Shri Ram Stuti Lyrics – श्री राम स्तुति
राम स्तुति के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास जी हैं। श्री राम स्तुति का पाठ सुंदरकांड, रामचरितमानस कथा, अखंड रामायण के पाठ आदि की समाप्ति पर तथा श्री राम नवमी और विजय दशमी की पूजा पर किया जाता है।
इस स्तुति में गोस्वामी तुलसीदास जी ने प्रभु श्रीराम के रूप, उनके शृंगार, उनके शोर्य,उनके स्वभाव और उनकी कृपा प्राप्त करने के साथ ही सीता माता का गौरी पूजन कर उनसे वर स्वरूप श्रीराम को प्राप्त करने का भी वर्णन किया है।
श्री राम स्तुति की स्तुति का पाठ करने से प्रभु श्रीराम के साथ-साथ हनुमान जी भी प्रसन्न हो जाते हैं तथा प्रभु श्रीराम तथा रामभक्त हनुमान दोनों की ही कृपा प्राप्त होती है।
तो आइए पढ़ते है: –
Shri Ram Stuti – श्री राम स्तुति
श्री रामचन्द्र कृपालु भजुमन,
हरण भवभय दारुणम्।
नव कंज लोचन कंज मुख कर,
कंज पद कंजारुणम् ॥१॥
कंदर्प अगणित अमित छवि,
नव नील नीरद सुन्दरम्।
पटपीत मानहुँ तडित रुचि शुचि,
नोमि जनक सुतावरम् ॥२॥
भजु दीनबन्धु दिनेश दानव,
दैत्य वंश निकन्दनम् ।
रघुनन्द आनंद कंद कौशल,
चंद दशरथ नन्दनम् ॥३॥
सिर मुकुट कुंडल तिलक,
चारु उदारु अङ्ग विभूषणम् ।
आजानु भुज शर चाप धर,
संग्राम जित खर-दूषणम् ॥४॥
इति वदति तुलसीदास शंकर,
शेष-मुनि-मन-रंजनम् ।
मम् हृदय कंज निवास कुरु
कामादि खलदल गंजनं ॥५॥
मनु जाहिं राचेउ मिलिहि सो बरू,
सहज सुन्दर सांवरों ।
करुणा निधान सुजान शील
सनेहू जानत रावरो ॥६॥
एहि भांति गौरी असीस सुनि सिय
सहित हियँ हरषीं अली ।
तुलसी भवानिहि पूजी पुनि-पुनि
मुदित मन मन्दिर चली ॥७॥
॥सोरठा॥
जानी गौरी अनुकूल सिय,
हिय हरषु न जाइ कहि।
मंजुल मंगल मूल वाम,
अङ्ग फरकन लगे ॥
Shri Ram Stuti In English
Shree Ramchandra Kripal Bhajuman,
Haran Bhavbhay Darunam ।
Nav Kanj Lochan Kanj Mukh Kar,
Kanj Pad Kanjaarunam ॥1॥
Kandarp Aganit Amit Chavi,
Nav Neel Neerd Sundaram।
Patpit Manhun Tadit Ruchi Suchi,
Nomi Janaksutavaram ॥2॥
Bhaju Deenbandhu Dinesh Danav,
Daity Vansh Nikandnam।
Raghunand Aanand Kand Koushal,
Chand Dasharath Nandanam ॥3॥
Sir Mukut Kundal Tilak,
Charu Udaru Ang Vibhushanam।
Aajanu Bhuj Shar Chaap Dhar,
Sangraam JIt Khar-dushnam ॥4॥
Iti Vadti Tulsidas Shankar,
Shesh-Muni-Man-Ranjanam।
Mam hriday Kanj Niwas Kuru,
Kamadi Khaldal Ganjanam ॥5॥
Manu Jahi Racheu Milihi So Baru,
Sahaj Sundar Sanwaro।
Karuna Nidhan Sujan Sheel,
Sanehu Janat Rawaro ॥6॥
Ahi Bhanti Gouri Asees Suni Siya,
Sahit Hiy Harshi Ali।
Tulsi Bhawanihi Puji Puni-Puni,
Mudit Man Mandir Chali ॥7॥
॥ Sortha ॥
Jani Gouri Anuklul Siya,
Hiya harshu Na Jai Kahi।
Manjul Mangal Mool Vaam,
Ang farkan Lage ॥
श्री राम स्तुति अर्थ सहित
राम जी के भक्त श्री राम स्तुति का पाठ तो कर लेते है, लेकिन कई इसके अर्थ से अन्जान होते है। जो भक्त संस्कृत भाषा जानते हैं उनको तो इसका अर्थ समझने में कोई कठिनाई नहीं होती कई भक्त ऐसे भी हैं, जिन्हें श्री राम स्तुति के छंदों का अर्थ समझने में कठिनाई होती है।
इसलिए मैंने आपके लिए यहाँ पर श्री राम स्तुति के छंदों के साथ -साथ उनका अर्थ समझाने का एक छोटा सा प्रयास किया है: –
श्री रामचन्द्र कृपालु भजुमन, हरण भवभय दारुणम्।
नव कंज लोचन कंज मुख कर, कंज पद कंजारुणम् ॥१॥
हे मन! तू कृपालु और दयालु श्रीरामचंद्र जी का भजन (जाप) कर जो सभी के मन से इस जन्म-मरण रुपी भय को दूर करने वाले हैं। श्रीराम के नयन नए खिले हुए कमल के पुष्प के समान हैं, उनका मुख, हाथ, तथा चरण भी लाल कमल के समान हैं।
