Shri Ganesh Chalisa Lyrics – श्री गणेश चालीसा
हिन्दू धर्म में भगवान श्री गणेश जी को प्रथम पूज्य माना जाता है। ये माता पार्वती और भगवान शिव के पुत्र और ऋद्धि-सिद्धि के पति हैं। इनके पुत्रों का नाम शुभ-लाभ है। इसके साथ ही ये धन संपत्ति की देवी माता लक्ष्मी के दत्तक पुत्र भी हैं।
गणेश जी के परिवार में ही लक्ष्मी, शिव-शक्ति, ऋद्धि-सिद्धि, शुभ-लाभ सभी हैं। विघ्नहर्ता श्री गणेश ऋद्धि-सिद्धि के दाता और शुभ-लाभ को देने वाले और सभी विघ्नों को हरने वाले हैं।
इसलिए नित्य प्रति श्री गणेश जी की पूजा तथा श्री गणेश चालीसा का पाठ करने से घर में ऋद्धि-सिद्धि (खुशहाली) आती है। सारे अमंगल दूर होकर सब शुभ व मंगल हो जाता है। व्यापार में लाभ होता है और प्रत्येक कार्य में सफलता मिलती है।
इस पोस्ट में मैंने श्री गणेश चालीसा के हिन्दी व अंग्रेजी दोनों भाषाओं के Lyrics के साथ-साथ इसके छंदों का हिन्दी अर्थ भी दिया है।
गणेश चालीसा की रचना
गणेश चालीसा की रचना भक्त सुंदरदास ने दुर्वासा ऋषि के आश्रम में रहते हुए अपने सभी कर्तव्यों को पूरा करते हुए की थी। इसमें चालीस छंद/चौपाइयाँ हैं।
इन चालीस छंदों में उन्होंने गणेश जी के रूप-सज्जा, वाहन, माता पार्वती द्वारा पुत्र प्राप्ति के लिए तप, गणेश जी के जन्म, उन पर शनि की दृष्टि, प्रथम पूज्य का वरदान मिलने से संबंधित वृत्तांतों का बहुत ही सुंदरता से वर्णन किया है।
चलिए गणेश चालीसा का पाठ करके श्री गणेश जी का वन्दन करते हैं: –
श्री गणेश चालीसा
॥ दोहा ॥
जय गणपति सदगुणसदन,
कविवर बदन कृपाल।
विघ्न हरण मंगल करण,
जय जय गिरिजालाल॥
॥ चौपाई ॥
जय जय जय गणपति गणराजू ।
मंगल भरण करण शुभ काजू ॥ १ ॥
जय गजबदन सदन सुखदाता ।
विश्व विनायक बुद्घि विधाता ॥ २
वक्र तुण्ड शुची शुण्ड सुहावन ।
तिलक त्रिपुण्ड भाल मन भावन ॥ ३ ॥
राजत मणि मुक्तन उर माला ।
स्वर्ण मुकुट शिर नयन विशाला ॥ ४ ॥
पुस्तक पाणि कुठार त्रिशूलं ।
मोदक भोग सुगन्धित फूलं ॥ ५ ॥
सुन्दर पीताम्बर तन साजित ।
चरण पादुका मुनि मन राजित ॥ ६ ॥
धनि शिव सुवन षडानन भ्राता ।
गौरी ललन विश्व-विख्याता ॥ ७ ॥
ऋद्धि-सिद्धि तव चंवर सुधारे ।
मुषक वाहन सोहत द्वारे ॥ ८ ॥
कहौ जन्म शुभ कथा तुम्हारी ।
अति शुची पावन मंगलकारी ॥ ९ ॥
एक समय गिरिराज कुमारी ।
पुत्र हेतु तप कीन्हो भारी ॥ १०॥
भयो यज्ञ जब पूर्ण अनूपा ।
तब पहुंच्यो तुम धरी द्विज रूपा ॥ ११ ॥
अतिथि जानी के गौरी सुखारी ।
बहुविधि सेवा करी तुम्हारी ॥ १२॥
अति प्रसन्न हवै तुम वर दीन्हा ।
मातु पुत्र हित जो तप कीन्हा ॥ १३॥
मिलहि पुत्र तुहि बुद्धि विशाला ।
बिना गर्भ धारण यहि काला ॥ १४॥
गणनायक गुण ज्ञान निधाना ।
पूजित प्रथम रूप भगवाना ॥ १५॥
अस कही अन्तर्धान रूप हवै ।
पालना पर बालक स्वरूप हवै ॥ १६॥
बनि शिशु रुदन जबहिं तुम ठाना ।
लखि मुख सुख नहिं गौरी समाना ॥ १७॥
