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6 शुभ योग में नवरात्रि की शुरुआत:कलश स्थापना के लिए सुबह 6 से शाम 6 बजे तक 3 मुहूर्त, जानिए आसान पूजा विधि
आज से चैत्र नवरात्रि शुरू हो गई है। इसका आखिरी दिन 30 मार्च रहेगा। आज 6 बड़े शुभ योग में घटस्थापना होगी। जिसके लिए दिनभर में 3 मुहूर्त हैं। नवरात्र में हर दिन देवी के अलग-अलग रूपों की पूजा होगी। खरीदारी और नई शुरुआत के लिए भी हर दिन शुभ मुहूर्त रहेंगे।
लगभग हर साल नवरात्रि के पहले दिन चित्रा नक्षत्र और वैधृति योग पड़ता है। जिसके चलते घट स्थापना के लिए कुछ ही घंटो का मुहूर्त निकल पाता है। इस बार ऐसा नहीं है, इसलिए सूर्यास्त से पहले तक किसी भी मुहूर्त में कलश स्थापना कर सकेंगे।
इस साल भी तिथियों की गड़बड़ी नहीं होने से देवी पूजा के लिए पूरे नौ दिन मिलेंगे। ये शुभ संयोग है। लगातार दूसरे साल ऐसा हो रहा है। इसके चलते दुर्गाष्टमी 29 मार्च, बुधवार को रहेगी। दुर्गा महापूजा और श्रीराम नवमी पर्व 30 मार्च, गुरुवार को मनेगा।
आज षड महायोग में नवरात्रि शुरू हो रही है। शंख, हंस, शुक्ल, बुधादित्य, गजकेसरी और कुलदीपक नाम के शुभ योग का बनना समृद्धि का संकेत है। सूर्योदय के वक्त सूर्य के साथ चंद्र, बुध और गुरु, ये चारों ग्रह एक ही राशि में मौजूद रहेंगे। इनमें से तीन ग्रहों का उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र में होना शुभ फलदायी रहेगी। षड महायोग और ग्रहों का ऐसा संयोग कई सालों में बनता है।
- प्रो. रामनारायण द्विवेदी, काशी विद्वत परिषद और डॉ. गणेश मिश्र, केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, पुरी के मुताबिक
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अखंड नवरात्रि: शक्ति आराधना के लिए पूरे 9 दिन
2 अप्रैल से शुरू होने वाली चैत्र नवरात्रि अखंड रहेगी। यानी इनमें एक भी तिथि कम नहीं होगी। इस तरह पूरे नौ दिनों का शक्ति पर्व होना शुभ संयोग है। इस बार देवी नौका पर सवार होकर आएंगी और हाथी पर विदा होंगी। इस तरह देवी का आगमन कष्टों से मुक्ति का संकेत दे रहा है। वहीं, विदाई से इस साल अच्छी बारिश का योग बनेगा।
नई शुरुआत के लिए प्रतिपदा, अष्टमी और नवमी तिथि शुभ
चैत्र नवरात्रि की प्रतिपदा, अष्टमी और नवमी तिथि नई शुरुआत के लिए शुभ मानी जाती है। इन तिथियों में खरीदारी और निवेश करने से फायदा मिलता है। इन दिनों में पूजा-पाठ का भी विशेष शुभ फल मिलता है।
चैत्र महीने के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि 22 मार्च को है। इस दिन शुक्ल और ब्रह्म नाम के दो शुभ योग बन रहे हैं। अष्टमी तिथि 29 मार्च को है। इस दिन शोभन और रवियोग रहेगा। जिसमें व्हीकल खरीदारी के लिए मुहूर्त है। नवमी 30 मार्च को रहेगी। इस दिन पुष्य नक्षत्र के संयोग में प्रॉपर्टी खरीदारी का विशेष मुहूर्त है।
9 दिनों में 11 शुभ योग
चैत्र नवरात्रि के 9 दिनों में पांच रवियोग, चार सर्वार्थसिद्धि, एक अमृतसिद्धि और एक द्विपुष्कर योग बनेंगे। इसकी वजह से नवरात्रि की शुभता और बढ़ जाएगी। इस बार पांच राजयोग में नवरात्रि की शुरुआत हो रही है। जिससे इन नौ दिनों में खरीदारी, लेन-देन, निवेश और नए कामों की शुरुआत करना शुभ रहेगा।
इन योगों का शुभ फल लंबे समय तक दिखेगा। इस कारण कई लोगों के लिए सफलता और आर्थिक मजबूती देने वाला समय रहेगा। इस नवरात्रि लोगों के कल्याण के लिए योजनाएं बनेंगी और उन पर काम भी होगा। कई लोगों के लिए बड़े बदलाव वाला समय रहेगा।
नवरात्रि में करें श्रीराम चरित मानस का पाठ:617 साल बाद चैत्र नवरात्रि में सूर्य, गुरु, शनि का दुर्लभ योग, जानिए सभी 12 राशियों पर कैसा होगा असर
