Shiv Chalisa Lyrics – शिव चालीसा
भगवान शिव की पूजा में शिव चालीसा के पाठ का बहुत ही महत्त्व है। वैसे तो भक्त रोज ही इसका पाठ कर सकते हैं लेकिन यदि समयाभाव के कारण यह संभव न हो तो सोमवार, मासिक त्रियोदशी, प्रमुख दो शिवरात्रियों तथा सावन के महीने में शिव चालीसा का पाठ करके भगवान शिव की कृपा प्राप्त कर सकते हैं।
भगवान शिव देवों के देव माने जाते हैं और भूत, प्रेत, नंदी-गणों के स्वामी भी हैं। उनकी कृपा से हर बाधा और कठिनाई दूर हो जाति हैं। भगवान शिव बहुत ही भोले हैं और अति शीघ्र प्रसन्न होकर अपने भक्तों पर अपनी कृपा करते हैं।
शिव चालीसा के मध्यम भगवान शिव को आसानी से प्रसन्न किया जा सकता है। ममन्यता है कि शिवजी की आराधना करने वाले जातक को जन्म-मरण का भय नहीं रहता।
शिव चालीसा के रचयिता अयोध्या दास जी हैं और इसकी भाषा अवधि है। वैसे तो चालीसा में 40 छंद / चौपाइयाँ होती है। लेकिन शिव चालीसा में 41 चौपाइयाँ हैं। जिनमे से अंतिम दोहे में अयोध्या दास जी की प्रार्थना हैं।
शिव चालीसा की शुरुआत में एक दोहा और अंत में दो दोहे है। इस प्रकार शिव चालीसा में 41 चौपाइयाँ और तीन दोहे हैं, जिनके द्वारा अयोध्यादास जी ने बड़े ही सरल शब्दों में भगवान शिव की महिमा का वर्णन किया है।
शिव चालीसा – Shiv Chalisa Lyrics In Hindi
॥ दोहा ॥
जय गणेश गिरिजा सुवन,
मंगल मूल सुजान ।
कहत अयोध्यादास तुम,
देहु अभय वरदान ॥
॥ चौपाई ॥
जय गिरिजा पति दीन दयाला ।
सदा करत सन्तन प्रतिपाला ॥ १ ॥
भाल चन्द्रमा सोहत नीके ।
कानन कुण्डल नागफनी के ॥ २ ॥
अंग गौर शिर गंग बहाये ।
मुण्डमाल तन छार लगाए ॥ ३ ॥
वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे ।
छवि को देखि नाग मन मोहे ॥ ४ ॥
मैना मातु की हवे दुलारी ।
वाम अंग सोहत छवि न्यारी ॥ ५ ॥
कर त्रिशूल सोहत छवि भारी ।
करत सदा शत्रुन क्षयकारी ॥ ६ ॥
नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे ।
सागर मध्य कमल हैं जैसे ॥ ७ ॥
कार्तिक श्याम और गणराऊ ।
या छवि को कहि जात न काऊ ॥ ८ ॥
देवन जबहीं जाय पुकारा ।
तब तब दुख प्रभु आय निवारा ॥ ९ ॥
किया उपद्रव तारक भारी ।
देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी ॥ १० ॥
तुरत षडानन आप पठायउ ।
लवनिमेष महँ मारि गिरायउ ॥ ११ ॥
आप जलंधर असुर संहारा ।
सुयश तुम्हार विदित संसारा ॥ १२ ॥
त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई ।
सबहिं कृपा कर लीन बचाई ॥ १३ ॥
किया तपहिं भागीरथ भारी ।
पुरब प्रतिज्ञा तासु पुरारी ॥ १४ ॥
दानिन महँ तुम सम कोउ नाहीं ।
सेवक स्तुति करत सदाहीं ॥ १५ ॥
वेद नाम महिमा तव गाई।
अकथ अनादि भेद नहिं पाई ॥ १६ ॥
प्रकटेउ दधिमंथन में ज्वाला ।
जरत सुरासुर भए विहाला ॥ १७ ॥
