व्यापारी का पतन और उदय – Vyapari Ka Patan Aur Uday
पंचतंत्र की कहानियाँ – पहला तंत्र – मित्रभेद – व्यापारी का पतन और उदय – Vyapari Ka Patan Aur Uday – Fall and Rise of Businessman
मैं तो साहब बन गया
वर्धमान नामक एक सुन्दर नगर में एक व्यापारी दंतील रहता था। वह बहुत ही चतुर था और बड़ी ही कुशलता से अपने व्यापार का संचालन करता था। समय पर अपना राज्यकर अदा करना, अपने ग्राहकों को उचित मूल्यों पर सही वस्तु देना, अपने लेनदारों का कर्ज समय पर चुकाना यह सब वह पूरी ईमानदारी और कुशलता से करता था। ।
उसकी चतुराई व कार्यकुशलता देख कर राजा सारंग ने उसे अपना प्रशासनिक अधिकारी बना दिया। कहावत है कि जो व्यक्ति राजा को खुश रखता है उससे जनपद नाराज हो जाता है और जो जनपद को खुश रखने की कोशिश करता है उससे राजा खफा हो जाता है। जो एक ही समय में इन दोनों को ही खुश रख सके ऐसे लोग विरले ही होते है। लेकिन अपनी कार्य कुशलता के कारण राजा और नगरवासी सभी उससे खुश थे।
साहब बन कर कैसा तन गया?
कुछ समय बीतने पर दंतिल की कन्या का विवाह तय हो गया। विवाह के उपलक्ष्य में उसने एक विशाल भोज का आयोजन किया। दंतिल ने आम आदमी से लेकर नगर के गणमान्य लोगों के साथ-साथ राजपरिवार को भी विवाह के भोज में आमंत्रित किया। उसने सभी आगंतुकों का उचित आदर सत्कार किया और सभी को उपहार देकर विदा किया।
राजा और उसके परिवार के साथ उसका एक सेवक गोरंभ, जो राज्य के महल में झाड़ू लगाने का काम करता था, भी वहाँ आया। वह गलती से राज परिवार के बैठने के लिए रखे आसान पर बैठ गया। दंतिल ने जब यह देखा तो उसे बहुत गुस्सा आया। उसने गोरंभ को बुरा-भला कहा और गर्दन से पकड़कर उसे घर से बाहर निकाल दिया।
जैसे को तैसा
सबके सामने हुए इस अपमान से गोरंभ बहुत शर्मिंदा हुआ और अपने घर आ गया। लेकिन दंतिल द्वारा किए अपने अपमान के कारण वह रात भर सो ना सका। उसने मन ही मन दंतिल को सबक सिखाने का प्रण लिया।
अगले दिन वह सुबह-सुबह ही राजा के कक्ष में झाड़ू लगाने के लिए पँहुच गया। जब उसने देखा की राज्य की नींद खुलने ही वाली है तो वह बड़बड़ाने लगा। वह बड़बड़ाते हुए बोला, “इस दंतिल की इतनी मजाल कि वह महारानी जी को आलिंगन करे। राजा ने अपनी अर्धनिंद्रा में गोरंभ की बात सुनी तो तत्काल उठ बैठा।
उसने गोरंभ से पूछा, “गोरंभ , तुम जो अभी कह रहे थे क्या वो सच है? क्या दंतिल ने सचमुच महारानी को आलिंगन किया है?” राजा की बात सुनकर गोरंभ ने डरते हुए राजा के पैर पकड़ लिए और बोला, “मुझे माफ कर दीजिए महाराज, कल रात भर जुआ खेलने के कारण मैं ढंग से सो नहीं पाया। मेरी नींद पूरी ना हो पाने के कारण मैं अर्धनिंद्रा में था और मुझे तो खुद को भी नहीं पता कि मैं क्या बड़बड़ा रहा था। मुझे अर्धनिंद्रा में बड़बड़ाने की आदत है।”
