Yamraaj Ki Shaadi | यमराज की शादी
एक बार यमराज पृथ्वी पर भ्रमण के लिए निकले। घूमते-घूमते वे अवन्तिका नगरी में पँहुचे। वहाँ उन्होनें एक बहुत ही सुंदर कन्या को देखा। यमराज जी उस पर मोहित हो गए। वे उसके पास गए और पूछा,
यमराज – हे सुंदरी, तुम कौन हो?
युवती – मैं इस नगर के कोतवाल की बेटी शीलवती हूँ। आप कौन है?
यमराज – मैं यमराज हूँ।
यमराज का नाम सुनते ही शीलवती डर कर मारे थर-थर कांपने लगी। उसे इस तरह काँपते देख यमराज ने कहा,
यमराज – सुंदरी तुम्हें डरने की कोई आवश्यकता नहीं हैं। मैं तुम्हारे प्राण लेने के लिए नहीं आया हूँ। मैं तो तुम्हारी सुंदरता पर मोहित हो गया हूँ और तुमसे विवाह करना चाहता हूँ।
शीलवती – मुझसे विवाह करने के लिए आपको मेरे पिताजी से बात करनी पड़ेगी।
यमराज – तो तुम मुझे अपने पिताजी के पास ले चलों मैं उनसे विवाह की अनुमति ले लूँगा।
शीलवती यमराज जी को लेकर अपने पिता के पास जाती है। उसके पिता इस शर्त पर उसका विवाह यमराज से करने के लिए तैयार हो जाते है कि “वह उसे कभी कुछ नहीं कहेंगे और उसे किसी चीज की कमी नहीं होने देंगे।” यमराज उनकी यह शर्त मान लेते है। शुभ मुहूर्त पर दोनों का विवाह हो जाता है।
शीलवती चेहरे से जितनी सुंदर थी, स्वभाव से उतनी ही कर्कशा थी। विवाह के बाद कुछ समय तक तो सब सही रहा लेकिन धीरे-धीरे उसने यमराज जी का जीना हराम कर दिया। वो उनके किसी काम से खुश नहीं होती। हमेशा उन पर चिल्लाती रहती। काम करते तो कहती सही नहीं किया, नहीं करते तो कहती कामचोर कहीं के सारे दिन रोटियाँ तोड़ते रहते हो।
लेकिन यमराज जी अपने वचन के कारण उसे कुछ नहीं कहते। इस कारण शीलवती उन पर हावी होती गई। बेचारे यमराज जी भीगी बिल्ली बने उसके कोप का शिकार बनते रहते। इसी तरह कुछ वर्ष बीत गए। इस बीच उनका एक पुत्र विद्यादत्त भी हो जाता है। एक दिन शीलवती किसी बात पर यमराज जी पर इतना चिल्लाती है कि बेचारे यमराज जी अपनी अपना बोरिया-बिस्तर लेकर घर छोड़कर भाग जाते है।
शीलवती और उसका पुत्र विद्यादत्त अकेले रह जाते है। कुछ वर्ष बीतने पर विद्यादत्त 12 वर्ष का हो जाता है। उनके पास की सारी जमा पूंजी खत्म हो जाती है और उनके खाने के भी लाले पड़ने लग जाते है। यमराज जी से अपने बेटे और पत्नी की यह हालत देखी नहीं जाती। इसलिए वे अपने पुत्र के पास आते है। विद्यादत्त ने अपने पिता को पहले देखा नहीं होता है। वह उन्हें देख कर वह डर जाता है। उसे डरते देख यमराज जी कहते है।
यमराज – डरों मत बेटा, मैं तुम्हारा पिता हूँ। तुम्हारी माँ के कर्कश स्वभाव के कारण में तुम्हें बचपन में ही छोड़ गया था।
विद्यादत्त – पिताजी, आप हमारे साथ नहीं है, इसलिए आज हम दाने-दाने को मोहताज़ है। पिताजी आप घर वापस आ जाइए।
यमराज – नहीं, मुझे तुम्हारी माँ से बहुत डर लगता है। मैं उसके सामने जाना तो दूर उसके नाम से ही कांपने लग जाता हूँ।
विद्यादत्त – तो फिर हमारा गुजारा कैसे होगा, पिताजी? मैं भी अभी बहुत छोटा हूँ, कुछ काम भी नहीं कर सकता।
यमराज – मैं भी तुम्हें इस हालत में नहीं देख सकता। तुम्हारी हालत को सही करने के लिए ही तो मैं यहाँ आया हूँ।।
विद्यादत्त – लेकिन कैसे? आप तो हमारे साथ रहेंगे नहीं।
यमराज – वही तो मैं तुम्हें बता रहा हूँ। मैं यमराज हूँ, मुझे पता होता है कि किसकी आयु पूरी होने वाली है। तुम वैद्य का काम शुरू कर दो।
विद्यादत्त – लेकिन पिताजी, मुझे आयुर्वेद का बिल्कुल भी ज्ञान नहीं है। मैं लोगों का ईलाज कैसे करूँगा?
