मित्रभेद – सूत्रधार कथा – Mitrabhed – Sutradhar Katha
पंचतंत्र की कहानियाँ – मित्रभेद – सूत्रधार कथा – Mitrabhed – Sutradhar Katha
दक्षिण मे महिलारोप्य नाम का एक नगर था, जिसमें एक वर्धमान नामक वणिक-पुत्र (व्यापारी का पुत्र) रहता था। उसने धर्मयुक्त रीति से व्यापार करके बहुत सारा धन अर्जित किया था, लेकिन उसे फिर भी संतोष नहीं था। वह और अधिक धन कमाना चाहता था।
वर्धमान को पता था कि धन की प्राप्ति छ: तरीकों से की जा सकती है : 1) भिक्षा मांगकर 2) राजसेवा करके 3) खेती करके 4) विद्या दान करके 5) सूद पर धन देकर और 6) व्यापार द्वारा। इन सभी तरीकों में व्यापार ही ऐसा साधन है जिससे अधिक से अधिक धनोपार्जन किया जा सकता हैं।
व्यापार करने के भी कई तरीके होते है जैसे लेन-देन का व्यापार, जवाहरात का व्यापार, किसी परिचित ग्राहक को माल बेचना, गलत दामों पर सामान बेचना, गलत नाप तोल रखना, स्वदेश से वस्तु क्रय करके उसे स्वदेश में ही विक्रय कर दिया जाए, स्वदेश से वस्तु क्रय करके उसे परदेस में विक्रय कर दिया जाए या परदेस से उत्तम वस्तुएं खरीद कर स्वदेश में बेच दिया जाए।
व्यापार करे हम
उसने सोचा जब एक रुपये के सुगंधित इत्र को सौ रुपये में बेचा जा सकता है तो सोने का व्यापार क्यों किया जाए, परिचित ग्राहक को ठगना, गलत दामों पर सामान बेचना, गलत नाप तोल रखना तो बेईमान व्यापारियों का काम है, और संपत्ति गिरवी रख कर सूद पर धन देने वाला हमेशा भगवान से अपने कर्जदार के मरने की प्रार्थना करता है जिससे कर्जदार की सारी संपत्ति उसकी हो जाए।
वर्धमान ने सोचा परदेस में वस्तुओं के क्रय –विक्रय से दुगना या तिगुना धन अर्जित किया जा सकता है, तो क्यों नया परदेस जाकर ही व्यवसाय किया जाए। इसलिए उसने व्यापार के लिए मथुरा जाने का निश्चय किया। उसने मथुरा जाने के लिए एक सुंदर रथ बनवा कर उसमें मथुरा में बेचने वाला सामान रखवाया। फिर रथ में दो हृष्ट-पुष्ट व बलिष्ठ बैलों – संजीवक और नंदक को जुतवा कर अपनी यात्रा प्रारंभ की।
जब वर्धमान का रथ यमुना नदी के तट पर पँहुचा तो संजीवक नामक बैल वहाँ स्थित दलदल में फँस गया। उसके सेवकों ने उसे निकालने का प्रयास किया। संजीवक दलदल से तो निकल गया लेकिन उसका एक पैर टूट गया। वर्धमान को बहुत दु:ख हुआ। उसने उसके ठीक होने तक वहीं रूकने का निश्चय किया।
बुद्धमानी इसी में है
जब तीन दिन और तीन रात गुजर जाने पर भी उसकी स्थिति में कोई सुधार नहीं आया। तब उसके सारथी ने कहा, “स्वामी इस वन में कई हिंसक पशु रहते है। जिनसे बचने का हमारे पास कोई साधन नहीं है। संजीवक को ठीक होने में अभी कई दिन लगेंगे। इतने दिनों तक इस जंगल में रहकर इतने लोगों के प्राणों को संकट में डालना ठीक नहीं है। हमें संजीवक को यहीं छोड़कर आगे बढ़ जाना चाहिए।”
कहावत है, “बुद्धिमान पुरुष छोटी वस्तु के लिए बड़ी वस्तु का नाश नहीं करते, वरन छोटी वस्तु छोड़कर बड़ी वस्तु की रक्षा करना ही बुद्धिमानी है।”
वर्धमान संजीवक को छोड़ना तो नहीं चाहता था लेकिन उसके पास ओर कोई चारा नहीं था। इसलिए उसने संजीवक की सेवा व रक्षा के लिए दो रक्षकों को नियुक्त किया और अपनी यात्रा के लिए आगे बढ़ गया। एक दो दिनों में रक्षकों ने जब यह देखा कि यह जंगल तो शेर, चीते, बाघ जैसे कई हिंसक जानवरों से भरा पड़ा है। तो वे अपनी जान बचाने के लिए संजीवक को वहीं छोड़कर भाग निकले और वर्धमान के दल से या मिले।
जब वर्धमान ने उनसे संजीवक के बारे में पूछा तो उन्होनें झूठ बोल दिया, “स्वामी। संजीवक तो मर गया। वह आपको अति प्रिय था इसलिए हमने उसका दाह-संस्कार भी कर दिया।” वर्धमान संजीवक की मृत्यु का समाचार सुनकर बहुत दुखी हुआ।
मैं तो एक मनमौजी
इधर संजीवक यमुना तट की शीतल और शुद्ध हवा और हरी-हरी दूब खाकर शीघ्र ही ठीक हो गया। दूब का अग्रभाग बहुत ही फायदेमंद और बलदायक होता है। इसलिए जल्द ही वह हृष्ट-पुष्ट, बड़े डीलडोल वाला और बलशाली हो गया। वह उन्मुक्त होकर जंगल में घूमता रहता।
जब भूख लगती वन में लगी हरी-हरी घास खाता, प्यास लगती तो यमुना-तट पर जाकर मीठा-मीठा पानी पीता। कभी यमुना नदी में नहाता तो कभी उसके किनारों की मिट्टी को सींगों से पाटता, कभी वन की झाड़ियों मे अपने सींगों को उलझाकर खेलता तो कभी मदमस्त होकर जोर-जोर से हुंकार भरकर इधर-उधर भागता।
एक दिन पिंगलक नामक शेर उसी यमुना तट पर पानी पीने के लिए आया। उसे दूर से ही संजीवक की गर्जना सुनाई दी। इतनी तेज गर्जना सुनकर पिंगलक भयभीत हो गया और भागकर कर झाड़ियों मे सिमट कर बैठ गया।
शेर के साथ दो गीदड़ भी थे – करटक और दमनक। ये दोनों काभी शेर के मंत्री हुआ करते थे, लेकिन शेर ने उन्हें मंत्री पद से हटा दिया था। लेकिन फिर भी वे हमेशा शेर के पीछे पड़े रहते। जब उन्होंने पिंगलक को भयभीत होते हुए झाड़ियों में छुपते हुए देखा तो उन्हें बहुत ही आश्चर्य हुआ। उन्होंने आज से पहले कभी उसे इतना भयातुर नहीं देखा था।
ऐसा तो ना कभी देखा ना कभी सुना
यह देखकर दमनक ने करटक से कहा,
🐺 दमनक – हमारे स्वामी इस वन के राजा है। वन के सभी पशु-पक्षी इनसे डरते है। लेकिन आज वहीं भयभीत होकर सिमट कर डरे हुए बैठे है। ऐसा क्या हो गया कि वे आज यमुना तट के इतने समीप जाने पर भी बिना पानी पिए लौट आए?
🦊 करटक – कारण कोई भी हो, लेकिन हमें क्या? व्यर्थ में दूसरों के काम में हस्तक्षेप करना नुकसानदायक होता है। जो ऐसा करता है वो उस मूर्ख बंदर की तरह तड़पता है जिसने केवल जिज्ञासावश किसी दूसरे के काम में हस्तक्षेप किया था।
🐺 दमनक – (अपनी आँखों को फैलाते हुए जिज्ञासा से पूछा) यह तुम किस बंदर के बारे में बात कर रहे हो? मुझे उसके बारे में विस्तार से बताओ।
🦊 करटक – मैं तुम्हारी जिज्ञासा को शांत करने के लिए तुम्हें उस मूर्ख बंदर की कहानी सुनाता हूँ, लो सुनो!
मूर्ख बंदर की कहानी – बंदर और लकड़ी का खूंटा
🦊 करटक – इसीलिए में तुम्हें नीति की बात कहता हूँ कि जिस काम से कोई मनोरथ सिद्ध ना हो, उस काम को नहीं करना चाहिए। व्यर्थ का काम करने से समय तो बर्बाद होता ही है, प्राण जाने का खतरा भी हो सकता है। जब हमें अभी भी पिंगलक के लाए शिकार से भरपेट भोजन मिल जाता है तो फिर व्यर्थ के झंझट में क्यों पढ़ना।“
यह तो मूर्खता है
🐺 दमनक – इसका मतलब तो तुम केवल अपना पेट भरने के लिए ही जीते हो। ये बात तो बिल्कुल ठीक नहीं है। अपने लिए तो हर कोई करता है, जीने का मजा तो इसी में है, जिसके जीने से दूसरों का भी जीवन चलता हो। जीवन तो उसी का सार्थक है जो नदी के किनारे उगने वाले तृण के समान नदी में डूबने वाले का सहारा बनता है।
दूसरी बात यह है कि जिसके पास शक्ति और बुद्धि होती है और वह उसका उपयोग किए बिना ही नष्ट होने देता है उसे भी अंत में अपमानित होना पड़ता है। इसलिए हमें अपने स्वामी के हित के लिए कुछ करना चाहिए।
🦊 करटक – भाई दमनक, हम दोनों को तो महाराज पिंगलक ने अपने मंत्रीपद से च्युत कर दिया है। ऐसी हालत में तो राजा से कुछ कहना मूर्खता होगी। इससे हमें अपमान और तिरस्कार ही मिलेगा। व्यक्ति को अपनी वाणी का उपयोग भी वहीं करना चाहिए, जहाँ उसके प्रयोग से कुछ लाभ हो। जैसे कोई भी रंग सफेद कपड़े पर चढ़ाया जाए तो ही पक्का बैठता है!
🐺 दमनक – भाई, यह बात ठीक नहीं है। मामूली आदमी भी राजा की सेवा करके बड़ा पद प्राप्त कर सकता है और यदि प्रधान पद पर बैठा व्यक्ति भी सेवा ना करे तो उसका पद छीना जा सकता है। इज्जत और मान भी उसी का होता है जो राजा के निकट होता है। राजा की दृष्टि में रहने वाला व्यक्ति साधारण होते हुए भी असाधारण हो जाता है।
आखिर तुम करना क्या चाहते हो?
