घोषणा कर दी थी। अब हम चलते है महेश दास के बीरबल बनने के सफ़र की ओर ……
महेश दास के दरबारी पद को चुनौती
बादशाह अकबर द्वारा महेश दास की दरबार में नियुक्ति की घोषणा के बाद पुरे दरबार में फुसफुसाहट शुरू हो गई। कई दरबारी तो अकबर के इस निर्णय से प्रसन्न थे तो कई नाख़ुश। अपने दरबारियों को आपस में फुसफुसाहट करते देख अकबर ने कहा, “लगता है आप सभी मेरे इस निर्णय से खुश नहीं है।”
तो एक दरबारी ने कहा, “जहाँपनाह, हमें आप पर और आपके निर्णय पर पूर्ण विश्वास है। लेकिन हमें लगता है कि ईनाम तक तो ठीक था लेकिन महेश दास को एक ही मुलाक़ात मैं दरबारी के पद पर नियुक्त करना क्या जल्दबाज़ी नहीं है ?”
अकबर ने कहा, “मैं अपने सभी निर्णय आप सभी से विचार विमर्श करके ही लेता हूँ। लेकिन महेश दास ने दो मुलाकातों में ही मुझे इतना प्रभावित कर दिया कि मुझे लगा कि यह शख्स हमारे दरबार की शान को और बढ़ाएगा। लेकिन फिर भी आप लोग महेश दास की बुद्धि की परीक्षा लेना चाहों हो तो ले सकते हो। परीक्षा में सफ़ल होने पर ही इसकी नियुक्ति दरबारी के पद पर की जाएगी।”
बीरबल की मुल्ला दो प्याजा को चुनौती
नाख़ुश दरबारियों ने आपस में सलाह मशवरा करके मुल्ला दो प्याजा को महेश दास की परीक्षा लेने के लिए कहा। मुल्ला दो प्याजा ने अकबर से कहा, “गुस्ताखी माफ हो हुज़ूर, मैं महेश दास से एक प्रश्न पूछूँगा। यदि वह उत्तर नहीं दे पाया तो उसे दरबारी का पद तो नहीं मिलेगा और उसे सज़ा भी दी जाएगी।”
अकबर ने महेश दास की तरफ देखा तो महेश दास ने कहा, “मुझे चुनौती मंज़ूर है जहाँपनाह, लेकिन चुनौती तो दोनों को मिलनी चाहिए। मेरे हारने पर मुझे क्या मिलेगा ये निर्णय तो हो गया लेकिन यदि मैं जीत गया तो मुल्ला दो प्याजा क्या करेंगे ?”
मुल्ला दो प्याजा ने बड़े आत्मविश्वास से कहा, “ठीक है मुझे भी चुनौती मंज़ूर है, यदि मैं हार गया तो आज से पूरे एक महीने तक मैं जब भी महेश दास से मिलूँगा तो हुज़ूर कहते हुए सजदा करूंगा।”
मुल्ला दो प्याजा का सवाल
मुल्ला दो प्याजा की चुनौती सुनकर दरबारी अचंभित रह गए। लेकिन मुल्ला दो प्याजा तो अपने आप को बहुत बुद्धिमान समझते थे (इस बात में कोई दो राय नहीं है कि मुल्ला दो प्याजा भी बहुत ही बुद्धिमान थे, लेकिन उन्हें यह नहीं पता था कि आज जिससे उनका सामना होने वाला है, वह उनसे भी दो कदम आगे है)। उन्हें पूरा विश्वास था कि वे ही जीतेंगे।
महेश दास ने कहा, “अपना प्रश्न पूछिये हुज़ूर।” मुल्ला दो प्याजा ने अकबर की तरफ देखा और कहा, “इजाज़त है हुज़ूर।” अकबर, “इजाज़त है, अपना प्रश्न पूछिये।” मुल्ला दो प्याजा कुटिलता से मुस्कुराए और महेश दास से पूछा, “हाँ तो महेश दास ये बताइए कि मेरे मन में इस वक्त क्या चल रहा है यानि मैं इस वक्त क्या सोच रहा हूँ।”
मुल्ला दो प्याजा अपनी चाल पर आश्वस्त थे। उनकी सोच थी कि महेश दास उनके इस प्रश्न का उत्तर नहीं दे पायेंगा। भला कोई ये कैसे बता सकता है कि किसी के मन में क्या है। ख़ुदा न खास्ता इसने सही भी बता दिया तो मैं मना कर दूंगा कि जवाब सही नहीं है, अब कोई मेरे मन को खोल कर तो नहीं देख सकता कि मैं क्या सोच रहा हूँ। अकबर भी मुल्ला की चाल को समझ गए थे कि आज तो महेश दास बुरे फंसे।
बीरबल का जवाब
महेश दास ने मुसकुराते हुए कहा, “इस समय मुल्ला साहब अपने ख़ुदा से प्रार्थना कर रहे है कि या ख़ुदा अपनी रहमत हमारे शहंशाह पर हमेशा बनाये रखना। उन्हें अच्छी सेहत, लम्बी उम्र और खूब बरक़त देना। उनकी प्रसिद्धि चारों ओर फैले। उनका इकबाल और करम हम पर सदा बनाये रखना। क्यों मैं सही कह रहा हूँ ना मुल्ला साहब।”
महेश दास का जवाब सुनकर जहाँ एक ओर अकबर के चेहरे पर बड़ी सी मुस्कान आ जाती तो वहीँ दूसरी ओर मुल्ला को काटो तो खून नहीं। अब उनसे न तो उगलते बनता है और न ही निगलते। यदि हाँ कहे तो चुनौती हार जाते है और मना करे तो किस मुँह से?
महेश दास को बीरबल का ख़िताब
मुल्ला दो प्याजा अपने अन्दर के जज्बातों को दबाकर नकली हंसी हँसते हुए अपने शब्दों को चबाते हुए कहते है, “ज़वाब बिल्कुल वाजिब है जहाँपनाह मैं बिलकुल यही सोच रहा था।” और मुल्ला दो प्याजा महेश दास को झुककर कहते है, “आदाब हुज़ूर।” यह देखकर अकबर और सारे दरबारी जोर-जोर से हंसने लगते है।
अकबर हाथ उठाकर सबको रोकते है और घोषणा करते है, “महेश दास के “बीर” अर्थात् “दिमाग” में “बल” अर्थात् “ताकत” है, इसलिए आज हम इन्हें बीरबल की उपाधि देते है और अपने दरबार में सलाहकार के पद पर नियुक्त करते है। आज से इन्हें बीरबल के नाम से संबोधित किया जाए।” सभी दरबारी बीरबल को मुबारकबाद देते है। बीरबल अकबर और सभी दरबारियों के सामने सर झुकाकर शुक्रिया अदा करते है।
तो दोस्तों कैसा लगा महेश दास के बीरबल बनने का सफ़र, मुझे जरूर बताइयेगा। मैंने आपको बीरबल से मिलाने का अपना वादा पूरा किया। तो अलविदा दोस्तों फिर मिलेंगे एक नए किस्से के साथ “टा-टा, बाय-बाय, सायोनारा“।