कंदर्प अगणित अमित छवि, नव नील नीरद सुन्दरम्।
पटपीत मानहुँ तडित रुचि शुचि, नोमि जनक सुतावरम् ॥२॥
उनका रूप असंख्य कामदेवों के रूपों से भी सुंदर व मनमोहक हैं। उनके शरीर का रंग नए नीले घने बादल तथा नीले कमाल के रंग के समान हैं। उनका पीताम्बर मेघ रुपी शरीर बिजली के समान चमक रहा हैं। ऐसे श्री जनक जी की पुत्री माता सीता के पति के आगे मैं नतमस्तक हूँ।
भजु दीनबन्धु दिनेश दानव, दैत्य वंश निकन्दनम् ।
रघुनन्द आनंद कंद कौशल, चंद दशरथ नन्दनम् ॥३॥
हे मन! तू दीन-दुखियों के बंधु, सूर्य के समान तेजस्वी और तथा राक्षसों का कुल सहित नाश करने वाले, आनंद के मूल अर्थात आनंद प्रदान करने वाले, कौशल देश के चंद्रमा (चंद्रमा के समान अंधकार में भी चमकने वाले) रघुकुल नंदन व राजा दशरथ के पुत्र श्रीराम का भजन कर।
सिर मुकुट कुंडल तिलक चारु, उदारु अङ्ग विभूषणम् ।
आजानु भुज शर चाप धर, संग्राम जित खरदूषणम् ॥४॥
जिनके मस्तक पर रत्न जड़ित मुकुट सुशोभित हैं, कानों में कुण्डल हैं, भाल (माथे) पर सुन्दर तिलक है तथा जिनके सभी अंग सुंदर व रत्न जड़ित आभूषणों से सुशोभित हैं, जिनकी घुटने तक लंबी विशाल भुजाएं है तथा जिन पर उन्होंने धनुष-बाण धारण किया हुआ हैं और जिन्होंने युद्ध (संग्राम) में खर-दूषण पर विजय पा ली हैं।
इति वदति तुलसीदास शंकर, शेष मुनि मन-रंजनम्।
मम् हृदय कंज निवास कुरु, कामादि खलदल गंजनंम् ॥५॥
तुलसीदास जी कहते हैं कि भगवान शिव, शेषनाग व साधु-मुनियों के मन को प्रसन्न करने वाले, हे प्रभु श्रीराम! आप मेरे हृदय में कमल के पुष्प की भांति निवास करके मेरे मन से काम, क्रोध मद, लोभ, मोह आदि शत्रुओं व बुराइयों का नाश कर दीजिए।
मनु जाहिं राचेउ मिलिहि सो बरू, सहज सुन्दर सांवरो ।
करुणा निधान सुजान शील, सनेहू जानत रावरो ॥६॥
जिस सुंदर सलोनी छवि पर यह मन आकर्षित हो गया है, वैसा ही सुंदर साँवरा अर्थात श्रीराम तुम्हें जरूर मिलेंगे क्योंकि वे करुणा निधान अर्थात दया के सागर और सब कुछ जानने वाले हैं। वे तुम्हारी मर्यादा और तुम्हारे प्रेम को भी अवश्य जान लेंगे।
एहि भांति गौरी असीस सुनि सिय, सहित हियँ हरषीं अली ।
तुलसी भवानिहि पूजी पुनि-पुनि, मुदित मन मन्दिर चली ॥७॥
तुलसीदास जी कहते हैं, माँ गौरी के मुख से यह (श्रीराम जी को वर स्वरूप पाने का) आशीर्वाद सुनकर सीता समेत उनकी सारी सखियाँ बहुत प्रसन्न हुई और बार-बार माँ भवानी की पूजा करके प्रसन्न मन से मंदिर से अपने राजमहल चली गईं।
॥सोरठा॥
जानी गौरी अनुकूल सिय, हिय हरषु न जाइ कहि।
मंजुल मंगल मूल, वाम अङ्ग फरकन लगे ॥
माँ गौरी को अपने अनुकूल जान कर (अर्थात अपनी कामना पूर्ति का वरदान पा कर) माता सीता का हृदय इतना प्रसन्न हुआ जिसका वर्णन नहीं किया जा सकता। मनोहर मंगलों के मूल उनके वाम (बाईं तरफ के) अंग फड़कने लगे, जिनसे उन्हें अपनी मनोकामना पूर्ण होने के संकेत मिले।
नम्र निवेदन
मैंने अपनी समझ के अनुसार श्री राम स्तुति के सभी छंदों का हिन्दी अर्थ लिखा है, लेकिन मैं भी एक अज्ञानी ही हूँ, जो प्रभु की अपार महिमा का पूर्णत: वर्णन करने में असमर्थ है। इसलिए यदि इसमें मुझसे कुछ त्रुटि हो गई हो तो मुझे क्षमा कीजिएगा।
मेरे पाठकों में कई पाठक ऐसे भी होंगे जो बहुत ज्यादा ज्ञानी होंगे और उन्हें श्री राम स्तुति का अर्थ बहुत अच्छी तरह से आता होगा। मेरा उन पाठकों से विनम्र निवेदन है कि कृपया मुझे मेरी त्रुटियों के बारे में बता कर उन्हें दूर करने के लिए मेरा मार्गदर्शन करें।
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