शेर जी उठा – Sher Jee Utha
पंचतंत्र की कहानियाँ – पाँचवा तंत्र – अपरीक्षितकारकम – शेर जी उठा – Sher Jee Utha – The Lion Rose From Death
पंचतंत्र के पंचवे तंत्र अपरीक्षितकरकम की कहानियाँ इस बात कि शिक्षा देती है कि जिस बात को परखा नहीं गया हो वह काम कभी नहीं करना चाहिए, या उसे करते हुए पूर्ण सावधानी बरतनी चाहिए।
पंचतंत्र की यह कहानी “शेर जी उठा” इसी बात को इंगित करती है।
शेर जी उठा
त्रिलोकपुर नगर के निकट एक ऋषि के आश्रम में कई शिक्षार्थी शिक्षा ग्रहण करने आते थे। एक बार त्रिलोकपुर नगर के चार ब्राह्मण मित्र रविदत्त, सोमदत्त, ब्रह्मदत्त और धर्मदत्त भी वहां पर विद्यार्जन करते थे।
उन चारों में से तीन मित्र तो गुरूजी के बताये गए हर पाठ का अक्षरशः पालन करते थे लेकिन तीसरा मित्र हर बात के पीछे के तर्क तक पंहुचने की कोशिश करता था।
तीनो मित्रों ने विज्ञान व चमत्कारी विद्या प्राप्त की लेकिन चौथे मित्र ने विज्ञान के साथ-साथ ही धर्म, नीतिशास्त्र एवं व्यवहारिक ज्ञान की शिक्षा भी प्राप्त की।
समय बीतने के साथ ही उन चारों की शिक्षा संपूर्ण हो गई।
वैज्ञानिक मित्र
सोमदत्त अपने कंकाल तंत्र के ज्ञान से किसी की भी हड्डियों को जोड़ने में माहिर हो गया चाहे वह इंसान हो या जानवर। रविदत्त अपनी रासायनिक विद्या से हड्डियों पर मांस और त्वचा का प्रत्यारोपण कर सकता था।
ब्रह्मदत्त तो अपने मन्त्रों की शक्ति से किसी भी मृत शरीर में प्राण भी डाल सकता था। धर्मदत्त किसी भी तरह का कोई चमत्कार करने में पारंगत तो नहीं था। लेकिन नीति और धर्म का उसे बहुत ज्ञान था।
लेकिन उसके तीनों मित्र उसे मुर्ख ही समझते थे। शिक्षा समाप्त होने पर चारों ने सोचा कि घर जाने से पहले क्यों ना त्रिलोकपुर नगर के लोगों के सामने अपनी विद्या के प्रदर्शन से थोडा धन अर्जित कर लिया जाए।
यह सोच कर तीनों त्रिलोकपुर नगर की ओर रवाना हो गए। रास्ते में एक घना जंगल था, चारों ने सोचा कि रात होने से पहले ही इस जंगल को पार कर लेना चाहिए, क्योंकि रात के समय अँधेरे का फायदा उठा कर कोई भी जंगली पशु उन पर हमला कर सकता है।
क्यों ना एक परीक्षा (TEST) हो जाए!
यह सोच कर चारों जल्दी-जल्दी चलने लगे। जंगल में थोड़ी दूर जाने पर उन्होंने देखा कि जंगल में किसी पशु कि हड्डियाँ बिखरी पड़ी है।
यह देख कर सोमदत्त ने कहा, “देखों मित्रों, यहाँ किसी जानवर की हड्डियाँ बिखरी पड़ी है, क्यों ना हम अपनी विद्या के प्रदर्शन से पहले अपनी परीक्षा ले लें और इस मृत जानवर में प्राण डाल दें।”
रविदत्त ने कहा, “वाह मित्र, क्या विचार है, मैं भी तुम्हारे विचार से पूर्ण सहमत हूँ।” ब्रह्मदत्त ने भी अपनी सहमति प्रदान कर दी।
लेकिन धर्मदत्त ने कहा, “यह जंगल है और यह कंकाल किसी हिंसक जानवर का भी हो सकता है। कहीं इसमें प्राण डालने से अपने ही प्राणों पर संकट ना आ जाए। मेरे विचार से तो हमें यह नहीं करना चाहिए।”
ब्रह्मदत्त ने कहा, “धर्मदत्त, तुम्हे खुद को तो कोई विद्या आती नहीं है और तुम हमारी विद्या की श्रेष्ठता पर ऊँगली उठा कर हमें ही डरा रहे हो। लेकिन हम तो हमारी विद्या का प्रदर्शन जरूर करेंगे और यदि तुम्हें हमारे साथ रहना है तो तुम इन हड्डियों को इकठ्ठा करने में हमारी मदद करों।”