यमराज – थोड़े दिन किसी वैद्य के पास जाकर कुछ जड़ीबूटियों का ज्ञान प्राप्त कर लो। उससके बाद तुम स्वयं लोगों का ईलाज करने लग जाना।
विद्यादत्त – लेकिन थोड़ी सी जड़ीबूटियों के ज्ञान से क्या होगा?
यमराज – उसकी तुम बिल्कुल चिंता मत करो। तुम जब भी किसी का ईलाज करने के लिए जाओगे तो सबसे पहले उसके सिरहाने की तरफ देखना। यदि उसके सिरहाने पर तुम्हें मैं खड़ा दिखाई दे जाऊँ तो समझ जाना कि उसकी मृत्यु होने वाली है। तुम उसकी नब्ज देखकर बता देना कि उसका ईलाज संभव नहीं है, और यदि मैं उसके सिरहाने पर ना दिखूँ तो तुम कह देना कि तुम उसका ईलाज करके उसे ठीक कर दोगे। तुम उसे कुछ भी जड़ीबूटी दे देना वह ठीक हो जाएगा। लेकिन याद रखना, जिस किसी के भी सिरहाने मैं खड़ा दिख जाऊँ, उसके ईलाज के लिए साफ मना कर देना।
विद्यादत्त – ठीक है पिताजी!
यमराज – लेकिन अपनी माँ को मेरे बारे में कुछ मत बताना!
विद्यादत्त – ठीक है पिताजी, नहीं बताऊँगा।
इतना कहकर यमराज वहाँ से वापस अपने लोक में आ गए। यमराज के जाने के बाद विद्यादत्त ने एक वैद्य के यहाँ सहायक का काम शुरू कर दिया। थोड़े दिनों में ही उसे कुछ जड़ीबूटियों का ज्ञान हो गया। वह अपनी माँ को लेकर दूसरे गाँव चला गया और वहाँ उसने सबको बताया कि वह वैद्य है और उसे बहुत सारी जड़ीबूटियों का ज्ञान है। वह जिसके लिए कह दे कि वह उसका ईलाज नहीं कर सकता, उसका ईलाज बड़े से बड़ा वैद्य भी नहीं कर पाएगा।
लेकिन उसकी उम्र को देखकर कोई भी उससे ईलाज करवाने के लिए नहीं आता। एक बार उस नगर में रहने वाले एक सेठ का लड़का बीमार हो गया। उसने नगर के बड़े से बड़े वैद्य को दिखाया लेकिन कोई भी उसको ठीक नहीं कर सका। किसी ने उसे विद्यादत्त के बारे में बताया तो उसने यह सोच कर उसे बुला लिया कि एक बार उससे भी अपने बेटे का ईलाज करवा कर देख लेता हूँ।
विद्यादत्त सेठ के घर गया। उसने जाते ही उसके लड़के के सिरहाने की तरफ देखा, उसे वहाँ यमराज जी दिखाई नहीं दिए। उसने कहा,
विद्यादत्त – मैं इसका ईलाज कर दूँगा।
उसने कुछ जड़ीबूटियों को पीसकर दवाई बनाई और उसकी 12 पुड़िया बना कर सेठ को दे दी और कहा,
विद्यादत्त – इसे दिन में तीन बार, चार दिन तक दे देना आपका पुत्र ठीक हो जाएगा।“
सेठ ने उसके कहे अनुसार दवा दी। चार दिन में ही उसका बेटा ठीक हो गया। सेठ ने विद्यादत्त को बहुत सारा धन दिया। सेठ के पुत्र के ठीक होने से पूरे नगर में विद्यादत्त के बारे में चर्चा होने लगी।
एक बार उस नगर के महाजन का बेटा बीमार पड़ गया। उसने भी कई वैद्यों से उसका ईलाज करवाया लेकिन वह ठीक नहीं हुआ। तब उसने भी विद्यादत्त को अपने पुत्र के ईलाज के लिए बुलाया। विद्यादत्त महाजन के घर उसके पुत्र को देखने गया। उसके कक्ष में घुसते ही उसने उसके सिरहाने की तरफ देखा तो उसे वहाँ यमराज जी खड़े दिखाई दे दिए। उसने महाजन से कहा,
विद्यादत्त – मैं आपके पुत्र का ईलाज नहीं कर सकता।
यह कहकर वह वहाँ से चला गया। उसके बाद भी महाजन ने बड़े से बड़े वैद्य से अपने पुत्र का ईलाज करवाया। लेकिन कोई भी वैद्य उसका ईलाज नहीं कर सका। कुछ ही दिनों में उसके पुत्र की मृत्यु हो गई। नगर में यह बात आग की तरह फैल गई कि “विद्यादत्त ने महाजन के पुत्र का ईलाज करने से मना कर दिया तो कोई भी वैद्य उसका इलाज नहीं कर सका और उसकी मृत्यु हो गई।”
अब नगर के लोग अपनी बीमारियों का ईलाज उससे करवाने लगे। वह सबसे पहले मरीज के सिरहाने की तरफ देखता और यमराज के ना दिखने पर ही वह उसका ईलाज करने के लिए हाँ करता। विद्यादत्त जिसका भी ईलाज करने के लिए हाँ कहता वह ठीक हो जाता और जिसका इलाज करने से मना करता उसकी मृत्यु हो जाती।
