मूर्ख शेर और गीदड़ की कुटिल नीति – Murkh Sher Aur Geedad Ki Kutil Neeti
पंचतंत्र की कहानियाँ – पहला तंत्र – मित्रभेद – मूर्ख शेर और गीदड़ की कुटिल नीति – Murkh Sher Aur Geedad Ki Kutil Neeti – The Foolish Lion and Jackal’s Devious Policy
कनक वन में वज्रदंत नाम का एक शेर रहता था। । उसके दो अनुचर चतुरक गीदड़ और क्रव्यमुख भेड़िया हमेशा ही उसके साथ रहते थे और शेर के शिकार का बचा खुचा माँस खाकर अपनी भूख को शांत करते थे।
एक दिन वज्रदंत ने जंगल में आई ऊँटनी को देखा। वह ऊँटनी गर्भवती थी और उसका प्रसव निकट था। प्रसव पीड़ा शुरू होने के कारण वह अपने झुंड से अलग हो गई थी। वज्रदंत ने उसे मार दिया और जैसे ही उसने उसका पेट फाड़ा उसमें से एक जीता जागता ऊँट का बच्चा निकला।
मैं तेरी रक्षा करूंगा
वज्रदंत को उस बच्चे पर दया आ गई और वह उस ऊँट के बच्चे को अपनी गुफा में ले आया और उससे कहा,
🦁 वज्रदंत – तुझे मुझसे डरने को कोई जरूरत नहीं है। मैं तुम्हें नहीं मारूँगा। अब तुम अब मेरी शरण में हो। तुम बिना किसी से डरे मजे से इस जंगल में रहो और जहाँ चाहे घूमो। तुम्हारे कान शंकु (कील) जैसे है इसलिए मैं तुम्हारा नाम शंकुकर्ण रखता हूँ।
अब शंकुकर्ण भी वज्रदंत के अन्य अनुचरों के समान हमेशा शेर के साथ ही रहने लगा। वज्रदंत के डर से कोई भी जंगली जानवर उसे हानि पँहुचाने की सोच भी नहीं सकता था।
ऐसे ही समय बीतता रहा। शंकुकर्ण अब बड़ा हो गया। वज्रदंत शंकुकर्ण से बड़ा प्रेम करता था। शंकुकर्ण भी हमेशा उसके साथ ही रहता, वह उसे छोड़कर कहीं नहीं जाता था।
ये क्या हो गया?
एक बार जंगल में बड़े-बड़े दांतों वाला एक मतवाला हाथी आ गया। चतुरक गीदड़ और क्रव्यमुख भेड़िया ने जब उस बड़े शरीर वाले हाथी को देखा तो उन्होंने सोचा कि यदि स्वामी इसका शिकार लें तो बहुत दिनों के लिए खाने की समस्या नहीं होगी।
वे तुरंत वज्रदंत के पास गए और उससे कहा,
🐺 चतुरक – महाराज आज हमने वन में एक बहुत ही बड़ा और मांसल हाथी देखा है। उसका पूरा शरीर स्वादिष्ट माँस से भरा हुआ है।
🦊 क्रव्यमुख – हाँ महाराज, वह इतना बड़ा है कि यदि आप उसका शिकार कर लें तो आपको कई दिनों तक शिकार पर जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। हम मजे से कई दिनों तक उस हाथी के स्वादिष्ट माँस का आनंद लेंगे।
उन दोनों के उकसाने पर वज्रदंत उनके साथ हाथी के शिकार पर निकल पड़ा। हाथी को देखते ही वज्रदंत ने हाथी पर हमला कर दिया। लेकिन हाथी वज्रदंत के अनुमान से कहीं अधिक शक्तिशाली था। शेर और हाथी में बहुत घमासान लड़ाई हुई।
हाथी ने अपने बड़े-बड़े तीखे दांतों से मार-मार कर शेर की हड्डी-पसली तोड़ दी और उसको अधमरा कर दिया। जब शेर अधमरा-सा हो गया तो हाथी चिंघाड़ता हुआ वहां से चला गया। तब चतुरक गीदड़ और क्रव्यमुख भेड़िया उसे सहारा देते हुए किसी तरह गुफा तक ले आये।
हाथी के साथ युद्ध के बाद वज्रदंत जीवित तो बच गया था, लेकिन वह इतना घायल हो गया था कि शिकार पर जाना तो दूर, चलने-फिरने में भी असमर्थ हो गया। इस कारण उसके और उसके दोनों अनुचरों के भूखों मरने की नौबत आ गई थी। तब वज्रदंत ने कहा,
🦁 वज्रदंत – मैं कुछ दिनों तक दौड़-भाग कर किसी भी जानवर का शिकार नहीं कर पाऊँगा। इसलिए तुम लोग किसी तरह से किसी जानवर को घेर कर मेरे पास ले आओ। मैं उस पर हमला करके उसका शिकार कर लूँगा। शेर की आज्ञानुसार तीनों जंगल में गए। लेकिन वे किसी भी जानवर को घेर कर शेर के पास लाने में सफल नहीं हो सके।
अब हमारा क्या होगा?