तीनों मित्र रविदत्त, ब्रह्मदत्त और धर्मदत्त हड्डियाँ चुन-चुन कर लाने लगे और सोमदत्त ने उन उन हड्डियों से एक ढांचा बना दिया जो शेर जैसा दिखाई दे रहा था।
अब बारी रविदत्त की थी। उसने अपनी रासायनिक विद्या से उस ढाँचे पर मांस और त्वचा का प्रत्यारोपण कर दिया। अब तो यह स्पष्ट हो गया था कि यह शेर ही था।
ब्रह्मदत्त ने अब उसमें प्राण फूंकने की तैयारी कर ली।
धर्मदत्त ने ब्रह्मदत्त को आगाह करते हुए कहा, “मित्र, यह स्पष्ट हो चुका है कि यह शेर है। तुम लोगों की विद्या की परीक्षा हो चुकी है और अब हमें इसमें इसमें प्राण डालने कोई आवश्यकता नहीं है, ये हमारे लिए ही खतरनाक हो सकता है। मेरा विचार है कि अब हमें नगर की तरफ प्रस्थान करना चाहिए।”
लेकिन ब्रह्मदत्त ने कहा, “रविदत्त और सोमदत्त ने तो अपनी-अपनी विद्या का प्रदर्शन कर लिया है लेकिन अभी मेरी विद्या का प्रदर्शन बाकी है, मुझे भी अपनी प्रतिभा दिखाने का मौका मिलना चाहिए।”
इतना कह कर वह मन्त्रों का पाठ करने लगा। धर्मदत्त ने कहा, “यदि तुम्हारी ऐसी इच्छा है तो कोई बात नहीं लेकिन मेरी नीति कहती है कि हमें अपने प्राण बचाने के लिए पेड़ पर चढ़कर ये प्रयोग करना चाहिए।”
उसकी बात सुनकर तीनों मित्रों ने उसे कायर कहते हुए उसका मजाक उड़ाया और कहा, “तुम तो बहुत ही कायर हो, हम इस शेर में प्राण डाल कर इसे जीवित कर रहे है, तो हम इसके प्राणदाता हुए और कोई अपने प्राणदाता के ही प्राण थोड़े ही लेता है।”
धर्मदत्त ने कहा, “लेकिन इसे थोड़े ही पता होगा कि तुम लोगों ने इसे जीवन प्रदान किया है, और भूख के सामने तो इंसान भी बेबस हो जाता है और ये तो एक जानवर है।”
लेकिन ब्रह्मदत्त ने उसकी बात नहीं मानी और वह अपने हाथ में जल लेकर मंत्र पढ़ता गया। तब धर्मदत्त जल्दी से पास के एक पेड़ पर चढ़ गया।
और शेर जी उठा
जैसे ही वह पेड़ पर पंहुचा ब्रह्मदत्त ने अभिमंत्रित जल शेर की देह पर छिड़क दिया। अभिमंत्रित जल के प्रभाव से शेर जीवित हो गया, उसने दहाड़ मारते हुए छलांग मारी और उन तीनों को मारकर खा गया।
पेड़ पर से धर्मदत्त ने यह सारा नज़ारा देखा, उसे बहुत दुःख हुआ लेकिन वह कर ही क्या सकता था।
उसके मित्रों में वैज्ञानिक ज्ञान तो बहुत था लेकिन व्यवहारिक व नैतिक ज्ञान नहीं था।
इसके साथ ही उन्हें अपनी विद्या पर अभिमान भी था जिसका खामियाजा उन्हें अपनी जान देकर चुकाना पड़ा।
सीख
केवल शास्त्रों व विज्ञान का किताबी ज्ञान होना ही पर्याप्त नहीं है, इसके साथ-साथ व्यवहारिक व नैतिक ज्ञान तथा बुद्धि का होना भी आवश्यक है। विद्या का अभिमान भी बुद्धि पर पर्दा डाल देता है।
इस कहानी में यदि तीनों ब्राह्मण यदि सावधानी पूर्वक प्रयोग करते तो उनकी जान नहीं जाती। अर्थात अपने मित्र की बात मानकर पेड़ पर चढ़ जाते तो अपनी जान से हाथ नहीं धोना पड़ता।
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तो दोस्तों, कैसी लगी पंचतंत्र की कहानियों के रोचक संसार में डुबकी। मजा आया ना, तो हो जाइए तैयार लगाने अगली डुबकी, .. .. .. ..
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