सकल मगन, सुखमंगल गावहिं ।
नभ ते सुरन, सुमन वर्षावहिं ॥ १८॥
शम्भु, उमा, बहु दान लुटावहिं ।
सुर मुनिजन, सुत देखन आवहिं ॥ १९॥
लखि अति आनन्द मंगल साजा ।
देखन भी आये शनि राजा ॥ २०॥
निज अवगुण गुनि शनि मन माहीं ।
बालक देखन चाहत नाहीं ॥ २१॥
गिरिजा कछु मन भेद बढायो ।
उत्सव मोर न शनि तुही भायो ॥ २२॥
कहत लगे शनि मन सकुचाई ।
का करिहौ शिशु मोहि दिखाई ॥ २३॥
नहिं विश्वास उमा उर भयऊ ।
शनि सों बालक देखन कहयऊ ॥ २४॥
पडतहिं, शनि दृग कोण प्रकाशा ।
बालक सिर उड़ि गयो अकाशा ॥ २५॥
गिरिजा गिरी विकल हवै धरणी ।
सो दुःख दशा गयो नहीं वरणी ॥ २६॥
हाहाकार मच्यौ कैलाशा ।
शनि कीन्हों लखि सुत को नाशा ॥ २७॥
तुरत गरुड़ चढ़ि विष्णु सिधायो ।
काटी चक्र सो गज सिर लाये ॥ २८॥
बालक के धड़ ऊपर धारयो ।
प्राण मन्त्र पढ़ि शंकर डारयो ॥ २९॥
नाम गणेश शम्भु तब कीन्हे ।
प्रथम पूज्य बुद्धि निधि, वर दीन्हे ॥ ३०॥
बुद्धि परीक्षा जब शिव कीन्हा ।
पृथ्वी कर प्रदक्षिणा लीन्हा ॥ ३१॥
चले षडानन, भरमि भुलाई ।
रचे बैठ तुम बुद्धि उपाई ॥ ३२॥
चरण मातु-पितु के धर लीन्हें ।
तिनके सात प्रदक्षिण कीन्हें ॥ ३३॥
धनि गणेश कही शिव हिय हरषे ।
नभ ते सुरन सुमन बहु बरसे ॥ ३४॥
तुम्हरी महिमा बुद्धि बड़ाई ।
शेष सहसमुख सके न गाई ॥ ३५॥
मैं मतिहीन मलीन दुखारी ।
करहूं कौन विधि विनय तुम्हारी ॥ ३६॥
भजत रामसुन्दर प्रभुदासा ।
जग प्रयाग, ककरा, दुर्वासा ॥ ३७॥
अब प्रभु दया दीन पर कीजै ।
अपनी शक्ति भक्ति कुछ दीजै ॥ ३८॥
श्री गणेश यह चालीसा ।
पाठ करै कर ध्यान ॥ ३९॥
नित नव मंगल गृह बसै ।
लहे जगत सन्मान ॥ ४०॥
॥ दोहा ॥
सम्बन्ध अपने सहस्त्र दश,
ऋषि पंचमी दिनेश ।
पूरण चालीसा भयो,
मंगल मूर्ती गणेश ॥
गणेश चालीसा पाठ का वीडियो
संगीत को सीधे भगवान से जुडने का साधन माना गया है, इसलिए भगवान का पाठ पूरे सुर-ताल से किया जाना चाहिए। यहाँ पर मैं आपके लिए वीडियो का लिंक दे रही हूँ, जिससे आपको गणेश चालीसा का लय के साथ पाठ करने में सहायता मिलेगी।
Ganehs Chalisha Lyrics in English
॥ Doha ॥
Jai Ganpati Sadgunsadan,,
Kavivar Badan Kripal।
Vighn Haran Mangal Karan,
Jai Jai Girijalal॥
॥ Chaupai ॥
Jai Jai Jai Ganpati Ganraju।
Mangal Bharan Karan Shubh Kaju॥ १ ॥
Jai Gajabadan Sadan Sukhdata ।
Vishwa Vinayaka Buddhi Vidhata ॥ २
Vakra Tunda Shuchi Shund Suhawan ।
Tilak Tripund Bhal Man Bhavan ॥ ३ ॥
Rajat Mani Muktan Ur Mala ।
Svarn Mukut Shir Nayan Vishala॥ ४ ॥
Pustak Pani Kuthar Trishoolam ।
Modak Bhog Sugandhit Phoolam ॥ ५ ॥
Sundar Pitambar Tan Sajit ।
Charan Paduka Muni Man Rajit ॥ ६ ॥
Dhani Shiv Suvan Shadanan Bhrata ।
Gauri Lalan Vishv-vikhyata ॥ ७ ॥
Rddhi-Siddhi Tav Chanvar Sudhare ।
Mushak Vahan Sohat Dware ॥ ८ ॥
Kahou Janm Shubh Katha Tumhari ।