कीन्ही दया तहँ करी सहाई ।
नीलकण्ठ तब नाम कहाई ॥ १८ ॥
पूजन रामचन्द्र जब कीन्हा ।
जीत के लंक विभीषण दीन्हा ॥ १९ ॥
सहस कमल में हो रहे धारी ।
कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी ॥ २० ॥
एक कमल प्रभु राखेउ जोई ।
कमल नयन पूजन चहं सोई ॥ २१ ॥
कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर ।
भए प्रसन्न दिए इच्छित वर ॥ २२ ॥
जय जय जय अनन्त अविनाशी ।
करत कृपा सब के घटवासी ॥ २३ ॥
दुष्ट सकल नित मोहि सतावै ।
भ्रमत रहौं मोहि चैन न आवै ॥ २४ ॥
त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो ।
येहि अवसर मोहि आन उबारो ॥ २५ ॥
लै त्रिशूल शत्रुन को मारो ।
संकट से मोहि आन उबारो ॥ २६ ॥
मात-पिता भ्राता सब होई ।
संकट में पूछत नहिं कोई ॥ २७ ॥
स्वामी एक है आस तुम्हारी ।
आय हरहु मम संकट भारी ॥ २८ ॥
धन निर्धन को देत सदा हीं ।
जो कोई जांचे सो फल पाहीं ॥ २९ ॥
अस्तुति केहि विधि करैं तुम्हारी ।
क्षमहु नाथ अब चूक हमारी ॥ ३० ॥
शंकर हो संकट के नाशन ।
मंगल कारण विघ्न विनाशन ॥ ३१ ॥
योगी यति मुनि ध्यान लगावैं ।
शारद नारद शीश नवावैं ॥ ३२॥
नमो नमो जय नमः शिवाय ।
सुर ब्रह्मादिक पार न पाय ॥ ३३ ॥
जो यह पाठ करे मन लाई ।
ता पर होत है शम्भु सहाई ॥ ३४ ॥
ॠनियां जो कोई हो अधिकारी ।
पाठ करे सो पावन हारी ॥ ३५ ॥
पुत्र हीन कर इच्छा जोई ।
निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई ॥ ३६ ॥
पण्डित त्रयोदशी को लावे ।
ध्यान पूर्वक होम करावे ॥ ३७ ॥
त्रयोदशी व्रत करै हमेशा ।
ताके तन नहीं रहै कलेशा ॥ ३८ ॥
धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे ।
शंकर सम्मुख पाठ सुनावे ॥ ३९ ॥
जन्म जन्म के पाप नसावे ।
अन्त धाम शिवपुर में पावे ॥ ४०॥
कहैं अयोध्यादास आस तुम्हारी ।
जानि सकल दुःख हरहु हमारी ॥ ४१ ॥
॥ दोहा ॥
नित्त नेम कर प्रातः ही,
पाठ करै चालीसा ।
तुम ताकी मनोकामना,
पूर्ण करो जगदीश ॥
मगसर छठि हेमन्त ॠतु,
संवत चौसठ जान ।
अस्तुति चालीसा शिवहि,
पूर्ण कीन कल्याण ॥
शिव चालीसा – Shiv Chalisa Lyrics In English
॥ Doha॥
Jai Ganesh Girija Suvan,
Mangal Mul Sujan।
Kahat Ayodhyadas Tum,
Dehu Abhay Vardan॥
॥ Choupai॥
Jai Giriha Pati Deen Dayala।
Sada Karat Santan Pratipala ॥ १ ॥
Bhala Chandrama Sohat Nike।
Kanan Kundal Nagaphani Ke॥ २ ॥
Anga Gaur Shir Gang Bahaye ।
Mundamala Tan Chhara Lagaye ॥ ३ ॥
Vastra Khal Baghambar Sohain ।
Chhavi Ko Dekhi Nag Man Mohe ॥ ४ ॥
Maina Maatu Ki Have Dulaari।
Vam Ang Sohat Chavi Nyari ॥ ५ ॥
Kar Trishul Sohat Chavi Bhari ।
Karat Sada Shatrun Kshyakari ॥ ६ ॥
Nandi Ganesh Sohe Tahn Kaise।
Sagar Madhy Kamal Hain Jaise॥ ७ ॥