आज से नव संवत 2080 और चैत्र मास की नवरात्रि शुरू हो रही है। इस बार सूर्य, गुरु और शनि का दुर्लभ योग बन रहा है। सूर्य और गुरु मीन राशि में रहेंगे, शनि कुंभ राशि में रहेगा और चैत्र नवरात्रि मनाई जाएगी। ऐसा योग 617 साल पहले बना था।
उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के मुताबिक, इस नए वर्ष के राजा बुध और मंत्री शुक्र हैं। ये साल मेहनत करने वाले लोगों के लिए शुभ और व्यापार वृद्धि करने वाला होगा। बुध के राजा होने से सुख-समृद्धि बढ़ेगी। धार्मिक कार्यक्रम ज्यादा होंगे। शुक्र के मंत्री होने से वैभव और संपत्तियों में वृद्धि करने का समय रहेगा।
चैत्र नवरात्रि में ग्रहों के दुर्लभ योग
चैत्र में नवरात्रि की प्रतिपदा पर गुरु अपनी राशि मीन में सूर्य के साथ स्थित है। शनि अपनी राशि कुंभ में है। ऐसे योग में चैत्र नवरात्रि 617 साल पहले 30 मार्च 1406 को मनाई गई थी। सूर्य मीन राशि में है और गुरु-शनि का अपनी-अपनी राशि में हैं, इन तीन बड़े ग्रहों की वजह से नव संवत धन संबंधी मामलों में लाभदायक रहेगा।
नवरात्रि में ध्यान रखें ये बातें
चैत्र नवरात्रि में संयम से रहना चाहिए। मंत्रों का जप करें। श्रीराम चरित मानस का पाठ करें। देवीसुक्त और देवीपुराण का पाठ करें। देवी पूजा से सभी दुख दूर हो सकते हैं और सफलता मिल सकती है।
22 मार्च से शुरू होगा नव संवत 2080:21 तारीख को चैत्र अमावस्या पर करें किसी नदी में स्नान और 22 को तीर्थ दर्शन के साथ करें नववर्ष की शुरुआत
इस सप्ताह मंगलवार और बुधवार ये दो दिन धर्म-कर्म के नजरिए से बहुत खास हैं। मंगलवार (21 मार्च) को चैत्र मास की अमावस्या है। बुधवार (22 मार्च) से चैत्र नवरात्रि और नवसंवत्-2080 शुरू होगा। इन दो दिनों में किए गए धर्म-कर्म से अक्षय मिलता है। सकारात्मक सोच के साथ नववर्ष की शुरुआत करेंगे तो पूरे साल इसका लाभ मिल सकता है। जानिए अमावस्या और चैत्र नवरात्रि की शुरुआत पर कौन-कौन से शुभ काम किए जा सकते हैं…
उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के मुताबिक, अमावस्या पर किसी पवित्र नदी में स्नान करना चाहिए। ये परंपरा पुराने समय से चली आ रही है। इस कारण अमावस्या पर गंगा, यमुना, शिप्रा, नर्मदा जैसी पवित्र नदियों में स्नान के लिए हजारों भक्त पहुंचते हैं। स्नान के बाद नदी किनारे ही जरूरतमंद लोगों को दान-पुण्य करना चाहिए। दान में धन के साथ ही अनाज, कपड़े, जूते-चप्पल भी दे सकते हैं। नदी स्नान के बाद सूर्य को अर्घ्य अर्पित करना चाहिए।
जो लोग नदी में स्नान नहीं कर पा रहे हैं, वे घर पर ही पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान कर सकते हैं। स्नान करते समय सभी तीर्थों और पवित्र नदियों का ध्यान करना चाहिए। इसके बाद घर के आसपास ही जरूरतमंद लोगों को दान दे सकते हैं।
अमावस्या और चैत्र नवरात्रि की प्रतिपदा तिथि पर जल और दूध से शिव जी का अभिषेक करना चाहिए। तांबे के लोटे में जल भरें और शिवलिंग पर चढ़ाएं। चांदी के लोटे में दूध भरकर अभिषेक करें। इसके बाद एक बार फिर जल से अभिषेक करें। मिठाई और फलों का भोग लगाएं। पूजा में ऊँ नम: शिवाय मंत्र का जप करें। धूप-दीप जलाकर आरती करें। शिव जी के साथ ही देवी पार्वती की भी पूजा करनी चाहिए।
चैत्र नवरात्रि के पहले दिन देवी दुर्गा को लाल फूल, लाल चुनरी, सुहाग का सामान चढ़ाएं। मिठाई का भोग लगाएं। मौसमी फल अर्पित करें। देवी दुर्गा के मंत्र दुं दु्र्गायै नम: का जप करें। मंत्र जप कम से कम 108 बार करें।