Ati Shuchi Pavan Mangalakari ॥ ९ ॥
Ek Samay Giriraj Kumari ।
Putr Hetu Tap Kinho Bhari ॥ 10 ॥
Bhayo Yagy Jab Poorn Anoopa ।
Tab Pahunchyo Tum Dhari Dwij Roopa ॥ 11 ॥
Atithi Jani Ke Gouri Sukhari ।
Bahuvidhi Seva Kari Tumhari ॥ 12 ॥
Ati Prasann Havai Tum Var Dinha।
Matu Putr Hit Jo Tap Kinha ॥ 13 ॥
Milahi Putr Tuhi Buddhi Vishala ।
Bina Garbh Dharan Yahi Kala ॥ १४॥
Gananayak Gun Gyan Nidhana ।
Poojit Pratham Roop Bhagwan ॥ १५॥
As Kahi Antardhan Roop Havai ।
Palana Par Balak Svaroop Havai ॥ १६॥
Bani Shishu Rudan Jabahin Tum Thana ।
Lakhi Mukh Sukh Nahin Gauri Samana ॥ १७॥
Sakal Magan Sukhamangal Gavahin ।
Nabh Te Suran Suman Varshwahin॥ १८॥
Shambhu, Uma, Bahudan Lutavahin ।
Sur Munijan Sut Dekhan Awahin ॥ १९॥
Lakhi Ati Anand Mangal Saja ।
Dekhan Bhi Aye Shani Raja ॥ २०॥
Nij Avgun Guni Shani Man Mahin ।
Balak Dekhan Chahat Nahin ॥ २१॥
Girija Kachhu Man Bhed Badhayo ।
Utsav Mor Na Shani Tuhi Bhayo ॥ २२॥
Kahat Lage Shani Man Sakuchai ।
Ka Karihao Shishu Mohi Dikhai ॥ २३॥
Nahin Vishwas Uma Ur Bhayoo ।
Shani Son Balak Dekhan Kahayoo ॥ २४॥
Padtahin Shani Drg Kon Prakasha ।
Balak Sir Udi Gayo Akasha ॥ २५॥
Girija Giri Vikal Hvai Dharani।
So Duhkh Dasha Gayo Nahin Varani॥ २६॥
Hahakar Machyao Kailasha।
Shani Kinhon Lakhi Sut Ko Nasha ॥ २७॥
Turat Garud Chadhi Vishnu Sidhayo ।
Kati Chakr So Gaj Sir Laye ॥ २८॥
Balak Ke Dhad Upar Dharayo।
Pran Mantra Padhi Shankar Darayo ॥ २९॥
Nam Ganesh Shambhu Tab Kinhe ।
Pratham Poojy Buddhi Nidhi Var Dinhe ॥ ३०॥
Buddhi Pariksha Jab Shiv Kinha ।
Prthvi Kar Pradakshina Linha ॥ ३१॥
Chale Shadanan, Bharami Bhulai ।
Rache Baith Tum Buddhi Upai ॥ ३२॥
Charan Matu-pitu Ke Dhar Linhen।
Tinake Sat Pradakshin Kinhen ॥ ३३॥
Dhani Ganesh Kahi Shiv Hiye Harashe ।
Nabh Te Suran Suman Bahu Barase॥ ३४॥
Tumhari Mahima Buddhi Badai ।
Shesh Sahasamukh Sake Na Gai ॥ ३५॥
Main Matihin Maleen Dukhari ।
Karahoon Kaun Vidhi Vinay Tumhari ॥ ३६॥
Bhajat Ramasundar Prabhudasa ।
Jag Prayag, Kakara, Durvasa ॥ ३७॥
Ab Prabhu Daya Dina Par Kijai ।
Apani Shakti Bhakti Kuchh Dijai ॥ ३८॥
Shri Ganesh Yah Chalisa ।
Path Karai Kar Dhyan ॥ ३९॥
Nit Nav Mangal Grh Basai।
Lahe Jagat Sanman॥ ४०॥
॥ Doha ॥
Sambandh Apane Sahastra Dash,
Rishi Panchami Dinesh ।
Pooran Chalisa Bhayo,
Mangal Murti Ganesh ॥
Video of Ganesh Chalisa Recitation
Here I am giving you the one more link of the video, which will help you to recite Ganesh Chalisa with rhythm.