🦊 करटक – तुम आखिर करना क्या चाहते हो? अपना अभिप्राय स्पष्ट बताओं।
🐺 दमनक – आज हमारे स्वामी पिंगलक ही भयभीत और डरे हुए है। इस कारण उनका परिवार और सहचर भी भयग्रस्त है। मैं उनके पास जाकर उनके भय का कारण ज्ञात करके संधि, विग्रह, यान, आसान, संशय और द्वेदीभाव मे से किसी एक तरीके का प्रयोग करके भय को दूर करने का उपाय बताऊँगा।
🦊 करटक – तुम्हें कैसे पता कि हमारे स्वामी डरे हुए हैं?
🐺 दमनक – इसमें भी कोई पूछने वाली बात है। मन के भाव कहीं छुपे नहीं रहते। किसी के भी चाल-ढाल, उसकी बातचीत, आँखों और चेहरे के हाव-भाव से आसानी से उसकी मन:स्थिति बड़ी आसानी से जानी जा सकती है। स्वामी पिंगलक की स्थिति देखकर यह स्पष्ट है कि वे किसी बात से अत्यंत भयभीत हैं। मैं उनके पास जाकर अपनी बुद्धि से उनके भी को दूर करके उन्हें अपने वश में करके अपने मंत्रीपद को पुन: प्राप्त करूंगा।
🦊 करटक- (थोड़ा शंकित होते) लेकिन तुम राज-सेवा के नियमों के बारे में कुछ नहीं जानते, तो तुम स्वामी को अपने वश में कैसे करोगे?
🐺 दमनक – मेरे पिता राज-सेवा नियमों के बहुत बड़े ज्ञाता थे। मैंने अपने बचपन में ही अपने पिता से राज-सेवा और राजनीती के सभी गुर सीख लिए थे। मैं इस कला में पूर्ण रूप से पारंगत हूँ।
इस पृथ्वी पर पाए जाने वाले धन को केवल तीन तरह के लोग ही प्राप्त कर सकते है, शूरवीर, विद्वान और राजा के प्रिय सेवक। और राजा का प्रिय सेवक कैसे बना जाता है इसका मुझे पूर्ण ज्ञान है।”
🦊 करटक – (आतुरता से) राजा का प्रिय कैसे बना जा सकता है? राज-सेवा और राजनीती के बारे मे मुझे भी कुछ बताओ।
क्या होती है राजनीति?
🐺 दमनक – करटक, मैं तुम्हें राज-सेवा और राजनीती के कुछ गुर संक्षेप में तुम्हें बताता हूँ :-
- राजा का प्रिय बनने के लिए वही कार्य करना चाहिए जो राजा के हित में हो।
- जिस तरह ऊसर जमीन की कितनी भी जुताई कर ली जाए उसमें फसल नहीं उगाई जा सकती, उसी तरह जो राजा अपने सेवक के गुण ना जानता हो, उसकी सेवा करने का कोई फल नहीं मिलता।
- यदि राज्य योग्य और गुणी हो तो उसकी सेवा का फल कालांतर तक मिलता रहता है।
- गुणी व्यक्ति को चाहे कितने भी कष्ट और अपमान सहना पड़े, लेकिन वह कभी अधर्म का सहारा नहीं लेता।
- कंजूस और अपशब्द बोलने वाले स्वामी से द्वेष होने पर भी अपना द्वेष उस पर जाहीर नहीं करना चाहिए।
- जो राजा अपने सेवकों उचित आश्रय और संरक्षण प्रदान नहीं कर सकता उसका त्याग कर देना ही उचित होता है।
- राजा के निकट संबंधियों व सहयोगियों, जैसे राजमाता, राजकुमार, रानी, प्रधान-मंत्री, राजपुरोहित आदि का राजा के समान ही आदर सत्कार करना चाहिए।
- राजा के पुकारते ही तुरंत हाजिर होने वाला, उनकी लंबी आयु और विजय की कामना (जैसे : राजा की जय हो, स्वामी अमर रहे, आपकी कीर्ति सब तरफ फैले) करते हुए जवाब देने वाला और चतुराई भरे कार्य करने वाला सेवक राजा का प्रिय होता है।
- राजा से मिले धन का उचित उपयोग करने वाले, जुआ, शराब तथा पर-स्त्रियों से दूर रहने वाले और राजदरबार की गरिमा के अनुरूप वस्त्र धारण करने वाले सेवक राजा के प्रिय होते है।
- अंत:पुर की स्त्रियों से गुप्त मंत्रणा न करने वाला, युद्ध में सबसे आगे और राज्य में राजा के पीछे रहने वाला, संकट के समय भी अपनी मर्यादा में रहने वाला, और राजा के कथन का बिना किसी सवाल-जवाब के मानने वाला सेवक राजा का प्रिय होता है।
- चतुर व्यक्ति सामने वाले के हाव-भाव से उसकी मंशा जानकार उससे उसी के अनुरूप व्यवहार करके उसे अपने वश में कर लेता है।
- जिस प्रकार शेर-बाघ जैसे हिंस्र पशुओं तथा सर्प जैसे कुटिल जंतुओं से भर हुआ पर्वत दुर्गम और असाध्य होते हैं, उसी प्रकार राजा भी क्रूर तथा दुष्ट व्यक्तियों की संगति के कारण बड़े कठोर और सांप की तरह दो जीभ वाले होते हैं।
- यदि किसी सेवक द्वारा भूलवश भी राजा की इच्छा के विरुद्ध कुछ कार्य हो जाता है तो वह राजा को कितना भी प्रिय क्यों ना हो वह साँप की तरह डसकर उसे नष्ट कर देते है। इसलिए बुद्धिमान सेवक वही है जो अपने स्वामी की इच्छा के अनुकूल कार्य करके उसे प्रसन्न करके उसे वश में कर सके।
इस तरह दमनक ने करटक को राज-सेवा, राजनीती और राजा को प्रसन्न करने की कई बाते और नियम बताए जिसे सुनकर वह उसकी चतुराई का कायल हो गया और लेकिन फिर भी उसने उससे पूछा,
🦊 करटक – लेकिन तुम पिंगलक के पास जाकर सर्वप्रथम क्या कहोगे?
🐺 दमनक – ये मैं अभी से कैसे बता सकता हूँ? बात तो वहाँ जाने के बाद वहाँ पर होने वाले वार्तालाप के अनुसार ही की जा सकेगी, क्योंकि अप्रासंगिक बात करने वाले को अपमान सहना पड़ता है । इसलिए मैं वहाँ चल रहे प्रसंग के अनुसार उचित-अनुचित का विचार करके ही कुछ कहूँगा।
🦊 करटक – यदि तुमने वहाँ जाने का पूरा मन बना लिया है तो तुम अवश्य वहाँ जाओ। लेकिन मेरी एक बात हमेशा याद रखना, राजा के प्रिय बनने के बाद भी हर समय सावधान और चौकन्ने रहना। मैं तुम्हारी सफलता के लिए ईश्वर से मंगल कामना करूंगा।
अब देखों मेरी बुद्धि का कमाल
दमनक ने करटक को प्रणाम किया और पिंगलक से मिलने के लिए चल पड़ा
पिंगलक ने दूर से ही दमनक को अपनी ओर आते देख लिया उसने अपने द्वार पर नियुक्त प्रहरी से कहा,
🦁 पिंगलक – मेरे पूर्व महामंत्री का पुत्र दमनक आ रहा है। उसे बिना किसी रोक-टोक के आने दो और वह मेरे द्वितीयमण्डल में बैठने वाला और यथार्थवादी है। उसके लिए उचित आसन का प्रबंध करो।
दमनक ने राजसभा में आकार पिंगलक को प्रणाम किया और उसके संकेतानुसार अपने निर्दिष्ट आसन पर जाकर बैठ गया। पिंगलक ने अपना दाहिना हाथ उठाते हुए उसे आशीर्वाद दिया और बड़े स्नेह से पूछा,
🦁 पिंगलक – कहो दमनक, सब कुशल तो है? आज तो बहुत दिनों बाद यहाँ आए हो, क्या कोई विशेष प्रयोजन है?
🐺 दमनक – मेरा तो कोई विशेष प्रयोजन नहीं है, लेकिन कभी-कभी सेवक को स्वामी के हित की बात कहने के लिए स्वयं आना चाहिए। राजा की सभा में उत्तम, मध्यम तथा अधम-हर कोटि के सेवक होते है, और राजा की नजर में सभी का एक विशेष स्थान होता है। समय पड़ने पर तो तिनके का सहारा भी बहुत होता है, आपके इस सेवक की तो बात ही क्या है?
