नीले गुलाब वाली राजकुमारी – Neele Gulaab Wali Rajkumaari
पारियों की कहानियाँ – नीले गुलाब वाली राजकुमारी – Neele Gulaab Wali Rajkumaari – The Blue Rose Princess
मेरी प्यारी बिटिया
बहुत समय पहले की बात है, पदमपुर राज्य में राजा रतनसिंह राज्य करता था। उसकी एक बेटी थी जिसका नाम पद्मावती था। राजा अपनी बेटी को बहुत प्यार करता था।
वह ज़माने भर की खुशिया अपनी बेटी की झोली में डालना चाहता था। समय बीतने पर पद्मावती बड़ी हो गई और राजा को उसके विवाह की चिंता सताने लगी।
उस राज्य की एक प्रथा थी। उसके राज्य में एक बहुत ही ऊँची मीनार थी और उस देश की राजकुमारी के अठारह वर्ष की होने के बाद पड़ने वाली पहली शरद पूर्णिमा पर राजकुमारी को उस मीनार पर खड़े होकर किसी भी एक दिशा में तीर चलाना होता था।
वह तीर जिस किसी के भी राज्य में गिरता, उस देश के राजा से उसका विवाह करना पड़ता था। विवाह के पश्चात राजा अपनी बेटी की कोई भी मदद नहीं कर सकता था। ये मान्यता थी कि यदि ऐसा नहीं किया जाए तो राज्य पर गंभीर संकट आएगा और राज्य नष्ट हो जायेगा।
तीर कहाँ गिरेगा
राजकुमारी पद्मावती अठारह वर्ष की ही चुकी थी और जल्द ही शरद पूर्णिमा भी आने वाली थी। राजा ये सोच-सोच कर ही परेशान हो उठता था कि न जाने राजकुमारी का तीर कहाँ गिरेगा। राजा अपनी बेटी का विवाह अपने से भी अधिक संपन्न व शक्तिशाली राज्य में करवाना चाहता था। लेकिन परम्परा का पालन करना भी जरुरी था।
राजा रतनसिंह ने अपने गुप्तचरों द्वारा ये पता लगा लिया था कि पूर्व दिशा में उससे अधिक संपन्न व शक्तिशाली राज्य सोनापुर था। आखिर शरद पूर्णिमा आ ही गई और परम्परा के अनुसार राजा अपनी बेटी को लेकर उस मीनार पर गया।
राजा चाहता था कि राजकुमारी का तीर सोनापुर राज्य में ही गिरे इसलिए उसने राजकुमारी से पूर्व दिशा में तीर चलाने के लिए कहा।
राजा के कहे अनुसार राजकुमारी ने पूर्व दिशा की ओर तीर चला दिया। लेकिन तभी हवा का एक तेज झोंका आया और राजकुमारी के तीर की दिशा बदल गई और राजकुमारी का तीर उसके अपने ही राज्य में एक लकडहारे विष्णु के घर पर गिर गया।
अब उसी देश के राजा से तो राजकुमारी का विवाह असंभव था क्योंकि वो तो उसके पिता थे |
भाग्य बलवान है
तब राजा ने अपने राज्य के बड़े-बड़े गुरुओ और विद्वानों को बुलाया और उनसे इसका समाधान पूछा। तब सभी ने कहा कि परम्परा के अनुसार राजकुमारी को लकडहारे से विवाह करना होगा।
राजा इस निर्णय से बहुत दुखी था क्योंकि वह परम्परा के अनुसार लकडहारे से अपनी बेटी के विवाह के पश्चात् वह अपनी बेटी की मदद भी नहीं कर सकता था।
राजा ने लकडहारे से अपनी बेटी का विवाह करने से मना कर दिया और सभा में सभी से इस निर्णय पर दुबारा विचार करने के लिए कहा। लेकिन सभी ने कहा कि परम्परा का पालन करना जरुरी है, यदि ऐसा नहीं किया गया तो ये राज्य नष्ट हो जायेगा।
राजा बहुत दुखी हो गया। राजा को दुखी व चिंताग्रस्त देखकर राजकुमारी ने कहा पिताजी आप दुखी न हो शायद मेरे भाग्य में यहीं लिखा था। मैं अपने राज्य को नष्ट करने का कारण नहीं बनना चाहती, इसलिए मुझे विष्णु से विवाह करना स्वीकार है।