गणेश चालीसा का हिन्दी अर्थ
॥ दोहा ॥
जय गणपति सदगुणसदन,
कविवर बदन कृपाल।
विघ्न हरण मंगल करण,
जय जय गिरिजालाल॥
हिन्दी अर्थ – हे सद्गुणों के भंडार भगवान श्री गणेश आपकी जय हो, ये कवि आपके कृपालु रूप का वन्दन व वर्णन कर रहा हैं। आप सभी कष्टों की दूर करके सबका कल्याण करने वाले माता पार्वती के पुत्र श्री गणेश जी महाराज आपकी जय हो।
॥ चौपाई ॥
जय जय जय गणपति गणराजू ।
मंगल भरण करण शुभ काजू ॥ १ ॥
हिन्दी अर्थ – हे गणों के राजा, सभी का कल्याण और पालन-पोषण, तथा हर कार्य को शुभ करने वाले श्री गणपति जी आपकी जय हो, जय हो, जय हो!
जय गजबदन सदन सुखदाता ।
विश्व विनायक बुद्घि विधाता ॥ २
प्रत्येक घर में सुख प्रदान करने वाले, पूरे जगत का मार्गदर्शन करके कल्याण करने वाले नायक और सभी को बुद्धि देने वाले हाथी जैसे विशाल शरीर वाले हे गजनांद आपकी जय हो।
वक्र तुण्ड शुची शुण्ड सुहावन ।
तिलक त्रिपुण्ड भाल मन भावन ॥ ३ ॥
आपके दीप्तिमान लंबे और मोटे चेहरे पर टेढ़ी सूंड बहुत ही सुहावनी लगती है और आपके मस्तक पर चंदन का तीन रेखाओं व त्रिशूल के समान आकृति वाला तिलक हर किसी का मन मोह लेता है।
राजत मणि मुक्तन उर माला ।
स्वर्ण मुकुट शिर नयन विशाला ॥ ४ ॥
आपके हृदय पर रत्नों और मणियों के मोतियों की माला और सिर पर सोने का मुकुट सुशोभित है तथा आपके नैन बहुत विशाल (बड़े-बड़े) हैं।
पुस्तक पाणि कुठार त्रिशूलं ।
मोदक भोग सुगन्धित फूलं ॥ ५ ॥
आपके हाथों में पुस्तक, फरसा और त्रिशूल हैं। आपको मोदक (लड्डुओं) का भोग लगाया जाता है और सुगंधित फूल चढ़ाए जाते हैं।
सुन्दर पीताम्बर तन साजित ।
चरण पादुका मुनि मन राजित ॥ ६ ॥
आपके शरीर पर पीले रंग के सुंदर वस्त्र सज्जित हैं। आपकी चरण पादुकाओं के दर्शन मात्र से ही ऋषि मुनियों का मन खुश हो जाता है।
धनि शिव सुवन षडानन भ्राता ।
गौरी ललन विश्व-विख्याता ॥ ७ ॥
हे भगवान शिव के पुत्र व षडानन (भगवान कार्तिकेय) के भाई आप धन्य हैं। है माता पार्वती के पुत्र गौरी नंदन आपकी ख्याति समस्त जगत में फैली हुई है।
ऋद्धि-सिद्धि तव चंवर सुधारे ।
मुषक वाहन सोहत द्वारे ॥ ८ ॥
आपकी दोनों पत्नियाँ ऋद्धि और सिद्धि आपकी सेवा में रहती हैं व आपका वाहन मूषक आपके द्वार खड़ा रहता है।
कहौ जन्म शुभ कथा तुम्हारी ।
अति शुची पावन मंगलकारी ॥ ९ ॥
हे प्रभु, ये कवि आपके जन्म की कथा सुनाता है जो बहुत ही उज्जवल, पवित्र और मंगल फल प्रदान करने वाली है।
एक समय गिरिराज कुमारी ।
पुत्र हेतु तप कीन्हो भारी ॥ १०॥