मंगलवार और अमावस्या के योग में हनुमान जी का चोला चढ़वाएं। सिंदूर और चमेली का तेल चढ़ाएं। धूप-दीप जलाकर आरती करें। हनुमान चालीसा, सुंदरकांड या हनुमान जी के मंत्रों का जप करें। आप चाहें तो राम नाम का जप भी कर सकते हैं।
किसी गोशाला में गायों की देखभाल के लिए दान करें। गायों को हरी घास खिलाएं। किसी तालाब या नदी में मछलियों का आटे की गोलियां बनाकर खिलाएं।
चैत्र नवरात्रि की नवमी 30 को:गुरुवार को करें देवी दुर्गा के नौवें स्वरूप की पूजा, नौ दिनों के व्रत-उपवास और पूजा का फल देती हैं सिद्धिदात्री
गुरुवार, 30 मार्च को चैत्र नवरात्रि की नवमी है। इस दिन श्रीराम का प्रकट उत्सव भी मनाया जाता है। नवरात्रि की नवमी पर देवी दुर्गा के नौवें स्वरूप की पूजा की जाती है। इस तिथि पर देवी मां के और श्रीराम के मंत्रों का जप और ध्यान करना चाहिए।
उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के मुताबिक, नवरात्रि के नौ दिनों में की गई देवी पूजा का फल नवमी तिथि पर देवी सिद्धिदात्री प्रदान करती हैं। नवमी तिथि पर छोटी कन्याओं को भोजन करने की भी परंपरा है। खाना खिलाने के बाद कन्याओं का पूजन किया जाता है। कन्याओं को लाल चुनरी, दक्षिणा देनी चाहिए। पढ़ाई-लिखाई से जुड़ी चीजें दान करें।
मां सिद्धिदात्री कमल के फूल पर विराजमान रहती हैं। इनका वाहन सिंह यानी शेर है। मां सिद्धिदात्री के चार हाथ हैं। एक दाहिने हाथ गदा और दूसरे हाथ में चक्र है। एक बाएं हाथ में कमल और दूसरे हाथ में शंख है।
ऐसे कर सकते हैं सिद्धिदात्री देवी की पूजा
नवमी तिथि पर सुबह जल्दी उठें। स्नान के बाद घर के मंदिर में पूजा करने का संकल्प लें। देवी दुर्गा के सिद्धिदात्री स्वरूप की पूजा करें। देवी का जल से और पंचामृत से अभिषेक करें। लाल चुनरी, चूड़ियां, लाल फूल, कुमकुम, सिंदूर आदि चीजें चढ़ाएं। मौसमी फल, नारियल, मिठाई का भोग लगाएं। देवी मंत्रों जप और ध्यान करें।
दुं दुर्गायै नम:, मंत्र का जप कर सकते हैं। मंत्र जप रुद्राक्ष की माला की मदद से करें। पूजा करने वाले भक्त को साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखना चाहिए। जप के लिए किसी ऐसी जगह का चयन करें, जहां शांति और पवित्रता हो।
आप चाहें तो इस मंत्र का भी जप कर सकते हैं-
सर्वमंगलमांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके। शरण्येत्र्यम्बके गौरी नारायणि नमोस्तु ते।।
ऊँ जयन्ती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी। दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तुते।।
इन मंत्रों के अलावा दुर्गा सप्तशती का पाठ भी किया जा सकता है। देवी कथाएं पढ़ सकते हैं। इस दिन किसी गोशाला में धन और हरी घास का दान करें।
देवी सिद्धिदात्री की पूजा से मिलती हैं सिद्धियां
देवी सिद्धिदात्री अपने भक्तों को सिद्धियां और सफलता देती हैं। मान्यता है कि शिव जी ने भी तपस्या से माता सिद्धिदात्री को प्रसन्न किया और उनसे आठ सिद्धियां हासिल की थीं। चैत्र नवरात्रि के अंतिम दिन यानी नवमी तिथि पर देवी सिद्धिदात्री की पूजा के साथ नौ दिवसीय नवरात्रि का समापन होता है। हनुमान चालीसा में अष्टसिद्धियों का जिक्र आता है। ये अष्टसिद्धियां हैं- अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्व। ये सभी सिद्धियां मां सिद्धिदात्री की आराधना से भी प्राप्त की जा सकती हैं। हनुमान जी भी अष्टसिद्धि और नवनिधि प्रदान करने वाले देवता माने गए हैं।
29 मार्च को महाअष्टमी और 30 को श्रीराम नवमी:देवी दुर्गा के साथ ही छोटी कन्याओं की पूजा का पर्व है चैत्र नवरात्रि, रामायण पढ़ें और राम नाम का करें जप
