टिटिहरी का जोड़ा और समुद्र – Titihari Ka Joda Aur Samudra
पंचतंत्र की कहानियाँ – पहला तंत्र – मित्रभेद – टिटिहरी का जोड़ा और समुद्र – Titihari Ka Joda Aur Samudra –
समुद्र तो मुझसे डरता है
धनुक देश में एक समुद्र के किनारे एक टिटिहरी का जोड़ा रहता था। समय बीतने पर टिटिहरी ने गर्भ धारण किया। जब अंडे देने का समय आया तो उसने अपने पति से कहा,
टिटिहरी – स्वामी, अब मेरे अंडे देने का समय आ गया है, हमें शीघ्र ही अंडे देने के लिए एक सुरक्षित स्थान की खोज कर लेनी चाहिए।
टिटिहरा – यह समुद्र का किनारा कितना सुन्दर और विशाल है। यहाँ पर बहुत जगह है और यह सुरक्षित भी है। तुम बिना चिंता किए यहीं समुद्र के किनारे अपने अंडे दे देना।
टिटिहरी – समुद्र में जब ज्वार आता है तो उसकी लहरे इतनी शक्तिशाली होती है कि वे मतवाले हाथी को भी अपने साथ खींच कर ले जा सकती है। फिर मेरे अंडों की तो बात ही क्या है। इसलिए हमें कोई ऐसा स्थान ढूँढ लेना चाहिए जहां समुद्र की लहरे ना पँहुच सके।
टिटिहरा – जिस तरह मतवाले हाथी को मार, थककर सोये हुए सिंह को वहीं उठाने का साहस कर सकता है जो यमलोक जाने का इच्छुक हो, डरावनी और धुआँ रहित आग में कोई मूर्ख ही घुसने का साहस करेगा, उसी तरह ससमुद्रभी मेरे बच्चों को हानि पँहुचाने का दुस्साहस नहीं करेगा।
जो संकटों से हार कर भाग जाए उसकी माता तो पुत्रवती होते हुए भी बांझ के समान ही है। इसलिए मैं कहीं नहीं जाऊंगा। तु नि:शंक होकर यहाँ अंडे दे। समुद्र हमारी कोई हानि नहीं कर सकता।
अभिमान पर अभिमान
समुद्र ने टिटिहरे और टिटिहरी की बातचीत सुन ली। उसने मन ही मन सोचा, “यह छोटा सा टिटिहरा कितना अभिमानी है। इसे व्यर्थ ही अपनी ताकत का घमंड है। यह आकाश की ओर अपनी टाँगे करके भी यह सोच कर सोता है कि जब आसमान नीचे गिरेगा तो यह उसे अपनी टाँगों पर थाम लेगा।
अपनी ख्याली ताकत के घमंड में इसने मुझ जैसे शक्तिशाली को चुनौती दी है, जो अपनी लहरों से बड़े से बड़े जानवरों को अपने साथ बहा कर ले जा सकता है। मेरी शक्ति के आगे इस टिटिहरे की औकात ही क्या है। इसे इसके अभिमान का सबक मिलना चाहिए। देखता हूँ यह मेरा क्या बिगाड़ लेगा। यह सोच कर वह टिटिहरे के अंडे देने का इंतजार करने लगा।
समय आने पर टिटिहरे की बात मानकर टिटिहरी ने वहीं समुद्र के किनारे अंडे दे दिए। समुद्र इसी मौके की तलाश में था। एक दिन जब टिटिहरी और टिटिहरा दोनों ही भोजन की तलाश में गए हुए थे तब समुद्र अपनी लहरों से टिटिहरी के अंडों को अपने साथ बहा ले गया। जब टिटिहरी ने वापस आने पर पाने अंडों को नहीं पाया तो वह रोने लगी और रोते हुए टिटिहरे से बोली,
टिटिहरी – देखों मूर्ख, मैंने पहले ही कहा था कि समुद्र की लहरे हमारे अंडों को बहा ले जाएंगी। लेकिन तुमने अहंकार वश मेरी बात नहीं मानी और हमने हमारे बच्चों को खो दिया। किसी ने सच ही कहा है जो अपने प्रियजनों और हितैषियों की बात नहीं मानते उन्हें उसका दुष्परिणाम भुगतना ही पड़ता है जिस तरह बातूनी कछुए ने अपने मित्रों की बात ना मानकर अपने प्राण गँवा दिए।
टिटिहरा – वह कैसे?