चतुरक गीदड़ ने मन ही मन सोचा कि इस तरह से तो वे लोग भूखे ही मर जायेंगे। यदि हम किसी तरह शंकुकर्ण को मार दिया जाए तो कुछ दिनों के भोजन की व्यवस्था हो जाएगी। लेकिन ये कैसे हो सकता है? वज्रदंत ने उसे अभयदान दे रखा है।
यदि मैंने इसे नुकसान पँहुचाने की कोशिश की तो वज्रदंत मुझे ही मार देगा। तो ऐसा क्या किया जाए कि इसे मरवाया जा सके। उसका दिमाग तेजी से सोचने लगा। तभी उसके दिमाग में एक युक्ति आ गई।
वह शंकुकर्ण के पास गया और बोला,
🐺 चतुरक – घायल और भूखे होने के कारण हमारे महाराज की दशा कितनी खराब हो गई है? कहीं ऐसा न हो कि स्वामी भूख से मर जाएं। यदि ऐसा हुआ तो स्वामी के अभाव में हमारा भी विनाश हो जाएगा।
🐪 शंकुकर्ण – तुम ठीक कहते हो चतुरक, लेकिन हम कर ही क्या सकते है? हमने उनके लिए शिकार लाने का कितना प्रयत्न किया लेकिन हम असफल रहे।
🐺 चतुरक – जब मैं जंगल में शिकार के लिए भटक रहा था तो मुझे वहाँ पर एक साधु महात्मा मिले। जब मैंने उन्हें अपनी व्यथा बताई तो उन्होंने मुझे एक उपाय बताया और हमारी मदद करने का आश्वासन भी दिया।
🐪 शंकुकर्ण – तो फिर तुम देर क्यों कर रहे हो जल्दी से वह उपाय बताओं, जिससे हमारे महाराज को शीघ्र-अतिशीघ्र कष्टों से मुक्ति मिल सके।
🐺 चतुरक – उन्होनें कहा कि जब कोई सेवक अपने स्वामी के हित के लिए कुछ करता है तो उसे सौ अच्छे काम करने से मिलने वाले पुण्य से भी ज्यादा पुण्य मिलता है। इसलिए कोई यदि अपने स्वामी के लिए वह उपाय कर दे तो उसके स्वामी को भी अपने कष्टों से मुक्ति मिले जाती है और सेवक को भी लाभ होता है।
🐪 शंकुकर्ण – तो तुम शीघ्रता से वह उपाय बताओं मैं अपने स्वामी के लिए कुछ भी कर सकता हूँ।
🐺 चतुरक – यदि तुम अपना शरीर वज्रदंत को अर्पित कर दो तो उनकी भूख शांत हो जाएगी।
🐪 शंकुकर्ण – (बीच में बात काटकर) लेकिन इससे तो मैं मर जाऊंगा।
🐺 चतुरक – नहीं, उस साधु ने मुझे बताया कि यदि कोई धर्म को साक्षी मानकर अपना शरीर वज्रदंत को दान में दे और वे उसे दुगुना शरीर मिलने का आशीर्वाद दे तो कुछ दिनों बाद ही उसे उसका शरीर दुगुना होकर वापस मिल जाएगा।
मुझे स्वीकार है
भोला-भाले शंकुकर्ण ने चतुरक की बातों पर विश्वास कर लिया और उसने उसकी बात मान ली। इसके बाद चतुरक वज्रदंत के पास गया और उससे बोला,
🐺 चतुरक – स्वामी, पूरा दिन जंगल में भटकने के बाद भी हम आपके लिए शिकार नहीं ला पाए। अब तो सूर्य भी अस्त होने वाला है। उसने साधु के बारे में बताते हुए कहा कि यदि आप धर्म को साक्षी मान कर शंकुकर्ण को दुगुना शरीर मिलने का आशीर्वाद दे तो वह आपको अपना शरीर अर्पित करने के लिए तैयार है।