अभी चैत्र नवरात्रि चल रही है और आज (26 मार्च) देवी स्कंदमाता की पूजा की जाएगी। 29 मार्च को महाअष्टमी है और 30 को श्रीराम नवमी के साथ चैत्र नवरात्रि का समापन होगा। नौ दिवसीय पर्व में दुर्गा पूजा के साथ ही छोटी कन्याओं की पूजा करने की भी परंपरा है। इसके साथ ही रामायण का पाठ करना चाहिए और राम नाम का जप करना चाहिए।
उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के मुताबिक, नवरात्रि के अंतिम दिनों में अष्टमी और नवमी तिथि पर छोटी कन्याओं को भोजन कराया जाता है। मान्यता है कि छोटी कन्याएं भी देवी दुर्गा का ही स्वरूप हैं। इनकी पूजा करने से देवी प्रसन्न होती हैं और भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करती हैं।
ऐसे कर सकते हैं कन्या पूजन
अष्टमी-नवमी तिथि पर छोटी कन्याओं को उनके घर जाकर भोजन के लिए निमंत्रण देना चाहिए। नौ कन्याओं को आमंत्रित करेंगे तो ज्यादा बेहतर रहेगा।
जब कन्याएं हमारे घर आएं तो उन्हें आसन पर बैठाएं। सभी कन्याओं के पैर धोएं।
कन्याओं के माथे पर कुमकुम से तिलक करें। हार-फूल पहनाएं। इसके बाद भोजन कराएं।
भोजन के बाद कन्याओं को अपने सामर्थ्य के अनुसार दक्षिणा भी देनी चाहिए। उपहार भी दे सकते हैं।
उपहार में नए कपड़े, पढ़ाई से संबंधित चीजें, जूते-चप्पल, श्रृंगार का सामान दे सकते हैं।
देवी भागवत पुराण में कन्याओं को बताया है देवी का स्वरूप
श्रीमद् देवी भागवत महापुराण के तृतीय स्कंध में कन्याओं का जिक्र है। इस पुराण में लिखा है कि दो वर्ष की कन्या कुमारी होती है, तीन साल की कन्या त्रिमूर्ति, चार साल की कन्या कल्याणी, पांच साल की कन्या रोहिणी, छ: साल की कन्या कालिका, सात साल की कन्या चंडिका, आठ साल की कन्या शांभवी, नौ साल की कन्या दुर्गा और दस साल की कन्या सुभद्रा देवी का स्वरूप होती हैं।
श्रीराम नवमी पर कौन-कौन से शुभ काम कर सकते हैं
चैत्र शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि पर श्रीराम का प्रकट उत्सव मनाया जाता है। त्रेता युग में इसी तिथि पर राजा दशरथ के यहां भगवान विष्णु ने राम के रूप में जन्म लिया था। नवमी तिथि पर चैत्र नवरात्रि का समापन भी होता है।
देवी दुर्गा की विधिवत पूजा करें। धूप-दीप जलाकर देवी मंत्र दुं दुर्गायै नम: मंत्र का जप करें।
श्रीराम नवमी पर राम जी की विशेष पूजा करें। रामायण का पाठ करें। राम नाम का जप करें। श्रीराम के परम भक्त हनुमान जी की भी पूजा करें।
हनुमान जी को सिंदूर और चमेली का तेल चढ़ाएं। सुंदरकांड और हनुमान चालीसा का पाठ करें। आप चाहें हनुमान जी के मंत्र ऊँ रामदूताय नम: मंत्र का जप करें।
रविवार को नवरात्रि का पांचवां दिन:संतान की अच्छी सेहत और लंबी उम्र के लिए पंचमी पर होती है स्कंदमाता की पूजा
26 मार्च, रविवार को चैत्र नवरात्रि की पंचमी है। इस तिथि पर स्कंदमाता की पूजा करने का विधान बताया गया है। संतान की लंबी उम्र और अच्छी सेहत की कामना से नवरात्रि में देवी के इस पांचवे रूप की पूजा होती है।
नवरात्रि के पांचवें दिन स्कंदमाता की पूजा की जाती है। स्कंदमाता भक्तों को सुख-शांति प्रदान करने वाली हैं। देवासुर संग्राम के सेनापति भगवान स्कंद की माता होने के कारण मां दुर्गा के पांचवें स्वरूप को स्कंदमाता के नाम से जाना जाता है।
शिव और पार्वती के दूसरे और षडानन (छह मुख वाले) पुत्र कार्तिकेय का एक नाम स्कंद है क्योंकि यह सूर्य मंडल की अधिष्ठात्री देवी हैं, इसलिये इनके चारों ओर सूर्य जैसा अलौकिक तेजोमय मंडल दिखाई देता है। स्कंदमाता की उपासना से भगवान स्कंद के बाल रूप की भी पूजा होती है।
देवी स्कंदमाता का स्वरूप
