galta tirth
रामचरित मानस का राजस्थान से बेहद गहरा संबंध है, जिसके बारे में बहुत कम लोगों को पता है। ये संबंध समझने के लिए आपको आज मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम के जन्म के दिन पर जयपुर के गलता तीर्थ लेकर चलते हैं।
गलता तीर्थ…जयपुर में अरावली की पहाड़ियों के बीच स्थित गालव ऋषि की तपो भूमि, जहां सबसे पहले सूर्य की किरणें पड़ती हैं। यहीं पर करीब 400 साल पहले गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरित मानस का अयोध्या कांड लिखा था। तुलसीदास गलता में 3 साल रहे थे और इसी दौरान उन्होंने अयोध्या कांड के प्रसंग लिखे थे।
ये पढ़कर आपके मन में कुछ सवाल आ रहे होंगे…
इस बात का क्या प्रमाण है कि तुलसीदासजी गलता आए थे?
तुलसीदासजी यहां क्याें आए और कितने वक्त रुके?
तुलसीदासजी अगर गलता आए और यहां अयोध्याकांड लिखा तो ज्यादातर लोगों को इसके बारे में जानकारी क्यों नहीं है?
इन्हीं सवालों के जवाब जानने के लिए भास्कर टीम गलता पीठ के पीठाधीश्वर स्वामी संपत कुमार अवधेशाचार्य महाराज से मिलने पहुंची। हमें बताया गया कि वे रामायण का पाठ कर रहे हैं और 15-20 मिनट का समय लगेगा। हमें उस भवन में बैठाया जहां अवधेशाचार्ज महाराज की गद्दी लगी हुई है। थोड़ी देर बाद अवधेशाचार्य महाराज आए और बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ….
भास्कर : क्या गोस्वामी तुलसीदासजी कभी गलता आए थे?
अवधेशाचार्य : जी हां, ये सच है। ऋषि परंपरा में पीढ़ी-दर-पीढ़ी ये प्रसंग गुरुओं ने अपने शिष्यों को बताया। कई कथाकारों ने भी अपनी कथाओं में तुलसीदास जी के गलता प्रवास को लेकर उल्लेख किया है।
भास्कर : तुलसीदासजी गलता क्यों आए थे?
अवधेशाचार्य : उस समय गलता के महान संत नाभादासजी ने पूरे भारत के संतों को इकट्ठा करने में बड़ी भूमिका निभाई थी। उन्होंने सभी संतों को आपस में जोड़ने के लिए गलता में एक बड़ा भंडारा किया था। सभी संतों को न्योता भेजा गया, जिसमें तुलसीदासजी भी शामिल थे।
भास्कर : तुलसीदासजी गलता आए थे, इस बात का कोई प्रमाण है?
अवधेशाचार्य : मध्यप्रदेश की रीवा रियासत के राजा रघुराज सिंह थे। उनकी भक्तिमाल पर जो टीका है, उस टीका में इसका उल्लेख आता है…
एक समय नाभाजू ज्ञानी, जिनहिं भक्तिमाल निर्माणी
ते सब संतन न्योता दीन्हों, सिगरे संत पयानो कीन्हों
तुलसीदास को न्योतो आयो, ताहि विचार मन में अस लायो
पंगत में कच्चो पकवाना, द्विज को खैबो उचित न जाना
यह विचार कर कहा न गयऊ, पवन सुमन तासौ कह देयऊ
भक्तराज नाभा को जानो, तुर्तही तह को करो पयानो
हनुमत शासन सुनत गुसाईं, चले तहां भिक्षुक के नाईं
भास्कर : इस टीका के बारे में बताइए, तुलसीदासजी का उस समय के संतों के बीच क्या महत्व था?