एक समय पर्वतों के राजा हिमवान की पुत्री माता पार्वती ने पुत्र प्राप्ति के लिए बहुट ही कठोर तप किया।
भयो यज्ञ जब पूर्ण अनूपा ।
तब पहुंच्यो तुम धरी द्विज रूपा ॥ ११ ॥
जब उनका तप व यज्ञ सफलता पूर्वक संपूर्ण हो गया तो आप वह पर एक ब्राह्मण का रूप धारण कर पँहुच गए।
अतिथि जानी के गौरी सुखारी ।
बहुविधि सेवा करी तुम्हारी ॥ १२॥
आपको अतिथि जानकार माता पार्वती बहुत प्रसन्न हुई और उन्होंने नाना प्रकार से आपकी बहुत सेवा की।
अति प्रसन्न हवै तुम वर दीन्हा ।
मातु पुत्र हित जो तप कीन्हा ॥ १३॥
मिलहि पुत्र तुहि बुद्धि विशाला ।
बिना गर्भ धारण यहि काला ॥ १४॥
गणनायक गुण ज्ञान निधाना ।
पूजित प्रथम रूप भगवाना ॥ १५॥
माता पार्वती की सेवा से आप बहुत प्रसन्न हुए और आपने उन्हें वरदान दिया कि “है माता मैं आपके पुत्र प्राप्ति के लिए किये गए तप और मेरी की गई सेवा से बहुत प्रसन्न हूँ और आपको एक बहुत जी तेजस्वी और बुद्धिमान पुत्र की प्राप्ति का वर देता हूँ जो कि आपको बिना गर्भ धारण किये इसी समय मिल जाएगा। जो सभी देवताओं का नायक, गुण और ज्ञान से सम्पन्न होगा तथा सभी भगवानों में प्रथम पूज्य होगा।”
अस कही अन्तर्धान रूप हवै ।
पालना पर बालक स्वरूप हवै ॥ १६॥
इतना कह कर आप अंतर्ध्यान हो गए और पाले में एक सुन्दर बालक का रूप लेकर अवतरित हो गए।
बनि शिशु रुदन जबहिं तुम ठाना ।
लखि मुख सुख नहिं गौरी समाना ॥ १७॥
बालक का रूप धारण करते ही आपने रोना शुरू कर दिया। आपके सुंदर मुख को देख कर माता पार्वती इतनी प्रसन्न हुई कि उस समय पूरे जगत में उनके जितना सुखी कोई नहीं था।
सकल मगन, सुखमंगल गावहिं ।
नभ ते सुरन, सुमन वर्षावहिं ॥ १८॥
समस्त कुल खुशी से मंगलगीत गाने में तल्लीन हो गया और आकाश से देवता भी सुगंधित पुष्पों को बरसाने लगे।
शम्भु, उमा, बहु दान लुटावहिं ।
सुर मुनिजन, सुत देखन आवहिं ॥ १९॥
भगवान शंकर और माता पार्वती खुले हाथों से दान करने लगे। देवता, ऋषि, मुनि सब आपके दर्शन करने के लिए कैलाश आने लगे।
लखि अति आनन्द मंगल साजा ।
देखन भी आये शनि राजा ॥ २०॥
आपके सुन्दर रूप को देखकर हर कोई बहुत आनंदित होता। भगवान शनिदेव भी आपको देखने के लिए कैलाश आये।
निज अवगुण गुनि शनि मन माहीं ।
बालक देखन चाहत नाहीं ॥ २१॥
शनि भगवान की दृष्टि पड़ना अमंगलकारी होता है, अपने इस अवगुण का मन में विचार करके वे घबरा गए और आपको देखने का मन होते भी वे आपके बालक स्वरूप को देखने से सकुचा रहे थे।
गिरिजा कछु मन भेद बढायो ।
उत्सव मोर न शनि तुही भायो ॥ २२॥