Kartik Shyam Aur Ganrau।
Ya Chavi Ko Kahi Na Kau ॥ ८ ॥
Devan Jabhi Jay Pukara।
Tab-Tab Dukh Prabhu Aay Niwara ॥ ९ ॥
Kiya Updrav Taark Bhari।
Deven Sab Mili Tumhi Juhari॥ १० ॥
Turat Shadanan Aap Pthayau।
Lovenimesh Mah Mari Girayau॥ ११ ॥
Aap Jalandhr Asur Sanhara।
Suyash Tumhaar Vidit Sansaara॥ १२ ॥
Tripurasur San Yuddha Machai ।
Sabhi Kripa Kr Leen Bachai ॥ १३ ॥
Kiya Taphi Bhagirath Bhari।
Purab Pratigya Tasu Purari ॥ १४ ॥
Danin Mah Tum Sam Kou Nahi।
Sevak Stuti Karat Sadahi ॥ १५ ॥
Ved Nam Mahima Tav Gai।
Akath Anadi Bhed Nahi Pai॥ १६ ॥
Prakteu Dadhimanthn Me Jwala।
Jarat Surasur Bhae Vihala॥ १७ ॥
Kinhi Daya Tahn Kri Sahai।
Neelkanth Tab Naam Khai॥ १८ ॥
Pujan Ramchndra Jab Kinha।
Jeet Ke Lank Vibhishan Dinha ॥ १९ ॥
Sahas Kamal Me Ho Rahe Dhari।
Kinh Priksha Tabhi Purari॥ २० ॥
Ek Kaml Prabhu Rakheu Joi।
Kamal Nayan Pujan Chah Soi॥ २१ ॥
Kathin Bhakti Dekhi Prabhu Shankar।
Bhae Prasann Die Ichchit Var॥ २२ ॥
Jai Jai Jai Anant Avinashi।
Karat Kripa Sab Ke Ghatwasi॥ २३ ॥
Dusht Sakal Nit Mohi Satavai।
Bhramat Raho Mohi Chain Na Avai ॥ २४ ॥
Trahi-Trahi Main Nath Pukaro।
Yehi Avsar Mohi Aan Ubaro॥ २५ ॥
lai Trishul Shatrun Ko Maro।
Sankat Se Mohi Aan Ubaro॥ २६ ॥
Maat-Pita Bhrata Sab Hoi।
Sankat Men Puchat Na Koi॥ २७ ॥
Swami Ek Hai Aas Tumhari।
Aay Harhu Mam Sankat Bhari॥ २८ ॥
Dhan Nirdhan Ko Det Sada Hi।
Jo Koi Janche So Phal Pahi॥ २९ ॥
Astutyi Kehi Vidhi Karai Tumhari।
Kshamhu Nath Ab Chuk Hamari॥ ३० ॥
Shankar Ho Sankt Ke Nashan।
Mangal Karan Vighn Vinashan ॥ ३१ ॥
Yogi yati Muni Dhyan Lagavai।
Sharad Narad Shish Nawave ॥ ३२॥
Namo Namo Jai Namah Shivay।
Sur Brahmhadik Par Na Pay ॥ ३३ ॥
Jo Yah Path Kre Man Lai।
Ta Pr Hot Hai Shambhu Sahai॥ ३४ ॥
Runiya Jo Koi Ho Adhikari।
Path Kre So Pawan Hari॥ ३५ ॥
Putra Heen Kr Ichcha Joi।
Nishchy Shiv Prasad Tehi Hoi॥ ३६ ॥
Pandit Trayodashi Ko Lave।
Dhyan Purvak Hom Krave॥ ३७ ॥
Trayodashi Vrat Krai Hamesha।
Take Tan Nahi Rahe Kalesha॥ ३८ ॥
Dhup Deep Naivedya Chadhave।
Shankar Sammukh Path Sunave॥ ३९ ॥
Janm-Janm ke Pap Nasave।
Ant Dham Shivpuri Me Pave॥ ४०॥
Kahai Ayodhyadas Aas Tumhari।
Jani Sakal Dukh Harahu Hamari॥ ४१ ॥
॥ Doha॥
Nitta Nem Kr Pratah Hi,
Path Karai Chalisa।
Tum Taki Manokamna,
Purn Karo Jagdish॥
Magsar Chathi Hemant Ritu,
Sanwat Chousath Jan ।
Astuti Chalisa Shivhi,
Pun Keen Kalyan॥