अवधेशाचार्य : तुलसीदास की पहचान संत कवि के रूप में रही, लेकिन उनको सबसे बड़ी प्रसिद्धि रामचरित मानस ग्रंथ के बाद मिली। जब वे गलता आए थे, तब यह ग्रंथ लिख रहे थे। मैं आपको टीके में दर्ज बातों का सामान्य भाषा में और संक्षिप्त में बताता हूं।
टीका में दर्ज इस वर्णन में कहा गया है कि हनुमानजी की आज्ञा से तुलसीदासजी ने गलता आने का निर्णय किया और वो यहां पधारे।
ये बड़ी कथा है कि किस प्रकार भंडारा चल रहा था, उस भंडारे में क्या क्या हुआ, तुलसीदास किस प्रकार आए। लेकिन नाभादासजी ने अपनी भक्तिमाल में तुलसीदारजी को वैसा ही स्थान दिया है, जैसा माला में मणि होते हैं और उसके ऊपर सुमेरू होता है।
नाभादासजी ने अपनी भक्तिमाल में सुमेरू रूप में तुलसीदास जी को स्थान दिया। तुलसीदासजी के प्रवास का यहां तीन वर्ष का अंतराल रहा। इस दौरान ही उन्होंने यहां अयोध्या कांड की रचना की है।
भास्कर : क्या इस बात का कोई और प्रमाण भी है?
अवधेशाचार्य : दिल्ली के एक भक्त लल्लन प्रसाद व्यास रामायाण मेला लगाते रहे हैं। उन्होंने करीब 10 वर्ष पूर्व मॉरीशस में भी रामायण मेला लगाया था। न्यायाधीश सुरेंद्र भार्गव दीपाली भार्गव भी वहां गए थे। वहां किसी अंग्रेज ने एक पत्र पढ़ा, जिसने उल्लेख किया कि तुलसीदासजी गलता में रहे थे और उन्होंने वहीं अयोध्या कांड की रचना की। जब भार्गव वहां से लौटे तो उन्होंने ही मुझे अंग्रेज की ओर से पढ़े गए पत्र के बारे में बताया।
भास्कर : तुलसीदासजी के प्रवास के दौरान के प्रमाण खोजने का प्रयास क्यों नहीं किए गए?
अवधेशाचार्य : प्रयास तो इसलिए नहीं किया कि ये कोई असहज बात तो है नहीं। गलताजी में उस समय से ये सब बातें बड़ी ही सहज रही हैं। 400 साल पहले यहां के आध्यात्मिक वातावरण ने तुलसीदास को यहां प्रवास के लिए प्रेरित किया होगा। ये भी कहा जाता है कि नाभादास जी के भक्ति भाव से वे इतने प्रसन्न हुए कि यहां कुछ वर्ष बिताए। गलता एक पवित्र तोपोस्थली है और यहां संत लोग किसी भी विकार से मुक्त रहकर प्रवास करते रहे हैं।
भास्कर : गलता में भंडारा कहां हुआ और तुलसीदासजी किस कुटिया में रहे थे?
अवधेशाचार्य : ये बता पाना तो संभव नहीं है, क्योंकि 400 सालों में यहां निर्माण भी हुए और कई बदलाव भी। बड़े-बड़े संत गलता आते रहे हैं। अब भी ऐसा ही चलता आ रहा है। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में कुछ लोगों ने इस स्थान को विवादित करने का प्रयास किया।
हालांकि, वो प्रयास संप्रदाय को लेकर किया गया। ये दुर्भाग्यपूर्ण है। (उत्तरभारत में वैष्णवों की प्राचीन गलता पीठ की गद्दी को लेकर विवाद चल रहा है, मामला कोर्ट में है।)
रामचरित मानस को लिखने में लगे 2 साल 7 महीने
श्रीरामचरित मानस के लेखन की शुरुआत और अंत की तिथियां भी काफी महत्वपूर्ण हैं। तुलसीदास ने इस ग्रंथ को लिखने की शुरुआत 1574 में उसी दिन सुबह की थी, जैसा योग त्रेतायुग में राम-जन्म के दिन था। तुलसीदास ने रामचरितमानस को 2 वर्ष 7 महीने और 26 दिन में सम्पन्न किया। खास यह भी रहा कि यह ग्रंथ 1576 में राम-विवाह के दिन ही समाप्त हुआ।
अवधि भाषा में लिखे इस महाकाव्य में स्वयं तुलसीदास ने बाल कांड में लिखा है कि उन्होंने रामचरित मानस की रचना का आरम्भ अयोध्या में विक्रम संवत 1631 (वर्ष 1574) को रामनवमी के दिन किया।