बड़े दुखी मन से राजा ने अपनी बेटी का विवाह लकडहारे विष्णु के साथ कर दिया। राजकुमारी पद्मावती विवाह के पश्चात् लकडहारे विष्णु के साथ उसी के घर में रहने लगी। इतने नाजो से रही राजकुमारी को विष्णु के घर में सारा काम खुद करना पड़ता था।
कई बार तो ऐसा होता था कि घर में दो समय का खाना भी बड़ी मुश्किलों से बन पता था। फिर भी राजकुमारी लकडहारे विष्णु के साथ बहुत खुश थी, क्योंकि विष्णु उसे बहुत प्यार करता था और उसे खुश रखने की पूरी कोशिश करता था।
मेरे घर आई एक नन्हीं परी
इसी तरह दो वर्ष बीत गए राजकुमारी पद्मावती और विष्णु के घर में एक सुंदर सी कन्या का जन्म हुआ। बच्ची छोटी होने के कारण राजकुमारी घर का काम नहीं कर पाती थी इसलिए विष्णु घर का काम करता जिससे उसे जंगल से लकड़ियाँ काटने का कम समय मिलता।
इस कारण उसकी कमाई कम हो गई और अब घर में सदस्य भी बढ़ गए थे।
एक बार तीन दिन तक मुसलाधार बारिश होती रही। विष्णु लकड़ी काटने नहीं जा सका और घर में भी खाने का सामान खत्म हो गया। राजकुमारी स्वयं भूखी रह सकती थी लेकिन वह अपनी बेटी को भूखा नहीं देख सकती थी। घर में खाने का सामान नहीं था और बारिश रूकने का नाम भी नहीं ले रही थी।
विष्णु भी बिना कुछ खाए सो गया और पद्मावती ने जैसे तैसे अपनी बेटी को भी सुला दिया। बहुत रात बीतने के पश्चात भी राजकुमारी की आँखों में नींद नहीं थी। वह दुखी होकर रोने लगी।
पारियों का वरदान
उसी समय उसकी झोपडी के ऊपर से परीलोक की 3 परियां सोनपरी, लालपरी और सुनहरीपरी जा रही थी। राजकुमारी का रोना सुनकर वे रूक गई और झोपडी में आई। उन्होंने पद्मावती से उसके रोने का कारण पूछा।
पद्मावती ने उन्हें सारी बात बताई और कहा कि मैं कितने भी दुःख झेल सकती हूँ लेकिन अपनी बेटी को भूख से बिलखता नहीं देख सकती। परियां राजकुमारी की कहानी सुनकर बहुत दुखी हुई।
परियों ने राजकुमारी की सहायता करने का निश्चय किया। सोनपरी ने अपनी जादू की छड़ी घुमाई और पद्मावती का घर तरह-तरह के खाने की चीजों से भर गया। फिर लालपरी ने अपनी जादू की छड़ी घुमाई तो पद्मावती के घर में सुंदर-सुंदर वस्त्र आ गए।
फिर सुनहरी परी ने अपनी जादू की छड़ी घुमाई तो पद्मावती के घर में सुंदर-सुंदर गहने आ गए।
तीनों परियों ने पद्मावती से अपनी बेटी को लाने के लिए कहा। पद्मावती जब अपनी बेटी को लेकर आई तो वह परियों को देख कर मुस्कुरा दी।
उसकी मुस्कराहट देखकर सोनपरी ने कहा “इसकी मुस्कान कितनी प्यारी है, इसका नाम मुस्कान होना चाहिए।” फिर तीनों परियों ने उसे एक-एक वरदान दिया। सोनपरी ने कहा “इसके कदम जहाँ-जहाँ पड़ेंगे वहां-वहां हरियाली छा जाएगी।” लालपरी ने कहा “जब भी ये दुखी होकर रोएगी तो इसके आंसुओं की जगह पर मोती गिरेंगे।”
सुनहरी परी ने कहा “ये जब भी खिलखिला कर हँसेगी तो चारों तरफ अनोखी खुशबू वाले नीले गुलाब के फूल खिल जायेंगे।” तीनों परियों ने कहा कि ये वरदान जब राजकुमारी सोलह वर्ष की हो जायेगी तब से फलीभूत होंगे।
इतना कहकर तीनों परियां चली गयी। अब पद्मावती के घर में किसी भी चीज की कोई कमी नहीं थी और उनकी जिंदगी मजे से कट रही थी |
