Hanuman Ji Aate Hain
हनुमान जी को अमर माना गया हैं और भक्तों का विश्वास है कि जब भी उन्हें पूर्ण समर्पण भाव से पुकारा जाता है तो वे अवश्य आते हैं।
हनुमान जी के प्रत्यक्ष अपने भक्त की रक्षा के लिए आने की या प्रत्यक्ष प्रमाण करने की कई कहानियाँ प्रसिद्ध हैं। ये सत्य है या नहीं ये तो अपने-पाने विश्वास और श्रद्धा की बात है।
आज आपके समक्ष प्रस्तुत है, हनुमान जी की प्रत्यक्ष उपस्थिति को प्रमाणित करने वाली एक बहुत ही सुंदर कथा: –
हनुमान जी राम कथा सुनने के लिए जरूर आते हैं: –
एक साधु महाराज थे जो जगह-जगह पर श्री रामायण कथा का पाठ करते रहते थे। वे इतनी सरलता और सहजता से इसका पाठ करते कि बहुत से लोग उनकी रामकथा सुनने के लिए आते और आनंद विभोर होकर जाते।
साधु महाराज का एक नियम था, वे रोज कथा शुरू करने से पहले कथा स्थल पर एक आसान लगाते और कथा प्रारंभ होने से पहले हनुमान जी का आह्वान करते और कहते “आइए हनुमंत जी आसन पर बिराजिए”। उसके बाद ही अपनी कथा करते और कथा समाप्त होने पर हनुमान जी को विदा करते।
ऐसे ही एक बार वे एक जगह राम कथा कह रहे थे। वहाँ पर भी बड़ी संख्यान में लोग उनकी रामकथा सुनने के लिए दूर-दूर से आते और भाव-विभोर होकर उनके मुख से रामकथा सुनते।
वहाँ पर भी उनका वही नियम था, कथा शुरू करने से पहले हनुमान जी का आह्वान। उनकी कथा सुनने वालों में एक वकील साहब भी थे। वे भी उन साधु महाराज की कथा सुनने के लिए रोज वहाँ आते और भक्ति भाव से रामकथा का रसपान करते।
हनुमान जी की उपस्थिति पर प्रश्न?
एक दिन वकील साहब के भक्तिभाव परउनकी तर्कशीलता हावी हो गई। उन्होंने सोचा कि महाराज रोज हनुमान जी का आह्वान करते है और उन्हें आसन पर बैठाते हैं, तो क्या हनुमान जी सचमुच में आते होंगे क्या?
उस दिन से उनके मन में रामरस से ज्यादा यह विचार हावी हो गया।
एक दिन उनसे रहा नहीं गया और अंतत: उन्होंने महात्मा जी से पुछ ही लिया, “महात्मा जी आप बहुत ही सुंदर रामकथा कहते हैं, सुनकर बड़ा आनंद आता है। लेकिन कई दिनों से मेरे मन में एक प्रश्न आ रहा है, कृपया उसका समाधान कीजिए।”
महात्मा जी ने कहा, “जी वकील साहब, पूछिए मेरे ज्ञान में होगा तो मैं आपको इसका जवाब जरूर दूंगा।”
वकील साहब ने पूछा, “महात्मा जी आप आप रोज एक गद्दी हनुमान जी के लिए लगाते हैं और कथा से पहले हनुमान जी को उस पर बैठने के लिए कहते हैं। तो क्या हनुमान जी सचमुच उस गद्दी पर बिराजते हैं?
ये तो अपनी-अपनी आस्था है!
महात्मा जी ने कहा, “हाँ वकील साहब, यह मेरा व्यक्तिगत विश्वास है कि जहाँ रामकथा हो रही होती है, वहाँ हनुमान जी अवश्य पधारते हैं।
वकील साहब ने कहा, “महात्मा जी, केवल कह देने से बात नहीं बनेगी। हनुमान जी यहाँ आते हैं और इस गद्दी पर बिराजते हैं, इसका कोई सबूत दीजिए।
महात्मा जी ने कहा, “वकील साहब, ये मेरी हनुमान जी के प्रति आस्था है, उनके और मेरे मध्य भक्ति और प्रेमरस है, मेरी उनके प्रति श्रद्धा है और आस्था और श्रद्धा को किसी भी सबूत की कसौटी पर कसना नहीं चाहिए।”
वकील साहब ने कहा, “नहीं महाराज, आप रोज हनुमान जी का आह्वान करते हैं या तो आप इस बात को साबित करके दिखाइए कि हनुमान जी आपकी कथा सुनने आते हैं नहीं तो आप उनका आह्वान करना बंद कर दीजिए।”
महात्मा जी ने कहा, “वकील साहब यह मेरी श्रद्धा और आस्था का विषय है, यदि आपको यह सही नहीं लगता तो आप मेरे प्रवचन में आना बंद कर दीजिए।”
प्रमाण तो देना ही पड़ेगा!!!