मां के इस रूप की चार भुजाएं हैं। इन्होंने अपनी दाएं तरफ की ऊपर वाली भुजा से स्कंद अर्थात कार्तिकेय को पकड़ा हुआ है। निचली दाएं भुजा के हाथ में कमल का फूल है। बायीं ओर की ऊपरी भुजा में वरद मुद्रा है और नीचे दूसरे हाथ में सफेद कमल का फूल है। सिंह इनका वाहन है।
पूजा का महत्त्व
नवरात्रि की पंचमी तिथि को स्कंदमाता की पूजा विशेष फलदायी होती है। इस दिन साधक का मन विशुद्ध चक्र में अवस्थित होना चाहिए, जिससे कि ध्यान वृत्ति एकाग्र हो सके। यह शक्ति परम शांति और सुख का अनुभव कराती है। मां की कृपा से बुद्धि में वृद्धि होती और ज्ञान रूपी आशीर्वाद मिलता है। सभी तरह की व्याधियों का भी अंत हो जाता है।
श्री पंचमी व्रत 26 मार्च को:समृद्धि और सौभाग्य के लिए चैत्र नवरात्रि के पांचवे दिन लक्ष्मी पूजा और व्रत करने का विधान
चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को लक्ष्मीजी की पूजा और व्रत किया जाता है। इसे श्रीपंचमी या श्रीलक्ष्मी व्रत भी कहते हैं। इस बार ये व्रत 26 मार्च, रविवार को है। इस व्रत से धन व ऐश्वर्य मिलता है।
पंचमी पर ग्रहों की शुभ स्थिति से प्रीति और रवियोग बन रहा है। जिससे इस दिन की गई लक्ष्मी पूजा से सुख और समृद्धि बढ़ेगी। वहीं, खरीदारी और निवेश का फायदा लंबे समय तक मिलेगा।
लक्ष्मी पंचमी व्रत मार्गशीर्ष महीने के शुक्ल पक्ष की पंचमी पर भी करते हैं। जिसका महत्व भी अलग होता है। लेकिन हिंदु नववर्ष की पहली श्री पंचमी होने से चैत्र महीने की इस पांचवी तिथि को बहुत खास माना गया है।
चैत्र नवरात्रि का पांचवां दिन
नवरात्रि की पांचवी तिथि देवी स्कंदमाता की पूजा करने का विधान है। वहीं, इस तिथि के स्वभाव के मुताबिक लक्ष्मीजी की भी पूजा करनी चाहिए। ज्योतिष में इसे पूर्णा तिथि कहा गया है। यानी इसमें किए गए कामों में सफलता मिलना लगभग तय होता है।
पूजा विधि
चतुर्थी तिथि को नहाकर साफ कपड़े पहने और व्रत का संकल्प लें।
घी, दही और भात खाएं। पंचमी को नहाकर व्रत रखें और देवी लक्ष्मी की पूजा करें।
पूजा में धान्य (गेहूं, चावल, जौ आदि), हल्दी, अदरक, गन्ना व गुड़ चढ़ाकर कमल के फूलों से हवन करने का भी विधान है।
कमल न मिले तो बेल के टुकड़ों का और वे भी न हों तो केवल घी का हवन करें।
इस दिन कमल से युक्त तालाब में स्नान करके सोना दान करने से लक्ष्मीजी अति प्रसन्न होती है।
व्रत और पूजा का महत्व
श्रीपंचमी का व्रत करने से महिलाओं को सौभाग्य प्राप्ति होती है। घर में समृद्धि और सुख बढ़ता है। दरिद्रता और रोग नहीं होते। इस व्रत के प्रभाव से परिवार के सदस्यों की उम्र बढ़ती है। कई जगह ये व्रत मनोकामना पूरी करने के संकल्प के साथ किया जाता है।
चैत्र माह के शुक्लपक्ष की पंचमी तिथि को लक्ष्मी जी पूजा और व्रत करने से हर तरह की सिद्धि प्राप्त होती है और सोचे हुए काम भी पूरे हो जाते हैं।
साल में चार बार आती है नवरात्रि:पूजा-पाठ के साथ हेल्थ से भी जुड़ा है देवी पूजा का महापर्व, इन दिनों किए गए व्रत से पाचन तंत्र रहता है दुरुस्त
आज (22 मार्च) से चैत्र नवरात्रि शुरू हो गई है। एक साल में चार बार नवरात्रि आती है। देवी पूजा के ये नौ दिन पूजा-पाठ के साथ ही हमारी हेल्थ के लिए भी फायदेमंद हैं। इन दिनों में किए गए व्रत-उपवास से पाचन तंत्र को आराम मिलता है, पेट से जुड़ी छोटी-छोटी कई समस्याएं व्रत से दूर हो सकती हैं। नवरात्रि के बारे में जानने के लिए हमने उज्जैन के ज्योतिषाचार्य और शास्त्रों के जानकार पं. मनीष शर्मा से, जानिए चैत्र नवरात्रि से जुड़ी खास परंपराएं और उनके फायदे…
सवाल – देवी दुर्गा के नौ स्वरूप कौन-कौन से हैं?