यह देख कर माता पार्वती के मन में यह शक पैदा हुआ कि शायद शनिदेव उनकी खुशी से खुश नहीं हैं। यह बात उन्हें अच्छी नहीं लगी और उन्होंने शनिदेव जी से कहा, “लगता है आप हमारे यहाँ बच्चे के जन्मोत्सव से खुश नहीं है। तभी आप मेरे पुत्र को देखना नहीं चाहते।”
कहत लगे शनि मन सकुचाई ।
का करिहौ शिशु मोहि दिखाई ॥ २३॥
यह सुनकर शनिदेव जी ने सकुचाते हुए माता पार्वती से कहा, “हे माता, मुझे अपने पुत्र को दिखाकर क्या करोगी, कहीं मेरी दृष्टि पड़ने से कुछ अमंगल ना हो जाए।
नहिं विश्वास उमा उर भयऊ ।
शनि सों बालक देखन कहयऊ ॥ २४॥
लेकिन शनिदेव जी के उत्तर से माता पार्वती जी संतुष्ट नहीं हुई उन्होंने मन में विचार किया कि मेरे और भगवान शिव के पुत्र का शनि की दृष्टि थोड़े ही कुछ बिगाड़ पाएगी। इसलिए उन्होंने हठ करके शनिदेव जी को अपने पुत्र को देखने के लिए कहा।
पडतहिं, शनि दृग कोण प्रकाशा ।
बालक सिर उड़ि गयो अकाशा ॥ २५॥
शनि की वक्र दृष्टि बालक पर पड़ते ही बालक का सिर आकाश में उड़ गया।
पढ़े गणेश जी के जन्म की तीन पौराणिक कहानियाँ
गिरिजा गिरी विकल हवै धरणी ।
सो दुःख दशा गयो नहीं वरणी ॥ २६॥
यह देख कर आता पार्वती दुखी होकर भूमि पर गिर पड़ी। उस समय दुख के कारण उनकी ऐसी दशा हो है जिसका वर्णन भी नहीं किया जा सकता।
हाहाकार मच्यौ कैलाशा ।
शनि कीन्हों लखि सुत को नाशा ॥ २७॥
पूरे कैलाश में हाहाकार मच गया कि शनि ने शिव-पार्वती के पुत्र को देखकर उसे नष्ट कर दिया।
तुरत गरुड़ चढ़ि विष्णु सिधायो ।
काटी चक्र सो गज सिर लाये ॥ २८॥
तुरंत ही भगवान विष्णु गरुड़ पर सवार होकर वहाँ से निकले और अपने सुदर्शन चक्र से एक हाथी का शीश काटकर वहाँ लेकर आये।
बालक के धड़ ऊपर धारयो ।
प्राण मन्त्र पढ़ि शंकर डारयो ॥ २९॥
हाथी के शीश को उन्होंने बालक के धड़ के ऊपर रख दिया। इसके बाद भगवान शंकर ने मंत्र पढ़कर उसमें प्राण डाल दिए।
नाम गणेश शम्भु तब कीन्हे ।
प्रथम पूज्य बुद्धि निधि, वर दीन्हे ॥ ३०॥
उसी समय भगवान शंकर ने आपका नाम गणेश रखा और यह वरदान दिया कि संसार में सबसे पहले आपकी पूजा की जाएगी।अन्य देवताओं ने भी आपको आशीर्वाद स्वरूप बुद्धि-निधि सहित अनेक वरदान प्रदान किये।
बुद्धि परीक्षा जब शिव कीन्हा ।
पृथ्वी कर प्रदक्षिणा लीन्हा ॥ ३१॥
एक बार भगवान शंकर ने कार्तिकेय व आपकी बुद्धि परीक्षा ली और आप दोनों को ही पूरी पृथ्वी का चक्कर लगा कर आने के लिए कहा।
चले षडानन, भरमि भुलाई ।
रचे बैठ तुम बुद्धि उपाई ॥ ३२॥
जैसे ही भगवान शिव ने प्रतियोगिता की शर्त बताई कार्तिकेय बिना कुछ सोच विचार किये अपने वाहन मोर पर सवार होकर पृथ्वी का चक्कर लगाने के लिए निकल पड़े। लेकिन आप वहीं बैठ कर अपनी बुद्धि से इसका कुछ उपाय सोचने लगे।