तब टिटिहरी ने टिटिहरे को बातुनी कछुए की कहानी सुनाई। कहानी सुनाने के बाद टिटिहरी ने कहा,
टिटिहरी – इसीलिए मैं कहती हूँ कि जो अपने हितैषियों की बात नहीं मानता उसे उसका दुष्परिणाम भुगतना ही पड़ता है। बुद्धिमान भी वही है जो किसी विपत्ति के आने से पहले ही उससे बचने का उपाय कर लेते है अथवा जिनकी बुद्धि इतनी तीव्र होती है की वे विपत्ति से बचने का उपाय तत्काल सोच लेते है।
जो होगा वो देखा जाएगा की सोच रखने वाले उसी तरह नष्ट हो जाते है जिस तरह भाग्य के भरोसे बैठी रहने वाली मछली को अपनी जान गँवानी पड़ी और विपत्ति आने से पहले उपाय करने वाली मछलियाँ बच गई।
टिटिहरा – (आश्चर्य से) वह कैसे?
टिटिहरी – तो सुनो। (तब टिटिहरी ने उसे तीन मछलियों की कहानी “दूरदर्शी बनों” सुनाई।) इसीलिए कहती हूँ । जो होगा वो देखा जाएगा की नीति विनाश की ओर ले जाती है। इसलिए विपत्ति आने से पहले ही उसका उपाय कर लेना चाहिए।
मैं समुन्द्र को सूखा दूँगा
टिटिहरा – मैं बातुनी कछुए और मछलियों के जैसा मूर्ख और निष्कर्म नहीं हूँ। अब तुम मेरी बुद्धि और ताकत का कमाल देखना मैं कैसे समुद्र को सबक सिखाता हूँ।
टिटिहरी – (आश्चर्य से) तुम ऐसा क्या करोगे?
टिटिहरा – मैं अपनी चोंच से समुद्र का पानी निकाल कर उसे सूखा दूंगा।
टिटिहरी – अरे समुद्र के साथ तुम्हारा क्या मुकाबला, अब उससे बैर करने का क्या फायदा? कमजोर का गुस्सा केवल उसी को नुकसान पँहुचाता है। हमें अपनी शक्ति देख कर ही किसी से शत्रुता करनी चाहए। जो अपनी और शत्रु की ताकत का अंदाजा लगाए बिना शत्रु के पास जाता है वह उसी तरह नष्ट हो जाता है जिस तरह पतंगा आग के पास जाने से।
टिटिहरा – प्रिये, ऐसी बात नहीं है। उत्साह और साहस हो तो छोटे भी बड़ों के हरा देते है।
जिस तरह एक छोटी सी चींटी हाथी की नाक में दम कर देती है, एक छोटे से अंकुश से बलशाली हाथी को वश में किया जा सकता है, एक छोटा स दीपक गहने अंधकार को दूर कर देता है, आकाशीय बिजली की एक छोटी सी किरण पहाड़ को भी नष्ट कर सकती है उसी तरह मैं भी अपने साहस और कर्म से मैं अपनी चोंच से इस समुद्र का सारा पानी निकालकर इस समुन्द्र को सूखा दूंगा।
टिटिहरी – (टिटिहरे को रोकते हुए) जिस समुद्र को गंगा, जमुना और सिंध जैसी सैकड़ो नदियाँ निरंतर पानी से भरती रहती है। उस समुद्र का पानी तुम अपनी चोंच से, जिसमें केवल एक बूँद पानी आता है, कैसे सुखा सकते हो। जो काम असंभव हो उसके लिए ऐसी डींगें मारने का क्या फायदा।
टिटिहरी के बहुत समझाने पर भी जब टिटिहरे ने अपनी जिद नहीं छोड़ी तब टिटिहरी ने कहा,
एक और एक ग्यारह
टिटिहरी – यदि तुमने समुद्र को सुखाने का प्रण कर ही लिया है तो इस काम के लिए तुम्हें अन्य पक्षियों को भी अपने साथ मिला लेना चाहिए। जिस प्रकार छोटे-छोटे तिनकों से बनी रस्सी हाथी को भी बांधने में सक्षम हो जाती है उसी तरह छोटे-छोटे कई जीव साथ मिलकर बड़े से बड़े दुश्मन को हरा देते है। जिस तरह चिड़िया, मधुमक्खी, कठफोड़वे और मेंढक ने मिलकर हाथी को मार गिराया।
टिटिहरा – (उत्सुकता से) वह कैसे?