पंचतंत्र की कहानियाँ – Panchtantra ki Kahaniyan
मैं तो लुट गया
राजा ने उस वक्त तो कुछ नहीं कहा लेकिन उसके मन में दंतिल के प्रति शक पैदा हो गया कि गोरंभ ने जरूर दंतिल को महारानी को आलिंगन करते हुए देखा होगा तभी उसके मुँह से यह बात निकल गई। लेकिन शायद दंतिल की पँहुच के कारण यह पूरी बात बताने से डर रहा है। उसने तुरंत अपने संतरियों को आदेश दिया कि दंतिल को महल में प्रवेश नहीं करने दिया जाये और उसे बता दिया जाए कि राजा ने दंतिल को पद से हटाकर उसके सभी अधिकार समाप्त कर दिए है।
अगले दिन जब दंतिल राजदरबार आया तो संतरियों ने उसे राजा का आदेश सुनाकर बाहर ही रोक दिया। दंतिल को बहुत ही आश्चर्य हुआ। उसे कुछ समझ नहीं आया कि राजा उससे किस बात पर रुष्ट हो गया है। उसने संतरियों से एक बार फिर राजा से मिलने के लिए विनती की लेकिन संतरियों ने उसे वहाँ से जाने के लिए कह दिया। उसे संतरियों से अपने ऐसे अपमान की आशा नहीं थी। उसे संतरियों पर बहुत क्रोध आया।
तभी वहाँ पर पहले से बैठे गोरंभ ने कहा, “अरे संतरियों, जानते नहीं ये कौन हैं? यह राजा का कृपापात्र और बहुत ही प्रभावशाली व्यक्ति हैं। जो स्वयं किसी को भी दंड और इनाम दे सकता है। यह तुम्हें भी ठीक उसी तरह से यहाँ से बाहर फिकवा सकता है जैसा इसने मेरे साथ अपने घर भोज में किया था। इसलिए जरा संभल कर रहना।”
हमका माफी दई दयो
यह सुनते ही दंतिल को पूरी बात समझ में आ गई कि हो ना हो यह सब किया धरा इस गोरंभ का ही है। वह उस वक्त तो वहाँ से चला गया, लेकिन घर जाकर उसने गोरंभ को अपने घर बुलाया और उचित आदर-सम्मान करते हुए उसे सुंदर कपड़े भेंट में दिए।
उसने भोज वाले दिन के व्यवहार के लिए माफी मांगते हुए गोरंभ से कहा, “उस दिन तुम्हें राजपरिवार के बैठने के स्थान पर बैठा देख के मुझे गुस्सा आ गया था और मैंने तुम्हारा अपमान कर दिया। यही बात मैं तुम्हें विनम्रता से भी कह सकता था। मैं अपने किए पर बहुत शर्मिंदा हूँ, कृपया मुझे माफ कर दो।”
गोरंभ दंतिल से आदर-सम्मान व कपड़े पाकर संतुष्ट हो गया और बोला, “आपने आज मेरा इतना आदर सत्कार किया इसलिए मैं आपको आपके उस बुरे व्यवहार के लिए आपको माफ करता हूँ।“ दंतिल ने कहा, “लेकिन उस बात का बदला लेने के लिए तुमने मुझे महाराज की नजरों में गिरा दिया है। अब मुझे मेरा पहले जैसा स्थान कैसे मिलेगा?”