जवाब – नवरात्रि के नौ स्वरूपों के बारे में मार्कंडेय पुराण के देवी कवच में लिखा है-
प्रथम शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।
तृतीयं चन्द्रघण्टेती कूष्माण्डेति चतुर्थकम्।।
पंचमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च।
सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम्।।
नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गाः प्रकीर्तिताः।
नवदुर्गा देवी का पहला स्वरूप हैं देवी शैलपुत्री। दूसरी ब्रह्मचारिणी, तीसरी चंद्रघंटा, चौथी कूष्मांडा, पांचवीं स्कंदमाता, छठी कात्यायनी, सातवीं कालरात्रि, आठवीं महागौरी और नौवीं देवी सिद्धिदात्री हैं।
नवरात्रि के नौ अलग-अलग दिनों में इन नौ देवियों की पूजा की जाती है।
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रविवार को नवरात्रि का पांचवां दिन:संतान की अच्छी सेहत और लंबी उम्र के लिए पंचमी पर होती है स्कंदमाता की पूजा
26 मार्च, रविवार को चैत्र नवरात्रि की पंचमी है। इस तिथि पर स्कंदमाता की पूजा करने का विधान बताया गया है। संतान की लंबी उम्र और अच्छी सेहत की कामना से नवरात्रि में देवी के इस पांचवे रूप की पूजा होती है।
नवरात्रि के पांचवें दिन स्कंदमाता की पूजा की जाती है। स्कंदमाता भक्तों को सुख-शांति प्रदान करने वाली हैं। देवासुर संग्राम के सेनापति भगवान स्कंद की माता होने के कारण मां दुर्गा के पांचवें स्वरूप को स्कंदमाता के नाम से जाना जाता है।
शिव और पार्वती के दूसरे और षडानन (छह मुख वाले) पुत्र कार्तिकेय का एक नाम स्कंद है क्योंकि यह सूर्य मंडल की अधिष्ठात्री देवी हैं, इसलिये इनके चारों ओर सूर्य जैसा अलौकिक तेजोमय मंडल दिखाई देता है। स्कंदमाता की उपासना से भगवान स्कंद के बाल रूप की भी पूजा होती है।
देवी स्कंदमाता का स्वरूप
मां के इस रूप की चार भुजाएं हैं। इन्होंने अपनी दाएं तरफ की ऊपर वाली भुजा से स्कंद अर्थात कार्तिकेय को पकड़ा हुआ है। निचली दाएं भुजा के हाथ में कमल का फूल है। बायीं ओर की ऊपरी भुजा में वरद मुद्रा है और नीचे दूसरे हाथ में सफेद कमल का फूल है। सिंह इनका वाहन है।
पूजा का महत्त्व
नवरात्रि की पंचमी तिथि को स्कंदमाता की पूजा विशेष फलदायी होती है। इस दिन साधक का मन विशुद्ध चक्र में अवस्थित होना चाहिए, जिससे कि ध्यान वृत्ति एकाग्र हो सके। यह शक्ति परम शांति और सुख का अनुभव कराती है। मां की कृपा से बुद्धि में वृद्धि होती और ज्ञान रूपी आशीर्वाद मिलता है। सभी तरह की व्याधियों का भी अंत हो जाता है।
दो ऋतुओं के बीच मनाई जाती है नवरात्रि:मौसम परिवर्तन के समय व्रत-उपवास करने से सेहत को मिलता है फायदा, मेडिटेशन से मन होता है शांत
बुधवार, 22 मार्च से चैत्र नवरात्रि शुरू हो रही है। ये देवी दुर्गा की पूजा का महापर्व है, इन दिनों में किए गए व्रत-उपवास से धर्म के साथ ही स्वास्थ्य लाभ भी मिलते हैं। सालभर में चार बार नवरात्रि आती है। इस पर्व का संबंध भक्ति के साथ ही सेहत और मानसिक शांति से भी है।
उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के मुताबिक, दो नवरात्रि गुप्त होती हैं और दो प्रकट (सामान्य) होती हैं। गुप्त नवरात्रि में तो भक्त दस महाविद्याओं के लिए विशेष साधनाएं करते हैं। ये बहुत कठिन होती हैं और इनके नियम भी बहुत ज्यादा होते हैं। ये माघ और आषाढ़ मास में आती है। दो अन्य नवरात्रि आश्विन और चैत्र मास में आती है। इन दो नवरात्रियों में भक्त देवी मां के लिए व्रत-उपवास, पूजा-पाठ करते हैं। सामान्य नवरात्रि में देवी पूजा सरल तरीके से भी की जा सकती है।