शिव चालीसा का हिन्दी अर्थ – HIndi Meaning of Shiv Chalisa
॥ दोहा ॥
जय गणेश गिरिजा सुवन,
मंगल मूल सुजान ।
कहत अयोध्यादास तुम,
देहु अभय वरदान ॥
हिन्दी अर्थ – हे माता गिरिजा (पार्वती) के पुत्र भगवान श्री गणेश जी आपकी जय हो। आप मंगलकारी हैं, और विद्या के दाता हैं। इस अयोध्यादास की पासे प्रार्थना है कि प्रभु आप मुझे ऐसा वरदान दें, जिससे मेरे सारे भय समाप्त हो जाएं।
॥ चौपाई ॥
जय गिरिजा पति दीन दयाला ।
सदा करत सन्तन प्रतिपाला ॥ १ ॥
हिन्दी अर्थ – हे गिरिजा पति, दीन-दुखियों पर दया बरसाने वाले, तथा सदैव संत व साधू जनों का पालन करने वाले भगवान शिव आपकी जय हो।
भाल चन्द्रमा सोहत नीके ।
कानन कुण्डल नागफनी के ॥ २ ॥
हिन्दी अर्थ – आपके मस्तक पर चंद्रमा और कणों में नागफनी के कुंडल सुशोभित हैं।
अंग गौर शिर गंग बहाये ।
मुण्डमाल तन छार लगाए ॥ ३ ॥
आपका रंग गौर वर्ण का है और सिर की जटाओं में से गंगाजी बह रही हैं, आपने गले में मुण्डों (माता पार्वती के पूर्व जन्मों के सिर) की माला धारण की हुई है और पूरे शरीर पर भस्मी लगा रखी है।
वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे ।
छवि को देखि नाग मुनि मोहे ॥ ४ ॥
बाघ की खाल के वस्त्र आपके रूप को और भी मनोहर बना रहे हैं आपका यह रूप देख कर क्या पशु (नाग) और क्या मनुष्य (मुनि) सभी मोहित हो जाते हैं।
मैना मातु की हवे दुलारी ।
वाम अंग सोहत छवि न्यारी ॥ ५ ॥
माता मैनावती की दुलारी, माता पार्वती जी आपके बांये अंग की तरफ विराजमान हैं अर्थात माता पार्वती जी आपकी पत्नी हैं। उनके साथ आपकी जोड़ी बहुत ही सुंदर लगती हैं।
कर त्रिशूल सोहत छवि भारी ।
करत सदा शत्रुन क्षयकारी ॥ ६ ॥
आपके हाथों में त्रिशूल आपकी छवि को और भी अधिक आकर्षक बनाता है, जिसके द्वारा आपने हमेशा शत्रुओं तथा पापियों का नाश किया है।
नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे ।
सागर मध्य कमल हैं जैसे ॥ ७ ॥
नंदी और गणेश जी आपके साथ इतने मनमोहक लगते हैं जैसे सागर के बीच में कमल खिले हुए हो।
कार्तिक श्याम और गणराऊ ।
या छवि को कहि जात न काऊ ॥ ८ ॥
श्याम वर्ण कार्तिकेय जी तथा गौर वर्ण श्री गणेशजी की छवि इतनी अधिक मनमोहक है कि उसका वर्णन करना किसी के लिए भी सम्भव नहीं है।
देवन जबहीं जाय पुकारा ।
तब तब दुख प्रभु आय निवारा ॥ ९ ॥
देवताओं ने जब-जब भी आपको सहायता के लिए पुकारा, तब-तब आपने उनके दुख और कष्ट दूर किये।
किया उपद्रव तारक भारी ।
देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी ॥ १० ॥
जब ताड़कासुर नामक राक्षस आपसे वरदान पाकर देवताओं पर तरह-तरह के अत्याचार करने लगा, तब सभी देवतागणों ने उससे छुटकारा पाने के लिए आपकी गुहार लगाई।
तुरत षडानन आप पठायउ ।
लवनिमेष महँ मारि गिरायउ ॥ ११ ॥