चरण मातु-पितु के धर लीन्हें ।
तिनके सात प्रदक्षिण कीन्हें ॥ ३३॥
उन्होंने सोचा कि बच्चों के लिए तो उनके माता-पिता ही सारी सृष्टि होते हैं। उन्होंने अपने माता-पिता दोनों के पास-पास बैठाया और उनके चरण छूकर उनकी सात परिक्रमा कर ली।
धनि गणेश कही शिव हिय हरषे ।
नभ ते सुरन सुमन बहु बरसे ॥ ३४॥
आपकी बुद्धि और अपने माता-पिता के प्रति आपकी श्रद्धा को देखकर भगवान शिव बहुत खुश हुए और कहा गणेश तुम धन्य हो। देवताओं ने भी इसके लिए आसमान से पुष्पों की वर्षा की।
तुम्हरी महिमा बुद्धि बड़ाई ।
शेष सहसमुख सके न गाई ॥ ३५॥
हे भगवान श्री गणेश आपकी बुद्धि व महिमा का गुणगान तो हजारों मुखों वाले शेषनाग जी भी नहीं कर सकते।
हे प्रभु मैं तो मूर्ख हूं, पापी हूं, दुखिया हूं मैं किस विधि से आपकी विनय आपकी प्रार्थना करुं !
मैं मतिहीन मलीन दुखारी ।
करहूं कौन विधि विनय तुम्हारी ॥ ३६॥
मैं तो मूर्ख, पापी और दुखियारा हूँ, मैं किस तरह से आपकी प्रार्थना और आराधना करूँ।
भजत रामसुन्दर प्रभुदासा ।
जग प्रयाग, ककरा, दुर्वासा ॥ ३७॥
हे प्रभु आपका दास रामसुंदर आपका ही स्मरण करता है। ककरा गाँव में ऋषि दुर्वासा का आश्रम ही जिसकी दुनिया हैं।
अब प्रभु दया दीन पर कीजै ।
अपनी शक्ति भक्ति कुछ दीजै ॥ ३८॥
हे प्रभु अब तो इस दीन पर अपनी ड्या दृष्टि कीजिए और अपने इस भक्त को अपनी भक्ति की शक्ति प्रदान कीजिए।
श्री गणेश यह चालीसा ।
पाठ करै कर ध्यान ॥ ३९॥
नित नव मंगल गृह बसै ।
लहे जगत सन्मान ॥ ४०॥
हे श्री गणेश जी की इस गणेश चालीसा का पाठ पूरे समर्पण भाव से आपका ध्यान करते हुए करै, उसके घर में सदा सुख शांति रहे और उसे जगत में सन्मान की प्राप्ति मिले।
॥ दोहा ॥
सम्बन्ध अपने सहस्त्र दश,
ऋषि पंचमी दिनेश ।
पूरण चालीसा भयो,
मंगल मूर्ती गणेश ॥
हे मंगल मूर्ति श्री गणेश जी दस हजार अर्थात हजारों संबंधों का निर्वाह करते आज ऋषि पंचमी के दिन आपके इस भक्त द्वारा आपकी यह चालीसा पूरी हुई हैं।
अंतिम शब्द
मैंने यहाँ पर हनुमान चालीसा का हिन्दी तथा अंग्रेजी में उच्चारण के साथ उसका अर्थ भी बताया है। यदि इसमें मुझसे कहीं भी कोई त्रुटि हुई हो तो मुझे क्षमा कीजिएगा तथा मुझे मेरी गलतियों के बारे में बताकर उसे दूर करने में मेरा मार्गदर्शन कीजिएगा।
यदि आपको मेरे द्वारा दी गई जानकारी अच्छी लगी हो तो मेरी post को Like और Share जरूर कीजिएगा।
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