मूर्ख शेर और बोलने वाली गुफा – Murkh Sher Aur Bolne Wali Gufa
पंचतंत्र की कहानियाँ – तीसरा तंत्र – काकोलूकीयम – मूर्ख शेर और बोलने वाली गुफा – Murkh Sher Aur Bolne Wali Gufa – The Stupid Lion and The Talking Cave
का करूँ राम मैं तो बूढ़ा हो गया
सुन्दरवन का राजा खर-नखर शेर अब बुढ़ा हो चला था। बुढ़ापे के कारण उसका शरीर कमजोर हो गया था इसलिए अब वह शिकार करने में असमर्थ था।
जंगले के बड़े जानवर तो दूर वह छोटे-छोटे जानवरों का भी शिकार नहीं कर पा रहा था। छोटे जानवर भी उसको चकमा देकर भाग जाते थे।
एक तो बुढ़ापे कि कमजोरी और दुसरे शिकार न मिलने की वजह से भूखा रहने से उसका शरीर दिन-प्रतिदिन और कमजोर होता जा रहा था।
अब तो उससे ठीक ढंग से चला भी नहीं जाता था।
एक बार खर-नखर शेर अपनी गुफा से शिकार के लिए निकला। वह शिकार के लिए अपनी गुफा से बहुर दूर तक चला गया। लेकिन आज भी उसे कोई शिकार नहीं मिला।
वह बहुत थक गया और एक जगह बैठ कर सोचने लगा, “यदि ऐसा ही रहा तो एक दिन मैं भूख के मारे ही मर जाऊँगा। मुझे कुछ ऐसा करना चाहिए जिससे मैं आसानी से अपना पेट भर सकूँ।” तभी उसकी नजर सामने पेड़ों के नीचे एक गुफा पर पड़ी।
तेरे घर मैं तेरा ही शिकार
गुफा का द्वार खुला हुआ था। उसने सोचा कि इस गुफा में कोई न कोई जानवर जरुर रहता होगा। मैं उसे खाकर अपनी भूख शांत कर लेता हूँ।
यह सोच कर वह उस गुफा के अन्दर चला गया। पर वहाँ पर कोई जानवर नहीं था। शेर ने सोचा कि शायद वह जानवर अभी बाहर गया हुआ है। मैं यहीं बैठकर उसका इन्तजार करता हूँ। जैसे ही वह अंदर आएगा, मैं उसे दबोच लूँगा और मारकर खा जाऊंगा।
यह सोच कर वह गुफा के अंदर दरवाजे पर घात लगा कर बैठ गया। गुफा बहुत ही छोटी थी, शेर को खड़े रहने मैं भी परेशानी हो रही थी। लेकिन शिकार के लालच में वह वहीँ सांस रोके खड़ा रहा।
जहां तेरी ये नजर है मेरी जां मुझे खबर है
वह गुफा दधिपुच्छ नामक गीदड़ की थी। वह बहुत ही चतुर था। जब शेर गुफा में गया, तब वह शिकार के लिए बाहर गया हुआ था।
जब वह वापस लौट कर आया और अपनी गुफा में जाने लगा। तभी उसे अपनी गुफा के बाहर शेर के पंजों के निशान दिखे। वह ठिठक गया।
उसने गौर से उन निशानों को देखा। उसने देखा कि शेर के पंजों के निशान गुफा के अन्दर जाते हुए तो थे, लेकिन गुफा से बाहर आने के नहीं थे।
वह समझ गया कि उसके पीछे से कोई शेर उसकी गुफा में आया है। लेकिन वह वापस गया है या नहीं ये कैसे पता लगाया जाए।
उसका दिमाग तेजी से इस संकट से बचने का उपाय खोजने लगा।
पुकार लो
तभी उसके दिमाग में एक युक्ति आई। वह बड़े ही मीठे स्वरों में बोला, “गुफा ओ गुफा मेरी प्यारी गुफा, क्या मैं अन्दर आ जाऊं?” लेकिन गुफा भी कभी बोलती है जो बुलाती। तो भई दूसरी तरफ से कोई आवाज नहीं आई।