तब आपने स्वामी कार्तिकेय को भेजा और उन्होंने आपकी दी हुयी शक्ति से उस पापी राक्षस ताड़कासुर को मार गिराया।
आप जलंधर असुर संहारा ।
सुयश तुम्हार विदित संसारा ॥ १२ ॥
आपने जलंधर नामक भयंकर राक्षस का संहार किया, इस कार्य से फैले आपके यश से तो सारा संसार परिचित है।
त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई ।
सबहिं कृपा कर लीन बचाई ॥ १३ ॥
आपने त्रिपुर नामक राक्षस से भयंकर युद्ध करके सभी देवताओं को उसके आतंक से बचाकर उन पर कृपा की।
किया तपहिं भागीरथ भारी ।
पुरब प्रतिज्ञा तासु पुरारी ॥ १४ ॥
जब भगीरथ अपनी पूर्वजों की मुक्ति के लिए ने गंगा को पृथ्वी पर लाने के लिए बहुत ही कठिन तप किया। तब माता गंगा के वेग से धरती को बचाने के लिए आपने ही उन्हें अपनी जटाओं में धारण करके उनकी उनकी प्रतिज्ञा को पूरा किया।
दानिन महँ तुम सम कोउ नाहीं ।
सेवक स्तुति करत सदाहीं ॥ १५ ॥
संसार के सभी दानियों में आपके समान बड़ा कोई दानी नहीं है। भक्त आपकी सदा वन्दना करते रहते हैं।
वेद नाम महिमा तव गाई।
अकथ अनादि भेद नहिं पाई ॥ १६ ॥
जब आपके अनादि (प्राचीन अर्थात जिसकी शुरुआत या प्रारंभ ना हो) अर्थात प्रारंभ का भेद कोई बता नहीं सका तब वेदों में भी आपके नाम की महिमा गाई गई।
प्रकटेउ दधिमंथन में ज्वाला ।
जरत सुरासुर भए विहाला ॥ १७ ॥
जब समुद्र का मंथन हो रहा था तब उसमें से अमृत के साथ हलाहल विष भी निकला जिसकी ज्वाला से सारे देवता और दानव जलने लगे। हलाहल विष के प्रभाव से उनके प्राणों पर बन आई और सभी व्याकुल हो कर अपनी रक्षा के लिए याचना करने लगे।
कीन्ही दया तहँ करी सहाई ।
नीलकण्ठ तब नाम कहाई ॥ १८ ॥
उस संकट की घड़ी में केवल आप ही उन सबकी सहायता के लिए पहुंचे और सारा हलाहल विष पीकर उन सबकी जान बचाई। इस विषपान से आपका सारा शरीर नीला होने लगा लेकिन आपने इसे अपने कंठ में रोक लिया और आपका गला नीला हो गया तभी से आपको “नीलकंठ“ के नाम से पुकारा जाने लगा।
पूजन रामचन्द्र जब कीन्हा ।
जीत के लंक विभीषण दीन्हा ॥ १९ ॥
लंका पर आक्रमण करने से पहले भगवान श्री राम ने रामेश्वरम में आपनी स्थापना करके आपका पूजन किया तब आपकी कृपया से उन्होंने लंका पर विजय पाई और लंका का राज्य विभीषण को देकर उन्हें लंका का राजा बना दिया।
सहस कमल में हो रहे धारी ।
कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी ॥ २० ॥
जब श्रीरामचन्द्रजी सहस्त्र (एक हजार) कमल के पुष्पों से आपकी पूजा कर रहे थे, तो आपने उनकी भक्ति की परीक्षा ली।
एक कमल प्रभु राखेउ जोई ।
कमल नयन पूजन चहं सोई ॥ २१ ॥
आपने एक कमल के पुष्प को अपनी माया के प्रभाव से लुप्त कर दिया। जब श्रीरामचंद्र जी को एक पुष्प कम लगा तो वे कमल के पुष्प के स्थान पर अपनी आँखे निकाल कर आपको अर्पित करने लगे।
कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर ।
भए प्रसन्न दिए इच्छित वर ॥ २२ ॥
तभी आप वहाँ पर प्रकट हो गए और उनकी कठिन भक्ति से प्रसन्न होकर उन्हें मनवांछित वर प्रदान किया।
जय जय जय अनन्त अविनाशी ।
करत कृपा सब के घटवासी ॥ २३ ॥
है अनन्त और अविनाशी भगवान शिव शंकर आपकी जय हो, जय हो, जय हो। सबके हृदय में निवास करने वाले आप सभी जोवों पर कृपा करते हो।
दुष्ट सकल नित मोहि सतावै ।
भ्रमत रहौं मोहि चैन न आवै ॥ २४ ॥
दुष्ट तथा बुरे विचार सदैव मुझे सताते रहते हैं जिनसे मैं भ्रमित रहता हूँ, जिनके कारण मुझे कहीं भी चैन नहीं मिलता है।
त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो ।
येहि अवसर मोहि आन उबारो ॥ २५ ॥
तब तंग होकर मैं आपकी शरण में आया हूँ। हे भोलेनाथ! इनसे मेरी रक्षा करो, मेरी रक्षा करो! ऐसे समय में आकर मेरा उद्धार करों।
लै त्रिशूल शत्रुन को मारो ।
संकट से मोहि आन उबारो ॥ २६ ॥
मेरी इस संकट से रक्षा के लिए अपने त्रिशूल से मेरे सभी शत्रुओं का नाश करके मेरा उद्धार करों।
मात-पिता भ्राता सब होई ।
संकट में पूछत नहिं कोई ॥ २७ ॥
माता-पिता, भाई-बंधु सभी केवल सुख के ही साथी होते हैं। संकट के समय में कोई साथ नहीं देता।
स्वामी एक है आस तुम्हारी ।
आय हरहु मम संकट भारी ॥ २८ ॥
हे जगत के स्वामी! ऐसे मैं मुझे केवल आप पर ही पूरा विश्वास है कि आप आकर मेरी संकटों से रक्षा करेंगे।
धन निर्धन को देत सदा हीं ।
जो कोई जांचे सो फल पाहीं ॥ २९ ॥
आप सदा निर्धनों व गरीबों को धन प्रदान करते हैं। जो जैसी आपको भक्ति करता है उसे आप वैसा ही फल देते हैं।
अस्तुति केहि विधि करैं तुम्हारी ।
क्षमहु नाथ अब चूक हमारी ॥ ३० ॥
हे नाथ! मैं मूर्ख और नादान इंटना भी नहीं जानता कि मैं किस प्रकार से आपकी पूजा अर्चना करूँ। इसलिए हे भोलेनाथ! यदि मुझसे आपकी पूजा-अर्चना में कोई भूल हो जाये तो मेरी सभी भूलों को क्षमा कर दीजिएगा।
शंकर हो संकट के नाशन ।
मंगल कारण विघ्न विनाशन ॥ ३१ ॥
हे शिव शंकर! आप सभी संकटों का नाश करने वाले हो। कार्य में आने वाली बाधाओं को दूर करके मंगल करते हो।
योगी यति मुनि ध्यान लगावैं ।
शारद नारद शीश नवावैं ॥ ३२॥
सभी योगी, यति व मुनिजन सदा आपका ही ध्यान करते हैं। माता सरस्वती और नारद भी आपको शीश नवाते हैं।
नमो नमो जय नमः शिवाय ।
सुर ब्रह्मादिक पार न पाय ॥ ३३ ॥
हे भोलेनाथ मैं आपके मंत्र “ऊं नमः शिवाय“ का जाप करते हुए अपकों बारम्बार नमस्कार करता हूँ। ब्रह्मांड के सारे देवता मिलकर भी आपकी बराबरी नहीं कर सकते।
जो यह पाठ करे मन लाई ।
ता पर होत है शम्भु सहाई ॥ ३४ ॥
जो भी व्यक्ति इस शिव चालीसा का पाठ मन लगाकर करता है, भगवान शंकर सदैव उसकी सहायता व रक्षा करते हैं।