धर्म के साथ सेहत के लिए खास है देवी पूजा का ये पर्व
अभी शीत ऋतु खत्म हो रही है और ग्रीष्म ऋतु की शुरुआत हो रही है। दो ऋतुओं के संधिकाल में मौसमी बीमारियां जैसे सर्दी-जुकाम, बुखार, पेट और त्वचा संबंधी बीमारियां होने की संभावनाएं काफी अधिक बढ़ जाती हैं। इस समय में खान-पान और जीवन शैली में किए गए सकारात्मक बदलाव की वजह से शरीर की इम्युनिटी बढ़ती है और हम मौसमी बीमारियों से बच जाते हैं।
व्रत-उपवास से पाचन तंत्र को मिलता है आराम
आयुर्वेद में बीमारियों के ठीक करने की कई विद्याएं बताई गई हैं। इन विद्याओं में एक है लंघन। लंघन विद्या में निराहार रहने की सलाह दी जाती है। निराहार रहने से पाचन तंत्र को आराम मिलता है और कई बीमारियों की रोकथाम हो जाती है। नवरात्रि में पूजा-पाठ के साथ ही व्रत-उपवास किए जाते हैं। व्रत करने वाले लोग निराहार रहते हैं यानी अनाज नहीं खाते हैं, फलों का सेवन करते हैं, दूध और फलों का रस पीते हैं, जिससे शरीर को जरूरी ऊर्जा मिल जाती है। ऐसा करने से पाचन तंत्र को कम काम करना पड़ता है और पेट संबंधी दिक्कतें ठीक होती है।
मेडिटेशन से मन होता है शांत
नवरात्रि के दिनों में देवी पूजा करने वाले भक्त सुबह जल्दी जागते हैं। पूजा-पाठ करते हैं और मंत्र जप, ध्यान करते हैं। ऐसा करने से अशांति और नकारात्मक विचार दूर होते हैं। जल्दी जागते हैं तो आलस दूर होता है। दिनभर के काम करने के लिए ज्यादा समय मिलता है। शांत मन और सकारात्मकता के साथ किए गए कामों में सफलता मिलने की संभावनाएं काफी बढ़ जाती हैं।
स सप्ताह मंगलवार और बुधवार ये दो दिन धर्म-कर्म के नजरिए से बहुत खास हैं। मंगलवार (21 मार्च) को चैत्र मास की अमावस्या है। बुधवार (22 मार्च) से चैत्र नवरात्रि और नवसंवत्-2080 शुरू होगा। इन दो दिनों में किए गए धर्म-कर्म से अक्षय मिलता है। सकारात्मक सोच के साथ नववर्ष की शुरुआत करेंगे तो पूरे साल इसका लाभ मिल सकता है। जानिए अमावस्या और चैत्र नवरात्रि की शुरुआत पर कौन-कौन से शुभ काम किए जा सकते हैं…
22 मार्च से शुरू होगा नव संवत 2080:21 तारीख को चैत्र अमावस्या पर करें किसी नदी में स्नान और 22 को तीर्थ दर्शन के साथ करें नववर्ष की शुरुआत
उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के मुताबिक, अमावस्या पर किसी पवित्र नदी में स्नान करना चाहिए। ये परंपरा पुराने समय से चली आ रही है। इस कारण अमावस्या पर गंगा, यमुना, शिप्रा, नर्मदा जैसी पवित्र नदियों में स्नान के लिए हजारों भक्त पहुंचते हैं। स्नान के बाद नदी किनारे ही जरूरतमंद लोगों को दान-पुण्य करना चाहिए। दान में धन के साथ ही अनाज, कपड़े, जूते-चप्पल भी दे सकते हैं। नदी स्नान के बाद सूर्य को अर्घ्य अर्पित करना चाहिए।
जो लोग नदी में स्नान नहीं कर पा रहे हैं, वे घर पर ही पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान कर सकते हैं। स्नान करते समय सभी तीर्थों और पवित्र नदियों का ध्यान करना चाहिए। इसके बाद घर के आसपास ही जरूरतमंद लोगों को दान दे सकते हैं।