राजा तो मूर्ख है
गोरंभ ने उत्तर दिया, “आप इस बात की बिल्कुल चिंता ना करें, मैं आपको आपका खोया हुआ सम्मान वापस दिलवा दूंगा, लेकिन आपको भी एक वादा करना होगा कि आगे से आप किसी के छोटे पद पर होने के कारण उसका अपमान नहीं करेंगे।” दंतिल ने उससे वादा किया कि अब वह अपने पद के घमंड में आकार किसी का भी अनादर नहीं करेगा।
दूसरे दिन वह फिर सुबह-सुबह ही राजा के कक्ष में झाड़ू लगाने के लिए पँहुच गया। और जब उसने देखा कि राजा अर्धनिंद्रा में है तो वह फिर बड़बड़ाने लगा। वह बड़बड़ाते हुए बोला, “हे भगवान, हमारा राजा कितना मूर्ख है जो गुसलखाने में ककड़ी खाता है।”
राजा ने अर्धनिंद्रा में गोरंभ की बात सुनी तो तत्काल उठ बैठा और गुस्से से बोला, “दुष्ट सेवक, तुम्हारी इतनी हिम्मत कि तुम मेरे लिए इस तरह की अनर्गल बाते बोलो। क्या तुमने मुझे ऐसा करते हुए देखा है?”
राजा की बात सुनकर गोरंभ ने डरते हुए राजा के पैर पकड़ लिए और बोला, “महाराज, कल रात भर फिर जुआ खेलने के कारण मैं ढंग से सो नहीं पाया। मेरी नींद पूरी ना हो पाने के कारण मुझे झपकी आ गई। मैं था और मुझे तो खुद को भी नहीं पता कि मैंने अर्धनिंद्रा में बोल दिया। मैंने आपको पहले भी बताया था कि मुझे अर्धनिंद्रा में बड़बड़ाने की आदत है। इस बार मुझे माफ कर दीजिए। मैं पूरी कोशिश करूंगा कि मुझसे आगे से ऐसी गलती दुबारा ना हो।”
राजा ने कहा, “यदि तुम मेरे इतने पुराने और वफादार सेवक नहीं होते तो मैं तुम्हें इसी वक्त नौकरी से निकाल देता। इस बार तो हम तुम्हें माफ कर रहे है, लेकिन ध्यान रहे अगली बार ऐसी गलती हूई तो हम तुम्हें माफ नहीं करेंगे।” गोरंभ हाथ जोड़कर वहाँ से चल गया।
उसके जाने के बाद राजा ने सोचा, “जब गोरंभ अर्धनिंद्रा में मेरे बारे में इतना अनर्गल बोल सकता है तो हो ना हो इसने व्यापारी दंतिल के बारे में भी गलत ही कहा होगा। इसकी बातों मैं आकर मैंने बेकार ही दंतिल को दंडित किया। राजा ने उसी दिन दंतिल को राजदरबार में बुलाया और उसे वस्त्र-आभूषण भेंट कर उसे उसका पद और प्रतिष्ठा पुन: प्रदान कर दी।
व्यापारी का पतन और उदय कहानी का वीडियो – Vyapari Ka Patan Aur Uday
सीख
कोई भी व्यक्ति बड़ा या छोटा नहीं होता, सभी का अपने-अपने कार्यों के अनुरूप अपना अलग स्थान होता है। इसलिए हमें अपने पद के मद में आकार किसी का भी अपमान नहीं करना चाहिए। हर किसी के साथ समान भाव से ही पेश आना चाहिए।
पिछली कहानी – ढोल की पोल
तो दोस्तों, कैसी लगी पंचतंत्र की कहानियों के रोचक संसार में डुबकी। मजा आया ना, तो हो जाइए तैयार लगाने अगली डुबकी, .. .. .. ..
अगली कहानी – लड़ती भेड़े और सियार
अब एक छोटा सा काम आपके लिए भी, अगर यह कहानी आपको अच्छी लगी हो, तो इस पेज को Bookmark कर लीजिये और सोशल मीडिया जैसे Facebook, Twitter, LinkedIn, WhatsApp (फेसबुक टि्वटर लिंकडइन इंस्टाग्राम व्हाट्सएप) आदि पर अपने दोस्तों को शेयर कीजिए।
अपनी राय और सुझाव Comments Box में जरूर दीजिए। आपकी राय और सुझावों का स्वागत है।