ॠनियां जो कोई हो अधिकारी ।
पाठ करे सो पावन हारी ॥ ३५ ॥
जो भी प्राणी कर्ज के बोझ से दबा हुआ हो, वह अगर सच्चे मन से आपके नाम का जाप करे तो वह शीघ्र ही ऋण के बोझ से मुक्त हो जाता है।
पुत्र हीन कर इच्छा जोई ।
निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई ॥ ३६ ॥
कोई भी पुत्रहीन व्यक्ति यदि पुत्र-प्राप्ति की इच्छा से शिव चालीसा का पाठ करेगा तो उसे भगवान शिव की कृपा से निश्चय ही पुत्र की प्राप्ति होगी।
पण्डित त्रयोदशी को लावे ।
ध्यान पूर्वक होम करावे ॥ ३७ ॥
जो कोई भी प्रत्येक मास की त्रयोदशी के दिन घर पर पण्डित को बुलाकर श्रद्धापूर्वक पूजन व हवन करवाएगा।
त्रयोदशी व्रत करै हमेशा ।
ताके तन नहीं रहै कलेशा ॥ ३८ ॥
प्रत्येक त्रयोदशी को आपका व्रत रखेगा उसके उसके शरीर में कोई रोग नहीं होगा और मन में किसी प्रकार का क्लेश नहीं होगा।
धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे ।
शंकर सम्मुख पाठ सुनावे ॥ ३९ ॥
जन्म जन्म के पाप नसावे ।
अन्त धाम शिवपुर में पावे ॥ ४०॥
जो कोई भी शंकरजी की मूर्ति के सामने धूप, दीप और नैवेद्य चढ़ाकर व पूजन करके शिव चालीसा का पाठ करता है, उसके जन्म-जन्मांतर अर्थात सभी जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं और मृत्यु होने पर वह मनुष्य भगवान शिव के धाम में जगह पा जाता है अर्थात जन्म-जन्मांतर के बंधन से मुक्त हो जाता है।
कहैं अयोध्यादास आस तुम्हारी ।
जानि सकल दुःख हरहु हमारी ॥ ४१ ॥
अयोध्या दास जी कहते हैं कि हे शंकरजी! मुझे बस आपकी ही आशा है। मेरे समस्त दुःखों को जानकर उन्हें दूर करो और मेरी सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करों।
॥ दोहा ॥
नित्त नेम कर प्रातः ही,
पाठ करै चालीसा ।
तुम ताकी मनोकामना,
पूर्ण करो जगदीश ॥
हे जगदीश मेरी यह प्रार्थना है कि जो कोई भी प्रतिदिन नियम से प्रातःकाल के नित्यकर्म करने के पश्चात् शिव चालीसा का पाठ करें, आप उसकी सभी मनोकामना पूर्ण करें।
मगसर छठि हेमन्त ॠतु,
संवत चौसठ जान ।
अस्तुति चालीसा शिवहि,
पूर्ण कीन कल्याण ॥
संवत चौंसठ के हेमंत ऋतु के मार्गशीर्ष मास की छठी तिथि में लोगों का कल्याण करने वाली शिव जी की स्तुति “शिव चालीसा” पूर्ण हुई।
॥ इति शिव चालीसा ॥
Shiv Chalisa Path Video
भगवान शिव कलाओं के भी स्वामी हैं। उनकी आराधना यदि लय और ताल से की जाए तो वे शीघ्र प्रसन्न होते हैं। इसके साथ ही लय से पाठ करने से हमें पाठ याद भी जल्दी हो जाता है।
यहाँ पर मैं आपके लिए शिव चालीसा के पाठ का वीडियो लिंक डे रही हूँ जिससे आप लय के साथ शिव चालीसा का पाठ कर सकें: –
शिव चालीसा का पाठ कैसे करें? – How to Recite Shiv Chalisa?