तब चतुरानन गीदड़ ने दुबारा से कहा, “ओ मेरे प्यारी गुफा, आज तुम्हें क्या हो गया है ? रोज तो जब मैं शिकार से वापस आता हूँ तो तुम कितने प्यार से मुझे अपने अन्दर बुलाती हो। लेकिन आज तो तुम कुछ बोल ही नहीं रही। ओ मेरी गुफा कुछ तो बोलो।”
लेकिन गुफा से फिर कोई आवाज नहीं आई।
तब चतुरानन गीदड़ ने फिर कहा, “ओ मेरी प्यारी गुफा, कुछ तो बोलों। मेरे इतना कहने पर भी तुम मुझे नहीं बुला रही हो। इसलिए मुझे लगता है तुम मुझसे रूठ गई हो। लेकिन यदि तुम मेरी बात का कोई जवाब नहीं दोगी तो मैं तुम्हे छोड़कर किसी दूसरी गुफा में चला जाऊंगा। फिर कभी वापस नहीं आऊंगा।”
गुफा के अन्दर बैठे शेर ने जब यह सुना तो उसने सोचा, “यह गीदड़ इतना कह रहा है तो जरुर यह गुफा उसे बोल कर बुलाती होगी और शायद आज मेरे डर से यह बोल नहीं रही है। यदि गुफा ने गीदड़ को नहीं बुलाया तो यह यहाँ से चला जाएगा और मुझे आज भी भूखा रहना पड़ेगा।
आजा रे आजा रे मेरे दिलबर आजा
यह सोच कर उसने बड़े ही मीठे स्वरों में कहा, “ओ मेरे प्यारे गीदड़ भाई, मैं तुम्हारा ही इन्तजार कर रही थी। आओ-आओ तुम्हार स्वागत है।”
गीदड़ ने जब शेर की आवाज सुनी तो वह बोला, “ओ शेर महाराज, लगता है बुढ़ापे के कारण तुम्हारे शरीर के साथ-साथ तुम्हारी बुद्धि भी कमजोर हो गई है। गुफाएं भी कभी बोला करती है।” इतना कह कर वह पलटकर भागने लगा।
बच गया साला
शेर आज अपना शिकार नहीं खोना चाहता था इसलिए वह भी जल्दी से गुफा के बहार निकलकर गीदड़ के पीछे दौड़ा।
लेकिन गीदड़ उसकी पंहुच से बहुत दूर निकल गया था। शेर थक हार कर अपनी गुफा में लौट गया। शेर के जाने के बाद गीदड़ भी अपनी गुफा में आ गया और दरवाजा बंद कर मजे से लेट गया।
सीख
मुसीबत के समय कभी भी धेर्य न खोकर शांत दिमाग से उससे छुटकारा पाने का उपाय ढूँढना चाहिए। धेर्य और बुद्धि से हम बड़ी से बड़ी चुनौती का सामना कर सकते है।
~~~~~~~~~~~~~~~~ ****************~~~~~~~~~~~~~~~~~~
पिछली कहानी – सोने को विष्ठा करने वाले पक्षी की कहानी “मूर्ख-मंडली”
तो दोस्तों, कैसी लगी पंचतंत्र की कहानियों के रोचक संसार में डुबकी। मजा आया ना, तो हो जाइए तैयार लगाने अगली डुबकी, .. .. .. ..
अगली कहानी – मेढकों को अपनी सवारी करवाने वाले सर्प की कहानी “स्वार्थ सिद्धि परम लक्ष्य”
अब एक छोटा सा काम आपके लिए भी, अगर यह कहानी आपको अच्छी लगी हो, तो इस पेज को Bookmark कर लीजिये और सोशल मीडिया जैसे Facebook, Twitter, LinkedIn, WhatsApp (फेसबुक टि्वटर लिंकडइन इंस्टाग्राम व्हाट्सएप) आदि पर अपने दोस्तों को शेयर कीजिए।
अपनी राय और सुझाव Comments Box में जरूर दीजिए। आपकी राय और सुझावों का स्वागत है।