रामायण में 7 कांड हैं – बाल कांड, अयोध्या कांड, अरण्य कांड, किष्किन्धा कांड, सुन्दर कांड, लंका कांड (युद्ध कांड) और उत्तर कांड। छंदों की संख्या देखें तो बाल कांड सबसे बड़ा और किष्किन्धा कांड सबसे छोटा कांड है।
भगवान राम के जीवन की ये बड़ी घटनाएं जुड़ी है अयोध्या कांड से
श्रीराम चरित मानस के अयोध्या कांड में रामजानकी विवाह के बाद अयोध्या में बिताए समय की गाथा है।
श्रीराम के राज्यभिषेक की तैयारी, मंथरा का कैकई को भड़काना और कैकई का राजा दशरथ से दो वर मांगना।
श्रीराम का वन में जाना और आहत दशरथ का देह त्याग।
कैकई-भरत संवाद और फिर अपने भ्राता राम को मनाने भरत का उनके पास जाना। वहां श्रीराम का वहां यह सारा खेल विधी का विधान को बताना।
भरत का श्रीराम की खड़ाऊं को लाकर अयोध्या की राजगद्दी पर विराजमान करना और मां केकैई को अपराध बोध से मुक्त करना।
गलता में यहां आज भी होती है तुलसीदास जी की पूजा
तीर्थ के संतों ने बताया कि गलता पीठ में तुलसीदास जी का काफी अलग महत्व है। यहां सुबह गोस्वामी तुलसीदास के चित्रपट का वैदिक मंत्रों के साथ पूजन होता है।
हालांकि, संतों को ये पता नहीं है कि ये पूजन कब से जारी है या इसकी शुरुआत कब हुई थी, लेकिन तुलसीदासजी की पूजा की परंपरा उनके यहां के जुड़ाव के महत्वपूर्ण अध्याय की ओर इशारा करती है।
इसके अलावा गलता में तुलसीदास जयंती महोत्सव भी काफी श्रद्धाभाव से मनाया जाता है। इस महोत्सव का समापन रामचरितमानस के पाठ के साथ किया जाता है। संतों का दावा है कि संत तुलसीदास जी ने गलता पीठ में प्रवास के दौरान रामचरित मानस के अयोध्या कांड की ही नहीं, बल्कि अपने विभिन्न ग्रंथों की रचना की।
अदभुत रहस्यों से भरी-पूरी है ये तपोभूमि, अकबर ने भी चढ़ाया था नारियल
गलता में रहस्यों की कमी नहीं है। यहां ऊंचे ऊंचे पहाड़ों के बीच बने गोमुख से सदियों से प्राकृतिक रूप से जलधारा बहती आई है, जिसका सोर्स आज तक नहीं खोजा जा सका है।
वहीं अकबर ने भी जब गलता के महत्व को सुना तो खुद यहां आकर नारियल चढ़ाया था। सूरज की पहली किरण गलता में बने सूर्य मंदिर पर पड़ती है और उसके बाद जयपुर को रोशन करती है।
गलता में पयोहारी ऋषि की गुफा भी थी, अब बंद कर दिया गया है। कहा जाता है कि पयोहारी ऋषि इस गुफा में रहते थे और जो भी भीतर गया, वो लौटकर नहीं आया। इस कारण गुफा को बंद कर दिया गया। ये भी कहा जाता है कि ये गुफा पाताल तक जाती है।
गुलाबी रंग के बलुआ पत्थर से बना गलता, श्रद्धालु-पर्यटकों की खींचता है भीड़
कहा जाता है कि किसी के तीर्थ संपूर्ण नहीं माने जा सकते, जब तक वह गलता तीर्थ नहीं आए और यहां के कुंड में स्नान नहीं किया जाए। जयपुर की स्थापना से पहले राजा सवाई जयसिंह ने 300 साल पहले वास्तुदोष निवारण के लिए यहां पक्का निर्माण कार्य करवाया था।
गलताजी मंदिर का निर्माण गुलाबी रंग बलुआ पत्थर से किया गया था। इसके अंदर गलता जी भगवान राम, भगवान कृष्ण, भगवान हनुमान सहित कई सारे देवी देवताओं के मंदिर स्थित हैं।
इतिहासकारों का मानना है कि यह मंदिर 16 वीं शताब्दी की शुरुआत में रामानंदी संप्रदाय के लोगों द्वारा बनवाया गया। मंदिर की संरचना दीवान राव कृपाराम द्वारा बनवाई गई, जो जयपुर के तत्कालीन राजा जय सिंह के दरबार में दरबारी थे।