वकील सहाब ने कहा, “यह आपकी व्यक्तिगत आस्था या श्रद्धा नहीं हैं आप भरे पांडाल में सबके सामने हनुमान जी का आह्वान करते हैं, इसलिए आप अपनी आस्था और श्रद्धा को दूसरों पर थोप रहे हैं। आप यह लोगों में यह भ्रम फैला रहे है कि हनुमान जी आपकी कथा में आते हैं।
महात्मा जी ने कहा, “यदि ऐसा है तो मैं रामकथा कहना बंद कर देता हूँ, क्योंकि मैं हनुमान जी के आह्वान का अपना नियम तो नहीं तोड़ सकता।”
वकील साहब ने कहा, “नहीं महाराज जी, अब ऐसे काम नहीं चलेगा आपने यहाँ और जहाँ भी पहले रामकथा की हैं वहाँ भी इस बात का दावा किया होगा कि हनुमान जी आपकी रामकथा सुनने के लिए आते है। इसलिए अब तो आपको ये साबित करना ही होगा।”
महात्मा जी ने वकील साहब को कई तर्कों से समझाने की कोशिश की लेकिन वकील का दिमाग किसी भी तर्क को मानने से इंकार करता रहा। बहुत देर तक दोनों के मध्य विवाद चलता रहा लेकिन वकील साहब अपनी बात पर अड़े रहे।
मुझे तो विश्वास नहीं है!!!
जब विवाद का अंत होते न दिखा तो महात्मा जी ने थक हार कर कहा, “ठीक है वकील साहब, हनुमान जी रामकथा में आकर गद्दी पर बिराजते हैं या नहीं इस बात का सबूत में कल की कथा में आपको दूँगा।”
वकील के दिमाग में तो अब भी शक का कीड़ा कुलबुला रहा था। वह बोला, “वाह जी महाराज, कल तक तो आप अपनी बात साबित करने के लिए इस गद्दी में कुछ न कुछ कर देंगे।”
तब महात्मा जी ने कहा, “यदि ऐसा है तो आज आप इस गद्दी को अपने घर पर ले जाइए। कल रामकथा के प्रारंभ से पहले इसे अपने साथ ले आना। तब आपके सामने ही मैं इस गद्दी को यहाँ रखूँगा और कथा से पहले हनुमान जी का आह्वान करूंगा। उसके बाद आप इस गद्दी को ऊपर उठाना। यदि आपने गद्दी को ऊपर उठा लिया तो समझ लेना की हनुमान जी यहाँ नहीं आते और यदि नहीं तो मेरी बात प्रमाणित हो जाएगी।”
भक्ति छूटेगी या वकालत?
वकील साहब इस बात के लिए तैयार हो गए। तब महात्मा जी ने कहा, “वकील साहब जब सत्य की परीक्षा हो ही रही है तो यह भी निश्चित हो जाना चाहिए कि हारने वाला क्या करेगा? मैं आपसे वादा करता हूँ कि यदि मैं हार गया तो रामकथा छोड़ कर आपके दफ्तर में चपरासी बन जाऊँगा। अब आप बताइए कि यदि आप हारे तो आप क्या करेंगे?”
वकील साहब ने कहा, “यदि मैं हार गया अर्थात गद्दी को ऊपर नहीं उठा सका तो अपनी वकालत छोड़कर आपसे दीक्षा ले लूँगा।”
बस दोनों में बात ठन गई और दोनों अपने-अपने स्थान पर चले गए। महात्मा जी ने पूरी रात हनुमान जी की प्रार्थना करते हुए बिताई।
और उधर वकील साहब ने तो घूम-घूम कर इस बात का चारों तरफ प्रचार कर दिया कि महात्मा जी कल ये साबित करेंगे कि हनुमान जी रामकथा सुनने के लिए आते हैं नहीं तो वे राम कथा का पाठ करना छोड़ देंगे नहीं तो मैं वकालत छोड़ दूँगा।
वकील साहब को विश्वास था कि उनकी वकालत पर तो कोई ग्रहण लगने वाला नहीं है, क्योंकि आस्था और श्रद्धा की बात और है लेकिन हनुमान जी सच में थोड़े ही आने वाले हैं। उन्हें अपनी जीत पर पूरा विश्वास था।
परीक्षा की घड़ी???