अमावस्या और चैत्र नवरात्रि की प्रतिपदा तिथि पर जल और दूध से शिव जी का अभिषेक करना चाहिए। तांबे के लोटे में जल भरें और शिवलिंग पर चढ़ाएं। चांदी के लोटे में दूध भरकर अभिषेक करें। इसके बाद एक बार फिर जल से अभिषेक करें। मिठाई और फलों का भोग लगाएं। पूजा में ऊँ नम: शिवाय मंत्र का जप करें। धूप-दीप जलाकर आरती करें। शिव जी के साथ ही देवी पार्वती की भी पूजा करनी चाहिए।
चैत्र नवरात्रि के पहले दिन देवी दुर्गा को लाल फूल, लाल चुनरी, सुहाग का सामान चढ़ाएं। मिठाई का भोग लगाएं। मौसमी फल अर्पित करें। देवी दुर्गा के मंत्र दुं दु्र्गायै नम: का जप करें। मंत्र जप कम से कम 108 बार करें।
मंगलवार और अमावस्या के योग में हनुमान जी का चोला चढ़वाएं। सिंदूर और चमेली का तेल चढ़ाएं। धूप-दीप जलाकर आरती करें। हनुमान चालीसा, सुंदरकांड या हनुमान जी के मंत्रों का जप करें। आप चाहें तो राम नाम का जप भी कर सकते हैं।
किसी गोशाला में गायों की देखभाल के लिए दान करें। गायों को हरी घास खिलाएं। किसी तालाब या नदी में मछलियों का आटे की गोलियां बनाकर खिला
अभी चैत्र मास की नवरात्रि चल रही है और शनिवार (25 मार्च) को नवरात्रि का चौथा दिन है। इस दिन देवी दुर्गा के चौथे स्वरूप कूष्मांडा की पूजा की जाएगी। शनिवार को चैत्र शुक्ल चतुर्थी भी है, ये गणेश जी के लिए व्रत-उपवास करने की तिथि है।
उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के मुताबिक, चतुर्थी व्रत घर-परिवार की सुख-समृद्धि की कामना से किया जाता है। मान्यता है कि जो लोग ये व्रत करते हैं, उन्हें गणेश जी की कृपा मिलती है और सभी बाधाएं दूर होती हैं, घर में सुख-समृद्धि मिल सकती है। गणेश जी के साथ देवी दुर्गा और शिव जी की पूजा भी की जाएगी तो पूजा जल्दी सफल हो सकती है। ये सभी एक ही परिवार के देवी-देवता हैं। इसलिए इनकी एक साथ की गई पूजा ज्यादा शुभ मानी गई है।
चैत्र नवरात्रि का चौथा दिन शनिवार को
चैत्र नवरात्रि के चौथे दिन देवी कूष्मांडा की पूजा की जाती है। देवी कूष्मांडा के संबंध में मान्यता है कि जब सृष्टि में सिर्फ अंधकार था, उस समय देवी ने कूष्मांडा स्वरूप में अंड यानी ब्रह्मांड की रचना की थी। देवी मां को मालपुए का भोग लगाना चाहिए। देवी कूष्मांडा हमें संदेश देती हैं कि जीवन में जब भी असफलताओं का दौर आता है, हमें निडर होकर बाधाओं का सामना करना चाहिए। जिस तरह अंधकार के बाद उजाला आता है, ठीक इसी तरह असफलताओं के बाद भी कोशिश करते रहने से सफलता जरूर मिलती है।
ऐसे कर सकते हैं देवी कूष्मांडा की पूजा – देवी मां को लाल चुनरी, लाल फूल, लाल चूड़ियां, इत्र, सिंदूर आदि चीजें चढ़ाएं। देवी मां को दूर्वा, नारियल भी अर्पित करें। मिठाई का भोग लगाएं। दुर्गा मां के सामने दीपक जलाकर देवी मां के नामों का जप कर सकते हैं।
शनिवार को कर सकते हैं ये शुभ काम भी
शनिवार को शनि देव के लिए विशेष पूजा करने की परंपरा है। शनि देव का तेल से अभिषेक करें। तेल और काले तिल का दान करें।
हनुमान जी के सामने दीपक जलाकर हनुमान चालीसा या सुंदरकांड का पाठ करें। आप चाहें तो हनुमान जी की प्रतिमा पर सिंदूर और चमेली के तेल से चोला भी चढ़ा सकते हैं।
गणेश जी को दूर्वा चढ़ाएं। धूप-दीप जलाकर ऊँ गं गणपतयै नम: मंत्र का जप करें।
शिवलिंग पर तांबे के लोटे से जल चढ़ाएं। ऊँ नम: शिवाय मंत्र का जप करें।
जरूरतमंद लोगों को कपड़े, जूते-चप्पल और अनाज का दान करें। किसी गोशाला में गायों की देखभाल के लिए भी धन का दान कर सकते हैं।