महाराज, आपने मुझे इतने दिनों बाद आने का उलाहना दिया है, लेकिन उसका भी कारण आप जानते है। जहां रत्नों के पारखी नहीं होते वहाँ रत्नों को उचित स्थान नहीं मिलता। कांच के स्थान पर मणि और मणि के स्थान पर कांच जड़ दिया जाता है।
मैं एक सियार हूँ यह जानकार आप मुझे तुच्छ समझ सकते है लेकिन जिस प्रकार रेशम का वस्त्र कीड़े से ही बनाता है, कमल का फूल कीचड़ व गोबर में ही खिलता है, सोना पत्थरों में ही मिलता है, चंद्रमा खारे समुन्द्र से निकलता है, मणि सांप के फन में होती है उसी प्रकार व्यक्ति अपने गुणों से पहचाना जाता है ना कि अपने जन्म से।
जिस प्रकार घर में ही पैदा होने वाली परंतु नुकसान पँहुचाने वाली चुहिया को लोग मार देते है लेकिन बिल्ली के सहायक होने के कारण लोग उसे घर में पालते है, रेड, भिंड, मदार और नरकुल जैसे पेड़ों के संग्रहण से कोई फायदा नहीं क्योंकि उनकी लकड़ी साजो-सामान बनाने योग्य नहीं होती। उसी प्रकार असमर्थ सेवक किसी काम का नहीं होता। मैं तो आपका एक समर्थ भक्त हूँ। मेरे निकटता से आपको फायदा ही होगा।
महाराज, स्वामी और सेवक एक दूसरे के पूरक होते है। जहां एक और स्वामी अपने सेवक की सेवा से प्रसन्न होकर उसे उपहार और सम्मान देते है वहीं सेवक अपने स्वामी के लिए अपने प्राण तक न्यौछावर कर देते है।
स्वामी सेवक से कितना भी नाराज क्यों ना हो जाए, एक अच्छा सेवक हमेशा उसकी सेवा के लिए तत्पर रहता है। वह कभी भी उसके अहित की नहीं सोचता। इसलिए मैं भी आपके समक्ष अपनी सेवा देने के लिए प्रस्तुत हुआ हूँ। यदि आपकी आज्ञा हो तो मैं आपसे कुछ कहना चाहता हूँ।”
🦁 पिंगलक – (उसकी बात का मर्म समझते हुए) दमनक, तुम समर्थ हो या असमर्थ लेकिन तुम हमारे भूतपूर्व मंत्री के पुत्र हो, जो भी कहना चाहते हो निश्चिंत और निर्भय होकर कहों।
राज को राज रहने दो
🐺 दमनक – महाराज, मैं आपसे एकांत में बात करना चाहता हूँ। राजनीति यही कहती है कि राज की बात चार कानों तक रहे तभी तक ही राज रहती है। छः कानों में पड़ने से वह गुप्त नहीं रह पाती इसलिए बुद्धिमानी इसी में है की ऐसी बाते चार कानों तक ही रहे।
उसकी मंशा समझ कर पिंगलक ने अपने मंत्रियों को दूर जाने का संकेत दिया। उसके संकेत पर उसके सभी मंत्री चीता, रीछ, बाघ, भेड़िया आदि उनसे दूर चले गए। तब दमनक ने पिंगलक के कान के पास जाकर धीरे से पूछा,
🐺 दमनक – स्वामी, आप नदी पर पानी पीने के लिए गए थे। लेकिन आप वहाँ से बिना पानी पिए प्यासे लौट आए और अपने मंत्रियों के बीच होते हुए भी चिंता से व्यथित क्यों बैठे है?
🦁 पिंगलक – (सकुचा कर एक फीकी हंसी हँसते हुए) नहीं दमनक, ऐसी तो कोई बात नहीं है।
🐺 दमनक – स्वामी, यदि वह बात मुझे बताने योग्य नहीं है तो मत कहिए। सभी बाते सभी को नहीं बताई जा सकती। कुछ बाते तो ऐसी होती है जो अपनी पत्नि से, तो कुछ अपने पुत्र से तो, कुछ बाते अपने रिस्तेदारों से यहाँ तक की अपने परम प्रिय मित्रों से भी कहने योग्य नहीं होती। ऐसी बातों को तो किसी के बहुत अनुरोध करने पर भी नहीं बताना चाहिए। ऐसी बाते तो बहुत विचार करके किसी योग्य व्यक्ति से ही करनी चाहिए।
दमनक की बात सुनकर पिंगलक ने मन ही मन सोचा, बातों से तो दमनक बुद्धिमान और योग्य लग रहा है, लेकिन क्या मुझे अपने डर की बात इसे बतानी चाहिए? कुछ देर विचार करने के बाद उसने अपने मन का भेद दमनक के समक्ष खोलना ही उचित समझा। उसने दमनक से कहा,
🦁 पिंगलक – दमनक, यमुना नदी के तट से रह-रहकर जो भयंकर गर्जना सुनाई देती है, क्या तुम भी उसे सुन सकते हो?
🐺 दमनक – हाँ महाराज, ये गर्जन तो मुझे भी सुनाई देती है।
🦁 पिंगलक – मैं सोच रहा हूँ कि यह जंगल छोड़कर कहीं और चल जाऊँ।
🐺 दमनक – लेकिन क्यों, महाराज?
पिंगलक – मुझे लगता है इस जंगल में कोई बहुत ही बलशाली जानवर आ गया है। जिसकी गर्जना ही इतनी भयंकर है वह खुद कितना बलशाली, भयंकर और पराक्रमी होगा।
आवाज से क्या डरना!
🐺 दमनक – स्वामी, केवल ऊंचे शब्द मात्र से डरकर अपने पुरखों का राज्य छोड़कर जाना युक्ति सम्मत नहीं है। भेरी, मृदंग, शंख, पटह, कायल आदि कई वाद्य यंत्र है जिनकी आवाज बहुत तेज होती है लेकिन उनसे डरा नहीं जाता।
🐺 दमनक – महाराज, बलहीन, गौरवहीन तथा मानहीन व्यक्ति की गति एक तिनके के समान ही होती है जिसे हवा, पानी अपने वेग के साथ अपने साथ बहा ले जाते है। लाख के बने गहने सहारा मिलने पर भी कमजोर ही होते है। उनमें मजबूती नहीं आती। लाख के गहनों और तिनके के समान व्यक्तित्व वाले मनुष्य के जीवन का कोई प्रयोजन नहीं होता।
महाराज, जिस प्रकार गर्मी में तालाब सूख जाते है लेकिन समुन्द्र उछाले मारता रहता है उसी प्रकार अति संकट की घड़ी, अति भयंकर और बलवान शत्रु से युद्ध के समय धैर्य से उसका सामना करने वाले पुरुष विरले ही होते है। इसलिए आपको भी अपना धैर्य ना खोते हुए केवल आवाज से नहीं डरना चाहिए। बल्कि उसके बारे में पूरा पता लगाना चाहिए। हो सकता है यह सिर्फ आपके मन का वहम मात्र हो। बिल्कुल वैसे ही जैसा गोमायू गीदड़ के साथ हुआ।
🦁 पिंगलक – गोमायू? कौन गोमायू? उसके साथ ऐसा क्या हुआ?
🐺 दमनक – इसके लिए में आपको गोमायू गीदड़ की कहानी सुनता हूँ, सुनिए!
गोमायू गीदड़ की कहानी – ढोल की पोल
कहानी सुनाने के बाद दमनक ने कहा,
🐺 दमनक – तभी मैं कहता हूँ महाराज, की केवल आवाज मात्र से डरकर भागना ठीक नहीं है।
🦁 पिंगलक – लेकिन दमनक, मैं क्या करू? उस आवाज को सुनकर मेरे सभी संगी-साथी जंगल छोड़कर जाना चाहते है। मैं उन्हें कैसे धीरज दिलाऊँ?
🐺 दमनक – स्वामी, इसमें आपके सेवकों का क्या दोष है? सेवक तो अपने स्वामी का ही अनुसरण करते है। जैसा स्वामी करेगा उसके सेवक भी वैसा ही करेंगे, यहीं दुनियाँ की रीत है। आप कुछ समय तक धीरज रखिए। मैं शीघ्र ही इस आवाज का रहस्य पता करके आता हूँ। उसके बाद ही इस विषय में कुछ निर्णय लिया जा सकेगा।
🦁 पिंगलक – (आश्चर्य से) क्या तुम वास्तव में वहाँ जाने का साहस रखते हो?
🐺 दमनक – महाराज, स्वामी के आदेश की पालन करना तो सेवक का धर्म है। आप कहे तो आपका यह सेवक सांप के मुँह में भी हाथ डाल दे, जलती अग्नि में कूद पड़े, दुसाध्य समुन्द्र को पार करने के लिए भी छलांग लगा दे। स्वामी के आदेश के बाद भी अपना हित देखने वाले सेवक का तो स्वामी को त्याग कर देना चाहिए।
🦁 पिंगलक – अगर ऐसी बात है तो जाओ दमनक, शीघ्र ही इस आवाज के रहस्य का पता लगा कर आओ। मैं तुम्हें आशीर्वाद देता हूँ, तुम्हारा मार्ग कल्याणकारी हो?
पिंगलक की आज्ञा पाकर दमनक ने पिंगलक को प्रणाम किया और आवाज की दिशा में चल पड़ा।
दमनक के जाने के बाद भयातुर पिंगलक को पछतावा होने लगा वह सोचने लगा कि मैंने बेकार ही दमनक की बातों में आकर अपना भेद उसके सामने खोल दिया। अपना मंत्री पद छिन जाने से वह तो मुझसे पहले से ही खिन्न है। एक बार सम्मान पाकर अपमानित होने वाले सेवक कभी विश्वासपात्र नहीं होते। वे अपने अपमान का बदला लेने के लिए अवसर की तलाश में रहते है।
मैंने उसे आपना भेद बताकर उसे यह अवसर प्रदान कर दिया है। हो सकता है मेरा भेद जानने के बाद वह मुझसे बदला लेने के लिए दूसरे पक्ष से जाकर मिल जाए और घात लगवाकर मुझे ही खत्म करवा दे। इसलिए मुझे किसी दूसरे स्थान पर छिपकर उस पर नजर रखनी चाहिए। इतना सोचकर पिंगलक अकेला ही वहाँ से दूसरी जगह चला गया।
अब तो चाँदी ही चाँदी
उधर दमनक आवाज की दिशा में चलते-चलते संजीवक के पास पँहुचा तो उसकी खुशी का ठिकाना ही नहीं रहा। जिसकी आवाज से पिंगलक डर रहा था, वह कोई भयंकर जानवर नहीं बल्कि एक सीधा-सादा बैल था।
उसने मन ही मन सोचा मुझे इस अवसर का लाभ उठाने के लिए संधि-विग्रह की कूटनीति का प्रयोग करके पिंगलक को अपने वश में कर लेना चाहिए। यह सोचते-सोचते वह वापस पिंगलक से मिलने चल दिया। पिंगलक ने दूर से उसे अकेला ही आते देखा तो उसके मन में धीरज बँधा। वह उसके सामने आ गया। पिगलक को अपने सामने देख के दमनक ने पिंगलक को प्रणाम किया। पिनलक ने बड़ी आतुरता से पूछा,
🦁 पिंगलक – दमनक, तुमने उस भयंकर प्राणी को देखा क्या? पूछा
🐺 दमनक – हाँ स्वामी, आपकी दया से मैं उसे देख आया हूँ?
🦁 पिंगलक – (आश्चर्य से) क्या तुम सच कह रहे हो?
🐺 दमनक – मैं आपका एक तुच्छ सेवक हूँ और आपको देवता की तरह पूजता हूँ। मैं आपसे असत्य कैसे बोल सकता हूँ!