टिटिहरी – आज मैं तुम्हें एकता की शक्ति की कहानी सुनाती हूँ।
तब उसने टिटिहरे को चिड़िया और हाथी की कहानी सुनाई। कहानी सुनकर टिटिहरे ने कहा,
टिटिहरा – मैं तुम्हारी बात समझ गया। अब मैं भी समुद्र को सुखाने का प्रयत्न अन्य पक्षियों की सलाह लेने के बाद ही करूंगा।
इतना कहने के बाद वह जंगल में गया और उसने सारस, बगुले, मोर, चिड़िया आदि अनेक पशुओं की सभा बुलाई और सभी के समक्ष अपनी दु:ख भरी कहानी सुनाकर उनसे समुद्र को सुखाने में सहायता माँगी। उसकी बात सुनकर सभी पशुओं ने आपस में सलाह मशविरा करके बगुले ने कहा
बगुला – समुद्र में अथाह जल का भण्डार है, हम सब पक्षी मिलकर भी समुद्र को नहीं सूखा सकते। ऐसी कोशिश करना भी व्यर्थ है।
उनकी बात सुनकर टिटिहरा उदास हो गया, तब मोर बोला,
मोर – माना हम सब मिलकर भी समुद्र को सुखाने मे असमर्थ है लेकिन हम सभी पशुओं के स्वामी और भगवान विष्णु के वाहन गरुड बहुत शक्तिशाली है। हमें उनके पास जाकर अपनी व्यथा सुनानी चाहिए। वे अपने जाति बंधुओं की सहायता अवश्य करेंगे।
पक्षियों के राजा मदद कीजिए
मोर की बात सुनकर सभी पक्षी मिलकर गरुड के पास गए और रोते-कलपते हुए फरियाद करने लगे। जब गरुड ने उनसे इसका कारण पूछा तब बगुले ने रोते हुए कहा,
बगुला – गरुड़ महाराज, आप समस्त पक्षी कुल के स्वामी है। आपके होते हुए समुद्र टिटिहरे के अंडों को अपने साथ बहा कर ले गया। उसने आज यह अत्याचार टिटिहरे के साथ किया है यदि उसे सबक नहीं सिखाया गया तो कल वह हमारे बच्चों के साथ भी ऐसा ही करेगा, जिससे समस्त पक्षी कुल ही समाप्त हो जाएगा।
गरुड – तो आप सब मुझसे क्या चाहते हो?
मोर – राजा का यह धर्म होता है कि वह धूर्तों, चोर-डाकुओं, अत्याचारियों और दुराचारियों से अपनी प्रजा की रक्षा करे। जो राजा ऐसा नहीं करता वह अधर्म का भागी होता है। समुन्द्र ने आपकी प्रजा पर अत्याचार किया है आपकों उसके अत्याचार से हमारी रक्षा करनी चाहिए। यदि उसे रोका नहीं गया, तो वह समस्त पक्षी कुल का विनाश कर देगा।
पक्षियों का विलाप सुनकर गरुड़ को समुद्र पर बहुत क्रोध आया और उसने पक्षियों की सहायता करने का निश्चय किया।
गरुड़ – तुम सब मेरे साथ चलों। मैं भी उस समुद्र को सूखा कर उसको सबक सिखाता हूँ।
विष्णु जी किसी और की सवारी कीजिए
गरुड़ पक्षियों के साथ जाने के लिए रवाना हुआ ही था कि तभी भगवान विष्णु का एक दूत वहाँ आया और उसने गरुड से कहा,
दूत – अरे गरुड, मुझे भगवान नारायण ने तुम्हें बुलाने के लिए भेज है। भगवान नारायण को देवताओं के काम से इसी समय स्वर्ग जाना है। इसलिए सवारी के लिए तुझे बुलाया है।
गरुड़ – (क्रोधपूर्वक) दूत, मेरे जैसे तुच्छ सेवक का भगवान को क्या काम? तुम जाकर भगवान विष्णु से कह दो कि वे दूसरी सवारी का प्रबंध कर ले।
दूत – आज से पहले तो तुमने भगवान विष्णु के लिए ऐसे शब्दों का प्रयोग नहीं किया। आज ऐसा क्या हो गया जो तुम इतने कुपित हो?