खिल गए नीले गुलाब
इसी तरह सोलह वर्ष बीत गए और मुस्कान सोलह वर्ष की हो गयी। वह बहुत ही सुन्दर और जज्बाती थी। उसे किसी का भी दुःख देखकर रोना आ जाता था।
वह किसी भी बात पर खिलखिला कर हंस देती थी। एक दिन मुस्कान अपने घर के बाहर बैठी हुई थी। तभी उसने एक बूढी औरत को देखा उसके कपडे फटे हुए थे और कमर पूरी तरह से झुकी हुई थी। फिर भी वह अपने सर पर लकड़ियों का गठ्ठर लेकर जा रही थी।
उसे देखकर मुस्कान बहुत दुखी हुई। उसे रोना आ गया और उसकी आँखों से आंसुओं की जगह मोती गिरने लगे। पद्मावती ने जब ये देखा तो उसे परियों के वरदान याद आ गए।
मुस्कान जहाँ-जहाँ जाती वहां हरियाली छा जाती, जब भी वो दुखी होकर रोती तो उसकी आँखों से मोती गिरते और जब भी वो खिलखिला के हंसती तो चारों तरफ अनोखी खुशबू वाले नीले गुलाब के फूल खिल जाते।
चारों तरफ उसके बारे में चर्चा होने लगी।
पद्मावती को मुस्कान की चिंता होने लगी कि कहीं उसकी इन खूबियों की वजह से वह किसी खतरे में न पड जाए। इसलिए विष्णु और पद्मावती ने वह नगर छोड़ने का निश्चय कर लिया और वे दोनों मुस्कान को लेकर सोनापुर नगर में आ गए और वहीँ रहने लगे।
हंसी तो फँसी
पद्मावती ने मुस्कान को समझा दिया कि वह घर से बाहर न जाए और कभी किसी के सामने ना हँसे। मुस्कान ने भी अपनी माँ की बात मान ली।
विष्णु ने सोनापुर में काम तलाशने की बहुत कोशिश की लेकिन उसे वहां पर कोई काम नहीं मिला और उनके साथ लाया हुआ सामान भी अब खत्म होने वाला था।
एक दिन विष्णु और पद्मावती दोनों इस बारे में बातचीत कर रहे थे कि अब घर का खर्चा कैसे चलेगा तो मुस्कान ने उन दोनों की बाते सुन ली। वह बोली “पिताजी जब मैं हंसती हूँ तो जो नीले गुलाब के फूल खिलते है और जब मैं दुखी होकर रोती हूँ तो जो मोती गिरते है, उन्हें आप बाज़ार में बेच दिया करों जिससे कुछ आमदनी हो जाएगी।”
मुस्कान की ये बात सुनकर पद्मावती और विष्णु की परेशानी दूर हो गई।
ये देख कर मुस्कान ख़ुशी से खिलखिला दी और उसके चारों और नीले गुलाब के फूल खिल गए, जिन्हें पद्मावती ने संभाल के रख लिया। अगले दिन विष्णु उन नीले गुलाब के फूलों को लेकर बाज़ार में बेचने चला गया। बाज़ार में सभी लोग उसके नीले गुलाब के फूलों की सुन्दरता और अनोखी खुशबू से प्रभावित हो रहे थे।
माली की चतुराई
उसी समय उस देश के राजा भानुप्रताप का माली हंसराज वहां से गुजरा, उसने भी ऐसी अनोखी खुशबू वाले इतने सुन्दर फूल पहले कभी नहीं देखे थे। उसने सोचा कि यदि मैं ये फूल राजा को भेंट में दूंगा तो राजा बहुत प्रसन्न होंगे और उसे बहुत इनाम देंगे। यह सोच कर उसने विष्णु से सारे फूल खरीद लिए।
फूलों को लेकर वह अपने घर गया और अपनी बेटी हंसा से उस फूलों का सुंदर सा गुलदस्ता बनाने को कहा। हंसा ने तुरंत ही एक सुंदर सा गुलदस्ता बना दिया। हंसराज ने उस गुलदस्ते को राजा भानुप्रताप के कक्ष में सजा दिया।
जब राजा भानुप्रताप अपने कक्ष में आये तो गुलाबों की भीनी-भीनी खुशबू से उनका मन प्रसन्न हो गया। उन्होंने हंसराज को बुलाया और उसे एक सोने की मोहर इनाम में दी। हंसराज बहुत खुश हुआ |