🦁 पिंगलक – इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि तुमने उसे देख लिया हो बल्कि आश्चर्य तो यह है कि उसने तुम्हें मारा नहीं। शायद इसलिए कि जिस तरह आंधी का झोंका बड़े-बड़े वृक्षों को ही गिराता है घासफूस को नहीं, उसी तरह कोई भी बलवान व्यक्ति अपने समान बलवान व्यक्ति पर ही अपना पराक्रम दिखाते है तुम्हारे जैसे दीन और तुच्छ प्राणी पर नहीं।
🐺 दमनक – (अपने क्षोभ को छिपाते हुए) आपने सही कहा, वह प्राणी सचमुच बहुत ही बलवान है। लेकिन यदि आपकी आज्ञा हो तो आपका ये दीन और तुच्छ सेवक उस बलवान प्राणी को भी आपका सेवक बना सकता है।
🦁 पिंगलक – (आश्चर्यचकित होते हुए) क्या तुम सच कह रहे हो? क्या ऐसा संभव है? ये तुम कैसे करोगे?
जो चाहा वो मिल गया
🐺 दमनक – महाराज, बुद्धिबल के सामने सभी बल व्यर्थ है, जो काम बड़े-बड़े हथियारों, बड़ी से बड़ी सेना और बल से नहीं किया जा सकता उसे बुद्धिबल से बड़ी सहजता से किया जा सकता है।
🦁 पिंगलक – (प्रसन्न होते हुए) यदि तुम ऐसा कर दो तो मैं आज ही तुम्हें अपना प्रधान-मंत्री नियुक्त करता हूँ और आज से ही तुम्हें प्रजा को ईनाम और दंड देने का अधिकार देता हूँ।”
पिगलक से मंत्रीपद और अधिकार का आश्वासन पाकर दमनक संजीवक के पास गया और अकड़ते हुए बोला,
🐺 दमनक – अरे ओ दुष्ट बैल, इधर आ। मेरे स्वामी पिंगलक तुम्हें बुला रहे है। यहाँ नदी के किनारे निशंक होकर व्यर्थ में हुंकार भरने की तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई?
🐂 संजीवक – (आश्चर्य से) पिगलक! यह पिगलक कौन है?
🐺 दमनक – अरे, इस जंगल में रहकर भी तुम इस वन के स्वामी पिंगलक को नहीं जानते। तुम्हें इसका फल जरूर मिलेगा। (उसने पिंगलक की तरफ इशारा करते हुए कहा) वह देख उस बरगद के पेड़ के नीचे जो इतने बलशाली और जंगली जानवरों से घिरा हुआ सिंह बैठा हुआ है वहीं हम सबका स्वामी और वनराज पिंगलक है।
यह सुनकर संजीवक के प्राण हलक में आ गए। वह डर के मारे कांपते और गिड़गिड़ाते हुए बोला,
🐂 संजीवक – मित्र! तुम तो बहुत ही सज्जन और चतुर जान पड़ते हो। यदि तुम मुझे अपने स्वामी के पास ले जाना चाहते हो तो पहले उनसे मेरे लिए अभयदान लेकर आ जाओ, मैं तुरंत तुम्हारे साथ चल दूंगा।
🐺 दमनक – तुमने मुझे मित्र कहा है, तुम यहीं ठहरो मैं अभी अपने स्वामी से तुम्हारे लिए अभयदान की बात करके आता हूँ।
दमनक उसी समय पिंगलक के पास पँहुचा और कहा,
🐺 दमनक – स्वामी, वह कोई साधारण प्राणी नहीं है, वह तो भगवान शंकर का वाहन बैल है। उसने मुझे बताया है कि भगवान शंकर ने उस पर प्रसन्न होकर उसे यमुना तट पर हरी-हरी घास खाने और खेलने के लिए ये पूरा वन उसे सौंप दिया है।
🦁 पिंगलक – (भयभीत होकर) तुम सच ही कह रहे हो दमनक, क्योंकि बिना भगवान के आशीर्वाद से कोई भी बैल जंगली और हिंसक जानवरों से भरे जंगल में इतना निर्भय होकर नहीं विचरण नहीं कर सकता। फिर तुमने उसे क्या उत्तर दिया?
🐺 दमनक – महाराज, मैंने उससे कहा यह वन तो पहले से ही भगवती दुर्गा के वाहन सिंह के अधिकार में है। इसलिए तुम उनके साथ उनके अतिथि और मित्र बनकर इस वन में निर्भय होकर रहो तथा उनके साथ आनंद से इस वन में विचरण करों।
🦁 पिंगलक – तो उसने क्या जवाब दिया?
🐺 दमनक – उसने मेरी बात स्वीकार कर ली और उसने आपको अभयदान देते हुए कहा कि तुम भी अपने स्वामी से मेरे लिए अभय का वचन लेकर आ जाओं तो मैं तुम्हारे साथ तुम्हरे स्वामी के पास चलूँगा। अब स्वामी की जैसी आज्ञा।
दमनक की बात सुनकर पिंगलक बहुत प्रसन्न हुआ और उसकी प्रशंसा करते हुए बोला,
🦁 पिंगलक – दमनक यह तुमने बहुत अच्छा किया। मैं तुमसे बहुत प्रसन्न हूँ । तुमने तो मेरे दिल की बात कह दी। मैं उसे अभयदान देता हूँ। तुम अभी जाओ और उसे मेरे पास ले कर आओ।
मुझसे दगा ना करना
दमनक ने अपनी बुद्धि और चातुर्य से पिनलक को प्रसन्न कर लिया था और अपना पद भी पुन: प्राप्त कर लिया था। अपनी सफलता पर इतराता हुआ वह संजीवक के पास गया और बड़े प्यार से बोला,
🐺 दमनक – मित्र! मैंने मेरे स्वामी को प्रसन्न करके तुम्हारे लिए अभयदान ले लिया है। अब तुम निडर होकर मेरे साथ चलो। किंतु याद रहे कि राजा का साथ और कृपा पाने के बाद तुम अभिमानी मत हो जाना। मेरे साथ मित्रता का संबंध निभाते हुए मुझसे उचित व्यवहार ही करना। मैं भी तुम्हारी सलाह मशविरा से राज-काज करूंगा।
ऐसा करने से हम दोनों ही राज-लक्ष्मी का सुख भोगेंगे। जो व्यक्ति पद के अहंकार के कारण उत्तम, मध्यम और अधम व्यक्तियों का उचित सम्मान नहीं करते, वे राजा का सम्मान पाने के बाद भी व्यापारी दंतिल की तरह पदच्युत हो जाते है और दुःख भोगते हैं।”
🐂 संजीवक – यह दंतिल कौन था? उसने ऐसा क्या किया कि उसे पदच्युत होना पड़ा?
🐺 दमनक – चलों, मैं पहले तुम्हें व्यापारी दंतिल की कथा सुनाता हूँ।
व्यापारी दंतिल की कथा – व्यापारी का पतन और उदय
कहानी सुनाकर दमनक ने संजीवक से कहा,
🐺 दमनक – इसलिए मैंने जो तुमसे कहा है उसका सदा ध्यान रखना।
🐂 संजीवक – ठीक है मित्र, तुम जैसा कह रहे हो मैं वैसा ही करूँगा।”
संजीवक से भी आश्वासन पाकर दमनक उसे पिंगलक के पास ले आया और प्रणाम करके बोला,
🐺 दमनक – प्रणाम महाराज, मैं संजीवक को अपने साथ लेकर आ गया हूँ।
संजीवक ने भी पिंगलक के पास जाकर उसे प्रणाम किया। पिंगलक ने अपने दाहिने हाथ को उठाया और बड़े ही प्यार से संजीवक से पूछा,
🦁 पिंगलक – मित्र, आप कुशल से तो है? आपको इस जंगल में किसी प्रकार का कष्ट तो नहीं हुआ? आप इस जंगल में कैसे पँहुचे?
तब संजीवक ने विस्तार से उसे अपने जंगल तक पँहुचने की कथा सुनाई। उसकी कथा सुनकर पिंगलक ने बड़े आदर से कहा,
🦁 पिंगलक – मित्र, डरों मत, यह वन मेरे द्वारा सुरक्षित है। अब तुम मेरी शरण में हो। इस वन में कोई भी तुम्हारा बाल भी बांका नहीं कर सकता। लेकिन फिर भी तुम हमेशा मेरे साथ ही रहना क्योंकि यह वन जंगली और हिंसक जानवरों से भरा हुआ है। बड़े-बड़े जानवरों को भी यहाँ पर डर–डर कर रहना पड़ता है। लेकिन तुम यहाँ मेरे साथ निर्भय होकर विचरण करों।
इसके बाद पिंगलक ने जंगल की सारी व्यवस्था की देखरेख दमनक और करटक को सौंप दी और वह अपना ज्यादा से ज्यादा समय संजीवक के साथ बिताने लगा। दमनक और करटक भी कई दिनों तक बड़े मजे से जंगल पर अपना शासन करते रहे।
पासा ही उल्टा पड़ गया
लेकिन जल्द ही पिंगलक संजीवक के साथ रहकर नगर की सभ्यता से परिचित हो गया। उस पर संजीवक की बातों से का इतना प्रभाव पडा कि उसने हिंसा करना छोड़ दिया और अब वह जंगल के जानवरों की भलाई के कार्य करने लगा।
वह बाकी सभी जानवरों की उपेक्षा करके राज के हर कार्य का निर्णय लेने के लिए वह एकांत में संजीवक की सलाह-मशविरा से लेने लगा। यहाँ तक कि अब तो वह दमनक और करटक को भी अपने पास फटकने नहीं देता था। संजीवक के बढ़ते और अपने घटते प्रभाव को देखकर उनके तन बदन में आग लग जाती थी।
पिंगलक द्वारा हिंसा छोड़ देने के कारण अब वह बिना वजह जानवरों को शिकार नहीं करता था। इस कारण उसके शिकार करने के पश्चात बचे-खुचे माँस पर गुजारा करने वाले करकट और दमनक और अन्य छोटे जीव भूख से व्याकुल रहने लगे। तब दमनक ने करटक से कहा,
🐺 दमनक – करटक भाई, ये क्या हो गया? महाराज पिंगलक की दृष्टि में अपना महत्व बढ़ाने के लिए मैंने संजीवक और महाराज की मित्रता करवाई थी। लेकिन यहाँ तो पासा ही उल्टा पड़ गया, महाराज तो मुझसे ज्यादा संजीवक को महत्व देने लग गए है। वह हमसे ही नहीं अपनी शरण में रहने वाले जानवरों से भी विमुख हो गया है। यहाँ तक कि वह अपना काम शरणागत की रक्षा और उसके भरण-पोषण का काम भी भूल गया है। अब हमें क्या करना चाहिए?