बस फिर क्या था बात एक कान से होते हुए दूसरे कान तक द्रुत गति से चारों ओर फैल गई। और अगले दिन पांडाल में भारी भीड़! बैठने की तो क्या तिल रखने तक की जगह नहीं रही।
जो रोज कथा सुनने के लिए नहीं आते थे, वे सब भी भक्ति, प्रेम और विश्वास की शक्ति को देखने के लिए वहाँ आ गए। जिन्हें रामकथा में विश्वास नहीं था, वो सब भी महात्मा जी का तमाशा देखने के लिए आए। और जो भगवान के भक्त थे, उनके लिए भी श्रद्धा और विश्वास का प्रश्न था।
रामकथा के तय समय पर माहात्मा जी अपने आसान पर बिराजमान हो गए और वकील साहब भी गद्दी लेकर वहाँ पँहुच गए। महात्मा जी ने वकील साहब से गद्दी लेकर अपने सामने रखी और आँख बंद कर भरे मन से हनुमान जी का आह्वान किया, “आइए हनुमंत जी बिराजिए” इतना कहते हुए उनके आँखों से अश्रु निकल गए।
उन्होंने मन ही मन हनुमान जी से प्रार्थना की, “हे हनुमान जी, आज प्रश्न केवल मेरा ही नहीं रघुकुल रीति की पंरपरा का भी है। केवल मेरी आस्था और विश्वास का नहीं आपकी भक्ति का भी है। मेरी भक्ति, श्रध्दा और आस्था की लाज अब बस आपके हाथ में ही है, इसकी लाज रखना प्रभु।”
ये कैसा चमत्कार है??
इसके बाद उन्होंने वकील साहब को आमंत्रित किया, “आइए वकील साहब, गद्दी ऊँची कीजिए।”
वकील साहब वहाँ आए और गद्दी को उठाने के लिए हाथ बढ़ाया। लेकिन ये क्या वकील साहब तो गद्दी को छू भी ना सके।
सभी लोगों की आँखे और साँसे दोनों ही जम सी गई। सब बिना पालक झपकाए अपनी साँस रोके एकटक वहीं देख रहे थे।
वकील साहब घबरा गए उन्होंने दुबारा प्रयास किया लेकिन फिर वही हुआ वे गद्दी को उठाना तो दूर उसे छू भी ना पाए। तीसरी बार उन्होंने अपनी पूरी शक्ति के साथ फिर से प्रयास किया लेकिन ढ़ाक के तीन पात वही हुआ वे गद्दी का स्पर्श भी ना कर सके।
वकील साहब को काटो तो खून नहीं! वे हाथ जोड़कर महात्मा जी के पैरों में गिर पड़े और बोले, “महात्मा जी, जिस गद्दी को कल मैं आराम से उठाकर अपने घर ले गया और आज वापस भी ले आया। लेकिन आज तो मैं इसे छू भी नहीं पा रहा हूँ।”
सारा पंडाल साँस रोके अचंभित सा होकर ये चमत्कार देख रहा था। भक्तों की आँखों से प्रेम के आँसू बहने लगे। जो भक्त नहीं थे उन्हें अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हो रहा था। लेकिन आस्था और श्रद्धा की शक्ति के आगे सभी नतमस्तक थे।
मानो तो भगवान नहीं तो पाषाण!
वकील साहब भाव विह्वल होकर महात्मा जी के चरणों में पड़े कह रहे थे, “महात्मा जी आपकी श्रद्धा और विश्वास की जीत हुई, मैं हार गया। मैं मूढ़ था जो अज्ञानता और हठ में आकर आपकी आस्था पर प्रश्न कर बैठा। आज से मैं अपना सब कुछ छोड़कर आपके चरणों में आकर दीक्षा प्राप्त करना चाहता हूँ। कृपया मुझे अपना शिष्य बना लीजिए।”
महात्मा जी ने कहा, “मैं तो केवल प्रभु चरणों का दास हूँ। आस्था ओर विश्वास में बड़ी शक्ति होती है। भगवान की मूर्ति तो पाषाण की ही होती है। भक्त की श्रद्धा और विश्वास भाव से ही उसमें प्राण प्रतिष्ठा होती है और उस पाषाण की मूर्ति में प्रभु बिराजमान हो जाते हैं। मानो तो भगवान नहीं तो पाषाण!”
इसके बाद वकील साहब दीक्षा लेकर महात्मा जी के शिष्य बन गए और अपना पूरा जीवन हनुमान जी की भक्ति में समर्पित कर दिया।
बोलो जय श्री राम! जय राम भक्त हनुमान!
अंतिम शब्द
तो देखा आपने हनुमान जी ने कैसे वकील साहब और हजारों लोगों के बीच में अपने भक्त की लाज रखी और अपनी प्रत्यक्ष उपस्थिति का भान करवाया।
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