अब तो पूरे नगर में ही नहीं आस पास के नगरों में भी उसका नाम हो गया। दूर-दूर से लोग ईलाज करवाने के लिए आने लगे। कुछ ही दिनों में वह बहुत ही धनवान और समृद्ध हो गया।
एक बार उस नगर के राजा भवानी सिंह की पुत्री वैजयंती बीमार पड़ गई। राजा भवानी सिंह ने भी अपनी पुत्री वैजयंती के ईलाज के लिए बड़े-से-बड़े वैद्य को बुलाया, लेकिन कोई भी उसे ठीक नहीं कर सका। तब राजा ने नगर में मुनादी करवाई कि “जो भी उसकी पुत्री को ठीक कर देगा। वह उससे अपनी पुत्री का विवाह कर देगा।”
मुनादी सुनकर कई वैद्य राजकुमारी का ईलाज करने राजमहल गए, लेकिन कोई भी राजकुमारी को ठीक नहीं कर सका। विद्यादत्त ने भी मुनादी सुनी। उसने राजकुमारी की सुंदरता के बारे में कई लोगों से सुन था, वह भी अपना भाग्य आजमाने के लिए राजमहल गया। वहाँ पँहुच कर उसने राजा से उसकी पुत्री का ईलाज करने के लिए अनुमति मांगी।
राजा ने एक दासी के साथ उसे राजकुमारी के कक्ष में भेज दिया। विद्यादत्त ने राजकुमारी के कक्ष में घुसते ही राजकुमारी के सिरहाने की तरफ देखा तो उसे वहाँ यमराज खड़े हुए दिखाई दिए। वह निराश हो गया तभी उसकी नजर राजकुमारी के चेहरे पर पड़ी। वह बीमारी में भी इतनी सुंदर दिखाई दे रही थी कि विद्यादत्त उसे अपलक देखता ही रहा गया। उसने दासी को बाहर भेज दिया।
वह उससे विवाह करना चाहता था, लेकिन अब उसका ईलाज संभव नहीं था। उसने जल्दी से कुछ सोचा और यमराज से कहा,
विद्यादत्त – पिताजी, आज मेरी माँ भी मेरे साथ राजमहल आई है। आप भी एक बार उनसे मिल लीजिये। वह बाहर ही खड़ी है। आप दो मिनिट रुकिए, मैं अभी उन्हें बुलाता हूँ। आप उनसे मिलकर ही जाइएगा।
शीलवती का नाम सुनते ही यमराज जी को काटो तो खून नहीं। वे डर के मारे वहाँ से भागने लगे। लेकिन विद्यादत्त ने उन्हें पकड़ लिया और कहा,
विद्यादत्त – नहीं पिताजी, आज आप माँ से मिले बिना नहीं जा सकते। मैं आपको जाने ही नहीं दूँगा।
यमराज – बेटा मुझे छोड़ दो, मुझे जाने दो। तुम मुझसे कुछ भी माँग लो, लेकिन अपनी माँ से मिलने के लिए मत कहो। मैं तुम्हारी हर बात मान लूँगा।
विद्यादत्त – पहले आप वचन दीजिए पिताजी।
यमराज – ठीक है, मैं वचन देता हूँ।
विद्यादत्त – तो मैं चाहता हूँ कि आप राजकुमारी वैजयंती के प्राण मत लेकर जाओ।
यमराज – लेकिन राजकुमारी की आयु पूरी हो गई है। इसलिए इसकी मृत्यु टल नहीं सकती।
विद्यादत्त – लेकिन पिताजी आपने वचन दिया था। यदि आप अपना वचन तोड़ रहे है, तो मैं अभी माँ को बुलाता हूँ।
यमराज – नहीं बेटा नहीं, तुम अपनी माँ को यहाँ मत बुलवाओं।
विद्यादत्त – तो फिर आप मुझे वचन दीजिए कि आप अगले सौ वर्षों तक राजकुमारी के प्राण नहीं लेंगे।
यमराज – ठीक हैं मैं तुम्हें वचन देता हूँ। लेकिन तुम मुझे अपनी माँ से बचा लो।
विद्यादत्त – ठीक है पिताजी, मैं माँ को नहीं बुलाऊँगा। लेकिन आप अपना वचन मत भूल जाना।
यमराज – ठीक है।
विद्यादत्त ने यमराज को छोड़ दिया। यमराज जी ने तो डर के मारे पीछे मुड़कर भी नहीं देखा और अपनी धोती पकड़ कर भाग खड़े हुए।
विद्यादत्त ने राजकुमारी वैजयंती का ईलाज कर दिया। राजकुमारी के ठीक होने पर राजा ने उसका विवाह विद्यादत्त से कर दिया।
तो दोस्तों, कैसी लगी यमराज जी की शादी! मजा आया ना, आशा करती हूँ आप लोगों ने खूब enjoy किया होगा। फिर मिलेंगे कुछ सुनी और कुछ अनसुनी कहानियों के साथ। तब तक के लिए इजाजत दीजिए।
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