🦊 करटक – तुम्हें जाकर पिंगलक को समझाना चाहिए और यदि वह तुम्हारी बात ना माने तो तुम्हारा कर्तव्य है कि वह अपना दोष बताते हुए अपने राजा को समझाए। इसमें तुम्हारा ही दोष है क्योंकि तुम्हीं उस संजीवक को पिंगलक के पास लेकर गए थे और उनमें मित्रता करवाई थी। इसलिए तुम्हें ही अब इसे ठीक करना पड़ेगा।
🐺 दमनक – हाँ, तुम ठीक कहते हो इसमें मेरा ही दोष था जैसे दो भेड़ों की लड़ाई में मरने वाला सियार खुद दोषी था।
🦊 करटक – वह कैसे?
🐺 दमनक – मैं तुम्हें उस मूर्ख सियार की कथा सुनाता हूँ।
मूर्ख सियार की कहानी – लड़ती भेड़ें और सियार
मैं किसी से कम नहीं
सियार की कथा सुनाकर दमनक ने कहा,
🐺 दमनक – माना दोनों का मेल कराने में मेरा ही हाथ है। लेकिन जो मेल करवा सकता है वह फूट भी डाल सकता है।
🦊 करटक – माना कि तुम्हारी बुद्धि बहुत तेज है लेकिन संजीवक भी बहुत ही बुद्धिमान है और दूसरी तरफ पिंगलक बहुत ही ताकतवर और भयानक प्राणी है। क्या फिर भी तुम उन दोनों को अलग करवाने में समर्थ हो पाओगे?
🐺 दमनक – तुम चिंता मत करों, मैं असमर्थ होते हुए भी समर्थ हूँ। जो काम पराक्रम से नहीँ हो सकता उसे चतुराई से पूरा किया जा सकता है। सच तो यह है कि बुद्धिबल के सामने बड़े से बड़ा बलशाली का बल भी व्यर्थ है। जिस प्रकार कौवे और कव्वी ने एक सोने के हार के सहारे एक विषधर काले साँप का, छोटे से केकड़े ने बगुले का और नन्हे से खरगोश ने बलशाली शेर का अंत कर दिया था।
🦊 करटक – वह कैसे?
तब दमनक ने उसे कौआ, कव्वी और दुष्ट सांप, बगुला भगत और केकड़ा और खरगोश और शेर की कथा सुनाई।
कौआ, कव्वी के बच्चों को खाने वाले दुष्ट सांप के अंत की कहानी – कौआ, कव्वी और दुष्ट सांप
छोटे से केकड़े द्वारा कपटी बगुले को सजा देने की कहानी – बगुला भगत और केकड़ा
नन्हे से खरगोश द्वारा बलशाली शेर के अंत की कहानी – चतुर खरगोश और शेर
ये तीनों कहानियाँ सुनाने के बाद दमनक ने कहा
🐺 दमनक – तभी मैं कहता हूँ जिसके पास बुद्धि है वह निर्बल होते हुए भी बली है लेकिन जिसके पास बुद्धि नहीं है वह बलवान होते हुए भी निर्बल है उसका बल व्यर्थ है। शत्रु को उपाय से अपने वश में करके उस पर आसानी से विजय पाई जा सकती है।
🦊 करटक – हाँ, तुम बिल्कुल सही कहते हो।
अब तो यहीं करना होगा
🐺 दमनक – तो फिर तुम ठीक समझो तो मैं महाराज पिंगलक के पास जाकर अपनी चतुराई से उन दोनों की मित्रता तोड़ दूँ। मुझे तो अपनी प्रभुता को बनाए रखने का बस यहीं एक उपाय समझ में आ रहा है।
🦊 करटक – मुझे भी यही सही जान पड़ता है। इसलिए तु शीघ्र वहाँ जा और उनमें भेद करवाने के लिए प्रयत्न कर। मैं ईश्वर से प्रार्थना करता हूँ कि वे तुझे सफलता प्रदान करे।
आपस में सलाह मशविरा करने के बाद दमनक पिंगलक के पास गया और मौके की तलाश में छिप कर बैठ गया। जैसे ही संजीवक पिंगलक के पास से गया दमनक पिंगलक के पास पँहुच गया और हाथ जोड़कर उसे प्रणाम किया। पिंगलक ने उसे बैठने का इशारा किया और पूछा,
🦁 पिंगलक – कहो दमनक कैसे हो? आज तो बहुत दिनों बाद दिखाई दिए हो।
🐺 दमनक – महाराज हमें लगता है कि अब आपको हमारी कोई जरूरत नहीं है। लेकिन आपके हित की बात कहने के लिए मैं अपने आपको रोक नहीं सका। मेरा मानना है कि हित की बात बिना पूछे भी कह देनी चाहिए।
🦁 पिंगलक – दमनक तुम कहना क्या चाहते हो? निर्भय होकर अपनी बात कहो।
🐺 दमनक – महाराज, संजीवक आपका वफादार नहीं है। मन ही मन वह आपसे दुश्मनी रखता है। वह मुझे अपना मित्र और विश्वासपात्र समझता है इसलिए उसने आज सुबह ही मुझसे एकांत में कहा कि मैंने पिंगलक के साथ रहकर उसके बारे में सब कुछ जान लिया है। उसका बल और उसकी कमजोरियाँ। मैं उसका वध करके इस जंगल का राजा बन कर इस जंगल पर राज करूंगा और मंत्री पद पर तुम्हें आसीन करूंगा।
ऐसा नहीं हो सकता
दमनक के मुख से संजीवक के बारे में ऐसी बात सुनकर पिंगलक के होश उड़ गए। उसे मूर्छा आने लगी। उससे कुछ भी बोला नहीं गया।
यह देख कर पिंगलक ने सोचा पिंगलक संजीवक से कितना प्रगाढ़ प्रेम करते है, जो उसके बारे में ऐसी बात सुनकर इनकी ये हालत हो रही है। जो राजा इस तरह अपने मंत्री के वश में हो जाता है वह अवश्य ही नष्ट हो जाता है।” यह सोचकर उसने पिंगलक के ऊपर से संजीवक के प्रभाव को पूरी तरह से हटाने का पूरा निश्चय कर लिया और बोला,
🐺 दमनक – यह बात जानकार मैं चुपचाप नहीं रह सकता था। मैं आपका विश्वासपात्र और पुराना सेवक हूँ। इसलिए जैसे ही संजीवक आपसे कुछ दूर हुआ, मैं आपके हित के लिए आपको सारी बात बताने के लिया यहाँ चला आया।
🦁 पिंगलक – (थोड़ा होश में आने के बाद) संजीवक तो मेरा वफादार सेवक और मित्र है। वह मुझे अपनी जान से भी ज्यादा प्यार करता है वह मेरे साथ द्रोह नहीं कर सकता।
🐺 दमनक – राजनीति में इस बारे में कुछ भी नहीं कहा जा सकता जो आज विश्वासपात्र है वह कल विश्वासघाती भी बन सकता है। राज्य का मोह किसी के भी मन को बदल सकता है। इसमें कोई नई बात नहीं है कि जो जरा सा भी बलशाली होता है वह सत्ता अपने हाथ में रखना चाहता है।
🦁 पिंगलक – लेकिन दमनक, मेरे मन में संजीवक के प्रति कोई द्वेष भावना जाग्रत नहीं होती। जिस प्रकार अपना शरीर की दोषों के होते हुए भी प्रिय लगता है, उसी तरह जो प्रिय होता है वह अप्रिय कार्य करे तो भी वह प्रिय ही रहता है।
🐺 दमनक – यहीं तो गलत है। महाराज आपकी जिस पर भी कृपादृष्टि होगी वह अपात्र होते हुए भी आपका प्रिय हो जाएगा। आपने संजीवक में ऐसा कौनसा गुण देखा है जो आपने उसे इतना प्रिय बना लिया है। शायद आप समंझते है कि संजीवक बड़े डीलडौल वाला और बलशाली है और आवश्यकता पड़ने पर वह शत्रुओ पर विजय प्राप्त करने में आपकी सहायता करेगा।
लेकिन महाराज आपके सभी शत्रु मांसाहारी है और संजीवक एक घास-फूस खाने वाला शाकाहारी जानवर है। वह किसी भी प्रकार से आपके शत्रुओं पर विजय पाने में आपकी सहायता नहीं कर सकता। बल्कि वह तो आपको ही धोखे से मारकर आपके राज्य को हड़पना चाहता है। इसलिए मेरा तो मानना है कि इससे पहले कि वह आपको कुछ हानि पँहुचाए आप उसे मार डालिए।
🦁 पिंगलक – लेकिन दमनक, जिसे हमने इसी राज्यसभा में गुणी और बलशाली बता कर पद प्रदान किया था उसे अब किस वजह से निर्गुणी बता सकते है? और तुम्हारे ही कहने पर मैंने उसे अभयदान दिया था तो मैं अब उसे मारकर अपनी प्रतिज्ञा भंग नहीं कर सकता। संजीवक मेरा परम मित्र है और मेरे मन में उसके प्रति कोई रोष नहीं है।
जिस प्रकार अपने द्वारा पोषित विषैले पौधे को पोषित करने वाला उसे काट नहीं सकता उसी प्रकार जो मेरा शरणागत है उसे मारना मुझे शोभा नहीं देता। उपकारियों को पनाह देने में साधुता नहीं बल्कि जो अपकारियों को भी पनाह देता है वहीं सच्चा साधु होता है। यदि वह मेरा अहित करने की सोच भी रहा है तब भी मुझे उसे नहीं मारना चाहिए।
नीति भी यहीं कहती है!