वैसे तो शिव जी केवल भावना और पवित्र में से पूजा करने से ही प्रसन्न हो जाते हैं। लेकिन आप शिव चालीसा का विधिवत पाठ करना चाहते हैं तो निम्न तरीके से इसका पाठ करें: –
प्रात: काल नित्यकर्म से निवृत्त होकर स्नान करें और धुले हुए स्वच्छ कपड़े पहनें।
भगवान शंकर की मूर्ति के आगे आसन पर बैठ जाएं यदि संभव हो तो अपना मुहँ पूर्व दिशा की तरफ रखें।
भगवान शिव को स्नान करवाकर चन्दन का तिलक लगाए और चावल चढ़ाएं।
बेलपत्र, सफ़ेद आक के या पारिजात के पुष्प चढ़ाएं।
भांग, काली मिर्च का भोग लगाए तथा पूजा स्थल पर नारियल या कटोरी से ढका हुआ जल से भरा तांबे का कलश या लोटा रखें।
मन हीं मन भोलेनाथ का स्मरण करते हुए गाय के घी का दीपक शिवजी के सामने प्रज्वलित करें।
पूर्ण भक्ति-भाव से शिव चालीसा पाठ एक, तीन, नौ या अधिक बार करें।
शिव चालीसा पाठ आप अपनी श्रद्धा के अनुसार ग्यारह, इक्कीस, इक्यावन बार कर सकते हैं, लेकिन यदि इसका पाठ 108 बार किया जाए तो अधिक फलदायक होता है।
जहांतक हो सके शिव चालीसा का पाठ जोर-जोर से बोलकर करें। इसे घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचरण होगा तथा जितने भी लोग इस पाठ को सुनेंगे उन्हें भी इस पाठ का फल प्राप्त होगा।
पाठ पूरा हो जाने पर लोटे के जल को प्रसाद रूप में स्वयं भी पिये तथाअपने परिजनों को भी पिलाएं। लोटे के जल पूरे घर में छिड़क दें और बचे हुए जल को तुलसी या पीपल दे पेड़ में सींच दें।
शिव चालीसा के पाठ से अच्छा स्वास्थ्य, लंबी उम्र होती है और दुख तथा बाधाओं से मुक्ति मिलती है। घर में सुख-समृद्धि आती है और हर कार्य में सफलता मिलती हैं।
Wrepping It Up
मैंने अपनी इस Post में शिव चालीसा लिरिक्स हिन्दी व अंग्रेजी में देने के साथ उसका अर्थ भी बताया है। इसके साथ ही एक वीडियो का लिंक भी share किया है जिससे आप लय के साथ इसका पाठ कर सकें।
इसके साथ ही शिव चालीसा का पाठ कैसे करे इस बारे में भी थोड़ी सी जानकारी दी है। आशा करती हूँ आपको मेरी यह Post अच्छी लगी होगी। तो फिर देर किस बात की जल्दी से मेरी इस Post को अपने दोस्तों, अपने प्रियजनों के साथ Share कर दीजिए।
बस आपका साथ ऐसे ही मिलता रहेगा तो मैं आपके लिए ऐसी ही अद्भुत जानकारियाँ लाती रहूँगी।
“ॐ नम: शिवाय“ “जय शिव शंभू” “हर-हर महादेव”
- शिव सहस्त्र नामावली
- श्री शंकराची आरती – जय देव जय देव जय श्रीशंकरा
- भगवान शिव की आरती – ॐ जय शिव ओंकारा
- संकटमोचन हनुमान अष्टक – बाल समय रवि भक्षी लियो तब…
- श्री राम स्तुति – श्री रामचन्द्र कृपालु भजुमन
- श्री राम रक्षा स्तोत्र – चरितं रघुनाथस्य शतकोटिप्रविस्तरम्
- हनुमान चालीसा – जय हनुमान ज्ञान गुन सागर