दूरदर्शी बनों – Durdarshi Bano
पंचतंत्र की कहानियाँ – पहला तंत्र – मित्रभेद – दूरदर्शी बनों – Durdarshi Bano
एक नदी के किनारे उसी नदी से जुड़ा हुआ एक गहरा जलाशय था। उसमें बहुत सारे जलीय पेड़ पौधे उगे हुए थे। भोजन प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होने के कारण कई मछलियाँ वहाँ रहती थी। वह जलाशय लंबी घास और बड़ी-बड़ी झाड़ियों से घिरा हुआ था इसलिए किसी को दिखाई नहीं देता था। उस जलाशय के बारें में मछुआरों भी कुछ पता नहीं था। इसलिए वह मछलियों के लिए एकदम सुरक्षित जगह थी। इसीलिए नदी की कई बड़ी मछलियाँ भी अपने अंडे देने के लिए वहीं आती थी।
अपना-अपना मत
उन्ही मछलियों के साथ अनागत विधाता, प्रत्युत्पन्नमति और यद्भविष्य नामक तीन मछलियाँ भी रहती थी। तीनों ही भिन्न-भिन्न स्वभाव की थी। अनागत विधाता संकट की सूचना मिलते ही उसे दूर करने का तत्काल उपाय करने में विश्वास रखती थी तो प्रत्युत्पन्नमति का मानना था कि जब संकट सिर पर आ जाए, तब उससे बचने का प्रयत्न करना चाहिए। लेकिन यद्भविष्य का मानना था कि संकट को टालने या उससे बचने का उपाय करने से कुछ नहीं होता, जो किस्मत में लिखा होता है, वह जरूर होता है। तीनों के स्वभाव में इतना अंतर होते हुए भी तीनों अच्छी मित्र थी और हमेशा साथ रहती थी।
एक बार शाम के समय कुछ मछुआरे मछलियाँ पाकर कर वापस लौट रहे थे। आज उनके जाल में बहुत कम मछलियाँ आई थी, इसलिए वे सभी बहुत उदास थे। वे आपस में बात कर रहे थे,
एक मछुआरा – आज तो अपने हाथ बहुत ही कम मछलियाँ लगी है। इतनी कम मछलियों से गुजारा कैसे होगा?
दूसरा मछुआरा – हाँ, आजकल नदी में मछलियाँ बहुत कम हो गई है। इतनी दूर जाने और पूरे दिन मेहनत करने के बाद भी हमारे जाल में बहुत कम मछलियाँ आती है।
मजा आ गया…
वे अभी यह बात कर ही रहे थे कि एक मछुआरा जोर से चिल्लाया,
तीसरा मछुआरा – अरे साथियों, उधर झाड़ियों की तरफ देखो, बगुलों का एक झुंड जा रहा है। आश्चर्य की बात है सभी की चोंच में मछलियाँ दबी हुई है।
पहला मछुआरा – हाँ मित्र तुम सही कह रहे हो, लगता है वहाँ उस झाड़ियों के पीछे कोई जलाशय है। जिसमें बहुत सारी मछलियाँ है।
दूसरा मछुआरा – हमें वहाँ चलकर देखना चाहिए।
उन्होंने अपनी नाव झाड़ियों की तरफ मोड ली। झाड़ियों के पास पँहुचने पर उन्हें उनके बीच में छिपा जलाशय दिखाई दिया। जब उन्होंने उस जलाशय में इतनी सारी मछलियाँ देख कर वे खुशी से उछल पड़े।
एक मछुआरा – अरे। इस जलाशय के बारे में तो हमें पता ही नहीं था। यह तो मछलियों से भरा पड़ा है।
दूसरा मछुआरा – हाँ, यहाँ तो इतनी मछलियाँ है कि एक ही बार जाल डालने पर बहुत सारी मछलियाँ पकड़ में या जाएगी।
तीसरा मछुआरा – आज तो अंधेरा होने वाला है। यह जगह हमारे लिए नई है। अंधेरे में हमें भी खतरा हो सकता है। इसलिए कल सुबह यहाँ आकर जाल डालेंगे।
इस प्रकार अगले दिन वहाँ आने का तय करके वे मछुआरे वहाँ से चले गये। तीनों मछलियों ने उनकी बातें सुन ली।
भागों खतरा सर पर है!