🐺 दमनक – स्वामी, यह आपकी श्रेष्टता है। लेकिन दुश्मन को क्षमा कर देना राजनीति की दृष्टि से मूर्खता है। ऐसा करने वाला स्वयं मर जाता है। आपने तो उसकी मित्रता में अपना राज-धर्म भी भुला दिया है। जिसके कारण आपके अनुचर भी आपसे विरक्त हो गए है। संजीवक शाकाहारी है और आप मांसाहारी।
उसके साथ रहने से आपने अहिंसा की प्रवृत्ती अपना ली है जिसके कारण आपके द्वारा छोड़े हुए माँस से अपना भरण-पोषण करने वाले आपके अनुचर आपसे दूर हो रहे है। यह बात आपके और आपके राज्य दोनों के लिए ही ठीक नहीं है। जो व्यक्ति जैसे व्यक्ति के साथ रहता है उसकी प्रवृत्ति भी वैसी ही हो जाती है।
जिस प्रकार पानी जब सीप में जाता है तो मोती बनकर निकलता है, वहीँ पानी जब कमल के फूल के पत्ते पर गिरता है तो मोती के समान नजर आता है। लेकिन जब यहीं पानी तपते हुए लोहे पर गिरता है तो भाप बन कर उड़ जाता है। इसलिए हमें हमेशा ऐसी प्रकृति के लोगों के साथ ही रहना चाहिए जिससे हमारी शान में और वृद्धि हो।
अच्छे लोगों को नीच लोगों तथा अलग प्रकृति वाले लोगों का त्याग कर देना चाहिए तथा उन्हें आश्रय भी नहीं देना चाहिये नहीं तो मंदविसर्पिणी के समान प्राण देकर उसका मूल्य चुकाना पड़ सकता है।
🦁 पिंगलक – वह कैसे?
🐺 दमनक – तो महाराज सुनिए
मंदविसर्पिणी जूँ और अग्निमुख खटमल की कथा – जूँ और खटमल
🐺 दमनक – (कहानी सुनाने के बाद) इसलिए मैं आपसे कहता हूँ आप संजीवक को मार डालिए नहीं तो वह आपको मार डालेगा या आप उसके प्रभाव में आकर अपने हितैषियों से दूर हो जाएंगे। अपनों को दुत्कार कर जो परायों पर भरोसा करता है वह चंडरव सियार की तरह मारा जाता है।
🦁 पिंगलक – वह कैसे?
🐺 दमनक – तो फिर सुनिए महाराज-
चालाक चंडरव सियार की कहानी – नीला सियार
🐺 दमनक – जिस प्रकार चंडरव सियार ने अपने कुटुंब व रिश्तेदारों से दूर होकर कर अन्य ऐसे जानवरों को अपने करीब रखकर, जो उसकी प्रकृति के नहीं थे, अपनी जान गंवाई। उसी तरह कहीं आपको भी अपनी जान से हाथ ना धोना पड़ जाए क्योंकि आप भी अपने पुराने मित्रों व हितैषियों पर भरोसा ना करके कल के आए हुए संजीवक को इतना महत्व दे रहे है।
मैं कान का कच्चा नहीं हूँ
🦁 पिंगलक – मैं तुम्हारी बातों पर कैसे विश्वास कर लूँ, क्योंकि कुछ दिनों पहले ही तुमने संजीवक की प्रशंसा करके उसे मेरा मित्र बनवाया था। इस बात का तुम्हारे पास क्या प्रमाण है कि संजीवक मुझसे द्वेष रखता है। वह राजा अच्छा शासक नहीं हो सकता, जो बिना किसी प्रमाण के केवल कानों सुनी बातों पर किसी को दंड दे दे।
🐺 दमनक – ठीक है इस बात का प्रमाण कल आप अपनी आँखों से देख लेना। आज सुबह ही उसने मेरे सामने अपना भेद खोला है कि कल वह आपका वध कर देगा। कल आप स्वयं देखेंगे कि वह अपनी क्रोध से भरी लाल आँखों से आपको वक्रदृष्टि से देख रहा होगा, उसके होंठ ऐसे फड़क रहे होंगे कि जैसे वह अभी आप पर हमला बोल देगा। तब आपको मेरी बात पर विश्वास हो जाएगा।
🦁 पिंगलक – ठीक है कल ऐसा होगा, तब इस बात पर निर्णय लिया जाएगा।
🐺 दमनक – ठीक है महाराज अब मैं भी चलता हूँ।
अब अगली चाल
पिंगलक को संजीवक के खिलाफ भड़काने के बाद दमनक संजीवक के पास गया। उसने एक फीकी सी हंसी के साथ संजीवक को प्रणाम किया और चुपचाप उदास होकर उसके पास बैठ गया। उसे इस तरह से देख संजीवक ने उससे पूछा,
🐂 संजीवक – आओ मित्र, तुम्हारा स्वागत है। आज तो बहुत दिनों बात अपने इस मित्र की याद आई। सब कुशल तो है?
🐺 दमनक – (ठंडी श्वास छोड़ते हुए) मित्र, राजा के सेवकों की क्या कुशलता पूछना। वे तो पराधीन होते है। उनका चित्त तो हमेशा चिंतातुर ही रहता है। वे नया तो अपने मन की कर सकते है और ना ही नि:शंक होकर अपनी बात कह सकते है। सेवावृत्ति तो सबसे अधम काम है। सेवक से तो एक कुत्ता अच्छा होता है जो अपनी मर्जी का मालिक होता है। सेवक का तो सब कुछ मालिक ही होता है।
उसे हर काम अपने स्वामी की इच्छा-अनिच्छा से करना पड़ता है। सेवक अपने स्वामी की सेवा के लिए जितना कष्ट सहता है उतने कष्ट सहकर भगवान का ध्यान करें तो उसे मोक्ष ही मिल जाए।
🐂 संजीवक – तुम कहना क्या चाहते हो? साफ-साफ कहो।
🐺 दमनक – स्वामी का भेद बताने से बड़ा पाप और कुछ भी नहीं है। जो सेवक राज्य का भेद खोल दे उसे तो उसी क्षण मार दिया जाना चाहिए।
🐂 संजीवक – मित्र, लगता है आज तुम किसी बात से बहुत व्याकुल हो। माना कि मंत्रियों को सब कुछ गुप्त रखना चाहिए लेकिन मैं भी राजा का ही मंत्री हूँ। इससे भी बढ़कर मैं तुम्हारा परम मित्र भी हूँ। तुम्हारे और मेरे मध्य कोई भी पर्दा नहीं है। तुम जो भी बात कहना चाहते हो निर्भय होकर कहो।
🐺 दमनक – मित्र, तुम मेरे भी परम मित्र हो और मैं तुमसे बहुत स्नेह करता हूँ। तुम मेरे ऊपर विश्वास करके ही शेर के साथ रहना स्वीकार किया था। इसलिए मैं तुम्हारा अहित होते हुए नहीं देख सकता। मैं तुम्हें राज की बात बताता हूँ कि महाराज पिंगलक के मन में तुम्हारे प्रति दुराव आ गया है। आज सुबह ही वे मुझसे कह रहे थे कि… कि……
🐂 संजीवक – क्या कह रहे थे? तुम नि:संकोच होकर अपनी बात कहो।
🐺 दमनक – वे कह रहे थे कि कल सुबह वे तुम्हें मारकर अपने मांसाहारी साथियों को दावत देकर तृप्त करेंगे। मैंने उन्हें समझाना भी चाहा कि तुम उनके मित्र और शरणागत हो। अपनी शरण में आए हुए को मारने से बड़ा पाप कोइ नहीं है। लेकिन उन्होंने कहा कि मैं एक मांसाहारी हूँ और संजीवक एक शाकाहारी है। मेरा और उसका तो जन्म से ही शत्रुता का नाता है और शत्रु को मारने से कोई पाप नहीं लगता।
ये तो किसी की चाल है
दमनक की बात सुनकर संजीवक के पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई। वह थोड़ी देर तो जड़ के समान खड़ा रहा। थोड़ी देर में थोड़ा संभलने के बाद बोला,
🐂 संजीवक – किसी ने ठीक ही कहा है राजसेवा करना दुधारी तलवार पर चलने जैसा है। राजाओं के पास तो दिल ही नहीं होता वे अपने राज्य के अलावा किसी से भी प्रेम नहीं कर सकते। मैंने भी तुम्हारी बारों पर विश्वास करके पिंगलक से मित्रता करके मूर्खता की है। मित्रता सदैव समान कुल, समान बल और समान प्रवृत्ति या रुचि वाले लोगों के साथ ही करनी चाहिए।
🐺 दमनक – तुमने मुझ पर विश्वास किया था, इसलिए ही मैंने पिंगलक का भेद तुम्हारे सामने खोल कर राजसेवा को भंग किया है। लेकिन मैं तुम्हारे साथ धोखे में साथ देकर पाप का भागी नहीं बनना चाहता इसलिए मैंने तुम्हें सारा भेद बता दिया। अब आगे जो तुम ठीक समझो करो।
🐂 संजीवक – अब मैं क्या कर सकता हूँ। यदि कोई किसी से किसी गलती के कारण रुष्ट और क्रोधित हो तो उस कारण को दूर करके या क्षमा मांगकर क्रोध को दूर किया जा सकता है लेकिन अकारण क्रोधित होने वाले को कैसे प्रसन्न किया जा सकता है।
मुझे लगता है कि मेरी और महाराज की घनिष्टता देखकर किसी ने मेरे विरुद्ध महाराज के कान भरे है। सेवकों में स्वामी के निकट रहने को होड़ लगी रहती है। वे किसी अन्य की स्वामी के साथ निकटता सहन नहीं कर पाते।
🐺 दमनक – मित्र, यदि पिगलक किसी के भड़काने से तुम्हारे साथ क्रोधित है तो तुम अभी पिंगलक के पास जाओं और मीठी-मीठी बातें करके उसे फिर से प्रसन्न कर लो।
🐂 संजीवक – तुम यह सही नहीं कह रहे हो मित्र, मैं आज जाकर अपनी बातों से पिंगलक को प्रसन्न कर लूँगा। लेकिन उसके पास रहने वाले कपटी और धूर्त लोग फिर से मेरे खिलाफ उसके कान भर देंगे और मुझे मरवाने का यत्न करते रहेंगे। ऐसे धूर्त और कपटी लोगों के साथ रहने से वैसे ही जान से हाथ धोना पड़ता है जैसे एक भोले-भाले ऊंट ने धूर्त सियार, कपटी कौवे और चालाक बाघ की बातों पर विश्वास करके अपने प्राणों की बलि दे दी थी।
🐺 दमनक – वो कैसे?