🦁 वज्रदंत – यदि ऐसी बात है तो मैं ऐसा करने के लिए तैयार हूँ।
🐺 चतुरक – शंकुकर्ण, पहले तुम धर्म को साक्षी मानकर वज्रदंत को अपना शरीर अर्पित करों।
🐪 शंकुकर्ण – मैं धर्म को साक्षी मानकर दुगुने शरीर के आशीर्वाद के बदले में अपने स्वामी को अपना शरीर अर्पित करता हूँ।
🐺 चतुरक – स्वामी, अब आप बारी।
🦁 वज्रदंत – मैं धर्म को साक्षी मानकर शंकुकर्ण को आशीर्वाद देता हूँ कि उसे जल्द ही दुगुना शरीर प्राप्त हो।
वज्रदंत के इतना कहते ही चतुरक और क्रव्यमुख, शंकुकर्ण पर टूट पड़े और अपने नुकीले नाखूनों और दांतों से उसका पेट चीर डाला। शंकुकर्ण के मरने के पश्चात् वज्रदंत ने चतुरक से कहा
🦁 वज्रदंत – मैं नदी में स्नान करने जा रहा हूँ। जब तक मैं ना आऊँ तब तक तुम इसकी रखवाली करना।
🐺 चतुरक – जैसी स्वामी की आज्ञा।
कुटिल नीति
वज्रदंत स्नान करने चल गया। उसके जाने के पश्चात् चतुरक ने लपलपाती नजरों से ऊँट को देखा और सोचने लगा, “ऐसा क्या करूँ कि मैं अकेला ही इस ऊँट को खा सकूँ। उसका कुटिल दिमाग तेजी से दौड़ने लगा। उसके मुख पर एक कुटिल मुस्कान आ गई। उसने प्यार भरी दृष्टि से क्रव्यमुख को देखकर कहा,
🐺 चतुरक – मित्र, तुम बहुत भूखे लग रहे हो, तुम चाहो तो स्वामी के आने से पहले ही ऊँट को खा लो।
🦊 क्रव्यमुख – (ऊँट की तरफ ललचाई नजरों से देखते हुए) भूख तो बहुत लग रही है मित्र, लेकिन स्वामी के आने से पहले यदि मैंने ऊँट को खा लिया तो स्वामी मुझसे क्रोधित हो जाएंगे। फिर वे मेरे साथ पता नहीं क्या करे। नहीं-नहीं मैं स्वामी के आने तक इंतजार करूंगा।
🐺 चतुरक – स्वामी को तो अभी आने में देर है। तुम चाहो तो थोड़ा माँस खा लो। यदि स्वामी को पता भी चलेगा तो मैं किसी भी तरह से तुम्हें निर्दोष सिद्ध कर दूंगा। मैं नदी के रास्ते पर नजर रखता हूँ जैसे ही स्वामी आएंगे मैं तुम्हें सावधान कर दूंगा।
क्रव्यमुख ने अभी ऊँट का माँस खाने के लिए अपने दाँत गढ़ाये ही थे कि चतुरक जोर से चिल्लाया
🐺 चतुरक – स्वामी आ रहे है, जल्दी से दूर हट जा।
क्रव्यमुख दूर हट गया। थोड़ी ही देर में वज्रदंत स्नान करके आ गया। जब उसने ऊँट के शरीर पर दाँत गढ़े हुए देखे तो क्रोध से अपनी भवें चढ़ाकर बोला,
🦁 वज्रदंत – किसकी इतनी हिम्मत जिसने मेरे शिकार को मुझसे पहले खाने की चेष्टा की है।
क्रव्यमुख खुद को बचाने के लिए कातर दृष्टि से चतुरक की और देखने लगा।
🐺 चतुरक – दुष्ट, स्वयं माँस खाकर मेरी तरफ देख रहा है। अपने किए का फल खुद ही भुगत।
इतना सुनते क्रव्यमुख भेड़िया डरकर वहाँ से ऐसा भागा कि उसने पीछे मुड़कर ही नहीं देखा। चतुरक गीदड़ की एक बाधा तो दूर हो गई। अब वह सोचने लगा कि अब ऐसा क्या करूँ कि वज्रदंत भी बिना ऊँट को खाए यहाँ से चला जाए।