दूत के पूछने पर गरुड़ ने उसे समुद्र की करतूत की पूरी कहानी बताई। दूत ने जाकर भगवान विष्णु से गरुड के क्रोध और क्रोध के कारण की पूरी कथा जस की तस सुना दी। दूत के मुख से सारी बात जाने के बाद भगवान विष्णु ने सोचा, “गरुड़ मुझसे प्रेमवश कुपित हुआ है। मैं स्वयं जाकर गरुड़ का क्रोध शांत करता हूँ।“ इतना सोच कर भगवान विष्णु गरुड़ के घर गए।
अभिमानी को दंड
भगवान विष्णु को अपने घर आया देख कर गरुड़ अपने कृत्य पर शर्मिंदा हुआ और हाथ जोड़कर बड़ी विनम्रता से बोला
गरुड़ – समुद्र आपका घर है और आपका आश्रय पाकर वह बहुत ही घमंडी हो गया है। उसने मेरे सेवक के अंडे अपने साथ ले जाकर मुझे अपमानित किया है। मैं चाहूँ तो उसे स्वयं भी सुखा सकता था। लेकिन वह आपका आश्रित है। उसे मेरे द्वारा दंड दिया जाना आपका ही अपमान होगा और मैं आपका सेवक होने के नाते आपका अपमान नहीं कर सकता। मैंने आपसे कुपित होने का स्वांग किया जिसके लिए मैं आपसे क्षमा प्रार्थना करता हूँ।
भगवान विष्णु – तुम सही कह रहे हो गरुड़, सेवक को दिया गया दंड स्वामी को ही लगता है। यह स्वामी के लिए शर्म की बात है। तुम्हारा क्रोध करना बिल्कुल सही है। समुद्र ने सचमुच गलत आचरण किया है। तुम अभी मेरे साथ चलों मैं अभी इसी वक्त समुद्र से टिटिहरे के अंडे वापस दिलवाता हूँ। उसके बाद ही हम स्वर्ग चलेंगे।
तब भगवान विष्णु गरुड़ व सभी पक्षियों के साथ समुद्र की तरफ आग्नेय बाण साधा और क्रोध से बोले
भगवान विष्णु – दुष्ट, तुम अभी इसी वक्त टिटिहरे के अंडे उसे वापस लौट दो नहीं तो मैं अपने आग्नेय बाण से तुझे सूखा दूंगा।
भगवान विष्णु के क्रोध से डरकर समुद्र ने उसी वक्त टिटिहरे के अंडे वापस दे दिए। टिटिहरा खुशी-खुशी उन अंडों को लेकर टिटिहरी के पास जाकर सारे अंडे उसे दे दिए। टिटिहरी अपने अंडों को वापस पाकर खुशी से झूम उठी।
कहानी का वीडियो – टिटहरी का जोड़ा और अभिमानी समुद्र
सीख
अभिमानी का सिर नीचा। अभिमान करने वाले को हमेशा मुँह की खानी पड़ती है। जैसे पहले टिटिहरे को अपने अभिमान के कारण अपने अंडे खोने पड़े। समुन्द्र के द्वारा भी अभिमानवश टिटिहरे को बलहीन माने जाने के कारण उसके नाश की नौबत आ गई।
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