🐂 संजीवक – तो सुनों मैं तुम्हें कथनक ऊंट की कथा सुनाता हूँ।
शेर, ऊँट, सियार, कौवे और बाघ की कहानी – शेर और ऊँट
कहानी सुनाने के बाद संजीवक ने कहा,
🐂 संजीवक – इसलिए कहता हूँ कपट के द्वारा अपना हित और दूसरे का अहित साधने वालों से सदा बचकर रहना चाहिए। पिंगलक के अनुचर छोटी सोच वाले है और पिंगलक कान का कच्चा।
यदि गिद्ध की तरह व्यवहार करने वाला राजा यदि हँस जैसे शुद्ध आचरण करने वाले सभासदों से घिरा हो तो उसकी सेवा करने का भी धर्म है। लेकिन गिद्ध की तरह अशुद्ध आचरण करने वाले मंत्रियों से भरे राज्य में यदि राजा हँस के समान शुद्ध भी हो तो भी जनता कभी सुख से नहीं रह सकती। ऐसे स्वामी का तो त्याग कर देना चाहिए।
विषैले से विषैला सर्प भी डंडे से पीटने वालों में से जिसको डसता है केवल उसी की मृत्यु होती है, लेकिन कपटी आदमी तो कब किसका बुरा कर दे कहा नहीं जा सकता। कानों से विष ग्रहण करने वाला व्यक्ति क्या-क्या नादानी नहीं कर बैठता, कभी तो वह जैन साधु की तरह संत बन जाता है तो कभी कापालिक की तरह खोपड़ी में मदिरा पीने वाला दुष्ट।
यह तो निश्चित है कि मुझसे डाह रखने वाले किसी कपटी जानवर ने मेरे खिलाफ पिंगलक के कान भर दिए है, जिससे वह मुझसे कुपित हो गए है। मुझे तो इस बात कोई उपाय नजर नहीं आ रहा। तुम मेरे परम मित्र हो, तुम्हीं मुझे कोई अच्छी सलाह दो।
मैं तो तुम्हारा भला चाहता हूँ
🐺 दमनक – मेरे ख्याल से तो ऐसे स्वामी की सेवा करने से कोई लाभ नहीं है। तुम्हें उसका परित्याग देना चाहिए और यह जंगल छोड़कर कहीं और चले जाना चाहिए।
🐂 संजीवक – दूर चले जाना इसका सही इलाज नहीं है। बड़े लोगों की मित्रता और शत्रुता दोनों हि अच्छी नहीं होती। दूर जाकर भी मुझे शांति नहीं मिलेगी। सदा यहीं डर सताता रहेगा कि वे कभी भी मुझ पर आक्रमण करके मुझे मार देंगे।
संकट से भाग जाना तो कायरता की निशानी है, वीर और धीर पुरुष तो वही है जो संकट का सामना अपने प्राण देकर भी करे। इसलिए मुझे तो केवल युद्ध ही इसका एकमात्र उपाय नजर आता है। भाग जाने पर चिंता के कारण पल-पल हजार बार मरने से तो अच्छा है कि युद्ध में एक बार में ही मृत्यु आ जाए।
दमनक ने जब संजीवक को युद्ध के लिए तैयार देखा तो वह सोचने लगा, कहीं ऐसा तो नहीं है कि यह अपने बड़े-बड़े सींगों से पिगलक का पेट फाड़ दे। यदि ऐसा हो गया तो अनर्थ हो जाएगा। मैं एक बार इसे फिर से इसे यह जंगल छोड़कर कहीं और जाने के लिए राजी करने की कोशिश करता हूँ। यह सोचकर दमनक ने कहा,
🐺 दमनक – मित्र, तुम ठीक कह रहे हो लेकिन स्वामी और सेवक में युद्ध ठीक नहीं। सच ही कहा गया है कि बलवान को देखकर निर्बल को छुप जाना चाहिए क्योंकि निर्बल को देखकर बलवान शरद पूर्णिमा के चंद्रमा के समान अपनी पूर्ण शक्ति प्रदर्शित करते है।
युद्ध हमेशा सामने वाले के बल, बुद्धि और पराक्रम को जानकर बुद्धिमानी से किया जाना चाहिए नहीं तो वहीं गति होती है जो पहले समुद्रऔर टिटिहरी की लड़ाई में पहले टिटिहरी की और बाद में समुद्र की हुई।
🐂 संजीवक – वह कैसे?
तब दमनक ने संजीवक को मूर्ख व वाचाल टिटिहरी और अपने बल पर अभिमान करने वाले समुद्र की कथा सुनाई।
मूर्ख व वाचाल टिटिहरी और अभिमानी समुद्र की कथा – टिटिहरी का जोड़ा और अभिमानी समुद्र (इसी कहानी में बातुनी कछुए, तीन मछलियों और चिड़िया और हाथी की कहानी भी है।)
🐺 दमनक – इसीलिए कहता हूँ। शत्रु के बल को जाने बिना उस पर प्रहार नहीं करना चाहिए। उत्तम पुरुष को कभी भी प्रयास करना नहीं छोड़ते।
🐂 संजीवक – मित्र, तुम ठीक कहते हो। लेकिन मुझे कैसे पता चलेगा कि पिंगलक मुझसे कुपित हो गया है और मुझे मारना चाहता है। आज तक तो उसने मुझे सदा ही स्नेह की दृष्टि से ही देखा है, उसकी वक्र दृष्टि कैसी है इसका तो मुझे कुछ भी ज्ञान नहीं है। मुझे उनकी वक्र दृष्टि के लक्षण बता दो जिससे हमला होने पर मैं आत्म रक्षा का कुछ उपाय कर सकूँ।
🐺 दमनक – इसमें जानने जैसी कौन सी बड़ी बात है। कल सभा मैं जब पिंगलक अपने होठों पर जीभ लपलपाता हुआ तुम्हारी तरफ तिरछी दृष्टि से देखे, उसकी भवें तन जाए और आंखे लाल हो जाए वह तो जान जाना कि पिगलक तुम्हारा बुरा करने की सोच रहा है। और यदि ऐसा नहीं होता है तो वह तुमसे अब भी प्रसन्न है।
अब मैं चलता हूँ। पर मेरी तो यहीं राय है की तुम्हें आज रात को ही यह जंगल छोड़कर चले जाना चाहिए जिससे ढकी बात ढकी ही रह जाए।
पुरखों ने कहा है, “कुल को बचाने के लिए एक का त्याग, गाँव के लिए कुल का त्याग, नगर के लिए गाँव का त्याग, देश के लिए नगर का त्याग और स्वयं के लिए दुनियाँ का त्याग कर देना ही उत्तम नीति है।“
यदि बलवान से लड़ने का सामर्थ्य ना हो तो उस देश को छोड़ देना चाहिए या साम-दाम-दंड-भेद किसी भी रीति से बलवान को प्रसन्न के उसके साथ मिलकर रहना चाहिए। अब तुम्हें क्या करना है, इसका निर्णय तुम ही करोगे।
ये तुमने अच्छा नहीं किया
संजीवक के कान भरकर दमनक वापस करटक के पास आ गया। उसे देखकर करकट ने पुछा,
🦊 करटक – आओं मित्र, मुझे बताओं कि तुमने पिगलक और संजीवक की मित्रता भंग करने के लिए क्या किया?
🐺 दमनक – मैंने तो नीतिपूर्वक जो भी उचित था वही किया है आगे भगवान की इच्छा और अपने भाग्य पर निर्भर करता है। माना भाग्य के भरोसे रहने वाले कायर कहलाते है। इसलिए भाग्य को बदलने के लिए प्रयास जरूर करना चाहिए। मैंने अपना कर्म कर दिया है? कर्म करने के बाद भी कार्य सिद्ध ना हो तो हमारा कोई दोष नहीं होता।
🦊 करटक – जरा मुझे भी तो बताओं, तुमने उन्हें अलग करने के लिए किस नीति का प्रयोग किया है?
🐺 दमनक – मैंने झूठ बोलकर उन दोनों के मध्य शत्रुता का बीज बो दिया है। अब वे दोनों एक साथ बैठकर कभी भी मंत्रणा नहीं करेंगे।
🦊 करटक – दो स्नेही-हृदय मित्रों के मध्य शत्रुता करवा कर तुमने अच्छा नहीं किया, मित्र। विद्वानों ने कहा है, जो सुख से रहने वाले मनुष्य को दुख की ओर ले जाता है, वह स्वयं जन्म-जन्मांतर तक दुखी रहता है। किसी दूसरे का काम खराब करना या उन्हें नुकसान पँहुचाना तो नीच लोगों का काम होता है।
🐺 दमनक – मित्र, तुम राजनीति के बारे में कुछ नहीं जानते। जो मनुष्य अपने शत्रु के पैदा होते ही और बीमारी की शुरुआत होते ही उसे दूर करने का उपाय नहीं करते, तो समय बीतने के साथ ही ये दोनों मजबूत होकर मनुष्य की जान ले लेते है।
सजीवक हमारे मंत्री पद को हथिया कर हमारा शत्रु बन गया था। बुजुर्गों ने कहा है जो व्यक्ति आपका पद लेने का इच्छुक हो वह कितना ही प्रिय क्यों ना हो उसे मार देना चाहिए। यदि कोई सज्जन किसी को अपने यहाँ आश्रय दे और वह उसी का स्थान छीनने की कामना करने लगे तो उसे ऐसा करने का मौका ही नहीं देना चाहिए।
मैं ही उसे शेर से अभयदान दिलवाकर यहाँ लाया था और उसने शत्रु की तरह व्यवहार कर हमसे हमारा मंत्री पद ही छिन लिया। शत्रु को मारने में धर्म-अधर्म का विचार नहीं किया जाता। आत्मरक्षा ही सर्वोच्च धर्म है। अपने स्वार्थ को सिद्ध करने के लिए कपट नीति को काम लेना पड़े तो ले लेना चाहिए। जैसा चतुरक गीदड़ ने किया था।
🦊 करटक – वह कैसे?