अब जब भी विष्णु फूल बेचने आता हंसराज उसके सारे फूल खरीद लेता और उनका गुलदस्ता बना कर राजा भानुप्रताप को भेंट करके इनाम पाता।
इस तरह कई दिन बीत गए। राजा भानुप्रताप को वे फूल इतने अच्छे लगने लगे थे कि वह चाहता था कि उसका कक्ष सदा उन फूलों से सजा रहे। इसलिए उसने हंसराज से कहा कि वह रोजाना इन फूलों से उसके कक्ष को सजाया करे।
विष्णु रोज फूल बेचने नहीं आता था और उसे पता भी नहीं था कि ये फूल वह कहाँ से लाता है।
उसने सच को छुपाते हुए राजा से कहा, “महाराज ये फूल यहाँ से बहुत दूर जंगल में लगते है इसलिए इन्हें लाने में समय लगता है। लेकिन मैं पूरी कोशिश करूँगा कि रोज इन फूलों से आपका कक्ष सजा सकू” |
इस बार जब विष्णु बाज़ार में फूल बेचने आया तो हंसराज ने उससे कहा, “तुम रोज ये फूल बेचने क्यों नहीं आते?” विष्णु ने जवाब दिया, “ये फूल बहुत दुर्लभ है, ये आसानी से नहीं मिलते है इसलिए मैं रोज ये फूल नहीं ला सकता।”
नीले फूलों का राज?
हंसराज ने कहा, “तो तुम मुझे बता दो कि तुम ये फूल कहाँ से लाते हो? मैं खुद इन फूलों को ले आया करूंगा।“ अब विष्णु ये कैसे बताता कि ये फूल तो मुस्कान के खिलखिलाने पर खिलते है। विष्णु ने हंसराज की बात को टाल दिया।
हंसराज को अब लालच आ गया था उसे फूलों के बदले में सोने की मोहर मिलती थी और वह अब रोज सोने की मोहर पाना चाहता था।
इसलिए उसने विष्णु का पीछा करना शुरू कर दिया। लेकिन कई दिनों तक वो ये पता नहीं लगा पाया कि विष्णु ये फूल कहाँ से लाता है। क्योंकि विष्णु कहीं बाहर से तो फूल लाता नहीं था। अब हंसराज रात-दिन विष्णु पर नजर रखने लगा।
यहाँ तक कि वह विष्णु के घर के बाहर ही छुप जाता और उसके घर के अंदर भी नजर रखता।
एक दिन उसने देखा कि विष्णु की बेटी किसी बात पर जोर से हंसी तो उसके चारों तरफ वहीँ नीले गुलाब के फूल खिल गए और पद्मावती ने उन गुलाब के फूलों को इकट्ठा करके संभाल कर रख दिया। हंसराज को सारी बात समझ में आ गई।
वह उसी समय विष्णु के घर में गया और उससे कहा कि “मैं तुम्हारे फूलों का राज जान गया हूँ अब यदि तुमने मुझे ये फूल रोज नहीं दिए तो मैं राजा से तुम्हारी शिकायत कर दूंगा।”
हंसराज की बात सुनकर विष्णु ने कहा कि “अब जब तुम ये जान ही गए हो कि ये फूल मेरी बेटी के हंसने पर खिलते है तो तुम्ही बताओं मैं तुम्हे ये फूल रोज कैसे दे सकता हूँ ? ये फूल तो तभी खिलेंगे जब मेरी बेटी हँसेगी।”
हंसराज ने कहा “मैं कुछ नहीं जानता, तुम्हे मुझे ये फूल रोज देने ही पड़ेंगे, चाहे तुम्हारी बेटी को नकली हंसी हंस कर ये फूल खिलाने पड़े।”
खुशबू खो गई
हंसराज की धमकी से डरकर अब मुस्कान जबरदस्ती हंसती जिससे फूल खिल जाते और विष्णु ये फूल हंसराज को दे देता। हंसराज रोज उन फूलों से भानुप्रताप की कक्ष को सजा कर इनाम पाता। इस तरह कुछ दिन और बीत गए।
लेकिन अब भानुप्रताप को उन फूलों में से वो अनोखी खुशबू आनी बंद हो गई थी, जिससे उसका मन प्रसन्न हो उठता था।
उसने हंसराज को बुलाया और उससे इसका कारण पूछा तो हंसराज ने कहा कि “महाराज इन फूलों में सर्दी के मौसम में ही खुशबू आती है और अभी सर्दी का मौसम नहीं हैं।