अनागत विधाता – साथियों, तुमने मछुआरों की बातें सुनी। कल सुबह वे यहाँ आकर अपना जाल डालेंगे। अब हमारा यहाँ रहना खतरे से खाली नहीं है। समय रहते ही अपनी जान बचाने का उपाय कर लेना चाहिए। इसलिए अब हमें एक क्षण की भी देर नहीं करनी चाहिए, रातों रात इस जलाशय को छोड़कर किसी दूसरे तालाब में चलें जाना चाहिए। जब तक मछुआरे यहाँ आएंगे, हम बहुत दूर निकाल चुके होंगे।
प्रत्युत्पन्नमति – तुमने सही कहाँ, खतरा आने पर देश को छोड़कर परदेस चले जाना चाहिए। परदेस जाने के भी से अपने बाप-दादाओं का घर कहकर जो लोग जन्म भर खारे कुएं में रहते हुए खारा पानी पीते है, वे कायर होते है। उनकी कोई गति नहीं होती।
लेकिन अभी खतरा आया नहीं है। इसलिए इतना घबराने की जरूरत नहीं है। हो सकता है किसी कारणवश मछुआरे यहाँ ना या पाएं। हो सकता है बहुत तेज तूफान आ जाए, बस्ती में आग लग जाए या भूकंप आ जाए। वे अपने घर समेत नष्ट हो जाए, उनकी नाव टूट जाए या उनका जाल ही जल जाए। वे कल यहाँ आ ही नहीं पाए।
अनागत विधाता – उन्होंने इस जगह को देख लिया है आज नहीं तो कल वे यहाँ जरूर आएंगे।
प्रत्युत्पन्नमति – जब तक खतरा सिर पर नहीं आता मैं तो कहीं नहीं जाऊँगी। तुम्हें जाना हो तो जाओं। मैं तो जब जब मछुआरे इधर आएंगे, तब ही यहाँ से जाऊँगी।
यद्भविष्य – तुम दोनों ही मूर्ख हो, जो किन्हीं राह चलते लोगों की बातों से भयभीत होकर चिंतित हो रही हो। जो भाग्य में लिखा होगा, वही होगा। यदि भाग्य में जीवन लिखा होगा तो हम यहीं रहकर भी सुरक्षित रहेंगे और नहीं तो कहीं और जाने पर भी हमारा जीवन खतरे में पद सकता है। हम किसी और के जाल में फँस जाए या नदी की बड़ी मछलियाँ हमें अपना भोजन बना लें इसलिए मैं तो कहीं नहीं जाने वाली।
अदूरदर्शिता का परिणाम?
उनकी बात सुनकर अनागत विधाता उसी समय अपने परिवार के साथ वहाँ से चली गई। प्रत्युत्पन्नमति और यद्भविष्य वहीं रुक गई। अगले दिन सुबह ही मछुआरों ने अपना जाल लेकर जलाशय की ओर कूच कर दिया।
प्रत्युत्पन्नमति ने उन्हें दूर से जलाशय की ओर आते देख लिया, यह देख वह उसी समय अपने परिवार के साथ उस जलाशय से निकलने लगी। मछुआरों ने वहाँ आकर अपना जाल डाल दिया। प्रत्युत्पन्नमति तेजी से तैरते हुए बड़ी मुश्किल से जाल की पकड़ से बच पाई।
लेकिन उसके परिवार की कुछ मछलियाँ जाल में पकड़ी गई। यद्भविष्य मछआरों को अपने समीप देखकर भी भाग्य के भरोसे वहीं रुकी रही, उसने बचने का कोई प्रयास नहीं किया। वह अपने परिवार के साथ उनके जाल में फँस गई और मारी गई।
दूरदर्शी बनों कहानी का वीडियो – Durdarshi Bano
सीख
जो होगा वह देखा जाएगा ऐसी सोच रखने वालों को बाद में पछताना पड़ता है।
जो होगा देखा जाएगा की नीति विनाश की ओर ले जाती है। विपत्ति आने पर अनागत विधाता की तरह समय रहते ही उससे बचने का उपाय कर लेना चाहिए।
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तो दोस्तों, कैसी लगी पंचतंत्र की कहानियों के रोचक संसार में डुबकी। मजा आया ना, तो हो जाइए तैयार लगाने अगली डुबकी, .. .. .. ..
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