तब दमनक ने करटक को गीदड़, भेड़िया और शेर की कहानी सुनाई।
गीदड़, भेड़िया और शेर की कहानी – मूर्ख शेर और गीदड़ की कुटिल नीति
चतुरक की कथा सुनाने के बाद दमनक ने कहा,
🐺 दमनक – इसीलिए कहता हूँ, छल-बल किसी का भी सहारा लेकर अपने स्वार्थ की सिद्धि कर लेनी चाहिए।
अब मैं क्या करूँ
उधर दमनक के जाने के बाद संजीवक सोचने लगा, “मैंने एक मांसाहारी के साथ मित्रता करके अपने पैरों पर ही कुल्हाड़ी मार ली है। शेर मुझे मारना चाहता है। अब मैं क्या करूँ मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है। यह जंगल छोड़कर यहाँ से चल जाऊँ या पिंगलक के पास जाकर अपनी मित्रता बचाने की कोशिश करूँ। दूसरी जगह जाकर भी मुझे शांति नहीं मिलेगी। मुझे हमेशा लगता रहेगा कि मुझे एक बार पिंगलक से बात जरूर करनी चाहिए थी।
बहुत देर सोच विचार करने के बाद संजीवक ने निश्चय किया कि, “एक बार जाकर पिंगलक के मन की बात का पता जरूर लगा लेना चाहिए। यह सोच कर वह धीरे-धीरे चलता हुआ पिंगलक के पास पँहुच गया।
पिंगलक के भाव जानने के लिए वह उसके मुख की तरफ देखता रहा उसे पिंगलक के मुख पर वहीं भाव दिखाए दिए जिसका वर्णन दमनक ने उससे किया था। पिगलक की क्रोध से भरी हुई लाल-लाल आँखे देख कर वह इतना डर गया कि वह बिना पिंगलक को प्रणाम किए हुए ही उससे कुछ दूरी पर जाकर बैठ गया।
पिंगलक भी संजीवक के भाव जानने के लिए उसके चेहरे पर ही अपनी दृष्टि गढ़ाये हुए था। उसे भी उसके मुख पर वहीं भाव दिखाई दिए जिनका जिक्र दमनक ने उससे किया था। उसे दमनक की चेतावनी याद आ गयी। उसने बिना संजीवक से कुछ पूछे उस पर हमला कर दिया।
संजीवक ने जल्दी से अपना बचाव किया और पिंगलक से अपनी रक्षा के लिए उसने भी अपने नुकीले सिंह पिंगलक की तरफ तान लिए और उसका सामना करने के लिए तैयार हो गया। दोनों में भयंकर युद्ध होने लगा।
शिक्षा का पात्र
दो मित्रों को इस तरह युद्ध करते देख करटक ने दमनक से कहा,
🦊 करटक – तुमने दो मित्रों को लड़वाकर अच्छा नहीं किया। किसी भी कार्य को सम्पन्न करने के लिए साम-दाम-दंड-भेद चारों नीतियों में से सबसे पहले सामनीति को काम में लेना चाहिए। अब यदि संजीवक शेर का वध कर देगा तो हम क्या करेंगे। कहीं इस युद्ध में दोनों ही मारे ना जाए। अब भी यदि इस युद्ध को रोकने का कुछ उपाय कर सके तो कर।
🐺 दमनक – अब इन दोनों के युद्ध के बीच में जाने वाला स्वयं ही मारा जा सकता है।
🦊 करटक – झगड़े की सुलह करवाने वाला मंत्री ही तो बुद्धिमान होता है। लेकिन तेरी तो बुद्धि ही उल्टी है। तूने तो इन दोनों के मध्य झगड़ा करवा दिया है। तेरी सभी प्रवृत्तियाँ विनाश की और ले जाने वाली है। जिस राज्य का तेरे जैसा मंत्री होगा काम बनने की जगह बिगड़ेंगे ही।
जिस तरह मीठे पानी वाली जिस नदी में मगर रहते है उसका पानी मीठा होने पर भी सब उसमें पानी पीने नहीं जाते उसी तरह जिस राजा का तेरे जैसा मंत्री हो वह राजा कितना भी सज्जन क्यों ना हो कोई भी भद्र और सज्जन व्यक्ति उसके पास आने का साहस नहीं करेगा। दुष्टों से घिरे ऐसे राजा का शीघ्र ही सर्वनाश हो जाता है।
लेकिन तुझे उपदेश देने से क्या लाभ, इससे मुझे ही हानि हो सकती है। उपदेश भी पात्र को ही देना चाहिए नहीं तो सूचिमुखी चिड़िया की तरह स्वयं की ही हानि होती है।
🐺 दमनक – वो कैसे?
तब करटक ने दमनक को सूचिमुखी गौरैया और बंदर की कहानी सुनाई
🦊 करटक – इसलिए मैं कहता हूँ कि मूर्ख को उपदेश देने वाला स्वयं भी मूर्ख ही होता है। जिस तरह सांप को दूध पिलाने से उसका विष काम नहीं होता अपितु बढ़ता ही है उसी प्रकार मूर्ख को दिया गया उपदेश उसे शांत नहीं करता बल्कि उसके क्रोध को और बढ़ा देता है।
जिस प्रकार चिड़िया के द्वारा बंदेर को उपदेश देने पर स्वयं चिड़िया का ही नुकसान हुआ दमनक – वह कैसे?
तब करकट ने दमनक को चिड़िया और बंदर की कहानी सुनाई।
अपने पैरों पर कुल्हाड़ी तो नहीं मार ली?
🦊 करटक – इसलिए कहता हूँ, बिना मांगे किसी को भी सलाह नहीं देनी चाहिए। सज्जन और बुद्धिमान व्यक्ति ही उपदेशों का लाभ ले पाते है, मूर्ख और दुर्जन नहीं। उन्हें उपदेश देने से स्वयं को ही हानि उठानी पड़ सकती है। जिस प्रकार मूर्ख बंदर को उपदेश देने के कारण चिड़िया का घोंसला टूट गया। उसी प्रकार तुझे उपदेश देने से कहीं मुझे ही हानि ना उठानी पड़े।
तुम अपने आपको बहुत बुद्धिमान समझते हो और कपट से मंत्री पद प्राप्त करने की कोशिश कर रहे हो। कहीं तुम्हारा भी हाल भी पापबुद्धि की तरह ना हो जाए जिसके कपट के कारण उसके पिता आग में झुलस गए।
🐺 दमनक – ये कैसे हुआ?
तब करकट ने उसे धर्मबुद्धि और पापबुद्धि की कथा “मित्रदोह का फल“ सुनाई।
धर्मबुद्धि और पापबुद्धि की कहानी “मित्रदोह का फल“– (इसी कहानी में न्यायाधीशों ने धर्मबुद्धि को बगुले, काले साँप, नेवले और केकड़े की कथा – मूर्ख बगुला और केकड़ा सुनाई।)
कथा सुनाने के बाद करकट ने कहा,
🦊 करटक – इसीलिए कहता हूँ कपट करने वाले को भी उपाय करने से पहले उसके हानि-लाभ के बारे में पहले ही विचार कर लेना चाहिए। तूने पापबुद्धि की तरह ही हानि-लाभ के बारे में विचार करे बिना कार्य किया और अपने ही स्वामी की जान जोखिम में डाल दी है।
तू सज्जन नहीं बल्कि पाप-बुद्धि है। तेरे साथ रहने से मुझे भी दोष लगेगा इसलिए तू मुझसे दूर रह। जिस स्थान पर इस तरह के अनर्थ होते हो उस स्थान से तो दूर रहना ही बेहतर होता है।
तू अपने आपको बहुत बुद्धिमान समझता है, लेकिन सेर को सवा सेर मिल ही जाता है। जिस प्रकार मण भर भारी तराजू को चूहे खा गए उसी प्रकार चील भी 8-10 साल के बच्चे को उठा कर ले गई।
🐺 दमनक – (आश्चर्य से) ऐसा कैसे हो सकता है?
तब करटक ने दमनक को जीर्णधन नामक बनिये के लड़के और महाजन की कथा जैसे को तैसा सुनाई।
कथा सुनाने के बाद करटक ने कहा
🦊 करटक – संजीवक के ऊपर स्वामी की कृपा ना सहन करने के कारण जो तुमने उन दोनों में बैर करवाने का कार्य करके तूने उनका हित ना करके अहित कर दिया है। ठीक उसी तरह से जिस प्रकार हितचिंतक होते हुए भी मूर्ख बंदर ने अपने मित्र राजा को तलवार से मार डाला।
🐺 दमनक – हितचिंतक होते हुए भी बंदर ने अपने स्वामी को क्यों मार दिया?
तब करटक ने उसे मूर्ख मित्र बंदर की कथा सुनाई।
🦊 करटक – इसलिए कहता हूँ किसी के भी पास तेरे समान मूर्ख मित्र होने से, बुद्धिमान दुश्मन का होना ज्यादा अच्छा होता है।
हो गई मेरी बल्ले-बल्ले
अभी वे दोनों यह बात कर ही रहे थे कि उन्होनें देखा कि संजीवक पिंगलक के नुकीले नाखूनों के प्रहारों से घायल होकर जमीन पर गिर पड़ा और थोड़ी ही देर में तड़प-तड़प कर मर गया। उसे मरा हुआ देखकर पिगलक को बहुत दुख हुआ।
वह उसके शव के पास बैठकर विलाप करने लगा
🦁 पिंगलक – मेरे जैसा नीच, पापी और अधम इस दुनियाँ में कोई दूसरा नहीं होगा जिसने अपने द्वारा अभय दिए हुए मित्र को मार डाला। अब मैं अपने मंत्रियों को क्या मुहँ दिखाऊँगा।
पिंगलक को इस तरह विलाप करता देख कर दमनक उसके पास गया और उसे समझाते हुए कहा,
🐺 दमनक – स्वामी आप विलाप मत कीजिए, आपने जो भी किया वो न्याय संगत था। राजनीति भी यहीं कहती है कि जो भी राजा के प्राण लेने की इच्छा रखता हो वह कितना भी प्रिय क्यों ना हो उसे मारने का दोष नहीं लगता।
इसलिए आप जो भी हुआ उसे भूल जाइए और निश्चिंत होकर अपने राज्य धर्म का पालन कीजिए।
दमनक के समझाने पर पिंगलक का शोक कुछ काम हुआ। उसने दमनक को अपना मुख्य सलाहकार बना दिया और उसकी सहायता से राज-काज करने लगा।
तो दोस्तों, कैसी लगी पंचतंत्र की कहानियों के रोचक संसार में डुबकी। मजा आया ना, तो हो जाइए तैयार लगाने अगली डुबकी, .. .. .. ..
अगली कहानी – बंदर और लकड़ी का खूंटा
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