इसलिए इन फूलों में अनोखी मन को प्रसन्न करने वाली खुशबू नहीं आती है। एक महीने बाद सर्दी का मौसम आ जायेगा तो फिर से इन फूलों में खुशबू आने लग जायेगी।”
राजा भानुप्रताप को हंसराज का जवाब सहीं नहीं लगा क्योंकि जिन फूलों में अभी थोड़े दिनों पहले ही तो इतनी भीनी-भीनी खुशबू आती थी, तब भी सर्दी की ऋतु तो नहीं थी।
कुछ तो गड़बड़ है
उसे हंसराज पर कुछ शक हुआ और उसने अपने गुप्तचरों से हंसराज पर नजर रखने के लिए कहा और कहा कि पता करों कि हंसराज ये फूल कहाँ से लाता है।
कुछ ही दिनों में गुप्तचरों ने भानुप्रताप को बता दिया कि हंसराज विष्णु के घर से ये फूल लाता है जो उसकी बेटी के खिलखिलाने से खिलते है।
भानुप्रताप को ये जानकार बड़ा ही आश्चर्य हुआ। वह खुद उस जाकर सच्चाई का पता लगाना चाहता था। इसलिए उसने गुप्तचरों से उसे विष्णु के घर ले जाने के लिए कहा।
गुप्तचर उसे विष्णु के घर ले गए। राजा भानुप्रताप को अपने घर पर आया देख कर विष्णु और पद्मावती बहुत ही घबरा गए।
भानुप्रताप : आपको मुझसे घबराने की कोई आवश्यकता नहीं है। मैं बस उन नीले फूलों के बारे मैं जानना चाहता हूँ। क्या ये सच है कि ये फूल आपकी बेटी के खिलखिला कर हंसने पर खिलते है।
विष्णु : हाँ, ये सच है |
भानुप्रताप : लेकिन ये कैसे हो सकता है” ?
तब पद्मावती ने भानुप्रताप को परियों के वरदान के बारे में बताया।
भानुप्रताप : लेकिन पहले इन फूलों में से बहुत ही अनोखी और मन को प्रसन्न करने वाली खुशबू आती थी, लेकिन अब इन फूलों में से वो खुशबू गायब हो गई है। ऐसा क्यों हुआ है” ?
विष्णु : पहले ये फूल तब खिलते थे, जब मेरी बेटी खुशी से खिलखिलाती थी और इन फूलों में अनोखी खुशबू आती थी लेकिन अब ….।”
भानुप्रताप : लेकिन अब क्या ?
विष्णु : लेकिन अब मेरी बेटी को जबरदस्ती हंस कर ये फूल खिलाने पड़ते है |
भानुप्रताप : लेकिन ऐसा क्यों ?
तब विष्णु राजा भानुप्रताप को सारी बात बता देता है। सारी बात जानने पर भानुप्रताप को हंसराज पर बहुत गुस्सा आता है और वह उसी समय अपने सैनिको को आदेश देता है कि हंसराज को गिरफ्तार कर लिया जाए |
भानुप्रताप : क्या मैं आपकी बेटी से विवाह कर सकता हूँ, मैं आपकी बेटी को बहुत खुश रखूँगा, जिससे उसकी असली खिलखिलाहट और उस खिलखिलाहट से खिलने वाले फूलों की दिल को प्रसन्न करने वाली अनोखी खुशबू दोनों बनी रहे।
विष्णु : ये तो हमारे लिए सौभाग्य की बात है। हमारी बेटी बहुत ही भाग्यशाली है जिसे आप जैसा पति मिलेगा |
भानुप्रताप : नहीं आपकी बेटी नहीं, आपकी बेटी से विवाह करके मैं अपने आपको भाग्यशाली समझूंगा। यदि आप दोनों और आपकी बेटी मुस्कान की स्वीकृति हो तो मैं इस विवाह की तैयारियां करवाता हूँ।
विष्णु, पद्मावती और मुस्कान की सहमती से भानुप्रताप और मुस्कान का विवाह हो जाता है और वे सभी ख़ुशी खशी रहने लग जाते है।
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तो दोस्तों, कैसी लगी नीले गुलाबवाली राजकुमारी की कहानी। मजा आया ना, फिर मिलेंगे कुछ और सुनी -अनसुनी परियों की कहानियों की शृंखला की एक नई कहानी के साथ। तब तक के लिए इजाजत दीजिए।
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