मौका मिल गया
तभी घंटियों के शोर से सारा जंगल गूंज उठा। दरअसल वहाँ से कुछ दूरी पर ऊंटों का काफिला गुजर रहा था और ऊंटों के गले में बंधी घंटियों की आवाज सुनाई दे रही थी। वज्रदंत ने आज से पहले ऐसी आवाज नहीं सुनी थी उसने चतुरक से पूछा, “
🦁 वज्रदंत – यह कैसी विचित्र आवाज है, आज से पहले तो मैंने जंगल में ऐसी आवाज पहले कभी नहीं सुनी।
🐺 चतुरक – मैं अभी पता लगाकर आता हूँ स्वामी।
इतना कहकर चतुरक तुरंत आवाज की दिशा में चल गया। थोड़ी देर में वह घबराकर दौड़ते हुए वापस आया और हांफते हुए बोला।
🐺 चतुरक – स्वामी देर मत करिए, जल्दी से यहाँ से भाग जाइए।
🦁 वज्रदंत – लेकिन क्यूँ? ऐसा क्या हो गया जो तुम इतने भयभीत हो गए हो और मुझे भी भयभीत कर रहे हो।
🐺 चतुरक – धर्मराज एक ऊँटों के दल के साथ बहुत ही क्रोध में इधर ही आ रहे है। वे आपसे क्रोधित है।
🦁 वज्रदंत – लेकिन वे मुझसे क्रुद्ध क्यों है?
🐺 चतुरक – जब मैंने उनसे पूछा तो उन्होंने कहा कि तुम्हारे स्वामी ने मेरी अनुमति लिए बिना ही मुझे अपना साक्षी बनाकर शंकुकर्ण को मार डाला है। इसलिए वे शंकुकर्ण के पुरखों के साथ से आपसे बदला लेने के लिए इधर ही आ रहे है।
धर्मराज के साथ लड़ना युक्ति-संगत नहीं है और आप अभी घायल भी है आप एक ही समय में इतने जनों का सामना नहीं कर सकते। मेरी मानिए और यहाँ से भाग कर अपनी जान बचा लीजिये। आप तब तक इस तरफ मत आइएगा जब तक कि मैं किसी तरह से उनको शांत करके उन्हें यहाँ से वापस ना भेज दूँ।
चतुरक की बात सुनकर वज्रदंत मरे हुए ऊँट को वहीं छोड़कर वहाँ से चला गया। चतुरक ने कई दिनों ऊँट के स्वादिष्ट माँस से अपनी उदर पूर्ति की।
सीख
कपटी लोगों के बीच में हमेशा चौकन्ना रहना चाहिए। उनकी धूर्तता भरी मीठी बातों में नहीं आना चाहिए। कपटी व्यक्ति किसी का सगा नहीं होता। अपने स्वार्थ के लिए वह अपनों के साथ भी छल कर सकता है।
पिछली कहानी – चिड़िया और हाथी
तो दोस्तों, कैसी लगी पंचतंत्र की कहानियों के रोचक संसार में डुबकी। मजा आया ना, तो हो जाइए तैयार लगाने अगली डुबकी, .. .. .. ..
अगली कहानी – सूचिमुखी गौरैया और बंदर
अब एक छोटा सा काम आपके लिए भी, अगर यह कहानी आपको अच्छी लगी हो, तो इस पेज को Bookmark कर लीजिये और सोशल मीडिया जैसे Facebook, Twitter, LinkedIn, WhatsApp (फेसबुक टि्वटर लिंकडइन इंस्टाग्राम व्हाट्सएप) आदि पर अपने दोस्तों को शेयर कीजिए।
अपनी राय और सुझाव Comments Box में जरूर दीजिए। आपकी राय और सुझावों का स्वागत है।